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Adultery जब तक है जान

Abhishek Kumar98

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#३३
मेरी निगाह बुआ पर बुआ की निगाह मुझ पर पड़ी, पर नजरो से जायदा मेरा ध्यान उस नजारे पर था .अफरातफरी में बुआ को समझ नहीं आया की वो क्या करे, सलवार को ऊपर करे तो चूची ढकने से रह जाये और ऊपर संभाले तो निचे का नजारा सामने आ जाये. बड़ी ही अजीब सी उलझन हो गयी थी हम दोनों के लिए. कायदे से मुझे नजरे नीची करके वहां से चले जाना चाहिए था पर मेरे मन के चोर ने ऐसा हरगिज नहीं किया. बुआ के हुस्न का नजारा लेते हुए मैं आगे बढ़ा और बुआ को अपने आगोश में भर लिया. वो कुछ नहीं कह पायी और मैंने बुआ के प्यासे होंठो को अपने तपते लबो से जोड़ लिया.


बेशक ये नीचता पूर्ण कार्य था पर फिर भी मुझे मजा बहुत आ रहा था बुआ के लबो को चूसने में . मेरे हाथ निचे गए और बुआ की नंगी गांड को मैंने कस कर दबाया. तड़पती जवानी की उफनती हसरते लिए बुआ का गर्म बदन मेरे आगोश में मचलने लगा था . नितम्बो के कपाट को हाथो से फैलाते हुए मैंने बुआ की गांड के छेद पर ऊँगली फिराई तो बुआ के मादक बदन ने झुरझुरी ली और वो भी लाज छोड़ कर मुझे चूमने लगी. पर इस से पहले की मामला कुछ आगे बढ़ पाता मेरे हाथ बुआ की चूत के बालो पर पहुंचे ही थे की तभी बाहर से कुछ आवाजे आने लगी तो हमारे उड़ते पर एक झटके में कतर कर धरती पर आ गिरे. मैंने आँगन में नजर मारी तो पाया लहू लुहान मुनीम बहनचोद पिताजी को पुकार रहा था .

दौड़ते हुए मैंने सीढिया उतरी और आँगन में पंहुचा .

“भाई जी, भाई जी ” कमजोर आवाज में बोला मुनीम

मैं- क्या हुआ मुनीम जी

“हमला ” इतना कहते ही मुनीम मेरी बाँहों में झूल गया . बहनचोद क्या ही चुतिया किस्मत थी कुछ देर पहले इन बाँहों में बुआ का गर्म बदन झूल रहा था और अब ये चुतिया मुनीम पर सोचने वाली बात थी की इसकी ये हालत कैसे हुई तभी पिताजी भी अपने कमरे से बाहर आ गए और मामले को तुरंत ही समझते हुए बोले - देव, गाडी निकाल


कुछ ही देर में जीप शहर की तरफ दौड़ी जा रही थी . मैंने जिन्दगी में पहली बार पिताजी के चेहरे पर चिंता की लकीरों को साफ़ साफ देखा. हॉस्पिटल पहुँचते ही मुनीम को भरती करवाया और मैं कुर्सी पर बैठ गया . पिताजी डॉक्टर लोगो से गहन चर्चा में दुबे थे . मालूम हुआ की मुनीम पर कई गहरे वार किये गए थे. हाल काफी ख़राब था मुनीम का . कुछ बोतल खून की चढ़ाई गयी , इलाज के लिए पिताजी ने आसमान एक कर दिया बहुत परेशां हो गए थे वो उस रात में , और साली रात भी बहुत लम्बी हो गयी . सुबह न जाने कितने बजे थे मेरी आँखों में नींद चढ़ी थी की डॉक्टर ने आकर बताया की जान तो बच गयी है पर हालात सुधरने में समय लगेगा.

“किसने किया हमला ” मैंने पिताजी से पुछा

पिताजी- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं हम देख लेंगे इस मामले को

मैं आगे कुछ नहीं कह सका. पिताजी ने हमेशा के जैसे इस बार भी बात टाल दी पर ये साफ़ था की कोई तो दुश्मन पीछे पड़ा था . दोपहर होते होते मैं घर के लिए चल पड़ा जीप मैंने पिताजी के लिए छोड़ दी और अपने गाँव की बस पकड़ने के लिए चौराहे की तरफ चल दिया. पर आज शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था. मुझे मेरी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था सामने से पिस्ता चली आ रही थी , इस समय पिस्ता शहर में .कहीं मेरी आँखों का धोखा तो नहीं था पर नहीं वो ही थी . मैंने उसे आवाज दी , वो भी मुझे देख कर हैरान हो गयी .

“तू यहाँ क्या कर रहा है ” आँखे चढाते हुए वो बोली

मैं- तू बता तू यहाँ क्या कर रही है वो

वो- मैं तो मुसाफिर हु यारा, कभी इधर कभी उधर . खैर, मूझे न कुछ सूट लेने थे थे तो आज शहर का रुख कर लिया. तू बता

मैं- आया था किसी काम से अब तू मिल गयी करार आ गया.

पिस्ता- उफ़ तेरी ये नशीली बाते, रुक जा खसम कही यही नाडा न खोल दू मैं

मैं- कमीनी कहीं की

पिस्ता - सोमसे खायेगा

मैं- नहीं तुझे खाऊंगा

पिस्ता- मैं तो तेरी ही हु राजा , आ समोसे खाते है

उसने मेरा हाथ पकड़ा और हम सामने दूकान की तरफ बढ़ गए. समोसा खाते हुए मैंने देखा की पिस्ता की नजर सामने दिवार पर लगे पोस्टर पर पड़ी सलमान और रवीना की फिल्म लगी थी मोहिनी थिएटर में .

“देखेगी क्या फिल्म छोरी ” मैंने छेड़ा उसे

पिस्ता- रहने दे यारा, वैसे ही बदनाम हु, किसी को मालूम हुआ तो गाँव में और हवा बनेगी.

मैं- बदनाम जिसके लिए हुई उसके साथ थोड़ी और बदनाम हो ले फिर

पिस्ता- सच में

मैं- और नहीं तो क्या

पिस्ता- चल फिर , ढाई वाला शो ही देखेंगे .

