रिक्शे से मैं मैं रोड पर पहुंची, दीपक वहा मेरा इंतज़ार कर रहा था, मैं रिक्शे से उतर कर दीपक की बाइक पर बैठ गयी, सामान कुछ ज़्यादा नहीं था इस लिए मैं बैग अपने और दीपक के बीच में रख कर बैठी थी, दीपक मेरे बैठते ही बाइक लेके उड़ गया, मैं उस से चिपक तो बैठ नहीं सकती थी तो वो भी बाइक चलने पर ज़्यदा धयान दे रहा था ना की बार बार ब्रेक लगाने पर, डेढ़ घंटे का रास्ता दीपक ने १ घंटे में पूरा कर किया और मुझे १० बजे स्टेशन पंहुचा दिया, स्टेशन के सामने बाइक रोक कर दीपक ने मुझे उतरने का इशारा किया, मैंने बाइक से उतर कर बैग एक साइड में रखा और दीपक के सामने आकर खड़ी हो गयी, दीपक अभी बाइक पर ही बैठा था उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और ज़ोर से दबा दिया, मैंने एक आह भर कर रह गयी, उसने मेरी आँखों में आंखे डाल कर कहा, " बहनचोद भरोसा करके तुझे जाने दे रहा हूँ, मेरे साथ धोका मत करियो, अगर गलती से भी तूने कोई हरकत करि या मुझे छोड़ कर किसी और के संग सेट हुई तो माँ कसम तेरी माँ चोद दूंगा "
मैं उसकी धमकी से खुश खास घबराई नहीं, मुझे उस से इसी प्रकार की भाषा की उम्मीद थी, मैंने भी साफ़ जॉब दिया की " अगर कुछ हरकत करनी ही थी तो तुझे क्यों लाती, चुपचाप भी आसक्ति थी, मुझे कोई कलेश नहीं करना है, मैं बस नानी की तेरहवी में जा रही हूँ बस तू मेरी जॉब का धयान रखना, मुझे वापसी में ये जॉब चाहिए, "
दीपक ये सुन कर खुश हो गया " अरे तू चिंता ना कर, साले मेरे रहते तुझे किसी कीमत पर नहीं निहि निकल सकते, सालो की गांड मार लूंगा अगर तुझे कुछ कहा उन्होंने तो " आज दीपक कुछ ज़्यदा ही गालिया निकाल रहा था, शायद मुझ पर धौंस ज़माने के लिए, लेकिन मुझे कुछ खास फरक नहीं पड़ रहा था, उसने साथ प्लेटफार्म तक आने का बोला लेकिन भीड़ बहुत थी तो प्लेटफार्म टिकट की बहुत लम्बी लाइन थी, मैंने मना कर दिया और बैग उठा कर प्लैटफॉर्म पर चली गयी, ट्रैन प्लेटफार्म पर खड़ी थी, किस्मत अच्छी थी मुझे वही टिकट चेकर मिल गया जब मैंने बताया की मैं अकेली हूँ तो उसने मुझे मेरी सीट तक पहुंचाया और चला गया, मैंने अपना बैग अपनी सीट पर रख के चुपचाप बैठ गयी, मेरी सीट खिड़की के साइड वाली अप्पर बर्थ थी, थोड़ी देर में लोग आ कर अपनी सीट पर बैठ गए और ठीक ११ बजे ट्रैन स्टेशन से चल पड़ी, थोड़ी देर में मैंने देखा की लोग अपने ब्लॅंकेटस और चादर सीट पर बिछा रहे है और कुछ लोग तो उप्पर बर्थ वाले तो आराम से लेट भी गए, मैं पहली बार ट्रैन के एयर कंडिशन्ड बॉगी में सफर कर रही थी,मैंने भी अपनी चादर बिछाई और आराम से लेट कर कम्बल ओढ़ लिया, थोड़ी देर में मामा का फ़ोन आया तो मैंने उनको बता दिया की मैं ट्रैन में हूँ और चिंता की कोई बात नहीं है। मामा के कॉल से मुझे माँ की याद आयी और उनका आज का व्यवहार बिलकुल अलग था, मैंने माँ को कॉल करके बता दिया की मैं ठीक थक ट्रैन में सवार हो गयी चिंता किकोई बात नहीं है।
रास्ता सोते जागता गुज़रा, मैं सुबह ६ बजे मामा के बताये हुए सोनपुर स्टेशन पर पहुंच गयी, स्टेशन बहुत बड़ा था लेकिन दिल्ली की तरह कोई भीड़ भाड़ नहीं थी मैं अपना बैग उठा कर थोड़ा आगे बढ़ी ही थी की एक तीस पैंतीस साल का आदमी मेरे पास आया और बोला " तोहरा नाम चन्द्रमा भइल का " मुझे ठीक से समझ नहीं आया लेकिन मैं अपना नाम सुन कर समझ गयी की इस आदमी को मामा ने भेजा है, मैंने मामा को कॉल किया तो उन्होंने बताया की ये आदमी उनकी ही दूकान पर काम करता है और ये मुझे उनके पास पंहुचा देगा। मैं उस आदमी के साथ चल पड़ी, उसने मेरा बैग उठा कर सर पर रख लिया था और तेज़ चलते हुए स्टेशन से बहार निकल आया, बहार एक ऑटो खड़ा था उसने सामान उस ऑटो में रखा और खुद ड्राइविंग सीट में बैठ कर ऑटोचालने लगा, मामा का घर वह से कोई 10-१२ किलोमीटर दूर था, लगभग आधा घंटे में हम एक गाँव के पास पहुंचे, गाओं के बहार कुछ खपरैल मकान बने हुए थे, इसे मकान मैंने फरीदाबाद या दिल्ली में नहीं देखे थे,
