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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग ८६

भैय्या -बहिनी




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मेरा दूसरा हाथ उसके बटन तक पहुँच गया ,


" नहीं भाभी कैसे ,ओह्ह छोड़िये न "

अब वो बिचारी घबड़ायी।

" ऊप्स मेरा मतलब दूसरे कपडे पहन ले , चेंज कर ले "


मैं समझाते बोली ,और तब तक रोकते रोकते मेरे हाथों ने उसकी कमीज की एक बटन खोल दी थी।

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" लेकिन क्या , कौन। .. हाँ नहीं। .. मतलब क्या पहनूं "

गुड्डी बिचारीकन्फ्यूज।

" अरे मैं भी न , तेरे भैया एकदम बुद्धू हैं और इनके संग में ,मैं भी एकदम बुद्धू हो गयी हूँ। अरे तेरे लिए इन्होने एक बहुत अच्छी ड्रेस खरीदी है , बस मैं ले आती हूँ ,तुम उसे चेंज कर इसे टांग दो ,तुम्हारे जाने तक सूख जायेगी। "

तब तक प्रेशर कुकर की सीटी बजी और मेरी जेठानी बाहर।

मेरी उँगलियाँ अभी भी गुड्डी के मटर के दाने की साइज के निप्स को दबोचे हुए ,हलके हलके मसल रही थीं। उनसे मैं बोली ,

" देखो एकदम टनाटन हैं न ,तेरे माल के । "

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और मैं भी निकल गयी , भैय्या -बहिनी को अकेला छोड़ के ,

और लौटी तो उन निप्स जहाँ थोड़ी देर पहले मेरा हाथ था वहीँ मेरे सैंया का ,बुद्धू थे लेकिन इत्ते भी नहीं।


उसे गिफ्ट रैप पैकेट देते हुए मैंने पैकट दिया और दिखाया ,

पैकेट के ऊपर एक कार्ड था जिसपर लिखा था ,


2 माई स्वीट सेक्सी और ,... नाम की जगह एक खूब बड़ा सा दिल का कार्ड लगा था।

पहले तो वो शर्मायी ,फिर उनकी ओर देख के जोर से मुस्करायी।

( उसे क्या मालूम ये कार्ड वाली शरारत मेरी थी )

" देख ,इसमें क्या है मुझे नहीं मालूम। तेरे भय्या खुद अकेले गए थे मैं तो गयी भी नहीं थी , इनकी अपनी पसंद है , और हाँ ,अंदर वाली चीजें भी है ,वोभी चेंज कर ले , तेरी ब्रा तो गीली हो गयी है , क्या पता पैंटी भी गीली हो गयी हो। "



" एकदम, भाभी अभी चेंज कर के आती हूँ , भैय्या लाये हैं तो अच्छी ही होगी। "

वो पैकट लेकर फुर्र्र , और मैं इनके कान को पान बनाने में लग गयी ,

" तुम न साले इत्ते शर्मीले , वो खुद आके तेरे लंड पे बैठ गयी और तुझसे इत्ता भी नहीं हुआ की जरा उस प्याजी कुर्ते के अंदर हाथ डालकर नाप जोख करता ,

देखता उसके जुबना ३२ सी साइज के ही हैं , जिस नाप की तूने ब्रा खरीदी है ,

अगर तू लौंडिया की चूँची नहीं मसल पाया तो क्या पटा पायेगा उसे।

अरे लोग तो डीटीसी की बसों में ४-५ लड़कियों की चूँचियाँ दबा देते हैं ,और तू गोद में बैठे अपने माल की चूँची नहीं मीज पा रहा था। "

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तबतक मेरी जेठानी अंदर आ गयीं , और इनकी और डँटायी बच गयी।

और फिर वो आगयी ,इनका माल ,सच में जिल्ला टॉप माल थी , एकदम मस्त लग रही थी।
 
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जिल्ला टॉप माल




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और फिर वो आगयी ,इनका माल ,सच में जिल्ला टॉप माल थी , एकदम मस्त लग रही थी।



हॉल्टर टॉप बस नूडल स्ट्रिंग के साथ ,मरमेड टॉप, शोल्डर लेस , ....

