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Adultery जब तक है जान

Ek anjaan humsafar

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#44

कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए आपाधापी में , पिस्ता की माँ ने परचा भर दिया था चुनाव की तैयारी हो रही थी . पिस्ता से मिलने का मौका कम ही लग रहा था ,नाज भी चुप चुप सी रहती थी . पिताजी ने गाडी में बम वाली बात का जिक्र तक नहीं किया था मुझसे अभी तक. समझ से बहार था सब कुछ , ऐसे ही एक दोपहर मैं जोगन संग जोहड़ के पानी में पैर डाले बैठा था .

“कम से कम तू तो कुछ बोल, सबकी तरह तेरे चेहरे पर भी नूर गायब सा है ” मैंने कहा


जोगन- ऐसी तो कोई बात नहीं

मैं- मुझसे नहीं छुपा सकती तू .कोई तो परेशानी है तुझे


जोगन- पिछले कुछ दिनों से अजीब सी कशमकश में उलझी हु.एक तरफ ये जिंदगानी है जो विरासत में मिली है एक तरफ वो राह है जो मुझे घर ले जाती है .

मैं- कितनी बार कहा है तुझसे इतना मत सोच, चल घर चल . पर तू सुनती कहा है मेरी.

जोगन- तेरी ही तो सुनती हु.

मैं- तो फिर क्यों छुपाती है मुझसे


जोगन- न जाने तुझे ऐसा क्यों लगता है .

मैं- मुझे अच्छा नहीं लगता तू यहाँ बियाबान में अकेली रहती है .कितनी बार कहा है गाँव में रह ले पर तू सुनती नहीं


जोगन- मना कहा किया, कहा तो तुझसे जब मन होगा कह दूंगी घर के लिए

मैं - चल छोड़ इन बातो को . कुछ नयी बात कर

जोगन- नयी बाते तो तू ही बता, चुनावो में क्या चल रहा है

मैं- क्या ख़ाक चल रहा है , तुझे बताया तो सही पिताजी ने इस बार काकी को सरपंची में उतारा है जीत जाएगी आराम से बल्कि यु कहूँ की जीती पड़ी है

जोगन- कहने को तो चुनाव का मतलब कुछ और होता है पर असल जीवन में वोट की कोई कद्र ही नहीं , गाँव का दबंग जिसे चाहे कठपुतली बना कर नचा सकता है


मैं- कहती तो तू सही है ,पर ये बाते महज बाते है असल जीवन में कोई क्रांति का झंडा नहीं उठाता

जोगन- यही तो बात है गुलामी,नसों में भरी पड़ी है

“लोग चाहते ही नहीं अपने हक़ की आवाज उठाना ” मैंने कहा


जोगन- पर तू तो हक़ की बात करता है

मैं- हक़ की बात,जानती है कभी कभी सोचता हूँ मैं और तू एक ही है. तू दुनिया से बेगानी मैं घर से बेगाना .लगता है तेरा मेरा नाता है कोई जो एक सी बात करते है


जोगन- नाता तो है

मैं मुस्कुरा दिया.उसकी आँखों में देखना एक अलग ही तरह का सकून था . दिन पर दिन बीत रहे थे ,चुनाव नजदीक आ चूका था . पर किसे परवाह थी ,मैं और पिस्ता जब देखो चुदाई में लगे रहते है जंगल में, खेतो में हमने हद से जायदा चुदाई कर डाली थी .पिस्ता का जोबन बहुत गदरा गया था . हम दोनों के परिवारों को इस बात से बहुत नफरत थी पर वो लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे . कम से कम मैं तो ऐसा ही समझता था . जब तक की उस दोपहर पिस्ता के घर दो चार गाडिया आकर खड़ी नहीं हो गयी.

“अरे देवा, तू तैयार नहीं हुआ अभी तक ” नाज ने मुझसे कहा

मैं- किसलिए

“तुझे नहीं पता क्या ” नाज बोली

मैं- क्या नहीं पता

नाज- आज तेरी रांड की सगाई है

नाज ने मुझ पर हँसते हुए ताना मारा .

“रांड तो तुम भी हो मासी ” मैंने कहा और पिस्ता के घर की तरफ दौड़ पड़ा. दरवाजे पर ही मुझे पिस्ता मिल गयी. काले सूट में साली क्या ही जोर की लग रही थी .

“क्या हो रहा है ये पिस्ता ” मैंने कहा


पिस्ता- देव, मुझे खुद नहीं पता .थोड़ी देर पहले ही मुझे बताया गया की रिश्ते वाले आने वाले है .

मैं कुछ कहता की तभी पीछे पीछे नाज भी आ पहुंची थी .

“किसी भी तरह का तमाशा करने की जरूरत नहीं है मेहमानों के सामने . रिश्ता तुम्हारे पिताजी करवा रहे है ” नाज ने कहा


न चाहते हुए भी मैं अन्दर चला गया. मालूम हुआ की पिस्ता के रिश्ते की बात पिताजी ने ही चलवाई थी . बहुत ही बड़े लोग थे वो राजनीती में नाम था , जिस लड़के से पिस्ता की शादी होनी थी वो भी आगे जाकर विधायक बनने वाला था .

“देव, वहां क्यों खड़े हो . यहाँ आकर बैठो .नए रिश्तेदारों से मिलो .कुछ नाश्ता पानी करो ” पिताजी ने मुझे कहा


मुस्कुराते हुए मैंने दो टुकड़े बर्फी उठा ली और चाय के साथ खाने लगा. मैंने महसूस किया की नाज की नजरे मुझ पर ही जमी पड़ी थी . बातो बातो में मेरा परिचय पड़ोसी गाँव के लाला हरदयाल से करवाया गया जो पिताजी और पिस्ता के होने वाले ससुराल वालो के बीच में था, कहने का मतलब इस रिश्ते का असली बिचोलिया .

“देव कभी आओं हमारे गरीबखाने पर भी ” लाला ने कहा


मैं- मैं जरुर आऊंगा लाला जी नियति मुझे जरुर मौका देगी आपका मेहमान बनने का

लाला कुछ और कहता उस से पहले ही पिस्ता आ गयी रोके की रस्म के लिए . साली को इतनी खूबसूरत तो पहले कभी नहीं देखा था .उस एक लम्हे में मैंने कायनात को देखा ,दिल को धड़कते हुए महसूस किया.मैंने इश्क किया. जब पिस्ता को रोके में मांग टीका दिया गया तो मेरी आँखों से दो आंसू निकल कर गिर गए. उस दिन मैंने इतना तो जाना की नमक की इन बूंदों का कोई वजूद नहीं होता. दिल में बसाकर उस प्यारी सी सूरत को मैं नाज के घर आया .कुछ बोझ सा लग रहा था ,थोडा पानी पिया और चादर ओढ़ ली.

“उठ रे देवा, कितना सोयेगा ” ये आवाज मेरी माँ की थी .

माँ- उठ तो सही


मैं- तबियत थोड़ी नासाज सी है मा सोने दो

माँ- उठ तो सही कुछ बात करनी है तुझसे

मैं-मुझे भी बात करनी है अभी करनी है . क्या जरुरत थी पिताजी को पिस्ता का रिश्ता करवाने की


माँ- तो क्या करते, तुम लोगो ने तो शर्म लिहाज बेच खाई थी . शुक्र मना रिश्ता ही करवाया ये तो मैं बीच में हु वर्ना ना जाने क्या क्या हो सकता था . गाँव में परिवार की इज्जत का जो फलूदा तुम दोनों ने किया है ये तो कुछ भी नहीं है . और तू तो गर्व कर तेरी दोस्त का रिश्ता इतने बड़े घर में हुआ है .

“रिश्ता ही तो हुआ है मा. .”..............................
Shaandaar update dear bro, thank you. Waiting eagerly for your next awesome update, dear bro.
 

Luckyloda

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कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए आपाधापी में , पिस्ता की माँ ने परचा भर दिया था चुनाव की तैयारी हो रही थी . पिस्ता से मिलने का मौका कम ही लग रहा था ,नाज भी चुप चुप सी रहती थी . पिताजी ने गाडी में बम वाली बात का जिक्र तक नहीं किया था मुझसे अभी तक. समझ से बहार था सब कुछ , ऐसे ही एक दोपहर मैं जोगन संग जोहड़ के पानी में पैर डाले बैठा था .

“कम से कम तू तो कुछ बोल, सबकी तरह तेरे चेहरे पर भी नूर गायब सा है ” मैंने कहा


जोगन- ऐसी तो कोई बात नहीं

मैं- मुझसे नहीं छुपा सकती तू .कोई तो परेशानी है तुझे


जोगन- पिछले कुछ दिनों से अजीब सी कशमकश में उलझी हु.एक तरफ ये जिंदगानी है जो विरासत में मिली है एक तरफ वो राह है जो मुझे घर ले जाती है .

