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Erotica जवानी जानेमन (Completed)

blinkit

I don't step aside. I step up.
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Ye sach hai ki yaha zyadatar readers sex hi padhne aate hain aur Nice Update jaise comments ki bauchhar karte hain. Dher saare Nice Update wale comments dekh kar writer sochta hai ki wo badhiya story likh raha hai tabhi to itne sare logo ke comments aa rahe hain but reality ye hai ki aise dher sare comments karne wale readers ko story me sirf sex padhne se matlab hota hai aur :shag: hilaane se. Unke liye story ya content se koi matlab nahi hota. Agar aap bhi dher sare comments ki chahat rakhte hain to beshak story me sex daal kar story end kar do, afterall ye aapki kahani hai aur aap kuch bhi karne ke liye swatantra hain but agar aap ye chaahte hain ki is forum me aap ki ginti ek din legendary writers me ho to is maya moh se door ho kar wo likhiye jo aap likhna chahte hain aur jise likhne ke liye aapka dil/aatma gawaahi de ya fir jisse aapko santushti mile. Aap yaha par kisi ki khwaaish puri nahi kar sakte kyoki khwaaish karne wale yaha hazaaro me milenge aapko...agar aap sabki khwaaishe hi puri karne ke chakkar me pade to buri tarah ulajh jayenge aur ye bhi sach janao ki ek din khud ke asli byaktitwa ko bhi bhool jaaoge. Is liye kisi ki khwaaish ki taraf dhyaan mat do balki sirf us par focus rakho jise aapne apni kahani ke liye starting se socha hua hai.

kamdev99008 SANJU ( V. R. ) bhaiya jaise reader/writer aapki story ko appreciate kar rahe hain aur saraah rahe hain to samajh jaao ki aap achha likh rahe hain. Ye aapke real reader hain. Ye aapko kabhi galat salaah athwa galat baat nahi bolenge aur itna hi nahi sirf aapko khush karne ke liye aapki jhuthi prasansha bhi nahi karenge. Agar aap me kahi kami dikhegi to ye us kami ko aapko batayenge bhi. Jo readers aapki kami door karne ka kaam kare aise readers ko kabhi ignore na kare. Jhuthi saraahna karne waalo se bacho aur unke liye likho jo aapke sachche readers hain ya fir khud ke liye likho. :dazed:

Meri achanak hi nazar padi thi is kahani par, wo bhi Sanju bhaiya ki vajah se. So maine story thread ko open kiya aur thoda sa padha to writing skill ne mujhe prabhavit kiya. Mere paas zyada time nahi hota kyoki naukari pesha wala insaan hu. Jo time milta hai unme main bhi thoda bahut likhta hu. Well maine time nikaal kar is kahani ko padhna start kar diya. First update me hi samajh gaya ki aisi writing skill kisi nausikhiye ki nahi ho sakti. Main usi ko padhta hu jo mujhe prabhavit karta hai aur maine time nikaal nikaal kar is story ko padha.

Mere pariwar me mere bade dada ji ka nidhan hua hai is liye maine is bich apni koi pratikriya nahi di thi but aapke is comment ko padh kar main khud ko rok na saka. Jaante hain kyo....kyoki main nahi chahata ki ek achhi writing skill wala writer sirf kam response athwa kam comments ko dekh kar likhne ka apna irada badal le. Yaha sabse badi samasya yahi hai ki dhairya nahi hota, ham jab likhte hain to yahi ummid karte hain ki bhar bhar ke log comments kare aur jab aisa nahi hota to yahi feel hota hai ki ham bekaar me hi mehnat kar rahe hain. Aisa nahi hai ki ye sach nahi hai, bilkul sach hai lekin adhura sach. Asal me yaha par achhi cheez ko log bhaav hi nahi dete, kyoki wo khud achhe nahi hote hain, unhe to wo chahiye hota hai jisme unka faayda ho...aur wo faayda hota hai :shag: mutth maarne me. Jo lekhak readers ke liye mutth maarne wali story nahi likhta use aise readers bhaav hi nahi dete. Achhi kahani ke liye achhe readers bhi hote hain lekin unki sankhya seemit hoti hai...aur ye seemit shabd hi kahi na kahi hamare utsaah aur dhairya ko nasht karna shuru kar deta hai jiska nateeja ye hota hai ki ek din achhi khaasi chalne wali kahani ko lekhak adhura chhod kar chala jata hai. Ye sara pravachan dene wala main khud is baat ka saboot hu. Kamdev aur Sanju bhaiya mujhe achhi tarah jaante hain lekin yakeen maano mujhe ghaseet kar wapas patri par lane wale yahi dono hain....warna main kab ka yaha se chala gaya hota. Khair itni saari baato se mera matlab yahi hai ki bro...ya to apne liye likho ya fir un readers ke liye jo aapke sachche readers hain. Sex ke pichhe mat bhaago, kahani me utna hi sex add karo jitna kahani me uski zarurat ho. Ham kahani me wo padhna pasand karte hain jo dil me utar jaye. Kahani me sex ki nahi balki achhe content ki importance honi chahiye....baaki aapki ichha, best of luck :good:
Bhai Dhanyabhag hamare jo aap jaise readers yaha meri kahani par maujood hai, aapki protsahna ka dhanyawad karne ke liye shabd nahi hai mere pass.

