वाह क्या करें. रिस्ता ही कुछ ऐसा है. भौजी नांदिया छिनार हो या फिर गांडु नन्दोई और सहलज. आशा भाभी की भी तो नांदिया छिनार नांदिया ही लगेगी.आसा बहू
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तबतक आसा बहू आ गयीं, साथ में ननद भी। आशा बहू मुझे छेड़ते बोलीं, " कउनो खुसखबरी "
" अरे जउन तोहार ननद खड़ी हैं पीछे मुस्की मारत, पतुरिया अस, उनकी जांच करनी है " खिलखिलाते मैं बोली।
" साडी उठाएंगी की मैं उठाऊं, …ननद की जांच तो सीधे ऊँगली डाल के मैं करती हूँ "
हँसते हुए आसा बहू बोली , और गाँव के रिश्ते से मेरी ननद उनकी ननद।
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" जांच इन लोगो ने कर लिया है दो लाइन " स्ट्रिप दिखाते हुए ख़ुशी से फूले नन्दोई बोले।
" अरे मैं अपनी ननद को नहीं जानती, बचपन की छिनार "
ननद की ओर देखती आसा बहू बोलीं, गाँव के रिश्ते से भौजी, तो क्यों छोड़ती, फिर ननदोई जी से बोली,
" कहीं ननद भौजाई, मिल के कही से दो लाइन वाली पट्टी लायी हों और आप को दिखा के, ऐसे नहीं होता। मैं जो पट्टी लाइ हूँ एक लाइन वाली ये आप देखिये और इस पर कोई निशान बना दीजिये और इसी पे ननद को मुतवा के देखूंगी की कहीं मेरे सीधे साधे नन्दोई को , … हाँ अगर दो लाइन हुयी तो पहले नेग कबुलावूँगी फिर बताउंगी।
दो लाइन तो होनी ही थी।
और आसा बहू ने नेग भी कबुलवा लिया,
सतरंग चुनरी, वो भी एक नहीं,.. जोड़ा। वही पहन के बच्चा पैदा करवायेंगी वो खुद,
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लेकिन आगे जो उन्होंने बातें बोली उससे मैं और मुझसे ज्यादा ननद बहुत खुश हुईं,
" पहली बात, ज्यादा चलना फिरना, ज्यादा काम एकदम बंद, और गाँव घर के बाहर तो कहीं ले मत जाएगा। कहीं ऊंच खाल, न अपनी फटफटिया पे न चौपहिया में, बस घर में और पहले तीन महीने थोड़ा सबुर रखियेगा, अगर बहुत मन करे तो सम्हाल सम्हाल कर के,… अंदर बच्चेदानी पे कोई जोर न पड़े "
" अरे तो बहुत फड़फाये तो आ जाइएगा ससुराल,… दो दो सलहज तो सामने खड़ी हैं "
खिलखिलाते हुए ननद बोलीं।
" तो और क्या, दो इंच की चीज के लिए ननदोई से निहोरा करवाउंगी ? लेकिन जब तोहरो बुरिया लसलसाई न तो खुद ऊपर चढ़ के "
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आशा बहू ने नन्द को पलट के जवाब दिया और दूसरी काम की बात ननदोई जी से बोली,
" और उस से भी जरूरी बात, दस पन्दरह के दिन अंदर कउनो अच्छी लेडी डाक्टर को दिखा लीजियेगा, वो अल्ट्रा साउंड भी करवा देंगी और बाकी औरतों वाली जांच भी कर लेंगी, "
" कौन लेडी डाक्टर अच्छी हैं, आप ही बता दीजिये, जो सबसे अच्छी हों उन्ही को दिखाएंगे, कोई रिस्क नहीं लेना है " नन्दोई जी सीरियसली बोले,

वाह री कोमलिया. खड़ी खड़ी बस मुश्कुराते ही रहेगी. आशा भाभी ने बिलकुल सही सलाह दी. लेडी डॉक्टर मिता. एकदम स्पेस्लिस्ट. देख के बता देगी की पेट मे अपने मरद का है या नन्दोई का या फिर देवर का. नहीं तो मायके से लाई हो कही अपने भैया वैया से तो वो भी. ये तो मज़ाक था.लेडी डाक्टर