और गुड्डी के गोरे गोरे कंधे अब खुल के दिख रहे थे।

टॉप एकदम उसके उभारों से चिपका सेकेण्ड स्किन की तरह ,उभारो को और दबा के उभारता ,

क्लीवेज और जोबन का ऊपरी हिस्सा तो अच्छी तरह दिखता ही , उसकी कच्ची अमिया का शेप साइज सब कुछ ,


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और जरा भी झुकती तो मटर के दानों ऐसे उसके निप्स भी साफ़ साफ़ दिख जाते।

और शोल्डर लेस होने , नार्मल ब्रा तो चलती नहीं ,इसलिए स्ट्रैप लेस वो भी स्किन कलर की

,एकदम चिपकी मुश्किल से ढाई इंच की पट्टी की तरह लेकिन नीचे से पुश अप,

उभारती जिससे क्लीवेज और क्लियर हो के ,... फ्रंट ओपन।

स्कर्ट भी माइक्रो और मिनी के बीच का , घुटनो से कम से कम डेढ़ बित्ते पहले ख़तम हो जा रहा ,


उसकी चिकनी मांसल मखमली जाँघे ,लम्बी लम्बी गोरी टाँगे , स्निग्ध पिंडलियाँ एक भी रोयें नहीं ,एकदम मक्खन।



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जेठानी जी ने एक दम सही कमेंट मारा ,


" अरे ये तो चीयर लीडर्स से भी दस हाथ आगे लग रही है। "



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अरे मैं लायी थी चुन के ये ड्रेस इसी लिए , और इस कमेंट से पैसा वसूल हो गया।

" न्यू पिंच "

मैंने हॉल्टर के ऊपर से गुड्डी के निप्स पिंच कर लिए।


मेरी जेठानी क्यों छोड़ती ,दूसरा निपल उनके हाथ में ,


लेकिन तब तक एक के बाद एक प्रेशर कुकर की सिटी बजी और वो किचेन की ओर ,दरवाजे के बाहर पहुँच कर उन्होंने मुझे भी हंकार लगायी ,

" आती हूँ दीदी बस एक मिनट "

एक काम तो बाकी रह गया था।

" हे जरा पीछे से तो देख लूँ कैसा लग रहा है " मैं उससे बोली।

एक हाथ से मैंने उसकी स्कर्ट उठायी ,उसकी पैंटी बल्कि थांग


आगे से बस चुनमुनिया को ढंकने के लिए दो इंच की पट्टी और पीछे चूतड़ों के बीच एक रस्सी सी ,


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बल्कि धागे सा दोनों नितम्बों की दरार में अटका।

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और दूसरे हाथ से मैंने इनका शार्ट सरका दिया ,तना खड़ा बेताब खूंटा बाहर,


मोटा सुपाड़ा एकदम खुला।

और मैंने धक्का देकर गुड्डी को एक बार फिर उनकी गोद में.


अब खुला तन्नाया सुपाड़ा सीधे गुड्डी की गांड की दरार से रगड़ खा रहा था।

झुक के गुड्डी के कान में मैं बोली ,

" क्यों कैसा लग रहा है भैय्या का ,चल अब शर्म छोड़ और खुल के मस्ती कर।


है न खूब मोटा कडा कडा। सोच जब ऊपर ऊपर से इत्ता मजा दे रहा है तो अंदर घुसेगा कितना मजा देगा। "



वो ब्लश भी कर रही थी और स्माइल भी ,लेकिन अपने भईया के खूंटे से उठने की जरा भी कोशिश नहीं की उसने।

उनसे भी मैं बोली ,

" अरे सही जगह पकड़ो न , अब मैं और जेठानी जी घंटे भर के लिए किचेन में "


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और उनका हाथ सीधे , अपनी ननद के जुबना पर रख दिया।

फिर एकदम सीधे गुड्डी से बोली ,

" क्यों मस्त हैं लंड भय्या कम सैंया का , खुल के मजा ले "

निकलते समय दरवाजे से मैंने एक हिंट और दिया ,



" कड़वा तेल तो नहीं है लेकिन तकिये के नीचे वैसलीन की बड़ी शीशी है। "
 
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बाजी





निकलते समय दरवाजे से मैंने एक हिंट और दिया ,


" कड़वा तेल तो नहीं है लेकिन तकिये के नीचे वैसलीन की बड़ी शीशी है। "