fir bhi Thanks a ton brother, maine shayad school ke dino ke baad kabhi 10 line ka koi paragrapgh bhi nahi likha hoga jiwan me, aur fir ye kahani mere dimag me aayi aur maine jo man me aaya likh diya, fir bhi mujh jaise 2 take ke tathakathit lekhak ki himmat badhane ke liye aapka hazaro shukriya, aasha hai ki aapka pyar bana rahega,
 

blinkit

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मैं सीधी उठकर मामा के रूम चली गयी, मैं वहा किसी और को तो जानती नहीं थी इसलिए मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था, दूसरा थोड़ा भाषा की भी समस्या थी, हम दिल्ली हरियाणा वालो ने सदा ऐसी भाषा सुन कर मुँह ही बनाया था, मम्मी भी इतने साल रह कर हरयाणवी टोन में ही बात करने लगी थी लेकिन एक बात साफ़ थी जब भी यहाँ के लोग बात करते हुए कीजियेगा , नहइयेगा जैसे शब्द बोलते थे एक अपनापैन और सम्मानजनक महसूस होता था और यही कारण था की मैं बात करते हुए बच रही थी, कही ना कही मन में डर था की मेरे मुँह से अपनी हरियाणवी टोन कुछ निकल जाये और किसी को बुरा ना लग जाये।

मामा अपने रूम में बैठे थे और साथ में कुछ लोग और भी थे, मामा ने मुझे अपने पास बिठाया और वहा बैठे लोगों को बताया की ये मेरी भांजी है और दिल्ली से आयी है, मेरी बड़ी बहन की बिटिया है, मैंने वहा बैठे लोगो को नमस्ते की, फिर मामा मुझे रूम के एक ओर ले गए, ये काफी बड़ा रूम था, अब मैंने धयान दिया तो गलती का एहसास हुआ, ये मामा का बैडरूम नहीं था ये मामा ने बैठक बना रखी थी घर में, एक तरफ साफ़ सुथरा बिस्तर लगा हुआ था, उसके साइड में बैठने के लिए तिपाई जैसी कोई चीज़ थी और दूसरी तरफ जहा लोग बैठे थे वह सेवन सीटर सोफे पड़ा था, साथ में लगी दीवार में शोकेस बना हुआ था और मामा मुझे उसी शोकेस के सामने लेकर आये थे।

शोकेस में बहुत सारी फोटोज छोटे बड़े फ्रेम में लगी हुई थी और जिसमे कुछ फोटोस में मामा और ममी की फोटोज भी थी, एक फ्रेम में उनके दोनों बच्चों की, लेकिन मामा ने मेरा धयान खींचा था सबसे ऊपर के रैक में रखी फोटो की ओर, पहली फोटो में एक व्यक्ति कुरता धोती पहने खड़ा था, हाथ में एक छाता पकडे हुए, माथे पर चन्दन लगा हुआ था और साइड से उनकी छोटी दिखाई दे रही थी, जैसे मामा ने अभी छोड़ राखी थी सर मुंडवाने के बाद, मामा ने फोटो के ओर इशारा करते हुए कहा "चंदा बेटा इनको प्रणाम करो, यही तुम्हारे नाना पंडित रामशरण है "
मैंने झट से हाथ जोड़ कर नाना जी की फोटो को प्रणाम किया, तस्वीर बहुत पुरानी थी ब्लक एंड वाइट इसलिए कुछ खास पता नहीं चल रहा था फिर भी देख कर अंदाज़ा हो रहा था की नानाजी कोई सज्जन व्यक्ति रहे होंगे, फिर मामा ने अगली तस्वीर की ओर इशारा किया, ये तस्वीर अभी हाल की ही लग रही थी क्यूंकि ये फोटो रंगीन थी, इस फोटो एक महिला की थी, सांवला रंग, साडी का पल्लू सर तक ओढ़े हुए, माथे पर चन्दन का लेप, मामा कुछ बोलते इस से पहले मैं झट से बोल पड़ी, ये नानी है ना, मामा ने गर्दन हिलायी तो मैंने हाथ जोड़ कर नानी को भी नमस्कार किया। मामा मेरी ओर ही देख रहे थे फिर बोले "कैसे पहचाना नानी को ? "

मैंने मुस्कुराकर "बिलकुल मम्मी जैसी है देखने में " मामा "हाँ दीदी बिलकुल माँ जैसी है दिखने में, अब तो और भी हो गयी है, जब मैंने दीदी को देखा था दिल्ली में तुम्हारे घर पर तो एक बारी तो मैं चौंक ही गया था " मैं " हाँ सच में बहुत मिलती है दोनों की शकल, और आप भी तो नानाजी जैसे है देखने में " ये सुनकर मामा जी के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी, शायद ही कोई बेटा होगा जो अपने पिता जैसा न दिखना चाहता हो, फिर मामा ने एक और फोटो की ओर इशारा किया "इसे देखो ये कौन है ?" फोटो थोड़ी धुंधली थी पर मैंने अंदाज़ा लगाया ये माँ होगी क्यूंकि फोटो में एक 15-१६ साल की लड़की एक ५-६ साल के लड़के का हाथ पकडे कड़ी थी, देख कर अंदाज़ा हो रहा था की दोनों भाई बहन ही होंगे, मैं " ये आप और मम्मी है क्या मामाजी ?"

