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जोरू का गुलाम भाग ८९
जिंदगी का पहला स्मोक
इसी कमरे में तो मैं जब शादी के बाद आयी थी , कितना ज्ञान,कित्ता ज्ञान इसी छोरी ने , लेकिन अब ,...
मैं उन के पास पहुँच गयी थी , गुड्डी के भैय्या के पास जो अब मेरे सैंया थे , बाल बिगाड़ते बोली ,
"मुन्ने को सिग्गी चाहिए , देती हूँ न "
और बॉटम ड्राअर से निकाल के सीधे उनके मुंह में ,और वापस अपने शिकार के पास।
अबकी गुड्डी को मैंने पीछे से पकड़ लिया।
स्साली का पिछवाड़ा भी बहुत मस्त था ,एकदम निहुरा के मारने लायक।
दोनों कलाइयां मेरी हाथों की सँडसी जैसी पकड़ में और अब वो थोड़ा आगे की ओर सीना उभारकर ,
अब तो खुले टॉप से गुड्डी की छोटी छोटी टेनिस बॉल साइज के उभार एकदम खुल के छलक रहे थे , और
उसके 'सीधे साधे भैय्या ' भी सिगरेट सुलगाये ,एकदम उसके पास , और उनकी निगाहें भी अपनी उस
एलवल वाली बहिनिया के छलकते जुबना पर ,
मैंने आँख से इशारा किया
और उनके मुंह से निकला धुंआ सीधे उस किशोरी के गोरे गोरे टॉप फाडू पहाड़ों पर ,
गुड्डी का चेहरा , उसके उरोज सब कुछ उसके भय्या के सिगरेट के धुंए में खो गए थे।
लेकिन मुझे मजा नहीं आया।
मेने उन्हें फिर इशारा किया ,और अबकी दो तीन कश 'गुड्डी के सीधे साधें भैय्या ' ने कस कस के लिए ,उनका पूरा मुंह फूला हुआ था ,बस।
और मैंने एक हाथ में अपनी ममेरी ननद की दोनों चिट्टी कलाइयां जकड़े जकड़े , दूसरे हाथ से कस के गुड्डी के गोरे चिकने गाल दबा दिए।
चिरइया ने चोंच खोल दी , बस।और उनके होठों ने कस के अपने होंठों के बीच उस किशोरी के रसीले होंठ , और अब गुड्डी के सर को उन्होंने कस के दोनों हाथों से पकड़ लिया।
उनके होंठ गुड्डी के होंठो को भींचे उस के होंठ का रस ले रहे थे और गुड्डी के मुंह में उनके मुंह का सारा धुंआ ,
बिचारी ,ननदिया न खांस सकती थी , न स्मोक निकाल सकती थी।
जिंदगी का पहला स्मोक ,अपने भैया के होंठों से।
और तबतक सिगरेट उन्होंने मेरे हाथों में बल्कि मेरे होंठों को सौंप दी थी ,और मैं उनसे भी जोर जोर से कश ,मेरा मुंह धुंए से पूरा फूल गया लेकिन मैंने निकलने नहीं दिया ,
और जैसे ही उन्होंने गुड्डी को छोड़ा तो बिना एक पल की देरी किये ,गुड्डी के होंठ मेरे होंठों के बीच और मेरे मुंह का धुंआ ,
सीधे गुड्डी के मुंह में।
कहने की बात नहीं जब वो गुड्डी के किशोर उभारों पर सिगरेट का धुंआ छोड़ रहे थे , जब उनके होंठ गुड्डी के होंठो से चिपके थे और उनके मुंह का धुंआ गुड्डी के मुंह में जा रहा था और जब मेरे मुंह से ,...
सारी की सारी फोटुएं मेरे मोबाइल में कैद।
सिगरेट बस अब थोड़ी सी बची थी ,लेकिन मैंने उन्हें हड़काया।
" यार ये हमारे कमरे में आयी है , गेस्ट है ,स्पेशल गेस्ट और तू अकेले अकेले सुट्टा मारे जा रहा है , ज़रा इसको भी तो सिग्गी का ,.... "
और एक बार फिर मैंने गुड्डी के पीछे वाली जगह ,गुड्डी की दोनों कलाइयां मेरे हाथ की पकड़ में
और गुड्डी का मुंह खुलवाके खुद उन्होंने सिगरेट उस टीनेजर के मुंह में खोंस दी।
" अरे थोड़ा सा , हाँ और जोर से सक कर , इंजॉय द फील , थोड़ी देर अपने मुंह में रहने दे , फिर निकालना। अरे तुम तो एकदम एक्सपर्ट हो गयी यार ,अगली बार तो तू स्मोक के छल्ले बना लेगी। "
वो प्यार से अपनी बहिनिया को समझा रहे थे ,
एक दो कश में सिगरेट लेकिन खतम हो गयी।
निगाह उनकी लेकिन गुड्डी की मस्त कच्ची अमिया पर टिकी , और गुड्डी उसे ढकने छिपाने के लिए कुछ कर भी नहीं सकती थी।
जिंदगी का पहला स्मोक
इसी कमरे में तो मैं जब शादी के बाद आयी थी , कितना ज्ञान,कित्ता ज्ञान इसी छोरी ने , लेकिन अब ,...
