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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Shetan

Well-Known Member
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Thanks so much , aur main ye gujarish kar skati hun ki agar aapne Mohe rang de na padhi ho,.. vo bhi meri nayi kahani hai aur isi forum pe maine post ki hai,... romance and affection, gaon aur choote shahar ka mahaul pasand aaye shayad aapko,... han koyi jalldi nahi vo ek slow slow story hai to hafte men ek do chaar post padh ke bhi agar aap ne like bhi kar diya to,... aap ke paas time kitana hai uske upar hai ,...
Vo bhi puri padhungi. Ye story 150 pages tak padh chuki hu. Yaha ke sare update tak padh lu. Sayad parso ya uske ek din bad
mohe rang de padhni he.
Fir muje holi ke rangde bhi padhni he.
Aap ke skill ki deewani hu me.
 

Shetan

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Thanks so much , aur main ye gujarish kar skati hun ki agar aapne Mohe rang de na padhi ho,.. vo bhi meri nayi kahani hai aur isi forum pe maine post ki hai,... romance and affection, gaon aur choote shahar ka mahaul pasand aaye shayad aapko,... han koyi jalldi nahi vo ek slow slow story hai to hafte men ek do chaar post padh ke bhi agar aap ne like bhi kar diya to,... aap ke paas time kitana hai uske upar hai ,...
Ek request bhi he. Comment ke niche apne story ke names diye he. Please use link kare taki log jaldi use open kar ke padh sake.
 

veerpal

I don't have dirty mind but have sexy imagination.
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52
18
Incest or invest jaldi start start karna chaiye
 

veerpal

I don't have dirty mind but have sexy imagination.
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टप टप टप

मलाई








वो झड़ती रही , झड़ती रही , और भैया के हाथ, होंठ रुक गए और बिल में घुसा मोटा डंडा चालू हो गया जैसे ट्रेन के इंजन का पिस्टन , स्टेशन से गाड़ी चलते समय पिस्टन जैसे पहले धीरे धीरे ,.....



फिर तेजी से , सट सट ,सटासट सट , एक बार फिर भैया के कंधे पर बहन की टाँगे और अब कभी दोनों चूतड़ पकड़ के वो कसके धक्के मारता तो कभी एक हाथ छोटी छोटी टेनिस के बाल की साइज की चूँची पर और दूसरा पतली कमरिया पर , थोड़े ही देर में धक्क्के चौथे गियर में पहुँच गए,...

उसके सगे भाई अरविन्द का का लंड अब छुटकी बहिनिया की चूत में पैबस्त हो गया था , बहन कभी दर्द से चीखती , कभी मजे से सिसकती,



और जैसे ही लंड जड़ तक घुसा उस कच्ची चूत में, जैसे किसी संकरी बोतल में जबरदस्ती कोई मोटी डॉट ठूंस दे और वो बाहर न आये पाए बस, वही हालत थी , चूत ने लंड को एकदम दबोच लिया था,....

लेकिन भैया ने अब लंड के बेस से ही चूत के ऊपरी हिस्से में कस कस के रगड़ना, घिस के जुबना को निचोड़ रहा था और दूसरे उभार को कस के चूस रहा था,...



कुछ देर में छुटकी बहिनिया फिर से कगार पे पहुँच गयी और अब भाई ने हल्का हलका बाहर निकाल के पूरी तेजी से धक्के मारने शुरू कर दिए ,


पलंग हिल रही थी , और बहिनिया झड़ रही थी लेकिन उसने चोदना नहीं रोका, हाँ अब चूमना चूसना सब बंद कर के बस धुआंधार चुदाई,



" नहीं, बस एक मिनट , अब और नहीं , रुक जाओ भैया , ओह्ह्ह्हह्ह उफ्फ्फफ्फ्फ़ उईईईईई "




वो सिसक रही थी , मजे से चीख रही थी , तूफ़ान रुकने के पहले नया तूफ़ान आ जाता , वो अपने छोटे छोटे नितम्ब उछाल रही थी , रुका तो नहीं वो लेकिन स्पीड जरूर धीमी कर दी और अब गुदगुदी लगा के चिकोटी काट के , ... उसके सगे भाई अरविन्द ने गीता की आँखे खुलवा ली, कभी वो शरम से आँखे बंद कर लेती कभी मजे से



बाहर बादलो को चीर कर चाँद बाहर निकल आया था और चाँद की चांदनी में वो बहुत सुंदर लग रही थी, ....




और एक चुम्मे के साथ,... गीता ने कुछ बोलने की कोशिश की तो चूम के भाई ने होंठ बंद कर दिए और इशारे से कहा बस चुप,... और अब कभी धीमे कभी तेज


गीता की देह में अभी भी दर्द था , चिलख जोर से जाँघों के बीच में से उठ रही थी लेकिन जैसे कोई झूले की पेंग पर , बस वो भी अब अपने भैया के धक्को के साथ, ... चांदनी पूरे बिस्तर पर पसरी थी, और उसका भाई, अरविन्द उसकी फैली खुली जाँघों के बीच हचक हचक के ,... अब वो साथ देने की कोशिश कर रही थी ,...लेकिन थोड़ी देर में फिर पूरी देह में तूफ़ान ,


और जब वो तीसरी बार झड़ी तो साथ में उसका भाई भी, ...