मैं- कितनी बार कहा है तुझसे इतना मत सोच, चल घर चल . पर तू सुनती कहा है मेरी.

जोगन- तेरी ही तो सुनती हु.

मैं- तो फिर क्यों छुपाती है मुझसे


जोगन- न जाने तुझे ऐसा क्यों लगता है .

मैं- मुझे अच्छा नहीं लगता तू यहाँ बियाबान में अकेली रहती है .कितनी बार कहा है गाँव में रह ले पर तू सुनती नहीं


जोगन- मना कहा किया, कहा तो तुझसे जब मन होगा कह दूंगी घर के लिए

मैं - चल छोड़ इन बातो को . कुछ नयी बात कर

जोगन- नयी बाते तो तू ही बता, चुनावो में क्या चल रहा है

मैं- क्या ख़ाक चल रहा है , तुझे बताया तो सही पिताजी ने इस बार काकी को सरपंची में उतारा है जीत जाएगी आराम से बल्कि यु कहूँ की जीती पड़ी है

जोगन- कहने को तो चुनाव का मतलब कुछ और होता है पर असल जीवन में वोट की कोई कद्र ही नहीं , गाँव का दबंग जिसे चाहे कठपुतली बना कर नचा सकता है


मैं- कहती तो तू सही है ,पर ये बाते महज बाते है असल जीवन में कोई क्रांति का झंडा नहीं उठाता

जोगन- यही तो बात है गुलामी,नसों में भरी पड़ी है

“लोग चाहते ही नहीं अपने हक़ की आवाज उठाना ” मैंने कहा


जोगन- पर तू तो हक़ की बात करता है

मैं- हक़ की बात,जानती है कभी कभी सोचता हूँ मैं और तू एक ही है. तू दुनिया से बेगानी मैं घर से बेगाना .लगता है तेरा मेरा नाता है कोई जो एक सी बात करते है


जोगन- नाता तो है

मैं मुस्कुरा दिया.उसकी आँखों में देखना एक अलग ही तरह का सकून था . दिन पर दिन बीत रहे थे ,चुनाव नजदीक आ चूका था . पर किसे परवाह थी ,मैं और पिस्ता जब देखो चुदाई में लगे रहते है जंगल में, खेतो में हमने हद से जायदा चुदाई कर डाली थी .पिस्ता का जोबन बहुत गदरा गया था . हम दोनों के परिवारों को इस बात से बहुत नफरत थी पर वो लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे . कम से कम मैं तो ऐसा ही समझता था . जब तक की उस दोपहर पिस्ता के घर दो चार गाडिया आकर खड़ी नहीं हो गयी.

“अरे देवा, तू तैयार नहीं हुआ अभी तक ” नाज ने मुझसे कहा

मैं- किसलिए

“तुझे नहीं पता क्या ” नाज बोली

मैं- क्या नहीं पता

नाज- आज तेरी रांड की सगाई है

नाज ने मुझ पर हँसते हुए ताना मारा .

“रांड तो तुम भी हो मासी ” मैंने कहा और पिस्ता के घर की तरफ दौड़ पड़ा. दरवाजे पर ही मुझे पिस्ता मिल गयी. काले सूट में साली क्या ही जोर की लग रही थी .

“क्या हो रहा है ये पिस्ता ” मैंने कहा


पिस्ता- देव, मुझे खुद नहीं पता .थोड़ी देर पहले ही मुझे बताया गया की रिश्ते वाले आने वाले है .

मैं कुछ कहता की तभी पीछे पीछे नाज भी आ पहुंची थी .

“किसी भी तरह का तमाशा करने की जरूरत नहीं है मेहमानों के सामने . रिश्ता तुम्हारे पिताजी करवा रहे है ” नाज ने कहा


न चाहते हुए भी मैं अन्दर चला गया. मालूम हुआ की पिस्ता के रिश्ते की बात पिताजी ने ही चलवाई थी . बहुत ही बड़े लोग थे वो राजनीती में नाम था , जिस लड़के से पिस्ता की शादी होनी थी वो भी आगे जाकर विधायक बनने वाला था .

“देव, वहां क्यों खड़े हो . यहाँ आकर बैठो .नए रिश्तेदारों से मिलो .कुछ नाश्ता पानी करो ” पिताजी ने मुझे कहा


मुस्कुराते हुए मैंने दो टुकड़े बर्फी उठा ली और चाय के साथ खाने लगा. मैंने महसूस किया की नाज की नजरे मुझ पर ही जमी पड़ी थी . बातो बातो में मेरा परिचय पड़ोसी गाँव के लाला हरदयाल से करवाया गया जो पिताजी और पिस्ता के होने वाले ससुराल वालो के बीच में था, कहने का मतलब इस रिश्ते का असली बिचोलिया .

“देव कभी आओं हमारे गरीबखाने पर भी ” लाला ने कहा


मैं- मैं जरुर आऊंगा लाला जी नियति मुझे जरुर मौका देगी आपका मेहमान बनने का

लाला कुछ और कहता उस से पहले ही पिस्ता आ गयी रोके की रस्म के लिए . साली को इतनी खूबसूरत तो पहले कभी नहीं देखा था .उस एक लम्हे में मैंने कायनात को देखा ,दिल को धड़कते हुए महसूस किया.मैंने इश्क किया. जब पिस्ता को रोके में मांग टीका दिया गया तो मेरी आँखों से दो आंसू निकल कर गिर गए. उस दिन मैंने इतना तो जाना की नमक की इन बूंदों का कोई वजूद नहीं होता. दिल में बसाकर उस प्यारी सी सूरत को मैं नाज के घर आया .कुछ बोझ सा लग रहा था ,थोडा पानी पिया और चादर ओढ़ ली.

“उठ रे देवा, कितना सोयेगा ” ये आवाज मेरी माँ की थी .

माँ- उठ तो सही


मैं- तबियत थोड़ी नासाज सी है मा सोने दो

माँ- उठ तो सही कुछ बात करनी है तुझसे

मैं-मुझे भी बात करनी है अभी करनी है . क्या जरुरत थी पिताजी को पिस्ता का रिश्ता करवाने की


माँ- तो क्या करते, तुम लोगो ने तो शर्म लिहाज बेच खाई थी . शुक्र मना रिश्ता ही करवाया ये तो मैं बीच में हु वर्ना ना जाने क्या क्या हो सकता था . गाँव में परिवार की इज्जत का जो फलूदा तुम दोनों ने किया है ये तो कुछ भी नहीं है . और तू तो गर्व कर तेरी दोस्त का रिश्ता इतने बड़े घर में हुआ है .

“रिश्ता ही तो हुआ है मा. .”..............................
पिस्ता की शादी फिक्स हो गयी.... शायद यही वो अब तक रह भी रही है....



आज तक विधायक भी है
 

kas1709

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कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए आपाधापी में , पिस्ता की माँ ने परचा भर दिया था चुनाव की तैयारी हो रही थी . पिस्ता से मिलने का मौका कम ही लग रहा था ,नाज भी चुप चुप सी रहती थी . पिताजी ने गाडी में बम वाली बात का जिक्र तक नहीं किया था मुझसे अभी तक. समझ से बहार था सब कुछ , ऐसे ही एक दोपहर मैं जोगन संग जोहड़ के पानी में पैर डाले बैठा था .

“कम से कम तू तो कुछ बोल, सबकी तरह तेरे चेहरे पर भी नूर गायब सा है ” मैंने कहा


जोगन- ऐसी तो कोई बात नहीं

मैं- मुझसे नहीं छुपा सकती तू .कोई तो परेशानी है तुझे


जोगन- पिछले कुछ दिनों से अजीब सी कशमकश में उलझी हु.एक तरफ ये जिंदगानी है जो विरासत में मिली है एक तरफ वो राह है जो मुझे घर ले जाती है .

मैं- कितनी बार कहा है तुझसे इतना मत सोच, चल घर चल . पर तू सुनती कहा है मेरी.

जोगन- तेरी ही तो सुनती हु.

मैं- तो फिर क्यों छुपाती है मुझसे


जोगन- न जाने तुझे ऐसा क्यों लगता है .