और बाहर से दरवाजा न सिर्फ बंद किया बल्कि हलके से कुण्डी भी लगा दी।

घंटे भर बाद लौटी मैं तो पहले तो अच्छी तरह नॉक किया, बजा बजा के कुण्डी खोली, १०० तक गिना और फिर अंदर घुसी।


लेकिन उसके पहले दरवाजे से कान लगाकर अंदर का मैंने हाल चाल जानने की कोशिश की ,

" उन्हह उऊयी , भय्या , तू बहुत बदमाश हो गए हो "

वो हलके से सिसकती हुयी बोली।

" और पहले कैसा था " उनकी फुसफुसाती हुयी आवाज आयी।

" बुद्धू ,एकदम बुद्धू , बहुत ही ज्यादा। "

हलके से खिलखिलाती हुयी आवाज आयी मेरी ननद की हलकी हलकी।



" तुझे कैसे भइया अच्छे लगते हैं, बुद्धू वाले ,या बदमाश वाले। " ।


" दोनों ,लेकिन बदमाश वाले थोड़े ज्यादा , लेकिन थोड़े से तो बुद्धू अभी भी हो "

गुड्डी बोली।



और तभी मैंने नाक किया ,१०० तक गिना और अंदर एंट्री मार दी।

वो अभी भी अपने भय्या की गोद में ठसके से बैठी और उनका हाथ उसकी कच्ची अमिया पे।





मुझे देखकर ,जैसे किसी की चोरी पकड़ी गयी हो , वो चुपके से सर झुकाये , मेरी नजर बचाये तेजी से बाहर निकल गए।

लेकिन उनकी ममेरी बहिनिया पकड़ी गयी।


दबोच लिया मैंने उसे , जैसे कोई तेज बिल्ली किसी छोटी सी शरारती चुहिया को पकड़ ले।

और दबोच कर दीवाल से दबाते , मेरे बड़े बड़े जोबन उसकी कच्ची अमिया कस के रगड़ रहे थे।

मैं कुछ कहती बोलने की कोशिश करती ,

लेकिन बिना अपने को छुड़ाने की ज़रा भी कोशिश किये ,

मेरी बड़ी बड़ी चूँचियों से अपनी छोटे टिकोरों को दबवाती मसलवाती , मेरी आँखों में अपनी कजरारी आँखे डाल के मुस्कराती ,

बिना कुछ बोले उसने बहुत कुछ बोल दिया , उसकी उँगलियाँ मेरे गले के 'नौलखे ' हार को छूकर




जी हाँ ,ये वही हार था जिसकी बाजी लगी थी।

फिर वो शोख बोली , भाभी मैं सोच रही थी दो दिन बाद ये हार मेरे गले में कैसा लगेगा।

( जिन सुधी पाठकों/पाठिकाओं को इस बाजी की याद हलकी हो गयी है , कहानी के शुरू में \, जस का तस कोट कर देती हूँ ,

एक दिन ,अभी भी मुझे याद है ,१० अगस्त।



हम लोग दसहरी आम खा रहे थे मस्ती के साथ ( वो खाना खा के ऊपर चले गए थे ) और तभी मेरी छुटकी ननदिया आई। और मेरे पीछे पड़ गयी।








" भाभी ये आप क्या कर रही हैं ,आम खा रही हैं ?"

मैंने उसे इग्नोर कर दिया फिर वो बोली

,मेरे भैय्या , आम छू भी नहीं सकते ,…"




" अरे तूने कभी अपनी ये कच्ची अमिया उन्हें खिलाने की कोशिश की , कि नहीं , शर्तिया खा लेते "
चिढ़ाते हुए मैं बोली।

जैसे न समझ रही हो वैसे भोली बन के उसने देखा मुझे।

" अरे ये , "

और मैंने हाथ बढ़ा के उसके फ्राक से झांकते , कच्चे टिकोरों को हलके से चिकोटी काट के चिढ़ाते हुए इशारा किया और वो बिदक गयी।



" ये देख रही हो , अब ये चाहिए तो पास आना पड़ेगा न "


मुस्करा के मैंने अपने गुलाबी रसीले भरे भरे होंठों की ओर इशारा करके बताया।



और एक और दसहरी आम उठा के सीधे मुंह में , …"

और एक पीस उसको भी दे दिया , वो भी खाने लगी , मजे से।थे भी बहुत रसीले वो।
लेकिन वो फिर चालू हो गयी ,


