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Adultery जब तक है जान

Sanju@

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#26

भीगा मौसम, लहराते पेड़-पौधे और सामने चलती चुदाई , मेरा खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था तभी मेरी नजर उस
औरत के चेहरे पर पड़ी और मैं बुरी तरह से चौंक गया . मुझे उम्मीद नहीं थी . साली मुझे पाठ पढ़ा रही थी की ज्यादा आग लगी है तो कोई औरत ढूंढ लो और खुद खुले में चुद रही थी.जिस उत्साह से चुदाई चल रही थी लगने लगा था की अब मामला कुछ ही देर का है . पर तभी मेरे दिमाग में सवाल आया की ये आदमी कौन है क्योंकि उसने मुह पर कपडा बाँधा हुआ था .मन किया की दोनों को पकड लिया जाये रंगे हाथ पर तभी उस आदमी ने नाज को धक्का देकर खुद से परे कर दिया और तुंरत ही वहां से जाने लगा. काम होने के बाद उसने एक बार भी नाज को नहीं देखा और पल भर में ही गायब हो गया. ऐसी भी बहनचोद क्या जल्दी थी .खैर, नाज ने अपने कपड़ो को सही किया और चबूतरे से उतर कर रस्ते पर जाने को ही हुई थी की मैं दौड़ कर उसके सामने आ गया.

“देवा, देवा तुम यहाँ इस वक्त ” नाज ने थूक गटकते हुए कहा

मैं- मेरी छोड़ो तुम यहाँ क्या कर रही हो मासी

“खेतो पर गयी थी , बारिश का जोर हुआ तो रुक गयी थी इधर ” नाज ने साफ़ झूठ बोला.

“हसीन औरते झूठ बोलते समय और भी खूबसूरत लगती है ” मैंने बुदबुदाया

नाज- कुछ कहा तुमने

मैं-नहीं कुछ भी नहीं.

मैं नाज से कहना चाहता था की साली अभी कुछ देर पहले तो उचक उचक कर लंड ले रही थी और अभी देखो कितनी मासूम बन रही थी पर अगर औरत को जोर से पाया तो फिर क्या पाया. चाहता तो उसे चोद सकता था उसी समय पर उसमे मजा नहीं रहता. पर सोच जरुर लिया था की जल्दी ही नाज की चूत मारी जाएगी. बारिश में भीगते हुए हम लोग गाँव में पहुँच ही गए.

“आज तो देर बहुत हो गयी ” नाज ने अपने घर की तरफ मुड़ते हुए कहा
मैं रुक गया .

“क्या हुआ देव ”नाज बोली

“कबूतरी कच्छी जंचती है तुम पर ” मैंने नाज से कहा और उसके पैर जैसे धरती पर जम गए. मैं तुरंत अपने घर में घुस गया . घर गया तो पाया की माहोल में कुछ तल्खी सी थी माँ के चेहरे पर चिंता को पढ़ लिया मैंने

“ क्या हुआ माँ, परेशान सी लगती हो ” मैंने पुछा

माँ- किसी ने अपनी शराब फक्ट्री पर हमला किया , काफी नुक्सान हुआ है . तेरे पिताजी बाहर गए है उनको मालूम होगा तो कलेश बहुत बढ़ जायेगा देवा.वैसे ही आजकल क्रोध उनकी नाक पर रहता है मुझे बड़ी फ़िक्र हो रही है

मैं- माँ, सही हुआ है ये जिसने भी किया है . पिताजी के काले धंधे लोगो का भला नहीं करते. शराब से कितने घर बर्बाद होते है तो कभी ना कभी आंच हमारे घर तक भी आयेगी न. वैसे भी ये खून खराबा आये दिन का ही नाटक हुआ पड़ा है .

माँ- लिहाज करना भूल ही गए हो आजकल तुम

मैं- सच कहना कोई बदतमीजी भी तो नहीं ना माँ, तुमसे क्या ही छिपा है .झूठे रुतबे, झूठी शान के बोझ को कब तक धोना पड़ेगा हमें. पिताजी खुश होते है की वो बाहुबली है , इलाके में उनका सिक्का चलता है पर माँ पीठ पीछे वो ही लोग हमें गालिया बकते है . गाँव में कोई हमसे बात तक नहीं करना चाहता.