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" देखिये सबसे अच्छी तो डाक्टर मीता हैं, उसके बाद तो दर्जनों हैं शहर में लेकिन डाक्टर मीता के साथ दो परेशानी हैं एक तो पैसा बहुत लेती हैं दूसरे कम से कम दस पन्दरह दिन का टाइम लगता है, उनसे मिलने में। लेकिन डाक्टरनी नहीं जादूगरनी हैं, एक बात पेट देख के जो वो बता देंगी, बिना जांचे वही बात दस जगह जांच करवाइयेगा तो पता चलेगा, अरे जो पुलिस कप्तान हैं उनकी मेहरारू के पहलौठी का बच्चा, सब डाक्टर जवाब दे दिए, लखनऊ, बनारस, मेडकल कालेज, सब जगह। नाल गले में फंसी थी, अब तब हुआ था।
बच्चा तो छोड़िये उनकी मेहरारू का जान बचना मुश्किल, लेकिन वही डाकटर मीता, ऐसा आपरेशन कीं, की जच्चा बच्चा दोनों सेफ। और कोई परेशानी नहीं। अगल बगल के आठ दस जिलों के लोग लाइन लगाए रहते हैं, इसलिए कह रही हूँ की अभी तो, खाली पहली जांच है "
लेकिन ननदोई जी ने बात काट दिया, उनके चेहरे से लग रहा था अपनी पत्नी के लिए वो सबसे अच्छी से कम कुछ नहीं करेंगे,
" अभी से टाइम ले लें, तो आठ दस दिन में, और आखिर कितनी फ़ीस होगी लेडी डाक्टर की, "
" सच में बहुत पैसा लेंगी आप से ननदोई जी "
मैं बोली, लेकिन जिस तरह से मैं बड़ी मुश्किल से मुस्कराहट दबा रही थी, आसा बहू समझ गयीं , पूछीं,
" तोहरे मायके क कउनो जान पहचान है का "
अब मेरे लिए रोकना बड़ा मुश्किल था,
" डाक्टर मीता हमार भौजी हैं, हम उनकी ननद, ...और जब हमसे बिना गरियाये बात नहीं करतीं, कहती हैं की ननद के नाम के आगे छिनार न लगाओ तो ननद नहीं लगती, तो ये तो मेरे भी ननदोई,... ननद के नन्दोई, इसलिए कह रही हूँ की मिलने के बाद ननद की डाकटरी तो बाद में होगी पहले आपको निचोड़ लेंगी,... ननद के नन्दोई हैं। और कहीं गलती से पैसे वैसे की बात कर दिए न,... तो बहन महतारी सब गरियाई जाएंगी।
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और जहाँ तक मिलने के टाइम का सवाल है ये बात सही है, अब तो हफ्ते में दो दिन बाहर भी जाती हैं, लेकिन मेरे लिए कोई रोक टोक नहीं है, जब चाहे तब। इसलिए मेरी बात मानिये हफ्ते दस दिन बाद ननद को छोड़ दीजियेगा, दो तीन दिन के लिए। मैं जा के डाक्टर भौजी को दिखा लाऊंगी, बहुत बड़ा नर्सिंग होम है उनका जांच वांच सब हो जायेगी।
आप ने अपना काम कर दिया, ननद का पेट फुला दिया आगे का मैं देख लूंगी "
आसा बहू भी मेरे साथ खड़ी हो गयीं, बोलीं,
" बस मेरी एक बात और सुन लीजिये, अगर ऐसी जान पहचान हैं डाक्टर साहेब से तो डिलीवरी यहीं कराइये, यहाँ से शहर नजदीक है, पक्की सड़क, और एक नयी जो बन रही है उससे तो बस बीस मिनट, पांच छः महीने में बन जायेगी, तो कोई बात होगी तो सीधे उनके यहाँ, देखिये ये मायके ससुराल की बात नहीं, जच्चा बच्चा ठीक रहें, अब पुराना जमाना नहीं रहा। और यहाँ से जांच वांच में, बल्कि सातवां महीने लगने के बाद ही, आखिरी के तीन महीने में बहुत ख्याल रखना पडेगा। अब फैसला कर लीजिये "
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यही तो मैं भी चाहती थी, मैंने कहा भी था, ननद भी यही चाहती थीं,और आसा बहू के कहने के बाद,
अब यह तय हो गया था की डिलीवरी यहीं होगी, नन्दोई तो मान गए लेकिन उनकी माँ मान जाएँ बस,
थोड़ी देर बार ननद की बिदाई हो गयीं,
नन्दोई ने बोला की दस दिन बाद वो ननद को ले के आएंगे, लेकिन गेंहू की कटनी शुरू हो जायेगी तो उनका रुकना तो मुश्किल है। हाँ दो चार दिन बाद आ के ननद को ले जाएंगे।

