Index to hai Komalji. Magar bina link ke ye thoda taklif karega. Ya to kisse ke sath page no dal de to badhiya hoga.आपकी सुविधा क़े लिए में इंडेक्स अब तक का यहाँ भी दे दे रही हूँ , कहानी अगर शुरू से न पढ़ी हो तो जरूर पढियेगा और हर पोस्ट पर लाइक और कमेंट भी
पूर्वाभास - पृष्ठ १ और २
भाग १ -पृष्ठ ५ छुटकी - होली, दीदी की ससुराल में
भाग २ पृष्ठ ८ छुटकी -बंधे हाथ, ट्रेन में
भाग ३ पृष्ठ १३ चाय चाय
भाग ४, पृष्ठ १९ छुटकी का पिछवाड़ा और नन्दोई जी का इरादा
भाग ५ - पृष्ठ २२ गोलकुंडा पर चढ़ाई- चलती ट्रेन में
भाग ६ --पृष्ठ २९ -३० रात भर ट्रेन में, सटासट,...
भाग ७ पृष्ठ ३५ रेल में धक्क्म पेल
भाग ८ पृष्ठ ४० छुटकी पहुंच गयी जीजा के गाँव
भाग ९ -पृष्ठ ४६ मेरी सास
भाग १० --पृष्ठ ५० ननद, नन्दोई और छुटकी का पिछवाड़ा
भाग ११ - पृष्ठ ५३ सासू , ननदिया ( नैना ) का महाजाल
भाग १२ - पृष्ठ ५८ दो बहेलिये ( सासू और नैना ननदिया)
भाग १३ -पृष्ठ ६२ पूरा गाँव,... जीजा
भाग १४ पृष्ठ ६६ देवर मेरे
भाग १५ पृष्ठ ७२ चंदू देवर
भाग १६ -पृष्ठ ७७ फागुन का पहला दिन- देवर भौजाई
भाग १७ -पृष्ठ ८१ छुटकी - प्यार दुलार और,...
भाग १८ - पृष्ठ ८७ चुन्नू की पढ़ाई
भाग १९ - पृष्ठ ९१ ननदों भौजाइयों की रंगभरी कबड्डी
भाग २० -पृष्ठ ९३ छुटकी की हालचाल
भाग २१ - पृष्ठ ९९ छुटकी पर चढ़ाई -
भाग २२ पृष्ठ १०३ रात बाकी
भाग २३ पृष्ठ १०९ नई सुबह
भाग २४ पृष्ठ ११३ देवर भाभी की होली
भाग २५ पृष्ठ १२१ छोटा देवर - कैसे उतरी नथ चुन्नू की
भाग २६ पृष्ठ १२७ पिलानिंग - कच्ची ननदों की लेने की
भाग २७ पृष्ठ १३२ और छुटकी की होली
भाग २८ पृष्ठ १३६ - किस्सा इन्सेस्ट यानी भैया के बहिनिया पर चढ़ने का- उर्फ़ गीता और उसके भैया अरविन्द का
भाग २९ पृष्ठ - १४५ इन्सेस्ट का किस्सा -तड़पाओगे, तड़पा लो,... हम तड़प तड़प के भी
भाग ३० पृष्ठ १५२ किस्सा इन्सेस्ट का, भैया और बहिनी का -( अरविन्द -गीता ) दूध -मलाई
भाग ३१ पृष्ठ १६५ किस्सा इन्सेस्ट का,-रात बाकी बात बाकी
भाग ३२ पृष्ठ १७८ इन्सेस्ट गाथा अरविन्द और गीता,-सुबह सबेरे
भाग ३३ पृष्ठ २०० अरविन्द और गीता की इन्सेस्ट गाथा सांझ भई घर आये
भाग ३४ पष्ठ २१४ इन्सेस्ट कथा - चाची ने चांदनी रात में,...
भाग ३५ पृष्ठ २२५ फुलवा
भाग ३६ - पृष्ठ २३६ इन्सेस्ट किस्सा- मस्ती भैया बहिनी उर्फ़ गीता -अरविन्द की
भाग ३७ - पृष्ठ २५० इन्सेस्ट कथा - और माँ आ गयीं
भाग ३८ पृष्ठ २६० मेरे पास माँ है
भाग ३९ - पृष्ठ २७१ माँ, बेटा, बेटी और बरसात की रात
भाग ४० पृष्ठ २८६ इन्सेस्ट गाथा - गोलकुंडा पर चढ़ाई -भाई की माँ के सामने
भाग ४१ पृष्ठ ३०३ इन्सेस्ट कथा - मामला वल्दियत का उर्फ़ किस्से माँ के
भाग ४२ पृष्ठ ३१७ इन्सेस्ट कथा माँ के किस्से,
भाग ४३ पृष्ठ ३२९ इन्सेस्ट कथा- माँ के किस्से, मायके के
भाग ४४ पृष्ठ ३४१ रिश्तों में हसीन बदलाव उर्फ़ मेरे पास माँ है
भाग ४५ पृष्ठ ३४८ गीता चली स्कूल
भाग ४६ पृष्ठ ३६३ तीन सहेलियां खड़ी खड़ी, किस्से सुनाएँ घड़ी घड़ी
भाग ४७ पृष्ठ ३७५ रोपनी
भाग ४८ - पृष्ठ 394 रोपनी -फुलवा की ननद
भाग ४९ पृष्ठ ४२० मस्ती -माँ, अरविन्द और गीता की
भाग ५० पृष्ठ ४३५ माँ का नाइट स्कूल
भाग ५१ पृष्ठ ४५६ भैया के संग अमराई में
भाग ५२ पृष्ठ ४७९ गन्ने के खेत में भैया के संग
भाग ५३ - पृष्ठ ४९ ४ फुलवा की ननद
भाग ५४ पृष्ठ ५०६ स्वाद पिछवाड़े का
भाग ५५ पृष्ठ ५२१ माँ
भाग ५६ - पृष्ठ ५३६ - गीता और खेत खलिहान
भाग ५७- पृष्ठ ५४६ कुश्ती ननद भौजाई की -
भाग ५८ पृष्ठ ५५७ मंजू भाभी, मिश्राइन भाभी और स्ट्रेटजी
भाग ५९ पृष्ठ ५६७ कबड्डी ननद और भौजाई की
भाग ६० पृष्ठ ५७३ कबड्डी राउंड २
भाग ६१ पृष्ठ ५८१ कबड्डी राउंड ३
भाग ६२ पृष्ठ ६०५ कबड्डी फाइनल राउंड
भाग ६३ पृष्ठ ६१६ जीत गयी भौजाइयां
भाग ६४ पृष्ठ ६२४ ननदों की हार भाभियों की मस्ती
भाग ६५ पृष्ठ ६३२ भाभियाँ की जीत का जश्न
भाग ६६ पृष्ठ ६३९ ननदों संग मस्ती -मज़ा कच्ची कली रूपा का
भाग ६७ पृष्ठ ६४३ होलिका माई
भाग ६८ - पृष्ठ ६६२ हो गयी शाम घर की ओर
भाग ६९ पृष्ठ ६७३ पिलानिंग कल की , ननदों की
भाग ७० पृष्ठ ६८४ रेनू और कमल
भाग ७१ पृष्ठ ६९३ किस्सा रेनू और कमल का
भाग ७२ पृष्ठ ७०३ मेरा भाई मेरी जान--किस्से भैया बहिनिया के
भाग ७३ - पृष्ठ ७२१ किस्से भैया बहिनिया के
भाग ७४ पृष्ठ ७३२ मस्ती रेनू और कमल की,
भाग ७५ पृष्ठ ७४४ पठान टोले वाली
भाग ७६ - पृष्ठ ७४९ बुर्के वाली पठान टोले की
भाग ७७ पृष्ठ ७६५ इंटरवल के बाद ननदों की मस्ती
भाग ७८ पृष्ठ ७७९ चंदा का पिछवाड़ा और कमल का खूंटा
भाग ७९ - पृष्ठ ७९५ हिना और दूबे भाभी
भाग ८० पृष्ठ ८०७ चमेलिया -गुलबिया
भाग ८१ पृष्ठ ८१८ बारी भौजाइयों की
भाग ८२ पृष्ठ ८३० सुगना भौजी
भाग ८३ पृष्ठ ८४५ महुआ चुये
भाग ८४ पृष्ठ ८५८ ननद के भैया बने उनके सैंया-
भाग ८५ पृष्ठ ८७० इन्सेस्ट कथा -ननद के भैया बन गए सैंया -
भाग ८६ ----पृष्ठ ८८३ इन्सेस्ट कथा - सैंया बने नन्दोई
भाग ८७ - पृष्ठ ८९७ इन्सेस्ट कथा -इंटरवल और थोड़ा सा फ्लैश बैक
भाग ८८ पृष्ठ ९०९ - इन्सेस्ट कथा - मेरा मरद -मेरी ननद
भाग ८९ - पृष्ठ ९१९ - इन्सेस्ट कथा - इनकी माँ - मेरी सास
भाग ९०- पृष्ठ ९३३ - वह रात
भाग ९१ पृष्ठ ९४३ नया दिन नयी सुबह -सास बहू
भाग ९२ पृष्ठ ९५० ननद और आश्रम -
भाग ९३ पृष्ठ ९६३ नन्दोई सलहज और सास
भाग ९४--- पृष्ठ ९७१ मस्ती सास और सलहज के साथ -

सास बहु ने की बदमाशी..भाग ९४
मस्ती सास और सलहज के साथ - मजा जुबना का
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बेचारे नन्दोई जी, आँखे बंद, हाथ बंधे और मुंह उनके सास के जोबन के नीचे दबा, कुछ कर भी नहीं सकते और जवान सलहज उनके पिछवाड़े के पीछे,
चुम्मा तो शुरआत थी, मैंने लम्बी सी जीभ निकाली और सीधे पिछवाड़े की दरार पे, आगे पीछे, ऊपर नीचे, जैसे इनके उस स्साले के साथ करती थी जो अभी ननदोई जी की बीबी चोद रहा था।
नन्दोई जी बोल तो नहीं सकते थे लेकिन तड़पते हुए चूतड़ उछाल रहे थे,
थोड़ी देर तक रिम्मिंग करने के बाद मेरे जोबन मैदान में आ गए,
और अब वो दोनों कभी नन्दोई जी की चूतड़ पे रगड़ते कभी उस दरार और मैंने जब अपने खड़े निपल उनकी दरार में रगड़ना शरू कर दिया तो अब लगा की मारे जोश के वो दोनों हाथों में बंधे सास और सलहज के पेटीकोट के नाड़े को तोड़ देंगे,
सास ने मुझे इशारा किया, बहुत हो गया अब मजा देने का टाइम आ गया और मैंने बदमाशी बंद कर दी,
और जैसे ही सासू जी ने निपल उनके मुंह से बाहर निकाला
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वो बोले,
" सासु माँ कुछ करिये, न "
सासु ने उनके मुंह पे एक जबरदस्त चुम्मा लिया और बोलीं मादरचोद,
और उन्होंने मेरी जगह ले ली नीचे खूंटे के पास, मैं नन्दोई जी के सर के पास, और क्या जबरदस्त चुदाई की सास ने मेरी अपनी चूँचियों से नन्दोई जी की।
इसका मतलब ये नहीं मैंने कभी चूँची से चोदा नहीं था या देखा नहीं था, इनके मोबाइल में कितनी फ़िल्में थी, और मैं भी हफ्ते में एक दो दिन तो इन्हे ललचाने तड़पाने के लिए,
लेकिन जिस तरह से मेरी सास मेरे नन्दोई की रगड़ाई अपनी बड़ी बड़ी चूँचियों से कर रही थीं, वैसा मैंने कभी सोचा भी नहीं था,
बेचारे नन्दोई तड़प रहे थे, हाथ बंधे आँख बंद और सासु माँ, सिर्फ अपनी भारी भारी ३८ + साइज के जोबन से उनके ऊपर से नन्दोई जी के सीने से सहलाते हुए, फिर पेट और पूरा जोबन भी नहीं बस खड़े गरमाये निपल,
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और जब मामला खूंटे का आया, वो एकदम खड़ा फनफनाया, उनकी बड़ी बड़ी चूँचियों से दबा कुचला रहा जा, और जब वो उठीं तो दोनों हाथों से अपनी चूँची पकड़ के मेरे नन्दोई का मोटा बांस अपनी चूँची के बीच कस कस के रगड़ने लगी।
