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Erotica जवानी जानेमन (Completed)

blinkit

I don't step aside. I step up.
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मैं किसी काम से आंगन में आयी तो बांध पर राधा की माँ की परछाई देखी और उसको उछलते हुए देख कर ही मैं समझ गयी की ज़रूर कुछ गड़बड़ हुई है मैं फ़ौरन भागी बांध की ओर, जब तक वह पहुँचती तब तक देखा की एक और परछाई है जो किसी लड़की को अपने हाथो में उठाये हुए है, फिर उस परछाई ने धीरे से उस लड़की के शरीर को नीचे जमीन पर रख दिया और लड़की के शरीर पर झुक कर उसके शरीर को दबाने लगा, कुछ मिनट उस लड़के ने पेट और छाती पर दबाया होगा की अचानक जमीन पर लेती लड़की का शरीर हिला और फिर शांत हो गया, मैं लगभग दौड़ती हुई बांध पर पहुंची तब तक उस लड़के ने पास खड़ी राधा से कुछ कहा और फिर तेज़ी से बाँध के दूसरे छोर की ओर दौड़ता हुआ निकल गया।

मैंने पास जा कर देखा सरिता जमीन पर लेटी खांस रही थी और पास में उसने पानी और जो कुछ दिन में खाया था उलटी कर रखा था, मैंने झट से जमीन पर बैठ कर सरिता को गले लगा लिया, मेरी जान ही निकल गयी थी किसी अनहोनी का सोच कर, अब सरिता को होश में देखा तो जान में जान आयी, राधा की मा ने जल्दी जल्दी पूरी बात बताई, फिर हम दोनों सरिता को सहारा दे कर घर ले आये।

मैंने घर आकर राधा की मा को उसके कपडे लेकर आने को बोला और सरिता को अपने घर ले जा कर कपडे उतरने के लिए कहा, पहले तो वो शर्मायी लेकिन फिर उसने कपडे उतार दिए, उसका शरीर अभी भी थर थर काँप रहा था, सरिता के नंगे शरीर को मैंने जल्दी से एक कम्बल में लपेटा और उसको बिस्तर में लिटा दिया फिर जल्दी से स्टोव जला कर एक कटोरी में कडुआ तेल गरम किया और अपनी कुछ जड़ी बूटी डाल कर सरिता के शरीर की मालिश करने लगी इतनी देर में राधा की माँ अपने कपडे ले कर आगयी वो भी कपकपा रही थी लेकिन ये कपकपी ठण्ड से नहीं डर से थे, मैंने उसको जल्दी से स्टोव पर चाय चढाने के लिए बोला और सरिता के शरीर की मालिश करती रही, जब मालिश करते करते उसके पेट पर 4-५ बार दबाव डाला तब एक बार फिर सरिता ने उबकाई ली और और उसके मुंह से थोड़ा पानी निकला जो उसी कम्बल पर गिर पड़ा, लेकिन इस उबकयी ने सरिता को बहुत रहत दी थी, कम्बल और तेल की मालिश ने सरिता के जिस्म को गर्मी दे दी थी जिस से उसे बहुत आराम लगा, तब तक राधा की माँ चाय बना लायी, मैंने सरिता का सर उठा कर उसे गरम चाय के कुछ घूँट पिलाया और वापिस कम्बल में लपेट कर सुला दिया।

मैंने अब राधा की माँ की खबर ली, पहले तो उसे खूब डांटा लेकिन इसमें उस बेचारी क्या गलती थी फिर मैंने उस से पूछा की वहा और कौन कौन था जिसने ये दुर्घटना देखी, राधा की माँ ने जैसा बताया उस हिसाब से उस टाइम केवल धोबियों के 2-४ लड़के थे और कोई नहीं, मैंने राधा की माँ को ज़ुबान बंद रखने के लिए कहा मैं नहीं चाहती थी की तेरे नाना तक बात पहुंचे और कोई बखेड़ा खड़ा हो, साथ में ये भी तसल्ली थी की केवल धोबियों के बच्चो ने देखा था इस घटना को, और धोबियों की इतनी हिम्मत तो थी नहीं की जाकर सीधे इस घटना के बारे में पंडित जी को बता सकें, मैंने राधा की माँ को भी चाय पिलाई और उसको घर भेज दिया,