मामाजी : हां हां पहचान गयी
मैं : हाँ अंदाज़ा लगा लिया था मैंने
मामाजी : हाँ बड़ी मुश्किल से ये फोटो हाथ लगी, ये हम किसी के शादी में गए थे वहा ली गयी थी, उस टाइम फोटो खिचवाने का कोई खास चलन तो था नहीं, कुछ साल पहले मुझे किसी ने बताया की दीदी और मेरी फोटो उनके पास है है तो बड़ी मिन्नत करके उनसे ली, माँ ये फोटो देख कर बहुत रोई थी , शायद यही फोटो कारण बानी की माँ ने मुझे दीदी को ढूंढने के लिए कसम दी, बस मुझसे गलती ये हुई की मैंने थोड़ा लेट ढूंढा नहीं तो शायद माँ दीदी को आखरी बार देख कर दुनिया से जाती।

मामा बोलते बोलते रुहाँसे हो गए, मैं समझ नहीं पायी की क्या बोलू, इतने में पीछे से मामी ने आवाज़ लगयी की चाय रेडी है चाय पीने चलो, मामा ने मामी को बोलै की नहीं चंदा मेरे साथ ही चाय पीयेगी तूम यही ले आओ, इतने में जो लोग बैठे थे वो उठ कर जाने लगे, मामा ने उनको चाय के लिए रोका लेकिन फिर अगले दिन का आने का बोल कर चले गए।

मामा मामी और मैंने वही चाय पी, कमाल की बात थी की मामी काली चाय बना कर लायी थी, जिसमे हल्का सा नीबू मिला हुआ था, मैंने आजतक काली चाय नहीं पि थी, मामा समझ गए फिर मुस्कुरा कर बोले " यहाँ शाम में यही चाय चलता है " फिर मामी की ओर मुड़ कर बोले " जब तक चंदा है उसके लिए दूध वाला चाय बना देना, अभी बच्चा है ये, इ सब का आदत नहीं लग पायेगा "

मैं झेप गयी लेकिन जल्दी से बोली " नहीं मामा जी ये भी अच्छा लग रहा है, मेरे लिए स्पेशल मत करो आप " जीवन में कभी मेरे लिए कुछ स्पेशल नहीं हुआ था तो आज अपने लिए स्पेशल होते देखना सुनना अजीब लग रहा था। खैर चाय ख़तम करके जैसे ही मैं उठने लगी तो मामा रोक कर पूछा " तुमने पूरा घर देखा ?" मैंने ना में सर हिला दिया

मामा : आओ मैं दिखता हूँ तुमको, वैसे तो पंडित लोग लोग मना करते है इधर उधर निकलने से तेरहवी तक लेकिन मैं घर में घूम फिर लेता हूँ, कहकर मां जी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे घर के एक ओर लेके चले, मामा के हाथ में एक अजीब से गर्माहट थी, हाथ पकड़ते हुए बहुत अच्छा सा लग रहा था, मैं किसी छोटी बच्ची के जैसी मामा का हाथ पकड़ उनके साथ चल दी, पापा ने कभी ऐसे मेरा हाथ नहीं पकड़ा था, दूसरे बच्चों को जब भी देखती अपने पापा का हाथ या ऊँगली पकड़ कर चलते तो मेरा भी मन करता ऐसे ही पकड़ने का लेकिन पापा ने शायद मुझे कभी बेटी मना ही नहीं था,

मामा मुझे एक एक कर सारा घर दिखा रहे थे, खूब बड़ा घर था, हमारे घर जैसे 10-१५ घर इसमें समां जाये, घर ऐसे बना हुआ था जैसे २ हिस्सों में बना हुआ हो, एक साइड नया आजकल के हिसाब से कंक्रीट का बना हुआ मकान था बीच में खूब बड़ा आंगन था जिसमे एक ओर नलका लगा हुआ था और दिवार के सहारे 3-४ अमरुद और नीम के पेड़ लगे हुए थे, दूसरी साइड में बड़ा बड़ा हाल टाइप का था, जिस पर छप्पर डाला हुआ था खपरैल वाला, वही नल के ओप्पोसित साइड वाले में वो बैठक नुमा कमरा था जो गली से कनेक्टेड थे, मामा यहाँ जायदातर बैठा करते थे और यही वो लोगो से मिला जुला करते थे क्यंकि यहाँ से गली सीधा रोड से मिलती थी इसलिए लोगो को आना जान आसान लगता था,

जो खपरैल वाला हिस्सा था वो नाना जी के पिताजी ने बनवाया था, जमीन खूब थी इसलिए मामाजी ने नया मकान दूसरी ओर बनाया और इसको जस का तस रहने दिया था, इसी में एक कमरा नानी का था जिसमे वो अपने देहांत से पहले तक रहती थी, मामा ने दिखाया, मिटटी की दिवार से बना कमरा जिसमे एक ओर दिवार से लगा बेड था और दीवार के दोनों ओर अलमारी बानी हुई थी जिसमे नानी का सामान रखा हुआ था, हम कमरे से बहार निकले तो मामा गेट बंद करने लगे तो मैंने दरवाजे पर एक हाथ के पंजे का निशान देख कर मामा से पूछा के ये क्या है ? मामा ने बताया की बचपन में घर कुछ रंगाई पुताई का काम हो रहा था, तब एक दिन दीदी ने शरारत में अपने हाथ का पंजा अपने दरवाज़े पर छाप दिया था, असल में दीदी का कमरा है, पिताजी के देहांत के बाद से माँ दीदी के कमरे में ही रहने लगी थी और बाउजी वाला कमरा मैंने ले लिया था, तब तक ये नया वाला मकान नहीं बना था। बाद में बहुत बार रंगाई पुताई का काम हुआ लेकिन माँ ने इस दरवाज़े को कभी पोतने नहीं दिया, शायद वो दीदी की निशानी को नहीं मिटाना चाहती थी।