मैं- जो हुकुम मेरी सरकार .

जिन्दगी में पहला अनुभव था ये सिनेमा देखने का इस से पहले गाँव में विडिओ ही देखा था पर इतने बड़े परदे पर फिलम देखने का जो मजा आया और उस मजे से जायदा मजे की बात ये की पिस्ता का हाथ थामे हुए बैठा था , मेरी नजरे रवीना की तरफ कम था और पिस्ता की तरफ जायदा

“अब यूँ भी न देख मुझे यार, की तेरे सिवा और कुछ दिखे ही न मुझे फिर ” उसने मुझे कहा
मैं बस मुस्कुरा दिया. पर हम कहाँ जानते थे की ये ख़ुशी ठोड़ी देर की ही थी . सिनेमाहाल से निकल कर हम दोनों बस पकड़ने के लिए चलते जा रहे थे की तभी मेरी नजर सामने से आती जीप पर पड़ी और सारी ख़ुशी, सारी मस्ती गांड में घुस गयी ..............
Bahut jabardast update kya mast najara tha hero ke liye but ye Munim par kisne hamla kar diya ya ye bhi Munim ki sajish hai aur wapsi me Pista bhi mil gayi jiske sath movie bhi dekh li but ab lagta hai Hero ke pitaji aa rahe hai hero ke aur ye unke samne cahte huye khud jaa raha hai
 

Abhishek Kumar98

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#३५
एक हाथ में झोला दुसरे हाथ में पिस्ता का हाथ और सामने बाप . किस्मत का चुतिया होना क्या होता है आज जान रहे थे हम.
“हाथ छोड़ ” पिस्ता ने हौले से कहा

बाप ने बड़ी गहरी नजर हम पर डाली और बस इतना ही कहा की गाडी में बैठो. रस्ते भर ख़ामोशी छाई रही . माथे पर पसीना था दिल में घबराहट मैं पिस्ता की तरफ देखू और वो मेरी तरफ . खैर, रास्ता था कट ही जाना था . घर के बाहर जैसे ही गाडी रुकी हम लोग उतरे और अपने अपने घर जाने लगे की

“रुको , हमने जाने को तो नहीं कहा ” पिताजी ने कहा

मैं जानता था की अब मुश्किल होने वाली है पिताजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले- बरखुरदार, जब बेटा बराबर का हो जाये न तो बाप को बहुत ख़ुशी होती है पर वही बेटा नालायकी करे तो उस बाप का क्या ही रसूख रहे . और तू भी सुन ले छोरी.बचपन से तू हमारे घर आती रही , मेरी तो कोई छोरी है न पर तू भी जाने की बेटी का दर्जा हमेशा ही दिया तुझे. पर तुम दोनों नालायक इस बाप का मान न रख पा रहे. मैं जानता हु चढ़ती जवानी का खून जोर मारता है पर इस जिन्दगी में तुम्हे बहुत कुछ देखना है . ये गाँव , गाँव नहीं है ये एक परिवार है , एक घर है जिसका मुखिया हु मैं और मेरे घर में ये कचरा नहीं फैलेगा जो तुम कोशिश कर रहे हो . समझते क्या हो तुम अपने आप को . ये जो फितूर फिल्मो का तुम्हारे अन्दर जोर मार रहा है न की एक हीरो एक हेरोइन होती है तुम्हे बता दू की जिदंगी बहुत अलग होती है . बहुत बेरहम , जब जीवन की तलवार तुम पर वार करेगी तो यकीन मानो कुछ नहीं बचेगा सिवाय उस दुःख के जो तुम्हारा नसीब बन जायेगा. मैं ये भी जानता हूँ की मेरी बाते तुम्हे महज बाते लगेगी क्योंकि इस उम्र में बगावत लाजमी है और पंचायत की रात के बाद कम से कम मैं तो जान गया हु की तुम दोनों मेरे लिए मुश्किल हालात खड़े करते ही रहोगे पर चौधरी फूल सिंह तुमसे कहता है की गाँव में ये कचरा नहीं फैलाने दूंगा .तुम्हारे देखा देखी गाँव में और भी बालक ये व्यभिचार करने का सोचेंगे और मैं ये कभी होने नहीं दूंगा. हाथ में हाथ लिए घूम रहे थे , तुम्हे तो चलो शर्म नहीं , पर कम से कम इस गाँव की , अपने माँ बाप की शर्म तो कर सकते हो न, आज एक बाप तुम्हे तुम्हारी बेहतरी की सलाह दे रहा है पर अगर ये बेशर्मी दोहराई गयी तो हम भूल जायेंगे की तुम हमारी औलादे हो और फिर तुम जानो और तुम्हारा नसीब.


पिताजी ने कहा और जीप लेकर अन्दर चले गये गली में रह गए हम दोनों. मैंने पिस्ता को देखा उसने मुझे देखा और ना जाने क्यों हम मुस्कुरा पड़े. बेशर्मी अपने चरम पर थी. हाथ मुह धो रहा था की पिताजी ने कहा की नाज़ मासी को बुला लाऊ . मैं उनके घर गया तो पाया की बुआ भी वही भी थी. उनको लेकर मैं घर आया तो पिताजी ने बैठक में आने को कहा.

“मुनीम की तबियत ठीक है जल्दी ही घर आ जायेगा .और हम जल्दी ही हमला करने वाले को तलाश कर लेंगे. पर चूँकि हम एक परिवार ही है तो परिवार की सुरक्षा के लिए हमने कुछ निर्णय लिए है .हमारे आदमी अब से पहरा देंगे दोनों घरो पर ” पिताजी ने कहा

मैं- पहरे वाली बात सही है पर पिताजी उस से आपके रुतबे को ठेस न पहुंचे , कही दुनिया ये न सोच ले की चौधरी साहब घबरा गए और फिर पहरेदार रहेंगे तो दुश्मन चोकन्ना हो जायेगा फिर उसे पकड़ने में दिक्कत भी हो सकती है

पिताजी ने घूर कर देखा मुझे और बोले- तो तुम क्यों नहीं लेते जिम्मेदारी .