लेकिन उसे लगा कहीं उसका भाई कुछ डर के सोच के बाहर न निकाल ले झड़ने के पहले,...

उसने खुद कस के पानी बाहों में पकड़ के उसे अपनी ओर खींचा, अपनी टांगो को कस के भाई के कमर पर बाँध लिया , उसके अंदर भैया का सिकुड़ , फ़ैल रहा था ,...

और फिर जब फव्वारा छूटना शुरू हुआ तो बड़ी देर तक,... कटोरी भर से ज्यादा रबड़ी मलाई, और उसकी प्रेम गली से निकल के ,... बाहर उसकी जाँघों पे ,... लेकिन उसका उठने का
मन नहीं कर रहा था और उसने कस के अपने भाई,अरविन्द को को अपनी बाँहों में बाँध रखा था




बाहर बारिश रुक गयी थी, लेकिन अभी भी घर की छत की ओरी से, पेड़ों की पत्तियों से पानी की बड़ी बड़ी बूंदे चू रहीं थीं



टप टप टप



आधे घंटे के बाद बांहपाश से दोनों अलग हुए और एक दूसरे को देख के कस कर मुस्कराये फिर छोटी बहिनिया लजा गयी और अपना सर भाई के सीने में छुपा लिया।
जितनी बार पढ़ा लेकिन मन नहीं भरता।


गजब।

आपके चरणों में प्रणाम स्वीकार करे
 

veerpal

I don't have dirty mind but have sexy imagination.
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चार लाख व्यूज पूरे होने बहुत-बहुत बधाइयाँ..
ये कारवां चार करोड़ तक पहुंचे...
यही कामना है....
बिल्कुल
 

Shetan

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Bhauji party.
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Shetan

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दूध के कटोरे






लेकिन गीता कुछ बोलती, की उसकी बातों का वो असर उसके भाई अरविन्द पे हुआ की जो हाथ बस ऊपर ऊपर से टॉप के ऊपर हलके हलके उभारों को छू रहा था, अब वो जोबन मसलने रगड़ने लगा,... और गीता ने मजे से सेक्सी सिसकियाँ लेते हुए भाई का दूसरा था भी पकड़ के अपने दूसरे उभार पे रख दिया और उसके गाल पे हल्की सी चुम्मी ले के बोली,

" भैया, मेरे तो दोनों दूध के कटोरे तेरे लिए हैं लेकिन मुझे भी गाढ़ी वाली रबड़ी मलाई चाहिए, ये नहीं की इधर उधर कभी मेरे कपड़े में, कभी अपने, अब हर बूँद मुझे, मेरे लिए, ... तुझे तो मालूम है मुझे रबड़ी मलाई कित्ती पसंद है "




और ये कहके गीता ने शॉर्ट्स के ऊपर से भाई का खूंटा कस के अबकी खुल के दबा दिया।


अब दोनों गरम हो गए थे तो गीता ने ही बात मोड़ी,


" लेकिन मैंने तेरे लिए दूध की खीर बनायी है, गुड़ डाल के बखीर




( गीता को मालुम था की गौने की रात को दूल्हा दुल्हन दोनों को ये खिलाई जाती है और उसकी तासीर ये होती है की दुल्हन दूल्हा का हाथ लगने के पहले ही अपने साये का नाड़ा खोल देती है और दुलहा जो चढ़ता है तो सूरज चढ़ने के बाद ही, वो भी चार पांच राउंड के बाद ही जबतक दुल्हन थेथर नहीं हो जाती, मलाई उसकी बुर से निकल के जाँघों पर नहीं बहने लगती, पेलता ही रहता है ).



मुझे मालूम है तुझे बहुत पसंद है, बस पांच दस मिनट और,... क्या बहुत भूख लगी है भैया ?


" बहोत भूख लगी है यार " उसके दोनों उभारों को अब खुल के रगड़ता वो बोला, .... और जोड़ा,

" बोल देगी न गितवा की खाली बोल रही है ?"
" भैया आपने अपनी बहन को देखा नहीं है, अभी आप लेते लेते थक जाओगे , मैं देते देते नहीं थकूँगी "



और वो उठ कर रसोई की ओर जाने लगी तभी बिजली लपलापने लगी. वैसे तो गाँव में बिजली थी पर जाती ज्यादा थी आती कम थी, और गाँव वालों को भी बिजली की जरूरत जाड़े में खासतौर से सुबह, ट्यूबवेल से गेंहू की सिचाई के लिए ज्यादा महसूस होती थी. और बाकी दिन तो गाँव में सब को जल्दी सोने की आदत थी,


सात आठ बजे तक खाना, साढ़े आठ तक लालटेन भी बुझ जाती थी



और पौने नौ बजे हर घर में साये का नाड़ा खुल जाता , टाँगे उठ जातीं और रात भर जुताई होती।




और बारिश में तो खासकर, एक बूँद पानी की आयी नहीं की लाइट गायब,

माँ भी नहीं थी सब जिम्मेदारी अरविन्द पे, वो जान रहा था बस आधे घंटे, घंटे में लाइट जायेगी और फिर कब आएगी भरोसा नहीं, उसने गीता से बोला,


" सुन यार तू ज़रा सब दरवाजे खिड़की चेक कर ले , तेज बारिश आने वाली है , लाइट जायेगी, तूफ़ान भी आ सकता है, मैं तब तक सब लालटेन, ढिबरी बत्ती जला लेता हूँ।"