वाह कोमल मैमभाग ९९ ननद की रात -ननदोई के संग पृष्ठ १०२५
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आंनद लें और कमेंट जरूर करें
इस कहानी पर भी और जोरू का गुलाम के अपडेट पर भी ( पृष्ठ १४५० )
कुछ सवालों का जवाब १०० वे भाग में मिलेगाएक सवाल और जब नन्दोई इतना ही जोशीला थे तो 3 साल का इंतजार काहे --
नेग तो बहाना है, असली उद्देशय तो नन्दोई के मायके वालों को अपने अंगना में नचाना है
क्या डॉक्टर साहिबा इतनी खतरनाक सच मे है या आप दोनों देवरान जेठानी मिल कर झूठ मूठ का ही डरा रही है
वाह मान गए. अपडेट मै खुशियाँ भी थी और दर्द भी. शारारत भी थी और सिख भी. बेचारी नांदिया. बेचारी को कहा बियाही दिए. सिर्फ नन्दोई जी के खुटे के सहारे कैसे काम चले. नन्दोई जी की महतारी तो मुँह से ज़हर उगल रही है. सच पूरी नागिन है. आते ही गरियाना चालू. और भरोसा ही नहीं बोली पे. आंगन मे ही मूतवाएगी. तो लो मूत दिया नांदिया ने. आ गई दो लाइन.ननद की सास ननद-
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जांच पड़ताल -
थोड़ा आगे की बात अभी, ....
असल में ननद के ससुराल जाने के बाद से भी चिंता कम नहीं हुयी थी।
ननदोई तो मान गए थे नन्द के पेट वाला उन्ही का है, लेकिन ननद की सास और ननद,
फिर सबसे बड़ी बात उस दुष्ट के आश्रम में जाने से ननद को बचाने वाली बात, मुझे अपने ऊपर विश्वास था फिर भी,
और ये सब बादल कटे, ननद के फोन आने के बाद, उस समय घर में वो अकेली थीं, ननद स्कूल चली गयी थी, मरद अपनी महतारी को लेकर कहीं मंदिर तो हम नन्द भौजाई खुल के बतियाये,... गरियाये,
ननद बोलीं की
जब वो लोग घर पहुंची तो सास उनकी थोड़ी अल्फ और साथ में उनकी ननद भी थी और घर में काम करने वाली उनके सास की मुंहलगी, हाथ गोड़ दबाने वाली कहाईन भी मुंह से आग उगलती थी।
लेकिन जैसे नन्दोई ने खुस खबरी सुनाई, सास ने एकदम मानने से मना करदिया और ननद ऊपर से,
" हमरे सोझ भैया के इनकी चालक भौजाई बेवकूफ बना दी, पहले से दो पट्टी वाली रखी होंगी, "
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और जब नन्दोई ने आशा बहू की बात की,... तो कहाईन जो बात बात में ननद को बाँझिन बोलती थी, बोली,
" तोहरे सामने मूतवाये रही का, ….अरे ओहि गाँव की, कुछ ले दे के, …तोहरे ससुराल वाले जब्बर चालाक, एक तो बाँझिन बाँध दिए हमरे खूंटा पे और ऊपर से ये नौटंकी। ....हम तो इतने दिन से घर में हैं, तीन साल से इन्तजार कर रहे हैं एक दिन तोहार मेहरारू खट्टा मांगे, …उलटी करे,… "
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" अच्छा तुम आशा बहू कह रहे हो तो अपने गाँव वाली आशा बहू को बुलाय के बोल देते हैं, लेकिन अगर झूठ निकला न तो इहे झोंटा पकड़ के एकर, जलते लुआठा बुरिया में पेल देबे, अभिये झांगड़ बुलवा के आश्रम में और जब तक बियाय नहीं जायेगी वहीँ गुरु जी के पास "
ननद की सास भी अपनी उस मुंहलगी कहारिन के साथ बोलने लगीं
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ननद बिचारी नीचे देख रही थीं, ...आँख में गंगा जमुना उमड़ रही थी।
नन्दोई आज तक अपनी महतारी के आगे आपन मुंह नहीं खोले थे, बल्कि ननद की ओर देखते भी नहीं थे, कुछ भी हो तो ' जउन माई कहे '