मैं- मैं क्या करू इसमें

पिताजी- तुम चुप रहो बस . परिवार को सावधान रहना होगा. वैसे तो हम व्यवस्था कर देंगे पर फिर भी खेत-खलिहान में जाते समय सावधानी जरुरी है और तुम देव, जब तक मुनीम घर नहीं आ जाता रात को तुम नाज के घर सोओगे . उस घर की सुरक्षा तुम्हारे कंधो पर है उम्मीद है हमें निराशा नहीं होगी .

मैं - कोई दिक्कत नहीं है

पिताजी- कल तुम नाज के साथ सहर जाओगे, हॉस्पिटल .

मैंने हाँ में सर हिला दिया . कुछ देर और पिताजी हमें समझाते रहे .करने को कुछ ख़ास नहीं था तो मैं चौबारे में आ गया और बिस्तर पकड़ लिया .कुछ देर ही सोया होऊंगा की बुआ ने चाय का कप पकड़ाते हुए मुझे उठाया .काले सूट में कहर ढा रही थी बुआ . मादकता से भरपूर बुआ के हुस्न का जाम सामने हो तो चाय कौन ही पिएगा मैंने बुआ को अपनी बाँहों में भर लिया और बुआ के लाल होंठ चूसने लगा. पर बुआ ने मुझे खुद से अलग कर दिया और बोली- चाय पी ले.

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“कहा न नहीं ” बुआ ने सख्ती से कहा और निचे चली गयी मैं बुआ के ब्यवहार को समझ नहीं पाता था कभी तो खुद ही मचल जाती थी कभी बिलकूल ही शरीफ बन जाती थी . खैर मैं जोगन की तरफ चल दिया. खंडित मंदिर में दिया जलाये बैठी थी वो मैं भी उसके पास बैठ गया .

“क्या देखती रहती है तू ” मैंने सवाल किया

वो- माँ, माँ को देखती हु मैं

मैं- माँ को तो सब देखते है और ये माँ हम सब को देखती है . थोड़ी फुर्सत निकाल कर कभी मुझे भी देख ले.

जोगन- तुझे ही तो देखती हूँ .

मैं- थोडा और देख ले फिर

वो- हट बदमाश , चल चाय पिलाती हु आजा

“कुछ परेशां सा दीखता है तू ” उसने पुछा

मैं- वही पुराणी बात, बाप के मुनीम पर हमला हुआ है . ना जाने कौन दुश्मन है बाप का जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा और बाप हमें जीने नहीं दे रहा

वो- तेरा फर्ज बनता है इन हालातो में परिवार का साथ देने का

मैं- कहती तो तू सही है पर मेरा घर , घर कम चिड़ियाघर ज्यादा है . एक से एक नाटक होते रहते है वहां पर .


वो- फिर भी तुझे जिमीदारी लेनी चाहिए

मैं- तू कहती है तो मैं कोसिस करूँगा

थोडा समय और जोगन के साथ बिताने के बाद मैं वापिस मुड गया .कच्ची पगडण्डी से होते हुए मैं चले जा रहा था की ....................
Chalo acha hai Hero ke pita ne jyada kuch nahj kaha aur ab hero ko bhi sabhdaan rehna padega aise raat me ghumte huye aur Jogan ki baate maan kar ab hero bhi ghar ki jimmedari lega aur ye bua ka bhi samajh nahi aata aur ab hero Naaz ke ghar soyega tab jarur kuch ho sakta hai
 

Abhishek Kumar98

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#35

कच्ची पगडण्डी से मैं चले जा रहा था की मैंने मुनीम की गाड़ी को खड़े पाया. इसे यहाँ नहीं होना चाहिए था , पर अगर गाडी जंगल में थी तो यकीनन मुनीम के साथ जो भी हुआ इधर ही हुआ होगा. मैंने पाया की गाड़ी के दरवाजे खुले थे , सीट पर खून था जो सूख गया था . देखने से ही लग रहा था की संघर्ष गाडी के अन्दर हुआ था .यानि हमला करने वाला और मुनीम एक दुसरे से परिचित थे. अनजान आदमी को कोई क्यों ही गाड़ी के अन्दर आने देगा. कोई तो खिचड़ी जरुर पक रही थी . पर सूत्रधार कौन था ये कैसे मालुम हो. गाडी में कोई खास सामान नहीं था पर एक लिफाफे ने मेरा ध्यान जरुर खींचा. लिफाफे में एक स्टाम्प पेपर था ,जिस पर कुछ भी नहीं लिखा था सिवाय चौधरी फूल सिंह के हस्ताक्षरों के .

खैर, मैं वापिस मुड गया माँ चुदाये मुनीम ये सोचते हुवे. नाज के घर के पास ही मुझे पिस्ता मिल गयी.

मैं- क्या कर रही है खाली रस्ते पर

पिस्ता- तेरी ही राह देख रही थी .

मैं- क्यों भला.

वो- दिल जो नहीं लगता मेरा तेरे बिना, खसम . रोक नहीं पाती मैं खुद को तेरे दीदार बिना .

मैं- तो किसने रोका है सरकार यही मैं हु यही तुम हो भर ले मुझे अपने आगोश में और गांड जला दे मोहल्ले की
पिस्ता आगे बढ़ी और तुरंत ही अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ बैठी, मैंने उसे अपने से चिपका लिया और मैं अपने हाथो को उसकी गांड को सहलाने से रोक नहीं पाया. अँधेरी रात में रस्ते के बीचोबीच अपनी सरकार संग चुम्बन गुस्ताखी की हद गाँव के ईमान की चौखट पर ठोकर मारने लगी थी .

“होंठ सुजा कर मानेगा क्या ” पिस्ता ने मुझे धक्का देते हुए कहा

मैं- अभी तो ठीक से पिए भी नहीं मैंने

पिस्ता- चूतिये, होंठ है मेरे कोई रूह अह्फ्ज़ा का शरबत नहीं.

मैं- बहन की लौड़ी, इतना मत इतरा जिस दिन तेरी चूत का रस पियूँगा उस दिन नंगी ना भागी तू तो कहना.

