Devil hunter123
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Super update bro........ aap ek bahot acchi kahani likh rahe hain....................... is kahani me pyar emotions darama sab kuch hai ....................... majedaar kahani.... shaandaar update
मेरी प्यारी बहन
भाग – 1 [बीती बातें]
मुंबई, यानी मायानगरी, कुछ लोग इसे सपनों की नगरी भी कहते हैं। मैं भी कुछ इसी सोच के साथ यहां इस शहर में आया था। मेरी मां की मृत्यु तो तभी हो गई थी जब मैं कुछ 5–6 साल का था। असल में मेरी छोटी बहन को जन्म देते वक्त आई कुछ परेशानियों की वजह से उन्होंने अपना देह त्याग दिया था और उनकी मृत्य के बाद ही मेरे जीवन में असली परेशानियों ने दस्तक देना आरंभ किया। मां के जाने के बाद मेरी जिंदगी मेरी बहन में ही सिमट कर रह गई थी। मैं उसकी ज़िंदगी को खुशियों से भर देना चाहता था। पर मेरे बाप को कुछ और ही मंज़ूर था।
हुआ यूं की मां के जाने के कुछ पंद्रह दिन बाद ही मेरे बाप ने दूसरी शादी कर ली। मैं काफी छोटा था पर समझदार था। दूसरी शादी का मतलब मैं भली – भांति समझता था और उस दिन मेरे दिल में पहली बार मेरे बाप के खिलाफ कोई विचार पनपा। पर असली खेल तो तब शुरू हुआ जब उनकी नई बीवी हमारे घर में प्रवेश कर गई। उसने पहले ही दिन से मेरे बाप को खुद के पीछे कुत्ते जैसा बना दिया और उन्हें तो वैसे भी बस यौन सुख चाहिए था जो वो औरत उन्हें दे सकती थी। अब क्या ही मतलब रह गया था उन्हें हमसे।
धीरे – धीरे वक्त का पहिया चलता गया और मेरी बहन बड़ी होने लगी। उसे भी हमारे घर का सारा माहौल समझ आने लगा था। कहीं ना कहीं उसने भी इस सबसे एक समझौता सा कर ही लिया था। पर अभी भी उसके पास “मैं” था। जिसे वो अपना भाई, अपना पिता सब कुछ मानती थी। हम दोनो का कमरा एक ही था। वो रात को मुझसे लिपट कर ही सोया करती थी। अब मेरे बाप की नई बीवी को तो हमसे क्या ही मतलब था। हम मरे या जिएं उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। पर मेरी बहन को मुझे एक सुखद जीवन प्रदान करना था।
मैंने पड़ोस की एक अम्मा से खाना बनाना सीख लिया था और रोज नए – नए व्यंजन बनाकर अपनी जान को खिलाया करता था। में उसे “गुड़िया” कहकर पुकारता था। वह भी सब कुछ समझती थी और मेरे मन में जो प्रेम उसके लिए भरा था वो उस से भी अंजान ना थी। फिर जब उसके स्कूल जाने की बारी आई। मेरी पढ़ाई भी उस औरत के राज में कबकी बंद हो गई होती परंतु मैं पढ़ाई में शुरू से ही अच्छा था इस कारण मेरे स्कूल की फीस माफ हो चुकी थी। पर मेरी बहन तो अभी स्कूल जाना शुरू करने वाली थी। उस औरत ने मेरे बाप या कहूं के चूत के भूखे बाप के कान भर दिए थे और उस आदमी ने साफ कह दिया के लड़की है पढ़कर क्या करेगी। एक दिन तो चूल्हा – चौका ही करना है। उस दिन पहली बार मेरे मन के एक कोने से मेरे बाप के लिए बद्दुआ निकली।
उस दिन गुडिया बहुत दुखी थी। वो अपनी से ज्यादा उम्र के बच्चों को स्कूल जाता देख, खासकर मुझे, हमेशा से स्कूल जाना चाहती थी। पर वो सब बातें उसने भी सुन ली थी। वो हमारे कमरे में बिस्तर पर लेटी रो रही थी जब मैं उसके पास पहुँचा। उसे यूं रोता देख कर बहुत ज्यादा दर्द मेरे सीने में हुआ। मैंने उसे उठाया और अपने गले से लगा लिया। वो भी मुझसे बेल की तरह लिपट गई। मैने उसके फूले – फूले गालों को प्यार से चूमा और फिर एक चुम्बन उसके माथे पर अंकित कर दिया। मैंने एक बार फिर उसे अपने आगोश में लिया और उसके कान में कहा,
में : रोते नही मेरी परी। मैं हूं ना, आपका भाई आपको स्कूल भेजेगा।
ना जाने कैसे मैं वो बोल गया। मेरी उम्र अभी बहुत कम थी पर उसके लिए मेरा प्रेम समुंदर जैसा ही था। यही कारण था इन शब्दों को जो मेरे मुख से फूटे थे। उसके चेहरे पर भी रौनक लौट आई थी। वो खिलखिलाती हुई बोली,
गुड़िया : सच्ची भईयू मुझको स्कूल भेजेगो आप?
