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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २२७


गुड्डी रानी की रगड़ाई- किचेन में मस्ती


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27,73,899

बाहर निकल टेबल सेट करती हुयी गुड्डी को मैंने देखा तो उसकी हालत तो मुझसे भी खराब थी, रुक रुक के खड़ी हो जाती थी। रोकने पर भी सिसकी निकल जाती थी जैसे जोर की चिल्ख उठ रही हो, उसकी ये हाल उसके भैया और रीनू ने मिल के की थी।

क्या किया गुड्डी के भैया ने गुड्डी के साथ,

बस इतना बता सकती हूँ की जितना मेरे दोनों जीजू ने मिल के मेरी रगड़ाई की उससे बहुत ज्यादा, मेरे मरद ने मेरी ननद की रगड़ाई की। जैसा मैं चाहती थी उससे भी बहुत ज्यादा।

इसलिए तो मैं कहती हूँ, मेरा मरद, मेरा मरद है। सारी दुनिया एक तरफ, मेरा मरद अकेले,



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गुड्डी, ये और रीनू के हवाले आज किचेन था और लंच की जिम्मेदारी।

और सबसे ज्यादा काम गुड्डी के जिम्मे,





इसलिए की गुड्डी के आने के बाद, गीता के लिए दरवाजा वही खोलती थी और गीता ने धीरे धीरे किचेन के काम के साथ झाड़ू पोछा, सफाई सब काम गुड्डी को पकड़ा दिया लेकिन सिखाया भी अच्छे ढंग से, तो किचेन में कौन सी चीज कहाँ रखी है, खड़े मसाले कहाँ है, पिसी धनिया किधर है,... सब गुड्डी को मालूम था।

हाँ, इस सीखने के बदले में रोज सुबह सुबह गुड्डी को, गीता की चुनमुनिया की सेवा करनी पड़ती थी, चूस चूस के चाट के और अब वो पक्की चूत चटोरी हो गयी थी। और इनाम में गीता की चाशनी और कभी कभी साथ में खारा शरबत निकल गया तो वो भी, ...लेकिन किचेन के मामले अब गुड्डी एकदम पक्की थी।

गुड्डी के भाई कम भतार ज्यादा, ये।

इन्होने तो अवधी और मुगलाई दोनों नान -वेज डिशेज का कोर्स कर रखा था और उससे भी बढ़ के इनकी सास ने इन्हे किचेन में कुछ स्पेशल डिशेज भी बनानी सिखा दी थीं और रीनू इसलिए की कंट्रोल तो उसी का होना था अपने जीजू और उनकी बहिनिया पे और उससे भी बढ़कर इसलिए की उसके जीजू ने, इन्होने अपनी साली से हैदराबादी बिरयानी बनाने की फरमाइश की थी।

बहुत निहोरा करवाने के बाद साली मान तो गयी लेकिन इस शर्त के साथ ये भी रहेंगे किचेन में उसके साथ और उनकी रंडी बहिनिया भी।



तो बस ये तीनो किचेन में और आते ही रीना ने हुकुम सुना दिया,

" जीजू, रंडियां क्या कपड़ों में अच्छी लगती हैं ? "


ये भी सिर्फ बॉक्सर शार्ट में थे, बहुत हो छोटा, आलमोस्ट ट्रांसपेरेंट, जो इनकी सास इनके लिए लायी थीं और ये अपना इनाम में जीता पिंक एप्रन पहन रहे थे, गुड्डी ने भी अपना एप्रन निकाल लिया था।

किस जीजू की हिम्मत होगी जो साली की बात काटे और ये तो रीनू के पक्के चमचे, तुम दिन को कहो रात तो रात कहेंगे टाइप। तुरंत रीनू की बात में हामी भरी,

"एकदम नहीं "

गुड्डी एक छोटे से टॉप और स्कर्ट में थी और टॉप के ऊपर वो अपना एप्रन पहन रही की रीनू ने हुकुम सुना दिया, " हे रंडी, उतार कपडे , किचेन में खराब हो जाएंगे, सिर्फ एप्रन। "

और रीनू किचेन में ड्राअर खोल खोल के कुछ ढूंढ रही थी, टॉप उतार कर एप्रन बांधती गुड्डी बोली,

" मीठी भाभी, क्या ढूंढ रही हैं ? "

" कैंची " रीनू बोली।

" सबसे नीचे वाली ड्राअर में " गुड्डी ने बताया और अपनी छोटी सी स्कर्ट भी खोलने लगी, भाभी ने बोला था सिर्फ एप्रन।

और कैंची लेकर रीनू अपनी ननद के पास, और उसके भाई को सुनाते बोली,

" रंडी, ये जोबन किस लिए आतें हैं "

" दिखाने के लिए, लौंडों को लचाने के लिए, दबवाने, मसलवाने और रगड़वाने के लिए "

गुड्डी बोल रीनू से रही थी लेकिन उसकी निगाहें अपने बचपन के यार को देख रही थीं, उकसा रही थीं, बुला और ललचा रही थीं।

" तो इतना लम्बा एप्रन क्यों "

रीनू बोली और कैंची ले के काट दिया, अब एप्रन सिर्फ गुड्डी के उभारों के ऊपर, और वो भी पूरी तरह से से नहीं, जहाँ से उभार उभरना शुरू हो रहे थे, वो हिस्सा तो साफ़ साफ़ दीखता था और रीनू ने एप्रन ऐसे टाइट बाँधा की दोनों टनाटन निप्स साफ़ दिख रहे थे।

कोई एक जवान होती मस्त लौंडिया हो, टीनेजर, बल्कि टीन ऑफ़ टीन्स, मिडल ऑफ़ टीन, और सिर्फ एक छोटा सा कपडा, जो मुश्किल से उसके उभरते उभारों को ढक रहा हो, कड़े कड़े खड़े खड़े सैल्यूट मारते निपल, उस एप्रन को फाड़ के निकलने के लिए बेचैन, गोरा चिकना पेट, गहरी नाभी, पतली कमरिया,

जस्ट एक पतली सी थांग आगे दो इंच की पिछवाड़े तो बस एक पतले धागे सी, कसी दरार में धंसी, लम्बी लम्बी टाँगे,


कौन साला न दीवाना हो जाए,

और जवान होती लड़कियों के जोबन पे सबसे पहले नजर पड़ती है उसके भाई की, उसका ही मुर्गा फड़फड़ाता है, और यहाँ तो भाई, भतार ज्यादा था, तो उनके शार्ट का तम्बू तनने लगा।

और जिस को देख के तन रहा था, सबसे पहले उसी की नजर पड़ी, गुड्डी की और उसने एक फ्लाईंग किस अपने भैया को दिया और दूसरा भैया के पप्पू को।

रीनू सब गुड्डी की शैतानी देख रही थी, पर उसके दिमाग में कुछ और शैतानी चल रही थी,

" हे रंडी रानी, जरा एक सेल्फी खिंच, हाँ थोड़ा किस लेती हुयी, एक और,..." रीनू बोली,

गुड्डी को कहने की देर थी, उसके उम्र की लड़कियां सेल्फी खींचने, में एकदम एक्सपर्ट, एक से एक सेक्सी,







"रंडी रानी, अब यार सुबह जो चौदह यार बनाये थे, चुदवाने को, समोसे की दूकान पे अपने समोसे दिखा के, भेज दे उन सब को, अरे यार लौंडो को लगातार चारा डालना पड़ता है। "

गुड्डी ने पिक तो भेजी ही साथ में कमेंट भी हुकुमनामा भी,

"अभी किचेन में हूँ अकेली, और शाम तक कम से कम अपने जैसे, तेरे ऐसे तो मिलने मुश्किल हैं लेकिन उन्नीस बीस भी चलेगा, कम से कम पचास को भेजो, इंस्टा पे लाइक भी कम से कम १००"


और वो सारी की सारी गुड्डी के एक अलग इंस्टा अकाउंट पे जो उसने खाली लौंडो के लिए बनाया था, गुड्डी की कुछ सहेलियां भी थी कुछ कोचिंग वाली, कुछ पुरानी, दिया, छन्दा ऐसी।

तबतक गुड्डी की निगाह एक थाली में रखे बैंगन पे पड़ गयी और वो रीनू के पीछे पड़ गयी, " मीठी भाभी, मैंने सुना है की आप बैगन की कलौंजी बहुत अच्छा बनाती हैं, मुझे सिखा दीजिये न "

" रंडी स्साली सीखेगी, सोच ले, फिर मैं जो जो कहूँगी तुझे और तेरे इस गंडुवे, भंड़ुवे को भी सब करना पडेगा "

" मंजूर " चहक के गुड्डी बोली और अपने बचपन के यार की ओर देख के उनकी साली से कहा, " और इनकी हिम्मत है की बात टालें "

" हे इस रंडी के भंड़ुवे, तो चल पहले चार बैगन छांट छांट के निकाल " रीनू ने अब अपने जीजू को हुकुम सुनाया और उन्होंने चुन के चार सबसे लम्बे लम्बे बैगन छांट लिए।
 