माँ- गाँव वालो के लिए इतना सब कुछ करने के बाद भी उनके मन में फरक है तो ये हमारी नहीं उनकी समस्या है

मैं- सही कहा माँ तुमने.
माँ- कायदे से तुझे चिंता होनी चाहिए थी की किसने हमारे काम पर हमला किया . हमारे लोगो को चोट आई है , अगर हमने कदम नहीं उठाया तो कल को फिर कोई ऐसी ही हिमाकत करेगा . कैसा बेटा है तू घर पर आंच आई है और तुझे परवाह ही नहीं .


“किसी की मजाल नहीं की मेरे घर की तरफ आँख उठा सके ” मैंने कहा ही था की तभी बाहर से मुनादी करने वाले की आवाज आने लगी .
“सुनो सुनो, सुनो आज रात करीब घंटे भर बाद सब लोग गाँव की चौपाल में इकठ्ठा हो जाए .पंचायत लगेगी ” मुनादी करने वाले की आवाज गली में गूंजने लगी .

मैं बाहर गया .

“पंचायत कैसे होगी, पिताजी तो गाँव में है ही नहीं. और ये पंचायत किस सिलसिले में हो रही है ” मैंने सवाल किया

“मुझे नहीं पता भाई जी, मुझे मुनीम जी ने आदेश दिया मुनादी का आप मुनीम जी से पता कर लो ” उसने कहा और आगे बढ़ गया.
आजकल गाँव में कुछ न कुछ नाटक होते ही रहते थे अब बारिश से भरे रात में पंचायत का आयोजन ऐसा क्या ही हो गया था . पर हमारी गांड के घोड़े भी चढ़ती जवानी की चाबुक से दौड़ रहे थे तो मैं मुनीम के घर पहुँच गया .


“मुनीम जी ” मैंने आवाज दी

“कौन है ” नाज ने बाहर आते हुए कहा .

“तुम इस वक्त यहाँ ”इतना ही बोल सकी क्योंकि जैसे ही हमारी नजरे मिली वो नजरे चुराने लगी. दिल तो मेरा भी धडक गया उसकी गदराई छातियो को देख कर पर फिलहाल मेरी प्रथमिकताये कुछ और थी .

“मुनीम जी कहा है मासी ” मैंने कहा

नाज- घर पर नहीं है आये नहीं अभी तक

मैं- पंचायत का आयोजन करने का आदेश दिया है उन्होंने

नाज- मुझे नहीं मालुम इस बारे में

मैं- हां, तुम्हारे तो अपने अलग ही काम है

नाज- देव मेरी बात सुनो

मैं- अभी नहीं मासी. मुझे जाना है पंचायत क्यों हो रही है मालूम करना है

नाज- मेरी बात सुनो देव.

पर नाज की बात अधूरी ही रह गयी क्योंकि तभी लगभग दौड़ते हुए बुआ वहां आ गयी और बोली- देव, तुम पंचायत में नहीं जाओगे.............

मैं- क्यों भला

बुआ- समझने की कोशिश करो देव


मैं- क्या कह रही हो बुआ, ऐसा क्या है जो मुझे नहीं जाना चाहिए वहां

बुआ- सवाल बहुत करते हो तुम , मैंने कह दिया न नहीं जाना तुम्हे तो नहीं जाना

मैं- मैं जाऊंगा जरुर जाऊंगा

बुआ- समझता क्यों नहीं तू

मैं- तो बता न

बुआ- क्योंकि................................

बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है तो ये औरत नाज थी नाज ने तो देव को झटका दे दिया लेकिन देव ने भी नाज की पैंटी का कलर बता कर नाज को झटका दे दिया
शराब की फैक्ट्री पर किसी ने हमला कर दिया है जिसके कारण देव के पिताजी गांव में नही है और गांव में पंचायत हो रही है मुनीम पंचायत का फरमान जारी करवाता है लेकिन वह भी गांव में नही है
आखिर बुआ देव को पंचायत में जाने से क्यों रोकती हैं???????
 