सिर्फ भाई बहन थे घर में तो जिम्मेदारी भी उन दोनों की।

" हाँ भैया, ग्वालिन भौजी बोल गयी थी की उन्होंने गाय गोरु को चारा खिला के बंद कर दिया है , सांझ से ही लग रहा था की आज तूफ़ान आएगा, लेकिन मैं वो भी एक नजर देख लूंगी। बस दस मिनट, लौट के आके खाना लगाती हूँ। "




गीता बाहर गयी और उसका भाई अरविन्द, स्टोर से सब लालटेन ढिबरी निकाल के साफ़ कर के पूरा तेल भर के जलाने में लगा गया. तूफ़ान आने वाला था लेकिन उस के मन में एक दूसरा तूफ़ान चल रहा था उसकी बहन को लेकर, करे न करे
Mazedar tha. Maza aaya.
 
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Shetan

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समझदार, बहन ...ते हैं,









गीता बाहर गयी और उसका भाई अरविन्द, स्टोर से सब लालटेन ढिबरी निकाल के साफ़ कर के पूरा तेल भर के जलाने में लगा गया.

तूफ़ान आने वाला था लेकिन उस के मन में एक दूसरा तूफ़ान चल रहा था उसकी बहन को लेकर,

करे न करे,

मन तो उसका काबू में एकदम नहीं था और ललचाता तो कब से उसको देख के था लेकिन जब एक दिन नहीं रहा गया और उसने बाथरूम में छेद करके, ...


उफ़ उफ़ क्या जोबन उभरा था, आस पड़ोस के चालीस पचास गाँव में ऐसी कोई नहीं ,...




और जब एक दिन उसने उसकी चूत देख ले , ..एकदम चिकनी, जैसे झांटे आयी ही नहीं हो, संतरे की फांकों की तरह रसीली


और फिर उस दिन से , कोई दिन बाकी नहीं गया,... जब उसका नाम ले के दो तीन बार वो मुट्ठ नहीं मारता था,...


भाई बहन के रिश्ते का भी ख्याल था, लेकिन उसकी बातों से ,..और इतना बुद्धू भी नहीं था की उसकी बातें इशारे न समझता हो , वो जान गया था की वो गरमा रही है

और गाँव का , उसके स्कूल के आसपास का , किसी सहेली का भाई उसे ठोंक ही देगा , अभी नहीं तो महीने दो महीने के अंदर ही , और बाहर वाले से पेलवा के वो कहीं बदनाम न करे और उसको सब में बांटे,... उससे अच्छा तो वही,

घर का माल घर में इस्तेमाल होगा,


परेशानी उसको दूसरी हो रही थी. बचपन से वो गीता को बहुत प्यार करता था और अब न जाने कब से वो प्यार जवानी के प्यार में बदल गया था और अब गीता खुद भी,..

लेकिन वो गीता के चेहरे पे दर्द नहीं देख सकता था और उसका थोड़ा ज्यादा,...




और वैसे भी उसने अब उसकी कच्ची कली को देख लिया था, एकदम कसी चिपकी कोरी, लेने में तो बहुत मजा आएगा, आज के पहले भी उसने बहुत सी कच्ची कलियों की, लेकिन जैसा मज़ा इसके साथ आएगा , न कभी आया था न कभी आएगा,



पर उसे दर्द बहुत होगा, वो दर्द पीने की कोशिश करेगी, पर,...

लेकिन और कोई करेगा तो भी गितवा को दर्द होगा और वो पता नहीं कहाँ कैसे फाड़े उसकी, गन्ने के खेत में खाली थूक लगा के,... और वो कितना रोयेगी , चूतड़ पटकेगी वो और जोर जोर से, बिना फाड़े कौन छोड़ता है,...

और वो करेगा तो घर के कोल्हू में पेरा कडुवा तेल लगा के,



और लंड में भी अपना अच्छी तरह चुपड़ के , खूब सम्हाल के और पहली बार में बस थोड़ा सा,... घर की चीज कहाँ जा रही है, दूसरी तीसरी बार में ही पूरा पेलेगा। तो वो अगर उसका ख़याल करता है तो अब उसे, बस और आज माँ भी नहीं है,...

आज अगर उसने और इशारा किया तो रात में जब वो सो जायेगी, नहीं तो सबेरे होने के पहले तीन चार बजे,उस समय चीख पुकार होगी भी तो कोई सुनेगा नहीं , और फिर उस समय उसका,.... लेकिन आज की रात,... बहुत मन कर रहा था,

उसे दो ऊँटो वाला एक विज्ञापन याद आया और उसने अपने आप से मुस्कराते हुए बोला,...




समझदार बहन चोदते हैं,







और उधर सब दरवाजे खिड़की देख के बाहर गाय गोरु देख के किचेन में खाना लगाते गीता मन ही मन में मुस्करा रही थी, जिस तरह से भैया आज खुल के जोबन दबा रहा था , जिस तरह से उसका लंड फनफनाया था , और माँ भी नहीं थी आज लग रहा था उसकी सहेली का दरवज्जा खुल जाएगा।
Itna ye dar rahi he. Itna to hanari chhutki na dari
 
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Shetan

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बरसात की रात





इसी छेड़छाड़ और डबल मीनिंग बात में खाना खत्म होगया और गीता बर्तन लेकर किचेन में,

भाई का मन वो जान रही थी थी , उसके शार्ट में खूंटा एकदम तना था , बित्ते भर का तो होगा,... लेकिन वही झिझक,...