मैंने जेब से अपना फ़ोन निकला और दरवाजे की एक फोटो ले ली , मामा मुझ हर बात डिटेल में बता रहे थे, मेरा कई बार मन हुआ की मामा से पुछु के जब सब कुछ ठीक था परिवार में, ना गरीबी थी ना और कोई समस्या फिर नाना और नानी क्यों मम्मी की शादी इतनी दूर एक पियक्कड़ और विधुर व्यक्ति से क्यों कर दी, और ऊपर से दोनों में आयु का इतना अंतर, लेकिन मैं पूछ नहीं पायी, आज वैसे भी पहला दिन था लेकिन मैंने पक्का इरादा कर लिया था की यहाँ से जाने से पहले ये जान कर रहूंगी।

अगला दिन तेरहवी और लोगो के सेवा सत्कार में निकल गया, मामा ने अपना वचन निभाया और मुझे अपने साथ पूजा में ले कर बैठे, एक दो बूढी औरतों को थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन मामा ने एक ना सुनी , पूजा से निपट कर मोहल्ले पड़ोस वालो को और ब्राह्मण को खाना खिलाया गया और फिर सबने धीरे धीरे विदा ली। मैंने माँ की बात मानते हुए बाकि गांव की लड़कियों और औरतो के जैसे चुन्नी लपेटे रही।

जब शाम में लगभग सब चले गए मैं मामा जी के बच्चों के साथ गप्पे मार रही थी, मेरी उन बच्चों के साथ खूब बनने लगी थी, तब अचानक एक बुढ़िया लाठी टेकते हुए आँगन में आयी, मामी उसको देख के झट से उठी और उनके पैर छू लिए, बुढ़िया मामी से कह रही थी "सब को बुलाया और मुझे भूल गयी, तेरी सास के मरते ही अपने पराये सबको भूल गयी ?" मामी झेप गयी और हकलाते हुए बोली " नहीं काकी मैंने भेजा था बिल्लू को आपके घर लेकिन आप नहीं थी, आप सुधीर के यहाँ गयी थी उसका लड़का को देखने , आज भी सवेरे भेजा था लेकिन आप तब तक आयी नहीं थी और आपका घर बंद था "

काकी : हां फिर तू ठीक बोल रही है बहु , मुझे लगा तूने मुझे जानकर नहीं बुलाया
मामी : कैसी बात करती हो काकी भला इस गांव में कौन ऐसा है जो आपके मरने जीने में ना बुलाता हो, आपके बिना इस गांव में ना कोई शादी हो सकती है , ना कोई बच्चा और ना किसी के तेरहवी, रुकिए आप का खाना मैंने संभल के रखा है ले के जायेगा, तब तक आप बैठिये ना।

मेरा धयान अब इस बुढ़िया काकी पर ही था, कम से कम ७० साल की होगी बुढ़िया मेरी दादी से भी बड़ी उम्र की लेकिन शरीर में अभी भी जान दिखाई दे रही थी और आवाज़ भी टन टन निकल रही थी, बुढ़िया काकी ने अब इधर उधर नज़र दौड़ाई तो मैं भी उठ के उसके नज़दीक गयी और जैसे ही नमस्ते करके पैर छूने लगी की बुढ़िया ने एक हाथ से पकड़ कर मुझे सीधा किया और एक अचरज भरे स्वर ने बोली " अरे तू सविता की बेटी है ना ? "

इतने में मामी ने पीछे से कहा " अरे किसने बताया आप को काकी ?"
काकी : ऐ लो अब ये भी बताने वाली बात है, मेरे सामने जन्मी थी सविता, उसकी नाल मैंने अपने हाथ से ही काटी थी भला मैं न पहचानोगी, अभी तक मेरी आँख ठीक है अगर अंधी भी हो जाओ तो सविता को छू के पहचान लुंगी"
मैं : हाँ काकी मैं सविता की ही बेटी हूँ
काकी : कब आयी तू ? और तेरी माँ कहा है ?
मैं : कल आयी हूँ काकी, माँ नहीं आयी, दादी ज़्यदा बीमार थी इसलिए छोड़ के नहीं आसक्ति थी" मैंने झूट बोला

काकी : बिलकुल अपनी माँ पर गयी है बुर बाप का रंग ले लिया है इसलिए गोरी हो गयी है बाकि सब कुछ वैसे ही है बस थोड़ा शरीर नहीं भरा माँ जैसा, तेरी माँ का तो तेरी उम्र से 3-४ साल पहले ही भर गया था बिलकुल

अभी काकी कुछ और बोलती की मामी ने जल्दी से काकी को टोका "काकी खाना चिमकी में दाल दिया है, घर ले के जाएंगी या थोड़ा यही लगा दू। "

काकी को मामी का टोकना अच्छा नहीं लगा शायद, बुरा सा मुँह बना कर बोली "नहीं बहु चिमकी ही दे दे अब घर जा कर ही खाउंगी, अब तो तेरी सास के बाद तो ये घर पराया ही हो गया समझो " मामी ने भी झट से पिन्नी में बंधा खाना काकी को पकड़ाया और जल्दी से उनके पैर छू लिए, मनो मामी जल्दी से पीछा छूटना चाह रही हो "
 

blinkit

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काकी के जाते ही मामी ने रहत की सांस ली, बहुत खतरनाक बुढ़िया है ये, इस से बच कर रहना, ये बुढ़िया इस गांव का पूरा इतिहास जानती है, अगर इस गांव में पत्ता भी हिलता है तो इस बुढ़िया को पता चल जाता है, तुम्हारे आने का भी भनक इस बुढ़िया को लग गयी होगी तभी आयी है यहाँ, वर्ण ये सुधीर के यहाँ से इतनी जल्दी नहीं आती , छत्ती नहला के आती ये वहा से।

