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Sorry Brother, Vayast tha, aaj update ki koshish rahegiWaiting for next update…
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Sorry brother, Kuch Pariwarik karyo ne uljha rakha tha, aur mera laptop bhi mere pass nahi tha isliye reply bhi nahi kar paya .Bhai update kyu nahi arhe kuchh problem hai to bta dijiye hm wait kr lnge but atleast reply kijiye
Bhai aap gajab ka likhte hai, aapne characters ki jis gahrai se sameeksha ki hai shayad main khud bhi laakh prayatan ke baad nahi kar paata, aneko dhanyawad, aise hi margdarshan karte raheखुद पर विश्वास करना चाहिए और सतत परिश्रम करते रहना चाहिए। कामयाबी कभी न कभी मिल ही जाती है। आप बढ़िया लिख रहे है , किरदारों के चरित्र का सटीक वर्णन कर रहे है , जहां इमोशंस की जरूरत है वहां इमोशंस और जहां इरोटिका की जरूरत है वहां इरोटिक भी लिखने का प्रयास कर रहे है , देश , काल , परिवेश और विषय वस्तु का भी ख्याल रखा है आपने। और क्या चाहिए एक राइटर को !
एक बहुत ही बड़े इंग्लिश विद्वान से पुछा गया कि सर , एक अच्छे राइटर बनने के लिए इंसान को क्या करना चाहिए ? उनका जबाव था - " Read , Read , Read , Write , Write & Write ".
मैने बहुत सारे ऐसे उपन्यासकार को पढ़ा है जो शुरुआत मे किसी न किसी फेमस राइटर का नकल कर के लिखना प्रारंभ किए थे । और सच कहूं तो उन्होने बहुत ही बकवास लिखा था लेकिन जैसे जैसे आगे लिखते गए , हार्ड वर्क करते गए , एक्सपीरियंस प्राप्त करते गए वैसे वैसे उनके लेखनी मे निखार आता गया और वो बहुत बड़े लेखक बन गए।
चन्द्रमा की कहानी बहुत ही दुखद भरी , इमोशनल कर देने वाली है। और यह मै दावे के साथ कहता हूं कि चन्द्रमा की कहानी कोई काल्पनिक या सिर्फ एक लड़की की कहानी नही है। यह सच्चाई है । यह रिएलिटी है ।
चन्द्रमा की दादी जी और विमला जी की कहानी कोई झूठ नही है। ये बिल्कुल सत्य है जब घर मे किसी लड़की का जन्म होता था तो मर्द से ज्यादा महिलाएं मातम मनाना शुरू कर देती थी। यह भी हंड्रेड पर्सेंट सच है कि भ्रूण परिक्षण के बाद लाखों कन्याओं को गर्भ मे ही मार दिया गया।
चन्द्रमा के फादर की परवरिश ही गलत हुई थी और उसका परिणाम उसके कृत्य से जाहिर हो रहा है। ऐसे लोग परिवार के नाम पर , समाज के नाम पर एक बहुत बड़ा धब्बा है । अभिशाप होते हैं ऐसे लोग । ऐसे लोग शरीर का वह फोड़ा है जिसे काटकर तुरंत ही निकाल देना चाहिए। अगर समय पर इनका उपचार नही हुआ तो ये कैंसर का रूप इख्तियार कर लेंगे।
अगर कुता पागल हो जाए तो उसे गोली मार देना ही बेहतर उपाय है।
सरिता देवी मजबूरन ब्याही गई और वो अबतक इसे लेकर अपने मां-बाप को माफ ना कर सकी। मुझे नही पता उस वक्त उनके परिवार की माली हालात कैसी रही होगी या ऐसा क्या कारण हुआ होगा जिस की वजह से उनकी शादी उनके मर्जी के वगैर कर दी गई लेकिन जबरदस्ती की शादी से किसी का भला नही होता। उनके मां-बाप ने अपनी लड़की के अच्छे भविष्य को ध्यान मे रखकर यह फैसला लिया होगा पर सरिता देवी का भविष्य कैसा हुआ , हमे साफ दिखाई दे रहा है ।