" पास भी नहीं आएंगे आपके , मैं समझा रही हूँ आपको , मैं अपने भैया को आपसे अच्छी तरह समझतीं हूँ, आपको तो आये अभी तीन चार महीने भी ठीक से नहीं हुए हैं . अच्छी तरह से टूथपेस्ट कर के , माउथ फ्रेशनर , … वरना,… "

उस छिपकली ने गुरु ज्ञान दिया।


मैं एड़ी से चोटी तक तक सुलग गयी ,ये ननद है की सौत और मैंने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया।

" अच्छा , चलो लगा लो बाजी। अब इस साल का सीजन तो चला गया , अगले साल आम के सीजन में अगर तेरे इन्ही भैय्या को तेरे सामने आम न खिलाया तो कहना। "


मैंने दांव फ़ेंक दिया।


लेकिन वो भी , एकदम श्योर।

" अरे भाभी आप हार जाएंगी फालतू में , उन्हें मैं इत्ते दिनों से जानती हूँ। खाना तो दूर वो छू भी लें न तो मैं बाजी हार जाउंगी। "
वो बोली।


लेकिन मैं पीछे हटने वाली नहीं थी ,

" ये मेरे गले का हार देख रही हो पूरे ४५ हजार का है। अगर तुम जीत गयी तो तुम्हारा ,वरना बोलो क्या लगाती हो बाजी तुम ,"



तब तक मेरी जेठानी भी आगयी और उसे चिढ़ाती बोलीं ,

" अरे इसके पास तो एक ही चीज है देने के लिए। "


पर मेरी छुटकी ननद , एकदम पक्की श्योर बोली। " आप हार जाइयेगा। "

जेठानी फिर बोलीं , मेरी ननद से

" अरे अगर इतना श्योर है तो लगा ले न बाजी क्यों फट रही है तेरी। "

और ऑफर मैंने पेश किया ,

"ठीक है तू जीत गयी तो हार तेरा और मैं जीत गयी तो बस सिर्फ चार घंटे तक जो मैं कहूँगी ,मानना पडेगा। "




पहली बार वो थोड़ा डाउट में थी।

" अरे मेरे सीधे साधे भैया को जबरन पकड़ के उसके मुंह में डाल दीजियेगा आप लोग , फिर कहियेगा ,जीत गयीं " बोली गुड्डी।


" एकदम नहीं वो अपने हाथ से खाएंगे , बल्कि तुझसे कहेंगे ,तेरे हाथ से खुद खाएंगे अब तो मंजूर। और तुझे भी अपने हाथ से खिलायंगे। एक साल के अंदर। अब मंजूर। "

मैंने शर्त साफ की और वो मान गयी।
(मेरी जेठानी ने मेरे कान में कहा , सुन तेरा हार तो अब गया।)

आज वो कुछ ज्यादा ही मस्ता रही थी।

उसकी मेरे हार से खेलती उँगलियों का जवाब , मेरी उँगलियों ने दिया,
उसके हाल्टर टॉप से झांकते निप्स को दबोचकर , और उसकी आँखों में आँखे डालकर , मुस्कराते मैंने पूछा ,

" याद है और अगर तू हार गयी तो ,,,,... "

" याद है फिर ये हार गया मेरे हाथ से और चार घंटे की गुलामी ,लेकिन आपकी ये ननद हारने वाली नहीं , हार लेने वाली है।
और आप ने बाजी भी ऐसी लगा दी है जो आप कभी जीत ही नहीं सकती "

मुस्कराती हुयी घमंड से वो बोली और उस की उंगलियां हार पर एकदम जकड़ गयीं।



तबतक जेठानी जी ने फिर हंकार दी और हम दोनों खाने की टेबल पर , वो भी वहीँ खड़े थे

लेकिन बोले ज़रा मैं वाश रूम हो के आता हूँ।
 

Naina

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luxury of sexuality, .... aur ishe nibhayi kaise jaaye aur sath hi har pehlu ko leke ek details.. in baaton ko kahani ke kirdaaro ke jariye komal ma'am ne hum readers ke samaks jis tarah se pesh karne ki koshish ki hai.. Usme wo har baar ki tarah dikhane mein kamyaab rahi.. .. ek aur aham baat .... Maine kayi baar komal ma'am ki story pe notice ki hai... kirdaar ek dusre ko ahmiyat dete hai...
well.... kaafi dilchasp aur kaamukta se bhare sabhi naye update the....
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills komal ma'am :applause: :applause:
 
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You are an answer to prayer, a dream come true for those writers whose posts are sparsely read and rarely commented upon, authors, who are on the brink of loosing self belief. A discerning reader, gifted with the mellifluent words and a large heart to ignore goof ups, mistakes and weakness, which make readers shun threads. How I wish, your tribe may increase.