मैं : लेकिन ये है कौन ?
मामी : हमारी ही रिश्तेदार है, इसके पति सरकारी नौकरी में थे, एक ही बेटा था, शहर में रख कर खूब पढ़ाया लिखाया, लेकिन बहार रहने के कारण परिवार से कभी आत्ताच नहीं हुआ, काकी अपने पति से लड़ती थी की बेटे को घर में रख कर पढ़ाओ लेकिन काका नहीं माने और उसका नतीजा ये हुआ की एक दिन वो विदेश चला गया बिना बताये, अब वही सपरिवार रहता है, बस एक बार आया था काका के मरने के बाद उसके बाद फिर नहीं आया वापिस। अब काकी काका के पेंशन पर जी रही है। जब अकेली थी तभी लोगो के मरने जीने में जाने लगी, गांव की आधी महिलाये जो गरीब है उनके बच्चों की डिलीवरी काकी के हाथो ही हुई है, आज भी गांव में कोई भी काम होता है उसमे काकी की उपस्तिथि ज़रूर होती है, आज वो सवेरे से यही होती लेकिन सुधीर के यहाँ कल बच्चा हुआ है तो काकी वही वयस्थ थी इसलिए अब आयी है।

जैसे जैसे मामी मुझे काकी के बारे में बता रही थी वैसे वैसे मेरा दिमाग चल रहा था, मुझे माँ की शादी के बारे में काकी से अच्छा कौन बता सकता था, मामा और मामी शायद बताते हुए झिझकते लेकिन ये बुढ़िया तो मुंहफट मालूम होती है, मुझे सही जानकारी इसी बुढ़िया से मिल सकती थी। मामी के मना करने के बावजूद मैंने ठान लिया था की जैसे ही मौका लगेगा मैं इस बुढ़िया से ज़रूर मिलूंगी।

अगले दो दिन परिवार में ही व्यस्त रही, तेरहवी हो चुकी थी तो मामा भी अपनी दूकान पर हो आये और मेरे और बच्चों के लिए खाने पिने की बहुत सी मिठयां और चॉकलेट लाये, मामा मुझे बिलकुल बच्चो के जैसे ट्रीट कर रहे थे और मुझे भी अच्छा लग लग रहा था अपने पिता सामान मामा के साथ समय बिता कर। यहाँ आकर मैं सब भूल भाल गयी थी, यहाँ ना पापा थे, न वो नशेड़ी रमेश था और नहीं वो गुंडा दीपक जीवन शायद ही इतना अच्छा रहा हो मेरे लिए, मैं खूब खुश थी, एक दो रिश्तेदार से भी मिली, लेकिन मामा ने ज़्यदा इधर उधर जाने नहीं दिया।

इतवार का दिन था मामा आज जल्दी चले गए थे दूकान पर क्यंकि संडे को दूकान पर भीड़ ज़्यदा रहती थी, बाकि दिन लड़के संभल लेते थे लेकिन संडे के कारण मामा को जाना पड़ा, वैसे भी दिवाली आने वाली थी तो दूकान पर भीड बहुत रहने वाली थी।
उस दिन सब देर से सो कर उठे, नास्ता करके मैं तैयार हुई की तभी मामा के यहाँ काम करने वाली लड़की राधा आगयी। राधा मेरे से 3-४ साल छोटी रही होगी लेकिन शरीर से अभी से जवान दिखने लगी थी, उसका शरीर मुझसे भी अधिक भरा हुआ था लेकिन बात बिलकुल बच्चों वाली करती थी। राधा मामी के काम हाथ बताती थी, उसकी माँ दिन में आकर बर्तन मांज जाती थी। आज कुछ ज़्यदा काम था नहीं क्यूंकि मामा ने बोला था की शाम में वो लिट्टी चोखा ले कर आएंगे। वो मेरे लिए ही लाने वाले थे क्यूंकि मैंने आज तक लिट्टी चोखा खाया नहीं था,

राधा थोड़ी ही देर में काम से फ्री हो गयी और बच्चे टीवी देखने लगे, मामी भी मोबाइल पर वीडियो कॉल पर अपनी घरवालों से बात करने में बिजी थी। मैंने राधा को पकड़ा " राधा मुझे गांव आये इतने दिन हो गए लेकिन तुमने अब तक मुझे गांव नहीं दिखाया ?"
राधा : का बात करती है मालकिन, आप बोलिये अभी दिखा दूंगी
मैं : तो चलो आज दिखा दो मुझे अपना गांव
राधा : ठीक है, अभी चलिए
मैं मामी के रूम के पास खड़ी होकर बोली " मामी मैं राधा के साथ घूमने जा रही हूँ, थोड़ी देर में आती हूँ घूम के" मामी शायद काल में ज़्यदा भी बिजी थी उन्होंने बस गर्दन हाँ में हिला दी तो मैं झट से राधा का हाथ पकड़ के घर से निकल पड़ी
 

Sanjuhsr

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Awesome update, mama ke ghar par abhi tak sahi chal rha hai lekin ma ka kuchh raj lag raha hai dekhte hai kya aata hai samne,
Ek bat aur hai man me abhi tak ye clear nahi hua is story me chanda ki life me hero Sameer ki entry kis waqt ki hai, kab usne phone kiya pahla Sameer ko card ke liye aur kyo wo Sameer ke prati aashkt huyi,
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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काकी के जाते ही मामी ने रहत की सांस ली, बहुत खतरनाक बुढ़िया है ये, इस से बच कर रहना, ये बुढ़िया इस गांव का पूरा इतिहास जानती है, अगर इस गांव में पत्ता भी हिलता है तो इस बुढ़िया को पता चल जाता है, तुम्हारे आने का भी भनक इस बुढ़िया को लग गयी होगी तभी आयी है यहाँ, वर्ण ये सुधीर के यहाँ से इतनी जल्दी नहीं आती , छत्ती नहला के आती ये वहा से।