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गुड्डी और बैगन के मजे


" वाह भैया, सब आप अपने साइज के छांटे हैं, कोई भी एक बित्ते से कम नहीं है "

गुड्डी खिलखिलाते हुए अपने बचपन के यार से बोली।

( वैसे असली बात ये थी की गुड्डी ने सच में अपने भैया का नापा था, इंच टेप ले के, इंच में भी, सेंटीमीटर में भी, लम्बाई भी मोटाई भी, ...इसलिए बोल रही थी )




रीनू ने अपनी ननद को मजेदार चिढ़ाती हुयी आँखों से गुड्डी को देखते हुआ बोला,

" अब इसे मैरीनेट करना पड़ेगा, हर बैगन को कम से कम १५-२० मिनट तक "


" कैसे "

ये पैदायशी बुद्धू पूछ बैठे। लेकिन गुड्डी को कुछ कुछ अंदाजा अब हो गया था, सुबह इन्ही उसकी मीठी भाभी ने खुद अपने हाथ से मोटा खीरा छील के उसकी बिल में पेला था, और उसी की सैंडविच,


रीनू ने बुद्धू जीजू को नजरअंदाज कर दिया और गुड्डी से बोली, " चल स्साली रंडी, ऊपर, और टाँगे फैला ले और थांग बस सरका ले "

गुड्डी, रीनू की चमची, झट्ट से उछल कर किचेन के स्लैब पे, और टाँगे फैला के, गुलाबी गुलाबी चुनमुनिया खोल के , दोनों फांको ने कस के दरवाजा बंद कर के रखा था, बस बड़ी मुश्किल से कसी कसी पतली दरार दिखती थी उस इंटर वाली टीनेजर की।




" चल अब अपने भैया को बोल आगे क्या करना है"


रीनू ने अपने जीजू को एक बैगन जो उन्होंने छांटा था पकड़ाते हुए गुड्डी को बोलै।

" भैया, इसे मेरी, " और उसकी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की रीनू ने आग्नेय नेत्रों से घूरा और कस के हड़काया, " स्साली, रंडी, ये होती है रंडी की जुबान, " और गुड्डी सच में एकदम से

" हे मेरे बचपन के यार, चल इधर आ और पेल दे इसे अपनी बहन की बुरिया में " गुड्डी उन्हें अपनी ओर इशारा करके बुला के बोली




लेकिन बैगन मोटा था, कुछ चिकनाई भी नहीं लगी और सबसे बड़ी बात की थांग घुटनो के पास फंसी तो वो टीनेजर अपनी मखमली जाँघे भी पूरी तरह नहीं फैला सकती थी, पर उसके भैया भी १७० + आई क्यू वाले और सबसे बड़ी बात चूत चाटने के रसिया और चूत कुँवारी इंटर वाली छुटकी बहिनिया की हो तो कौन भाई मौका छोड़ता है। तो वो भी बस लग गए,

" हे पांच मिनट के अंदर बैगन घुस जाना चाहिए, भाई बहन की रास लीला के लिए टाइम नहीं है बहुत काम है किचेन में "

रीनू ने हड़काया।



जीभ भाई की कभी बहन की बुर के ऊपर सपड़ सपड़ तो कभी अंदर घुस के जिस चूत की झिल्ली कुछ दिन पहले ही उन्होंने फाड़ी थी, उसकी हाल चाल लेती।

गुड्डी भी अपने भाई का पूरा हाथ बटा रही थी, कस के उनका सर पकड़ के अपनी चूत पे चिपका, कभी खुद निचले होंठों को उनके होंठों पर रगड़ के



" उय्य्यी, हाँ भैया, हां बहुत मजा आ रहा है, ओह्ह्ह ऐसे ही चूस न स्साले, ओह्ह "





वो सिसक रही थी अपनी चंद्रमुखी को उनके मुंह पे रगड़ रही थी। और थोड़ी देर में एक तार की चासनी निकलनी शुरू हो गयी और वैसे, जैसे उसके भैया को इशारा था गेयर चेंज करने के लिए। जीभ का साथ देने के लिए दोनों उँगलियाँ भी आ गयी। उँगलियाँ भरतपुर स्टेशन के अंदर घुस गयी दोनों और जीभ स्टेशन के बाहर लगे सिग्नल को , गुड्डी की क्लिट को, और फिर दोनों होंठ। होंठ क्लिट को कस कस के चूसते,जीभ उसे फ्लिक करती और बुर के अंदर दोनों उँगलियाँ लंड को मात कर रही थीं।



बस थोड़ी देर में झरना फूट पड़ा, चूत एकदम गीली आस पास भी, और गुड्डी के भैया ने बैगन पकड़ के पुश करना शुरू कर दिया। गुड्डी ने भी अपने दोनों हाथों से अपनी फांको को पकड़ के फ़ैलाने की कोशिश की और बैगन की टिप घुस गयी लेकिन रीनू की आवाज

" स्साले गंडुए, पेलना नहीं आता क्या, खाली पेलवाना जानते हो। पेल कस के एक मिनट टाइम है बस, वरना मैं आती हूँ और बैगन की जगह अपनी मुट्ठी पेलूँगी पूरी कोहनी तक। "




और उन्होंने पूरी ताकत से ठेलना धकेलना, शुरू किया। दर्द के मारे गुड्डी की जांघें फटी पड़ रही थी लेकिन वो जानती थी की एक चीख और उसके भैया के बस का कुछ नहीं होगा, उसका क्या वो किसी का दर्द नहीं बरदाश्त कर सकते। गुड्डी ने स्लैब कस के पकड़ लिया और बूँद बूँद कर के दर्द पी गयी।

कभी गोल गोल घुमा के कभी ताकत से ठेल के अपनी बहन की बुर में ऑलमोस्ट पूरा बैगन वो ठेल के माने।




और रीनू ने आगे का इंस्ट्रक्शन दे दिया



" गुड गर्ल, चल अब अपनी थांग ठीक कर और कस के इसे १५ मिनट अपने अंदर भींच के रखना, निकलने न पाए और मुझे बिरयानी का मसाला निकाल के दे "

काम का बटवारा ये था की, रीनू को हैदराबादी बिरयानी बनानी थी, भुना गोश्त और हांडी चिकेन इनके जिम्मे, स्वीट डिश गुड्डी के जिम्मे और गुड्डी हर काम में इन दोनों लोगों की हेल्प भी करती।


बदमाशी शुरू की गुड्डी ने ही।

कुछ तो उस इंटर वाली टीनेजर की बिल में जो मोटा बैगन धंसा था उसका दोष, चूत रिस रही थी, बूँद बूँद कर के और उतनी ही तेज चींटिया भी काट रही थीं, अंदर। दूसरे उसे अपने भैया को छेड़ने में बहुत मजा आता था, बेचारे आधे टाइम बोल ही नहीं पाते थे और अभी तो उनके दोनों हाथ फंसे थे, इसलिए कुछ कर भी नहीं सकते थे।

वो दोनों हाथों से चिकेन वाश कर रहे थे, रगड़ रगड़ कर, गुड्डी उन्हें हेल्प कर रही थी,सबसे पहले अभी हांडी चिकेन ही बनाना था।





लेकिन गुड्डी का एक हाथ तो खाली था और उस शोख, चुलबुली टीनेजर ने हाथ का सही इस्तेमाल किया जो हर बहन बचपन से करना चाहती है।



भैया के बॉक्सर शार्ट में हाथ डाल के अपनी फेवरेट ' मटन पीस ' को पकड़ लिया और बस हलके हलके, न दबाया, न रगड़ा, बस बहुत धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया, छू के ही मन डोल रहा था।

अब तक गुड्डी तीन मर्दों का घोंट चुकी थी, अपने भैया के अलावा, भाभी के दोनों जीजू, और अगले हफ्ते कोचिंग की पार्टी में पता नहीं कितने, उसकी सहेली रानी का एक पार्टी में ६ का, ६ बार नहीं ६ लड़कों का रिकार्ड था और वो तो उसे तोड़ना ही था। फिर मीठी भाभी तो गली मोहल्ले के भी कितने लौंडो पे दाना डलवा रही थीं, रोज के लिए चार पांच का इंतजाम, मीठी भाभी सच में बहुत अच्छी हैं।

लेकिन जो मजा भैया में है, हर चीज में,... उन्हें छेड़ने में, उकसाने में, चिढ़ाने में, वो किसी में नहीं। पहले भी उनके बारे में सोच सोच के गुड्डी की चूत में चींटी काटती थी और अब जब घोंट लिया भैया का तो और,... भैया के बारे में सोच के बुरिया में आग लग जाती है

लेकिन गुड्डी अकेले नहीं थी, जवान होती हर टीनेजर बहन की यही हालत होती है, भाई के और ' भाई का ' सोच के।



" हे गुड्डी क्या कर रही है " उन्होंने झिड़का। दोनों हाथ तो मटन को पकडे थे, कुछ कर तो सकते नही थे और गुड्डी भी इस बात को जानती थी। अब वो खुल के मुठियाते बोली,