मैं- मुझे अच्छा नहीं लगता तू यहाँ बियाबान में अकेली रहती है .कितनी बार कहा है गाँव में रह ले पर तू सुनती नहीं


जोगन- मना कहा किया, कहा तो तुझसे जब मन होगा कह दूंगी घर के लिए

मैं - चल छोड़ इन बातो को . कुछ नयी बात कर

जोगन- नयी बाते तो तू ही बता, चुनावो में क्या चल रहा है

मैं- क्या ख़ाक चल रहा है , तुझे बताया तो सही पिताजी ने इस बार काकी को सरपंची में उतारा है जीत जाएगी आराम से बल्कि यु कहूँ की जीती पड़ी है

जोगन- कहने को तो चुनाव का मतलब कुछ और होता है पर असल जीवन में वोट की कोई कद्र ही नहीं , गाँव का दबंग जिसे चाहे कठपुतली बना कर नचा सकता है


मैं- कहती तो तू सही है ,पर ये बाते महज बाते है असल जीवन में कोई क्रांति का झंडा नहीं उठाता

जोगन- यही तो बात है गुलामी,नसों में भरी पड़ी है

“लोग चाहते ही नहीं अपने हक़ की आवाज उठाना ” मैंने कहा


जोगन- पर तू तो हक़ की बात करता है

मैं- हक़ की बात,जानती है कभी कभी सोचता हूँ मैं और तू एक ही है. तू दुनिया से बेगानी मैं घर से बेगाना .लगता है तेरा मेरा नाता है कोई जो एक सी बात करते है


जोगन- नाता तो है

मैं मुस्कुरा दिया.उसकी आँखों में देखना एक अलग ही तरह का सकून था . दिन पर दिन बीत रहे थे ,चुनाव नजदीक आ चूका था . पर किसे परवाह थी ,मैं और पिस्ता जब देखो चुदाई में लगे रहते है जंगल में, खेतो में हमने हद से जायदा चुदाई कर डाली थी .पिस्ता का जोबन बहुत गदरा गया था . हम दोनों के परिवारों को इस बात से बहुत नफरत थी पर वो लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे . कम से कम मैं तो ऐसा ही समझता था . जब तक की उस दोपहर पिस्ता के घर दो चार गाडिया आकर खड़ी नहीं हो गयी.

“अरे देवा, तू तैयार नहीं हुआ अभी तक ” नाज ने मुझसे कहा

मैं- किसलिए

“तुझे नहीं पता क्या ” नाज बोली

मैं- क्या नहीं पता

नाज- आज तेरी रांड की सगाई है

नाज ने मुझ पर हँसते हुए ताना मारा .

“रांड तो तुम भी हो मासी ” मैंने कहा और पिस्ता के घर की तरफ दौड़ पड़ा. दरवाजे पर ही मुझे पिस्ता मिल गयी. काले सूट में साली क्या ही जोर की लग रही थी .

“क्या हो रहा है ये पिस्ता ” मैंने कहा


पिस्ता- देव, मुझे खुद नहीं पता .थोड़ी देर पहले ही मुझे बताया गया की रिश्ते वाले आने वाले है .

मैं कुछ कहता की तभी पीछे पीछे नाज भी आ पहुंची थी .

“किसी भी तरह का तमाशा करने की जरूरत नहीं है मेहमानों के सामने . रिश्ता तुम्हारे पिताजी करवा रहे है ” नाज ने कहा


न चाहते हुए भी मैं अन्दर चला गया. मालूम हुआ की पिस्ता के रिश्ते की बात पिताजी ने ही चलवाई थी . बहुत ही बड़े लोग थे वो राजनीती में नाम था , जिस लड़के से पिस्ता की शादी होनी थी वो भी आगे जाकर विधायक बनने वाला था .

“देव, वहां क्यों खड़े हो . यहाँ आकर बैठो .नए रिश्तेदारों से मिलो .कुछ नाश्ता पानी करो ” पिताजी ने मुझे कहा


मुस्कुराते हुए मैंने दो टुकड़े बर्फी उठा ली और चाय के साथ खाने लगा. मैंने महसूस किया की नाज की नजरे मुझ पर ही जमी पड़ी थी . बातो बातो में मेरा परिचय पड़ोसी गाँव के लाला हरदयाल से करवाया गया जो पिताजी और पिस्ता के होने वाले ससुराल वालो के बीच में था, कहने का मतलब इस रिश्ते का असली बिचोलिया .

“देव कभी आओं हमारे गरीबखाने पर भी ” लाला ने कहा


मैं- मैं जरुर आऊंगा लाला जी नियति मुझे जरुर मौका देगी आपका मेहमान बनने का

लाला कुछ और कहता उस से पहले ही पिस्ता आ गयी रोके की रस्म के लिए . साली को इतनी खूबसूरत तो पहले कभी नहीं देखा था .उस एक लम्हे में मैंने कायनात को देखा ,दिल को धड़कते हुए महसूस किया.मैंने इश्क किया. जब पिस्ता को रोके में मांग टीका दिया गया तो मेरी आँखों से दो आंसू निकल कर गिर गए. उस दिन मैंने इतना तो जाना की नमक की इन बूंदों का कोई वजूद नहीं होता. दिल में बसाकर उस प्यारी सी सूरत को मैं नाज के घर आया .कुछ बोझ सा लग रहा था ,थोडा पानी पिया और चादर ओढ़ ली.

“उठ रे देवा, कितना सोयेगा ” ये आवाज मेरी माँ की थी .

माँ- उठ तो सही


मैं- तबियत थोड़ी नासाज सी है मा सोने दो

माँ- उठ तो सही कुछ बात करनी है तुझसे

मैं-मुझे भी बात करनी है अभी करनी है . क्या जरुरत थी पिताजी को पिस्ता का रिश्ता करवाने की


माँ- तो क्या करते, तुम लोगो ने तो शर्म लिहाज बेच खाई थी . शुक्र मना रिश्ता ही करवाया ये तो मैं बीच में हु वर्ना ना जाने क्या क्या हो सकता था . गाँव में परिवार की इज्जत का जो फलूदा तुम दोनों ने किया है ये तो कुछ भी नहीं है . और तू तो गर्व कर तेरी दोस्त का रिश्ता इतने बड़े घर में हुआ है .

“रिश्ता ही तो हुआ है मा. .”..............................
Nice update....
 
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Sagar sahab

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“दम घुट रहा है जिन्दगी से खुल कर रो भी नही सकते,
दर्द इतना है की की कुछ कह भी नहीं सकते ”

वाह, जबरदस्त भाई 👏👏
 

Ajju Landwalia

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#42

“तू ठीक है न चोट तो नहीं लगी तुझे ” मैंने पिस्ता से कहा


पिस्ता- ठीक हु पर ये हुआ क्या

मैं- वही सोच रहा हूँ, आज तो मर ही गये थे

पिस्ता- जब तक मैं हु कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता तेरा

मैं- जानता हु, पर गाडी में बम लगाया गया है . जिसने भी ये कार्यवाही की है गांड तोडनी पड़ेगी उसकी

पिस्ता- सो तो है पर किसको इतना सटीक मालूम था की गाड़ी तू लेकर जायेगा

मैं- मालूम करना पड़ेगा . फिलहाल तो गाँव चलते है

रास्ते भर हमारे बीच ख़ामोशी छाई रही पर मन में सवालों का तूफान था. मरहम पट्टी करवाने के बाद पिस्ता को घर छोड़ा और मैं सीधा नाज के पास पहुंच गया .

“गाड़ी में बम किसने लगाया मासी ” मैंने कहा


नाज- कौन सी गाडी , कैसा बम

मैं- मैं और पिस्ता मरते मरते बचे है तुम्हारे सिवा किसको मालूम था की मैं गाड़ी ले जाने वाला था .

नाज- तू क्या कह रहा है मुझे समझ नहीं आ रहा देव

मैं- मुनीम जी की गाड़ी में बम था ठीक समय पर हम अगर नही उतरे होते तो आज राम नाम सत्य हो गया था . तुम पिस्ता के लिए इतना गिर जाओगी की इस हद तक जाओगी , कभी सोचा नहीं था मासी


नाज ने अपना माथा पीट लिया और सोफे पर बैठ गयी .

“उस बम का निशाना तुम या पिस्ता नहीं बल्कि मैं थी देव ” नाज ने कहा

“गाड़ी में मैं ही जाने वाली थी ,पर ऐन वक्त पर तुम मुझे यही छोड़ गए ” बोली वो


मैं- किसकी इतनी मजाल हो गयी जो यु खुलेआम मेरे परिवार पर हाथ डालेगा.

नाज- तुम्हे इन सब मामलो में पड़ने की जरूरत नहीं है


मैं- तुम्हारा नहीं रहा अब ये मामला , जान जाते जाते बची है मेरी .