" उफ़, ओह्ह्ह, सासू माँ, क्या कर रही हैं, " नन्दोई मेरे तड़प रहे थे, चूतड़ उठा रहे थे लेकिन मैंने और मेरी सास ने हाथ दोनों उनके कस के बांधे थे,
" जो बहुत पहले करना चाहिए, बोल अपनी माँ के भंडुए, मेरे जोबन देख के ललचाता था की नहीं, "
सास ने दोनों उभारों के बीच में कस के नन्दोई जी के मोटे बांस को रगड़ते बोला,'
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" हाँ हाँ, कोहबर से ही "
नन्दोई जी ने सच उगल ही दिया, और मेरी सास के जोबन सच में ऐसे ही थी की कोई मचल जाए, फिर एकदम टाइट लो कट चोली और आँचल उनका गिरता ज्यादा था सम्भलता कम था।
" तो आज से पहले बोले क्यों नहीं, तीन साल से बेचारा मेरा दामाद तड़प रहा था "
सास ने प्यार से उनके उभारों से झांकते हुए सुपाड़े को कस के चूमते हुए प्यार से पूछा,
उनकी सहलहज थी न जवाब देने के लिए उनकी ओर से, मैं अब नन्दोई की के सर की ओर बैठी थी, प्यार से उनके गाल को सहलाते मैं बोली
" अरे तब उनकी ये वाली छोटी सलहज नहीं आयी थीं न "
और नन्दोई जी के मेल टिट्स को कस के नाख़ून से नोंचते नन्दोई जी से बोली
" अरे ननद रानी से तो कबड्डी अपने मायके में रोज बिना नगा खेलते हैं, आगे से सुसराल आइयेगा न तो बस सास और सलहज, हाँ की ना "
" हाँ, हाँ दस बार हाँ "
मस्ती में नन्दोई जी बोले, यही तो मैं चाहती थी की जब मेरी ननद मायके आये तो उनके मैदान में मेरे मरद का झंडा गड़े जैसे अभी वो गाड़ रहे होंगे और वो बिना नन्दोई जी को पटाये हो नहीं सकता था।
और सास ने भी अपनी दोनों चूँचियों से कस कस के नन्दोई को चोदना शुरू कर दिया,
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सास की कड़ी कड़ी चूँचियों की रगड़, नन्दोई जी की हालत खराब हो रही थी, बीच बीच में सास कभी कभी उनका खुला मोटा सुपाड़ा चूसना शुरू कर देती थीं तो कभी अपनी समधन को गरियाना शुरू कर देतीं,
"अब कभी सास, सलहज से लजाये न तो तोहार गांड तो बाद में मारूंगी तोहरे महतारी क गांड पहले मारूंगी,"
मैं क्यों पीछे रहती मैं नन्द की ननद के पीछे,
" एकदम सासू माँ आप इनकी महतारी क मारिएगा, मैं इनकी बहन की मारूंगी, क्यों ननदोई जी कैसा है माल, है न लेने के लायक "
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बेचारे क्या बोलते लेकिन बिना उनकी मुंह से उनके बहन के बारे में अच्छी अच्छी बात सुने जो छोड़ दे वैसी सलहज मैं नहीं थी,
" इसका मतलब, आपको सास, सलहज की नहीं चाहिए " मुंह फुलाकर मैं बोली,
" नहीं नहीं एकदम नहीं, " जल्दी से वो बोले, तो मैंने तुरंत रगड़ा
"तो फिर बोलिये न की बहन आपकी पेलने लायक है की न हाँ की ना"
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" हाँ "
किसी तरह कबूला उन्होंने और सास ने विजयी भाव से मेरी ओर देखा यही तो वो भी सुनना चाहती थी और अब ननदोई जी ने सास की चिरौरी शुरू कर दी,
" सासू जी करिये न बहुत मन कर रहा है "
" का मन कर रहा है, अपनी माई के भतार, बोलने में तो गांड फट रही है करोगे का "
सास ने और उकसाया और मैंने नन्दोई के कान में बोल दिया,
" अरे साफ़ साफ़ बोलिये, सास को ऐसे ही सुनना अच्छा लगता है "
" चोदने का मन कर रहा है , "
नन्दोई जी ने बोल दिया, और अब मैं एकदम सलहज, मैंने सास की ओर से शर्त रख दिया,
" नन्दोई जी तुंही कह रहे हो की बहन तोहार पेलने लायक हो गयी है, ....तो अब तोहरी ससुराल में पेली जायेगी, ....हां की ना "
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नंदोई के बजाय सास हीं चढ़ गई..सास चढ़ी दामाद पे,
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" इसका मतलब, आपको सास, सलहज की नहीं चाहिए " मुंह फुलाकर मैं बोली,
" नहीं नहीं एकदम नहीं, " जल्दी से वो बोले, तो मैंने तुरंत रगड़ा
"तो फिर बोलिये न की बहन आपकी पेलने लायक है की न हाँ की ना"
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" हाँ "
किसी तरह कबूला उन्होंने और सास ने विजयी भाव से मेरी ओर देखा यही तो वो भी सुनना चाहती थी और अब ननदोई जी ने सास की चिरौरी शुरू कर दी,
" सासू जी करिये न बहुत मन कर रहा है "
" का मन कर रहा है, अपनी माई के भतार, बोलने में तो गांड फट रही है करोगे का " सास ने और उकसाया और मैंने नन्दोई के कान में बोल दिया,
" अरे साफ़ साफ़ बोलिये, सास को ऐसे ही सुनना अच्छा लगता है "
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" चोदने का मन कर रहा है , " नन्दोई जी ने बोल दिया, और अब मैं एकदम सलहज,
मैंने सास की ओर से शर्त रख दिया,
" नन्दोई जी तुंही कह रहे हो की बहन तोहार पेलने लायक हो गयी है, तो अब तोहरी ससुराल में पेली जायेगी, हां की,... ना "
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" हाँ, हाँ दस बार हाँ,... लेकिन, "
वो बेचारे बोले और सास जी से दामाद का दुःख देखा नहीं गया और वो दामाद के ऊपर चढ़ गयीं और उन्होंने तड़पाया नहीं सीधे एक बार में ही
क्या कोई मर्द बेरहमी से कुचल कुचल कर गौने की रात चोदेगा अपनी दुल्हन को जिस तरह से सासू जी नन्दोई के ऊपर चढ़ी थी।
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मैं चकित होकर सास जी को देख रही थी और सीख रही थी।
असल में जिस दिन मैं गौने उतरी थी,
उसी दिन से, मेरी सास, मेरी सास होने के साथ साथ, मेरी गुरु और सहेली भी थी।
गौने के एक दो दिन बाद, मैं इनके पास से आयी थी, और सास, उनकी कुछ सहेलियां, मेरी गाँव की जेठानियाँ बैठी थी, मैं पाँव छूने के लिए झुकी तो इनकी मलाई का एक कतरा, मेरी जाँघों से सरक के मेरे महावर लगे पैर, गौने की नयी नयी दुल्हिन का गाँव की सासो और जेठानियों से कुछ बचता तो है नहीं, एक दो वो देख के मुस्कराने लगी, मेरी सास ने ही बात सम्हाली, मैं एकदम लजा गयी, घबड़ा भी गयी,
" अरे नयी नयी दुल्हिन के तो मांग में सिन्दूर दमकता रहे, और बिल से मलाई छलकती रहे तभी तो पता चलेगा की गौने क दुल्हिन है "
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और एक दो दिन बाद, मजाक में उन्होंने मेरे साये में हाथ डाला, बिल बजबजा रही थी,
उनके लड़के की मलाई से, एक पोर ऊँगली उन्होंने अंदर की और एक सीख दी जो जिंदगी भर की थी,
" मरद का तो काम ही है चढ़ना और औरत क काम है चढ़वाना, आखिर तोहार महतारी भेजी है और हम लाये हैं इसलिए, लेकिन एक काम करो, जैसे कभी मूतवास लगती है और जगह नहीं है मौक़ा नहीं है तो का करोगी, "
" कस के भींच लूंगी" मैंने सास को बता दिया।
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" बस उसी तरह से दिन में पांच दस बार कर के खूब धीरे धीरे, ...अच्छा तुम मेरे तो अंदर, ...तो मैं सिखाती हूँ "
मैंने सास की बिल में ऊँगली डाली,
मैं सोच रही थी एकदम चौड़ी होगी, असली भोंसड़ा, उम्र में मुझसे दूनी तो थी ही, मेरे मरद के आलावा भी तीन बच्चे निकल चुके थे वहां से, मेरे जेठ, दो ननदें, लेकिन मैं चौंक गयी, एकदम टाइट। मेरी जैसी तो नहीं लेकिन कोई भी नहीं कह सकता था की यहाँ से चार चार बच्चे निकल चुके हैं एकदम लड़कोर नहीं लग रही थीं,
बड़ी मुश्किल से दो पोर घुसी और सास ने बुर अपनी भींच ली और मुझसे हंस के बोली,
"चल बहु निकाल, देखीं तोहार महतारी का सीखा के हमरे बहू को भेजी है "
इतना कस के उन्होंने सिकोड़ी थी की मेरी ऊँगली बाहर निकलने के कौन कहे, हिल नहीं सकती थी। ऊपर से बोलीं अभी तो आधा जोर लगाई हूँ,