मैं : लेकिन ये है कौन ?
मामी : हमारी ही रिश्तेदार है, इसके पति सरकारी नौकरी में थे, एक ही बेटा था, शहर में रख कर खूब पढ़ाया लिखाया, लेकिन बहार रहने के कारण परिवार से कभी आत्ताच नहीं हुआ, काकी अपने पति से लड़ती थी की बेटे को घर में रख कर पढ़ाओ लेकिन काका नहीं माने और उसका नतीजा ये हुआ की एक दिन वो विदेश चला गया बिना बताये, अब वही सपरिवार रहता है, बस एक बार आया था काका के मरने के बाद उसके बाद फिर नहीं आया वापिस। अब काकी काका के पेंशन पर जी रही है। जब अकेली थी तभी लोगो के मरने जीने में जाने लगी, गांव की आधी महिलाये जो गरीब है उनके बच्चों की डिलीवरी काकी के हाथो ही हुई है, आज भी गांव में कोई भी काम होता है उसमे काकी की उपस्तिथि ज़रूर होती है, आज वो सवेरे से यही होती लेकिन सुधीर के यहाँ कल बच्चा हुआ है तो काकी वही वयस्थ थी इसलिए अब आयी है।

जैसे जैसे मामी मुझे काकी के बारे में बता रही थी वैसे वैसे मेरा दिमाग चल रहा था, मुझे माँ की शादी के बारे में काकी से अच्छा कौन बता सकता था, मामा और मामी शायद बताते हुए झिझकते लेकिन ये बुढ़िया तो मुंहफट मालूम होती है, मुझे सही जानकारी इसी बुढ़िया से मिल सकती थी। मामी के मना करने के बावजूद मैंने ठान लिया था की जैसे ही मौका लगेगा मैं इस बुढ़िया से ज़रूर मिलूंगी।

अगले दो दिन परिवार में ही व्यस्त रही, तेरहवी हो चुकी थी तो मामा भी अपनी दूकान पर हो आये और मेरे और बच्चों के लिए खाने पिने की बहुत सी मिठयां और चॉकलेट लाये, मामा मुझे बिलकुल बच्चो के जैसे ट्रीट कर रहे थे और मुझे भी अच्छा लग लग रहा था अपने पिता सामान मामा के साथ समय बिता कर। यहाँ आकर मैं सब भूल भाल गयी थी, यहाँ ना पापा थे, न वो नशेड़ी रमेश था और नहीं वो गुंडा दीपक जीवन शायद ही इतना अच्छा रहा हो मेरे लिए, मैं खूब खुश थी, एक दो रिश्तेदार से भी मिली, लेकिन मामा ने ज़्यदा इधर उधर जाने नहीं दिया।

इतवार का दिन था मामा आज जल्दी चले गए थे दूकान पर क्यंकि संडे को दूकान पर भीड़ ज़्यदा रहती थी, बाकि दिन लड़के संभल लेते थे लेकिन संडे के कारण मामा को जाना पड़ा, वैसे भी दिवाली आने वाली थी तो दूकान पर भीड बहुत रहने वाली थी।
उस दिन सब देर से सो कर उठे, नास्ता करके मैं तैयार हुई की तभी मामा के यहाँ काम करने वाली लड़की राधा आगयी। राधा मेरे से 3-४ साल छोटी रही होगी लेकिन शरीर से अभी से जवान दिखने लगी थी, उसका शरीर मुझसे भी अधिक भरा हुआ था लेकिन बात बिलकुल बच्चों वाली करती थी। राधा मामी के काम हाथ बताती थी, उसकी माँ दिन में आकर बर्तन मांज जाती थी। आज कुछ ज़्यदा काम था नहीं क्यूंकि मामा ने बोला था की शाम में वो लिट्टी चोखा ले कर आएंगे। वो मेरे लिए ही लाने वाले थे क्यूंकि मैंने आज तक लिट्टी चोखा खाया नहीं था,

राधा थोड़ी ही देर में काम से फ्री हो गयी और बच्चे टीवी देखने लगे, मामी भी मोबाइल पर वीडियो कॉल पर अपनी घरवालों से बात करने में बिजी थी। मैंने राधा को पकड़ा " राधा मुझे गांव आये इतने दिन हो गए लेकिन तुमने अब तक मुझे गांव नहीं दिखाया ?"
राधा : का बात करती है मालकिन, आप बोलिये अभी दिखा दूंगी
मैं : तो चलो आज दिखा दो मुझे अपना गांव
राधा : ठीक है, अभी चलिए
मैं मामी के रूम के पास खड़ी होकर बोली " मामी मैं राधा के साथ घूमने जा रही हूँ, थोड़ी देर में आती हूँ घूम के" मामी शायद काल में ज़्यदा भी बिजी थी उन्होंने बस गर्दन हाँ में हिला दी तो मैं झट से राधा का हाथ पकड़ के घर से निकल पड़ी
बढ़िया अपडेट।