अभी बारिश शरू नहीं हुई थी, मैंने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद किया और जल्दी से धोबियों के घर की ओर चल दी, सुम्मु धोबी की पत्नी मुझे घर के बाहर ही एक गट्ठर लेके जाती हुई मिली, सुम्मु ही सारे धोबियों का मुखिया था, पुराने समय में तेरे नाना के पुरखे इनको गांव में लाये थे तब से ये धोबी यही बस गए थे। अब ये उनका भी गांव था। मैंने जल्दी जल्दी उसको समझाया की वो बच्चो के परिवार वालो को समझा दे की जो हुआ उसकी चर्चा गांव में ना करे किसी से, मैं जानती थी के ये बात छुपने वाली नहीं है फिर भी मैं नहीं चाहती थी की ये खबर गांव में जंगल के आग जैसे फैले।

वहा से मैं जल्दी से वापिस आयी और आते हुए गांव के एक लड़के से तेरे नानी के पास खबर भिजवा दी की आज सरिता मेरे पास रुकेगी, अगर रात में बाढ़ के कारण अगर कुछ दिक्कत होगी तो अँधेरे में सरिता मेरी मदद कर देगी।

मैं सारा काम निबटा कर घर आयी, देखा तो सरिता बेखबर सो रही थी, मैंने जल्दी जल्दी खाना बनाया और सरिता कपडे धो कर कमरे में ही एक ओर सूखने के लिए डाल दिए, फिर मैं भी सरिता के पास ही लेट गयी तब तक बाहर झमझम बारिश पढ़ने लगी, मैंने घडी की ओर देखा शाम के सात बज आया था मैंने सरिता की नब्ज़ देखी, सामान्य चल रही थी मैं उसको उठाना ठीक नहीं समझा और मैं भी कुछ खाये बिना सो गयी।

सुबह कोई ५ बजे कुछ आवाज़ हुई तो मैंने आँख खोल कर देखा सरिता कमरे के बीचो बीच खड़ी इधर उधर देख रही थी, शायद उसका पैर नीचे रखे चाय के कटोरे से टकराया था, मैं उठ कर बैठ गयी। सरिता बिलकुल नंगी अपनी चुत हाथ से दबाए खड़ी थी, कपडे की एक धज्जी भी नहीं थी उसके शरीर पर, मैंने पूछा " क्या हुआ ?" "काकी बहुत तेज़ मूत लगी है, नंगी कैसे बाहर जाऊं ?"
मैंने उसको ठीक ठाक देख कर सुख का साँस लिया और दिवार पर टंगी एक चुन्नी उसको पकड़ा दी " ये लो अभी इतना भी सवेरा नहीं हुआ इसे लपेट ले और हो आ, वो जल्दी से भाग कर लैट्रिन चली गयी शायद उसको बहुत तेज़ आयी थी , कोई १० मं में वापिस आयी तो मैंने उसको राधा की माँ के लाये हुए कपडे दिए, उसने चुपचाप पहन लिए। बाहर बारिश रुक चुकी थी, मैंने उस से खाने का पूछा तो उसने मना कर दिया। वापिस हम दोनों फिर से बिस्तर पर लेट गए, कुछ करने का था नहीं, बादल के कारण बाहर अभी भी अँधेरे जैसा था। हम दोनों बिस्तर में लेटे लेटे उजाला फैलने का इन्तिज़ार करने लगे।
 

sunoanuj

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Bhaut hi umda updates… keep posting 👏🏻👏🏻👏🏻
 
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kamdev99008

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मैं किसी काम से आंगन में आयी तो बांध पर राधा की माँ की परछाई देखी और उसको उछलते हुए देख कर ही मैं समझ गयी की ज़रूर कुछ गड़बड़ हुई है मैं फ़ौरन भागी बांध की ओर, जब तक वह पहुँचती तब तक देखा की एक और परछाई है जो किसी लड़की को अपने हाथो में उठाये हुए है, फिर उस परछाई ने धीरे से उस लड़की के शरीर को नीचे जमीन पर रख दिया और लड़की के शरीर पर झुक कर उसके शरीर को दबाने लगा, कुछ मिनट उस लड़के ने पेट और छाती पर दबाया होगा की अचानक जमीन पर लेती लड़की का शरीर हिला और फिर शांत हो गया, मैं लगभग दौड़ती हुई बांध पर पहुंची तब तक उस लड़के ने पास खड़ी राधा से कुछ कहा और फिर तेज़ी से बाँध के दूसरे छोर की ओर दौड़ता हुआ निकल गया।