मैं तुरंत चिरौरी करने लगी मुझे भी सीखना है, पहले तो उन्होंने चिढ़ाया,
" तोहार मंहतारी गिरवी रखवाउंगी, " फिर दुलार से बोली
" अरे पगली तोहें नहीं सिखाऊंगी तो किसको सिखाऊंगी, अरे आधा दर्जन हमरे पोती पोता होंगे तो उसके बाद भी तेरी वैसे टाइट रहेगी, जैसी आज है "
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और सास ने सब ट्रिक सिखायी, अब मैं भी करीब करीब उतना ही कस के, और बिल के टाइट रहने की गारंटी,
लेकिन जो आज मैं देख रही थी, सीख रही थी वो तो एकदम ही अलग, सास के बेटे के ऊपर चढ़ कर कितनी बार,
लेकिन आज सास जी मेरे नन्दोई की जैसे ली,
उफ्फ्फ,
पहले तो बहुत प्यार से दुलार से, धीरे धीरे, झुक के कभी नन्दोई जी के गाल चूम लेती कभी होंठ, (ननदोई जी की आँख तो हम सास बहू ने बाँध दी थी उनके सास और सलहज की चोली से, तो वो देख तो सकते नहीं थे, )
और कभी झूमते हुए वो होंठ, नन्दोई जी की छाती पर चुंबन की बारिश कर देतीं, सास के बड़े बड़े जोबन भी बस हलके से नन्दोई जी के सीने पे, धक्के भी बस हलके हलके और साथ में नन्दोई जी भी नीचे से अपने चूतड़ उठा उठा के, कभी सास जी रुक भी जाती बस नन्दोई जी नीचे से,
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और दो चार मिनट में ननदोई मेरे जब एकदम गरमा जाते तो सास फिर ऐसी रगड़ाई करतीं उनकी, क्या कोई खेला खाया प्रौढ़ मरद एकदम कच्ची कली की करेगा, सास जी के होंठ अब नन्दोई जी के होंठ चूमते नहीं, कस के चूसते, कभी कभी वो होंठों को मुंह में ले के काट लेती, उनके नाख़ून कभी कंधे पर, कभी पीठ पर सिर्फ धंसते, चुभते ही नहीं थे, लकीर भी खिंच दे रहे थे और सबसे बुरी हालत ननदोई जी के मेल टिट्स की थी, कभी जीभ से हलके हलके फ्लिक कर के उसे खड़ा कर देती और फिर दांतों से कचकचा के काट लेतीं, और नन्दोई जी को चीखने की इज्जाजत नहीं थी, सिसकी भी निकली तो गालियों की बारिश,
" चुदवा चुप चाप, जरा भी आवाज निकली न तो तेरी माँ चोद दूंगी, दोनों हाथों की मुट्ठी से उसकी गांड मारूंगी, माँ चुदवाने का मन हो तो स आवाज निकाल, जरा भी हिला न तो, "
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और सास के धक्के भी एकदम तूफानी और उस समय ननदोई जी को हिलने की भी इजाजत नहीं थी। खुद उछल उछल कर और मैं पक्का श्योर थी की बीच बीच में नन्दोई जी का मोटा मूसल वो कस के निचोड़ भी रही थीं, लेकिन नन्दोई मेरे लम्बी रेस के घोड़े थे और पक्के चुदक्कड़
जब पूरा खूंटा अंदर घोंट लेतीं तो बस कई बार धक्के बंद और रगड़ रगड़ के घिस्से लगाती अपनी बुर के बेस से अपने दामाद के लंड के बेस पे और गरियाती साथ में
" बहुत चोदा है न मेरी बेटी को, आज उसकी माँ चोद रही है तुझे, क्यों पता चल रहा है चुदवाने का मजा, "
" हाँ सासु माँ , हाँ " सिसकते वो नीचे से अपने चूतड़ उठाते धक्के मारते बोलते, " बहुत मजा आ रहा है "
और मैं भी अपने नन्दोई को छेड़ती,
" बहुत कम लोग होते होंगे जिन्हे माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा मिला हो, ये तो मेरी सास ननद हैं "
और सोचती की मेरे मरद को भी मिलेगा ये मजा, माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा, ननदोई जी ने तो पहले बेटी का मजा लिया और अब उनकी माँ चोद रहे हैं लेकिन मेरा मरद, मेरी ननद को चोद चोद कर माँ बना रहा है, फिर उन की बेटी को भी, एडवांस बुकिंग,
" ये मजा स्साले अपनी माँ के भंडुए तुझे तीन साल पहले ही मिल जाता, ये तो तेरी सलहज, मेरी बहू है जिसने तुझे ये मजा दिलवाया " ऊपर से धक्के मारते मेरी सास बोलतीं,
लेकिन अब वो थोड़ी तक रही थीं और उनके दामाद भी मेरी बार बार फुसफुसा के मिन्नत कर रहे थे, " सलहज जी बस एक बार हाथ खोल दीजिये "
बहुत दिनों बाद मेरी सास चुद रही थीं, और वो भी अपने दामाद से बहू के सामने। और मजे से चीख रही थीं, सिसक रही थींमां-बेटी दोनों का मजा
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" बहुत चोदा है न मेरी बेटी को, आज उसकी माँ चोद रही है तुझे, क्यों पता चल रहा है चुदवाने का मजा, "
" हाँ सासु माँ , हाँ " सिसकते वो नीचे से अपने चूतड़ उठाते धक्के मारते बोलते, " बहुत मजा आ रहा है "
और मैं भी अपने नन्दोई को छेड़ती,
" बहुत कम लोग होते होंगे जिन्हे माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा मिला हो, ये तो मेरी सास, ननद हैं,.... "
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और सोचती की मेरे मरद को भी मिलेगा ये मजा, माँ बेटी दोनों को चोदने का मजा,
ननदोई जी ने तो पहले बेटी का मजा लिया और अब उनकी माँ चोद रहे हैं
लेकिन मेरा मरद, मेरी ननद को चोद चोद कर माँ बना रहा है, फिर उन की बेटी को भी, एडवांस बुकिंग,...गाँव देहात में तो वैसे ही लौंडिया जल्दी जवान हो जाती हैं और वो तो मेरी ननद ऐसी महा छिनार के कोख से जनी, बचपन से ही देख देख के, जयादा इन्तजार नहीं करना पड़ेगा मेरे मर्द को,
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टिकोरे कुतरने का, और मेरी ननद ने तो बोला है वो खुद ही अपने हाथ से और फिर माँ बेटी दोनों एक साथ मेरे मरद के आगे
" ये मजा स्साले अपनी माँ के भंडुए तुझे तीन साल पहले ही मिल जाता, ये तो तेरी सलहज, मेरी बहू है जिसने तुझे ये मजा दिलवाया "
ऊपर से धक्के मारते मेरी सास बोलतीं,
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लेकिन अब वो थोड़ी थक रही थीं और उनके दामाद भी मेरी बार बार फुसफुसा के मिन्नत कर रहे थे, "
"सलहज जी बस एक बार हाथ खोल दीजिये "
अब मैं उनकी बीबी को अपने मरद से चुदवा रही थी, गाभिन करवा रही थी तो मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है और मैंने दोनों हाथ खोल दिए बस क्या था
गाडी नाव पर और मैं अपने नन्दोई के साथ खुलकर
सास नीचे लेटी,
उनकी दोनों टाँगे मेरे ननदोई के कंधे पर, जाँघे एकदम खुली,
और सास को नन्दोई और सलहज ने आपस में बाँट लिया।
नीचे का हिस्सा नन्दोई का ऊपर का सलहज का।
जोबन दोनों मेरे हिस्से में आये और मैंने कस के मसलना चूसना रगड़ना शुरू कर दिया,
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सासू की प्रेम गली नन्दोई के हिस्से में आयी थी और उनका हर धक्का हथौड़ा छाप था।
बहुत दिनों बाद मेरी सास चुद रही थीं, और वो भी अपने दामाद से बहू के सामने। और मजे से चीख रही थीं, सिसक रही थीं
" बेटी को बहुत चोदा मेरी आज माँ को भी चोद लो, हाँ ऐसे धक्के मारो, और जोर से, ओह्ह उफ्फ्फ "
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और मैं एक अच्छी बहू की तरह सास की तकलीफ और बढ़ा रही थी, उस चुदती बुर के क्लिट को उनकी बहू की उँगलियाँ पहले सहलाती रही फिर कस के दबा दिया,
सास वैसे भी खूब गरमाई थीं, अब दामाद के इन तूफानी धक्कों ने और बहू की बदमाशी ने उन्हें झड़ने के करीब ला दिया,
" हाँ ऐसे ही करो, रुको नहीं , बहू तो भी न, ओह्ह क्या करती है छिनार, .....तेरी माँ की, "
सास चूतड़ पटक रही थीं, चीख रही थी
और जब मेरे नन्दोई ने पूरा बांस निकाल के एक जोर के धक्के से सीधे बच्चेदानी पे चोट मारी तो सास ऐसे काँप रही थी जैसे बिजली के झटके लग रहे हो, आँखे उलट सी गयी, मारे मस्ती के दोनों हाथो से उन्होंने बिस्तर की चादर पकड़ ली
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वो झड़ रही थीं लेकिन न उनका दामाद रुका न उनकी बहू,
मैं यही सोच रही थी की सास के मन में क्या चल रहा होगा, यही की ऐसी बहू और दामाद हर सास को मिले,
मेरे ननदोई के धक्के जारी थे,