But may I ask two small favours, rather one small and one big favour. Small favour, I am beseeching you is to grace my thread Mohe Range de, ( मोहे रंग दे), slow languorous lingering romance of a newly wedded couple. It gives joy of dhimi aanch ki cooking ka maja .

and the big favour is, i beg you not to put a prefix of Madam, name is Komal and that is good enough.

and do keep on honoring these threads, with your presence, which may feel orphan without blessings of discerning readers like you.
 
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हार



हार या जीत



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" याद है और अगर तू हार गयी तो ,,,,... "




" याद है फिर ये हार गया मेरे हाथ से और चार घंटे की गुलामी ,लेकिन आपकी ये ननद हारने वाली नहीं , हार लेने वाली है।

और आप ने बाजी भी ऐसी लगा दी है जो आप कभी जीत ही नहीं सकती "

मुस्कराती हुयी घमंड से वो बोली और उस की उंगलियां हार पर एकदम जकड़ गयीं।



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तबतक जेठानी जी ने फिर हंकार दी और हम दोनों खाने की टेबल पर , वो भी वहीँ खड़े थे लेकिन बोले ज़रा मैं वाश रूम हो के आता हूँ।


और हम तीनो पहले तो एक दूसरे को देख कर मुस्कराये , फिर जोर जोर से खिलखिलाने लगे ,

हम तीनो को मालुम था की उनका वाशरूम जाना एक तरह की स्ट्रेटजिक रिट्रीट थी।

और बैठने की जगह भी मैंने स्ट्रेटजिकली प्लान की थी , मैं ये और उनकी 'वो 'एक साइड

और जेठानी सामने ,ताकि उन्हें सब दिखे, खेल खुल्लम खुल्ला ,देवर और दिन में ननद रात में देवरानी का।

लेकिन गुड्डी भी कम खिलाड़न नहीं थी, वो मुस्कराते हुए मेरे गले के उस 'नौलखा ' हार को देखती रही , फिर जेठानी को देखते बोली ,

" भाभी ,याद है सिर्फ दो दिन बचे हैं , दस अगस्त में। "

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मेरी जेठानी कैसे भूल सकती थीं , वही तो अकेली गवाह थीं ,उस दो दिन कम एक साल पहले लगी बाजी की।

वैसे तो ननद के खिलाफ मैं और जेठानी एक हो जाते थे , पर पिछले दो दिनों से जो इस घर में चल रहा था बस ,

उन्होंने पाला पलटा , गुड्डी की ओर , और गुड्डी की हंसी में हंसी मिला के बोलीं,

" मैंने तो पहले ही कहा था इससे ,तेरे सामने ,याद है की अब ये तेरा हार तो गया। "


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गुड्डी भी पक्की छिनार ,मेरे हार पर फिर हाथ लगाते बोली ,

" अरे नहीं भाभी , अभी दो दिन तो है न तब तक मेरी छुटकी भाभी एक हार के साथ कुछ सेल्फी वेल्फी खींच लें , अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट कर दें ,आपका फेसबुक पेज वेज है की नहीं ? "

वो छिनार ,एकदम छिनरों वालीहंसी हँसते बोली।

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और जेठानी भी ,मेरे जवाब देने के पहले ही , एकदम टिपिकल मेरी शादी के शुरू के दिनों टाइप कमेंट , और गुड्डी से उनकी मिली भगत ,

" अरे कपडे वपड़े तो कोई भी , लेकिन खाना पीना ,वो भी आम हम लोग तो ,.... बचपन से इसके देख रहे हैं नाम भी नहीं लेसकता। "