मैंने बस हां में सर हिला दिया। और एक बार फिर उसकी जगमग आंखों में खुशी लौट आई। बस फिर क्या था मैंने हमारे पड़ोस में रहने वाले एक रहीम चाचा जोकि मेरी मां को अपनी बहन माना करते थे, उनसे बात की। वो भी खुशी से पैसे देने को तैयार थे। पर मुझे ये गवारा ना था। मेरी गुड़िया की खुशी मैं खुद जुटाना चाहता था। मुझसे प्रभावित होकर उन्होंने भी मेरी बात मान ली और हमारे गांव से कुछ दूर बनी एक कपड़ा फैक्ट्री में मुझे लगवा दिया। वहां खतरा भी कम था, केमिकल फैक्ट्री के मुकाबले और पैसे भी ठीक थे।
बस फिर मैने गुड़िया का दाखिला अपने ही स्कूल में करवा दिया। हेडमास्टर साहब मेरे पढ़ाई और खेल – कूद में अव्वल होने के कारण मुझसे बेहद अच्छा व्यवहार करते थे। तो वो भी खुश थे और कुछ फीस में रियायत भी कर दी थी उन्होंने। बस इस घटना ने कहीं ना कहीं गुड़िया के मन मंदिर में मुझे काफी ऊंचा स्थान दे दिया था। वो मुझसे और भी अधिक प्रेम पूर्वक बर्ताव करने लगी थी और मुझे बस यही चाहिए था, उसकी खुशी।
इस तरह समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता गया। गुड़िया ने 12वीं की परीक्षा बेहद अच्छे अंकों से पास कर ली थी। वो 18 वर्ष की हो चुकी थी। वहीं मैं 24 का हो चला था और मैंने पास के ही शहर के एक कॉलेज से एम.बी.ए की डिग्री हासिल कर ली थी। पर इन बीते सालों में गुड़िया के मन में मेरे लिए प्रेम बहुत बढ़ चुका था। वो सदैव मेरे साथ ही रहती थी, खाना – पीना, सोना – जागना या पढ़ना हर काम वो मेरे सानिध्य में रहकर ही करती थी। पर इन सालों में एक चीज नही बदली, मेरे बाप और उनकी बीवी का हम दोनो के प्रति बर्ताव। अब तो उनका खुद का एक बेटा और एक बेटी भी थे। दोनो का ही दाखिला मेरे बाप ने शहर के उच्चतम स्कूल में करवाया था।
जब मैंने 12वीं कक्षा उत्तीर्ण की थी तब रहीम चाचा की मदद से में एक फैक्टरी में सुपरवाइजर की नौकरी पर लग गया था। तनख्वाह भी अच्छी थी। इस बीच गुड़िया भी अपनी पढ़ाई में अव्वल ही आती रही और उसकी फीस भी माफ हो गई थी। मैं अब वो सारे पैसे उसके लिए सभी सुख – सुविधा की चीजें लाने में लगा दिया करता था। जब मैं पहली दफा उसके लिए एक ड्रेस खरीदकर लाया तब उसकी खुशी देखते ही बनती थी। अब मैं अक्सर उसके लिए नए कपड़े, मेक – अप का सामान, अच्छी – अच्छी मिठाइयां और भी पता नहीं क्या – क्या ले जाया करता था। जब वो 9वीं कक्षा में थी तब एक दिन मैं कमरे में बैठा पढ़ रहा था। तभी मुझे कमरे से ही जुड़े बाथरूम से उसके चीखने की आवाज आई। में डरकर अंदर भागा तो पाया वो कमोड पर बैठी रो रही थी। उसका लोवर उसके पैरों में था। अर्थात उसके शरीर पर मात्र एक कमीज़ थी।
मैंने उसके नजदीक जाकर उसे गले लगा लिया। और उसके सर पर हाथ फेरने लगा।
में : क्या हुआ मेरी गुड़िया। क्यों रो रहे हो आप?
गुड़िया : भईयू मे... मेरी ना सूसू में से खून आ रहा है।
में समझ गया के उसका मेंस्ट्रुअल साइकिल आरंभ हो गया था। और अचानक ही मेरी आंखों में पानी के कतरे उभर आए। कल की ही तो बात थी, जब मां उसे मुझ अबोध बालक की गोद में छोड़ गई थी। और आज वो जवानी की दहलीज पर क़दम रख चुकी थी। सचमें लड़कियां बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं। मैने उसे प्यार से चुप करवाया और इस सबकी पूरी जानकारी दी। मेरे मुंह से ये सब सुनकर वो काफी शर्मा रही थी पर वो जानती थी कि उसका भाई ही उसकी पिता था और उसकी मां भी।
बस उस दिन के बाद वो सचमें मुझसे काफी खुल सी गई। वो मुझे अपने स्कूल की, अपनी सहेलियों के साथ हुई बातें, शाम को खेल के वक्त की बातें, सब बता दिया करती थी। उसे कोई भी परेशानी होती तो बेझिझक मुझे बोला करती थी। ख़ैर, अब मैं 24 का हो गया था और वो 18 की। जिस दिन हम उसका 12वीं का नतीजा लेकर घर पहुंचे उस दिन ही हमारा जीवन एक नए मोड़ पर पहुंच गया था। हमारे घर पर गांव का सेठ बैठा हुआ था। वो एक 35 – 36 वर्ष का भद्दा सा आदमी था। उसकी शादी कई साल पहले हो गई थी फिर एक दिन सुनने में आया के गैस स्टोव फटने से उसकी बीवी की मौत हो गई। पर कहने वाले तो ये भी कहते थे के वो अपनी बीवी को अपने फायदे के लिए दूसरों के नीचे लेटा देता था और उसने ही अपनी बीवी की हत्या भी की थी। खैर, उसका एक बेटा भी था जो फिलहाल स्कूल जाया करता था। जब मैं और गुड़िया वहां पहुंचे तब जो मैने सुना वो सुनकर मेरे क्रोध की ज्वाला धधक पड़ी। वो कमीना गुड़िया का हाथ मांगने आए था अपने लिए और मेरे बाप ने सहमति भी दे दी थी क्योंकि वो मेरे बाप को कुछ जमीन दे रहा था।
मैने गुड़िया की तरफ देखा तो पाया के उसकी आंखें भीगी हुई थी, उस दिन पहली बार मैंने अपने बाप को खींच के एक थप्पड़ मारा। बस अब वहां एक पल भी रुकना मेरे ज़मीर को गवारा ना था। मैने गुड़िया का हाथ पकड़ा और अपने और उसके जरूरी कागजात लेकर वो घर छोड़कर निकल गया। मुझे नहीं पता था के मैं उसे कहां ले जा रहा था पर इतना पता था के उसे मैं दुनिया की सारी खुशियां जरूर दूंगा। खैर, मैंने मुंबई जाने का निश्चय किया और गुड़िया के साथ ही ट्रेन में बैठ गया। वो मुझे बेहद हैरत भरी नज़रों से ताकती रही। पहले उस आदमी को थप्पड़ मारना जो हमारा बाप था, उस सेठ की धुलाई करना, और फिर उसे यूं घर से ले आना। असल में मैं समझ रहा था के वो मुझपर वारी – वारी जा रही थी। खैर, यहीं से शुरू हुआ उसका और मेरा नया सफर जिसकी गवाह ये मायानगरी मुंबई बनने वाली थी।
अरे हां मैंने अपना नाम तो बताया ही नहीं। मैं – अरमान और मेरी गुड़िया – आरोही।
Bahot bahot shukriya bhai.बहुत बढ़िया...