मैंने पास जा कर देखा सरिता जमीन पर लेटी खांस रही थी और पास में उसने पानी और जो कुछ दिन में खाया था उलटी कर रखा था, मैंने झट से जमीन पर बैठ कर सरिता को गले लगा लिया, मेरी जान ही निकल गयी थी किसी अनहोनी का सोच कर, अब सरिता को होश में देखा तो जान में जान आयी, राधा की मा ने जल्दी जल्दी पूरी बात बताई, फिर हम दोनों सरिता को सहारा दे कर घर ले आये।

मैंने घर आकर राधा की मा को उसके कपडे लेकर आने को बोला और सरिता को अपने घर ले जा कर कपडे उतरने के लिए कहा, पहले तो वो शर्मायी लेकिन फिर उसने कपडे उतार दिए, उसका शरीर अभी भी थर थर काँप रहा था, सरिता के नंगे शरीर को मैंने जल्दी से एक कम्बल में लपेटा और उसको बिस्तर में लिटा दिया फिर जल्दी से स्टोव जला कर एक कटोरी में कडुआ तेल गरम किया और अपनी कुछ जड़ी बूटी डाल कर सरिता के शरीर की मालिश करने लगी इतनी देर में राधा की माँ अपने कपडे ले कर आगयी वो भी कपकपा रही थी लेकिन ये कपकपी ठण्ड से नहीं डर से थे, मैंने उसको जल्दी से स्टोव पर चाय चढाने के लिए बोला और सरिता के शरीर की मालिश करती रही, जब मालिश करते करते उसके पेट पर 4-५ बार दबाव डाला तब एक बार फिर सरिता ने उबकाई ली और और उसके मुंह से थोड़ा पानी निकला जो उसी कम्बल पर गिर पड़ा, लेकिन इस उबकयी ने सरिता को बहुत रहत दी थी, कम्बल और तेल की मालिश ने सरिता के जिस्म को गर्मी दे दी थी जिस से उसे बहुत आराम लगा, तब तक राधा की माँ चाय बना लायी, मैंने सरिता का सर उठा कर उसे गरम चाय के कुछ घूँट पिलाया और वापिस कम्बल में लपेट कर सुला दिया।

मैंने अब राधा की माँ की खबर ली, पहले तो उसे खूब डांटा लेकिन इसमें उस बेचारी क्या गलती थी फिर मैंने उस से पूछा की वहा और कौन कौन था जिसने ये दुर्घटना देखी, राधा की माँ ने जैसा बताया उस हिसाब से उस टाइम केवल धोबियों के 2-४ लड़के थे और कोई नहीं, मैंने राधा की माँ को ज़ुबान बंद रखने के लिए कहा मैं नहीं चाहती थी की तेरे नाना तक बात पहुंचे और कोई बखेड़ा खड़ा हो, साथ में ये भी तसल्ली थी की केवल धोबियों के बच्चो ने देखा था इस घटना को, और धोबियों की इतनी हिम्मत तो थी नहीं की जाकर सीधे इस घटना के बारे में पंडित जी को बता सकें, मैंने राधा की माँ को भी चाय पिलाई और उसको घर भेज दिया,

अभी बारिश शरू नहीं हुई थी, मैंने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद किया और जल्दी से धोबियों के घर की ओर चल दी, सुम्मु धोबी की पत्नी मुझे घर के बाहर ही एक गट्ठर लेके जाती हुई मिली, सुम्मु ही सारे धोबियों का मुखिया था, पुराने समय में तेरे नाना के पुरखे इनको गांव में लाये थे तब से ये धोबी यही बस गए थे। अब ये उनका भी गांव था। मैंने जल्दी जल्दी उसको समझाया की वो बच्चो के परिवार वालो को समझा दे की जो हुआ उसकी चर्चा गांव में ना करे किसी से, मैं जानती थी के ये बात छुपने वाली नहीं है फिर भी मैं नहीं चाहती थी की ये खबर गांव में जंगल के आग जैसे फैले।