" क्या कर रही हूँ ? जो एक बहन का हक़ है, वो कररही हूँ। नहीं अच्छा लग रहा हो मना कर दीजिये " अपनी शोख अदा में आँख नचा के उस शैतान ने चिढ़ाया।

" मेरे हाथ खाली होने दो तो बताता हूँ "

वो भी अब मूड में आ रहे थे, लेकिन गुड्डी जानती थी आज उसके भैया के जिम्मे बहुत काम है इसलिए उसका ज्यादा कुछ वो बिगाड़ नहीं पाएंगे इसलिए और उकसा रही थी। और गुड्डी ने अपनी बात ही आगे बढ़ाई,

" और भैय्या, मना करियेगा न तो आपके मना करने से कौन मैं मानने वाली हूँ ? करुँगी तो अपने मन की और हाथ खाली हो के भी आप का कर लेंगे मेरा ? उस टीनेजर ने अब खुल के चैलेन्ज दिया।

" भूल गयी अभी, दो दो बार सुबह से, " हिम्मत से वो बोले।

लेकिन गुड्डी की भाभी से तो कभी जीत नहीं पाए और अब उन्ही भाभी की सिखाई पढ़ाई ननदिया से भी जीतना मुश्किल था,
 
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हांडी चिकेन, बिरयानी

और बहन का पिछवाड़ा


" दो बार क्या, यार बोल तो भैय्या पा नहीं रहे हो, करोगे क्या "

अब खुल के चिढ़ाती गुड्डी बोली और अब खूंटा पूरा जग गया था,

गुड्डी की कोमल किशोर मुट्ठी में मुश्किल से समां रहा था। गुड्डी कभी अंगूठे से तो कभी तर्जनी से अपने भैया के मोटे खुले सुपाड़े को रगड़ रगड़ के और आग में घी डाल रही थी। और गुड्डी ने फिर जोड़ा

" और आगे के छेद में भूल गए, आप ही ने मोटा बैगन पेल रखा है,... २० मिनट तक तो वो निकलना नहीं है उसके बाद तीन और, "

" पर पिछवाड़े का छेद तो खाली है, भूल गयी अभी सुबह से दो बार तेरी गाँड़ मार चुका हूँ "

मटन वाश करने का काम ख़तम करते हए बोले वो, और गुड्डी ने खड़े खूंटे को शार्ट के बाहर निकाल लिया, और अपने भैया की आवाज में ही मिमिक्री करती चिढ़ाती बोली,

" भूल गयी अभी सुबह से दो बार तेरी गाँड़ मार चुका हूँ" और फिर जोड़ा,


" भूल गए क्या सुबह सुबह आज की गुड मॉर्निंग, आप के ऊपर चढ़ के जबरदस्ती आप की इस छोटी बहिनिया ने क्या पिलाया था, पूरे दो कप से ज्यादा और गुपुर गुपुर लालची की तरह पी गए। दो बार तेरी गाँड़ मार चुका हूँ बोल रहे हैं, जैसे इनकी हिम्मत, ...वो तो मेरी प्यारी दुलारी अच्छी वाली मीठी भाभी ने आपको हड़काया, उकसाया,... और मैं खुद निहुर के फैला के झुक गयी ।

और दूसरी बार, इस मोटे मुस्टंडे पर कौन बैठा था, मैं खुद न। "
--


मटन का काम हो गया था, गुड्डी के छोटे से एप्रन में हाथ पोंछते हुए अब उसके भैया बोले,

" चल अबकी मैं खुद मारूंगा , तू चिंचियाती रहना। "

गुड्डी ने कस के उनका खूंटा एक बार फिर से मसला





और उसे वापस शार्ट के अंदर और छिटक के अपनी मीठी भाभी के पासऔर वहीँ से बोली,

" भैया मैंने कौन सा ताला डाल रखा है " और मुड़ के अपने लौंडा छाप चूतड़ मटकाते, थांग सरका के पिछवाड़े का छेद दोनों हाथों से फैला के खोल के दिखा दिया, एकदम टाइट,... हाँ दो बार की उसके भैया की मलाई की एक दो बूंदे रिस रिस के बाहर आ गयी थी

किचेन का काम बड़ा अजीब होता है कभी तो सांस लेने की फुर्सत नहीं और कभी आप बस इन्तजार करते हैं, खास तौर से जब अवधी या मुगलाई पका रहे हैं।

ये और रीनू तो मास्टर शेफ के तरह और गुड्डी सिर्फ हेल्पर ही नहीं सू शेफ भी, फिर इनकी सास ने जो इन्हे ट्रेन किया था, कुछ भी पिसा मसाला नहीं, न कोई चीज पहले से तैयार, जीरा हो, धनिया हो, लौंग और उनकी हर रेसिपी में १४ मसाले कम से कम पड़ते थे, तो उसे उसी समय तुरंत कूट के, पीस के और मिक्सी से नहीं हाथ से, और हल्दी प्याज ये सब मसाले का अगर पेस्ट बनाना है तो वो सील बट्टे पे

लेकिन गीता ने गुड्डी को गरिया के, कभी कभी एकाध हाथ लगा के सब काम सिखा दिया था,

" स्साली छिनार लोढ़ा पकड़ना सीख ले, लौंड़ा पकड़ना अपने आप आ जायेगा, "




लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी, सिल बट्टे पे लोढ़ा चलाते गीता से कहती, " कभी ऐसा लोढ़ा ऐसा, मोटा, लौंड़ा मिले तो मजा आ जाए "



" हे स्साली कभी इसे घुसेड़ मत लेना अपने अंदर " गीता भी छेड़ती फिर असीसती, " अरे मेरा आसीर्बाद है, एक मांगेगी तो तुझे दस मिलेंगे और सब कड़क "

तो किचेन में सबसे ज्यादा काम गुड्डी के जिम्मे, कभी रीनू बोलती, " हे ननद रानी, जरा चावल अच्छे से धो दे " तो कभी मसाले पीसने कूटने का काम,



किचन का सब काम इन्होने सीख लिया था लेकिन प्याज काटने के काम में हालत खराब हो जाती थी, तो एक किलो प्याज भी गुड्डी को पकड़ा दी गई गुड्डी को काटने के लिए,


पर गुड्डी भी गुड्डी थी, रीनू उसे झूठ मूठ रंडी नहीं कहती थी।

मौके का फायदा उठा के कभी अपने भैया के ऊपर आँखों के तीर चला देती तो कभी बगल से जाते हुए धक्का दे देती तो कभी पीठ पे जुबना रगड़ देती, हल्दी पीसने के बाद उसने थोड़ा सा हल्दी अपनी मीठी भाभी को दिखाते हुए इनके चिकने गोरे गोरे गालों पर लगा दिया और बोली,

" रूप निखर आया है हल्दी और चंदन से दुल्हन का "




रीनू क्यों छोड़ती, बिरयानी का चावल चढ़ाते हुए, अपनी ननद से बोली,

" तेरी इस दुल्हन के अंदर जब गपागप घुसेगा न तब असली दुल्हन का सुख मिलेगा इस स्साली दुल्हन को, तेरे भैया और मेरे जीजू को "
--


लेकिन गुड्डी के समझ में कुछ आया नहीं वो बिना बोले, इशारे से रीनू से पूछा " कैसे, किधर "



कुछ मामलों में अभी भी वो बच्ची थी, लेकिन बच्ची ननदियों को झटपट जवान बनाने का काम ही तो भाभियों के जिम्मे है।

रीनू ने इशारे से अपने जीजू के पिछवाड़े की ओर इशारा किया और गुड्डी समझ गयी। उसके गवर्मेंट गर्ल्स इंटर कालेज के पास ही एक लड़कों का भी स्कूल था और वही के कई लड़के, लड़कियों से ज्यादा लड़कों के पीछे पड़े रहते थे, याद आ गया उसे सब।

बस अबकी जो हाथ गया, हल्दी लगा तो भैया के सीधे पिछवाड़े शार्ट के अंदर।


जैसे हल्दी की रस्म में भाभियाँ और सलहजें दौड़ा दौड़ा के अपने देवरों, नन्दोई के पिछवाड़े, नेकर में, पाजामे में हाथ डाल के चूतड़ पे जरूर छापा लगाती हैं, और बोलने पे कहती हैं, लौण्डेबाजों की नजर से बचा रहेगा, सावधानी हटी दुर्घटना घटी। और देवर नन्दोई भी जान बूझ के अपने को पकड़वाते हैं।



गुड्डी ने अपने भैया के पिछवाड़े पहले तो थापा लगाया और फिर सीधे ऊँगली दरार पर, और रगड़ते चिढ़ाते बोली,

" भैया मेरी गाँड़ के पीछे पड़े हो न सुबह से एक बार तुम भी मरवा लो न पता चल जाएगा, कैसे दर्द से जान निकलती है "

" मजा नहीं आता क्या " अभी तो इनके हाथ खाली थे तो बस एप्रन उठा के छोटे जोबन दबाते मसलते उन्होंने अपनी बहन से ईमानदारी से पूछा