मैंने उनके आँख पर बंधा ब्लाइंडफोल्ड भी खोल दिया था, मैं भी क्लिट को रुक रुक के रगड़ मसल रही थी,
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सास मेरी बार बार झड़ रही थीं, सास की प्रेम गली बार बार सिकुड़ रही थी, फ़ैल रही थी लेकिन उन्होंने ऐसा ट्रेन कर रखा था अपनी मसल्स को उस सिकुड़ने, फैलने से मेरे ननदोई का मूसल वो इतने जोर से निचोड़ रही थी की थोड़ी देर में ननदोई भी उनके साथ और कस के उन्हें भींच के अपनी सास के अंदर झड़ते रहे, आठ दस मिनट दोनों जोड़े से पड़े रहे
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बस मेरे दिमाग में एक ही बात आ रही थी बार, बार जैसे आज मेरी सास खुल के मेरे सामने अपने दामाद से चुद रही थीं,
वैसे जल्द, बल्कि बहुत जल्द अपने बेटे से चुदे, मेरे सामने
और जब नन्दोई जी हटे, तो बूँद बूँद कर उनकी मलाई उनकी सास की बिल से, जहाँ से उनकी पत्नी निकली थीं, वहीँ से रिस रिस कर उनकी जाँघों पर,
बहुत कम लोग हैं जिन्हे माँ बेटी दोनों को लेने का सुख मिलता है
दोनों लोग एकदम थक कर चूर थे और मैं भी साथ में लेटी रही,
अभी नन्दोईजी को कम से कम आधा घंटा तो लगेगा ही फिर से चार्ज में लेकिन तभी मुझे याद आयी दारु की वो बोतल जो मैं नन्दोई जी के कमरे से ले आयी थी, उसकी एक एक चुस्की और थकान थोड़ी कम हुयी
सास मेरी, सच में,
मुझे चिढ़ाते छेड़ते उकसाते बोलीं ,
" तोहरे नन्दोई की मलाई है "
और ननदोई जी को दिखाते हुए, सास की कटोरी पे मैं टूट पड़ी पहले दोनों हाथों से जाँघों को खूब फैलाया और जाँघों पर गिरी हुयी फैली हुई मलाई को नन्दोई जी को दिखाते हुए जीभ निकाल के उसकी टिप से चाट लिया,
नन्दोई जी की हालत खराब, हो तो हो, जिस तरह से मेरी सास को कुचला था उन्होंने मेरी तबियत खुश कर दी थी उन्होंने।
और फिर दोनों होंठ सास जी की कुप्पी पे, हलके से फांक को फैला के चुसूर चुसूर, अपने नन्दोई की मलाई और मन में सोच रही थी बस दो तीन दिन और, एक बार ननद नन्दोई जी चले जाएँ, फिर तो इसी कुप्पी में से अपने मर्द की मलाई भी खाउंगी, मेरी जीभ अंदर घुस के कुप्पी की दीवालों को चाट चूस के मलाई की एक एक बूँद चाट रही थी,
लेकिन इस बुर चटाई और चुसाई का असर ये था की सास एक बार फिर से सिसकी भरने लगी, गरमा गयी
यही तो मैं चाहती थी, और अब ननदोई जी को दिखा दिखा के मैं सास की चंपा कली चूस रही थी, दोनों फांको को फैला के कभी दो ऊँगली अंदर करती और जैसे ननदोई जी का लंड मजे ले रहा अपनी सास की बुर में, मेरी उँगलियाँ मजे ले रही थीं अपनी सास की बुर में। होंठ भी खाली नहीं थे वो क्लिट की चुसम चुसाई कर रहे थे।
और अब यह देख के नन्दोई जी का औजार फुदकने लगा था, दो कन्यायों की प्रेम लीला से बड़ा उत्तेजक कुछ नहीं है मरद के लिए।
सास-बहु ने अपनी जुगलबंदी से नंदोई की महतारी के बजाय नंदोई को हीं नचा दिया..सास बहू की मस्ती
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सास मेरी, सच में,
मुझे चिढ़ाते छेड़ते उकसाते बोलीं , " तोहरे नन्दोई की मलाई है "
और ननदोई जी को दिखाते हुए, सास की कटोरी पे मैं टूट पड़ी
पहले दोनों हाथों से जाँघों को खूब फैलाया और जाँघों पर गिरी हुयी फैली हुई मलाई को नन्दोई जी को दिखाते हुए जीभ निकाल के उसकी टिप से चाट लिया,
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नन्दोई जी की हालत खराब, हो तो हो, जिस तरह से मेरी सास को कुचला था उन्होंने मेरी तबियत खुश कर दी थी उन्होंने।
और फिर दोनों होंठ सास जी की कुप्पी पे, हलके से फांक को फैला के चुसूर चुसूर, अपने नन्दोई की मलाई और मन में सोच रही थी बस दो तीन दिन और, एक बार ननद नन्दोई जी चले जाएँ,
फिर तो इसी कुप्पी में से अपने मर्द की मलाई भी खाउंगी, मेरी जीभ अंदर घुस के कुप्पी की दीवालों को चाट चूस के मलाई की एक एक बूँद चाट रही थी,
लेकिन इस बुर चटाई और चुसाई का असर ये था की सास एक बार फिर से सिसकी भरने लगी, गरमा गयी
यही तो मैं चाहती थी,
और अब ननदोई जी को दिखा दिखा के मैं सास की चंपा कली चूस रही थी, दोनों फांको को फैला के कभी दो ऊँगली अंदर करती और जैसे ननदोई जी का लंड मजे ले रहा अपनी सास की बुर में, मेरी उँगलियाँ मजे ले रही थीं अपनी सास की बुर में।
होंठ भी खाली नहीं थे वो क्लिट की चुसम चुसाई कर रहे थे।
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और अब यह देख के नन्दोई जी का औजार फुदकने लगा था, दो कन्यायों की प्रेम लीला से बड़ा उत्तेजक कुछ नहीं है मरद के लिए।
" हे अकेले अकेले बुर रानी क मजा लेबी छिनार क जनी"
मेरी सास मुझे चिढ़ाते अपनी समधिन को गरियाते बोलीं,
और थोड़ी देर में सास बहू 69 की पोज में थे,
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इससे पहले कितनी बार हम सास बहू ने ये मजे लिए थे,
लेकिन आज असली खेल तो नन्दोई जी को तड़पाने के लिए हो रहा था, ये रात वो कभी न भूले और जब भी ससुराल आएं सीधे सास, सलहज के साथ, ( मतलब ननद मेरे मरद के साथ )।
मेरी सास भी पक्की चूत चटोरी, कटोरी के अंदर जीभ डाल के करोच करोच के चाटना मैंने उन्ही से सीखा था, हम दोनों साइड में एक दूसरे को पकडे, लेकिन मेरी सास खूब चालाक, वो जानती थी उनके बहू के बड़े बड़े कसे कसे चूतड़, उनके दामाद को कैसे पागल करते हैं तो बस, उन्होंने मुझे इस तरह दबोच रखा था की मेरे चूतड़ उनके दामाद को दिख तो रहे थे एकदम पास में भी, चाहें तो हाथ बढ़ा के छू ले,
जैसे वो नीली पीली फिल्मो में करते हैं न, खूंटा कभी भी अंदर पूरा नहीं धंसता, कैमरे के लिए थोड़ा सा बाहर, और दया तो मुझे उन लड़कियों पे आती हैं, कितनी बुरी तरह से टाँगे फैला के रखना पड़ता है, इसलिए नहीं की मूसल अंदर घुस जाए, इस लिए की कैमरे की निगाह में, क्लोज अप में वो साफ़ साफ़ दिखे, ऊपर चढ़ के भी चोद रही है तो झुकना मुश्किल है, जिससे अंदर बाहर जाता मूसल दिखे,
तो बस एकदम उसी तरह से मेरी सास भी, चाट मेरी चाट रही थीं, लेकिन पत्ता और सब मसाला अपने दामाद को दिखा रही थीं मेरा,
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और वो तो अपने सलहज के दीवाने,
बस थोड़ी देर में ही खूंटा उनका एकदम तैयार खड़ा,
लेकिन आज हम सास बहू की बदमाशियां भी परवान चढ़ी थी, न मेरी सास ने मुझे झड़ने दिया न मैंने सास को, हाँ सास बोलीं,
" देख ये अपनी महतारी क भंडुआ ललचा रह है सास, सलहज को देख के एक बार फिर से इसकी आँख बंद कर "
" अरे नहीं, ललचाने दीजिये न ससुराल में सास सलहज को देख के नहीं ललचाएगा तो किसको देख के, एक छोटी साली थी वो भी अपने बड़े भैया से मरवाने मुम्बई चली गयी। हाँ हाथ पैर बाँध देते हैं , हम लोगो को हाथ नहीं लगाएगा, जब तक हम लोग नहीं चाहेंगे "
मैं नन्दोई जी को देख के चिढ़ाते बोली
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सास और सलहज के पेटीकोट के नाड़े से नन्दोई जी मिनट भर में बंध गए, देखें ललचाये लेकिन और मेरी सास ने एक और पाबंदी लगा दी
" रंडी के जने, अगर एक आवाज निकली न तो तोहरी महतारी को नंगे नचाउंगी इसी अँगने में "
" वो भी इन्ही के सामने, " मैंने सास की बात में बात जोड़ी अच्छी बहू की तरह,
और हम दोनों सास बहू फिर चालु हो गए, लेकिन आपस में नहीं नन्दोई जी के साथ।
खूंटा उनका जबरदस्त खड़ा था, और सास ने मुझे खा देख तेरे नन्दोई का खूंटा, महतारी के नंगे नाचने के नाम से कैसा खड़ा हो गया, "
और साथ में मेरा सर उन्होंने जबरदस्ती नन्दोई के खड़े लंड पर
नन्दोई तो वैसे ही पिछवाड़े के छेद के रसियासलहज के होंठ नन्दोई का खूंटा