दोनों अपने अपने कमरे में सो गए






उसका भाई अरविन्द अपने कमरे में, थोड़ी देर तक तो वो कुनमुनाया लेकिन दिन भर की थकान, नींद ने घेर लिया, पर हां,...



आज जब वो सोने आया तो एक बोतल घर के सरसों के तेल की, तगड़ी झार वाली, ला के अपनी चारपाई के नीचे,


पर रात में,...


आधी रात हो चुकी थी या शायद ज्यादा

तेज बादल गरजना शुरू हुए बिजली की कड़क और पानी की बौछार, गीता के कमरे में हवा के झोंके से खिड़की शायद खुल गयी , बौछार अंदर आ रही थी ,... तूफ़ान भी जबरदस्त था ,...

हूँ हूँ की तेज आवाज गूँज रही थी , बारिश के साथ तूफ़ान भी था,


गीता डर के मारे अपने बिस्तर में दुबक गयी थी, .... बचपन से ही कड़कती बिजली और तेज तूफ़ान की आवाज से वो डर जाती थी


और कहीं भी हो , दिन या रात , माँ की गोद में भागके सिमट जाती थी,... और माँ उसे चिपका लेती थीं, रात हो तो रात भर उनकी गोद में ही चिपकी रहती थी, डर तब भी लगता था , लेकिन सुकून भी रहता था की बिजली यहाँ नहीं गिर सकती , माँ का आंचल रोक लेगा,... और उसकी ये हालत सब को मालुम थीं ,... वैसे भी घर में था और कौन,... वो माँ और भैया।

वैसे तो बाहर एकदम अँधेरा था , लेकिन जब बिजली चमकती थी तो कैमरे के फ्लैश की तरह सब कुछ पल भर के लिए चमक जाता था,...




थोड़ी रौशनी थोड़ी अँधेरे में, वो नीम का पेड़, जिसके नीचे वो खेलती थी, निम्बोलिया बीनती थी, ... एकदम जिन्नात की तरह लग रहा था ,...

सारे पेड़ झूम रहे थे जैसे उन के ऊपर ढेर सारे भूत प्रेत उन्हें हिला रहे हों,... मारे डर के उसने आँखे मींच ली , चद्दर में ऊपर तक ओढ़ ली ,...


माँ ,...

लेकिन माँ तो मामा के यहाँ गयी थी और उसे समझा भी गयी थीं , अब तू बड़ी हो गयी है , बच्ची नहीं रही, अपना भी ख्याल रखना , भैया का भी,...

और एक बार फिर बिजली चमकी ,

बादल कड़के , .... उसने मारे डर के चद्दर के अंदर भी अपनी आँखे मींच ली, ... तभी कुछ अरररा कर आवाज हुयी,...

और आधी खुली बंद आँखों से उसने देखा , वो बड़ा सा पाकुड़ का पेड़ जिस पे हर साल झूला पड़ता था,.... उसकी एक बड़ी मोटी सी डाल चरमरा के गिरी उसकी आँखों के सामने,... कितना पुराना पेड़ ,...




माँ कहती थी उसकी डोली इसी पेड़ के नीचे उतरी थी,... और जिस तरह से होओओओ होओओओओ कर के हवा चल रही थी, लग रहा थी कोई पेड़ पालव आज बचेगा नहीं,....

हड़बड़ा के वो अपने कमरे से उठी, और बगल के कमरे में, ... भैया के कमरे का दरवाजा खुला था,... और वो चद्दर ओढ़े, गहरी नींद में बाहर के आंधी तूफ़ान से बेखबर,... वो उनके कमरे में घुस के सीधे उनके चद्दर में घुस के दुबक गयी और कस के उन्हें अपनी बाँहों में बांध लिया।

सोते समय सिर्फ वो एक जांघिया पहनते थे , और गीता भी सिर्फ एक समीज पतली सी,... और आज माँ भी नहीं थी तो ऊपर नीचे भी कुछ नहीं , समीज के अंदर

और जांघिये के अंदर 'वो' सुगुबगा रहा था , करवट ले रहा था , थोड़ा जगा और जब गीता ने अपने भैया को गले से लगाया , कस के चिपक के दुबकी वो तो सीधे वो डंडा समीज के ऊपर से उसकी जाँघों के बीच।

कुछ देर में जब वो डर से उबरी तो उसे ' उसका' अहसास हुआ।

और वो गिनगीना गयी, एक नए ढंग का अहसास उसकी जांघो के बीच शुरू हो गया, एक हल्की सी सिहरन, कम्पन ,... रोज तो देखती थी वो इस बदमाश मोटू को ,भइआ जब उसे पकड़ के ६१-६२ करते थे, उसकी ब्रा के कप में उसकी सब मलाई,... उसके भाई का एक हाथ जैसे नींद में पड़ गया उसके सीने पर था,... वो और कस के भैया से चिपक गयी, ....


और कुछ देर में उस दुबकने चिपकने से पतली सी समीज ,ऊपर सरकती रही,...