Raj_sharma

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देव अभी नहीं जानता वो किस खेल को खेलने वाला है
(Niyati=Foji) to jaanta hai na bhai :yes1:
 

Raj_sharma

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पिस्ता और देव उस रिश्ते की डोर मे बंध रहे है जिसकी परीक्षा बहुत होगी
Isq kabhi sasta hua hai kya bhai ji?
 

Napster

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#29

नाज के होंठ चुमते हुए मैं अपने हाथ को उसकी कमर से होते हुए उसके नितम्बो पर ले गया और कस कर उन ठोस मांस के गोलों को दबाया . बदन में उठी उत्तेजना की लहर इतनी ज्यादा थी की नाज ने अपनी चूत पर मेरे लंड की कठोरता को महसूस किया पर अगले ही पल वो मुझसे अलग हो गयी और बोली- औरत को जोर से हासिल नहीं किया जाता उसके मन को जीता जाता है देवा.

मैं- तुमने ही कहा था न कोई औरत ढूंढ लो मैंने तलाश ली

नाज- मुझे लगता है ये सब तुम्हे पिस्ता के साथ करना चाहिए

मैं- वो बस मेरी दोस्त है पर तुम्हारे साथ मैं इस रिश्ते को और आगे ले जाना चाहता हूँ

नाज- बड़ा मुश्किल सफ़र रहेगा फिर तो तुम्हारा , मैं किसी और की अमानत हूँ

मैं- अमानत में खयानत तो पेड़ के निचे हो ही रही थी

नाज- उस रात तुमने कहा था मासी तुम समझ नहीं पाओगी मैं समझा नहीं पाउँगा, आज मैं कहती हूँ तुम समझ नहीं पाओगे मैं समझा नहीं पाउंगी पर मैं परख जरुर लुंगी तुम्हारी मुझे लगेगा की तुम तैयार हो तो मैं तुम्हारी मनचाही जरुर करुँगी .

मैं - ये भी ठीक है मासी

नाज- तुम्हारा अहसान है की तुमने जबरदस्ती नहीं की , वर्ना इतना होने के बाद कोई भी मौका नहीं छोड़ता है

मैं- मौका क्या तलाशना जब तुम हो ही मेरी .

वो मुस्कुरा पड़ी मैंने उसे गले से लगा लिया. शरारत करते हुए मैंने एक बार फिर से उसकी गांड को मसल दिया , इस बार उसने पूरी आजादी दी मुझे और हम बैठक में आ गए.


“चौधरी साहब बड़े नाराज है तुमसे ” नाज ने कहा

मैं- किसे परवाह है

नाज- पिता है वो तुम्हारे

मैं- मैंने कहा न किसे परवाह है मुझे अपनी जिन्दगी जिनी है मैने सोच लिया कैसे जीनी है

नाज- और कैसे जी जाएगी ये जिन्दगी, एक बात बता दू तुम्हे , तुम जानते ही नहीं जिन्दगी क्या होती है कैसी होती है . चौधरी साहब के वजूद के बिना तुम इस काबिल भी नहीं की एक समय की रोटी खा सको . तुम्हे बुरा जरुर लगेगा पर कडवी हकीकत समझने की कोशिश करना

मैं- बात वो नहीं है मासी,मैं तंग आ गया हूँ उनके नियम कायदों से . ये मत करो वो मत करो आन बाण सान के आगे मेरी इंसानियत शर्मिंदा हो जाती है
.
मासी- आज मेरी कही बात को नहीं समझोगे तुम पर एक दिन आएगा जब तुम जान जाओगे ये दुनिया वैसी तो बिलकुल नहीं है जैसा तुमने सोचा है .

मैं- देखी जाएगी, और पिताजी भला कितना नाराज रहेंगे दो चार दिन में गुस्सा ठंडा हो ही जायेगा न फिलहाल मुझे जाना होगा और हाँ कुछ दिन मैं घर नहीं जाने वाला यही रहूँगा

नाज- तुम्हारा ही घर है पर मेरी सलाह मानो तो पिस्ता से दूर रहना कुछ दिन गाँव में तनाव है और बढ़ जायेगा.