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और हम दोनों सास बहू फिर चालु हो गए, लेकिन आपस में नहीं नन्दोई जी के साथ। खूंटा उनका जबरदस्त खड़ा था, और सास ने मुझे खा देख तेरे नन्दोई का खूंटा, महतारी के नंगे नाचने के नाम से कैसा खड़ा हो गया, " और साथ में मेरा सर उन्होंने जबरदस्ती नन्दोई के खड़े लंड पर
कौन सलहज होगी जो अपने नन्दोई का खड़ा मूसल ऐसे छोड़ देगी, ऊपर से जब उसकी सास खुद कह रही हो,
गप्प
पहाड़ी आलू ऐसा बड़ा सा मोटा सुपाड़ा मेरे मुंह में और बहुत धीरे धीरे मैं चूस रही थी, होंठों से रगड़ रही थी, जीभ से सुरसुरा रही थी
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और मेरी सास के होंठ भी हलके हलके अपने दामाद की टांगों पे तितली की तरह उड़ते हुए कभी यहाँ छूते कभी वहां और धीरे धीरे जांघों पर
ननदोई कसमसा रहे थे अपने बंधन छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मेरे पेटीकोट का नाडा था बिना मेरे चाहे नहीं खुलने वाला।
मैं अपनी सास को देख रही थी उनका मन भी वही कुल्फी खाने का कर रहा था जिसे मैं मजे ले ले कर चूस रही थी, और जैसे स्कूल की सहेलियां, आपस में लॉलीपॉप बाँट लेती हैं
" ले कमीनी एक बाइट तू भी ले ले, नजर लगा रही है "
बस मैंने उसे सास जी को ऑफर कर दिया।
एक ओर से चाटती वो दूसरी ओर से मैं,
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फिर हम दोनों ने बाँट लिया, गन्ना मेरे हिस्से में रसगुल्ला मेरी सास के हिस्से, और क्या मस्त दोनों बॉल्स वो चूस रही थी, मेरी भी जीभ लिक करती हुए गन्ने के बेस से शुरू होकर छतरी तक, लम्बी लम्बी चटाई, एक तरुणी, एक प्रौढ़ा,
एक साल भर पहले कि ब्याही, एक पत्नी की माँ,
असर होना ही था,
नन्दोई जी का खूंटा खड़ा होगया, खड़ा क्या ऐसा तन्नाया था कि अगर हम सास बहू ने ननदोई के हाथ पैर कि जगह उनके मूसल को बाँधा होता अपने पेटीकोट के नाड़े से तो कबका वो तोड़ चूका होगा,
अब मैं कस कस के चूस रही थी और बीच बीच में तिरछी निगाहों से नन्दोई को देख रही थी, हालत खराब और उनकी निगाहें सिर्फ एक बात और फिर वो अरज भी करने लगे
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" सलहज जी खोल दीजिये, बहुत मन कर रहा है, बस एक बार, "
" मेरी सब बातें माननी पड़ेंगी नन्दोई जी सोच लीजिये "
बड़ी अदा से मैंने उनसे कहा, तीन तीर्बाचा भरवाया और बोलै
" जोरू के गुलाम तो सब होते हैं, सलहज और सास का गुलाम होना मंजूर पहले बोलिये "
मैंने फिर पूछा
और मेरी सास ने बीच में टोक दिया,
" अरे ये अपनी महतारी क भतार,... बहू पूछ ले इससे कि तू कुछ कहेगी ये जाके अपनी महतारी के पेटीकोट में घुस जाएगा,.... फिर बोलेगा मैं का करूँ माँ कह रही है "
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नन्दोई जी ने फिर तीन बार कसम खायी और अबकी मैंने एक बार फिर पाला बदला, पलटू कुमारी बनते हुए
नन्दोई सलहज एक तरफ, न सिर्फ नन्दोई जी के हाथ पैर खुले बल्कि हम दोनों ने मिल के सास को निहुरा दिया,
नन्दोई ने जिस छेद का मजा लिया था एकबार फिर उसी में नंबर लगाया, लेकिन मैंने मना कर दिया
" नहीं नहीं उस का मजा तो एक बार ले लिया अबकी इस वाले छेद का "
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नन्दोई तो वैसे ही पिछवाड़े के छेद के रसिया
और मैंने सास के गोल छेद को फ़ैलाने कि कोशिश की, एकदम टाइट, साफ़ लग रहा था दसों साल से सींक भी अंदर नहीं गयी है। पूरी ताकत से फ़ैलाने पर भी बस हल्की सी दरार,
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लेकिन जिस तरह से सास मेरी झुकी थी सर एकदम बिस्तर से चुपके और दोनों बड़े बड़े चूतड़ हवा में उठे, इससे दो बातें तो साफ़ थीं
एक तो वो खूब गांड मरवा चुकी थीं
और दूसरे, उनका भी बहुत मन कर रहा था पिछवाड़े का मजा लेने का, लेकिन ननदोई जी का सुपाड़ा बहुत मोटा था, चिकनाई लगाने पर भी खून खच्चर करने वाला, बिना तेल के तो घुसना ही पॉसिबल नहीं लग रहा था
"बस मैं जरा सा कडुवा तेल ले आती हूँ और मेरे आने के पहले खेल शुरू मत करियेगा ,"
ये कहके मैं बाहर निकल आयी।
बहु तो एक पंथ दो काज में विश्वास रखती है...मेरी ननद, मेरा मरद
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बस मैं जरा सा कडुवा तेल ले आती हूँ और मेरे आने के पहले खेल शुरू मत करियेगा ,
ये कहके मैं बाहर निकल आयी।
असल में मैं ज़रा ननद का और इनका भी हाल चाल लेना चाहती थी, खेल कहाँ तक पहुंचा मेरे मर्द का, वैसे तो ये तीसरा दिन था उनका बहन पर चढ़ाई करने का, लेकिन बहनोई के रहते हुए बहन चोदने की बात ही कुछ और है
जब मैं नन्द और अपने ' दूसरे ननदोई, ननद जी क होने वाली बच्ची के बाप ' के कमरे के पास पहुंची,
तो चूड़ी की चुरमुर, पायल की झंकार सब बंद थी, साफ़ था इंटरवल हो गया है, खिड़की हल्की सी खुली थी।
मेरे मरद, मेरा मतलब दूसरे नन्दोई का मूसल थोड़ा सोया थोड़ा जागा, ( आज तीसरा दिन था मेरी ननद पे उन्हें चढ़ाई करते, तो इस रिश्ते से उन्हें ननदोई कह के चिढ़ा ही सकती हूँ )
लेकिन मुझसे ज्यादा कौन जानता था उसकी बदमाशियां। जब मैं समझती थी वो थक गया है अब नहीं उठेगा, उसी समय, बस थोड़ा सा इनकी बहन महतारी गरियाती, उसे हाथ में लेकर सुहराती थी तो ऐसा फनफना के , जबतक चीखें न निकलवा ले, थेथर न कर दे, छोड़ता नहीं था।
खुली खिड़की से इनका चेहरा तो नहीं दिख रहा था लेकिन मेरी ननद का गोरा चम्पई रूप, आँखों से ख़ुशी छलक रही थी, और उन्ही आँखों से उन्होंने मेरी एक झलक देखी, और मुस्करा दीं, अपने भैया का हाथ खींच के उन्होंने अपने पेट पर जहाँ से नौ महीने बाद उनके भैया की मेहनत निकलने वाली थी, ' उसी से ' वो बात कर रही थी,
" देख रही हो न अपने बेटीचोद बाप को, ....तोहरी महतारी को चोद चोद कर थेथर कर दिया लेकिन तब भी मन नहीं भर रहा है तेरे बाप का। और घबड़ा काहें रही हो, बस नौ महीना की बात है, निकलोगी तो सबसे पहले इस मरद की सूरत दिखाउंगी, ऐन छठी की रात,... देख लेना अपनी आँख खोल के, कइसन बदमाश है ये बेटी चोद। घबड़ा जिन, हमसे ज्यादा तोहार हालत खराब करेगा,... ये बेटी चोद, "
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मैं ननद जी की शरारत भरी बातें सुन रही थी और असर उसका उसी पर हुआ जो होना था, वही हुआ,
ये बात सुन के मेरे मरद का खूंटा फनफनाने लगा, ननद जी अब सहलाने की जगह उसे खुल के मुठिया रही थीं, सोता हुआ तो मुट्ठी में आ जाता था, जग जाए तो मुट्ठी में समाना मुश्किल,
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लेकिन ननद जी की बातें जारी थीं,
"इससे भी बदमाश है इसका मूसल, और एक हमार भौजी है वो और दुलार कर कर के उसकी आदत खराब कर दी है, ऐन बरही के दिन, देख लेना उसकी भी कारस्तानी, ...जब तोहरे सामने तोहरी महतारी को,...चोद चोद के, चोद चोद के, देखना अपने असली बाप को "
लेकिन आगे की बातें रुक गयी,
क्योंकि मेरी ननद के भैया अब गरमा गए थे, और ननद के चूतड़ के नीचे जितना तकिया था सब लगा के एक हाथ ऊपर उठा रहे थे, अगला राउंड शुरू होने वाला था,
मैं नहीं चाहती थी वो देखें मुझे देखते हुए, लेकिन मेरे हटने के पहले ननद ने इशारे से बता दिया, तीन ऊँगली दिखा के तीसरा राउंड शुरू हो रहा है,
और मैं खिड़की से हट गयी,
और इनकी एक बात से मैं खुश थी, इनको कोई बात समझ में आये न आये, लेकिन आँख बंद कर के मान लेते थे और मैंने इनसे दस बार कहा था की इस बार सिर्फ जैसे पहले दिन किया था एकदम उसी तरह उसी उसी तरीके से जिससे हर बूँद सीधे बच्चेदानी में जाए, जैसे बोआई के समय बीज नहीं बरबाद होना चाहिए एकदम उसी तरह,