अगले भाग की प्रतीक्षा है
Thanks bro.Congratulations for new story&
Awesome update
Bahot bahot dhanyawad bhai.Super update bro........ aap ek bahot acchi kahani likh rahe hain....................... is kahani me pyar emotions darama sab kuch hai ....................... majedaar kahani.... shaandaar update
मेरी प्यारी बहन
भाग – 1 [बीती बातें]
मुंबई, यानी मायानगरी, कुछ लोग इसे सपनों की नगरी भी कहते हैं। मैं भी कुछ इसी सोच के साथ यहां इस शहर में आया था। मेरी मां की मृत्यु तो तभी हो गई थी जब मैं कुछ 5–6 साल का था। असल में मेरी छोटी बहन को जन्म देते वक्त आई कुछ परेशानियों की वजह से उन्होंने अपना देह त्याग दिया था और उनकी मृत्य के बाद ही मेरे जीवन में असली परेशानियों ने दस्तक देना आरंभ किया। मां के जाने के बाद मेरी जिंदगी मेरी बहन में ही सिमट कर रह गई थी। मैं उसकी ज़िंदगी को खुशियों से भर देना चाहता था। पर मेरे बाप को कुछ और ही मंज़ूर था।
हुआ यूं की मां के जाने के कुछ पंद्रह दिन बाद ही मेरे बाप ने दूसरी शादी कर ली। मैं काफी छोटा था पर समझदार था। दूसरी शादी का मतलब मैं भली – भांति समझता था और उस दिन मेरे दिल में पहली बार मेरे बाप के खिलाफ कोई विचार पनपा। पर असली खेल तो तब शुरू हुआ जब उनकी नई बीवी हमारे घर में प्रवेश कर गई। उसने पहले ही दिन से मेरे बाप को खुद के पीछे कुत्ते जैसा बना दिया और उन्हें तो वैसे भी बस यौन सुख चाहिए था जो वो औरत उन्हें दे सकती थी। अब क्या ही मतलब रह गया था उन्हें हमसे।
धीरे – धीरे वक्त का पहिया चलता गया और मेरी बहन बड़ी होने लगी। उसे भी हमारे घर का सारा माहौल समझ आने लगा था। कहीं ना कहीं उसने भी इस सबसे एक समझौता सा कर ही लिया था। पर अभी भी उसके पास “मैं” था। जिसे वो अपना भाई, अपना पिता सब कुछ मानती थी। हम दोनो का कमरा एक ही था। वो रात को मुझसे लिपट कर ही सोया करती थी। अब मेरे बाप की नई बीवी को तो हमसे क्या ही मतलब था। हम मरे या जिएं उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। पर मेरी बहन को मुझे एक सुखद जीवन प्रदान करना था।
मैंने पड़ोस की एक अम्मा से खाना बनाना सीख लिया था और रोज नए – नए व्यंजन बनाकर अपनी जान को खिलाया करता था। में उसे “गुड़िया” कहकर पुकारता था। वह भी सब कुछ समझती थी और मेरे मन में जो प्रेम उसके लिए भरा था वो उस से भी अंजान ना थी। फिर जब उसके स्कूल जाने की बारी आई। मेरी पढ़ाई भी उस औरत के राज में कबकी बंद हो गई होती परंतु मैं पढ़ाई में शुरू से ही अच्छा था इस कारण मेरे स्कूल की फीस माफ हो चुकी थी। पर मेरी बहन तो अभी स्कूल जाना शुरू करने वाली थी। उस औरत ने मेरे बाप या कहूं के चूत के भूखे बाप के कान भर दिए थे और उस आदमी ने साफ कह दिया के लड़की है पढ़कर क्या करेगी। एक दिन तो चूल्हा – चौका ही करना है। उस दिन पहली बार मेरे मन के एक कोने से मेरे बाप के लिए बद्दुआ निकली।
उस दिन गुडिया बहुत दुखी थी। वो अपनी से ज्यादा उम्र के बच्चों को स्कूल जाता देख, खासकर मुझे, हमेशा से स्कूल जाना चाहती थी। पर वो सब बातें उसने भी सुन ली थी। वो हमारे कमरे में बिस्तर पर लेटी रो रही थी जब मैं उसके पास पहुँचा। उसे यूं रोता देख कर बहुत ज्यादा दर्द मेरे सीने में हुआ। मैंने उसे उठाया और अपने गले से लगा लिया। वो भी मुझसे बेल की तरह लिपट गई। मैने उसके फूले – फूले गालों को प्यार से चूमा और फिर एक चुम्बन उसके माथे पर अंकित कर दिया। मैंने एक बार फिर उसे अपने आगोश में लिया और उसके कान में कहा,
में : रोते नही मेरी परी। मैं हूं ना, आपका भाई आपको स्कूल भेजेगा।
ना जाने कैसे मैं वो बोल गया। मेरी उम्र अभी बहुत कम थी पर उसके लिए मेरा प्रेम समुंदर जैसा ही था। यही कारण था इन शब्दों को जो मेरे मुख से फूटे थे। उसके चेहरे पर भी रौनक लौट आई थी। वो खिलखिलाती हुई बोली,
गुड़िया : सच्ची भईयू मुझको स्कूल भेजेगो आप?