मैं- उसी से मिलने जा रहा हूँ

“ये लड़का भी ना ” नाज ने मुस्कुराते हुए अपने माथे पर हाथ मारा और मैं बाहर गली में आ गया. पिस्ता के घर गया तो वो नहीं थी वहां पर . मैं जंगल की तरफ निकल गया . कुछ नहीं सूझा तो मैं जोगन की तरफ चला गया बेशक वो नहीं थी पर फिर भी क्यों मुझे तलब थी . मैंने दरवाजा खोला उसकी झोपडी का और बिस्तर पर औंधा पसर गया. आँख खुली तो शाम ढल रही थी , बदन में दर्द पसरा हुआ था हाथ मुह धोकर मैंने दिया जलाया और ठोड़ी देर वहीँ बैठ गया. दिल में ख्याल आया की उसी काले पत्थरों वाले घर में चला जाये पर फिर नहीं गया. वहां से चुराए पैसे अभी तक खर्च भी तो नहीं किये थे . वापसी में मुझे खेतो की तरफ पिस्ता बैठी मिल गयी.

मैं- सब कही देख आया और तू यहाँ बैठी है

पिस्ता- मन नहीं लग रहा था तो आ गयी इस तरफ

मैं-मन तो मेरा भी नहीं लग रहा था तेरे बिना

पिस्ता- लाइन मारना बंद कर

मैं- फिर बोल जरा

पिस्ता- तू कभी सीरियस होगा के नहीं

मैं- अच्छा ठीक है . क्यों परेशां है

पिस्ता- सबको लगता है की मैंने दी है तुझे

मैं- क्या दी है

पिस्ता- समझता नहीं क्या

मैं- समझा फिर

पिस्ता-चूतिये, सबको लगता है की मैंने चूत दी है तुझे

चूत सुन कर मेरे कान खड़े हो गए .

मैं- पर तूने नहीं दी . कल तेरी माँ को समझाया तो था मैंने

पिस्ता- तुझे क्या जरुरत थी क्रांति का झंडा उठाने की , क्यों गाँव के सामने पुकार रहा था की तू आशिक है मेरा.

मैं- क्या हुआ फिर, नहीं हु तो हो जाऊंगा तू अगर चाहेगी तो .

पिस्ता- तू समझता नहीं क्यों देवा

मैं- भोसड़ी वाली मैं नहीं समझता , पगली दोस्त समझा है तुझे, और दोस्ती निभानी आती है , अगर वहां पर खड़ा ना होता तो तेरी मखमली पीठ उधेड़ देनी थी मेरे बाप ने. और फिर गलती तो तेरी हैं ही , क्यों भागी थी तू घर से बहन की लोडी . एक मिनट रुक कही सच में तेरा कोई आशिक तो नहीं

पिस्ता- कोई आशिक नहीं है मेरा और घर से भागी नहीं थी मैं ,

मैं- तो कहा गयी थी फिर तू

पिस्ता- अरे वो मैं हेरोइन बनना चाहती थी तो सोचा इस गाँव में अपना कुछ होना नहीं है निकल ले बम्बई पर तेरे बाप ने सपना तोड़ दिया, धर लिया रस्ते में ही .

मैं- कमीनी, कम से कम मुझे तो बता सकती थी न बड़ी आई माधुरी बनने वाली . जानती है तेरे बिना मेरा क्या हाल हुआ था . ऐसा कोई पल नहीं बीता जब मुझे तेरी फ़िक्र न हुई हो.

पिस्ता- गलती हु माफ़ी दे यार

मैं- माफ़ी तो दे दूंगा पर ये बता देगी कब, वैसे भी गाँव में बदनामी तो हो ही गयी है तो दे ही दे.

पिस्ता के गाल गुलाबी हो गए बोली- अच्छा जी, बड़ी हसरत हो रही है लेने की . ले भी लेगा कहीं ऐसा न हो की कच्छा उतरते ही सब गीला हो जाये तेरा

मैं- वो क्यों होगा भला

पिस्ता- तूने ली है कभी किसी की पहले

मैं- तूने दी है किसी को पहले

पिस्ता- तू बनेगा पहला मेरी लेने वाला.