जेठानी जी टाइम ट्रेवल करते बोलीं।

" अरे छोड़िये न , ये सब बाते तो पहले सोचनी चाहिए थी न लेकिन मेरा तो फायदा हो गया न ,वैसे भाभी परेशान मत होइएगा रहेगा तो मेरे पास ही न। बहुत कबार कोई पार्टी वार्टी ,शादी ब्याह होगा तोदेदूंगी एकाध, दिन के लिए, "


वो ऐलवल वाली ,एकदम उसी अंदाज में बोली जिस अंदाज में मेरी शादी के बाद ,


लेकिन टेबल पर लगे खाने को देख कर उसका कमेंट बदल गया ,

खीरे की सलाद , बैंगन की कलौंजी


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" ये सब तो भैया खाते नहीं ,उन्हें एकदम नहीं पसन्द है " वो बुदबुदायी।

मेरे मन में तो आया ,की बोल दूँ आज तो तेरी ये कच्ची अमिया कुतरेंगे वो और वो भी सबके सामने,

लेकिन फिर मैंने सोचा की चल कोमल कुछ देर तक तो इस बिचारी का भरम , और मैंने मक्खन वाली छूरी चलाई।

" असल में मैंने उन्हें बताया था की गुड्डी को खीरा,बैगन ,कच्चा केला ये सब बहुत पसंद है , मैंने कई बार इनसे तुम्हारा नाम लेके खाने को भी कहा की अरे जो गुड्डी को पसंद वो आपको भी पसंद है ये आप बार बार कहते हैं , तो जानती हो उन्होंने क्या कहा ?"




गुड्डी कान पारे सुन रही थी ,अपने दिल की बात , बोली ,

"बोलिये न। "

लेकिन तबतक मेरी जेठानी अपनी डबल मीनिंग वाली ननद भाभी की छेड़छाड़ , बोलीं ,


" अरे उस बिचारे को क्या मालुम , की गुड्डी को ये सब ऊपर वाले मुंह से ज्यादा नीचे वाले मुंह से पसंद आता है।

अपनी उमर की बाकी किशोरियों की तरह जिन्हे ऐसे मजाक पसंद तो बहुत आते हैं ,लेकिन ऊपर से बुरा मुंह बनाती हैं , ... बुरा मुंह बनाते बोली , भाभी और मुझसे कहा ,

हाँ आप बताइये न भैय्या क्या बोले।

" वो मान तो गए लेकिन उन्होंने दो शर्तें रखीं, पहले तो तेरे सामने खायंगे और दूसरा जब तू उनको देगी। "

" टिपकल मेरे भैय्या ,"

उसकी आँखों में वही चमक थी जो शुरू के दिनों में ,

लेकिन तबतक उसके भैया आ गए।
इधर उधर देखते रहे , मैं गुड्डी से बोली ,


'अरे ज़रा सा सरक,सरक न अपने भइया को बैठने दे."

वो वैसे ही किनारे सटी , थोड़ा सरकी , और बीच में ये घुसे ,

सैंडविच बने ,एक ओर मैं और दूसरी ओर उनकी 'वो ' बचपन की माल ,कच्चे टिकोरे वाली



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दायीं ओर मैं ,

और बायीं ओर ' वो' ,
 
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Naina

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Waise nok jhok hi sahi par aapki story ke kirdaar chhoti chhoti baaton khushi dhundh lete hai... kya jhethani kya nanad.. Lage ki jaise inki yahin soch ho ki Kya leke aya tha insaan kya leke Jayega.. ....do din ki Zindagi haiii , do din ka mela.. to jo khushiyo ki pal mile hai, abhi bator lo..
Btw har situation ko pesh karne ka tarika aur prastutikaran nirala tha... lage ki update aur zyada bada hota to..... like mega update....hamesha ki tarah flow badhiya hai ..
Let's see what happens next...
Brilliant update with awesome writing skills..... :yourock: :yourock:
 
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But may I ask two small favours, rather one small and one big favour. Small favour, I am beseeching you is to grace my thread Mohe Range de, ( मोहे रंग दे), slow languorous lingering romance of a newly wedded couple. It gives joy of dhimi aanch ki cooking ka maja .

and the big favour is, i beg you not to put a prefix of Madam, name is Komal and that is good enough.

and do keep on honoring these threads, with your presence, which may feel orphan without blessings of discerning readers like you.
:bow:
"Mohe rang de" pe review kal evening se suru 😊
 
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