लगता है शरीर भरने के असर के कारण ही सविता की शादी आनन फानन में हुई, और चंद्रमा उसी शरीर भरने वाले की औलाद है।
 

kamdev99008

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बढ़िया अपडेट।

लगता है शरीर भरने के असर के कारण ही सविता की शादी आनन फानन में हुई, और चंद्रमा उसी शरीर भरने वाले की औलाद है।
मुझे भी ऐसा ही लगता है
 

malikarman

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काकी के जाते ही मामी ने रहत की सांस ली, बहुत खतरनाक बुढ़िया है ये, इस से बच कर रहना, ये बुढ़िया इस गांव का पूरा इतिहास जानती है, अगर इस गांव में पत्ता भी हिलता है तो इस बुढ़िया को पता चल जाता है, तुम्हारे आने का भी भनक इस बुढ़िया को लग गयी होगी तभी आयी है यहाँ, वर्ण ये सुधीर के यहाँ से इतनी जल्दी नहीं आती , छत्ती नहला के आती ये वहा से।

मैं : लेकिन ये है कौन ?
मामी : हमारी ही रिश्तेदार है, इसके पति सरकारी नौकरी में थे, एक ही बेटा था, शहर में रख कर खूब पढ़ाया लिखाया, लेकिन बहार रहने के कारण परिवार से कभी आत्ताच नहीं हुआ, काकी अपने पति से लड़ती थी की बेटे को घर में रख कर पढ़ाओ लेकिन काका नहीं माने और उसका नतीजा ये हुआ की एक दिन वो विदेश चला गया बिना बताये, अब वही सपरिवार रहता है, बस एक बार आया था काका के मरने के बाद उसके बाद फिर नहीं आया वापिस। अब काकी काका के पेंशन पर जी रही है। जब अकेली थी तभी लोगो के मरने जीने में जाने लगी, गांव की आधी महिलाये जो गरीब है उनके बच्चों की डिलीवरी काकी के हाथो ही हुई है, आज भी गांव में कोई भी काम होता है उसमे काकी की उपस्तिथि ज़रूर होती है, आज वो सवेरे से यही होती लेकिन सुधीर के यहाँ कल बच्चा हुआ है तो काकी वही वयस्थ थी इसलिए अब आयी है।

जैसे जैसे मामी मुझे काकी के बारे में बता रही थी वैसे वैसे मेरा दिमाग चल रहा था, मुझे माँ की शादी के बारे में काकी से अच्छा कौन बता सकता था, मामा और मामी शायद बताते हुए झिझकते लेकिन ये बुढ़िया तो मुंहफट मालूम होती है, मुझे सही जानकारी इसी बुढ़िया से मिल सकती थी। मामी के मना करने के बावजूद मैंने ठान लिया था की जैसे ही मौका लगेगा मैं इस बुढ़िया से ज़रूर मिलूंगी।

अगले दो दिन परिवार में ही व्यस्त रही, तेरहवी हो चुकी थी तो मामा भी अपनी दूकान पर हो आये और मेरे और बच्चों के लिए खाने पिने की बहुत सी मिठयां और चॉकलेट लाये, मामा मुझे बिलकुल बच्चो के जैसे ट्रीट कर रहे थे और मुझे भी अच्छा लग लग रहा था अपने पिता सामान मामा के साथ समय बिता कर। यहाँ आकर मैं सब भूल भाल गयी थी, यहाँ ना पापा थे, न वो नशेड़ी रमेश था और नहीं वो गुंडा दीपक जीवन शायद ही इतना अच्छा रहा हो मेरे लिए, मैं खूब खुश थी, एक दो रिश्तेदार से भी मिली, लेकिन मामा ने ज़्यदा इधर उधर जाने नहीं दिया।

इतवार का दिन था मामा आज जल्दी चले गए थे दूकान पर क्यंकि संडे को दूकान पर भीड़ ज़्यदा रहती थी, बाकि दिन लड़के संभल लेते थे लेकिन संडे के कारण मामा को जाना पड़ा, वैसे भी दिवाली आने वाली थी तो दूकान पर भीड बहुत रहने वाली थी।
उस दिन सब देर से सो कर उठे, नास्ता करके मैं तैयार हुई की तभी मामा के यहाँ काम करने वाली लड़की राधा आगयी। राधा मेरे से 3-४ साल छोटी रही होगी लेकिन शरीर से अभी से जवान दिखने लगी थी, उसका शरीर मुझसे भी अधिक भरा हुआ था लेकिन बात बिलकुल बच्चों वाली करती थी। राधा मामी के काम हाथ बताती थी, उसकी माँ दिन में आकर बर्तन मांज जाती थी। आज कुछ ज़्यदा काम था नहीं क्यूंकि मामा ने बोला था की शाम में वो लिट्टी चोखा ले कर आएंगे। वो मेरे लिए ही लाने वाले थे क्यूंकि मैंने आज तक लिट्टी चोखा खाया नहीं था,

राधा थोड़ी ही देर में काम से फ्री हो गयी और बच्चे टीवी देखने लगे, मामी भी मोबाइल पर वीडियो कॉल पर अपनी घरवालों से बात करने में बिजी थी। मैंने राधा को पकड़ा " राधा मुझे गांव आये इतने दिन हो गए लेकिन तुमने अब तक मुझे गांव नहीं दिखाया ?"
राधा : का बात करती है मालकिन, आप बोलिये अभी दिखा दूंगी
मैं : तो चलो आज दिखा दो मुझे अपना गांव
राधा : ठीक है, अभी चलिए
मैं मामी के रूम के पास खड़ी होकर बोली " मामी मैं राधा के साथ घूमने जा रही हूँ, थोड़ी देर में आती हूँ घूम के" मामी शायद काल में ज़्यदा भी बिजी थी उन्होंने बस गर्दन हाँ में हिला दी तो मैं झट से राधा का हाथ पकड़ के घर से निकल पड़ी
Awesome update
 