मैं- वो ही तो बोल रहा हूँ देगी तो ले लूँगा.

पिस्ता- तूने देखी है कैसी होती है

मैं- तू दिखा दे

पिस्ता- सची में

मैं- और नहीं तो क्या .

“ठीक हो जा पहले कही जोश जोश में और दर्द न बढ़ जाए तेरा ” हस्ते हुए बोली वो

मैं भी मुस्कुरा दिया. बहुत देर तक हम दोनों वहां बैठे बाते करते रहे और फिर गाँव में आ गये. पिस्ता खुद के घर चली गयी मैं नाज के घर आ गया. मुनीम जी बैठक में ही थे तो मैं उनके पास चला गया .

“कुछ मालूम हुआ की फक्ट्री में हमला किसने किया ” मैंने पुछा

मुनीम- नहीं, अभी कोई सुराग नहीं मिला पर जल्दी ही तलाश लेंगे हम

मैं- किसी पे शक

मुनीम- भाई जी, किसी की कोई मजाल नहीं जो चौधरी साहब की तरफ आँख उठा सके

मैं- पिताजी ऐसे काम करते ही क्यों है की ये सब हो साफ़ सुथरे धंधे क्यों नहीं करते हम

मुनीम- भाई जी, जब आप कारोबार संभालेंगे तो समझ जायेंगे

फ़िलहाल खाने का समय हो रहा है खाना खाते है फिर मुझे जाना है .

मैं- रात तो घर पर रहने की होती है न

मुनीम- कई काम रात को ही होते है


खाना खाने के बाद मुनीम चला गया रह गए मैं और मासी.
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई
मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#30

“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
 
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Tiger 786

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#30

“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
Lazwaab superb update fauji bhai💯💯💯💯💯💯
 

Rekha rani

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“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
Awesome update
Romantic update ka suspense se bhrpur end
 

Sanju@

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#27

“क्योंकि ,पंचायत में जो होगा तू सह नहीं सकेगा” बुआ ने कहा

मैं- इस घर के लोगो को अजीब बिमारी है साफ़ साफ नहीं कहनी कोई भी बात मेरे पंचायत में ना जाने से कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा जो मुझे रोकती हो

बुआ- पिस्ता मिल गयी है, उसे पकड़ कर ला रहे है उसके नसीब का फैसला आज रात होगा.


“क्या पिस्ता मिल गयी “ कहते हुए मेरे चेहरे पर जो नूर था शुक्र ये की रात थी वर्ना कोई भी देख कर दीवाना कह देता . पर अगले ही पल उस नूर की जगह डर ने ले ली.

“पिस्ता, पिस्ता को लेकर पंचायत क्यों होगी ” धडकते दिल से मैंने सवाल किया.

बुआ- बहुत भोला है तू देवा, इस घर में रह कर भी तू नहीं समझा की औरत की कोई आजादी नहीं होती यहाँ. इस गाँव में औरत पांव की जुती तो हो सकती है पर उसके आँचल को लहराने की इजाजत नहीं है . मैंने चाहत देखी है तेरी आँखों में उस लड़की के लिए इसलिए तुझे रोक रही हु.


“चाहत देखी फिर भी रोकती है बुआ ” मैंने कहा

बुआ- हाँ, इसलिए रोकती हूँ क्योंकि जमाना आशिको का कभी साथी नहीं रहा चढ़ती जवानी की रवानी में कही तुमसे ऐसी कोई गलती न हो जिसका पछतावा उम्रभर रहे क्योंकि चाहत के रोग की कभी दवा नहीं होती .

इस से पहले की मैं बुआ को कोई भी जवाब देता हमारे आगे से तीन चार गाडिया निकली और मेरा दिल कांप गया किसी अनिष्ट की आशंका से मैं गाडियों के पीछे भागा और चौपाल पर पहुँच गया. मेरे देखते देखते पिताजी के एक आदमी ने पिस्ता को गाडी से निकाल पर नीम निचे चबूतरे पर पटक दिया. दर्द से कराही वो. मैंने देखा चोट लगी थी उसे, कुरता काँधे पर से फटा था .