“हाय रे बेशरम,” उसने मेरे सीने में मुक्का मारा

मैं- बता क्या कर रही थी इधर . इतना भी ना हुआ हु मैं की तू इस तरह राह देखे मेरी

पिस्ता- समझ गया तू , अरे कुछ ना, माँ नाज चाची के यहाँ गयी थी मुनीम का हाल पूछने उसे ही बुलाने जा रही थी

मैं- मैं भी वही जा रहा था आजा साथ चलते है

पिस्ता- मेरे साथ चलेगा , कितनो की गांड जलेगी

मैं- गांड जला सकती है पर मुझे नहीं देनी

पिस्ता- मैं तो कबसे हूँ तैयार, पर तू लेता ही नहीं

मैं- देखो कौन बोल रहा है . आज तक दिखाई नहीं देगी क्या ख़ाक तू

पिस्ता- देखो नया नया आशिक लेने-देने की बात कर रहा है जिसे लेनी होती है न वो देखने की बात नहीं करते . जब लेगा तो देख तो लेगा ही न


मैं- रहने दे तेरे नाटक जानता हु

पिस्ता- अच्छा जी , हमें ही देनी और हमारे ही नाटक

चुहलबाजी करते हुए हम नाज के घर आ गए. पिस्ता अन्दर चली गयी मैं हाथ-मुह धोने लगा. अन्दर जाके मैंने नाज से मेरी पीठ पर दवाई लगाने को कहा .

“मैं लगा देती हु , ” पिस्ता ने नाज से दवाई ले ली और मेरी पीठ पर लगाने लगी. मैंने पाया की नाज की नजरे मुआयना कर रही थी मेरी . खैर पिस्ता और उसकी माँ के जाने के बाद मैं बिस्तर लगा रहा था की नाज दूध ले आई.

“आजकल चर्चे हो रहे है तुम्हारे ” उसने कहा

मैं- किसलिए भला

नाज- लड़का इश्क जो करते फिर रहा है गलियों में

मैं- बढ़िया है फिर तो . वैसे भी वो इश्क ही क्या जिसमे चर्चे ना हो

नाज- आग से खेल रहे हो तुम. वैसे भी जिसके चक्करों में पड़े हो वो लड़की अच्छी नहीं

मैं- क्या अच्छा क्या बुआ मासी . तुम, मेरे मा बाप. ये गाँव- मोहल्ला ये दुनिया कोई भी नहीं समझ पायेगा ना उसे ना मुझे. हम लोग बस दोस्त है , समझते है एक दुसरे को बात करते है एकदूसरे से. इसके सिवाय कोई पाप नहीं हमारा. हाँ गलती तो हुई है , पर गलती ये नहीं की हमने एक दुसरे का साथ किया. गलती ये है की उसने एक लड़की होकर एक लड़के से दोस्ती की है वो भी समाज को जुती की नोक पर रख कर. गाँव- बसती को हमारी दोस्ती से दिक्कत नहीं है दिक्कत है की हमने समाज की शान में गुस्ताखी की है , और फिर हम अकेले ही तो गलत नहीं . ऐसी गलतिया तो गाँव में बहुत लोग कर रहे है , माना मैं गलत हूँ पिस्ता गलत है तो तुम भी तो गलत हो न मासी .


नाज- काश मैं इतनी दिलेर होती की बेशर्मी से अपनी गलतिया यु कबूल पाती .

मैं- बेशर्मी , किस बेशर्मी की बात करती हो मासी. मैं तुम्हे गलत नहीं ठहरा रहा खास कर उस बात के लिए जब मैंने तुम्हे चुदते देखा था . वो तुम्हारी जिन्दगी है और सबको अपनी जिन्दगी जीने का पूरा अधिकार है . तुम्हारी चूत किसे देनी किसे नहीं देनी ये तुम्हारी मर्जी होनी चाहिए

मैंने चूत शब्द पर कुछ ज्यादा जोर दिया इतना की नाज के गाल सुर्ख हो गए.

“ मासी के सामने सीधे बोलता है ऐसे शब्द ” नाज ने कहा

मैं- मासी है ही इतनी प्यारी की मैं सोचता हु मासी की चूत कितनी प्यारी होगी .

नाज- चुप कर जा मारूंगी नहीं तो

मैं- मार लो पर मार लेने दो

नाज मेरी इस बात पर हंस पड़ी .

“बदमाश है तू बहुत ” उसने मेरे सर पर चपत मारी और मैंने उसका हाथ पकड़ अपनी गोद में खींच लिया

“मत करो देव ” उसने हौले से कहा

मैं- इतना तो हक़ दो मुझे .

“मासी हु तेरी ” उसने कहा

मैं- तभी तो हक माँगा, कोई और होती न जाने क्या कर देता

मैंने नाज के चेहरे को अपने हाथो में लिया और उसके सुर्ख होंठो पर अपने लब चिपका दिए. कुछ देर पहले ही मैंने पिस्ता को चूमा था और एक लम्हा नहीं लगा मुझे ये समझने में की नाज में कुछ अलग ही बात थी . मेरी गोदी में बैठी नाज ने मुझे पूरी शिद्दत से आजादी दी उसके लबो को चूमने में . लिपस्टिक का हल्का स्वाद मुझे अपनी सांसो में घुलते हुए महसूस हो रहा था . मैंने नाज की मांसल जांघ को घाघरे के ऊपर से ही दबाया की उसने मेरा हाथ पकड़ लिया......................
Chalo dheere dheere baato hi baato me hero kuch aage toh badha Naaz ke sath
 

Abhishek Kumar98

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#36

“ये ठीक नहीं देव” बोली नाज

“तो फिर क्या ठीक है ,क्या मैं तुम्हे प्यार नहीं कर सकता ” मैंने कहा

नाज-प्यार नहीं है ये , हवस को प्यार का नाम कभी नहीं दिया जा सकता

मैं- तो तुम ही बताओ क्या है फिर ये , करीब आने भी देती हो और रोक भी देती हो

नाज-तुम समझते क्यों नहीं मैं किसी और की अमानत हु

मैं- उफ्फ्फ ये खोखली बाते, बेवफाई भी ईमानदारी से करती हो

नाज- मैं सिर्फ अपने हक़ की बात करती हु

नाज ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ लिए और एक गहरा चुम्बन करने लगी. नाज की लिजलिजी जीभ मेरे मुह में घूम रही थी, अपनी जांघो के बीच मैंने लंड को फूलते हुए पाया और यक़ीनन नाज ने भी अपनी चूत पर उस दबाव को महसूस कर लिया होगा तभी वो उठ गयी मेरी गोद से .