मैंने बस हां में सर हिला दिया। और एक बार फिर उसकी जगमग आंखों में खुशी लौट आई। बस फिर क्या था मैंने हमारे पड़ोस में रहने वाले एक रहीम चाचा जोकि मेरी मां को अपनी बहन माना करते थे, उनसे बात की। वो भी खुशी से पैसे देने को तैयार थे। पर मुझे ये गवारा ना था। मेरी गुड़िया की खुशी मैं खुद जुटाना चाहता था। मुझसे प्रभावित होकर उन्होंने भी मेरी बात मान ली और हमारे गांव से कुछ दूर बनी एक कपड़ा फैक्ट्री में मुझे लगवा दिया। वहां खतरा भी कम था, केमिकल फैक्ट्री के मुकाबले और पैसे भी ठीक थे।
बस फिर मैने गुड़िया का दाखिला अपने ही स्कूल में करवा दिया। हेडमास्टर साहब मेरे पढ़ाई और खेल – कूद में अव्वल होने के कारण मुझसे बेहद अच्छा व्यवहार करते थे। तो वो भी खुश थे और कुछ फीस में रियायत भी कर दी थी उन्होंने। बस इस घटना ने कहीं ना कहीं गुड़िया के मन मंदिर में मुझे काफी ऊंचा स्थान दे दिया था। वो मुझसे और भी अधिक प्रेम पूर्वक बर्ताव करने लगी थी और मुझे बस यही चाहिए था, उसकी खुशी।
इस तरह समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता गया। गुड़िया ने 12वीं की परीक्षा बेहद अच्छे अंकों से पास कर ली थी। वो 18 वर्ष की हो चुकी थी। वहीं मैं 24 का हो चला था और मैंने पास के ही शहर के एक कॉलेज से एम.बी.ए की डिग्री हासिल कर ली थी। पर इन बीते सालों में गुड़िया के मन में मेरे लिए प्रेम बहुत बढ़ चुका था। वो सदैव मेरे साथ ही रहती थी, खाना – पीना, सोना – जागना या पढ़ना हर काम वो मेरे सानिध्य में रहकर ही करती थी। पर इन सालों में एक चीज नही बदली, मेरे बाप और उनकी बीवी का हम दोनो के प्रति बर्ताव। अब तो उनका खुद का एक बेटा और एक बेटी भी थे। दोनो का ही दाखिला मेरे बाप ने शहर के उच्चतम स्कूल में करवाया था।
जब मैंने 12वीं कक्षा उत्तीर्ण की थी तब रहीम चाचा की मदद से में एक फैक्टरी में सुपरवाइजर की नौकरी पर लग गया था। तनख्वाह भी अच्छी थी। इस बीच गुड़िया भी अपनी पढ़ाई में अव्वल ही आती रही और उसकी फीस भी माफ हो गई थी। मैं अब वो सारे पैसे उसके लिए सभी सुख – सुविधा की चीजें लाने में लगा दिया करता था। जब मैं पहली दफा उसके लिए एक ड्रेस खरीदकर लाया तब उसकी खुशी देखते ही बनती थी। अब मैं अक्सर उसके लिए नए कपड़े, मेक – अप का सामान, अच्छी – अच्छी मिठाइयां और भी पता नहीं क्या – क्या ले जाया करता था। जब वो 9वीं कक्षा में थी तब एक दिन मैं कमरे में बैठा पढ़ रहा था। तभी मुझे कमरे से ही जुड़े बाथरूम से उसके चीखने की आवाज आई। में डरकर अंदर भागा तो पाया वो कमोड पर बैठी रो रही थी। उसका लोवर उसके पैरों में था। अर्थात उसके शरीर पर मात्र एक कमीज़ थी।
मैंने उसके नजदीक जाकर उसे गले लगा लिया। और उसके सर पर हाथ फेरने लगा।
में : क्या हुआ मेरी गुड़िया। क्यों रो रहे हो आप?