उनके पूजा-पाठ से किसी को आपति नही। घर मे , बाहर मे वो कहीं भी पूजा-पाठ करें लेकिन एक जवान होती लड़की को पुरी तरह से अवहेलना कर , घर की जिम्मेदारी से मुंह मोड़कर यह सब करना मुझे उचित नही लगता।
अपने भाई की उपेक्षा करना , मां की बीमारी पर परवाह न करना भी इनके चरित्र को अच्छा नही बनाता।
दीपक कुमार जैसे लड़के हर शहर मे आपको मिल जाएंगे। ऐसे लड़के प्रेम का मतलब नही समझते। इन्हे किसी भी कीमत पर उनकी मनपसंद लड़की चाहिए ही चाहिए। और अगर न मिले तो लड़की की बेरहमी से हत्या कर देंगे , लड़की के चेहरे पर तेजाब डाल देंगे , लड़की का बलात्कार कर देंगे ।
मै यही कामना करता हूं कि हमारे नायक साहब चन्द्रमा के साथ सिर्फ शरीर का रिश्ता न रखें बल्कि आत्मा का भी रिश्ता कायम करें। अपने दिल मे उसे आश्रय दें। अपने घर की गृहलक्ष्मी बनाएं।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
Ok bhai ab sab thik hai naSorry brother, Kuch Pariwarik karyo ne uljha rakha tha, aur mera laptop bhi mere pass nahi tha isliye reply bhi nahi kar paya .
दिल छू लेने वाला अहसास चंद्रमा की माँ का......चन्द्रमा बोलते बोलते रुक गयी , आवाज़ कुछ अजीब सी हुई मनो गाला सुख गया हो बोलते बोलते, ऐसा होना सवाभाविक भी था, उसने अपने जीवन के उस अध्याय से पर्दा हटाया था जो उसको कपड़ो के होते हुए भी वस्त्रहीन कर रहा था, मैंने हाथ बढ़ा कर साइड टेबल से पानी की बोतल उसे पकड़ाया, उसने पानी की बोतल होंटो से लगा कर दो घूंट पानी पि लिया, चन्द्रमा मुझे अपनी आप बीती सुनते सुनते बिलकुल मेरी गॉड में सिमट आयी थी, उसके उसका डायन गाल मेरी छाती पर टिका हुआ था और उसके शरीर का पूरा बोझ मेरे लुण्ड और जांघो पर था , पानी पीते हुए पानी की कुछ बूंदे चन्द्रमा के रसभरे होटो से छलक आयी थी जो उसने नहीं पोंछी थी, अगर यही कुछ अबसे कुछ घंटों पहले हो रहा होता तो शायद अबतक मैं चन्द्रमा को बाँहों में लपेट चूका होता और उसके शराबी होंटो से सारा रास चूस जाता लेकिन अब पैसा पलट गया था,
जो दिल और दिमाग मैंने २ दिन से चन्द्रमा को चोदने और और उसके शरीर को भोगने के प्लान में लगाया था और जो प्लान लगभग पूरा हो गया था, अब वही दिमाग और दिल कही अंतरात्मा को कचोट रहे थे, मैं ३५ साल का अविवाहिक व्यक्ति हूँ, जीवन में २ बार प्यार हुआ और मैंने पूरी ईमानदारी के साथ प्यार किया और शादी करने के मन से उसके सात सम्भन्ध बनाया लेकिन नयति को कुछ और ही मंज़ूर था दोनों किन्ही कारणो से बिछड़ गयी, जब चन्द्रमा मिली तो लगा की उम्र का अंतर ही सही शायद प्यार फिर से वापिस आजाये जीवन में ये मेरा लालच था, लेकिन जब मुझे ऐसा लगा की चन्द्रमा गेम कर रही है मेरे साथ तब मैंने उसको चोदने का छल किया कर यही चहल मेरे दिल और दिमाग में हलचल मचा रहा था।