मन इनका बहुत ननद जी की गांड मारने का कर रहा था, ऐसे मस्त चूतड़ और जैसे मटका के चलती हैं वो किसी भी मर्द का देख के टनटना जाए, मेरे मरद की कौन गलती। लेकिन मैंने इनको समझा दिया था,
"खबरदार, अभी पिछवाड़े की ओर मुंह भी मत करना, सब की सब बूँद चूत रानी के अंदर और वो भी ऐसे की सब बक्कदानी में जाए, " मेरे मन में बार बार होलिका माई की बात गूंजती थी, ननद को पांच दिन के अंदर गाभिन होना था लेकिन वो दिन पांच दिन के अंदर कोई भी दिन हो सकता था।
मैंने समझा भी दिया था, " घबड़ा मत एक बार बस किसी तरह से गाभिन कर दो, फिर तो लौटेंगी न मायके, अरे गाभिन होने पे चूतड़ और चौड़ा हो जाता है, गांड और मारने लायक, मारना मन भर, अपने हाथ से पकड़ के तोहार खूंटा अपनी नन्द के पिछवाड़े लगवाउंगी, खुद तोहरे गोद में बैठ के अपनी गांड में तोहार मूसल घोटेंगी, लेकिन अभी बस, " और जिस तरह से वो ननद के चूतड़ के नीचे तकिया पर तकिया लगा रहे थे गाभिन करने के लिए सबसे अच्छा था, दूबे भाभी और आशा बहू दोनों लोगो ने समझाया था, चूतड़ जितना उठा रहे उतना अच्छा, चूत का मुंह और बच्चेदानी का मुंह एक सीध में रहेगा और ढलान भी तो एक एक बूँद ढलक कर सीधे बच्चेदानी में, बाहर बीज नहीं आएगा।"
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पांच दिन में आज चौथा दिन था।
पहले दिन तो आपने सामने ही मैंने इनका बीज इनकी बहन की बिल में डलवाया, अगले दिन ननद अपनी सहेलियों के साथ और ये अपने बहनोई के चक्कर में पुलिस हस्पताल, तीसरा दिन कल की रात थी। नन्दोई जी अस्पताल में नर्सों के साथ मजे ले रहे थी और उनकी बीबी पे उनका साला चढ़ा था। आज चौथी रात थी और नन्दोई जी अपनी सास सलहज के साथ और उनके साले नन्दोई की बीबी के साथ, बस एक दिन बचा था। कल भी नन्दोई की परछाई से ननद को बचाना था और मेरे मरद का बीज मेरी ननद के बिल में, उसके बाद अगली सुबह हम दोनों वो प्रिग्नेंसी टेस्ट करेंगी और एक बार गाभीन हो गयी मेरी ननद तो ये पक्का था बेटी मेरी मरद की ही है, उन्ही के बीज की बोई,
और मैं ननद की बात के बारे में सोच रही थी मुस्का रही थी, जिस तरह से वो बतिया रही थीं,
" बरही की रात में तोहरे सामने, देख लेना कैसा मोट मूसर है, "
जैसे सुन ही रही हो। लेकिन क्या पता अभिमन्यु भी तो सुभद्रा के पेट में,.... और सुभद्रा भी तो अर्जुन क ममेरी बहन ही तो थी , और सुभद्रा सो गयीं तो अभिमन्यु आखिरी दरवाजे का किस्सा नहीं सुन पाया, ....पर हमार ननद सोने वाली नहीं, एक एक बात अरथा अरथा की समझा रही थी, सच्ची में बेटी कुल गुन आगर हो के निकलेगी, महतारी के पेट से। पहिलवे से सीखी पढ़ी।
और तभी मुझे याद आया निकली किस लिए थी, ...सरसो का तेल लेने, वहां बेचारी हमारी सास निहुरि. फैलाये,... अपने दामाद क खूंटा क इंतजार कर रही होंगी।
झट से रसोई से कडुवा तेल क डिब्बा ले के मैं वापस पहुंची,
लेकिन मेरी सास वो, वो सच में मेरी सास थीं, खूब मस्ती ले रही थीं। जो काम कभी उनकी बिटिया न करा पायी वो अपने दामाद से करा रही थीं, दरवाजे पर एक हाथ में सरसों के तेल की बोतल लेके मै मुस्कराते हुए देख रही थी,
दामाद उनके, उनका खुला पिछवाड़ा चाट रहे थे, सास ने खुद अपने हाथ से अपने दोनों बड़े बड़े नितम्बो को फैला रखा था, जीभ उनकी उस गोल छेद की कुण्डी खटका रही थी, पर इतने दिनों से बंद दरवाजा, कहाँ बिना तेल लगाए खुलने वाला था। पर मैं सास की शैतानी देख रही थी
" अरे ऐसे नहीं जाएगा, जिभिया अंदर तक डाल के नहीं तो बाहर बाहर से काम नहीं चलेगा, " उन्होंने अपने दामाद को उकसाया,
बहु तो दोनों कमरों का मजा ले रही है...भाग ९५ - सास का पिछवाड़ा
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मैं नहीं चाहती थी वो देखें मुझे देखते हुए, …लेकिन मेरे हटने के पहले ननद ने इशारे से बता दिया, तीन ऊँगली दिखा के तीसरा राउंड शुरू हो रहा है,
और मैं खिड़की से हट गयी,
और इनकी एक बात से मैं खुश थी, इनको कोई बात समझ में आये न आये, लेकिन आँख बंद कर के मान लेते थे और मैंने इनसे दस बार कहा था की इस बार सिर्फ जैसे पहले दिन किया था एकदम उसी तरह उसी उसी तरीके से जिससे हर बूँद सीधे बच्चेदानी में जाए, जैसे बोआई के समय बीज नहीं बरबाद होना चाहिए एकदम उसी तरह,
मन इनका बहुत ननद जी की गांड मारने का कर रहा था, ऐसे मस्त चूतड़ और जैसे मटका के चलती हैं वो किसी भी मर्द का देख के टनटना जाए, मेरे मरद की कौन गलती। लेकिन मैंने इनको समझा दिया था,
"खबरदार, अभी पिछवाड़े की ओर मुंह भी मत करना, सब की सब बूँद चूत रानी के अंदर और वो भी ऐसे की सब बच्चेदानी में जाए, "
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मेरे मन में बार बार होलिका माई की बात गूंजती थी, ननद को पांच दिन के अंदर गाभिन होना था लेकिन वो दिन पांच दिन के अंदर कोई भी दिन हो सकता था।
मैंने समझा भी दिया था,
" घबड़ा मत एक बार बस किसी तरह से गाभिन कर दो, फिर तो लौटेंगी न मायके, अरे गाभिन होने पे चूतड़ और चौड़ा हो जाता है, गांड और मारने लायक, मारना मन भर, अपने हाथ से पकड़ के तोहार खूंटा अपनी नन्द के पिछवाड़े लगवाउंगी, खुद तोहरे गोद में बैठ के अपनी गांड में तोहार मूसल घोटेंगी, लेकिन अभी बस, "
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और जिस तरह से वो ननद के चूतड़ के नीचे तकिया पर तकिया लगा रहे थे गाभिन करने के लिए सबसे अच्छा था, दूबे भाभी और आशा बहू दोनों लोगो ने समझाया था, चूतड़ जितना उठा रहे उतना अच्छा, चूत का मुंह और बच्चेदानी का मुंह एक सीध में रहेगा और ढलान भी तो एक एक बूँद ढलक कर सीधे बच्चेदानी में, बाहर बीज नहीं आएगा।
और मैं ननद की बात के बारे में सोच रही थी मुस्का रही थी, जिस तरह से वो बतिया रही थीं,
" बरही की रात में तोहरे सामने, देख लेना कैसा मोट मूसर है, जैसे सुन ही रही हो। लेकिन क्या पता अभिमन्यु भी तो सुभद्रा के पेट में और सुभद्रा भी तो अर्जुन क ममेरी बहन ही तो थी , और सुभद्रा सो गयीं तो अभिमन्यु आखिरी दरवाजे का किस्सा नहीं सुन पाया, पर हमार ननद सोने वाली नहीं, एक एक बात अरथा अरथा की समझा रही थी, सच्ची में बेटी कुल गुन आगर हो के निकलेगी, महतारी के पेट से। पहिलावे से सीखी पढ़ी।
और तभी मुझे याद आया निकली किस लिए थी, सरसो का तेल लेने, वहां बेचारी हमारी सास निहुरि फैलाये अपने दामाद क खूंटा क इंतजार कर रही होंगी।
झट से रसोई से कडुवा तेल क डिब्बा ले के मैं वापस पहुंची,
कौन बहू नहीं चाहेगी की उसकी सास की चौड़ी मोटी गाँड़ उसके सामने मारी जाए, और जिंदगी भर के लिए सास को चिढ़ाने का एक मौका मिले। और मारने वाला उसका अपना ननदोई हो तो उससे अच्छा क्या होगा,
कडुआ तेल ले के मैं पहुँच गयी पर सोच रही थी की अपनी ननद और अपने मरद के खेला देखने के चक्कर में कही उसकी सास का मन न बदल गया है, कहीं नन्दोई जी ने सूखे तो नहीं सास की गाँड़ तो नहीं मार ली और सास की चीख सुनने का सुख उससे रहा गया हो,
लेकिन नहीं,
मेरी सास वो,
वो सच में मेरी सास थीं, खूब मस्ती ले रही थीं। जो काम कभी उनकी बिटिया न करा पायी वो अपने दामाद से करा रही थीं, दरवाजे पर एक हाथ में सरसों के तेल की बोतल लेके मै मुस्कराते हुए देख रही थी,
दामाद उनके, उनका खुला पिछवाड़ा चाट रहे थे,
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सास ने खुद अपने हाथ से अपने दोनों बड़े बड़े नितम्बो को फैला रखा था, जीभ उनकी उस गोल छेद की कुण्डी खटका रही थी, पर इतने दिनों से बंद दरवाजा, कहाँ बिना तेल लगाए खुलने वाला था। पर मैं सास की शैतानी देख रही थी