गुड़िया : भईयू मे... मेरी ना सूसू में से खून आ रहा है।
में समझ गया के उसका मेंस्ट्रुअल साइकिल आरंभ हो गया था। और अचानक ही मेरी आंखों में पानी के कतरे उभर आए। कल की ही तो बात थी, जब मां उसे मुझ अबोध बालक की गोद में छोड़ गई थी। और आज वो जवानी की दहलीज पर क़दम रख चुकी थी। सचमें लड़कियां बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं। मैने उसे प्यार से चुप करवाया और इस सबकी पूरी जानकारी दी। मेरे मुंह से ये सब सुनकर वो काफी शर्मा रही थी पर वो जानती थी कि उसका भाई ही उसकी पिता था और उसकी मां भी।
बस उस दिन के बाद वो सचमें मुझसे काफी खुल सी गई। वो मुझे अपने स्कूल की, अपनी सहेलियों के साथ हुई बातें, शाम को खेल के वक्त की बातें, सब बता दिया करती थी। उसे कोई भी परेशानी होती तो बेझिझक मुझे बोला करती थी। ख़ैर, अब मैं 24 का हो गया था और वो 18 की। जिस दिन हम उसका 12वीं का नतीजा लेकर घर पहुंचे उस दिन ही हमारा जीवन एक नए मोड़ पर पहुंच गया था। हमारे घर पर गांव का सेठ बैठा हुआ था। वो एक 35 – 36 वर्ष का भद्दा सा आदमी था। उसकी शादी कई साल पहले हो गई थी फिर एक दिन सुनने में आया के गैस स्टोव फटने से उसकी बीवी की मौत हो गई। पर कहने वाले तो ये भी कहते थे के वो अपनी बीवी को अपने फायदे के लिए दूसरों के नीचे लेटा देता था और उसने ही अपनी बीवी की हत्या भी की थी। खैर, उसका एक बेटा भी था जो फिलहाल स्कूल जाया करता था। जब मैं और गुड़िया वहां पहुंचे तब जो मैने सुना वो सुनकर मेरे क्रोध की ज्वाला धधक पड़ी। वो कमीना गुड़िया का हाथ मांगने आए था अपने लिए और मेरे बाप ने सहमति भी दे दी थी क्योंकि वो मेरे बाप को कुछ जमीन दे रहा था।
मैने गुड़िया की तरफ देखा तो पाया के उसकी आंखें भीगी हुई थी, उस दिन पहली बार मैंने अपने बाप को खींच के एक थप्पड़ मारा। बस अब वहां एक पल भी रुकना मेरे ज़मीर को गवारा ना था। मैने गुड़िया का हाथ पकड़ा और अपने और उसके जरूरी कागजात लेकर वो घर छोड़कर निकल गया। मुझे नहीं पता था के मैं उसे कहां ले जा रहा था पर इतना पता था के उसे मैं दुनिया की सारी खुशियां जरूर दूंगा। खैर, मैंने मुंबई जाने का निश्चय किया और गुड़िया के साथ ही ट्रेन में बैठ गया। वो मुझे बेहद हैरत भरी नज़रों से ताकती रही। पहले उस आदमी को थप्पड़ मारना जो हमारा बाप था, उस सेठ की धुलाई करना, और फिर उसे यूं घर से ले आना। असल में मैं समझ रहा था के वो मुझपर वारी – वारी जा रही थी। खैर, यहीं से शुरू हुआ उसका और मेरा नया सफर जिसकी गवाह ये मायानगरी मुंबई बनने वाली थी।
अरे हां मैंने अपना नाम तो बताया ही नहीं। मैं – अरमान और मेरी गुड़िया – आरोही।
मेरी प्यारी बहन |
भाग – 2 [तूफान और मुश्किलें] |
Bahot bahot shukriya bhai. Agla update de diya hai. Aanand lijiye.Evil Spirit Bhai,
Bahut hi badhiya start hai bhai aap ki story ka !
Please jaldi-jaldi updates dete rahiyega
Thanks !!
bhai .... aapki lekhan shaili laajawab hai..... kahani ka har shabd dil ko chu raha hai... aapne kahani likhne ke liye shabdon ka sahi chayan kiya hai .... .. ek bhai behan ki khushi ke liye kya kar sakta hai ye aapne bahot acche tarike se likha hai ......... ..... super update bro......... emotions se bharpur
मेरी प्यारी बहन
भाग – 2 [तूफान और मुश्किलें]
मैं और आरोही मुंबई पहुंचे। वहां काई जान – पहचान तो थी नहीं। पर थोड़ी मशक्कत के बाद हमे एक कमरा किराए पर मिल गया। अब सबसे पहले मुझे कुछ काम ढूंढना था जिसकी पूरी तरकीब मेरे दिमाग में फिट थी। मैं काफी वक्त से सोच रहा था के आरोही की आगे की पढ़ाई गांव में नही हो सकती और इसीलिए मैं ये प्लान बना रहा था ताकि हम उस नर्क से निकल सकें। मैं आरोही को कुछ देर के लिए वहीं छोड़कर निकला और फिर किसीको फोन किया। ये एक बड़ी कंपनी में काम करने वाला व्यक्ति था जोकि मुंबई में रहता था। मेरी बात – चीत इसके साथ कुछ वक्त पहले शुरू हुई थी। मैंने कुछ बिजनेस प्लान तैयार किए थे जिसके बारे में हल्की सी जानकारी ही इसे दी थी। इसने भी अपने बॉस से डिस्कस किया था और उन्हें भी वो आइडियाज काफी पसंद आए थे। उसने मुझे एक एड्रेस दिया। मैं वहां पहुंचा तो पाया की वो एक बड़ी सी कंपनी थी। खैर, उसने मुझे अपने बॉस से मिलवाया और मुझे वहां नौकरी मिल गई।
बस फिर क्या था ज़िंदगी की गाड़ी पटरी पर लौटने लगी। मैंने आरोही का दाखिला वहां के एक बड़े कॉलेज में करवा दिया। नौकरी के साथ ही मैं शेयर बाज़ार में भी हाथ आज़मा रहा था। जिसमें मुझे काफी कामयाबी भी मिली। कुछ अच्छे बिज़नेस आइडियाज, मोटा पैसा और मेरे द्वारा बनाए गए कुछ प्रोग्राम्स की सहायता से मैंने खुद की एक कंपनी खोल दी। बस 3 साल में ही मेरी कम्पनी जिसका नाम मैंने “आरोही एंटरप्राइजेज” रखा था काफी अच्छे मुकाम पर पहुंच गई थी। आरोही की ग्रेजुएशन पूरी हो चुकी थी। वो मुझसे आज भी उतना ही प्यार करती थी या शायद उस से भी ज्यादा। उसने देखा था पिछले सालों में मुझे रात – दिन पागलों के जैसे काम करते हुए। रही मेरी बात, मेरी दुनिया आज भी मेरी वो नन्ही सी जान मेरी गुड़िया ही थी।
पर हमारी जिंदगी में असली तूफान आना अभी बाकी था। एक दिन आरोही को कॉलेज से आने में काफी देर हो गई। मैं उसके कॉलेज पहुंचा तो पता चला के वो तो काफी पहले निकल गई थी। में पागल हुआ यहां – वहां उसे ढूंढ रहा था तभी मेरे फोन पर एक अंजान नंबर से कॉल आया। वो आरोही ही थी!! उसने मुझे एक जगह बुलाया। जब मैं वहां पहुंचा तो मेरा दिल दहल गया। आरोही के कपड़े जगह – जगह से फटे हुए थे। उसके होंठों से खून बह रहा था। मेरी टांगें कांपने लगी थी। उस अनहोनी के डर ने मुझे घेर लिया, मेरे मन में बुरे बुरे विचार आने लगे। मैने अपने कानों पर हाथ रख लिया और धम से नीचे घुटनों पर आ गया। आरोही झट से मुझसे लिपट गई और फफक – फफक कर रोने लगी। मैने उसे खुद से चिपका लिया।
मैं : आ... आरोही क... क्या हुआ??