बार बार मेरे दिमाग उथल पुथल मच रही थी की मैंने कितना गलत सोचा चन्द्रमा के बारे में, पहले ही उसके जीवन में राक्छ्सो की कमी नहीं है, उसका सागा बाप किसी रावण से कम नहीं और उसनका नाममात्र का प्रेमी जो उसको पाने के लिए नित नए खेल खेलता है, और इन सबसे ऊपर उसका नसीब जो जो न जाने कैसे खेल खेल रहा था, और एक मैं जो उसके जिस्म से खेलने के लिए इतनी दूर ले आया, क्या मैं इन रक्चासो से कम हूँ ? शायद नहीं, लेकिन मैं भी इंसान था खुद को सही साबित करने में लगा हुआ था, बार मन ये कह उठता की पहल मैंने नहीं की, उसने शुरुवात की तभी तो मैंने ये हिम्मत करने की ठानी वरना मैं ऐसा व्यक्ति तो नहीं हूँ, माना की मैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसा मर्यादित पुरुष नहीं सही लेकिन मैंने आजीवन कोशिश की है की मेरे कारण किसी को कोई तकलीफ न पहुंचे या जान बुझ कर ये प्रयास नहीं किया की किसी का दिल टूटे, फिर आज ये क्यों।
चन्द्रमा ने पानी पी कर बोतल मुझे पकड़ाई तो मेरा धयान इस सोंचो से हटा और मैंने बोतल साइड टेबल पर वापस रख दी, चन्द्रमा ने वापिस अपना गाल मेरे सीने पर रख लिया, कुछ पल चन्द्रमा खामोश रही और फिर धीरे से अपनी आंसुओं से बोझिल आँखे उठा कर एक नजार मुझ पर डाली और फिर झट से नज़रें नीची कर ली। मैंने हाथ बढ़ा कर रुमाल से उसके ाँसों को पूछा और फिर हल्का सा उसके सर पर हाथ रख कर धीमी आवाज़ में पूछा " फिर उसके बाद क्या जुआ ? क्या तुम मामा जी के यहाँ गयी तेरहवी की पूजा में ?"
चन्द्रमा : हुण्णं गयी थी फिर, मामा का फ़ोन दादी के सामने ही आया था और उन्होंने लगभग साड़ी बातें सुन ली थी, दादी कभी नानी से नहीं मिली थी लेकिन फिर भी उन्होंने नानी की डेथ का सुन के दुःख जताया, मैंने अपनी नानी को कभी देखा नहीं था और न ही कभी उनकी आवाज़ सुनी थी लेकिन फिर भी नानी के दुनिया से चले जाने का सुन कर बहुत दुःख हुआ, जो मैं उस रात हुई घटना से अभी कुछ देर पहले तक उबार नहीं पायी थी वो अभी नानी के चले जाने का सुन के सब भूल भाल गयी, मैं लगभग दौड़ती हुई मम्मी के रूम में गयी और एक सांस में मम्मी को बता दिया जो भी मामा ने फ़ोन पर बोला था, मम्मी बिस्तर पर लेती हुई थी, मेरे मुँह से नानी के मरने की खबर सुन के बिस्तर से तक लगा कर बैठ गयी। मैं कुछ देर वह कड़ी मम्मी के बोलने का वेट करती रही लेकिन उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं फूटा, बस हवा में टकटकी लगाए घूम सी हो गयी, मैंने पास जा कर मम्मी के हाथ रखा था जैसे मम्मी नींद से जाएगी और मेरा हाथ झटक कर बोली "ठीक है तू जा अपने कमरे में " मैं बुझे मन से वापिस आगयी। मुझे मम्मी से ऐसी उम्मीद नहीं थी, कम से कम माँ की मौत पर दो आंसू तो बहा सकती थी लेकिन शायद मेरी माँ का दिल पत्थर का था जो उनको किसी बात की परवाह ही नहीं थी।
मैंने रात में ही सारी तैयारी कर ली मामा के यहाँ जाने की मैंने दीपक को बता दिया की मेरी नानी की डेथ हुई है और मैं गांव जा रही हो वो छुट्टी का देख लेगा क्यूंकि लगभग एक सप्ताह मैं ऑफिस नहीं आसकुंगी । पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ क्यूंकि उसने कभी मेरे मुँह से कुछ नहीं सुना था नानी के परिवार के बारे में और जब मैंने उसे बताया की मैं अकेली जाउंगी मामा के पास तो बिलकुल यक़ीन नहीं किया लेकिन मुझे इस टाइम किसी की कोई परवाह नहीं थी, मैंने मां को फ़ोन करके बता दिया और उन्होंने छोड़ी देर में तत्काल टिकट की कॉपी मुझे व्हाट्सप्प कर दी। टिकट अगले दिन सुबह ११ बजे की नयी दिल्ली से थी तो मैं सारी पैकिंग रात में करके ही सोई, पापा का अभी तक कोई अता पता नहीं था लेकिन मुझे अब कोई चिंता नहीं थी दादी ने मुझे कुछ पैसे थमाना चाहा तो मैंने उनको बता दिया की मेरे पास है वो चिंता ना करे उन बेचारी के पास कहा से आते पैसे, थोड़े पहुंच छुपा के रखे थे अपने खर्च से उसी पैसे को मुझे दे रही थी, मैंने दादी के तसल्ली के लिए अपने पास रखे पैसे दिखाए तब उनको तसल्ली हुई।