" मजा तो भैया बहुत आता है, अबे स्साले तू चुम्मा भी लेता है तो मजे से जान निकल जाती है "

गुड्डी ने बड़े रोमांटिक अंदाज में अपने भैया को पकड़ के एक चुम्मी कस के लेते हुए मन की बात सुना दी।




लेकिन तबतक रीनू की आवाज आयी, " रंडी रानी, रोमांस बाद में कर लेना, चावल हो गए हैं अब जरा मटन डालना है "

और गुड्डी रीनू के पास।


फिर थोड़ी देर में अपने भाई के पास, हांडी चिकन जो मिटटी की हांड़ी में चढ़ा था उसे आटे के लेप से बंद करती हुयी। पर साथ में कभी मीठी निगाह से देखती, कभी उछल के चुपके से एक चुम्मी चुराती।

किचेन में बताया था न की कभी बहुत काम, कभी बस इन्तजार। तो बिरयानी चढ़ गयी थी, धीमी आंच पे कम से कम घंटे, डेढ़ घंटे और यही हालत हांड़ी चिकेन की थी।




भुना गोश्त सबसे अंत में बनना था तो बाकी काम आराम आराम से। तो अब मस्ती टाइम , और अब शुरुआत रीनू ने की, गुड्डी से।

और गरियाते हुए,

" स्साली, जन्म की छिनार, तुझे बैगन दिया था बीस मिनट के लिए बुर में रखने के लिए तू तो हरदम के लिए घुसेड़ के बैठ गयी। ऐसे लम्बे मोटे लंड का शौक है तो अपनी गली के धोबियों को बोलती, किसी गदहे के साथ सुलाय देते ( रीनू को भी मालूम था की गुड्डी का घर एक धोवी वाली गली में हैं जिसके बाहर गदहे खड़े रहते हैं तो उसे गदहों से जोड़ के छेड़ा जाता है ) नहीं तो अपने भाई क ले लेती, चल निकाल "



लेकिन गुड्डी असली नन्द पैदायशी छिनार, भाभियों की गारी का कभी भी न बुरा न मानने वाली, खिलखिलाती अपने बचपन के आशिक की ओर इशारा करते, " भौजी जिसने डाला वही निकाले, मैं अपने से क्यों निकालूँ ?"




इन्होने निकाला भी और डाला भी दूसरा बैगन अपनी बहन की बिलिया में, और ये वाला लंबा पहले ऐसा ही बित्ते से लम्बा लेकिन मोटा भी ज्यादा था, पर गुड्डी खुद ही टाँगे फैला के, और इन्होने भी पूरी ताकत लगाई,



रीनू की बिरयानी पक रही थी और वो बिरयानी के साथ के लिए रायता और चटनी बना रही थी लेकिन गुड्डी और गुड्डी के भैया खाली थी, हांडी चिकेन पकने में अभी आधा घंटा कम से कम लगने वाला था, एकदम धीमी आंच पे, मिटटी की हांडी पे,

और गुड्डी की बदमाशी, बैगन घुसने के बाद एक बार फिर से आग लग गयी थी,


और अब गुड्डी खुद स्लैब को पकड़ के हलके से झुक के अपने स्कूली लौंडे टाइप छोटे छोटे चूतड़ मटका के अपने भैया को ललचा रही थी, और भैया के मुंह में पानी आ रहा था, कभी गुड्डी दोनों चूतड़ को पकड़ के कसर मसर, लेकिन जब उसने थांग को सरका के गोल दरवाजे को अपने भैया को दिखाया और पलट के पूछा,

" किसी को कुछ चाहिए क्या ? "

बेचारे ये, नहीं रहा गया उनसे। लिबराते बोले, " हाँ "

रीनू की निगाहें भी ननद के गोल दरवाजे से चिपकी लेकिनी उससे ज्यादा वो गुड्डी के भैया, अपने जीजू को देख रही थी, कैसे उस सेक्सी टीनेजर के गोलकुंडा के लिए ललचा रहे थे। यही तो वो चाहती थी, इन्हे पिछवाड़े का न सिर्फ मजा आने लगे बल्कि गोलकुंडा के जबरदस्त दीवाने हो जाएँ। रीनू ने गुड्डी को ललकारा
 
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गुड्डी का गोलकुंडा




रीनू की निगाहें भी ननद के गोल दरवाजे से चिपकी लेकिनी उससे ज्यादा वो गुड्डी के भैया, अपने जीजू को देख रही थी, कैसे उस सेक्सी टीनेजर के गोलकुंडा के लिए ललचा रहे थे। यही तो वो चाहती थी, इन्हे पिछवाड़े का न सिर्फ मजा आने लगे बल्कि गोलकुंडा के जबरदस्त दीवाने हो जाएँ। रीनू ने गुड्डी को ललकारा

" गुड्डी यार मत देना, जबतक ये न बोले क्या चाहिए "

" बोल न भैया, मेरे प्यारे अच्छे भैया क्या चाहिए बस एक बार खुल के बोल दो, तेरी बहन कभी मना नहीं करेगी, मन की बात बोल देनी चाहिए " गुड्डी भी बड़ी मीठी सेक्सी आवाज में प्यार से दुलराते, हस्की सेक्सी आवाज में बोली।

" तेरा, तेरी, वो तेरा गोल, " किसी तरह थूक निगलते वो बोले और गुड्डी ने हड़काया

" साफ़ साफ़ बोलो न भैया मैं तुझे अच्छी नहीं लगती, तेरा लेने का मन नहीं कर रहा, नाम लेने में तो तेरी फट रही है लोगे क्या, लास्ट चांस "

और ये कह के गुड्डी ने अपना पिछवाड़ा एक इंच चौड़ी थांग से ढक लिया,




" नहीं नहीं, अपनी, अपनी गाँड़ " हिम्मत कर के वो बोले।

" अरे तो गाँड़ मारने का मन कर रहा है अपनी छुटकी बहिनिया का तो साफ़ साफ़ बोलो न, मैं मना थोड़े ही करुँगी और वैसे भी बुरिया में तो स्साले तूने बैगन घुसेड़ दिया है बस अब पिछवाड़ा बचा है, ले ले न लेकिन जरा प्यार दुलार से, ऐसे नहीं "

और ग्रीन सिग्नल की तरह उसी तरह झुके झुके उस टीनेजर ने अपनी थांग एक बार सरका दी।

एकदम टाइट गोल गोल छेद, बस बहुत हल्का सा, जैसी दो पहाड़ियों के बीच पतली पगडंडी हो, देख के ही लग रहा था ऊँगली भी नहीं घुस सकती, बस एक हलकी सी दरार, और गुड्डी ने दोनों हाथों से अपने दोनों चूतड़ों को फैला के गोलकुण्डा का दरवाजा भैया को दिखाया,




खूंटा पागल हो रहा था, शार्ट से बाहर लेकिन उनकी स्साली ने भी गुड्डी वाली बात दुहरायी,

" पहले प्यार दुलार, चुम्मा चाटी, फिर खुल के मांगो तब देगी मेरी ननद, वो कोई ५ रूपये वाली रंडी नहीं है की जब चाहा जैसे चाहा ठोंक दिया "

और प्यार दुलार में तो उनका कोई मुकाबला नहीं, बस भैया ने अपनी बहिन के पैरों को सीधे टखनों से चूमना चाटना शुरू कर दिया और उनके हाथ भी कभी सहलाते, कभी छू के छोड़ देर कभी उँगलियाँ सीधे गोल गोल नितम्बो तक, लेकिन फिर सरक के घुटनों के पास,

गुड्डी के लिए एक नया अनुभव था, कल शाम को ही तीन बार उसकी गाँड़ मारी गयी थी लेकिन इस तरह से मान मनौवल के बाद, पहली बार. वो सिसक रही थी, पागल हो रही थी,

" हाँ भैया, हाँ उह्ह्ह बहुत अच्छा लग रहा है ओह्ह करो न, ले लो भैया, "

और अब उसके भैया के होंठ उस टीनेजर के, मिडल आफ टीन, वाली बहिनिया के गोल गोल चूतड़ों पर पहुंच गए थे, वो नितम्बो पर चुंबन की बारिश कर रहे थे। चुम्मे धीरे धीरे उस गोल दरवाजे के पास और अपनी लम्बी जीभ निकाल के गोलकुंडा के गोल दरवाजे की गुड्डी के भैया ने, सांकल खड़का दी।
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गुड्डी को जैसे ४४० वाल्ट का करेंट लगा हो, उसकी पूरी देह तड़प उठी, क्या कोई मछली पानी से बाहर निकलने के बाद उछलती होगी उस तरह से वो किशोरी पागल हो गयी जब पहली बार भैया की जीभ ने वहां टच किया

" भैया, मेरे भैय्या " बस यही निकल पाया मुंह से।

इनकी सास ने अपनी बड़ी बड़ी गाँड़ चटवा के इन्हे रीमिंग में ट्रेन कर दिया था और आज उस पढ़ाई का फायदा अपनी बहन के साथ ये उठा रहे थे।