वहा से मैं जल्दी से वापिस आयी और आते हुए गांव के एक लड़के से तेरे नानी के पास खबर भिजवा दी की आज सरिता मेरे पास रुकेगी, अगर रात में बाढ़ के कारण अगर कुछ दिक्कत होगी तो अँधेरे में सरिता मेरी मदद कर देगी।

मैं सारा काम निबटा कर घर आयी, देखा तो सरिता बेखबर सो रही थी, मैंने जल्दी जल्दी खाना बनाया और सरिता कपडे धो कर कमरे में ही एक ओर सूखने के लिए डाल दिए, फिर मैं भी सरिता के पास ही लेट गयी तब तक बाहर झमझम बारिश पढ़ने लगी, मैंने घडी की ओर देखा शाम के सात बज आया था मैंने सरिता की नब्ज़ देखी, सामान्य चल रही थी मैं उसको उठाना ठीक नहीं समझा और मैं भी कुछ खाये बिना सो गयी।

सुबह कोई ५ बजे कुछ आवाज़ हुई तो मैंने आँख खोल कर देखा सरिता कमरे के बीचो बीच खड़ी इधर उधर देख रही थी, शायद उसका पैर नीचे रखे चाय के कटोरे से टकराया था, मैं उठ कर बैठ गयी। सरिता बिलकुल नंगी अपनी चुत हाथ से दबाए खड़ी थी, कपडे की एक धज्जी भी नहीं थी उसके शरीर पर, मैंने पूछा " क्या हुआ ?" "काकी बहुत तेज़ मूत लगी है, नंगी कैसे बाहर जाऊं ?"
मैंने उसको ठीक ठाक देख कर सुख का साँस लिया और दिवार पर टंगी एक चुन्नी उसको पकड़ा दी " ये लो अभी इतना भी सवेरा नहीं हुआ इसे लपेट ले और हो आ, वो जल्दी से भाग कर लैट्रिन चली गयी शायद उसको बहुत तेज़ आयी थी , कोई १० मं में वापिस आयी तो मैंने उसको राधा की माँ के लाये हुए कपडे दिए, उसने चुपचाप पहन लिए। बाहर बारिश रुक चुकी थी, मैंने उस से खाने का पूछा तो उसने मना कर दिया। वापिस हम दोनों फिर से बिस्तर पर लेट गए, कुछ करने का था नहीं, बादल के कारण बाहर अभी भी अँधेरे जैसा था। हम दोनों बिस्तर में लेटे लेटे उजाला फैलने का इन्तिज़ार करने लगे।
कहानी में कहानी
फिर उस कहानी में भी कहानी शुरू हो गयी

अब चंद्रमा की माँ के सभी राज खुल जाने हैं
और शायद चंद्रमा का भी
शायद नहीं निश्चित ही खुल चुका है.......... उस सुम्मी काकी ने इशारों में जता ही दिया कि चंद्रमा उसी की पोती है
लेकिन सुम्मी का बेटा कहाँ है? जिसने सविता को नदी में से निकाला था


देखते हैं अगले अपडेट में
 

malikarman

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मैं किसी काम से आंगन में आयी तो बांध पर राधा की माँ की परछाई देखी और उसको उछलते हुए देख कर ही मैं समझ गयी की ज़रूर कुछ गड़बड़ हुई है मैं फ़ौरन भागी बांध की ओर, जब तक वह पहुँचती तब तक देखा की एक और परछाई है जो किसी लड़की को अपने हाथो में उठाये हुए है, फिर उस परछाई ने धीरे से उस लड़की के शरीर को नीचे जमीन पर रख दिया और लड़की के शरीर पर झुक कर उसके शरीर को दबाने लगा, कुछ मिनट उस लड़के ने पेट और छाती पर दबाया होगा की अचानक जमीन पर लेती लड़की का शरीर हिला और फिर शांत हो गया, मैं लगभग दौड़ती हुई बांध पर पहुंची तब तक उस लड़के ने पास खड़ी राधा से कुछ कहा और फिर तेज़ी से बाँध के दूसरे छोर की ओर दौड़ता हुआ निकल गया।