रात ऐसे ही गुज़री, जब भी आँख लगती तो रमेश का गन्दा चेहरा दीखता या कभी नानी दिखती, नानी को देखा नहीं था फिर भी एक अनजान चेहरा दिख जाता मानो अपने पास बुला रही हो। जैसे तैसे सुबह हुई, मैं कमरे से बहार आयी थी देखा मम्मी आंगन में एक सफ़ेद साडी में लिपटी सूर्यदेव को अर्ध दे रही थी, मैंने कदम वापिस खींच लिए और थोड़ी दूर से मान को देखती रही, सूरज की किरणे माँ के चेहरे पर पद रही थी, मा की आँखे बंद थी, जल चढ़ा कर मान ने लोटा नीचे रखा और सूर्यदेव की ओर हाथ जोड़ कर कुछ बुदबुदाने लगे फिर से मान की आँख बंद थी और वो बिना रुके कुछ बुदबुदा रही थी, शायद कोई श्लोक पढ़ रही थी या सूर्यदेव की आरती। मैं एक तक लगाए मम्मी को देख रही थी की तभी आँख के कोने से आंसुओं की एक लाइन निकल कर उनके कानो की ओर फिसलने लगी, जब तक मम्मी बिदबिदती रही तब तक मम्मी के आंसू निकलते रहे, उस टाइम मम्मी हर दिन जैसी मम्मी नहीं लग रही थी उस दिन ऐसा लग रहा था मनो मम्मी के अंदर सूर्य की किरणे प्रवेश कर गयी हो और उनका सारा गुस्सा, सारी अकड़ जला गयी हो। कुछ देर बाद मम्मी का ध्यान टूटा और उन्होंने साडी के पुल्लू से अपने आंसू साफ़ किये और लोटा उठा कर अपने कमरे में चली गयी।
मैंने भी टाइम ना गवाते हुए जल्दी से नहाने भागी और जल्दी से तैयार हो कर अपना बैग उठा और आँगन में आ गयी, तब तक दादी भी आंगन में चुकी थी और मम्मी किचन में चाय बना रही थी, अभी तक मैंने अपने जाने का नहीं बताया था, थोड़ी देर में मम्मी चाय लेकर आयी और चाय का कप दादी को देने बाद मुझे भी चाय पकड़ाई और फिर किचन में घुस गयी, कोई १० मं में हमने चाय पि, तब तक मैंने दीपक को मैसेज कर दिया था बहार मिलने का, मैं जानती थी की वो बेकार में मेरे पीछे कलेश करेगा इसलिए मैंने रात में ही सोच लिया था की अगर वो मुझे रेलवे स्टेशन छोडने जायेगा तो उसके मन में ज़्यदा कुछ रहेगा नहीं शक करने के लिए। मैंने टाइम देखा 8.३० हो चुके थे, मुझे ज़्यदा देर नहीं करनी थी, मैंने मम्मी को आवाज़ दी "मुम्मा मैं जा रही हूँ " मम्मी एक दो मं में बहार आयी उनके हाथ में एक टिफ़िन था , उन्होंने वो टिफ़िन मेरी ओर भद्दा दिया, " ये रख ले, रास्ते का कुछ मत खाना " मैंने जैसे ही टिफ़िन पकड़ा मम्मी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया, उनके सीने से लगते ही मैं जैसे पिघल सी गयी, मान की ममता ऐसी ही होती है, मैंने भी उनसे गले लग कर खूब रोई, फिर दादी ने अलग किया, लेट हो रहा था मैं भी अलग हो कर जल्दी से घर से निकलने लगी, तभी मम्मी ने फिर पीछे से आवाज़ दी, मैंने पलट कर देखा वो एक कॉटन की चुन्नी लिए कड़ी थी।
मम्मी ने चुन्नी देते हुए कहा, वह ये दाल कर रखना वह का माहौल यहाँ से थोड़ा अलग है। मैंने वो चुन्नी मम्मी के हाथ से ले और अपने बैग में ठूंस कर रिक्शे में बैठ गयी।
