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Adultery जय हो लॉकडाउन!!

a_girl

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खैर जैसे तैसे खाना खा कर मैं सोने गया।
रात भर सपने में मां मुझे नंगी ही दिखती रही, मां की मोटी चूचियां और फूली हुई गांड़ सोचते सोचते मैं पता नही कब सो गया। दूसरे दिन सुबह मेरी आंख जल्दी खुल गई शायद करीब ६ बजे न जाने क्यों मैने सोने की कोशिश की लेकिन नींद न आई दोबारा। आखिर मैं अपने कमरे से निकल कर ऊपर छत की तरफ चल दिया मुझे क्या पता था कि मेरी किस्मत में क्या लिखा है मैं छत पर खड़ा होकर खेतो की तरफ देखकर ताजी हवा का मजा लेने लगा तभी नीचे आंगन से दरवाजे की कुंडी खुलने की आवाज आई मैंने धीरे से उधर झांका तो देखा की चाची और मां दोनो हाथ में पानी का डिब्बा लेकर बाहर निकल रही थी मैंने सोचा की ये दोनो एक साथ कैसे जाएंगी शौचालय के अंदर तभी मुझे याद आया की जब ये शौचालय बन रहा था तब मैने सुना था ये दोनो बतिया रही थी आपस में की हम तो उसमें न कर पाएंगे टटी- पेशाब, बचपन से खुले में करने की आदत लगी है उस बंद कमरे में घुटन हो जाएगी। शौचालय पूरे घर में सिर्फ मैं इस्तेमाल करता था। ये याद आने के बाद लग गया मेरा दिमाग खुराफात में।
में धीरे से झुककर छत के बारजे में बने झरोखे में से झांकने लगा चाची और मां दोनो ही शौचालय के पीछे गई और वही खुले में ही अपनी अपनी साड़ी उठाकर हगने बैठ गई।
 
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a_girl

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कसम से क्या गांड़ थी दोनो की इच्छा हो रही थी की मुंह घुसेड़ दूं उसके अंदर, अब क्योंकि दोनो ने अपना मुंह खेत की तरफ कर रखा था इसलिए मैं निश्चिंत होकर अपना लन्ड निकलकर मुठ मार रहा था। अपनी किस्मत पर मुझे यकीन नही हो रहा था की कहा मैने आज तक सिर्फ ब्रा और चड्डी पर मुठ मारी है और कहा दो दिन में मुझे इतने गदराय हुए नंगे जिस्म देखने को मिल रहे है।
मैने खूब तसल्ली से मुठ मारी और फिर जब वो दोनो हगने के बाद अपनी अपनी गांड़ धोकर उठी तब मैं भी आराम से नीचे आकर अपने कमरे में सो गया।
 

a_girl

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जब मेरी आंख खुली तो करीब ११.३० या १२ बज रहा था मैं हड़बड़ा कर उठा और बाहर बरामदे की तरफ भागा अपनी मां को नंगा देखने मगर मां नही दिखी मैने दरवाजे की तरफ देखा तो वो अंदर से बंद था फिर जब नीचे गया तो देखा मां कमरे के अंदर थी और कमरा बंद करके सो रही थी अपनी किस्मत को कोसता हुआ मैं नहाया और खाना खाकर अपने कमरे में चला आया।
रात को जब सब लोग खाना खाने बैठे तब पूरे टाइम मैं मां और चाची की ब्लाउज से उनकी चुचियों की एक झलक पाने को बेताब रहा।