“मामला बेहद ही गंभीर हो चला है, कुछ न कुछ करना ही होगा. मै तुम्हे आश्वस्त करती हु दुबारा नहीं होगा ऐसा कुछ ” नाज ने मेरे कंधे पर हाथ रखा


मैं- दुबारा बिलकुल नहीं होगा क्योंकि मैं होने नहीं दूंगा. तुम से, पिताजी से हो न हो मैं ही निपटाऊंगा इस मामले को अब
धमाके की गूँज अभी भी मेरे कानो में गूँज रही थी . जल्दी ही घर वालो को भी खबर हो ही गयी,माँ और बुआ हद से ज्यादा चिंतित थी . चल क्या रहा था किसी को भी मालूम नहीं था पर मैंने सोच लिया था की करना क्या है. मैं तुरंत ही शहर के लिए निकल गया , हॉस्पिटल में जाते ही मैंने मुनीम पर सवालो की बोछार कर दी.

“तुम्हारी गाड़ी की तलाश में मुझे एक स्टाम्प पेपर मिला था ” पुछा मैंने


मुनीम- हमारे धंधे में लेनदेन होता रहता है कुछ चीजे खरीदी जाती है कुछ बेचीं जाती है तो उनमे स्टाम्प लगते ही रहते है .

मैं- उस रात जंगल में इतनी गहराई में क्या कर रहे थे तुम. मैं जानता हु तुम जो भी कहो पर हमला करने वाले को तुम जानते हो क्योंकि वो भी तुम्हारे ही साथ गाड़ी में था


मुनीम- गाडी में अकेला ही था मैं

मैं- मुनीम जी, तुम सब के चुतियापे में आज मैं मर जाता . तुम्हारी तो पता नहीं पर मेरी जान कीमती है और तुम जैसो के चक्कर में मैं नहीं मरना चाहता. तुम्हारे ऊपर हमला हुआ , फिर दुबारा भी हो सकता है तुम जानो. उस रात तो तुम बच गए आगे क्या मालूम बचो न बचो. तो बिना देर किये मुझे बताओ उस रात कौन था साथ तुम्हारे.


मुनीम- तुम्हारा कोई लेना देना नहीं भाई जी इन सब से

मैं- कोई बात नहीं, मैं मालूम तो कर ही लूँगा पर हमलावर जो भी है कोई तो कारण रहा ही होगा जो इतनी शिद्दत से तुमको मारना चाहता है. वापसी में मुझे देर हो गयी थी बरगद के पेड़ निचे बैठ कर मैं गहन सोच में डूबा था, जो कड़ी इस कहानी में मुझे परेशान कर रही थी वो कड़ी नाज थी . जितना वो सरल दिख रही थी उतनी थी नहीं ये तो मैं समझ ही गया था .उस शाम मैंने नाज को यही चुदते देखा था पर कौन था वो अगर ये मालूम हो जाये तो कुछ नया मालूम हो सकता था. कुछ भी करके मुझे उस सख्स की तलाश करनी ही थी . नाज की नब्ज़ पकड़ने के लिए उसे शीशे में उतरना जरुरी था . इस मामले में मुझे पिस्ता की मदद लेनी ही थी. अचानक ही बारिश शुरू हो गयी , मेरे पास तीन रस्ते थे ,कुवे पर जाना, जोगन के पास जाना या फिर उसी घर में जो सबसे छिपा था .

एक बार फिर से मैं उस खामोश इमारत को वो मुझे देख रही थी .

“क्या कहानी है तुम्हारी ” कहते हुए मैंने दरवाजा खोला और अन्दर जाके लालटेन जलाई. ये चार दीवारे और दो कमरे .जंगल के बेहद अंदरूनी घने इलाके में कोई क्यों ही बनाएगा . और अब पता नहीं कबसे यहाँ कोई नहीं आया था शायद मेरे सिवाय .मैंने एक बार फिर अलमारी खोली, पैसे वैसे के वैसे ही रखे थे. आखिर यहाँ कोई आता जाता क्यों नहीं था,इस घर का मालिक क्यों भूल गया था इसे. नोटों की गड्डियो को सलीके से रखते हुए मेरी नजर अलमारी में बनी उस छोटी सी दराज पर पड़ी जिसमे एक लाकेट था. चांदी की चेन में जड़ा लाकेट बेहद खूबसूरत .


न चाहते हुए भी मैं अपने मन को रोक नहीं सका बेहद ही खूबसूरत उस लाकेट को मैंने अपनी जेब में रख लिया. निचे के खाने में रखे पैसे मैंने हटाये तो वहां पर मुझे एक छोटी सी डायरी मिली जिसमे कुछ लिखा था .

“दम घुट रहा है जिन्दगी से खुल कर रो भी नही सकते,दर्द इतना है की की कुछ कह भी नहीं सकते ” कोरे पन्ने पर लिखी इस लाइन ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. न जाने क्यों मुझे बहुत जायदा दिलचस्पी हो गयी थी इस घर के मालिक के बारे में . क्या कहानी थी उसकी क्या हुआ होगा उसके साथ .

वहां से लौटने के बाद मैं पिस्ता से मिला.

“क्या हाल है मेरी सरकार ” मैंने कहा


पिस्ता- गांड फटी पड़ी है,कोई पुन्य किया होगा जो बच गयी वर्ना अब तक तो मिटटी नसीब हो गयी होती

मैं- चिंता मत कर आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा.

पिस्ता- माँ, लौट आई है . कल फॉर्म भरेगी सरपंची का

मैं- बढ़िया है

पिस्ता- मुझे तो ये सब फालतू का नाटक लगे है . हमारा क्या ही लेना देना राजनीती से

मैं- क्या पता इसमें ही तुम्हारा भला हो ना जाने कब सोया नसीब जाग जाये

पिस्ता- फिर भी मुझे जम नहीं रहा ये सब

मैं- सुन , गाँव में कोई ऐसा है क्या जो मुझे कुछ पुराणी बाते बता सके


पिस्ता- कैसी बाते

मैं- जानना चाहता हु की पिताजी ने जंगल वाले मंदिर को क्यों तोडा

पिस्ता- तेरे पिताजी से ही क्यों नही पूछ लेता

मैं- सीधे मुह बात तो करते नहीं वो , तुझे लगता है की वो मुझे बता देंगे


पिस्ता- सबके अपने अपने फ़साने होते है , जवानी के दिनों में सब कुछ न कुछ करते रहते है , हो सकता है किसी नादानी में ही उन्होंने वैसा कुछ कर दिया हो .

मैं- हो सकता है पर दिक्कत ये है की मैं वो मंदिर आबाद करना चाहता हु

पिस्ता- नेक ख्याल है , खैर मैं चलती हु.

मैं- देगी क्या

पिस्ता- नहीं, अभी नहीं


पिस्ता के जाने के बाद मैं घर गया तो मालूम हुआ की माँ- पिताजी अपने किसी मित्र के घर जा रहे है और अगले दिन ही लौटेंगे . पिताजी ने मुझे घर पर ही रहने को कहा और वो लोग चले गए. शाम रात में घिरने लगी थी . बिजली नहीं थी . लालटेन की रौशनी में अन्न्धेरा अजीब सा लग रहा था . सीढियों की तरफ गया ही था की तभी निचे को आती बुआ मुझसे टकराई और उसे गिरने से बचाने के लिए मैंने बुआ को अपनी बाँहों में ले लिया...............

Behad shandar update he HalfbludPrince Manish Bhai,

Gaadi me bomb lagane wale ka traget Dev hi tha............

Naaj jitni bholi ban rahi he vo utni he nahi..........munim ki car vale blast me ho na ho naaj bhi shamil ho sakti he............

Agli update ka besabri intezar rahega Bhai
 

Ajju Landwalia

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#43

तंग सीढियों के दरमियाँ बुआ के यौवन से भरे गुदाज बदन को अपने आगोश में लिए मैं अपने हाथ को बुआ की गोल गांड पर महसूस कर रहा था बुआ की मचलती सांसे एक क्षण में काम पिपासा को बढ़ा गयी.

“देव ”हौले से फुसफुसाई बुआ पर मैंने बुआ को अपनी बलिष्ट भुजाओ में कस कर भींचा , इतना कस के की बुआ की ठोस चुचिया मेरे सीने में समाती चली गयी . बुआ ने अपना चेहरा उठा के मेरी तरफ देखा और तभी हमारे होंठ अपने आप एक दुसरे से मिल गए.


