#38
की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.
“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया
मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ
पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है
हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .
“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा
मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप
पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये
मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज
मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप
पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .
मैं- मुनीम पर किसने हमला किया
पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही
मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए
पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .
मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है
पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए
मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.
“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा
मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी
नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं
मैं- हक भी तो नही देती तुम
नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .
मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी
नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है
मैं- क्या है तुम्हारे मन में
नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .
मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.
नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर
जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .
“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .
पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते
मैं- देर हुई थोड़ी
पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये
मैं- आधी तो बाकी है सरकार.
पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो
मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .
पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है
मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे
पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ
पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .
कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.
“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा
मैं- जोश जोश में हो गया
मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .
“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .
“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.