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सरिता ( सविता ) देवी की शादी से पहले की कहानी जानने की उत्सुकता बढ़ते जा रही है। आखिर क्या वजह रही होगी कि उसके मां-बाप धन दौलत से समर्थ होने के बाद भी अपनी एकलौती लाडली की शादी एक ऐसे इंसान से करा दी जो विधुर भी था , शराबी और अय्याश भी था , और उम्र मे उससे दस साल बड़ा भी था ।
सरिता देवी की अपने मां-बाप के प्रति नफरत उनके मृत्यु के पश्चात भी खतम न हो सकी। इससे यही समझ आता है कि उनके साथ काफी गलत किया गया था। शायद उन्हे किसी अन्य जात के लड़के से प्रेम हुआ हो , वो कुंवारी मां बनने वाली हो और इसी कारण उन्हे जबरन शादी करने पर मजबूर कर दिया गया हो। कुछ तो जरूर बड़ी घटना हुई होगी !
लेकिन फिर भी , एक ऐसे आदमी के साथ अपनी लड़की का रिश्ता तय करना जी किसी भी तरह से लड़की के साथ मेल न खाता हो , समझ मे आने लायक नही है।
ऐसा व्यवहार कोई सौतेला या निर्दयी ही कर सकता है।

सरिता देवी के आंख के आंसू यह बयां अवश्य कर रहे है कि उन्हे अपनी मां के मौत से दुख हुआ है लेकिन यह भी इशारा कर रहा है कि वो अबतक उन्हे माफ भी नही कर पाई है।
देखते है गांव की बुज़ुर्ग महिला उनके बारे मे क्या बताती है !

समीर को इस बात का एहसास है कि चन्द्रमा के साथ बहुत कुछ बुरा हुआ है। उसे इस बात का भी एहसास है कि कुछ गलतियाँ उसने खुद भी की है।
चन्द्रमा का क्वोट , " जीवन मे मेरे लिए कभी कुछ स्पेशल नही हुआ " बहुत ही मार्मिक और दर्द से भरे हुए थे।
एक बार फिर से समीर साहब से यही इल्तजा रहेगी कि वो चन्द्रमा के लिए इतने ज्यादा स्पेशल , अच्छे कार्य करे कि वो गिनते गिनते थक जाए !

बहुत ही खूबसूरत अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
( एक सलाह देना चाहता हूं भाई , आप अपडेट को पोस्ट करने से पहले कम से कम दो बार चेक कर लीजिए । अगर कोई शब्दों मे गलती हो , शब्दों के प्रयोग मे गलती हो तो यह सुधारा जा सकता है। अर्थात एकाध बार रिवीजन कर ले फिर पोस्ट करे )
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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सरिता ( सविता ) देवी की शादी से पहले की कहानी जानने की उत्सुकता बढ़ते जा रही है। आखिर क्या वजह रही होगी कि उसके मां-बाप धन दौलत से समर्थ होने के बाद भी अपनी एकलौती लाडली की शादी एक ऐसे इंसान से करा दी जो विधुर भी था , शराबी और अय्याश भी था , और उम्र मे उससे दस साल बड़ा भी था ।
सरिता देवी की अपने मां-बाप के प्रति नफरत उनके मृत्यु के पश्चात भी खतम न हो सकी। इससे यही समझ आता है कि उनके साथ काफी गलत किया गया था। शायद उन्हे किसी अन्य जात के लड़के से प्रेम हुआ हो , वो कुंवारी मां बनने वाली हो और इसी कारण उन्हे जबरन शादी करने पर मजबूर कर दिया गया हो। कुछ तो जरूर बड़ी घटना हुई होगी !
लेकिन फिर भी , एक ऐसे आदमी के साथ अपनी लड़की का रिश्ता तय करना जी किसी भी तरह से लड़की के साथ मेल न खाता हो , समझ मे आने लायक नही है।
ऐसा व्यवहार कोई सौतेला या निर्दयी ही कर सकता है।

सरिता देवी के आंख के आंसू यह बयां अवश्य कर रहे है कि उन्हे अपनी मां के मौत से दुख हुआ है लेकिन यह भी इशारा कर रहा है कि वो अबतक उन्हे माफ भी नही कर पाई है।
देखते है गांव की बुज़ुर्ग महिला उनके बारे मे क्या बताती है !

समीर को इस बात का एहसास है कि चन्द्रमा के साथ बहुत कुछ बुरा हुआ है। उसे इस बात का भी एहसास है कि कुछ गलतियाँ उसने खुद भी की है।
चन्द्रमा का क्वोट , " जीवन मे मेरे लिए कभी कुछ स्पेशल नही हुआ " बहुत ही मार्मिक और दर्द से भरे हुए थे।
एक बार फिर से समीर साहब से यही इल्तजा रहेगी कि वो चन्द्रमा के लिए इतने ज्यादा स्पेशल , अच्छे कार्य करे कि वो गिनते गिनते थक जाए !

बहुत ही खूबसूरत अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
( एक सलाह देना चाहता हूं भाई , आप अपडेट को पोस्ट करने से पहले कम से कम दो बार चेक कर लीजिए । अगर कोई शब्दों मे गलती हो , शब्दों के प्रयोग मे गलती हो तो यह सुधारा जा सकता है। अर्थात एकाध बार रिवीजन कर ले फिर पोस्ट करे )
Thank you brother for your kind suggestion, actually I am borderline dyslexic so i tend to make mistakes, fir bhi I will try ki kam se kam galti ho.
 
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