बुआ के मलाईदार होंठो को चूसते हुए मैं लगातार सलवार के ऊपर से उसके कुलहो को मसल रहा था. और मुझे यकीन था की मेरे लंड की दस्तक बुआ अपनी चूत पर भी जरुर महसूस कर रही होंगी. जी भर के मैंने बुआ के होंठ चुसे और फिर बिना कोई शर्म किये बुआ की सलवार का नाडा खोल दिया. केले के तने सी सुडौल जांघे उत्तेजना के मारे कांप रही थी , बुआ को मैंने पलटा और सीढियों पर ही झुका दिया. बुआ की गांड बहुत ही प्यारी थी , इतनी प्यारी की कच्छी के ऊपर से ही मैंने कुलहो को कई दफा चूमा और फिर कच्छी की इलास्टिक में अपनी उंगलिया लपेट ली.

पहले नाज और अब बुआ की कच्छी को महसूस करके मैंने जान लिया था की बड़े घरो की औरते लाजवाब अंगवस्त्र पहना करती है .बड़े ही प्यार से मैंने बुआ की कच्छी को उतारा और बुआ की गोरी गांड मेरी आँखों के सामने चमक उठी, बुआ लगभग घोड़ी बनी हुई थी.मैं निचे बैठा और बुआ के चूतडो को हाथो से फैलाया, कसम से बनाने वाले ने क्या चीज ही तो बनाई ये जो दुनिया पागल हुई पड़ी है . बुआ की चूत से जयादा मुझे उसकी गांड का छेद प्यारा लग रहा था और मैं खुद को रोक नहीं पाया उसे चूमने से , मेरे होंठो के स्पर्श को गांड के छेद पर महसूस करते ही बुआ के चुतड उत्तेजना के मारे हिलने लगे.


कुल्हो की दोनों फाको को मजबूती से खोले हुए मैं बुआ की गांड को चूस रहा था, मैंने अपनी बीच वाली ऊंगली बुआ की चूत में सरका दी . काम रस से भीगी चूत के अन्दर मेरी ऊँगली आगे पीछे होने लगी .

“उफ्फ्फ, देव ” बुआ आहे भरने लगी थी. कुछ देर गांड पर जीभ फिराने के बाद मैंने बुआ की चूत पर अपना मुह लगा दिया और चूत के रस को चाटने लगा. पिस्ता के साथ मैं सम्बन्ध बना चूका था पर बुआ की गर्मी भी कम नहीं थी . मैंने लंड को बाहर निकाल लिया और बुआ की गीली चूत के मुहाने पर टिका दिया. अब रुकना मुश्किल था ,मैंने बुआ की कमर को थामा और लंड को चूत में सरका दिया. बुआ की चूत के छल्ले को फैलाते हुए लंड चूत में जाने लगा और मैंने कमर हिलाते हुए अपनी गोलियों को बुआ की चूत से लगा दिया.

“सीईईईईइ ”बुआ सारी लाज छोड़ कर अब चुदने के लिए तैयार थी . लंड को मैंने बाहर खीचा और फिर तेज धक्का लगाते हुए वापिस से अन्दर घुसा दिया. दोनों हाथो से बुआ की कमर को थामे मैं बुआ को चोद रहा था . पच पच की आवाज सीढियों पर गूंजने लगी थी . बुआ की चूत की गर्मी तब और बढ़ गयी जब बुआ अपना हाथ अपनी जांघो के बीच से ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. मेरे लिए तो ये बेहद ही मजेदार अहसास था , बुआ के स्पर्श ने चुदाई को और भी रसीली और मजेदार बना दिया था . मेरे हाथ अब बुआ के कंधो को मसल रहे थे .



“आई आई आई ईईईईइ ” बुआ अपनी गांड को जोर से हिलाते हुए चुदाई का पूरा आनंद ले रही थी. कई देर तक ऐसे ही चलता रहा और फिर बुआ का बदन अकड़ गया बुआ की चूत ने लंड को इस कदर खींचा की मैं भी पिघलने को हो गया. दो चार जोरो के धक्के लगाने के बाद मैंने लंड को चूत से बाहर निकाला और बुआ की कमर पर अपना वीर्य गिरा दिया.

मैं वही सीढियों पर बैठ गया और बुआ को अपनी गोदी में बिठा लिया. बुआ ने अपना चेहरा मेरे सीने में छिपा लिया और मैं उसकी गांड को सहलाने लगा. कुछ देर तक ऐसे ही हम बदन की गर्मी को महसूस करते रहे . फिर बुआ उठी और गुसलखाने में घुस गयी मैंने आंगन में लगे नलके को चलाया और अपने लंड को साफ़ करके चौबारे में चला गया. कुछ देर बाद बुआ भी उपर आ गयी और मेरी बगल में लेट गयी .

“ये जो हमने किया किसी को भी इसके बारे में पता नहीं होना चाहिए.वर्ना अंजाम् ठीक नहीं होगा.” बोली वो


मैंने बुआ को अपने आगोश में लिया और बोला- समझता हु

मैंने फिर से बुआ के होठ पीने शुरू कर दिए . बुआ भी मेरा साथ देने लगी . बुआ ने खुद मेरे लंड को अपने हाथ में लिया और बड़े प्यार से सहलाने लगी .

“मुह में लो इसे ” मैंने बुआ को अपनी ख्वाहिश बताई तो बुआ ने अपने चेहरे को मेरे लंड पर झुकाया और सुपाडे को मुह में भर लिया. कसम से बदन पुरे का पूरा ही तो हिल गया. बुआ बड़ी शिद्दत से मेरी आँखों में देखते हुए लंड चूस रही थी .

“मजा आ रहा है तुझे ” बुआ ने नशीली नजर से देखते हुए मुझसे पुछा

“बहुत ज्यादा ” मैंने कहा


बुआ- और मजा लेगा

मैंने हां में सर हिलाया तो बुआ मेरे ऊपर लेट गयी ,बुआ की चूत मेरे चेहरे पर आ गयी थी .

“तुम भी चूसो इसे ” बुआ ने कहा और मेरे अन्डकोशो पर अपनी जीभ फिराने लगी. एक बार फिर से मैंने बुआ के कुलहो को थामा और बुआ की चूत को चूसने लगा. इस तरह हम दोनों एक दुसरे के अंगो को चूसने लगे और चूसते चूसते ही एक दुसरे के काम रस को पी गए. बुआ ने मेरे पुरे वीर्य को अपने गले के निचे उतार लिया. सुबह एक बार फिर से हमने सेक्स किया और घर वालो के आने से पहले इस घटना के तमाम निशान मिटा दिए. मेरे मन में ये सवाल तो था की बुआ संग बना ये अनैतिक रिश्ता क्या रंग लायेगा.

Bhaut hi shandar update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Bua ke sath bhi sex kar hi liya dev ne, khair rishta to ye anaitik hi bana he...........

Aage chalkar ye rishta bhi koi na koi gul jarur khilayega..........

Keep posting Bhai
 

Ajju Landwalia

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#44

कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए आपाधापी में , पिस्ता की माँ ने परचा भर दिया था चुनाव की तैयारी हो रही थी . पिस्ता से मिलने का मौका कम ही लग रहा था ,नाज भी चुप चुप सी रहती थी . पिताजी ने गाडी में बम वाली बात का जिक्र तक नहीं किया था मुझसे अभी तक. समझ से बहार था सब कुछ , ऐसे ही एक दोपहर मैं जोगन संग जोहड़ के पानी में पैर डाले बैठा था .

“कम से कम तू तो कुछ बोल, सबकी तरह तेरे चेहरे पर भी नूर गायब सा है ” मैंने कहा


जोगन- ऐसी तो कोई बात नहीं

मैं- मुझसे नहीं छुपा सकती तू .कोई तो परेशानी है तुझे


जोगन- पिछले कुछ दिनों से अजीब सी कशमकश में उलझी हु.एक तरफ ये जिंदगानी है जो विरासत में मिली है एक तरफ वो राह है जो मुझे घर ले जाती है .

मैं- कितनी बार कहा है तुझसे इतना मत सोच, चल घर चल . पर तू सुनती कहा है मेरी.

जोगन- तेरी ही तो सुनती हु.

मैं- तो फिर क्यों छुपाती है मुझसे


जोगन- न जाने तुझे ऐसा क्यों लगता है .