नाज- अभी इतना ही ठीक है

मैं- ठीक है तुम पर दबाव नहीं डालूँगा पर एक बार मैं तुम्हारी चूत को देखना चाहता हु,

नाज- क्या तुम पर इतना विश्वास कर सकती हु मैं

मैं- अपनी बढ़ी धडकनों से पूछ लो

कुछ क्षण नाज मुझे देखती रही और फिर उसने अपना लहंगा ऊपर उठा दिया मेरे सामने ही उसने अपनी गुलाबी कच्छी उतारी और सोफे पर टाँगे खोल बैठ गयी . उफ्फ्फ क्या नजारा था . बुआ की चूत और नाज की चूत में बहुत फर्क था , नाज के गोरे रंग पर थोड़े लम्बे काले बाल , उसकी काली चूत पर चार चाँद लगा रहे थे . मैं सोफे के निचे बैठा अपने हाथो से नाज के पैरो को विपरीत दिशाओ में खोला और जी भर के उसकी चूत को देखने लगा. नाज की चूत की फांके गाढे द्रव से भीगी हुई थी ,जैसे ही मैंने अपना चेहरा नाज की चूत के पास ले गया , मेरी गर्म सांसो ने चूत के सोये अरमानो को चिंगारी दे दी.

“देव ” नाज कसमसाते हुए बोली

“बहुत प्यारी है तेरी चूत मासी , इसकी पप्पी लेना चाहता हु मैं ”

इससे पहले की नाज कुछ कहती मेरे होंठ चूत की फांको से टकरा चुके थे .

खुरदुरी जीभ ने चूत की मुलायम खाल को छुआ तो नाज के बदन का प्रत्येक तार हिल गया. मैंने मजबूती से उसकी जांघो पर पकड़ बनाई और नाज की चूत के दाने पर जीभ रगड़ने लगा.

“देव,” नाज अपनी अधखुली आँखों से बोली और मैं चूत चूसने लगा. नाज की गांड ऊपर होने लगी थी , ऊपर निचे करते हुए चेहरे को मैं नाज की चूत को चूस रहा था , फिर मैंने अपनी जीभ चूत के अन्दर डाली और चूत की फांको को चूसने लगा. अन्दर से बहते नमकीन रस की बूंदे मेरी जीभ पर लिपट रही थी , ना जाने कब ही नाज के दोनों हाथ मेरे सर पर आ गए और उसकी सिस्करिया कमरे में गूंजने लगी.
“दांत मत गडा ” बोली वो

जिन्दगी में पहली बार चूत चूस रहा था और यकीन मानो ये एक बहुत ही शानदार अनुभव था , मेरा मन था की मैं नाज की चूत को चूसता ही रहू पर ठीक तभी नाज का बदन अकड़ा और वो सोफे पर निढाल हो गयी . हल्के से उसकी जांघ की पप्पी लेने के बाद मैंने घाघरे को निचे किया और नाज के पास ही बैठ गया . कुछ देर बाद वो उठी और बाहर चली गयी मैं भी सोने की तयारी करने लगा. सुबह मुझे नाज को लेकर हॉस्पिटल जाना था , वहां पर काफी समय लगा आते आते लघभग शाम ही हो गयी थी . नहाने के बाद मैं चोबारे में गया बुआ वहां पर ही थी.


“कैसी हो बुआ ” मैंने कहा

वो- ठीक तू बता आजकल गायब ही रहने लगा है तू तो

मैं- ऐसी तो कोई बात नहीं . तुम्हे तो मालूम ही है की आजकल घर के क्या हालात चल रहे है तो इधर उधर ज्यादा हो रहा है अभी नहाया ही हु आकर

बुआ- सो तो है, न जाने कौन दुश्मन खड़ा हो गया है उम्मीद है की ये सब जल्दी ही खत्म हो जाये

मैं- देर सबेर हो ही जायेगा

कुछ देर बाते करने के बाद बुआ निचे चली गयी . मैं गाना सुनने के लिए रेडियो चला ही रहा था की टेबल पर पड़ी डॉक्टर की पर्ची पर नजर पड़ी, बुआ डॉक्टर से दवाई ले रही थी पर क्यों . लगती तो चंगी थी . इधर बाप हमारा गांड के घोड़े खोल कर भी अपने दुश्मन का पता नहीं कर पा रहा था मुनीम के न होने से बाप के धंधे पर भी फर्क पड़ रहा था. माँ के बताये कुछ काम करने के बाद मैं गाँव की तरफ चला गया . पिस्ता से मिलने की हसरत थी पर मिली नही वो . रात को फिर से नाज के घर सोया .


अगला दिन उम्मीद से ज्यादा हैरान करने वाला था , उठा तो नाज थी नहीं, मैं घर पहुंचा तो पाया की पिताजी गौर से अख़बार पढ़ रहे थे . उन्होंने मुझे देखा और बोले- जा परमेश्वरी को बुला कर ला

मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ की बाप मुझे खुद पिस्ता के घर भेज रहा है .

“सुना नहीं क्या ” कहा उन्होंने

मैं मुड़ा ही था की माँ बोली- ये नहीं जायेगा, किसी और को भेज दो

माँ को भी अभी पंगा करना था ,

पिताजी- जा ना तू

मैं दौड़ते हुए पिस्ता के घर पहुंचा .

“काकी कहाँ है ”हांफते हुए पुछा मैंने पिस्ता से

“साँस तो ले ले पहले, कौन सी आफत आ गयी ऐसी ” उसने मेरे सीने पर हाथ रखते हुए कहा

मैं- पिताजी ने काकी को बुलाया है फ़ौरन

पिस्ता- क्यों, सब खैरियत तो है न

मैं- लग तो ठीक ही रहा था मुझे तो बस इतना कहा की काकी को बुला ला

पिस्ता- गाँव में गयी है आते ही भेजती हु

मैं अकेली है तू


पिस्ता- ना गाव मोजूद है सारे का सारा

मैंने आव देखा न ताव और पिस्ता को पकड़ लिया .