" अरे ऐसे नहीं जाएगा, जिभिया अंदर तक डाल के नहीं तो बाहर बाहर से काम नहीं चलेगा, " उन्होंने अपने दामाद को उकसाया,
और दामाद, मेरे ननदोई ने भी अपने दोनों अंगूठों का जोर लगाया, दरार थोड़ी सी बहुत थोड़ी सी फैली और थूक का एक बड़ा सा गोला बना के उन्होंने अपनी सास के गांड के छेद पर, और फिर अपनी जीभ की टिप,
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सास ने भी नितम्बों को फ़ैलाने का जोर बढ़ाया और खुद भी पीछे की ओर जोर बढ़ाया, और जीभ की टिप अंदर थी,
" हाँ ऐसे ही, ऐसे ही, चलो कुछ तो हमार समधन सिखायीं तोहें, खूब गांड मारे होंगे न उनकी, बहिन तो तोहार अभिन बारी उमरिया वाली "
सास बोल रही थी, लेकिन ननद का मामला आ जाए तो कौन भौजाई चुप रहती है, भले ननद की ननद का ही मामला क्यों न हो "
" अरे अइसन बारी कुँवारी भी नहीं हैं, बस एक बार हमरे पकड़ में आ जाय न, गदहा घोडा कुल घोंट लेहिये और जो तोहरे दामाद नहीं घुसा पा रहे हैं न इन्ही का खूंटा, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर इन्ही का घोंटेंगी,… खुद फैला के लेगी "
मैं तेल ले के अंदर पहुँच गयी और नन्दोई को चिढ़ा भी रही थी और भविष्य भी बांच रही थी।
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सच है जो अभी मेरे ननद पर चढ़ा हुआ था, हचक हचक के मेरी ननद की मार रहा था,
वही मेरा मरद, मेरी ननद की बारी कुँवारी ननद की,.... कटखनी कुतिया मात जिसके आगे,
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मरजी से नहीं तो जबरदस्ती फाड़ेगा, आगे वाली भी पीछे वाले भी, उसके बाद पूरे गाँव को ननद की ननद का लंगर जिमाउंगी, और उसके बाद मेरे ननदोई जी का भी नंबर आएगा, वो भी उनकी सलहज और दुल्हन के सामने
लेकिन वो तो आगे की बात थी, बहुत आगे की बात नहीं लेकिन अभी तो मुझे अपनी सास का पिछवाड़ा फड़वाना था। इसलिए सरसों का तेल ले के आयी थी
नन्दोई सोच रहे थे शायद मैं तेल की बोतल खोल के तेल उनके मोटे सुपाड़े पर चुपडूँगी, पर मैंने उनसे कहा की जितने तकिये हों सास के पेट के नीचे लगा दें और कमर उनकी पकड़ के चूतड़ खूब ऊपर उठा ले
जीभ से चाट चाट के उन्होंने छेद कुछ तो खोल दिया ही था, मैंने सरसो के तेल की बोतल खोली, ढक्कन की जगह अंगूठा लगाया और सीधे बोतल सास की गांड के छेद पे
दामाद उनके समझ गए थे खेल अब वो भी पूरी ताकत से अपनी सास की गांड का छेद खोलने में लगे थे और बोतल की मुंह हम दोनों ने मिल के फंसा दिया, वो एकदम अंड़स गया, और अब धीरे धीरे कर के बूँद बूँद तेल अंदर रिस रहा था।
मैं उन बहुओं में नहीं थी जिन्हे सास का ख्याल नहीं हो, असली धक्का तो गांड के छल्ले पर लगता और वो छिल जाता और मारे दर्द के वो सिकोड़ लेतीं, तो बेचारे दामाद के मूसल का क्या होता,
और सिर्फ एक बार नहीं, एक कलछुल तेल चला गया होगा, तो मैंने सम्हाल के शीशी बाहर निकाल ली और सास जी ने कस के अपने पिछवाड़े को भींच लिया, वो बार बार भींच रही थी, फैला रही थी और तेल एकदम अंदर तक, मतलब सास की गाँड़ में भी मोटे मोटे चींटे काट रहे थे, गाँड़ मरवाने को और खुद वो तेल पानी पिछवाड़े कर रही थीं
फिर दुबारा शीशी का मुंह उनके पिछवाड़े का छेद जब थोड़ा आसानी से घुस गया और अबकी और ज्यादा,
ये ट्रिक मैंने ससुराल में ही आके सीखी थी,
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गौने की रात इनके पास जाने के करीब घंटे भर पहले, मेरी जेठानी आयी, नन्दो को गरिया के बाहर किया, दरवाजा बंद किया और मुझसे बोलीं
" जल्दी से साया साडी खोल के टांग ऊपर कर लो ,"
बात तो मैंने उनकी मान ली, टाँगे भी ऊपर कर ली, जाँघे भी फैला ली, जेठानी देवरानी में कौन शरम, लेकिन उन्हें छेड़ते हुए बोली
" क्या दीदी देवर से पहले आप ही नंबर लगा रही हैं, "
" सबेरे पूछूँगी, की तोहार केतना भलाई किये, “ और दोनों फांक फैला के करीब दो छटांक तेल ( १०० ग्राम से ज्यादा ) धीरे धीरे कर के अंदर और उस के बाद ऊपर से अच्छी तरह से पोंछ दी, रगड़ रगड़ के और बोली, “
“कस कस के भींच लो, कहीं वो अइसन मिठाई देख के कूद पड़े,… आपन सावधानी खुद करनी चाहिए, "
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बस तो एकदम उसी तरह, मेरी सास भी अपने पिछवाड़े में जो उनकी बहू ने तेल डाला था, उसे भींच भींच कर अपने कसे सिकुड़े पिछवाड़े को अपने दामाद के लिए तैयार कर रह थी।
फिर मेरे नदोई ने भी अपनी दो ऊँगली में तेल चुपड़ के अपनी सास की गांड में तेल पानी किया और मैं हथेली में तेल लेके, नन्दोई के सुपाड़े पे।
मैं तो कितनी बार ले चुकी थी अपने पिछवाड़े, नन्दोई का मोटा खूंटा।
ससुराल में आते हैं मैं समझ गयी थी की जितना हक़ साजन का है उतना ही देवर और ननदोई का भी। अब कोई देवर सगा तो था नहीं, जिसे मिठाई दिखा दिखा के ललचाती, बस यही एक नन्दोई थे तो सब हक उनका। अब जिसने स्साले की बहन को नहीं छोड़ा तो उसी बीबी को छोड़ेगा।
जबसे गौने आयी थी अगले दिन ही मुझे अंदाज लग गया था की ननदोई हमारे, हमरे पिछवाड़े के पीछे लहालोट हैं। बस क्या था, जब भी मैंने उन्हें देखती, पायल झनकाते, बिछुए बजाते, पिछवाड़ा मटकाते, उन्हें ललचाते चलती,
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और अपने हाथ से ही पकड़ के ननदोई का खूंटा सास जी के पिछवाड़े सेट किया, मैं अपने दोनों अंगूठों से कस के सास की गांड फैलाये थी
बस क्या करारा धक्का मारा उन्होंने, अपनी सास की कमर पकड़ के,
गप्प,
ऐसी खुशी.. ऐसी खुशी..गप्प,
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कडुवे तेल का फायदा हुआ, सास मेरी, एक धक्के में ही पहाड़ी आलू ऐसा मेरे नन्दोई का मोटा सुपाड़ा उनके पिछवाड़े ने घोंट लिया
लेकिन धंस तो गया, पर फिर अंड़स गया,
एक बात एकदम साफ़ थी दसो साल से मेरी सास का यह पिछवाड़े का दरवाजा नहीं खुला था ।
मैंने तय कर लिया था, एक बार मेरे ननद नदोई चले जाएँ तो कम से कम हर हफ्ते एक दो बार, उनके बेटे से,आखिर उनका भी तो पिछवाड़े का दीवाना था . ठीक है जिस भोंसडे से उनका बेटा निकला है, उस भोंसडे में पहला मौका मिलते ही उनके बेटे को घुसवाऊँगी, मेरा मरद अपनी बहन चोद रहा है, बेटी भी चोदेगा तो महतारी किसके लिए छोड़ेगा, लेकिन उसके बाद पिछवाड़े का भी नंबर लगेगा
पर पहले अभी दामाद का नंबर था
कोशिश ननदोई जी कर रहे थे, सास भी कर रही थीं, बल्कि नन्दोई से ज्यादा, जैसे कहते न जो एक बार साइकिल चलना सीख लेता है फिर भूलता नहीं एकदम उसी तरह गांड मारने वाले, और मरवाने वाली ( या मरवाने वाले ) न ट्रिक भूलते हैं न उस मजे को।
मैं अब अपने नन्दोई के पीछे खड़ी थी, उनके मुसल के बेस पे हाथ लगाए, आखिर सास तो हम दोनों की थी, इसलिए मैं भी धक्के मारने में सहयोग कर रही थी, जिसमे सास का सुख हो,
सास मेरी थीं तो नन्दोई भी मेरे थे, उन्हें भी तंग करना मेरा काम था, बस अपने बड़े बड़े गोल गोल जोबन उनकी पीठ पे रगड़ रही थी, उनके चूतड़ों को सहला रही थी, उनकी दरार में ऊँगली रंगड़ रही थी। लेकिन मुझसे नहीं रहा गया, अभी भी दो इंच बाहर था, ये तो बेईमानी हुयी
" अरे नन्दोई जी ये बाकी का किसके लिए बचा रखा है, मेरी ननद के सास के लिए, वो गदहों घोड़ो वाली, उनका इससे क्या, पूरा डालिये नहीं तो मैं डालती हूँ "
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मैंने उन्हें उकसाया और डाल भी दिया अपनी दो ऊँगली उनके पिछवाड़े,
बस क्या गांड मारी उन्होंने हम दोनों की सास की .