मैंने पास जा कर देखा सरिता जमीन पर लेटी खांस रही थी और पास में उसने पानी और जो कुछ दिन में खाया था उलटी कर रखा था, मैंने झट से जमीन पर बैठ कर सरिता को गले लगा लिया, मेरी जान ही निकल गयी थी किसी अनहोनी का सोच कर, अब सरिता को होश में देखा तो जान में जान आयी, राधा की मा ने जल्दी जल्दी पूरी बात बताई, फिर हम दोनों सरिता को सहारा दे कर घर ले आये।

मैंने घर आकर राधा की मा को उसके कपडे लेकर आने को बोला और सरिता को अपने घर ले जा कर कपडे उतरने के लिए कहा, पहले तो वो शर्मायी लेकिन फिर उसने कपडे उतार दिए, उसका शरीर अभी भी थर थर काँप रहा था, सरिता के नंगे शरीर को मैंने जल्दी से एक कम्बल में लपेटा और उसको बिस्तर में लिटा दिया फिर जल्दी से स्टोव जला कर एक कटोरी में कडुआ तेल गरम किया और अपनी कुछ जड़ी बूटी डाल कर सरिता के शरीर की मालिश करने लगी इतनी देर में राधा की माँ अपने कपडे ले कर आगयी वो भी कपकपा रही थी लेकिन ये कपकपी ठण्ड से नहीं डर से थे, मैंने उसको जल्दी से स्टोव पर चाय चढाने के लिए बोला और सरिता के शरीर की मालिश करती रही, जब मालिश करते करते उसके पेट पर 4-५ बार दबाव डाला तब एक बार फिर सरिता ने उबकाई ली और और उसके मुंह से थोड़ा पानी निकला जो उसी कम्बल पर गिर पड़ा, लेकिन इस उबकयी ने सरिता को बहुत रहत दी थी, कम्बल और तेल की मालिश ने सरिता के जिस्म को गर्मी दे दी थी जिस से उसे बहुत आराम लगा, तब तक राधा की माँ चाय बना लायी, मैंने सरिता का सर उठा कर उसे गरम चाय के कुछ घूँट पिलाया और वापिस कम्बल में लपेट कर सुला दिया।

मैंने अब राधा की माँ की खबर ली, पहले तो उसे खूब डांटा लेकिन इसमें उस बेचारी क्या गलती थी फिर मैंने उस से पूछा की वहा और कौन कौन था जिसने ये दुर्घटना देखी, राधा की माँ ने जैसा बताया उस हिसाब से उस टाइम केवल धोबियों के 2-४ लड़के थे और कोई नहीं, मैंने राधा की माँ को ज़ुबान बंद रखने के लिए कहा मैं नहीं चाहती थी की तेरे नाना तक बात पहुंचे और कोई बखेड़ा खड़ा हो, साथ में ये भी तसल्ली थी की केवल धोबियों के बच्चो ने देखा था इस घटना को, और धोबियों की इतनी हिम्मत तो थी नहीं की जाकर सीधे इस घटना के बारे में पंडित जी को बता सकें, मैंने राधा की माँ को भी चाय पिलाई और उसको घर भेज दिया,

अभी बारिश शरू नहीं हुई थी, मैंने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद किया और जल्दी से धोबियों के घर की ओर चल दी, सुम्मु धोबी की पत्नी मुझे घर के बाहर ही एक गट्ठर लेके जाती हुई मिली, सुम्मु ही सारे धोबियों का मुखिया था, पुराने समय में तेरे नाना के पुरखे इनको गांव में लाये थे तब से ये धोबी यही बस गए थे। अब ये उनका भी गांव था। मैंने जल्दी जल्दी उसको समझाया की वो बच्चो के परिवार वालो को समझा दे की जो हुआ उसकी चर्चा गांव में ना करे किसी से, मैं जानती थी के ये बात छुपने वाली नहीं है फिर भी मैं नहीं चाहती थी की ये खबर गांव में जंगल के आग जैसे फैले।

वहा से मैं जल्दी से वापिस आयी और आते हुए गांव के एक लड़के से तेरे नानी के पास खबर भिजवा दी की आज सरिता मेरे पास रुकेगी, अगर रात में बाढ़ के कारण अगर कुछ दिक्कत होगी तो अँधेरे में सरिता मेरी मदद कर देगी।