“छोड़ सुबह सुबह कौन करता है ये ” उसने कहा

मैं- माँ चुदाय दिन रात पप्पी तो लूँगा ही

पिस्ता- जबरदस्ती है क्या

मैं-हक ही मेरा

पिस्ता- हक़ हक़ कह कर मेरी गांड मार लेगा तू एक दिन , जा न दे रही पप्पी निकल यहाँ से

पिस्ता ने मुझे धक्का दिया और किवाड़ मूँद लिया

मैं- किवाड़ खोल दे नहीं

वो- जा ना

मैं- किवाड़ खोल दे छोरी

पिस्ता- चूतिये भाग जा यहाँ से.



उसने किवाड़ नहीं खोला मैं वापिस आ गया और पिताजी को बताया . नाज भी हमारे ही घर पर मोजूद थी .

“क्यों बुलाया है काकी को ” मैंने पुछा


नाज- पता नहीं

मैं चाय पिने ही लगा था की इतनी देर में काकी आ गयी उसने पिताजी के आगे हाथ जोड़े पिताजी ने उसे बैठने को कहा और मुझसे बोले- नाज के साथ खेतो पर चले जा .

बेमन से नाज के साथ मैं खेतो की तरफ चल पड़ा.
Chalo badhiya hai Naaj ki chut dekhne ke sath sath chus bhi aur ab ye Pista ki maa kyu bukai hai Chaudhary ne shayad jaldi se uski shadi karne ke liye ya es baar Pista ki maa ko Election me khada kar rahe hai aur hero ko pappi bhi nahi mili aur hero ko naaz ke sath bhej diya taki wo bhi hero ko bata na sake kya baat huyi thi
 
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Abhishek Kumar98

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#37

“काकी को क्यों बुलाया है पिताजी ने ” मैंने पुछा


नाज- फ़िक्र मत कर , ऐसा वैसा कुछ नही है जिससे तू घबराये. दरअसल सरकार ने पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी है

मैं- उसमे क्या है हर बार मुखिया पिताजी ही तो बनते है

नाज- पर इस बार नहीं,

मैं- क्यों भला

नाज- इस बार सरकार ने नियम बदले है गाँव की सरपंच इस बार कोई महिला बनेगी

मुझे तो ये सुनकर हंसी ही आ गयी.

“फिर पिताजी की आन बाण शान की तो ऐसी तैसी हो गयी . जिस गाव में औरत अपनी मर्जी से घर से बाहर ना जा सके वहां की सरपंच औरत बनेगी . मजेदार बहुत होगा इलेक्शन फिर ” मैंने कहा

नाज- समस्या ये नहीं की औरत बनेगी दिक्कत ये है की वो औरत कोई छोटी जात की होनी चाहिए

मैं- ओह, तो अब समझा पिस्ता की माँ को क्यों बुलाया गया है . बाप हमारा काकी के कंधे पर बन्दूक रख कर मुखिया बना रहेगा .

नाज- राजनीती समझने लगे हो

मैं- वैसे काकी की जगह पिस्ता का पर्चा क्यों नहीं भरवा देते कसम से तगड़ा तमाशा हो जायेगा

नाज- दिन रात तुम्हारे ऊपर उस लड़की का ही खुमार रहता है, बस बहाना चाहिए तुम्हे उसका जिक्र करने का .देखो कैसे नूर आ गया है चेहरे पर


बाते करते हुए हम खेतो पर आ गए थे .

नाज- मेरी मदद करो घास काटने में

मैं - घास चाहे जितना कटवा लो पर बदले में क्या मिलेगा मुझे

नाज- क्या चाहिए

मैं- पप्पी

नाज- ठीक है

मैं- होठो वाली नहीं चूत वाली

नाज - तू नहीं सुधरने वाला अभी बताती हूँ तुझे

मैं खेत पर रुका नहीं जंगल में भाग गया . जोगन की झोपडी बंद थी कुछ देर खंडित मंदिर में रहा , मन नहीं लगा तो जंगल में भटकने लगा और एक बार फिर से उस काले पत्थरों वाले मकान में पहुँच गया , जैसा मैं छोड़ के गया था वैसा ही पाया.

“तुम्हारी क्या कहानी है कुछ तो बताओ अपने बारे में ” दीवारों से बाते करते हुए मैंने दरवाजा खोला और अंदर गया. लगता था मेरे सिवा यहाँ और कोइ नहीं आता था . जिन्दगी में चलते तमाम चुतियापो में से एक चुतियापा ये भी था इस घर में अलमारी भरी पैसो की पर कोई खर्चने वाला नहीं . हाल वैसा ही जैसा मैं छोड़ के गया था . किसी की आमद नहीं ऐसी भी भला क्या ख़ामोशी की दीवारों के पीछे के शोर को कोई सुन ही न पाए.जंगल के इस हिस्से में जहाँ आदमी तो दूर जानवर तक नहीं आते वहां पर किसका ठिकाना था ये घर. मैंने बहुत कोशिश की पर बर्तन, बिस्तर और अलमारी ने कोई सुराग नहीं दिया मुझे .


हलकी हलकी बारिश होने लगी थी तभी मुझे ध्यान आया की नाज को मैं अकेला छोड़ आया जबकि उसकी सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी थी , अपने आप को कोसते हुए मैं बारिश में ही भागा खेतो की तरफ और वहां पंहुचा तो पाया की नाज वहां पर नहीं थी , घास की पोटली वही पड़ी थी . मेरे माथे में बल पड़ गये. दौड़ते हुए , बारिश में भीगते हुए मैं सीधा नाज के घर पहुंचा पर वो वहां भी नहीं थी, दिल घबराने लगा. गाँव भर में तलाश लिया पर नाज कोई किसी ने नहीं देखा था .

पिताजी को भी नहीं बता सकता था वो मुझ पर ही बिल फाड़ते. हार कर वापिस खेतो पर पहुँच गया पर नहीं मिली वो .जितना मैं कर सकता था सारा ध्यान लगा लिया पर नाज न जाने कहाँ गायब थी , हार कर मैं जंगल में फिर से गया और उसी पीपल के निचे चबूतरे पर मुझे नाज बैठी मिली.