मैं- मुझे अच्छा नहीं लगता तू यहाँ बियाबान में अकेली रहती है .कितनी बार कहा है गाँव में रह ले पर तू सुनती नहीं


जोगन- मना कहा किया, कहा तो तुझसे जब मन होगा कह दूंगी घर के लिए

मैं - चल छोड़ इन बातो को . कुछ नयी बात कर

जोगन- नयी बाते तो तू ही बता, चुनावो में क्या चल रहा है

मैं- क्या ख़ाक चल रहा है , तुझे बताया तो सही पिताजी ने इस बार काकी को सरपंची में उतारा है जीत जाएगी आराम से बल्कि यु कहूँ की जीती पड़ी है

जोगन- कहने को तो चुनाव का मतलब कुछ और होता है पर असल जीवन में वोट की कोई कद्र ही नहीं , गाँव का दबंग जिसे चाहे कठपुतली बना कर नचा सकता है


मैं- कहती तो तू सही है ,पर ये बाते महज बाते है असल जीवन में कोई क्रांति का झंडा नहीं उठाता

जोगन- यही तो बात है गुलामी,नसों में भरी पड़ी है

“लोग चाहते ही नहीं अपने हक़ की आवाज उठाना ” मैंने कहा


जोगन- पर तू तो हक़ की बात करता है

मैं- हक़ की बात,जानती है कभी कभी सोचता हूँ मैं और तू एक ही है. तू दुनिया से बेगानी मैं घर से बेगाना .लगता है तेरा मेरा नाता है कोई जो एक सी बात करते है


जोगन- नाता तो है

मैं मुस्कुरा दिया.उसकी आँखों में देखना एक अलग ही तरह का सकून था . दिन पर दिन बीत रहे थे ,चुनाव नजदीक आ चूका था . पर किसे परवाह थी ,मैं और पिस्ता जब देखो चुदाई में लगे रहते है जंगल में, खेतो में हमने हद से जायदा चुदाई कर डाली थी .पिस्ता का जोबन बहुत गदरा गया था . हम दोनों के परिवारों को इस बात से बहुत नफरत थी पर वो लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे . कम से कम मैं तो ऐसा ही समझता था . जब तक की उस दोपहर पिस्ता के घर दो चार गाडिया आकर खड़ी नहीं हो गयी.

“अरे देवा, तू तैयार नहीं हुआ अभी तक ” नाज ने मुझसे कहा

मैं- किसलिए

“तुझे नहीं पता क्या ” नाज बोली

मैं- क्या नहीं पता

नाज- आज तेरी रांड की सगाई है

नाज ने मुझ पर हँसते हुए ताना मारा .

“रांड तो तुम भी हो मासी ” मैंने कहा और पिस्ता के घर की तरफ दौड़ पड़ा. दरवाजे पर ही मुझे पिस्ता मिल गयी. काले सूट में साली क्या ही जोर की लग रही थी .

“क्या हो रहा है ये पिस्ता ” मैंने कहा


पिस्ता- देव, मुझे खुद नहीं पता .थोड़ी देर पहले ही मुझे बताया गया की रिश्ते वाले आने वाले है .

मैं कुछ कहता की तभी पीछे पीछे नाज भी आ पहुंची थी .

“किसी भी तरह का तमाशा करने की जरूरत नहीं है मेहमानों के सामने . रिश्ता तुम्हारे पिताजी करवा रहे है ” नाज ने कहा


न चाहते हुए भी मैं अन्दर चला गया. मालूम हुआ की पिस्ता के रिश्ते की बात पिताजी ने ही चलवाई थी . बहुत ही बड़े लोग थे वो राजनीती में नाम था , जिस लड़के से पिस्ता की शादी होनी थी वो भी आगे जाकर विधायक बनने वाला था .

“देव, वहां क्यों खड़े हो . यहाँ आकर बैठो .नए रिश्तेदारों से मिलो .कुछ नाश्ता पानी करो ” पिताजी ने मुझे कहा


मुस्कुराते हुए मैंने दो टुकड़े बर्फी उठा ली और चाय के साथ खाने लगा. मैंने महसूस किया की नाज की नजरे मुझ पर ही जमी पड़ी थी . बातो बातो में मेरा परिचय पड़ोसी गाँव के लाला हरदयाल से करवाया गया जो पिताजी और पिस्ता के होने वाले ससुराल वालो के बीच में था, कहने का मतलब इस रिश्ते का असली बिचोलिया .

“देव कभी आओं हमारे गरीबखाने पर भी ” लाला ने कहा


मैं- मैं जरुर आऊंगा लाला जी नियति मुझे जरुर मौका देगी आपका मेहमान बनने का

लाला कुछ और कहता उस से पहले ही पिस्ता आ गयी रोके की रस्म के लिए . साली को इतनी खूबसूरत तो पहले कभी नहीं देखा था .उस एक लम्हे में मैंने कायनात को देखा ,दिल को धड़कते हुए महसूस किया.मैंने इश्क किया. जब पिस्ता को रोके में मांग टीका दिया गया तो मेरी आँखों से दो आंसू निकल कर गिर गए. उस दिन मैंने इतना तो जाना की नमक की इन बूंदों का कोई वजूद नहीं होता. दिल में बसाकर उस प्यारी सी सूरत को मैं नाज के घर आया .कुछ बोझ सा लग रहा था ,थोडा पानी पिया और चादर ओढ़ ली.

“उठ रे देवा, कितना सोयेगा ” ये आवाज मेरी माँ की थी .

माँ- उठ तो सही


मैं- तबियत थोड़ी नासाज सी है मा सोने दो

माँ- उठ तो सही कुछ बात करनी है तुझसे

मैं-मुझे भी बात करनी है अभी करनी है . क्या जरुरत थी पिताजी को पिस्ता का रिश्ता करवाने की


माँ- तो क्या करते, तुम लोगो ने तो शर्म लिहाज बेच खाई थी . शुक्र मना रिश्ता ही करवाया ये तो मैं बीच में हु वर्ना ना जाने क्या क्या हो सकता था . गाँव में परिवार की इज्जत का जो फलूदा तुम दोनों ने किया है ये तो कुछ भी नहीं है . और तू तो गर्व कर तेरी दोस्त का रिश्ता इतने बड़े घर में हुआ है .

“रिश्ता ही तो हुआ है मा. .”..............................

Dhamakedar update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Sabse pehle to 200 pages pure hone par Hardik Shubhkamnaye Bhai

Aakhirkar do pyar karne walo ko juda karne ka kaam shuru ho gaya...........

Chaoudhry sahab ne jo ye rishta karwaya he..........usme bhi apna hi political fayda dekha hoga jarur unhone...........

Ab dev ki bagawat shuru hogi...............shadi to khair ho jayegi............lekin dev kya karega ye dekhne wali baat hogi............

Keep rocking Bhai
 

Tiger 786

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#42

“तू ठीक है न चोट तो नहीं लगी तुझे ” मैंने पिस्ता से कहा


पिस्ता- ठीक हु पर ये हुआ क्या

मैं- वही सोच रहा हूँ, आज तो मर ही गये थे

पिस्ता- जब तक मैं हु कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता तेरा

मैं- जानता हु, पर गाडी में बम लगाया गया है . जिसने भी ये कार्यवाही की है गांड तोडनी पड़ेगी उसकी

पिस्ता- सो तो है पर किसको इतना सटीक मालूम था की गाड़ी तू लेकर जायेगा

मैं- मालूम करना पड़ेगा . फिलहाल तो गाँव चलते है

रास्ते भर हमारे बीच ख़ामोशी छाई रही पर मन में सवालों का तूफान था. मरहम पट्टी करवाने के बाद पिस्ता को घर छोड़ा और मैं सीधा नाज के पास पहुंच गया .

“गाड़ी में बम किसने लगाया मासी ” मैंने कहा


नाज- कौन सी गाडी , कैसा बम

मैं- मैं और पिस्ता मरते मरते बचे है तुम्हारे सिवा किसको मालूम था की मैं गाड़ी ले जाने वाला था .

नाज- तू क्या कह रहा है मुझे समझ नहीं आ रहा देव

मैं- मुनीम जी की गाड़ी में बम था ठीक समय पर हम अगर नही उतरे होते तो आज राम नाम सत्य हो गया था . तुम पिस्ता के लिए इतना गिर जाओगी की इस हद तक जाओगी , कभी सोचा नहीं था मासी


नाज ने अपना माथा पीट लिया और सोफे पर बैठ गयी .

“उस बम का निशाना तुम या पिस्ता नहीं बल्कि मैं थी देव ” नाज ने कहा

“गाड़ी में मैं ही जाने वाली थी ,पर ऐन वक्त पर तुम मुझे यही छोड़ गए ” बोली वो


मैं- किसकी इतनी मजाल हो गयी जो यु खुलेआम मेरे परिवार पर हाथ डालेगा.

नाज- तुम्हे इन सब मामलो में पड़ने की जरूरत नहीं है


मैं- तुम्हारा नहीं रहा अब ये मामला , जान जाते जाते बची है मेरी .