मैं सारा काम निबटा कर घर आयी, देखा तो सरिता बेखबर सो रही थी, मैंने जल्दी जल्दी खाना बनाया और सरिता कपडे धो कर कमरे में ही एक ओर सूखने के लिए डाल दिए, फिर मैं भी सरिता के पास ही लेट गयी तब तक बाहर झमझम बारिश पढ़ने लगी, मैंने घडी की ओर देखा शाम के सात बज आया था मैंने सरिता की नब्ज़ देखी, सामान्य चल रही थी मैं उसको उठाना ठीक नहीं समझा और मैं भी कुछ खाये बिना सो गयी।

सुबह कोई ५ बजे कुछ आवाज़ हुई तो मैंने आँख खोल कर देखा सरिता कमरे के बीचो बीच खड़ी इधर उधर देख रही थी, शायद उसका पैर नीचे रखे चाय के कटोरे से टकराया था, मैं उठ कर बैठ गयी। सरिता बिलकुल नंगी अपनी चुत हाथ से दबाए खड़ी थी, कपडे की एक धज्जी भी नहीं थी उसके शरीर पर, मैंने पूछा " क्या हुआ ?" "काकी बहुत तेज़ मूत लगी है, नंगी कैसे बाहर जाऊं ?"
मैंने उसको ठीक ठाक देख कर सुख का साँस लिया और दिवार पर टंगी एक चुन्नी उसको पकड़ा दी " ये लो अभी इतना भी सवेरा नहीं हुआ इसे लपेट ले और हो आ, वो जल्दी से भाग कर लैट्रिन चली गयी शायद उसको बहुत तेज़ आयी थी , कोई १० मं में वापिस आयी तो मैंने उसको राधा की माँ के लाये हुए कपडे दिए, उसने चुपचाप पहन लिए। बाहर बारिश रुक चुकी थी, मैंने उस से खाने का पूछा तो उसने मना कर दिया। वापिस हम दोनों फिर से बिस्तर पर लेट गए, कुछ करने का था नहीं, बादल के कारण बाहर अभी भी अँधेरे जैसा था। हम दोनों बिस्तर में लेटे लेटे उजाला फैलने का इन्तिज़ार करने लगे।
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कहानी में कहानी
फिर उस कहानी में भी कहानी शुरू हो गयी

अब चंद्रमा की माँ के सभी राज खुल जाने हैं
और शायद चंद्रमा का भी
शायद नहीं निश्चित ही खुल चुका है.......... उस सुम्मी काकी ने इशारों में जता ही दिया कि चंद्रमा उसी की पोती है
लेकिन सुम्मी का बेटा कहाँ है? जिसने सविता को नदी में से निकाला था


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ha ha yes I was also thinking the same, lag r5aha tha ki kuch zayda ho gaya but mere dimag me aur koi story arc nahi tha ye part reveal karne ka, hope it didnt spoiled the reading experience.
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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कुछ देर ख़ामोशी रही फिर सरिता अचानक पूछ बैठी, "काकी पिताजी को पता चल गया है क्या ? वो तो मुझे मार ही डालेंगे।"
मैंने दिलासा दिलाया की चिंता की कोई बात नहीं है ज़ायदा लोगो ने नहीं देखा और बाकि मैंने सबको मना कर दिया तेरे पिताजी को बताने के लिए, वैसे भी आधा गांव तो तेरे पिताजी से घबराता है , किसकी हिम्मत होगी उनको बताने की । ये सुनकर सरिता को थोड़ी तसल्ली हुई, सरिता कुछ पल चुपचाप सोंचती रही फिर पूछा " काकी वो कौन था जिसने मुझे डूबने से बचाया "
अब ये बात सुन मैं भी सोंच में पड़ गयी, सरिता को घर लाने और इसकी देखभाल के चक्कर में मैं पूछना ही भूल गयी थी,