मैं उन के पास पहुँच गयी थी , गुड्डी के भैय्या के पास जो अब मेरे सैंया थे , बाल बिगाड़ते बोली ,
"मुन्ने को सिग्गी चाहिए , देती हूँ न "
और बॉटम ड्राअर से निकाल के सीधे उनके मुंह में ,और वापस अपने शिकार के पास।
अबकी गुड्डी को मैंने पीछे से पकड़ लिया।
स्साली का पिछवाड़ा भी बहुत मस्त था ,एकदम निहुरा के मारने लायक।
दोनों कलाइयां मेरी हाथों की सँडसी जैसी पकड़ में और अब वो थोड़ा आगे की ओर सीना उभारकर ,
अब तो खुले टॉप से गुड्डी की छोटी छोटी टेनिस बॉल साइज के उभार एकदम खुल के छलक रहे थे , और
उसके 'सीधे साधे भैय्या ' भी सिगरेट सुलगाये ,एकदम उसके पास , और उनकी निगाहें भी अपनी उस
एलवल वाली बहिनिया के छलकते जुबना पर ,
मैंने आँख से इशारा किया
और उनके मुंह से निकला धुंआ सीधे उस किशोरी के गोरे गोरे टॉप फाडू पहाड़ों पर ,
गुड्डी का चेहरा , उसके उरोज सब कुछ उसके भय्या के सिगरेट के धुंए में खो गए थे।
लेकिन मुझे मजा नहीं आया।
मेने उन्हें फिर इशारा किया ,और अबकी दो तीन कश 'गुड्डी के सीधे साधें भैय्या ' ने कस कस के लिए ,उनका पूरा मुंह फूला हुआ था ,बस।
और मैंने एक हाथ में अपनी ममेरी ननद की दोनों चिट्टी कलाइयां जकड़े जकड़े , दूसरे हाथ से कस के गुड्डी के गोरे चिकने गाल दबा दिए।
चिरइया ने चोंच खोल दी , बस।और उनके होठों ने कस के अपने होंठों के बीच उस किशोरी के रसीले होंठ , और अब गुड्डी के सर को उन्होंने कस के दोनों हाथों से पकड़ लिया।
उनके होंठ गुड्डी के होंठो को भींचे उस के होंठ का रस ले रहे थे और गुड्डी के मुंह में उनके मुंह का सारा धुंआ ,
बिचारी ,ननदिया न खांस सकती थी , न स्मोक निकाल सकती थी।
जिंदगी का पहला स्मोक ,अपने भैया के होंठों से।
और तबतक सिगरेट उन्होंने मेरे हाथों में बल्कि मेरे होंठों को सौंप दी थी ,और मैं उनसे भी जोर जोर से कश ,मेरा मुंह धुंए से पूरा फूल गया लेकिन मैंने निकलने नहीं दिया ,
और जैसे ही उन्होंने गुड्डी को छोड़ा तो बिना एक पल की देरी किये ,गुड्डी के होंठ मेरे होंठों के बीच और मेरे मुंह का धुंआ ,
सीधे गुड्डी के मुंह में।
कहने की बात नहीं जब वो गुड्डी के किशोर उभारों पर सिगरेट का धुंआ छोड़ रहे थे , जब उनके होंठ गुड्डी के होंठो से चिपके थे और उनके मुंह का धुंआ गुड्डी के मुंह में जा रहा था और जब मेरे मुंह से ,...
सारी की सारी फोटुएं मेरे मोबाइल में कैद।
सिगरेट बस अब थोड़ी सी बची थी ,लेकिन मैंने उन्हें हड़काया।
" यार ये हमारे कमरे में आयी है , गेस्ट है ,स्पेशल गेस्ट और तू अकेले अकेले सुट्टा मारे जा रहा है , ज़रा इसको भी तो सिग्गी का ,.... "
और एक बार फिर मैंने गुड्डी के पीछे वाली जगह ,गुड्डी की दोनों कलाइयां मेरे हाथ की पकड़ में
और गुड्डी का मुंह खुलवाके खुद उन्होंने सिगरेट उस टीनेजर के मुंह में खोंस दी।
" अरे थोड़ा सा , हाँ और जोर से सक कर , इंजॉय द फील , थोड़ी देर अपने मुंह में रहने दे , फिर निकालना। अरे तुम तो एकदम एक्सपर्ट हो गयी यार ,अगली बार तो तू स्मोक के छल्ले बना लेगी। "
वो प्यार से अपनी बहिनिया को समझा रहे थे ,
एक दो कश में सिगरेट लेकिन खतम हो गयी।
निगाह उनकी लेकिन गुड्डी की मस्त कच्ची अमिया पर टिकी , और गुड्डी उसे ढकने छिपाने के लिए कुछ कर भी नहीं सकती थी।