“मासी,हद करती हो ” मैंने कहा पर उसने सुना नहीं . वो गहरी सोच में डूबी थी . इतना की जब तक कंधे पकड़ कर मैंने उसे हिलाया नहीं ख्यालो से बाहर नहीं आई वो .

“तू कब आया देवा,” बोली वो

मैं- मेरी छोड़ ये बता कब से बैठी हो यहाँ, सब कहीं तलाश लिया और तुम हो की

नाज- अभी तो आई

मैं---- अभी, सांझ ढल आई है मासी और एक मिनट ये आँखे तुम्हारी, रोई हो क्या तुम मास्सी

नाज- नहीं तो , भला मैं क्यों रोने लगी , मौसम ऐसा है न शायद आँखों में कुछ चला गया होगा.

मैं- झूठी .तुम झूठ बोल रही हो चलो बात बताओ क्या हुआ

नाज- कोई बात नहीं और इधर तो मैं आती जाती ही रहती हूँ

मैं- तो फिर इतनी गहराई से किसके ख्यालो में खोयी हो की ये भी ध्यान ना रहा की सुबह से शाम हो गयी .

“चल घर चलते है देर हो रही है ” नाज ने बात को घुमा दी.

पुरे रस्ते उसने मुझसे कोई बात नहीं की . बारिश में चौपाल के चबूतरे पर मैं सोच में डूबा था की मैंने छतरी लिए पिस्ता को आते देखा

“यहाँ क्या कर रहा है ” उसने कहा

मैं- सोच रहा था कुछ


पिस्ता- क्या सोच रहा था

मैं- यही की तू आएगी मुझसे मिलने बारिश में

पिस्ता- देख ले तेरा कितना ख्याल है आ गयी मैं


मैं- कितनी फ़िक्र करती है ना मेरी तू

पिस्ता- सो तो है

मैं- तभी तो किवाड़ बंद कर लिया था


पिस्ता- कुछ बाते अभी नहीं समझेगा तू , छोड़ बनिए से बेसन लाइ हु पकोड़े बनाउंगी आजा

मैं- आ तो जाऊ पर तेरी माँ होगी घर पर

पिस्ता- जिनको मिलना होता है वो मिल ही लेते है

मैं- ये बात है तो फिर तैयार रहना आज की रात तेरी बाँहों में ही गुजरेगी

पिस्ता- देखते है

कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा दरअसल उसे नहीं उसकी लचकती गांड को .आज की रात पिस्ता की चूत मार ही लेनी थी सोचते हुए मैं वापिस मुड कर जा ही रहा था की ........................
Ye Naaz kaha gayab ho gayi thi aur ye roi kyu kya ye bhi kisi se pyar karti thi aur aaj dekhte hai hero sirf Pakode khakar aa jayega ya chut bhi kha payega Pista ki
 

Abhishek Kumar98

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#38

की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
Chaudhary bhi emotional aadmi hai aur bas apne bete aur apni family surkshit rakhna chahta hai bahut baate hai jo wo apne bete se karna chahta hai but apni akad aur ghamand ki wajah se nahi kar pata aur ab Naaz ko chakma dekar aa hi gaya Pista ke paas usi mithai muh se toh chakh ki ab lund chakhaana Pista ki chut ko dekhte hai hero ko uski pehli chut mil paati hai ya nahi
 
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सोहबत का प्रभाव पड़ता ही है । यह पिस्ता के संग का , उसके सोहबत का ही असर था कि देव साहब एक बेलगाम सांड़ के चरित्र मे ढल गए ।
नाज के साथ थोड़ा-बहुत सेक्सुअली फाॅरप्ले करने का मौका प्राप्त हुआ वहीं बुआ जी के साथ भी थोड़ा-बहुत करीब आने का सुअवसर हासिल हुआ ।
पिस्ता मैडम की बात क्या करें ! वह तो पुरी तरह हासिल हो गई ।
इसे ही कहते हैं जब जब जो होना होता है वह अवश्य होता है ।
लेकिन इस नसीब के चक्कर मे उन्हे यह नही भूलना चाहिए कि उनके गांव मे , उनके करीबी लोगों मे , यहां तक कि उनके खुद के घर मे भी बहुत कुछ अप्रत्याशित सी हरकतें हो रही है । और वह इन सब से बेखबर है ।
उनके पुज्य पिताश्री , उनकी डार्लिंग बुआ जी , मुनीम जी , नाज मैडम और जंगल के बीचोंबीच निवास करने वाली बंजारन मैडम सभी लोग कुछ न कुछ रहस्य धारण किए हुए हैं ।

आउटस्टैंडिंग अपडेट फौजी भाई ।
 

Tiger 786

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#38

की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.
Mind-blowing update
 

Ajju Landwalia

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#38

की मैंने देखा पिताजी पैदल ही मेरी तरफ आ रहे थे. उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा.

“रस्ते के बीच क्यों खड़े हो बरखुरदार ” पिताजी ने सवाल किया

मैं- मन नहीं लग रहा था सोचा कुछ देर चौपाल में बैठ जाऊ

पिताजी- हम भी वही जा रहे थे आओ साथ में चलते है

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गये .

“ये नीम तुम्हारे परदादा ने लगाया था , बचपन में इसकी छाँव में खूब खेले है , हमारे बचपन का साथी अक्सर अपने मन की कही है इससे हमने ” पिताजी ने कहा


मैं- आज मन की कौन सी बात करने आये है आप


पिताजी- मन में कुछ रहा ही नहीं अब तो . जीवन की भागदौड़ में उलझे है इस कद्र की क्या कहे क्या बताये

मैंने सोचा बाप ने दो पेग तो नहीं लगा लिए आज

मै- मैंने सुना की परमेश्वरी काकी को सरपंच बना रहे है आप


पिताजी- आजकल खबरे बहुत तेजी से फ़ैल जाती है , हाँ तुमने ठीक ही सुना है .