आरोही : भईयू... भईयू सब लोग गंदे हैं... सब लोग गंदे हैं।
काफी देर बाद वो शांत हुई और बताया के एक लड़का काफी वक्त से उसे कॉलेज में परेशान कर रहा था। आज जब वो कॉलेज से निकली तो एक गाड़ी में आए कुछ लोगों ने उसे किडनैप कर लिया और यहां ले आए। ये एक फार्म हाउस जैसी जगह थी। आरोही को मैंने मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग दिलवाई थी। उसे यहां लाकर उस लड़के ने उसके साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की पर आरोही ने उसे चित कर दिया। वो सब लोग तो पहले ही यहां से निकल गए थे, शायद किराए के गुंडे रहे होंगे।
मैं : मेरी बच्ची, बहुत बहादुर है। है ना बहादुर मेरी गुड़िया??
आरोही : हम्म्म, मैं हूं भईयू। आपकी बहादुर गुड़िया हूं मैं।
कितनी मासूम, कितनी नादान थी वो। मैंने अंदर के कमरे में जाकर उन लोगों को देखा तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। उनमें से एक एम.एल.ए का बेटा था। मेरे दिमाग में एक दम से आगे की पिक्चर सी चली। जब ये होश में आएगा तब आरोही इसके निशाने पर होगी। मैं भली – भांति जानता था के इसका बाप कितना कमीना था।
मैंने सोच लिया के अब इस लड़के का दोबारा उठना मेरी आरोही के लिए खतरा होगा। पूरा प्लान तैयार करने के बाद में आरोही के पास पहुंचा और उसे मामले से अवगत करवाया।
मैं : देख आरोही, मैं तेरे लिए कुछ भी कर सकता हूं पर में अभी मर नही सकता।
आरोही : भईयू...
मैं : नहीं आरोही सुन मेरी बात, अगर इसके बाप को पता चला तो निश्चित ही वो तुझे निशाना बनाएगा। मैं उससे लड़ सकता हूं पर इस सिस्टम से जो उसकी जेब में है। सुन आरोही अगर मुझे कुछ हो गया तो वो लोग तेरे साथ पता नही... इसलिए इस लड़के को मरना होगा!!
वो ये सुनकर दंग रह गई। फिर मैंने उसे बताया के में इसे एक हिट एंड रन का केस साबित कर दूंगा। मुझे 2 साल के करीब की सजा होगी। अब वो ये कैसे मान लेती?? पर मैने उसे अपनी कसम देकर रोक दिया। वो शुरू से ही कसम वगेरह में बहुत मानती थी। अब उसके पास कोई और रास्ता नहीं था। पर ये साफ था के जीवन में पहली बार वो मुझसे नाराज़ थी। खैर, मैने एक फुल प्रूफ प्लान बना लिया था जिसमें मैंने हमारे घर के साथ पड़ोस में रहने वाली सुनीता आंटी को भी शामिल कर लिया। उनका कोई नही था इस संसार में। उनके बच्चों और पति की एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी। वो हम दोनो को ही अपनी संतान मानती थी।
खैर, जैसा सोचा था वैसा ही हुआ। पर आरोही के लिए ये सब बेहद दुखद था। मैंने भी दिल पर पत्थर रख कर ही ये सब किया था। बस इसी तरह समय बीता और लगभग डेढ़ साल बीत गया। आरोही 24 की हो गई थी। फिर एक दिन सुनीता आंटी जेल में मुझसे मिलने आई और कहा के आरोही के लिए एक अच्छा रिश्ता देखा है। लड़का बैंक में मैनेजर है। मैंने भी ये रिश्ता करना सही समझा। क्योंकि मैं एक ऑफिशियल क्रिमिनल बन चुका था ऐसे में आगे उसके रिश्ते में दिक्कतें आ सकती थी। इसीलिए ये फैसला मुझे भी सही लगा। उसने भी शायद भारी मन से ये फैसला स्वीकार कर लिया था। बस, वो दिन भी आ गया जिस दिन उसकी शादी थी। मेरे जेल में होने की सच्चाई लड़के वालों को भी बता दी गई थी। एक मंदिर में बस परिवार जनों की मौजूदगी के बीच शादी हो रही थी। पर दिक्कत ये थी के कन्यादान कौन करेगा?