जीभ कभी दरार से ऊपर नीचे होती बस जस्ट छूती हुयी तो कभी सपड़ सपड़ जैसे लड़कियां चाट ख़तम होने के बाद भी पत्ते को चाटती हैं उस तरह, चाटती,

और फिर होंठ भी मैदान में आ गए, उँगलियों से हलके से गुड्डी के भैया ने अपनी बहन के गोल छेद को फैलाया और खुले छेद पर अपने होंठ चिपका दिए, और ढेर सारा थूक जीभ के सहारे अंदर धकेल दिया। फिर क्या कोई वैक्यूम क्लीनर सक करेगा जिस तरह से उनके होंठ सक कर रहे थे,




गुड्डी जोरजोर से चूतड़ पटक रही थी, बस उसका एक मन कर रहा था, बस भैया पेल दें, ठेल दें, वो भी अपने हाथों से अपने दोनों चूतड़ों को पकड़ के फैला रही थी,

मन तो उनका भी कर रहा था गुड्डी की गाँड़ लेने का लेकिन आज अपनी बहन को सारा मजा वो देना चाहते थे, खूंटा उनका भी फनफना रहा था और अब उन्होंने सुपाड़ा गुड्डी की गाँड़ में लगाया,

गुड्डी सोच रही थी अब घुसेगा तब घुसेगा, वो कमल जीजू और अजय जीजू का भी घोंट चुकी, एक बार पिछले दरवाजे के पास पहुँचने के बाद कोई मरद अपने को रोक नहीं पाता, बस ठेलने के धकेलने के चक्कर में रहता है, लेकिन ये बार बार खड़े सुपाड़े को पिछवाड़े के छेद पर बार बार रगड़ के और आग लगा रहे थे साथ में होंठ कभी कमर पे चुम्मा लेते तो कभी कंधे पे,



" करो न भैय्या " गुड्डी से नहीं रहा गया, वो बड़ी मुश्किल से बोली,

जवाब में उसके भैया ने बहिनिया के नमकीन गाल पे एक कस के चुम्मा लिया और पीठ पे जीभ से सहलाते पूछा

" का करूँ बोल न मेरी बहिनिया "

" अरे पेल न अपना मोटा लौंडा अपनी बहिनिया की गाँड़ में " गुड्डी चीख के बोली और उसके बाद कौन भाई रुकता है।

गप्पाक
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रीनू देख रही थी, मुस्करा रही थी, अब स्साला मेरा जीजू सच में पिछवाड़े का रसिया बन गया है, उसके चेहरे से और धक्के के जोर से लग रहा है।



पिछवाड़े का बेसिक फंडा ननद के भैया ने सीख लिया, पेलना, ठेलना, और धकेलना, न की आगे पीछे करते हुए चोदना। और दूसरी बात जिसकी मारी जा रही हो, उसके तड़पने, चीखने चिल्लाने की एकदम परवाह न करना,

गुड्डी निहुरि हुयी थी, और उसके भैया उसकी पतली २४ इंच की कमर पकडे, हचक के धक्के मार रहे थे, घुसेड़ रहे थे, ठेल रहे थे, पेल रहे थे । लेकिन चार पांच धक्को के बाद वो रुक गए, वो भी समझ गए और उनकी छिनार बहिनिया भी,... की अब होगा असली इम्तहान, गांड का छल्ला, खैबर का दर्रा, जिसको दरेरते हुए, छीलते हुए जब खूंटा अंदर घुसता है तो एक से एक पुराने गांडू भी चीख पड़ते हैं,

" उई ईई नहीं ओह्ह्ह भैया, मेरे अच्छे भैया, नहीं भैया, जान गयी, बस एक मिनट रुक जाओ, ओह्ह " गुड्डी चीख पड़ी




लेकिन वो अब सीख गए थे, ये मौका पेलने का है, ठेलने का है, मजा लेने का है और कमर पकड़ के दूनी जोर से धक्का मारा की छल्ला पार , लेकिन जिस तरह दरेरते, फाड़ते रगड़ते घुसा, गुड्डी चीख पड़ी,

" उह्ह्ह नहीं भैया, तुम बहुत गंदे हो, बदमाश, एक मिनट, बस एक मिनट "

अगर एक मिनट का इन्तजार मारने वाला करे न तो न किसी लौंडे की गाँड़ मारी जाए न लौंडिया की, और उन्होंने भी नहीं किया बस ठेलते रहे , और दो चार मिनट में भाला अंदर जड़ तक धंस गया। और अब गुड्डी, उनकी बहन सिसक रही थी, मजे ले रही थी, कौन बहन नहीं खुश होगी अगर उसके भैया का बित्ते भर का खूंटा उसके पिछवाड़ा धंसा होगा,

" ओह्ह भैया बहुत अच्छा लग रहा है, तुम बहुत अच्छे हो, मेरे प्यारे भइया "


झुक के प्यार से उन्होंने उस टीनेजर के गुलाबी गोरे गोरे गाल कचकचा के काटते चिढ़ाया,

" क्या अच्छा लग रहा है मेरी प्यारी मीठी बहिनिया को, बोल न "

" धत्त " वो इंटर वाली वो किशोरी, एकदम मिडिल ऑफ़ टीन्स, शरमा गयी।

" बोल न, नहीं तो मैं निकाल लूंगा, " उन्होंने धमकाया और कस के बहन के कच्चे टिकोरों को मसल दिया, निप्स पकड़ के पुल कर लिया।

गुड्डी उनसे भी दो हाथ आगे थी ऊपर से रीनू की संगत, और गालियों की अच्छी ट्रेनिंग उसकी मीठी भाभी ने दी थी,

" स्साले, तेरी महतारी के भोंसडे में मेरे बचपन के यार का लंड, खबरदार जो लंड आपने निकाला " गुड्डी मुस्करा के बोली और इससे ज्यादा कौन बहन अपने भाई को उकसा सकती थी।
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क्या मस्त गाँड़ मारी उन्होंने अपनी बहन की, धक्के पे धक्के, साथ में छोटी छोटी चूँचियों की रगड़ाई। और गुड्डी भी उसी तरह कभी चीखती सिसकती कभी उन्हें गरियाती,


पर बित्ते भर के औजार और लम्बी रेस के घोड़े होने के साथ एक और गुण था उनमे जो, एक बार उनके साथ सोया वो जिंदगी भर के लिए उनका दीवाना हो जाता था, और वो था किस लड़की के देह में कौन काम बिंदु है उन्हें मिनट भर में मालूम हो जाता था फिर उन जगहों पर भी,


तो गुड्डी के साथ भी, कभी वो अपने बहन की चूँची रगड़ते कभी, जाँघों को छूते सहलाते और उनकी उँगलियाँ गुड्डी की बिल में घुसे मोटे बैगन पे पड़ गयी, बस उनकी बदमाश उँगलियाँ बस।

बैगन ने बहिनिया की बुर में बगावत मचा रही थी। कलाई से मोटा बैगन, बित्ते से लंबा, बहिनिया की बुर में बच्चेदानी तक घुसा, अटका, बुर एकदम फैली, जैसे फट रही हो, रुक रुक कर गुड्डी बहिनिया की बुरिया में चींटिया काट रही थी,

जब तक पिछवाड़े वाले छेद में गुड्डी के भैया के मूसल ने तूफ़ान मचा रखा था, गुड्डी बैगन को भूल गयी थी, लेकिन अब भैया ने अपना मूसल गाँड़ में जड़ तक पेल के छोड़ दिया था और बहिन के अगवाड़े ध्यान लगा दिया था और एक बार फिर से बिलिया में आग लग गयी थी।


बस अपने दाएं हाथ से बहन के बुर में घुसे बैगन को उन्होंने पकड़ के धीरे धीरे आगे पीछे घुमाना शुरू किया




और वो इंटर वाली टीनेजर सिसकने लगी,

" ओह्ह उफ्फ्फ, भैया, मेरे प्यारे भैया, ओह्ह करो न और जोर से करो न, सब ताकत चूस ली है किसी ने क्या, करो न भैया कस कस के "

कौन भाई अपनी उस बहन की बात ठुकरा सकता है जो बचपन से कलाई पे राखी बाँध रही हो,


बस कस कस के उन्होंने बैगन को आगे पीछे करना शुरू कर दिया और बायां हाथ बहन के कच्चे टिकोरे, उम्र ही क्या था, एकदम मिडल आफ टीन्स, गाल भी कचकचा के काट रहे थे,

" क्यों बहिनिया मजा आ रहा है " कस के गाल काट के उन्होंने गुड्डी से पुछा,

" हाँ भैया, हाँ ऐसे ही करते रहो, ओह्ह बहुत अच्छा लग रहा है "



लेकिन वो पक्के बदमाश, उनको अंदाज लग गया था की उनकी बहिनीया एकदम झड़ने के कगार पे है बस एक बार बैगन उन्होंने जड़ तक पेला और अपना मोटा लंड, बहन के पिछवाड़े से धीरे धीरे सरका के निकाला, पूरा नहीं, सुपाड़ा अभी भी अंदर तक धंसा, लेकिन करीब ६ इंच से ज्यादा मूसल पिछवाड़े के बाहर,