“पिस्ता ” दौड़ कर मैं उसके पास गया और उसे अपने आगोश में भर लिया .

“देव ” उसने हौले से कहा और मेरी बाँहों में झूल गयी . सकून, करार जो भी था उस लम्हे में बहुत था. दुआ बस ये थी की, अगर कही खुदा था तो गुजारिश थी की उस लम्हे में इस कायनात को समेट ले. दीन दुनिया को भुलाकर मैं पिस्ता को आगोश में लिए खड़ा था .न कोई होश था ना कोई ख्याल था सिर्फ वो थी और मैं था. पर कब तक

“देवा, ये क्या कर रहा है तू ” पिताजी की सख्त आवाज ने मुझे धरातल पर लाकर इतनी जोर से पटका की सच्चाई ने मेरे घुटनों को टक्कर मारी.

“तेरी जुर्रत कैसे हुई नीच जात की लड़की को छूने की ” पिताजी ने मुझे लताड़ते हुए कहा .
मैं- जुर्रत तो आपके आदमियों की भी नहीं होनी चाहिए थी इसे हाथ लगाने की , जी तो करता है की आपके इन आदमियों के हाथो को अभी तोड़ दू.

“जुबान को लगाम दे देवा, ” पिताजी बोले.

मैं- चल पिस्ता घर चल

पिताजी- कहीं नहीं जाएगी ये, जब तक की ये पंचायत फैसला नहीं कर दे, सजा तो मिलेगी इसे

मैं- किस बात का सजा

पिताजी- गाँव से भाग कर गयी थी ये , बहन-बेटियों को लिहाज में रहना चाहिए . इसे सजा जरुर मिलेगी वर्ना देखा देखी और लडकिया भी ये कदम उठाएंगी

मैं- कैसा लिहाज पिताजी, और किस ज़माने में जी रहा है ये गाँव, गाँव की छोड़ो , आप किस ज़माने में जी रहे है , किस बात का समाज जहाँ आदमी को अपनी मर्जी से जीने की आजादी नहीं है, कैसा गुरुर , कैसी आन बाण शान जो आदमी को आदमी नहीं समझती . कहने को अपना गाँव है अपने लोग है, अपने लोग है तो फिर क्यों जात-पात में बांटे हुए है अपने ही लोग . ये नीच जात की है आप ऊँची जात के . इसकी माँ रोज हमारे घर आती है हमारा कचरा साफ करती है बर्तन मांजती है उन्ही बर्तनों में हम खाना खाते है . हमारे घर में बना खाना इनके घर जाता है , होली-दिवाली इनके घर ,हमारे घर से मिठाई जाती है . सुख दुःख में आप इनके साथ खड़े रहते है तो फिर ये निचे और हम ऊँचे कैसे हुए पिताजी .

“समाज के ताने ताने से छेड़खानी करने का किसी को कोई अधिकार नहीं वैसे भी ये पंचायत इस मुद्दे पर है की घर से भागने के लिए इस लड़की को क्या सजा दी जाये ” पिताजी ने लाठी को जमीन पर मारते हुए कहा .

मैं- कोई सजा नहीं मिलेगी पिस्ता को . नहीं मानेगी वो किसी भी पंचायत के उलजलूल फैसले को

पिताजी- तुम अपनी हद पार कर रहे हो लड़के .

मैं- मुखिया को अपनी हद याद दिला रहा हूँ मैं .

“गुस्ताख ” अगले ही पल पिताजी का थप्पड़ मेरे गाल पर आ पड़ा


“देव ” चीखी पिस्ता

“पंचायत की कार्यवाही शुरू की जाये ” पिताजी ने कहा

मैं- कोई पंचायत नहीं होगी , पिस्ता अपने घर जाएगी


“”देवा, बेटा घर चल “माँ भी पंचायत में आ पहुंची थी .

“जरुर माँ घर जरुर जायेगे पर पिस्ता को लेकर ” मैंने माँ से कहा

“देवा की माँ इस से पहले की हम भूल जाये ये ना लायक हमारी औलाद है इसे ले जाओ यहाँ से ” पिताजी का गुस्सा चरम पर बढ़ने लगा था .

