कुछ भावनाएं पिक्चरों में सही ढंग से निरुपित होती हैं...कुछ कहा नहीं जाता,
तस्वीर की तारीफ़ करूं ( वो तस्वीर जिसमें सलहज के चेहरे पर विस्मय है और एरोटिक तो बस ऐसे हैं की बस चुरा ही लूँ ), कविता की तारीफ़ करूँ या जैसे आपने मिलन का यह संयोग बनाया, भीगी हुयी देह, सिहरता हुआ बदन, शराब की चुस्की,... और उसके बाद एक एक बाद खुलते झिझक के परदे
सब कुछ इतने सहज ढंग से हो रहा है, और सीधे सम्भोग नहीं बल्कि जबरदस्त फोरप्ले,
बहुत ही पाठक पाठिकाएं उत्तेजित हो रहे होंगे इन्हे पढ़ कर,...
और इसी बहाने जो पाठक ननदोई होंगे
जो पाठिकाएं सलहज होंगीं
नयी संभावनाएं भी देख रखी होंगी,... नन्दोई और सलहज दोनों ही देह के भूगोल से परिचित,... दोनों ही एक उस सुख को भोगे, जो पुरुष और स्त्री एक दूसरे को देते हैं,...
बहुत बहुत धन्यवाद आभार
और उनका सही चयन भी लेखक/लेखिका के एक अलग प्रयास और समय का आकांक्षी होता है...