और अब आगे उन्होंने बैगन को आलमोस्ट बाहर निकाल के बस दो चार बार गोल गोल घुमा के छोड़ दिया,

" करो न भैया, प्लीज भैया, बस मैं एकदम कगार पे हूँ, बस दो मिनट भैया " गुड्डी एकदम झड़ने के किनारे पे बार बार अपने भैया इ गुहार कर रही थी, निहोरा कर रही थी।

लेकिन वो बदमाशी पे, गुड्डी के कान में वो बोले फिर साफ़ साफ़,

" तू भी कर न, बस थोड़ी देर "




मज़बूरी गुड्डी की और अब गुड्डी खुद अपने मोटे मोटे चूतड़ पीछे पुश कर के अपने भैया का मोटा लंड धीरे धीरे घोंट रही थी, इंच इंच लंड अंदर जा रहा था, लेकिन वो सिर्फ अपनी बहन की कमर पकडे थे घोंटे का काम बहन ही कर रही थी।

" यार बहुत मजा आता है तेरी गाँड़ मारने में " आज अपनी मन की बात उन्होंने प्यारी बहन की गालों को चूम कर के कह दिया।

" पहले तो कभी गोल दरवाजे की ओर झांकते भी नहीं थे और अब " गुड्डी ने चिढ़ाया और एक धक्का मारा पीछे और अब आधा से ज्यादा खूंटा गुड्डी की गाँड़ में,



" अब बहुत अच्छा लगता है गोल दरवाजे वाली गली में , " हलके से धक्के मारते हुए वो भी बोले,

" अरे भैया तो मैं कौन सा ताला लगा के रखती हूँ, चल तूने अपने मन की बात बता दी न, अब मैं अपनी सहेलियों को भी बुला के लाऊंगी, सब एक से एक मस्त माल हैं, " गुड्डी ने जबरदस्त ऑफर दिया।
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' लेकिन वो पिछवाड़े, " गुड्डी के भैया ने अपना शक जाहिर किया,

" अरे मैं पहले बोल दूंगी, अगवाड़े चाहिए तो पिछवाड़े पहले घोंटना पडेगा, और न मानेगी स्साली तो जबरदस्ती पेल देना, तुम भी भइया,एक तो तूने बात कही " गुड्डी बोली और गुड्डी की बात से खुश होके उन्होंने कस के बैगन को एक बार फिर से गुड्डी की बिल में आगे पीछे करना शरू कर दिया और थोड़ी देर में गुड्डी झड़ने लगी, लेकिन उन्होंने बुर की चोदाई नहीं रोकी,

" हाँ भैया हाँ, ओह्ह बहुत अच्छा लगा रहा है "



गुड्डी दो बार झड़ गयी उसके बाद ही वो रुके लेकिन फिर उन्होंने पिछवाड़े ह्च्चक ह्च्चक के, लेकिन उनके जोश के साथ उनकी बहन भी पूरा साथ दे रही थी, कभी कस के खूंटा निचोड़ लेती तो कभी धक्के का जवाब धक्के से देती तो कभी गरियाती तो कभी लालच देती,

" हाँ भैया, हाँ ऐसे ही, बहुत मजा आ रहा है, बोल लेना है मेरी सहेलियों की, मेरी कोचिंग वालियों की, "

" एकदम, नेकी और पूछ पूछ लेकिन मुझे ये लेना है उन सबकी " और ये कह के कस के दोनों जोबन पकड़ के अपनी बहन के पिछवाड़े धक्का मारते,

" अबे स्साले, साफ़ काहें नहीं कहता की गाँड़ मारनी है, एकदम दिलवाऊंगी, और सिर्फ मेरी क्लास वालियां ही नहीं है, एक से एक माल है कोचिंग में, अब नौवीं दसवीं वाली भी आती हैं, एकदम चूँचिया उठान, और चूतड़ ऐसे छोटे छोटे की लौंडे भी मात, मुंह खोल के बोल, आता हैं न मजा, "

गुड्डी ने और उकसाया।




"एकदम यार सच में बहुत मजा आ रहा है तेरी गाँड़ मारने में, एक बार दिलवा दे न,... उन सबकी गाँड़ मारूंगा, ओह्ह्ह उफ़ "

वो बोले और अब वो भी झड़ने के कगार पे थे, और जब झड़े थे तो खूंटा उन्होंने अंदर धकेल रखा था, गुड्डी ने कस के भींच रखा था वो भी झड़ रही थी।




चार पांच मिनट बाद जब उन्होंने निकाला, तो उन्हें याद आया हांडी चिकेन, और उनकी निगाह घडी की ओर पड़ी, लेकिन गुड्डी उन्हें छेड़ने से कैसे छोड़ती, उनकी ओर अपने ब्वाइश चूतड़ दिखा के दोनों नितम्बो को फैलाया, और धीरे धीरे उसके भैया का वीर्य, सरसराता हुआ बहन की गाँड़ से सरकता हुआ बूँद बूँद बहन की जांघ पे


मन तो उनका कर रहा था की पटक के बहन की गाँड़ दुबारा मार ले लेकिन घड़ी रानी कह रही थी बस दो मिनट बचे हैं हांडी चिकेन उतरने में

गुड्डी और उन्होंने मिल के हांडी चिकेन उतार लिया उसकी महक पूरे किचेन में फ़ैल रही थी , और रीनू ने आके गुड्डी की बिल से बैगन निकाल लिया और बोला की बिरयानी में अभी भी करीब पौन घंटे से लेकर एक घंटे लगेगें,
 
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रोगन जोश
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"मुझे बस अब भुना गोश्त बनाना है, वो तो आधे घंटे के अंदर हो जाएगा, गुड्डी ने मसाले की तैयारी कर दी है।" उन्होंने साली की बात में बात मिलाई।

" मीठी भाभी, अभी भी डेढ़ घंटे करीब बचा है, " गुड्डी ने घडी देखते हुए रीनू से बोला,

किचन टीम जिसकी लीडर रीनू थी को तीन से साढ़े तीन घंटे का समय कमल जीजू ने दिया था

( असली खेल ये था की कमल जीजू को मालूम था की आज दोनों जीजू को, उन्हें और अजय जीजू को बारी बारी से,... तो आधे घण्टे से कम तो कोई लेता नहीं और बीस पच्चीस मिनट फॉर प्ले और बाद में,... तो वो जोड़ के उन्होंने तीन से साढ़े तीन घंटे का टाइम दे दिया था, उतनी देर तक उन की साली अकेले उन के और अजय के साथ )

" और स्वीट डिश तो मैं दस मिनट में बना लूंगी" गुड्डी चहक के बोली।


" जीजू मैंने सूना है की आप रोगन जोश बहुत अच्छा बनाते हैं तो आज आपके हाथ का " रीनू ने टॉपिक उठाया और उन्होंने तुरंत आब्जेक्शन लगाया

" अरे उसमें डेढ़ घंटे से कम थोड़े ही लगेगा "

लेकिन गुड्डी उनकी साली की असली चमची, अपनी मीठी भाभी की ओर से बोली,

" भैया, आप भी न आलसी, अरे अभी भी पूरे डेढ़ घंटे बचे हैं और कौन हम लोग मास्टर सेफ खेल रहे हैं, दस पांच मिनट चलता है "

" पर उसमें जितने मसाले लगते हैं पता नहीं कहा रखे होंगे, दूसरी बात मटन भी शोल्डर का ख़ास क्वालिटी का, नहीं हो पायेगा " उन्होंने फिर बहाना बनाया

लेकिन बहाना साली के सामने चल भी जाए,... बहन के सामने एकदम नहीं चल सकता था और वो बहन अगर गुड्डी जैसी हो, हर समस्या का जिसके पास जवाब हो,

गुड्डी सच में अपनी भाभी की असली ननद थी, जिसके पास हर सवाल का जवाब और हर बात का इलाज होता था। उसने मुझे जवाब नहीं दिया,

आज कल की लड़कियां, या तो उनकी उँगलियाँ पैंटी के अंदर अपनी चिकनी चमेली पर तेज तेज चलती हैं या मोबाईल पे, मिनट भर के अंदर, और मुझे खोल के दिखा दिया, मेरा मतलब मोबाइल और बोली

" देखिये आर्डर कर दिया ५०० ग्राम मटन और जो पीस आपको चाहिए थी वो भी अब कहिये तो बोल के सुना भी दूँ, "





और उस ने वो नंबर डायल ही किया था की उधर से आवाज आयी,

" यस संगीता जी, आप का आर्डर मिल गया है, एकदम रोगन जोश के लिए सही है शोल्डर कट, और साइज भी रोगन जोश के लिए, बस पक्का दस मिनट के अंदर लड़का आपके सामने होगा आर्डर के साथ "