बहुत बढ़िया भाई, एकदम दिल को छूने वाला लिखा आपने।चन्द्रमा बोलते बोलते रुक गयी , आवाज़ कुछ अजीब सी हुई मनो गाला सुख गया हो बोलते बोलते, ऐसा होना सवाभाविक भी था, उसने अपने जीवन के उस अध्याय से पर्दा हटाया था जो उसको कपड़ो के होते हुए भी वस्त्रहीन कर रहा था, मैंने हाथ बढ़ा कर साइड टेबल से पानी की बोतल उसे पकड़ाया, उसने पानी की बोतल होंटो से लगा कर दो घूंट पानी पि लिया, चन्द्रमा मुझे अपनी आप बीती सुनते सुनते बिलकुल मेरी गॉड में सिमट आयी थी, उसके उसका डायन गाल मेरी छाती पर टिका हुआ था और उसके शरीर का पूरा बोझ मेरे लुण्ड और जांघो पर था , पानी पीते हुए पानी की कुछ बूंदे चन्द्रमा के रसभरे होटो से छलक आयी थी जो उसने नहीं पोंछी थी, अगर यही कुछ अबसे कुछ घंटों पहले हो रहा होता तो शायद अबतक मैं चन्द्रमा को बाँहों में लपेट चूका होता और उसके शराबी होंटो से सारा रास चूस जाता लेकिन अब पैसा पलट गया था,
जो दिल और दिमाग मैंने २ दिन से चन्द्रमा को चोदने और और उसके शरीर को भोगने के प्लान में लगाया था और जो प्लान लगभग पूरा हो गया था, अब वही दिमाग और दिल कही अंतरात्मा को कचोट रहे थे, मैं ३५ साल का अविवाहिक व्यक्ति हूँ, जीवन में २ बार प्यार हुआ और मैंने पूरी ईमानदारी के साथ प्यार किया और शादी करने के मन से उसके सात सम्भन्ध बनाया लेकिन नयति को कुछ और ही मंज़ूर था दोनों किन्ही कारणो से बिछड़ गयी, जब चन्द्रमा मिली तो लगा की उम्र का अंतर ही सही शायद प्यार फिर से वापिस आजाये जीवन में ये मेरा लालच था, लेकिन जब मुझे ऐसा लगा की चन्द्रमा गेम कर रही है मेरे साथ तब मैंने उसको चोदने का छल किया कर यही चहल मेरे दिल और दिमाग में हलचल मचा रहा था।
बार बार मेरे दिमाग उथल पुथल मच रही थी की मैंने कितना गलत सोचा चन्द्रमा के बारे में, पहले ही उसके जीवन में राक्छ्सो की कमी नहीं है, उसका सागा बाप किसी रावण से कम नहीं और उसनका नाममात्र का प्रेमी जो उसको पाने के लिए नित नए खेल खेलता है, और इन सबसे ऊपर उसका नसीब जो जो न जाने कैसे खेल खेल रहा था, और एक मैं जो उसके जिस्म से खेलने के लिए इतनी दूर ले आया, क्या मैं इन रक्चासो से कम हूँ ? शायद नहीं, लेकिन मैं भी इंसान था खुद को सही साबित करने में लगा हुआ था, बार मन ये कह उठता की पहल मैंने नहीं की, उसने शुरुवात की तभी तो मैंने ये हिम्मत करने की ठानी वरना मैं ऐसा व्यक्ति तो नहीं हूँ, माना की मैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसा मर्यादित पुरुष नहीं सही लेकिन मैंने आजीवन कोशिश की है की मेरे कारण किसी को कोई तकलीफ न पहुंचे या जान बुझ कर ये प्रयास नहीं किया की किसी का दिल टूटे, फिर आज ये क्यों।
चन्द्रमा ने पानी पी कर बोतल मुझे पकड़ाई तो मेरा धयान इस सोंचो से हटा और मैंने बोतल साइड टेबल पर वापस रख दी, चन्द्रमा ने वापिस अपना गाल मेरे सीने पर रख लिया, कुछ पल चन्द्रमा खामोश रही और फिर धीरे से अपनी आंसुओं से बोझिल आँखे उठा कर एक नजार मुझ पर डाली और फिर झट से नज़रें नीची कर ली। मैंने हाथ बढ़ा कर रुमाल से उसके ाँसों को पूछा और फिर हल्का सा उसके सर पर हाथ रख कर धीमी आवाज़ में पूछा " फिर उसके बाद क्या जुआ ? क्या तुम मामा जी के यहाँ गयी तेरहवी की पूजा में ?"