गीता को ,... जो बार बार उसकी सहेली की भाभी बोलती थीं ,... पहल लड़की को ही करनी पड़ती है , लड़के बेचारे तो घबड़ाते रहते हैं,...और अगर भाई हो तो और , झिझकता ही रहेगा , और बहन ब्याह के किसी और के पास चली जायेगी,... और उस से पहले ही कोई पड़ोस वाला लड़का गन्ने के खेत में उसे गन्ना खिला देगा।

फिर गीता ने खुद ही अपनी ब्रा खोल के जान बूझ के बाथरूम में छोड़ा,.. और कल दिन में ही तो उसकी मलाई भरी अपनी ब्रा को न सिर्फ पहना बल्कि उससे हुक भी लगवाया,...

समीज पेट के ऊपर तक सरक गयी थी अपने आप ही , ... बस गीता ने भैया का एक हाथ सीधे समीज के अंदर अपने उभार पर,

गोल गोल रूई के फाहे , खूब मुलायम , गुलाबी गुलाबी,




कच्चे टिकोरे , जिस पर अभी किसी तोते की चोंच नहीं लगी थी,



बस हलके हलके उभरते हुए उभार , जिनके बारे में सोच सोच के उसका भैया रोज मुट्ठ मारता था , आज उसकी मुट्ठी में



और अपने आप ही गीता के हाथ भैया के हाथ पर , उस हाथ पर जो उसके उभार पर था , और गीता ने हलके से बहुत हलके से दबा दिया ,... बस जैसे बटन से स्टार्ट करने वाली गाड़ियां होती हैं , बस उसी तरह से,... अब भइया जैसे अनजाने में सहला रहे थे , छू रहे थे, बस हलके हलके,... और गीता को लगा वो हवा में उड़ रही है , उफ्फ्फ्फ़ ऐसा तो कभी नहीं लगा ,... कित्ता अच्छा , बस मुश्किल से वो अपनी सिसकी रोक पा रही थी,...



उसने एक टांग उठा के उसकी ओर करवट किये भैया की टांगो पर रख दिया , ...उनकी कमर से थोड़ा सा नीचे,... लेकिन ये उसने भी ध्यान नहीं दिया की ऐसे करने से उसकी जाँघे पूरी तरह खुल गयी हैं , समीज भी एकदम सिकुड़ के बस उसके उभारों के ऊपर,.... और समीज के नीचे उसने कुछ पहन भी नहीं रखा था, लेकिन इस सब बातों से अनजान , उसने अपनी भैया के ऊपर रखी टांग के सहारे उन्हें और अपनी ओर खींच लिया। और अब वह मोटू , जांघिए के अंदर पूरी तरह तना सीधे उसकी गोरी गोरी मखमली जाँघों के बीच, आलमोस्ट वहीँ सटा हुआ,



गीता ने एक बार फिर उसके उभार के ऊपर जो भैया का हाथ था उसे , अबकी हलके से नहीं कस के दबा दिया और बस अब भइया छूने सहलाने से आगे बढ़ के हलके हलके दबाने मसलने लगे ,... अब ये बहाना दोनों छोड़ चुके थे की सोते में अनजाने में



गीता ने अपना दूसरा हाथ , भैया के जांघिये में डाल के उस मोटू को पकड़ लिया जिसे देख के वो रोज रोज ललचाती थी। और आज पकड़ने पर ,... डरते हुए हिम्मत कर के छुआ था गीता ने, कितना कड़ा, एकदम लोहा,... मुश्किल से मुट्ठी में समा रहा था , वो कितना सोचती थी, छूने में पकड़ने में कैसा लगेगा,... और आज ,... सोचने से भी ज्यादा अच्छा लग रहा था , हिम्मत कर के धीरे धीरे उसने अपनी टीनेजर मुट्ठी का दबाव बढ़ाया,... और अंगूठे से , मोटू के मुंह के पास , ... थोड़ा खुला थोड़ा बंद,... वो रोज तो देखती थी , भइया उसकी ब्रा से पकड़ के कैसे आगे पीछे करते हैं , बस वही सोच के एकदम उसी तरह उसने धीरे अपने भैया के 'उसको' आगे पीछे करना शुरू किया , हलके हलके,
Jabardast erotic he
 
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Shetan

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उईईईईई नहीं ओह्ह्ह्हह्ह भैयाआ उईईईई जान गईइइइइइइइ,

फ़ट गयी





बहन अपनी सारी सीख , सहेलियों की बातें , और उस से बढ़ के गाँव के भौजाइयों की बातें,... ढीली रखना, देह खूब ढीली रखना , उधर से ध्यान हटा के एक बार मूसल चलना शुरू हो गया उसके बाद उसके बारे में,...लेकिन फटते समय सब ज्ञान भूल जाता है, सिर्फ दर्द, और,... दर्द, चीख और चिलख

और अचानक,.... बादल जोर से कड़के ,... गड़ गड़ गड़ गड़ जैसे इंद्र के हाथी आपस में भिड़ गये हों , खूब तक गर्जन, उसने कस के पलंग को थाम रखा था,... कनखियों से उसने देखा,


बहुत जोर से बिजली चमकी , कमरे के अंदर तक कौंध गयी,...