" थैंक्स साजिद, आप हो तो चिंता नहीं है " कह के गुड्डी ने फोन काट दिया।

" बड़े यार हैं तेरे, रंडी रानी " रीनू ने चिढाया,



लेकिन गुड्डी ने अपने भैया के गाल पे चिकोटी काटते हुए मन की बात कह दी,

" मीठी भौजी, यार तो स्साला एक ही है, ये मैं तो दर्जा नौ से अपनी चिकनी चमेली फैला के बैठी थी, ये स्साला ललचाता था, लार टपकाता था, लेकिन बहिनिया की लेने के नाम पे पीछे

ये तो भला हो मेरी भौजी का इसका कल्याण हो गया, पहली रात मेरी अच्छी भाभी ने इसकी नथ उतारी और चलिए इंटर पास करने के जस्ट बाद मेरे भी इंटरकोर्स का इंतजाम कर दिया, वरना, तो यार तो एक ही है, मेरा भी. मेरी भाभी का भी, बाकी सब टाइम पास हैं "


और गुड्डी की डांट भी साथ में

" ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, दस मिनट में मटन आने तक सब प्रिपरेशन,... वरना नया बहाना लेकर खड़े हो जाओगे। "

और जिस तेजी से गुड्डी काम कर रही थी, रीनू से नहीं रहा गया, अपनी ननद को चिढ़ाती बोली,

" जिस तरह से तुम काम कर रही हो लगता है बावर्चियों के खानदान से हो, पहले तो मैं सोचती थी की रंडियों के, "

गुड्डी सिर्फ मुस्कराकर रह गयी, मसाले के डिब्बे से ६ खड़ी लौंग, १६ हरी इलायची,दो जावित्री, चार तेजपत्ता, एक दो इंच की दालचीनी की स्टिक, सारे मसाले, एक एक कर के पहले निकाले और उसे ये भी मालूम था की बने बनाये बजार के पिसे मसाले नहीं चलेंगे तो खरील लेकर, जीरा, धनिया और बाकी पिसे मसाले खुद कूटने पीसने लगी। और अपने भैया के लिए भी उसने काम पकड़ा दिया, प्याज लहसून और अदरक को चाप करने का।

रीनू भी गुड्डी की मदद कर रही थी और जबतक मटन आया, रोगन जोश की तैयारी गुड्डी और उसके भैया ने मिल के पूरी कर दी थी। गुड्डी के भैया ने एक पैन में मध्यम आंच में तेल में प्याज को एकदम सुनहरे होने तक हलके से तल कर रख दिया और उसमें थोड़ी सी दही मिला दी। ब्लेंड करने का काम गुड्डी ने किया और उस पेस्ट को अलग कर के रख दिया। गुड्डी साथ में ऐप पर मटन वाले को भी देख रही थी और बोली

" बस दो मिनट भैया, आने ही वाला है आप कढ़ाही चढ़ा दो "


और गुड्डी ने एक हैवी बॉटम वाली कढ़ाही अपने भाई को पकड़ा दी और साथ में देसी घी और मसाले, हरी इलायची, बड़ी इलायची, लौंग और दालचीनी। जैसे आपरेशन के समय नर्स सर्जन को चाक़ू पकड़ाती है एकदम उसी तरह से और उसी समय मटन वाला आ गया। और गुड्डी ने अपने हाथ से मटन कढ़ाही में,

" एकदम परफेक्ट है " गुड्डी के भैया मटन की क्वालिटी और पीसेज को देख के बोले

" एकदम आपकी बहन की तरह," बगल में चिपकी गुड्डी बोली और भैया के गाल पे एक मीठी सी छोटी सी चुम्मी ले ली।

शुरू में तो हर दो चार मिनट पर कुछ न कुछ, रीनू भी उन दोनों के साथ, कभी आंच धीमी करनी है जबतक हल्का ब्राउन न हो जाए, तो कभी पिसा मसाला डालना है, और ये सब काम गुड्डी ही कर रही थी। एक तो गीता ने गुड्डी को अच्छी तरह ट्रेंड कर दिया था दूसरे उसे अपने भइआ से चिपकने में मजा भी आता है,

" रतनजोत है क्या " कढ़ाही चलाते हुए उन्होंने पुछा




और गुड्डी ने झट से एक छोटी कटोरी में रखा रतनजोत जिससे रोगन जोश का लाल रंग आता आगे कर दिया।

लेकिन अब ज्यादातर काम इन्तजार का था क्योंकि उसे धीमी आंच पर पकना था और गुड्डी की शैतानी चालू हो गयी।
 
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मस्ती बहन भाई की


गुड्डी खूब गरमाई हुयी थी, शुरआत अबकी भी उसकी उँगलियों ने की,

जब उसके भैया रोगन जोश चला रहे थे तो कुछ देर तक तो उनके बॉक्सर शार्ट के ऊपर से उसने उनके खूंटे को रगड़ा मसला,




और जब तम्बू तन गया तो शार्ट को सरका के नीचे, बम्बू बाहर और छुटकी बहिनिया की मुट्ठी में, लेकिन वो मुठिया नहीं रही थी बस आराम आराम से दबा रही थी, हलके हलके अपने भैया के मूसल की मोटाई कड़ाई का मजा ले रही थी।

और वो जानती थी की बेचारे उसके भइआ इस समय उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

उनका ध्यान इस समय पूरी तरह रोगन जोश पर है, मटन के एक एक टुकड़े पर, और गुड्डी एक अच्छी बहन की तरह भाई के पैरों के बीच बैठ गयी और गप्प, खूब बड़ा सा मुंह खोल के भैया का मुट्ठी ऐसा मोटा गरम, मांसल सुपाड़ा अपने मुंह मे। गुड्डी हलके हलके चूस रही थी, जीभ से चाट रही थी, सुपाड़े के बीच पेशाब के छेद को जीभ की टिप से सुरसुरा रही थी और अपनी कोमल उँगलियों से गुड्डी रानी भैया के बॉल्स को कभी सहलाती, कभी हलके से दबाती।



कोई भी भाई हो उसकी सुन्दर सी सेक्सी कमसिन जस्ट जिसने इंटर पास किया हो ऐसी बहन उसके सुपाड़े को मुंह में लेकर चुभलायेगी चूसेगी तो क्या हालत होगी उसकी,

हालत उनकी खराब हो रही थी और जैसे ही उन्होंने रोगन जोश को ढंक दिया और तय था की अब अगले बीस पचीस मिनट तक कुछ नहीं करना है

तो वो भी जोश में आ गए और बहन का सर पकड़ के, नहीं गुड्डी को अपनी बहन को चुसवा नहीं रहे थे, हचक हचक के उसका मुंह चोद रहे थे, डीप फक, थोड़ी देर में सुपाड़ा गुड्डी के हलक पे ठोकर मार रहा था और उनको सपोर्ट करने उनकी साली रीनू भी बगल में खड़ी थी,

" जीजू पेलो कस के, चोद दो मेरी इस रंडी ननदिया का मुंह, बहुत गर्मायी है "

साली बोले और वो भी रीनू जैसे, तो कौन जीजा नहीं मानेगा, गुड्डी के बाल को कस के पकड़ के हचक के ठेलते रीनू के जीजा, गुड्डी के भैया बोले,

" क्यों बहुत गरमा रही थीं न, लो, घोंटो जड़ तक। अभी गाँड़ में घुसा था तो ऐसे चिल्ला रही थी जैसे कोई मोटा लकड़ी का चैला घुस गया हो चूस कस कस के "



गुड्डी गों गों कर रही थी, आँखे उबली पड़ रही थीं, अच्छा तो लग रहा था लेकिन लग रहा था भैया बस पल भर के लिए निकाल ले , पर साली के उकसाने के बाद कौन मरद अपनी बहन को छोड़ता है, लेकिन गुड्डी का दिमाग, उसने कड़ाही की ओर इशारा किया और उसके भाई का दिमाग उधर, और गुड्डी को मौका मिल गया, छुड़ा के खड़ा होने का

और थोड़ी दूर खड़ी होके वो एक बार फिर से अपने भाई को उकसा रही थी, चढ़ा रही थी चिढ़ा रही थी।


एक तो छोटा सा एप्रन जो मुश्किल से गुड्डी के ३२ सी कड़क बूब्स को ढक रहा था और फिर दो इंच की पतली सी थांग




जो उसकी चुनमुनिया को ढकने की कोशिश कर रहा था , और ऊपर से गुड्डी महा शैतान और उसे रीनू की शह मिली थी।


थांग को सरका के गुड्डी ने अपनी गुलाबी गुलाबो की दोनों फांको के बीच फंसा लिया था। और अपने भाई को चिढ़ाती निगाहो से देखने का,

" किसी को कुछ चाहिए का ? " उकसाते हुए वो बोली,


और जब तक उसका भाई कुछ जवाब देता वो पीछे मुड़ के खड़ी हो गयी,

पीछे से तो वो और सेक्सी माल लग रही थी, एप्रन की सिर्फ एक डोरी गले में बंधी, बाकी गोरी केले के पत्ते की तरह चिकनी पीठ उस किशोरी की, मुट्ठी में आ जाए ऐसी पतली कटीली कमरिया और बड़े बड़े खुले दावत देते मांसल मटकते कूल्हे, और आगे तो थांग दो इंच की थी भी, पीछे बस एक डोरी की तरह, पतली सूत की तरह बस किसी तरह नितम्बों में फंसी,