ऑटो थोड़ा आगे बढ़ा तो कुछ पक्के मकान नज़र आये फिर थोड़ा आके चल कर ऑटो एक मकान के पास जाकर रुक गया, ये मकान काफी बड़ा था गांव से थोड़ा सा हटके बना हुआ था लेकिन बहार से पता लग रहा था की मकान काफी बड़े प्लाट पर बना हुआ है, ऑटो से उतर कर उस उस आदमी ने जैसे ही दरवाज़ा खटखटया की दरवाजा झट से खुल गया और सामने मामा खड़े दिखाई दिए, मामा के सर के बाल उतरे हुए थे फिर भी मैंने उनको झट से पहचान लिया, मामा ने भी मुझे देखते ही अपनी बांहो में ले लिया और मुझे घर के अंदर ले आये, कमरे में मामा मामी और उनको २ बच्चे भी थे, मामा ने मुझे सब से मिलवाया, घर में गमी का माहौल था फिर भी सब मिलकर बहुत खुश हुए और मुझे भी अपनापन महसूस हो रहा था, सूरज अब निकलाया था मामी मुझे एक रूम में लेकर गयी और मुझसे फ्रेश होने के लिए कहा, मेरा बैग मामा ने वही रखवा दिया था, मामी ने बताया के यही मेरा कमरा है और मैं आराम से फ्रेश हो कर उसी कमरे में जाना जहा अभी मामा मिले थे, खूब बड़ा रूम था, एक तरफ बाथरूम था, दूसरी तरफ बेड लगा हुआ था और एक साइड अलमीरा थी, मैंने अपना सामान खोल कर अलमारी में ढंग से रख दिया और एक जोड़ी सलवार सूट निकल कर नहाने चली गयी, जब मैं नाहा धो कर तैयार हुई तो खुद को आईने में देखा, आज बहुत दिनों के बाद मैंने खुद को ठीक से देखा था, वरना उस रात के बाद से खुद को देखने में भी घृणा आती थी, तभी मुझे माँ की दी हुई चुन्नी याद आयी तो मैंने जल्दी से बैग से निकल कर गले में डाल ली।
कुछ देर बाद मैं मां के रूम में थी, देखा तो वहा चटाई पर नाश्ता लगा हुआ था और सब बैठे मेरा इन्तिज़ार कर रहे थे, मैं चुपचाप जा कर मामी के पास बैठ गयी, मामा जी वही बैठे कुछ मंद मंद बुदबुदा रहे थे, फिर मामी ने एक थाली सजाई और वो थाली मामा के आगे रख दी, मामा कोई जाप कर रहे थे, जाप पूरा करके मामा ने थाली उठायी और कमरे से बाहर निकल गए ? मैंने आजतक ऐसा कुछ नहीं देखा था तो मैंने मामी से पूछ लिया , मामी ने बताया की मामा ने नानी की अग्नि दी है तो हमारे यहाँ ऐसी रीति रिवाज है की जो बेटा अग्नि देता है वो बेटा सबसे पहले भोजन करता है, और तुम्हारे मामा पहले पीपल के पेड़ पर जा कर कौव्वे को खाना देंगे फिर वो खाएंगे उसके बाद हम सब अपना नाश्ता खाएंगे, थोड़ी देर में मामा लौट आये फिर उन्होंने अपना नाश्ता चुपचाप हमारे सामने बैठ कर किया और जब वो अपना खाना ख़तम करने वाले थे तब उन्होंने एक पूरी अपनी प्लेट में से उठा कर मुझे खिला दिया, मामी ने टोका "अरे ये क्या किया? ये ठीक नहीं है "
मामा ने थोड़ा तीखे स्वर में मामी को कहा की सब ठीक है,ये मेरी बड़ी बहन की बेटी है और माँ पर इसका भी उतना ही अधिकार है जितना मेरा , तुम चिंता ना करो इस से माँ की आत्मा प्रसन्न ही होगी।
खैर थोड़ी देर में हम सब ने नाश्ता किया और फिर पंडित जी आगये तो मामा उनके साथ बिजी हो गए, कल नानी की तेरहवी थी तो मामा जी को उनसे बात करनी थी, मैं भी अपने कमरे में आगयी और मामी भी कुछ गांव की औरतो के साथ बिजी हो गयी, मेरी कई दिन से नींद नहीं आयी थी लेकिन पता नहीं क्यों अब बहुत तेज़ नींद आरही थी तो मैं बेड पर लेट गयी और पता नहीं चला कब गहरी नींद में सो गयी।
जब सो कर उठी तो दिन का लगभग ४ बज रहा था घर में थोड़ी चहलपहल सी लग रही थी और कुछ नए चेहरे भी नज़र आरहे थे