“मामला बेहद ही गंभीर हो चला है, कुछ न कुछ करना ही होगा. मै तुम्हे आश्वस्त करती हु दुबारा नहीं होगा ऐसा कुछ ” नाज ने मेरे कंधे पर हाथ रखा


मैं- दुबारा बिलकुल नहीं होगा क्योंकि मैं होने नहीं दूंगा. तुम से, पिताजी से हो न हो मैं ही निपटाऊंगा इस मामले को अब
धमाके की गूँज अभी भी मेरे कानो में गूँज रही थी . जल्दी ही घर वालो को भी खबर हो ही गयी,माँ और बुआ हद से ज्यादा चिंतित थी . चल क्या रहा था किसी को भी मालूम नहीं था पर मैंने सोच लिया था की करना क्या है. मैं तुरंत ही शहर के लिए निकल गया , हॉस्पिटल में जाते ही मैंने मुनीम पर सवालो की बोछार कर दी.

“तुम्हारी गाड़ी की तलाश में मुझे एक स्टाम्प पेपर मिला था ” पुछा मैंने


मुनीम- हमारे धंधे में लेनदेन होता रहता है कुछ चीजे खरीदी जाती है कुछ बेचीं जाती है तो उनमे स्टाम्प लगते ही रहते है .

मैं- उस रात जंगल में इतनी गहराई में क्या कर रहे थे तुम. मैं जानता हु तुम जो भी कहो पर हमला करने वाले को तुम जानते हो क्योंकि वो भी तुम्हारे ही साथ गाड़ी में था


मुनीम- गाडी में अकेला ही था मैं

मैं- मुनीम जी, तुम सब के चुतियापे में आज मैं मर जाता . तुम्हारी तो पता नहीं पर मेरी जान कीमती है और तुम जैसो के चक्कर में मैं नहीं मरना चाहता. तुम्हारे ऊपर हमला हुआ , फिर दुबारा भी हो सकता है तुम जानो. उस रात तो तुम बच गए आगे क्या मालूम बचो न बचो. तो बिना देर किये मुझे बताओ उस रात कौन था साथ तुम्हारे.


मुनीम- तुम्हारा कोई लेना देना नहीं भाई जी इन सब से

मैं- कोई बात नहीं, मैं मालूम तो कर ही लूँगा पर हमलावर जो भी है कोई तो कारण रहा ही होगा जो इतनी शिद्दत से तुमको मारना चाहता है. वापसी में मुझे देर हो गयी थी बरगद के पेड़ निचे बैठ कर मैं गहन सोच में डूबा था, जो कड़ी इस कहानी में मुझे परेशान कर रही थी वो कड़ी नाज थी . जितना वो सरल दिख रही थी उतनी थी नहीं ये तो मैं समझ ही गया था .उस शाम मैंने नाज को यही चुदते देखा था पर कौन था वो अगर ये मालूम हो जाये तो कुछ नया मालूम हो सकता था. कुछ भी करके मुझे उस सख्स की तलाश करनी ही थी . नाज की नब्ज़ पकड़ने के लिए उसे शीशे में उतरना जरुरी था . इस मामले में मुझे पिस्ता की मदद लेनी ही थी. अचानक ही बारिश शुरू हो गयी , मेरे पास तीन रस्ते थे ,कुवे पर जाना, जोगन के पास जाना या फिर उसी घर में जो सबसे छिपा था .

एक बार फिर से मैं उस खामोश इमारत को वो मुझे देख रही थी .

“क्या कहानी है तुम्हारी ” कहते हुए मैंने दरवाजा खोला और अन्दर जाके लालटेन जलाई. ये चार दीवारे और दो कमरे .जंगल के बेहद अंदरूनी घने इलाके में कोई क्यों ही बनाएगा . और अब पता नहीं कबसे यहाँ कोई नहीं आया था शायद मेरे सिवाय .मैंने एक बार फिर अलमारी खोली, पैसे वैसे के वैसे ही रखे थे. आखिर यहाँ कोई आता जाता क्यों नहीं था,इस घर का मालिक क्यों भूल गया था इसे. नोटों की गड्डियो को सलीके से रखते हुए मेरी नजर अलमारी में बनी उस छोटी सी दराज पर पड़ी जिसमे एक लाकेट था. चांदी की चेन में जड़ा लाकेट बेहद खूबसूरत .


न चाहते हुए भी मैं अपने मन को रोक नहीं सका बेहद ही खूबसूरत उस लाकेट को मैंने अपनी जेब में रख लिया. निचे के खाने में रखे पैसे मैंने हटाये तो वहां पर मुझे एक छोटी सी डायरी मिली जिसमे कुछ लिखा था .

“दम घुट रहा है जिन्दगी से खुल कर रो भी नही सकते,दर्द इतना है की की कुछ कह भी नहीं सकते ” कोरे पन्ने पर लिखी इस लाइन ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. न जाने क्यों मुझे बहुत जायदा दिलचस्पी हो गयी थी इस घर के मालिक के बारे में . क्या कहानी थी उसकी क्या हुआ होगा उसके साथ .

वहां से लौटने के बाद मैं पिस्ता से मिला.

“क्या हाल है मेरी सरकार ” मैंने कहा


पिस्ता- गांड फटी पड़ी है,कोई पुन्य किया होगा जो बच गयी वर्ना अब तक तो मिटटी नसीब हो गयी होती

मैं- चिंता मत कर आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा.

पिस्ता- माँ, लौट आई है . कल फॉर्म भरेगी सरपंची का

मैं- बढ़िया है

पिस्ता- मुझे तो ये सब फालतू का नाटक लगे है . हमारा क्या ही लेना देना राजनीती से

मैं- क्या पता इसमें ही तुम्हारा भला हो ना जाने कब सोया नसीब जाग जाये

पिस्ता- फिर भी मुझे जम नहीं रहा ये सब

मैं- सुन , गाँव में कोई ऐसा है क्या जो मुझे कुछ पुराणी बाते बता सके


पिस्ता- कैसी बाते

मैं- जानना चाहता हु की पिताजी ने जंगल वाले मंदिर को क्यों तोडा

पिस्ता- तेरे पिताजी से ही क्यों नही पूछ लेता

मैं- सीधे मुह बात तो करते नहीं वो , तुझे लगता है की वो मुझे बता देंगे


पिस्ता- सबके अपने अपने फ़साने होते है , जवानी के दिनों में सब कुछ न कुछ करते रहते है , हो सकता है किसी नादानी में ही उन्होंने वैसा कुछ कर दिया हो .

मैं- हो सकता है पर दिक्कत ये है की मैं वो मंदिर आबाद करना चाहता हु

पिस्ता- नेक ख्याल है , खैर मैं चलती हु.

मैं- देगी क्या

पिस्ता- नहीं, अभी नहीं


पिस्ता के जाने के बाद मैं घर गया तो मालूम हुआ की माँ- पिताजी अपने किसी मित्र के घर जा रहे है और अगले दिन ही लौटेंगे . पिताजी ने मुझे घर पर ही रहने को कहा और वो लोग चले गए. शाम रात में घिरने लगी थी . बिजली नहीं थी . लालटेन की रौशनी में अन्न्धेरा अजीब सा लग रहा था . सीढियों की तरफ गया ही था की तभी निचे को आती बुआ मुझसे टकराई और उसे गिरने से बचाने के लिए मैंने बुआ को अपनी बाँहों में ले लिया...............
Lagta hai abki bar bhua ji ka klyaan ho jayega
Awesome update
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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#42

“तू ठीक है न चोट तो नहीं लगी तुझे ” मैंने पिस्ता से कहा


पिस्ता- ठीक हु पर ये हुआ क्या

मैं- वही सोच रहा हूँ, आज तो मर ही गये थे

पिस्ता- जब तक मैं हु कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता तेरा

मैं- जानता हु, पर गाडी में बम लगाया गया है . जिसने भी ये कार्यवाही की है गांड तोडनी पड़ेगी उसकी

पिस्ता- सो तो है पर किसको इतना सटीक मालूम था की गाड़ी तू लेकर जायेगा

मैं- मालूम करना पड़ेगा . फिलहाल तो गाँव चलते है

रास्ते भर हमारे बीच ख़ामोशी छाई रही पर मन में सवालों का तूफान था. मरहम पट्टी करवाने के बाद पिस्ता को घर छोड़ा और मैं सीधा नाज के पास पहुंच गया .

“गाड़ी में बम किसने लगाया मासी ” मैंने कहा


नाज- कौन सी गाडी , कैसा बम

मैं- मैं और पिस्ता मरते मरते बचे है तुम्हारे सिवा किसको मालूम था की मैं गाड़ी ले जाने वाला था .