" पता नहीं बिटिया, मैं दूर थी देख नहीं पायी, आने दे तेरी सहेली को फिर उस से पूछ लेना उसी ने देखा था और कुछ बात भी की थी उस लड़के से।
सरिता : हाँ काकी, मैंने आँख खोलके देखने की कोशिश करि थी लेकिन बस धुंधला दिखा नहीं तो पहचान लेती, काकी अगर वो मुझे नदी से नहीं निकलता तो मैं मर जाती ना,
काकी : शुभ शुभ बोल बिटिया, भगवान ने बड़ी कृपा की तुझपर, अब जब ठीक हो जाएगी तब नदी पार मंदिर में प्रसाद चढ़ा आना, देवी माँ सब ठीक कर देगी।
सरिता : हाँ काकी ज़रूर जाउंगी, मुझे तो रात में सपने में भी देवी माँ दिखाई दे रही थी, जैसे बुला रही हो, तुम ठीक कहती हो काकी मैं ज़रूर जाउंगी चढ़ावा चढाने !

बाहर अब उजाला फ़ैल गया था, मैंने सरिता के चेहरे की ओर देखा वो किसी सोच में थी फिर पता नहीं क्या सोंच कर खुद ही मुस्कुराने लगी।
मैं उठ कर बहार आयी, आसमान थोड़ा खुल गया था, मैंने सरिता के कपडे बाहर सूखने के लिए डाल दिए और चाय बना कर सरिता को दी , घर में रखे बिस्कुट के साथ हमने चाय पि। हम दोनों चाय पि ही रहे थे की राधा की माँ आगयी, वो भी सरिता ठीक देख के खुश हो गयी, मैं घर के बाकी काम में व्यस्त हो गयी तब तक दोनों सहेलिया आपस में बाते करने लगी, कुछ देर में सरिता के कपडे कुछ सुख गए तो उसने गुसलखाने में जाकर नहाया और आपके कपडे पहन कर तैयार हो गयी, हम तीनो ने रात का बचा बसी खाना खाया, खाना खाते खाते मैंने राधा की मा से पूछा " अरे वो छौरा कौन था जो राधा को नदी में से निकला ?" राधा की माँ झट से बोली जैसे वो मेरे पूछने का ही इन्तिज़ार कर रही हो " पता नहीं काकी, किसी और गांव का था शायद "
काकी : अच्छा फिर वो तुझे क्या बात कर रहा था इसको निकलने के बाद ?"
" वो काकी बस ये बोल रहा था की पेट से पानी निकल गया है 1-२ घंटा में ठीक हो जाएगी ये, फिर मैं कुछ पूछती इससे पहले चला गया "
मुझे उसकी बात में पता नहीं क्यों झूट लगा, लेकिन मैंने जायदा बहस नहीं की उस से, थोड़ी देर में दोनों सहेलिया तेरे नाना के घर के लिए निकल गयी, मैंने भी राहत की सांस ली की सरिता ठीक ठाक अपने घर चली गयी।

सब ठीक चल रहा था एक दिन मैं यही इस पेड़ के नीचे बैठी, तब उस टाइम इधर की दिवार नहीं थी तो यहाँ से सारे खेत और धोबियों का घर साफ़ दिखाई देता था , मैंने देखा की सरिता हाथ में एक गठरी लिए सुम्मु धोबी के घर जा रही थी, मुझे पता था की सुम्मु धोबी तेरे नाना के कपडे धोता है, लेकिन कपडे लेने वो या उसका बेटा जाता था, कभी तेरे घर से कोई सुम्मु के घर कपडा देने नहीं आया, और अगर देना ही था तो राधा की माँ भी पंहुचा सकती थी उसका तो रोज़ दिन का जाना आना होता था, मैं चपचाप यही बैठी सरिता के आने का इन्तिज़ार करती रही, लगभग एक घंटे के बाद मुझे सरिता सुम्मु के घर से आती दिखी, मुझे शक हुआ, आखिर इतनी देर सुम्मु के घर ? सरिता ने शाद मुझे इतनी दूर से देखा नहीं था जैसे ही वो थोड़ा पास आयी तो मुझे देख के ठिठक गयी , मैंने उसको आवाज़ देकर बुलाया तो मरे मरे कदमो से मेरे पास आयी।