चन्द्रमा : हुण्णं गयी थी फिर, मामा का फ़ोन दादी के सामने ही आया था और उन्होंने लगभग साड़ी बातें सुन ली थी, दादी कभी नानी से नहीं मिली थी लेकिन फिर भी उन्होंने नानी की डेथ का सुन के दुःख जताया, मैंने अपनी नानी को कभी देखा नहीं था और न ही कभी उनकी आवाज़ सुनी थी लेकिन फिर भी नानी के दुनिया से चले जाने का सुन कर बहुत दुःख हुआ, जो मैं उस रात हुई घटना से अभी कुछ देर पहले तक उबार नहीं पायी थी वो अभी नानी के चले जाने का सुन के सब भूल भाल गयी, मैं लगभग दौड़ती हुई मम्मी के रूम में गयी और एक सांस में मम्मी को बता दिया जो भी मामा ने फ़ोन पर बोला था, मम्मी बिस्तर पर लेती हुई थी, मेरे मुँह से नानी के मरने की खबर सुन के बिस्तर से तक लगा कर बैठ गयी। मैं कुछ देर वह कड़ी मम्मी के बोलने का वेट करती रही लेकिन उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं फूटा, बस हवा में टकटकी लगाए घूम सी हो गयी, मैंने पास जा कर मम्मी के हाथ रखा था जैसे मम्मी नींद से जाएगी और मेरा हाथ झटक कर बोली "ठीक है तू जा अपने कमरे में " मैं बुझे मन से वापिस आगयी। मुझे मम्मी से ऐसी उम्मीद नहीं थी, कम से कम माँ की मौत पर दो आंसू तो बहा सकती थी लेकिन शायद मेरी माँ का दिल पत्थर का था जो उनको किसी बात की परवाह ही नहीं थी।
मैंने रात में ही सारी तैयारी कर ली मामा के यहाँ जाने की मैंने दीपक को बता दिया की मेरी नानी की डेथ हुई है और मैं गांव जा रही हो वो छुट्टी का देख लेगा क्यूंकि लगभग एक सप्ताह मैं ऑफिस नहीं आसकुंगी । पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ क्यूंकि उसने कभी मेरे मुँह से कुछ नहीं सुना था नानी के परिवार के बारे में और जब मैंने उसे बताया की मैं अकेली जाउंगी मामा के पास तो बिलकुल यक़ीन नहीं किया लेकिन मुझे इस टाइम किसी की कोई परवाह नहीं थी, मैंने मां को फ़ोन करके बता दिया और उन्होंने छोड़ी देर में तत्काल टिकट की कॉपी मुझे व्हाट्सप्प कर दी। टिकट अगले दिन सुबह ११ बजे की नयी दिल्ली से थी तो मैं सारी पैकिंग रात में करके ही सोई, पापा का अभी तक कोई अता पता नहीं था लेकिन मुझे अब कोई चिंता नहीं थी दादी ने मुझे कुछ पैसे थमाना चाहा तो मैंने उनको बता दिया की मेरे पास है वो चिंता ना करे उन बेचारी के पास कहा से आते पैसे, थोड़े पहुंच छुपा के रखे थे अपने खर्च से उसी पैसे को मुझे दे रही थी, मैंने दादी के तसल्ली के लिए अपने पास रखे पैसे दिखाए तब उनको तसल्ली हुई।