तभी, वहां एक पुलिस वैन रुकी जिसमें से में निकला। मुझे देख कर आरोही की आंखें छलक गई। मेरे हाथों में हथकड़ी थी जिसे मेरे साथ आए अधिकारी ने खोल दिया। असल में जेलर से मेरी अच्छी बन ने लगी थी। उसने सिफारिश लगाकर कुछ वक्त के लिए ये इंतजाम करवा दिया था। पिछले समय में मैंने एक बार भी आरोही को मुझसे मिलने नही आने दिया था। में नही चाहता था वो जेल का माहौल देखे। अभी मेरी दाढ़ी और मेरे बाल काफी बढ गए थे। वो एक दम से उठी और भागकर मेरे गले से लग गई। आज जैसे वो अपने दिल का सारा गुबार निकाल देना चाहती थी। खैर, मैंने ही उसका कन्यादान किया और आज मेरे शरीर से मेरा दिल अलग हो गया था। काश वो सब ना हुआ होता तो ये घटना ऐसे नही होनी थी। में अब आरोही से दूर होने वाला था। वो 2 साल मैंने खुद को यही दिलासा देते हुए काटे थे के मैं अपनी गुड़िया से मिलूंगा। पर अब क्या??
बस कुछ वक्त बाद मैं फिर से जेल की उस चार दिवारी में था। खैर, कुछ ही दिनों बाद मेरी रिहाई होनी थी। और वो दिन जल्दी ही आ गया। इत्तेफाक से उसी दिन आरोही का जन्म दिन था। उसने पहले ही हमारे पुराने घर की साफ – सफाई करवा ली थी और अपने ससुराल में बात करके कुछ दिनों के लिए वहीं रहने आ गई थी। वो सब भी उसके और मेरे प्यार से वाकिफ थे तो उन्हें क्या ही दिक्कत होती।
वर्तमान समय :
मैं अपने उसी घर के बाहर खड़ा था जहां मैंने अपनी जिंदगी के सबसे हसीन पल अपनी आरोही के साथ बिताए थे। मेरी आंखें भीगी हुई थी और मैं बार – बार अपनी कमीज़ के किनारे से उन्हें पोंछ रहा था। गुड़िया घर के दरवाजे पर आरती की थाली लिए खड़ी थी और भीगी आंखों से मुझे देख रही थी। मैं धीमे कदमों से उसके नज़दीक गया और एक टक उसकी आंखों में देखने लगा। उसने बेहद स्नेह से मेरी आरती की और वो थाली पास में ही रख दी। फिर एक झटके से वो मुझसे लिपट गई और फफक – फफक कर रोने लगी।
आरोही : भईयू हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? हम क्या कभी खुश नहीं रह सकते?
सुबकते हुए बड़ी मुश्किल से उसने ये बात बोली जिसे सुनकर मेरे सीने में भी पीड़ा बढ़ गई। मैं उसका सर सहलाते हुए उसे शांत करने की कोशिश में लगा था। जब कुछ देर बाद वो मुझसे अलग हुई तो मैंने पाया वो बदल चुकी थी। माथे पर सिंदूर, हाथ में चूड़ा और गले में मंगलसूत्र, आज पहली बार उसे मैंने सूट पहने देखा था। उसे सूट पहन ना कुछ खास पसंद नही था, वो अक्सर जींस – टॉप या कुर्ती और लेगिंग्स ही पहना करती थी। खैर, बहुत प्यारी लग रही थी आज वो।
मैं : बहुत प्यारी लग रही है मेरी गुड़िया तो।
मैने उसके गाल को सहलाते हुए कहा तो वो हल्का सा शर्मा गई। बस फिर मैं उसके साथ अन्दर गया तो पाया उसने घर को बिलकुल वैसे ही रखा था जैसे वो दो वर्ष पहले था। जब मैं सोफे पर बैठा तो वो पहले के जैसे मेरी गोद में बैठ गई और मुझसे लिपट गई। मैने भी उसे अपनी बाहों के घेरे में कस लिया। थोड़ी देर बाद मुझे महसूस हुआ के वो वैसे ही सो गई थी। मुझे उसपर बहुत ज्यादा प्यार आया। मैने उसे अपनी गोद में उठाया और कमरे में जाकर लेता दिया। फिर बिस्तर से टेक लगाकर बैठ गया और उसके मासूम से चेहरे को निहारने लगा। वो चौबीस वर्ष की हो चुकी थी, अब तो उसकी शादी भी हो गई थी पर वो नादानी अब भी उसमें महफूज थी।
ना जाने किस मोह पाश में बंधा मैं कब तक उसके चेहरे को ताकता रहा। जब उसकी नींद टूटी तो उसने मुझे मृग – तृष्णा में बंधा उसे ही निहारते पाया। अचानक ही इसके हसीन से रुखसार पर लाली आ गई। वो हल्के से मुड़ी और मेरी गोद में सर रख कर मेरी कमर के इर्द – गिर्द अपनी बाजुओं को लपेट दिया। मैंने झुक कर उसके उन फूले हुए गालों को चूम लिया और तभी ना जाने क्यों मैने उसके दाएं गाल को हल्के से अपने होंठों में भर कर चूस लिया। लगभग दस – बारह सेकंड तक मैने उसके गाल को अपने मुंह में ही भरके रखा। और जब अलग हुआ तो पाया के उसके चेहरे पर शर्म ने कब्ज़ा जमाया हुआ था।
रात के खाने के बाद हम आज कितने ही वक्त बाद एक दूसरे को गले लगाए लेटे थे। नींद तो दोनो में से किसी की भी आंखों में नही थी। काफी देर तक हम दोनों बातें करते रहे और फिर मेरी आंख लग गई। रात के किसी पहर मेरी नींद टूटी तो आरोही मेरे पास नहीं थी। मैंने हौल में जाकर देखा तो मेरी टांगें जम सी गईं। सामने सोफे पर आरोही लेटी थी और उसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। मैंने बचपन में जरूर उसे नहलाया था पर उसे पूरा नग्न मैने कभी नही देखा था। वो अपने स्तनों को दबाते हुए अपनी योनि को सहला रही थी। मुझे खुद पर शर्म आने लगी के में क्या देख रहा हूं। हो सकता है उसे हर्षित (आरोही का पति) की याद आ रही हो। में पलट गया के तभी एक आवाज ने मेरा वजूद ही हिला दिया। वो आरोही की सिसकी थी – “आह्ह्ह्ह्ह भईयू गई आपकी आरोहीईईईईईई”।
मतलब वो मेरे बारे में सोचकर ये कर रही थी। मैं पलटा और देखा के वो तेज़ – tezz सांसें ले रही थी। तभी अचानक ही वो फूट – फूट कर रोने लगी। इस हालत में में उसके पास कभी ना जाता पर उसकी आंखों में आसूं मुझे बर्दाश्त नहीं थे। में भागकर उसके पास गया। वो मुझे देख कर हैरान रह गई और अपने आप को छिपाने लगी पर अब भी उसके आंसू बह रहे थे। मेरी आंखें भी भीगना शुरू हो गईं थी। मैने उसी हालत में उसे गले लगा लिया।
मैं : बस चुप हो जा आरोही और मुझे बता क्या हुआ। बता मेरा दिल घबरा रहा है।
वो अभी भी जैसे सदमे में थी। मैने सोफे का कपड़ा उतारकर उसके शरीर पर लपेट दिया। और फिर से उसे अपनी बाहों में भर लिया।
मैं : बोल ना गुड़िया, तेरे ससुराल वाले कहीं तुझे परेशान तो नही करते?