और फिर बादलों की गड़गड़ , उसकी चीख बहुत रोकने के बाद भी निकल गयी, लगा की गरम भाला उसकी जाँघों के बीच घुस गया है ,... बिजली बाहर नहीं उसकी जाँघों के बीच गिरी है , ... उसने तय किया था वो नहीं चीखेगी पर फिर भी ,... पर उस गड़गड़ाहट और बिजली की चमक के बीच...

सुपाड़ा अभी भी पूरी तरह नहीं घुस पाया था , हाँ अच्छी तरह फंस गया था , धंस गया था , एक पल रुक के ,... उसके भैया ने गहरी साँस ली, हलका सा बाहर खींचा,...




और कैसे कोई कुशल धनुर्धर बाण संधान के पहले प्रत्यंचा को अपने कंधे तक पूरी ताकत से खींचता और फिर बाण छोड़ता है , एकदम उसी तरह , पूरी ताकत से , उसके भैया ने पुश किया , वो ठेलते गए , धकलते गए,

बाण बांकी हिरणिया को लग चुका था , एकदम अंदर तक , वो सारंग नयनी , जीवन का प्रथम पुरुष संसर्ग का सुख, दर्द के सम्पुट में बंधा,... उसे मिल चुका था


, सुपाड़ा पूरी तरह अंदर पैबस्त हो गया था।


शायद, नारी जीवन के सारे सुःख, दर्द की पोटली में बंधे आते हैं. यौवन का प्रथम कदम , जब वह कन्या से नारी बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है , चमेली से जवाकुसुम, पहला रक्तस्त्राव, घबड़ाहट भी पीड़ा भी,... लेकिन उसके यौवन की सीढ़ी का वह प्रथम सोपान भी तो होता है, ...

और पिया से मिलन, प्रथम समागम, मधुर चुम्बन, मिलन की अकुलाहट और फिर वो तीव्र पीड़ा, और फिर रक्तस्त्राव,... लेकिन तब तक वह सीख चुंकी होती है , दर्द के कपाट के पीछे ही सुख का आगार छिपा है,...

और चेहरे की सारी पीड़ा, दुखते बदन का दर्द मीठी मुस्कान में घोल के पिया से बिन बोले बोलती है, ' कुछ भी तो नहीं'. आंसू तिरती दिए सी बड़ी बड़ी आँखों में ख़ुशी की बाती जलाती है,... और शायद जीवन का सबसे बड़ा सुख,नारी जीवन की परणिति, सृष्टि के क्रम को आगे चलाने में उसका योगदान, ...


कितनी पीड़ा,... प्रसव पीड़ा से शायद बड़ी कोई पीड़ा नहीं और नए जन्में बच्चे का मुंह देखने से बड़ा कोई सुख नहीं स्त्री के लिए,

और उसके बदलाव के हर क्रम का साक्ष्य रहती हैं रक्त की बूंदे , यौवन के कपाट खुलने की पहली आहट, प्रथम मिलन,... और स्त्री से माँ बनना,... लेकिन लड़कियों के लिए ख़ास तौर से गाँव की लड़कियों के लिए ये कोई अचरज नहीं है ,

वो हुंडाती बछिया पर सांड़ को चढ़ते हुए , कातिक में कुत्ते और कुतिया को , गाय को बछड़ा जनते,...

और सबसे बढ़कर जब हलधर धरती में हल गड़ाते हैं , चीर कर बीज आरोपित करते हैं तो धरती के दर्द को नारी ही समझती है , और जब कुछ दिनों बाद धानी चूनर पहन , धरती शष्य श्यामला हो गाने गुनगुनाने लगती है तो उसके सुख की सहेली भी नारी होती है,...



और यह हलधर, अनुभवी था , कोई पहली बार खेत नहीं जोत रहा था , उसे मालूम था कैसे खेत में कैसे हल चलाना चाहिए, कब कितनी फाल अंदर तक,...


कब रुकना चाहिए और कब पूरी ताकत के साथ,...


और वह रुक गया, उसे मालूम था न सिर्फ सुपाड़ा बल्कि एक दो इंच और अंदर चला गया है , और इतना तेल लगाने के बाद भी कितनी जलन चुभन हो रही होगी,... और असली दर्द तो अभी बाकी थी,... बस वह रुक गया, ... नहीं , निकाला नहीं उसने ,

बस झुक के बहुत हलके से अपनी छोटी बहन के दर्द से भरी बड़ी बड़ी बंद आँखों को बस हलके से चूम लिया,...

और फिर तो जैसे कोई भौरां कली से छुआ छुववल खेले, उसके होंठ , कभी गालों को हलके से ,.. तो कभी होंठों को सील कर देते और धीरे धीरे उन गुलाबी कलियों का रस लेते,...


और जिसका वो दीवाना था , वो उरोज, आज उसके सामने उसकी छोटी बहन ने खुद परोस दिए थे, ...




कभी उरोजों के बेस पर तो कभी जस्ट आ रहे, स्तनाग्रों पर बस हलकी सी चुम्मी , कच्चे टिकोरों पर आज पहली बार किसी तोते की ठोर लग रही थी, हलके हलके कुतरने में वो मजा आ रहा था , एकदम गूंगे का गुड़, जिसने कच्ची अमिया कभी कुतरी होंगी , वही उनका स्वाद समझ सकता है,...