मैं- मुनीम पर किसने हमला किया

पिताजी- मालूम हो जायेगा जल्दी ही

मैं- ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ की कोई हमसे दुश्मनी निभाए

पिताजी- वक्त बदलता है बरखुरदार, जैसे जैसे धंधा फ़ैल रहा है लोगो में जलन बढती है तरक्की देख कर .

मैं- और इस तरक्की की कीमत क्या है


पिताजी- कीमतो का मोल इस बात पर निर्भर करता है की वो कैसे चुकाई जाती है . दुनिया में बहुत कुछ है जो धन से परे है. फिलहाल हमें लगता है की तुम्हे सोना चाहिए, जवान लोगो को भरपूर नींद लेनी चाहिए

मैं वहां से उठा और चल दिया पर मुझे जाना तो पिस्ता के घर था , नाज के घर पहुंचा और सोचने लगा की कब पिताजी वापिस जाये और कब मैं मौका देख कर पिस्ता के पास पहुँच जाऊ.

“जवान लडको को देर रात तक घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए ” उसने कहा


मैं- क्या करू, तुम्हे देखते ही नियत बेईमान हो जाती है मेरी

नाज- बेईमानी ज्यादा दिन चलती नहीं

मैं- हक भी तो नही देती तुम

नाज- हक, इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं होती .

मैं- जोर से तुम्हे पा लिया तो फिर तुम ही उलाहना दोगी

नाज- मेरी एक नसीहत है तुम्हे , औरत को कभी भी हासिल नहीं किया जाता, न औरत को पाया जाता है .कोई भी औरत् हो वो तुम्हारे प्रति समर्पित हो सकती है बशर्ते उसके मन में तुम्हारे लिए जगह हो . औरत अगर मन से किसी का हाथ थाम ले तो फिर संसार में कोई जुदा नहीं कर सकता पर अफ़सोस की बहुत से आशिक औरत के तन से आगे बढ़ ही नहीं पाए. लोग कभी समझ नहीं पाए की औरत के मन में क्या है


मैं- क्या है तुम्हारे मन में

नाज- फिलहाल तो मेरी आखो में नींद है . कल सुबह मुझे हॉस्पिटल जाना है तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो .

मैं- तुम्हारे साथ सोना ही तो चाहता हु मैं.

नाज- क्या पता किसी दिन तुम्हारे जीवन में वो घडी आ जाये जब मैं मेहरबान हो जाऊ तुम पर


जाब मैंने अच्छे से परख लिया की नाज सो चुकी है तो मैं पिस्ता के घर पहुँच गया . दरवाजा खुला छोड़ रखा था मरजानी ने .

“सो गयी क्या ” मैंने आवाज दी .

पिस्ता- आ गया तू, कब से जागी हु तेरे वास्ते

मैं- देर हुई थोड़ी

पिस्ता- देर, रात आधी बीती चूतिये

मैं- आधी तो बाकी है सरकार.

पिस्ता- बाकी भी बीत ही जाएगी कुछ नहीं करेगा तो


मैंने जोश जोश में पिस्ता को पकड़ लिया और वो मेरी बाँहों में समा गयी. उसके बदन की गर्मी उसके कपड़ो को जलाने ही तो लगी थी . कसम से राहत बहुत थी उसकी बाँहों में . मैंने उसके गालो पर किस की और उंगलिया उसके होंठो पर फिराने लगा. पिस्ता ने अपने लब मेरे लबो से लगाये और हम किस करने लगे. मेरे हाथ सलवार के ऊपर से ही उसके नितम्बो को दबाने लगे. जब तक की सांसे अटकने नहीं लगी हम चूमाचाटी करते रहे . फिर मैंने पिस्ता को नंगी करना शुरू किया .

पिस्ता- बहुत उतावला हो रहा है

मैं- अब नही रुका जाएगा जल्दी से तेरी चूत देखनी है मुझे


पिस्ता- हाँ रे , कही मर ना जाए तू कच्छी उतार रही हूँ

पिस्ता बेहद ही गोरी थी पर उसकी चूत काले बालो से ढकी थी , ब्राउन रंग की चूत की फांको ने मेरा मन ही तो मोह लिया. बेहद ही मुलायम झांट के बालो को सहलाते हुए मैंने चूत को छुआ तो पिस्ता की टाँगे कांपने लगी . जैसे ही मैंने ऊँगली चूत में सरकाई पिस्ता ने मेरे कंधे पर अपने दांत गडा दिए ,कुलहो को मसलते हुए मेरे दुसरे हाथ की उंगलिया उसके गुदा को रगड़ने लगी थी , बदन में गरमी बढ़ने लगी थी मैं खुद भी नंगा हो गया और जल्दी ही हम दोनों पलंग पर लेटे हुए थे .


कुछ देर होंठ चूसने के बाद मैंने पिस्ता की चूची को मुह में भर लिया और उसे चूसते हुए चूत में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा. पिस्ता के हाथ में मेरा लंड था जिसे उसकी नर्म उंगलिया सहला रही थी . इतना आनंद पहले कभी मिला नहीं था.

“कहा ना दांत मत लगा दर्द होता है ” पिस्ता ने थोडा गुस्से से कहा

मैं- जोश जोश में हो गया

मुझे भी चूत लेने की जल्दी थी मैंने उसकी जांघो को खोला उफ्फ्फ बनाने वाले ने ये साला कैसा छेद बनाया की दुनिया ही इसकी दीवानी हो गयी. मैंने पिस्ता की तपती चूत पर अपने होंठ लगा दिए. वो बस तडप कर रह गयी क्योंकि अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे .


“देव, कमीने ये करना भी जानता है तू ” उसने अपने कुल्हे उपर उठाते हुए कहा. जीभ बार बार चूत के दाने से रगड़ खाती और पिस्ता की मादक आये जोर से कमरे में गूंजती . पर तभी उसने मुझे दूर कर दिया .

“इसे ही नहीं झड़ना चाहती, आजा देर ना कर चोद जल्दी से ” उसने इतने मादक अंदाज में कहा की मैं वैसे ही पिघल गया.

Behad shandar update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Aakhirkar pista aur dev ka milan hone wala he.........................

Lekin jis tarah ki kismat he apne hero dev ki.................lagta to nahi ye sab itni aasani se ho jayega............

Keep rocking Bro
 
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