मेरी सास खुश,... मैं खुश, उसी समय मैंने अपनी ननद की ननद नन्दोई जी के नाम लिख दी।
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नन्दोई से ज्यादा जोश में मेरी सास थीं , अपनी समधन को गरिया रही थी अपने दामद को उकसा रही थी और हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी,
लेकिन आठ दस मिनट के बाद मुझे भी लगा, नन्दोई जी को भी की सास की पीठ कहीं निहुरे निहुरे दुखने न लगी हो, बस सास जी बिस्तर पे लेटी जैसे कुछ देर पहले अपने दामाद से चुद रही थी बस फरक ये था की वो मोटा मूसल उनके बजाय आगे के छेद के पीछे की छेद में धंसा
मैंने सुन रखा था की भरी भरी देह वाली, खूब खेली खायी, थोड़ी बड़ी उमर वाली औरतों की गाँड़ मारने में मरदों को बहुत मजा आता है लेकिन आज देख रही थी सामने। नन्दोई जी के चेहरे की चमक खुसी और जोस। लेकिन मेरी और उनकी सास कम गर्मायी नहीं थी, जब ननदोई जोर का धक्का मारते, तो सास मेरी और उनकी, सिसक पड़ती थीं, लेकिन दर्द के साथ ख़ुशी भी छलक जाती। जोर से वो मुट्ठी भींच लेती, सिसक पड़ती और जब नन्दोई जी आराम आराम से सरका सरका के अपना मोटा खूंटा मेरी मरद की महतारी की गाँड़ में धीमे धीमे धकलते तो वो मजे से सिसकने लगाती और मेरे नन्दोई को गरियाती,
" अबे स्साले, भोंसड़ी के, खाली अपने महतारी क, हमरे समधन क गाँड़ मार मार के पक्का हुए हो की अपनी बूआ, चाची, मौसी क गाँड़ भी मारे हो , सब के सब खूब चूतड़ मटकाती हैं "
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और मैंने तय कर लिया की अपने सास के बेटे से,... न खाली उसकी महतारी की बल्कि बूआ, चाची, मौसी सब की गाँड़ मरवाउंगी
महतारी क गारी सुनने के बाद जो हाल किसी भी मरद का होता है मेरे नन्दोई का हुआ और क्या क्या हचक हचक के उन्होंने अपनी सास की गाँड़ मारी।
कभी दोनों चूँची पकड़ के दबा के निचोड़ के तो कभी सास को दुहरा करके, हर धक्का पूरा अंदर तक और सास हर धक्के के साथ कभी सिसकतीं कभी चीखतीं कभी गरियाती
" स्साले, तेरी बहिन की, तेरी महतारी क, अरे तेरी महतारी क भोंसडे की तरह ताल, पोखरा नहीं है, दसो साल बाद पिछवाड़े कुदाल चल रही है , तनी आराम आराम से "
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" अरे घबड़ा काहे रहीं, अब तो जब आऊंगा तब मारूंगा आपकी गाँड़. एकदम अपने बिटिया से पूछ लीजियेगा, अगवाड़े क नागा हो जाता है, पिछवाड़े क नहीं होता है "
दामाद उनके ख़ुशी से सास क जुबना चूम के बोले लेकिन सास की ओर से जवाब मैंने दिया,
" अरे चलो मैं नहीं थी जब आपका बियाह हुआ वरना कोहबर में कुल खेल सिखाय देती.
लेकिन तोहार महतारी ससुरार आते समय सिखाई नहीं थी ? ससुरारी में खाली मेहरारू नहीं मिलती। सास, साली सलहज सब पे पूरा हक़ है और अगर कहीं गलती से भी पूछ लिए सास, सलहज से तो समझ जाएंगी की हौ पूरा बुरबक। सास हमार का पिछवाड़े बोर्ड टांग के घूमतीं? अरे चलो देर हुआ, लेकिन।
अब आगे से अपनी मेहरारू, हमरी ननद के साथ मौज मस्ती,.. अपने मायके और उनकी ससुरारी में और अपनी ससुरारी में,... सिर्फ सास और सलहज।"
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अब मेरी सास के पिछवाड़े को इतने दिन बाद मोटे लंड का मजा फिर से मिल रहा था और वो चूतड़ उछाल के घोंट रही थीं।
लेकिन मुझसे नहीं रहा गया, सास मजे ले और बहु सूखे
मैं सास के ऊपर चढ़ के बैठ गयी और अपनी बुर उनके मुंह पे रगड़ने लगी, सास मेरी बहुत अच्छी । कस के चूस रही थीं चाट रही थीं
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मैंने आगे बढ़ के उनके दामाद को सास, मेरी उनकी सास की गांड मारने का इनाम भी दे दिया, उन्हें कस कस के चूम के।
और उनके दामाद का भी तो फायदा था, कभी सास की चूँची दबाते तो कभी सलहज की , एक साथ सास सलहज दोनों का मजा और इसी लिए तो हर दामाद ससुराल जाना चाहता है।
हचक के गांड मारी जा रही थी,
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मैं भी कभी सास की एक चूँची पकड़ के दबाती तो दूसरे हाथ से उनके बुर में ऊँगली करती, एक छेद मजा ले रहा है तो दूसरा क्यों प्यासा रहे,
सास मेरी भी कम नहीं थीं, उन्होंने खींच के मेरे मुंह को अपनी बुर पे, अब हम दोनों एक दूसरे की प्रेम गली में जीभ से सेंध लगा रहे थे, कस कस के चूस रहे थे, चाट रहे थे और दामाद उनका पिछवाड़े की ड्यूटी पर, एक साथ सास जी को अगवाड़े पिछवाड़े का मजा मिला रहा था
थोड़ी देर में हम तीनो साथ साथ झड़े, पहले मैं,
जब मैं झड़ रही थी तो मेरे ननदोई ने सासु माँ की गाँड़ मारना रोक दी और वो मजे से देख रहे थे की सास कैसे अपनी बहू की बुरिया चूस रही है। और सच में मेरी सास बहुत मस्त चूसती थीं, अपनी ससुराल में तो मैं सबसे चुसवा चुकी, थी, जेठानी, दोनों ननदें लेकिन सास सच में सास थीं, चूसना, चाटना और जीभ से बुर चोदना तीनो में नंबर वन, और मुझे एक बार झाड़ने के बाद भी छोड़ती नहीं थीं, जब तक मैं झड़ झड़ के थेथर न हो जाऊं, और आज तो स्साली छिनार एकदम गर्मायी थी, गाँड़ में अपनी बेटी के मरद का मोटा लंड जो घुसवाये थी
चार बार झड़ी मैं तब उन्होंने चूसना बंद किया और मैं जल्दी से किसी तरह से नन्दोई के पीछे जा के खड़ी हो गयी और अपनी चूँचियों से ननदोई की पीठ रगड़ते उनके कान को हलके से काट के बोली,
" अबे स्साले, मेरे मरद के स्साले, पेल पूरी ताकत से, देखूं महतारी ने तुझको दूध पिलाया की खाली तोहरे मामा को पिलाती थी जिसके जाए हो तुम "
मेरे दोनों जोबन उनकी पीठ रगड़ रहे थे और हाथ नन्दोई के नितम्ब और एक झटके से मैंने ऊँगली उनके पिछवाड़े पेल दी,
पता नहीं गारी का असर था या मेरी ननद के भतार के गाँड़ में घुसी मेरी ऊँगली का
हचक के अपना मोटा खूंटा मेरी सास की गाँड़ में पेला
" उई ओह का करते हो स्साले, नहीं नहीं " मेरी सास जोर से जोर चीखीं। मुझे पक्का यकीन था की मेरी सास की ये दर्द और मजे की चीख पक्का मेरी सास की बेटी चोद रहे उनके बेटे के पास भी जरूर पहुंची होगी।
लेकिन अब नन्दोई सलहज एक ओर, मैं ननदोई को उकसा रही थी और मजे ले ले कर पूरी ताकत से हम दोनों की सास की मार रहे थे।
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लेकिन तभी मुझे एक और बदमाशी सूझी
" अरे नन्दोई जी, जिस भोंसडे से इतनी सुन्दर हमार ननद निकली है जिसकी बुर का मजा रोज बिना नागा लेते हो, जरा उस भोंसडे का भी तो ख्याल करो, पेल दो पूरी मुट्ठी।
सच में मेरी सास का फुदकता, फूलता पिचकता भोंसड़ा बहुत मस्त लग रहा था, उस में से उनकी बेटी के मरद की मलाई अभी भी धीरे धीरे बह रही थी।
मुट्ठी तो नहीं लेकिन एक साथ उन्होंने तीन उँगलियाँ अपनी सास की बुर में पेल दी और डबल चुदाई का असर हुआ थोड़ी देर में
सास और साथ में उनके दामाद, झड़ रहे थे।