कुतरवाने वाली को भी मज़ा आ रहा था, झप्प से उसने आँखें खोल दी , उसे लगा तीर पूरा धंस गया , दर्द का अध्याय खत्म हो गया है ,


उस बेचारी को क्या मालूम था , अभी तो तीर की पूरी नोंक भी नहीं ठीक से घुसी थी।

भैया के चेहरे को अपने सामने देख वो शर्मीली शर्मा गयी और झट्ट से आँखों के दरवाजे बंद कर दिए, ... और भैया के सिर्फ होंठ ही नहीं , उनके हाथ भी, पूरी देह सुख ले रही थी दे रही थी , जब होंठ भैया के बहना के गालों का रस लेते तो हाथ जुबना को मसलते रगड़ते और जब होंठ निप्प्स पर आके जीभ से फ्लिक करते तो, भैया के हाथ रेशमी मख़मली जाँघों पर फिसलते, सिर्फ सुपाड़ा धंसा अपनी बारी का इन्तजार कर रहा था और वो जल्द आ गया.

एक बार फिर उस हलधर ने अपने हल की फाल को ठीक किया, नीचे लेटी भले ही पहली बार,



लेकिन वो नया खिलाड़ी नहीं थी, ... हर उमर वाली के साथ, उसकी माँ की उमर वाली काम वालियों के साथ भी और,... जिनका गौना नहीं हुआ वैसी, ... झिल्लियां भी कितनी की फाड़ी थी उसने लेकिन ऐसी कच्ची कोरी, और वो भी सगी छोटी बहन,...

एक बार फिर से उसने उन छोटे छोटे मस्त चूतड़ों के नीचे तकिये को ठीक से लगाया और अबकी दोनों टांगों को मोड़ के दुहरा कर दिया , ... हल एकदम अंदर तक धँसाना पड़ता है , ऐसी जमीन जहाँ पहली बार खेती हो रही हो, बीज डालना हो खूब अंदर,... और बगल में रखी तेल की बोतल के ढक्क्न को खोल के , बाहर बचे मोटे मूसल को तेल से नहला दिया,... और अबकी बहन की दोनों मेंहदी लगी हथेलियों को कस के दबोच के,... अपनी पूरी ताकत से ठेल दिया, ...




मोटा लिंग , सूत सूत करके , धीमे धीमे रगड़ते दरेरते, फाड़ते अंदर जा रहा था ,

वो छटपटा रही थी , किसी तरह दांतों से काट के अपने होंठों को , चीखें निकलने से रोक रही थी , फिर चेहरे पर दर्द के भाव एक बार फिर से उभरने लगे थे,...

लेकिन वो हलधर अबकी रुकने वाला नहीं था,... उसकी कमर में , उसके नितम्बों में बहुत जोर था , जिस जिस पे वो चढ़ा था सब उसे 'सांड़ ' कहती थीं,... अपनी दोनों जाँघों के बीच कसके उसने अपनी बछिया को दबोच रखा था,...

इधर उधर हिलने को वो लाख कोशिश करे, चूतड़ पटके पर ज़रा भी अब उसके नीचे से सरक नहीं सकती थी , उस कोरी के दोनों नरम मुलायम हाथ उसके हाथों में जकड़े थे, उसकी पूरी देह का बोझ उसके ऊपर था और अपनी तगड़ी कसरती जाँघों से नीचे दबी उस गुड़िया की जाँघों को उसने पूरी ताकत से दबा रखा था, और मोटा लंड आधा तो घुस ही गया था,



बाहर बारिश एक बार फिर तेज हो गयी थी, बादल भी फिर से गरज रहे थे और घने घुप्प अँधेरे में भी बीच बीच में चमकती दामिनी उसे , उसके नीचे बहन की दबी देह, उसके छोटे छोटे मस्त जुबना और गोरे प्यारे चेहरे को दिखा दे रहे थे , उसका जोश एकदम दूना हो जाता था , लेकिन




लेकिन उसका अंदर घुसना अब रुक गया था , थोड़ा सा अवरोध बहुत हल्का सा, एक पतला सा पर्दा , लेकिन बिना उसे परदे के खुले, लड़की जवान नहीं हो सकती, ... और बहुत कम लोग होते हैं जिन्हे यह सुख मिलता है की खुद अपनी सगी बहन को उस चौखट के पार ले जा सकें,... वो समझ गया था की अब जो दर्द होगा उसे वह पी नहीं पाएगी, ... चीखेगी चिल्लायेगी, पर उस दर्द का इन्तजार और बाद में उस दर्द की याद, हर लड़की को तड़पाती है,...


भाई ने एक बार फिर से बहन के होंठों को चूमना शुरू किया लेकिन अब लक्ष्य कुछ और था , थोड़ी देर में बहन के गुलाबी मखमली अधरों के सम्पुट अलग अलग करके अपनी जीभ अंदर तक घुसा दी और उसकी जीभ के साथ छल कबड्डी खेलना शुरू कर दिया और साथ ही अपने दोनों होंठों के बीच उस किशोरी के होंठों को कस के भींच लिया, ....




एक बार फिर से कस के उसके हाथों को पकड़ के, अपनी तगड़ी मस्क्युलर जाँघों को बहन की खुली फैली जाँघों के बीच ,


और,.. और पूरी ताकत से उसने पेल दिया,... पेलता रहा ठेलता रहा धकेलता रहा,... बिना इस बात की परवाह किये की जो उसके नीचे है , कितना तड़प रही है , छटपटा रही है , पर न अपने हाथों की पकड़ उसने ढीली की न होंठों की जकड़ , न धक्कों की ताकत,... हाँ बस, ... दस बार जोरदार धक्कों के बाद , थोड़ा सा उसने अपने मोटू को बाहर खींचा,... पल भर के लिए गहरी साँस ली, और अबकी दूनी ताकत से ठेल दिया, ...