रात ऐसे ही गुज़री, जब भी आँख लगती तो रमेश का गन्दा चेहरा दीखता या कभी नानी दिखती, नानी को देखा नहीं था फिर भी एक अनजान चेहरा दिख जाता मानो अपने पास बुला रही हो। जैसे तैसे सुबह हुई, मैं कमरे से बहार आयी थी देखा मम्मी आंगन में एक सफ़ेद साडी में लिपटी सूर्यदेव को अर्ध दे रही थी, मैंने कदम वापिस खींच लिए और थोड़ी दूर से मान को देखती रही, सूरज की किरणे माँ के चेहरे पर पद रही थी, मा की आँखे बंद थी, जल चढ़ा कर मान ने लोटा नीचे रखा और सूर्यदेव की ओर हाथ जोड़ कर कुछ बुदबुदाने लगे फिर से मान की आँख बंद थी और वो बिना रुके कुछ बुदबुदा रही थी, शायद कोई श्लोक पढ़ रही थी या सूर्यदेव की आरती। मैं एक तक लगाए मम्मी को देख रही थी की तभी आँख के कोने से आंसुओं की एक लाइन निकल कर उनके कानो की ओर फिसलने लगी, जब तक मम्मी बिदबिदती रही तब तक मम्मी के आंसू निकलते रहे, उस टाइम मम्मी हर दिन जैसी मम्मी नहीं लग रही थी उस दिन ऐसा लग रहा था मनो मम्मी के अंदर सूर्य की किरणे प्रवेश कर गयी हो और उनका सारा गुस्सा, सारी अकड़ जला गयी हो। कुछ देर बाद मम्मी का ध्यान टूटा और उन्होंने साडी के पुल्लू से अपने आंसू साफ़ किये और लोटा उठा कर अपने कमरे में चली गयी।
मैंने भी टाइम ना गवाते हुए जल्दी से नहाने भागी और जल्दी से तैयार हो कर अपना बैग उठा और आँगन में आ गयी, तब तक दादी भी आंगन में चुकी थी और मम्मी किचन में चाय बना रही थी, अभी तक मैंने अपने जाने का नहीं बताया था, थोड़ी देर में मम्मी चाय लेकर आयी और चाय का कप दादी को देने बाद मुझे भी चाय पकड़ाई और फिर किचन में घुस गयी, कोई १० मं में हमने चाय पि, तब तक मैंने दीपक को मैसेज कर दिया था बहार मिलने का, मैं जानती थी की वो बेकार में मेरे पीछे कलेश करेगा इसलिए मैंने रात में ही सोच लिया था की अगर वो मुझे रेलवे स्टेशन छोडने जायेगा तो उसके मन में ज़्यदा कुछ रहेगा नहीं शक करने के लिए। मैंने टाइम देखा 8.३० हो चुके थे, मुझे ज़्यदा देर नहीं करनी थी, मैंने मम्मी को आवाज़ दी "मुम्मा मैं जा रही हूँ " मम्मी एक दो मं में बहार आयी उनके हाथ में एक टिफ़िन था , उन्होंने वो टिफ़िन मेरी ओर भद्दा दिया, " ये रख ले, रास्ते का कुछ मत खाना " मैंने जैसे ही टिफ़िन पकड़ा मम्मी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया, उनके सीने से लगते ही मैं जैसे पिघल सी गयी, मान की ममता ऐसी ही होती है, मैंने भी उनसे गले लग कर खूब रोई, फिर दादी ने अलग किया, लेट हो रहा था मैं भी अलग हो कर जल्दी से घर से निकलने लगी, तभी मम्मी ने फिर पीछे से आवाज़ दी, मैंने पलट कर देखा वो एक कॉटन की चुन्नी लिए कड़ी थी।
मम्मी ने चुन्नी देते हुए कहा, वह ये दाल कर रखना वह का माहौल यहाँ से थोड़ा अलग है। मैंने वो चुन्नी मम्मी के हाथ से ले और अपने बैग में ठूंस कर रिक्शे में बैठ गयी।