आरोही : न... न... नहीं भईयू ऐसी कोई बात नही है।
मैं : फिर क्या बात है आरोही और ये सब क्या था, मेरा नाम लेकर तू??
आरोही ने अपनी नजरें झुका ली। मैने उसकी ठुड्डी को पकड़कर उसका चेहरा ऊपर किया और उसकी आंखों में देख कर बोला,
मैं : तूने कुछ गलत नही किया आरोही। तू तो मेरी गुड़िया है कभी कुछ गलत नही कर सकती। बता क्या था ये सब और मुझसे कबसे झिझकने लगी तू?
आरोही : वो भईयू, वो हर्षित, वो ना...
मैं : हां बोल गुड़िया, मैं हूं ना। मैं तेरी सारी परेशानी दूर कर दूंगा।
आरोही : वो भईयू हर्षित ना, उनका खड़ा नही होता।
ये बोलकर वो बहुत ज्यादा शर्मा गई। मैं भी उसकी बात का मतलब समझ गया और अब मुझे उस हर्षित पर गुस्सा आ रहा था। उसे तो पता ही होगा पहले से ही तो उसने आरोही की ज़िंदगी क्यों बर्बाद की ये शादी करके।
मैं : तू रो मत गुड़िया मैं छोडूंगा नहीं उन लोगों को। पर तू अब भी मुझसे कुछ छिपा रही है ना।
आरोही (नजरें चुराते हुए) : वो... भईयू वो हर्षित ना मुझपर हाथ भी उठाता है। वो लोग मुझे बहुत तंग करते हैं भईयू।
ये बात सुनकर मैं झटके से उससे अलग हुआ और आंखें फाड़े उसे देखने लगा। उसकी आंखें भीगी हुई थी। चेहरे पर दर्द के भाव थे और एक गुहार सी लगा रही थी वो मुझसे। मैं एक दम से जमीन पर गिर गया। मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे, आंखें अपने आप ही बहे जा रही थी। मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मैंने जिसे परियों की राजकुमारी की तरह पाला, कभी किसी तकलीफ में नही पड़ने दिया, वो आज इतने दर्द में थी और मैं उसकी तकलीफ में उसके साथ ना था। मैंने जोर से अपना सर जमीं पर दे मारा और एक चीख से निकल गई मेरे मुंह से। वो एक दम से भागकर मुझे गले लगा गई। वो कपड़ा भी उसके शरीर से गिर चुका था।
मैं : मुझे माफ करदे आरोही, प्लीज अपने इस भाई को माफ कर दे। मैं तेरी तकलीफ नहीं समझ पाया।
आरोही : नही भईयू आप तो बहुत अच्छे हो, आप माफी मत मांगो।
मैं : अब और नही गुड़िया, बस कल ही उन लोगों को में देखूंगा और अब तू वहां नही रहेगी। मैं डायवोर्स के कागज़ बनवाता हूं।
आरोही : नही भईयू अगर तलाक हुआ तो मुझसे कोई शादी नही करेगा।
मैं : चुप कर, अभी मेरे कंधों में उतनी जान है के सारी जिंदगी तुझे संभाल सकें। एक बार गलती करके देख ली, मैने सोचा था के तुझे सास – ससुर के रूप में मां – बाप मिल जायेंगे जिनका प्यार तुझे कभी नही मिला। इसीलिए तेरी शादी करवाई थी, पर मैं गलत था। अब मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगा। तू हमेशा मेरे पास रहेगी, हमेशा।
उसकी आंखों में खुशी की लहरें उठने लगी। वो मुझसे और ज्यादा चिपक गई और मेरे चेहरे को चूमने लगी। मैंने उसके चेहरे को दोनों हाथों से थामा और उसकी आंखों में देख कर शरारत भरे लहजे में बोला,
मैं : चल अब कपड़े पहन ले। छोटी बच्ची नहीं है अब तू।
वो शर्म से गढ़ी जा रही थी। वो अपने आप को समेटती हुई उठी और अपने कपड़े पहन लिए। में उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था। वो एक दम से अंदर कमरे में भाग गई। मैं भी अंदर गया और उसके साथ लेट गया। उसकी पीठ मेरी तरफ थी तो मैंने पीछे से ही उसे जकड़ सा लिया और हल्के से उसके गाल को चूम लिया। बस फिर पता नही कब मेरी आंख लग गई।