" अरे बिटिया क्या करने आयी थी सुम्मु के घर "
" वो काकी माँ ने सुम्मु काकी के लिए कुछ घर का सामान भेजा था तो वही देने आयी थी"
" अच्छा क्या सामान दे दिया पण्डितायीं ने ?"
" वो घर में ठेकुआ, पूरी बना था घर में तो माँ ने बोला दे आ , इनके घर में ऐसा नहीं बनता इसलिए।
" वो सब ठीक है लेकिन तूने फिर इतना टाइम क्यों लगाया वहा " मैंने देखा तू एक डेढ़ घंटे से वही थी ?
"अरे काकी कहा टाइम लगा, बस उनको सामान देने लगी तो सुम्मु काकी ने रोक लिया की आज घर में खीर बानी है खा के जाना, तो बस वही खाने में थोड़ा टाइम लग गया"

मैं इस से ज़ायदा क्या पूछती, फिर घर का हाल चाल लेकर सरिता चली गयी, लेकिन मेरे मन में एक गाँठ से बैठ गयी, पंडित रामशरण की बेटी धोबी के घर पकवान लेके जाये और फिर उसके घर की बानी खीर खाये, ये मुझ बुढ़िया से हज़म नहीं हो रहा था। उस दिन से मैं सुम्मु के घर आते जाते नज़र रखने लगी, एक सप्ताह भी नहीं गुज़रा होगा की मैंने सरिता को फिर चुपके चुपके सुम्मु के घर जाते देखा, उस दिन मैं दरवाजे में खड़ी थी तो सरिता मुझे देख नहीं पायी, आज उसके हाथ में कुछ नहीं था, लेकिन फिर वही एक दो घंटा बिता कर छुपते हुए बहार निकली, इस बार मैंने नहीं टोका, फिर तो ये सीलसिला बन गया, सरिता सप्ताह में 2-३ बार सुम्मु के घर जाती और कुछ देर बिता कर वापिस अपने घर निकल जाती, श्रावण बीत रहा था और तीज का त्यौहार आगया, तीज के पर्व पर गांव की औरतों व्रत रखती और और नदी पार (दूसरे गांव ) बने मदिर में माता के दर्शन करने जाती, पंडित रामशरण का परिवार नहीं जाता था, लेकिन मैं चली जाती थी, मेरा इसी बहाने घूमना फिरना हो जाता था।

माता के मंदिर केवल हमारे गांव ही नहीं आसपास के गांव के लोग भी आते थे, खूब भीड़ भाड़ होती थी मेला लगता था और बच्चो को मस्ती करने का मौका मिल जाता था, मैं दर्शन करके वही 2-३ औरतों के साथ बैठ कर बातें करने लगी की तभी मैंने सरिता को देखा, उसने हरे रंग का नया सूट पहना हुआ था, हरे रंग की चुडिया और हाथ में पूजा की थाली लिए चली आरही थी, आज उसके साथ में राधा की माँ नहीं थी,

लेकिन मैंने जो उसके पीछे चलते हुए सुम्मु धोबी के बेटे दीनू को देखा तो जैसे मेरे प्राण ही निकल गए, सरिता आगे आगे चल रही थी और दीनू उसके पीछे पीछे, सरिता के चेहरे पर दुनिया भर की ख़ुशी थी मानो उसकी हर मुराद पूरी हो गयी हो, दीनू भी ऐसे चल रहा था मानो अगर सरिता की तरफ अगर किसी ने टेढ़ी नज़र से भी देखा था वो साडी दुनिया से लड़ जायेगा। मैं हक्का बक्का देखती रही, वो दोनों अपनी दूनिया में इतने खोये हुए थे की उन्होंने मेरी ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा, वो दोनों ऐसे ही चलते हुए मेरे सामने से गुज़रे, थोड़ा आगे बढे ही थे की तभी सरिता के बालों में अटका एक फूल निचे गिर पड़ा, इससे पहले की किसी का पैर उस फूल पर पड़ता की दीनू झट से झुका जमीन से फूल उठाने के लिए की तभी बिजली से कौंधी मेरे दिमाग में, हे भगवान ये तो वही है जिसने उस दिन सरिता का नदी से निकला था, मैंने दूर से देखा तो नहीं पहचान पायी, आज जो दीनू को जमीन से फूल उठाते देखा तो एक पल में पहचान गयी।
 
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