“मैं सजा के लिए तैयार हु चौधरी साहब ” पिस्ता ने बाप-बेटे के बीच आते हुए कहा.

“सजा ही देनी है तो दीजिये ये तमाशा किसलिए , गलती हुई मुझसे तो सजा दीजिये ” पिस्ता ने कहा

पिताजी- शर्म बेच खाई है तुम जैसी लडकियों ने अपने सुख के लिए तुम्हे जरा भी परवाह नहीं रहती की जिस घर से तुम भाग रही हो तुम्हारे बिना क्या रह जायेगा उस घर में,देख जरा तेरी माँ की आँखों में झांककर. बीते दिनों में इसकी आँखों ने मुझसे सिर्फ एक सवाल किया की कब लौटेगी इसकी बेटी. जिन हाथो ने तुझे इतना बड़ा किया तुझे शर्म नहीं आई उन्हें रुसवा करते हुए.

पिस्ता- मैंने कोई गुनाह नहीं किया

पिताजी- माँ-बाप को समाज में नीचा दिखाने से भी बड़ा कोई गुनाह है क्या

“बच्ची है वो.माफ़ कर दीजिये ” माँ ने बीच-बचाव करते हुए कहा .

“चौधरीन ,हद पार कर रही हो तुम ” पिताजी बोले

“ये पंचायत पिस्ता को कोड़े मारने का सजा देती है जब तक की इसकी पीठ से मांस न उधड जाये अभी इसी वक्त ” पिताजी ने कहा
मैं- अगर किसी ने भी पिस्ता को हाथ भी लगाया तो वो हाथ , हाथ नहीं रहेगा.

“चौधरी साहब , बच्चे है अपने ही ” माँ ने हाथ जोड़ दिए. मेरी माँ पंचायत में हाथ जोड़ रही थी मेरे लिए इस से ज्यादा शर्मिंदगी क्या ही होती .

पिताजी- ठीक है जाने दूंगा पिस्ता को पर इसे बताना होगा किसके साथ गयी थी इसका आशिक कौन है . अभी के अभी जाने दूंगा इसे.
पिताजी ने धुर्त्पना दिखा दिया था . वैसे भी जाने कैसे देता वो जब बात मूंछो की हो .

“बता लड़की कौन है तेरा आशिक किसके साथ गयी थी तू ” पिताजी ने सवाल किया.


“मेरा कोई आशिक नहीं ” चीखी वो

“झूठ बोलती है हरामजादी अगर ये आशिक का नाम नहीं बताती तो कोड़े मारो इसे ” पिताजी ने थप्पड़ मारा पिस्ता को

“दुबारा हाथ मत लगाना इसे पिताजी ” गुर्राया मैं

“तो फिर तू ही पूछ ले इससे, जिसकी इतनी तरफदारी कर रहा है किसकी साथ मुह काला कर रही थी ये, किसने इसे सलाह दी थी भागने की ” बोले वो .

मैं- आप जानना चाहते है न की कौन है इसका आशिक , मैं बताता हु , पर पहले वादा कीजिये की कोई भी पिस्ता को हाथ नहीं लगाएगा

पिताजी- ठीक है वादा

“मैं हूँ इसका आशिक . मैंने ही इसे वहां जाने को कहा था जहाँ से आप इसे लाये है ” मैंने पिताजी के सामने सफ़ेद झूठ बोला

“कहदे की ये झूठ है देवा ” पिताजी ने अपनी लाठी उठा ली

मैं- सच को सुनने की क्षमता रखिये

अगले ही पल पिताजी की लाठी मेरे बदन पर आ पड़ी .
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है पिस्ता मिल गई है
ठहर जा नजर में तू
जी भर के तुझे देख लूं !
बीत जाए ना ये पल कहीं
इन पलों को में समेट लूं !

देव की बुआ ने भी किसी से प्यार किया है जब ही उसे इस बात का एहसास है कि अगर देव पंचायत में गया तो कुछ गलत हो सकता है क्योंकि उसने देव की आंखों में पिस्ता के लिए प्यार देखा है
देव ने पिस्ता को बचाने के लिए झूठ बोला है लगता है पिस्ता की सजा अब देव को मिलने वाली है
 
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