शुरू में तो बस दो चार बूंदे, लेकिन थोड़ी देर में उसके लिंग के मुंड पर रक्त का अहसास,...

बस अब काम हो गया था , नहीं बल्कि शुरू हुआ था, ...


झिल्ली फट तो चुकी थी लेकिन उसकी चुभन , चिलख ,... और दर्द का इलाज और दर्द होता है , ये खिलाड़ी चुदक्कड़ के अलावा और किस को मालूम होगा, ... बस एक बार लिंग हलके से बाहर निकल के , फिर वहीँ रगड़ते हुए , ... अंदर तक और फिर बाहर ,.. और फिर दरेरते , घिसटते हुए अंदर , चुदाई का असल मजा तो यही अंदर बाहर है और जब कुँवारी चूत मिले फाड़ने को तो ये मज़ा न लेना गुनाह है,...


बाहर बादल तेजी से गरज रहे थे बीच बीच में बिजली भी तेजी से चमक रही थी कभी कभी पानी की एकाध बौछार दोनों को भीगा भी देती थी,...




वो तड़प रही थी , पानी से बाहर निकली मछली से भी ज्यादा, जहां झिल्ली फटी थी वहां जब भी भैया का लंड रगड़ता ,... जैसे घाव पर कोई नमक छिड़क दे,... और होंठ अपने छुड़ा के , जोर की चीख,...

उईईईईई नहीं ओह्ह्ह्हह्ह भैयाआ उईईईई जान गईइइइइइइइ

पर अब बिना उस चीख की परवाह किये उसका सगा भाई अरविन्द चोदता रहा,


उईईईईई उईईईईई ओह्ह्ह्ह रुको , ओह्ह उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ नहीं जान गईइइइइइइइइ




बादलो की जोरदार गरज के बीच भी वो चीख सुनाई दे रही थी,....



उह्ह्ह उह्ह नहीं बहुत दर्द हो रहा है ,....



और धीरे धीरे वो चीख हलके हलके बिसूरने में बदल गयी,... थक के तड़पन भी थोड़ी कम हो गयी ,... तो वो रुका,... दो इंच के करीब और बाकी था , था भी तो उसका मोटा लम्बा बांस,...

लेकिन अब दर्द के बाद सहलाने का टाइम था और उस खिलाडी के पास बहुत से हथियार थे , होंठ, जीभ, उँगलियाँ , ....

बाहर मेघ की झड़ी लगी थी और अंदर भैया के चुंबनों की कभी बहन के गाल पे तो कभी होंठो पे तो कभी उभरते उरोजों पे,... और साथ में संगत करतीं उँगलियाँ,...

भैया के होंठों ने जैसे दो चार मिनटों में ही बहन का सारा दर्द पी लिया और दर्द की जगह उन शबनमी होंठों पर हल्की सी मुस्कान फ़ैल गयी,... और यही तो वो चाहता था ,

अब उसकी उँगलियों ने बहन की जाँघों पर , निचले फैले होंठों के ऊपर जादुई बटन को, क्लिट को छूना सहलाना शुरू कर दिया,



और एक निपल अगर होंठों की गिरफ्त में तो दूसरे को भैया की उँगलियाँ तंग करती, साथ में अंदर आलमोस्ट जड़ तक पैबस्त , भैया का मोटा खूंटा,... बस दो चार मिनट में ही तूफ़ान में पत्ते की तरह वो कांपने लगी,... भैया ने उसके देह के सितार के तार अब द्रुत में छेड़ने शुरू दिए

उह्ह्ह ओह्ह्ह उफ़ रुको न ,...

आह से आहा तक


चीखें अब मजे की सिसकियों में बदल गयी थीं दर्द का द्वार पर कर उस आनंद में वो गोते लगा रही थी जिसके बारे में वो सिर्फ सोचती थी ,


कभी अपनी हथेली को जाँघों के बीच घिसती, भैया के मोटे मूसल को सोचते वो झड़ी थी , कभी उसकी सहेली की भाभी की जबरदस्त उँगलियाँ,.... उनकी गारंटी थी किसी ही ननद को वो चार मिनट में झाड़ सकती थीं,..

लेकिन आज ऐसा पहले कभी नहीं हुआ,...

जैसे दिवाली में अनार फुटते हैं , ख़ुशी के मजे के अनार ,... एक लहर ख़तम भी नहीं होती थी की दूसरी चालू हो जाती थी , कभी मन करता की भैया रुक जाएँ , कभी मन करता नहीं करते रहें


वो झड़ती रही , झड़ती रही , और भैया के हाथ, होंठ रुक गए और बिल में घुसा मोटा डंडा चालू हो गया जैसे ट्रेन के इंजन का पिस्टन , स्टेशन से गाड़ी चलते समय पिस्टन जैसे पहले धीरे धीरे ,..... फिर तेजी से , सट सट
Bahot tadpa diya aapne to. Par maza bhi bahot aaya. Kash esa seen chhutki ke lie bhi likhte.
 
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