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Verma sahab

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खैर जैसे तैसे खाना खा कर मैं सोने गया।
रात भर सपने में मां मुझे नंगी ही दिखती रही, मां की मोटी चूचियां और फूली हुई गांड़ सोचते सोचते मैं पता नही कब सो गया। दूसरे दिन सुबह मेरी आंख जल्दी खुल गई शायद करीब ६ बजे न जाने क्यों मैने सोने की कोशिश की लेकिन नींद न आई दोबारा। आखिर मैं अपने कमरे से निकल कर ऊपर छत की तरफ चल दिया मुझे क्या पता था कि मेरी किस्मत में क्या लिखा है मैं छत पर खड़ा होकर खेतो की तरफ देखकर ताजी हवा का मजा लेने लगा तभी नीचे आंगन से दरवाजे की कुंडी खुलने की आवाज आई मैंने धीरे से उधर झांका तो देखा की चाची और मां दोनो हाथ में पानी का डिब्बा लेकर बाहर निकल रही थी मैंने सोचा की ये दोनो एक साथ कैसे जाएंगी शौचालय के अंदर तभी मुझे याद आया की जब ये शौचालय बन रहा था तब मैने सुना था ये दोनो बतिया रही थी आपस में की हम तो उसमें न कर पाएंगे टटी- पेशाब, बचपन से खुले में करने की आदत लगी है उस बंद कमरे में घुटन हो जाएगी। शौचालय पूरे घर में सिर्फ मैं इस्तेमाल करता था। ये याद आने के बाद लग गया मेरा दिमाग खुराफात में।
में धीरे से झुककर छत के बारजे में बने झरोखे में से झांकने लगा चाची और मां दोनो ही शौचालय के पीछे गई और वही खुले में ही अपनी अपनी साड़ी उठाकर हगने बैठ गई।

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Awesome update
 
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Verma sahab

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साड़ी और ब्लाउज धुलने के बाद मां खड़ी हुई और एक झटके में अपना पेटीकोट उतार दिया और हो गई एकदम नंगी

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मैं बेहोश नही हुआ बस, खेतो में काम करने की वजह से उसका शरीर एकदम कसा हुआ था सिर्फ पेट पर हल्की सी चमड़ी लटकी हुई थी l गांड़ तो ऐसी फूली हुई थी जैसे की मां जिम जाती हो फिर मां वैसे ही खड़ी खड़ी झुक गई और मैं बस चक्कर खाते खाते बचा मेरे सामने थी मां की फूली हुई गांड़ और धीरे से झांकता हुआ उसकी गांड़ का छेद।


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मेरा हाल तो ऐसा था की जैसे मेरे शरीर का सारा खून ही सूख गया हो। फिर मां कपड़े धुलने के बाद नंगी ही कपड़ा उठा कर घूमी और मेरे सामने उसकी झांटों से भरी चूत थी जिसमें से मैं और दीदी निकले थे। वो वैसी ही नंगी आंगन में कपड़े फैलाने लगी एकदम निश्चिंत होकर



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Fantastic
 
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a_girl

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फिर मुझे याद आया की पापा से बात करनी पड़ेगी वापस जाने की लिए सो मैंने बोला की मुझे अब वापस यूनिवर्सिटी जाना पड़ेगा छुट्टियां खत्म हो चुकी है। पापा ने कुछ देर सोच कर बोला की ऐसा है ये बीमारी कुछ ज्यादा ही फैल रही है इसलिए कुछ दिन अभी तुम घर पर ही रुको जब ठीक हो जाए सब तब जाना। तब तो मुझे बहुत उलझन हुई इस बात पर लेकिन आज लगता है की बहुत अच्छा हुआ जो मैने पापा की बात मान ली।
पापा और चाचा ने कुछ समय पहले शहर के दूसरे छोर पर या कहे अगर तो घर से करीब १००-१५० किलोमीटर दूर एक ९-१० बीघा का खेत खरीदा था जिसके बगल से जाती हुई नदी ने उस जमीन के बीच में एक झील जैसी भी बना दी थी। उस जमीन में वही झील के पास पुराने मालिक ने एक छोटा सा घर जैसा भी बना रखा था जिसका निर्माण आधा-अधूरा हुआ था। एक दिन उर्मिला मामी जो हर दूसरे तीसरे दिन हमारे घर आती रहती थी वो आई हुई थी तभी चाची ने उनसे और मां से बोला की चलिए न कुछ दिन के लिए हम लोग जो नई जमीन ली हुई है वहा चले रवि भी आया हुआ है वहा घर तो बना हुआ है ही बाकी जरूरत का समान ले चलेंगे साथ में उस दिन तारीख थी २० मार्च और २२ मार्च को जनता कर्फ्यू घोषित था सो ये तय हुआ की हम लोग लोग २४ को निकलेंगे चाची,मामी,मम्मी और मैं एक गाड़ी से फिर २५ को पापा, चाचा और मामा आ जाएंगे और हम सब लोग रविवार तक रुककर फिर वापस आ जाएंगे।
 
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