वो भी इस समय भकुरा गए थे , किसी तरह अपने को रोके थे, चेहरा एकदम तना, मुट्ठी कसी भिंची
और कहाईन सीधे गयी आसा बहू के पास।
और आते ही सास ने हुकुम सूना दिया, गाभिन होने की जांच वाली,... पर जब आशा बहू ननद को लेकर जाने लगी तो सास गरज उठी,
" कहीं नहीं जाना है यहीं आँगन में मुतवाओ इसको सबके सामने, हम लोगो भी देखे की मायके में का जादू मंतर हो गया। " सास गरजी।
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" अरे हमरे भैया के सोझ जाने के इनकी सलहज सब, नहीं जानते की यहाँ सब चालाकी निकल जाएगी, अभी पता चल जाएगा सच का सच " ननद ने तेज़ाब मूता।
" अरे पहले ससुरे क पानी पियावा अपने भौजी क नहीं तो कहेंगी मूता नहीं जा रहा है "
हँसते हुए वो कहाईन ननद से बोली और ननद ने पूरा लोटा भर पानी खुद ननद का सर पकड़ के… और कहाईन ने जबरदस्ती, घटर घटर,
और वो जब आंगन में बैठीं, आशा बहू ने सबको स्ट्रिप दिखाई एक लाइन वाली तो वो कहाईन फिर,
" अरे ऐसे नहीं पेटीकोट साडी उठा के कमर तक करो, ....सबके सामने "
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हसंते हुए वो बोली और पिच्च से वहीँ पान थूक दिया।
" सही कह रही है ये, कमर तक उठा के हम सब के सामने,.. और जो तोहार मरद, जिनको इतना झूठ सच पढ़ा के ले आयी हो न मायके से,… उहो देखे की कइसन चालाक बियाह के ले आये हैं की तीन साल में, "
सास गुस्से से पागल हो रही थीं और वो कहाईन और डाइन बनी थी, बोली,
" अरे हमरे सब में होतीं न, ...ये तो बबुआन क, बड़मनई क बात,… तीन चार महीने में अगर पेट नहीं फूलता तो चूतड़ पे लात मारके, महतारी के लगे …और तनिको लाज शर्म होता तो खुदे कहीं कूंवा, पोखरा … बाँझिन क कौन जगह क कमी.
और महीने भर के भीतर कड़ा छडा झनकावत नयी बहुरिया,… महीना भर में पेट फुलाय के, अब तक दो तीन लड़का निकार दी होती ओहि बुरिया से "
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उसकी बात सुन के सास और दहक रही थीं, ननद सकुचा रही थीं सब के सामने लेकिन सास ने इशारा किया और कहाईन ने जबरदस्ती ननद का पेटीकोट पकड़ के कमर तक उठा के लपेट दिया और बोली,
" केसे लजात हाउ, अपने मरद से,… ? गवने क रात से तो रोज देख रहे हैं वो,... और बाकी हम सब के पास भी तो वही है। कौन तोहार नोखे क बुर , हीरा मोती जड़ी है, एक ठो बेटा बिटिया अबतक तो निकाल नहीं पायी, …चल मूत"
आसा बहू ने एक बार फिर से वो एक लाइन वाली पट्टी दिखाई और सीधे धार में,…. और जैसे लाइन बदली, पट्टी मुट्ठी में बंद कर के हंस के बोली
" अब तो नेग लगेगा, ....ऐसे नहीं "
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सास के मुंह पे थोड़ी ख़ुशी छायी लेकिन ननद की ननद ने उस कहाईन को उकसाया, "
अरे कभी कभी ऐसे,... भौजी तू अपने हाथे से "
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" एकदम,… हम झांसा में पड़ने वाले नहीं है "
वो कहाईन बोली और एक स्ट्रिप उठा के खुद अबकी ननद के बिल पे सीधे लगा दिया
और वो भी दो लाइन
कहाईन का मुंह झाँवा हो गया।
और भौजी तोहरे नन्दोई क मुंह खुल गया, ननद बिहँसते हुए बोली और जोड़ा,
" भौजी कौन मंतर पढ़ दी थीं अपने नन्दोई के ऊपर, एकदम बदल गए, आज तक हम सुने नहीं थे उनके महतारी के आगे उनकी बोली "
और आगे का हाल फिर ननद ने हँसते हुए बताया,