नाज- तू क्या कह रहा है मुझे समझ नहीं आ रहा देव

मैं- मुनीम जी की गाड़ी में बम था ठीक समय पर हम अगर नही उतरे होते तो आज राम नाम सत्य हो गया था . तुम पिस्ता के लिए इतना गिर जाओगी की इस हद तक जाओगी , कभी सोचा नहीं था मासी


नाज ने अपना माथा पीट लिया और सोफे पर बैठ गयी .

“उस बम का निशाना तुम या पिस्ता नहीं बल्कि मैं थी देव ” नाज ने कहा

“गाड़ी में मैं ही जाने वाली थी ,पर ऐन वक्त पर तुम मुझे यही छोड़ गए ” बोली वो


मैं- किसकी इतनी मजाल हो गयी जो यु खुलेआम मेरे परिवार पर हाथ डालेगा.

नाज- तुम्हे इन सब मामलो में पड़ने की जरूरत नहीं है


मैं- तुम्हारा नहीं रहा अब ये मामला , जान जाते जाते बची है मेरी .

“मामला बेहद ही गंभीर हो चला है, कुछ न कुछ करना ही होगा. मै तुम्हे आश्वस्त करती हु दुबारा नहीं होगा ऐसा कुछ ” नाज ने मेरे कंधे पर हाथ रखा


मैं- दुबारा बिलकुल नहीं होगा क्योंकि मैं होने नहीं दूंगा. तुम से, पिताजी से हो न हो मैं ही निपटाऊंगा इस मामले को अब
धमाके की गूँज अभी भी मेरे कानो में गूँज रही थी . जल्दी ही घर वालो को भी खबर हो ही गयी,माँ और बुआ हद से ज्यादा चिंतित थी . चल क्या रहा था किसी को भी मालूम नहीं था पर मैंने सोच लिया था की करना क्या है. मैं तुरंत ही शहर के लिए निकल गया , हॉस्पिटल में जाते ही मैंने मुनीम पर सवालो की बोछार कर दी.

“तुम्हारी गाड़ी की तलाश में मुझे एक स्टाम्प पेपर मिला था ” पुछा मैंने


मुनीम- हमारे धंधे में लेनदेन होता रहता है कुछ चीजे खरीदी जाती है कुछ बेचीं जाती है तो उनमे स्टाम्प लगते ही रहते है .

मैं- उस रात जंगल में इतनी गहराई में क्या कर रहे थे तुम. मैं जानता हु तुम जो भी कहो पर हमला करने वाले को तुम जानते हो क्योंकि वो भी तुम्हारे ही साथ गाड़ी में था


मुनीम- गाडी में अकेला ही था मैं

मैं- मुनीम जी, तुम सब के चुतियापे में आज मैं मर जाता . तुम्हारी तो पता नहीं पर मेरी जान कीमती है और तुम जैसो के चक्कर में मैं नहीं मरना चाहता. तुम्हारे ऊपर हमला हुआ , फिर दुबारा भी हो सकता है तुम जानो. उस रात तो तुम बच गए आगे क्या मालूम बचो न बचो. तो बिना देर किये मुझे बताओ उस रात कौन था साथ तुम्हारे.


मुनीम- तुम्हारा कोई लेना देना नहीं भाई जी इन सब से

मैं- कोई बात नहीं, मैं मालूम तो कर ही लूँगा पर हमलावर जो भी है कोई तो कारण रहा ही होगा जो इतनी शिद्दत से तुमको मारना चाहता है. वापसी में मुझे देर हो गयी थी बरगद के पेड़ निचे बैठ कर मैं गहन सोच में डूबा था, जो कड़ी इस कहानी में मुझे परेशान कर रही थी वो कड़ी नाज थी . जितना वो सरल दिख रही थी उतनी थी नहीं ये तो मैं समझ ही गया था .उस शाम मैंने नाज को यही चुदते देखा था पर कौन था वो अगर ये मालूम हो जाये तो कुछ नया मालूम हो सकता था. कुछ भी करके मुझे उस सख्स की तलाश करनी ही थी . नाज की नब्ज़ पकड़ने के लिए उसे शीशे में उतरना जरुरी था . इस मामले में मुझे पिस्ता की मदद लेनी ही थी. अचानक ही बारिश शुरू हो गयी , मेरे पास तीन रस्ते थे ,कुवे पर जाना, जोगन के पास जाना या फिर उसी घर में जो सबसे छिपा था .

एक बार फिर से मैं उस खामोश इमारत को वो मुझे देख रही थी .

“क्या कहानी है तुम्हारी ” कहते हुए मैंने दरवाजा खोला और अन्दर जाके लालटेन जलाई. ये चार दीवारे और दो कमरे .जंगल के बेहद अंदरूनी घने इलाके में कोई क्यों ही बनाएगा . और अब पता नहीं कबसे यहाँ कोई नहीं आया था शायद मेरे सिवाय .मैंने एक बार फिर अलमारी खोली, पैसे वैसे के वैसे ही रखे थे. आखिर यहाँ कोई आता जाता क्यों नहीं था,इस घर का मालिक क्यों भूल गया था इसे. नोटों की गड्डियो को सलीके से रखते हुए मेरी नजर अलमारी में बनी उस छोटी सी दराज पर पड़ी जिसमे एक लाकेट था. चांदी की चेन में जड़ा लाकेट बेहद खूबसूरत .


न चाहते हुए भी मैं अपने मन को रोक नहीं सका बेहद ही खूबसूरत उस लाकेट को मैंने अपनी जेब में रख लिया. निचे के खाने में रखे पैसे मैंने हटाये तो वहां पर मुझे एक छोटी सी डायरी मिली जिसमे कुछ लिखा था .

“दम घुट रहा है जिन्दगी से खुल कर रो भी नही सकते,दर्द इतना है की की कुछ कह भी नहीं सकते ” कोरे पन्ने पर लिखी इस लाइन ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. न जाने क्यों मुझे बहुत जायदा दिलचस्पी हो गयी थी इस घर के मालिक के बारे में . क्या कहानी थी उसकी क्या हुआ होगा उसके साथ .

वहां से लौटने के बाद मैं पिस्ता से मिला.

“क्या हाल है मेरी सरकार ” मैंने कहा


पिस्ता- गांड फटी पड़ी है,कोई पुन्य किया होगा जो बच गयी वर्ना अब तक तो मिटटी नसीब हो गयी होती

मैं- चिंता मत कर आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा.

पिस्ता- माँ, लौट आई है . कल फॉर्म भरेगी सरपंची का

मैं- बढ़िया है

पिस्ता- मुझे तो ये सब फालतू का नाटक लगे है . हमारा क्या ही लेना देना राजनीती से

मैं- क्या पता इसमें ही तुम्हारा भला हो ना जाने कब सोया नसीब जाग जाये

पिस्ता- फिर भी मुझे जम नहीं रहा ये सब

मैं- सुन , गाँव में कोई ऐसा है क्या जो मुझे कुछ पुराणी बाते बता सके


पिस्ता- कैसी बाते

मैं- जानना चाहता हु की पिताजी ने जंगल वाले मंदिर को क्यों तोडा

पिस्ता- तेरे पिताजी से ही क्यों नही पूछ लेता

मैं- सीधे मुह बात तो करते नहीं वो , तुझे लगता है की वो मुझे बता देंगे


पिस्ता- सबके अपने अपने फ़साने होते है , जवानी के दिनों में सब कुछ न कुछ करते रहते है , हो सकता है किसी नादानी में ही उन्होंने वैसा कुछ कर दिया हो .

मैं- हो सकता है पर दिक्कत ये है की मैं वो मंदिर आबाद करना चाहता हु

पिस्ता- नेक ख्याल है , खैर मैं चलती हु.

मैं- देगी क्या

पिस्ता- नहीं, अभी नहीं


पिस्ता के जाने के बाद मैं घर गया तो मालूम हुआ की माँ- पिताजी अपने किसी मित्र के घर जा रहे है और अगले दिन ही लौटेंगे . पिताजी ने मुझे घर पर ही रहने को कहा और वो लोग चले गए. शाम रात में घिरने लगी थी . बिजली नहीं थी . लालटेन की रौशनी में अन्न्धेरा अजीब सा लग रहा था . सीढियों की तरफ गया ही था की तभी निचे को आती बुआ मुझसे टकराई और उसे गिरने से बचाने के लिए मैंने बुआ को अपनी बाँहों में ले लिया...............
Kon hai wo jisne gadi me bomb rakhwaya? Mujhe lagta hai iske peeche naaz hi hai, :approve: Or to or Choudhary fool singh ke aadmi ke uper hue hamlo ke peeche bhi wahi lagti hai, or koi badi baat nahi ki wo bargad ke neeche Chaudhary hi machka raha hoga naaz ko:declare:
Awesome update again and mind blowing writing efforts
:good:
 
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