पीछे मुड़ के वो मुस्करायी, ऊँगली मोड़ के उस षोडसी ने अपने पीछे आने की दावत दी और नितम्बो को मटकाते, सारंगनयनी, हंस की चल से ठुमकते और,



हल्के से गर्दन को जुम्बिश दे के अपने भाई से बोली,

" जो मेरे पीछे आएगा, वो अपनी माँ, "और कुछ रुक के हलके से जोड़ा, " चोदेगा,... और वो भी मेरे सामने। "





जवाब उनकी साली ने दिया, " अरे चोद देगा अपनी माँ ये, तेरे लिए, तेरे सामने ही चोद देगा, मेरा जीजू रंडी रानी "

गुड्डी हलके से ठहरी, और फिर पीछे मुड़ के अपने पीछे आते भाई को देखा और बड़े भोलेपन से बोली,

" क्यों भैया सोच ले, मादरचोद बनना है तो मेरे पीछे आओ, लास्ट चांस, फिर मैं न छोडूंगी न मेरी भाभी, तुझे, तेरी, ..." और अपनी बात हवा में छोड़ के हलके से दो कदम बढ़ी,


भाई उसके पीछे पीछे, आगे बढ़ा



और गुड्डी फिर ठुमक के रुक गयी, पिछवाड़ा उसके भाई की ओर ही था। आराम से उसने अपनी थांग सरकायी, दोनों हाथों से नितम्बो को फैला के अपने गोल दरवाजे का रसीला द्वार, अपने भैया को दिखाते, ललचाते, हलके से गरदन घुमा के, फ्लाईंग किस ले के पूछा




" क्यों भैया चाहिए ? "

" हाँ, एकदम,... एकदम चाहिए, " उसके भैया किसी तरह थूक घोंटते जोश में बोले,


" स्साले, नाम तो ले नहीं पा रहा है, इसे क्या ले पायेगा, "

बिना पिछवाड़े थांग के ढक्कन को बंद किये, पिछवाड़े के छेद को दिखाते हड़काते वो बोली, और दो कदम आगे चली, पीछे से उसका भाई चिल्लाया,

" तेरी गाँड़, तेरी गाँड़ लूंगा, मारूंगा, एक बार और मार लेने दे बस " और पीछे पीछे गुड्डी के,

तबतक गुड्डी किचेन की खिड़की के पास पहुँच गयी थी और रुक के वो पलट गयी, और अपनी थांग को आगे से सरका के अपनी गुलाबो को दिखाती,





दोनों फांको को हथेली से रगड़ती वो टीनेजर बोली,


" भैया ये ले लो, पिछवाड़े का मजा तो तूने सुबह से तीन बार ले लिया है " और यह कह के एक बार फिर पीछे मुड़ गयी। उसके गोल गोल एकदम खुले नितम्ब, बबल बॉटम, उसके भैया की हालत खराब थी।



गुड्डी खिड़की से बाहर झाँक रही थी, वहां से लिविंग रूम साफ़ दिखता था और लिविंग रूम में उसकी कोमल भाभी और कमल जीजू खड़े खड़े ,



तबतक उसके भैया ने आके गुड्डी को पीछे से दबोच लिया, खूंटा तो खुला ही था खड़ा भी और वो बहिनिया के नितम्बो के बीच में रगड़ खा रहा था,

" नहीं भैया इधर नहीं, आगे वाली ले ले न, इधर बहुत दुःख रहा है " गुड्डी ने बहाना बनाया।


" स्साली चाहे तेरी दुखे या फ़टे मैं तो तेरी गाँड़ मार के रहूँगा "

थांग सरका के दरारों के बीच अपना मोटा मूसल सटाते वो बोले और उनकी साली रीनू के दिल में ठंडक पहुँच गयी,

यही तो वो चाहती थी की उसके जीजू गोल छेद के पक्के रसिया बन जाए, और इस समय वो भी अपनी बहन के गोल छेद में पेलने के लिए बेताब थे।

और बहन भी आज उन्हें तड़पा रही थी, और क्यों न तड़पाये, दर्जा नौ से हाथ में लेकर टहल रही थी, रोज झांट साफ़ करके, और इंटरकोर्स,.. इंटर का रिजल्ट निकलने के हफ्ते भर बाद हुआ, फिर चित्तोड गढ़,... कितना तो इन्ही भैया के आगे रोज चूतड़ मटका मटका के टहलती थी। एक बार भरतपुर बहन का लूट लेने के बाद, बहन के बुलबुल के तो दीवाने हो गए लेकिन गोल दरवाजे की ओर झाँका तक नहीं, छेद तो वो भी है।



" हे गुड्डी दे न इधर वाला" वो दोनों नितम्बो को सहलाते, बहन की पिछवाड़े की दरार रगड़ते चिरौरी कर रहे थे,

"नहीं भैया, वो नहीं, बहुत मन कर रहा है तो मेरी गुलाबो को ले ले, पिछवाड़े तो तुम तीन बार ले चुके हो सुबह से, अब एकदम सूज गयी है तेरे मोटू का धक्के खा खा के, ले लो न आगे की। आज से पहले तो उसी के पीछे पड़े रहते थे, माना तेरा कस के खड़ा है लेकिन दे तो रही हूँ न " उस शोख ने और तड़पाया।

अब उन की समझ में नहीं आ रहा था क्या करे, लेकिन अब ऊँगली की जगह उनका मोटू बहन की गांड की दरार रगड़ रहा था और मन तो अब गुड्डी का भी पिछवाड़े का कर रहा था लेकिन वो थोड़ा और तंग करना चाहती थी अपने भैया कम यार को, हँसते हुए बोली,


" अच्छा भैया मैंने कहा था की जो मेरे पीछे आएगा, वो अपनी माँ चोदेगा, तो सोच ले, चोदेगा मेरी बुआ को मेरे सामने,? पीछे तो तुम आ गए अब पक्का बोलो और साफ़ साफ़ "




" चोद दूंगा, एक बार तो हाँ कर दे, अरे यार जो बहन चोद बन गया वो मादरचोद भी बन जायेगा, गुड्डी दे न "

अब गुड्डी भी जान बुझ के अपनी पिछवाड़े की कसी दरार भैया के मोटे सुपाड़े पे रगड़ रही थी और सोच रही थी, इस स्साले मेरे भाई में सब बात अच्छी है, केयरिंग है, हैंडसम है, औजार जबरदस्त है, बस सीधा थोड़ा ज्यादा है, और फिर उसे चढाती हुयी खिलखिलाती वो किशोरी बोली,

" भैया मैं हाँ न करू तो क्या करेगा तू , "



" तो जबरदस्ती मार लूंगा तेरी गाँड़, " अब जोश में गुड्डी का भाई बोला, अब उससे रहा नहीं जा रहा था, लंड जोश में फटा जा रहा था, कस कस के वो अपनी बहन की, उस षोडसी की दोनों छोटी छोटी ३२ सी वाली चूँचियाँ दबा रहा था,

गुड्डी के मन में आया, फिर स्साले पूछता क्यों हैं मार ले न, गाँड़ होती क्यों हैं मारने के लिए ही न और वो भी मस्त टीनेजर बहन की गाँड़ लेकिन फुस्फसुसाते हुए बोली,

" भैया लेकिन मैं निहुरंगी नहीं, "

" अरे स्साली, मैं खड़े खड़े तेरी गाँड़ मार लूंगा " अब वो आपे से बाहर हो गए थे।
 
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. गपागप, सटासट, ....खड़े खड़े
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यही तो गुड्डी सुनना चाहती थी और गुड्डी से ज्यादा उनकी साली रीनू, वो वहीँ से बोली, " जीजू छोड़ना मत इस रंडी को, कड़ाही मैं देख लुंगी "

बस, न उनकी ताकत में कोई कमी थी न आसन के ज्ञान में, रीनू के जीजा ने अपनी बहन की दोनों टांगों के बैच अपनी टाँगे डाल के फैलाया और गुड्डी की की जाँघे नितम्ब सब फ़ैल गए, फिर एक ऊँगली पर दूसरी ऊँगली चढ़ाकर एक साथ जड़ तक गुड्डी की गाँड़ में पेल दी।

" उयी उह्ह्ह उईईईईई नहीं भैया "

गुड्डी कुछ दर्द से चीखी कुछ अपने भैया को जोश दिलाने के लिए, लेकिन गुड्डी भी जब से जवानी का पहला पानी चढ़ा था उसके ऊपर तभी से अपने भैया को देख के चींटिया काटती थीं, और अब भैया का साथ दिलाने के लिए, गुड्डी ने अपने दोनों नितम्ब पूरी ताकत से फैला लिए और बस इतना मौका काफी थी,

उँगलियाँ बाहर, सुपाड़ा अंदर, और अबकी गुड्डी वास्तव में दर्द से चिलायी



" ओह्ह भैया, नहीं, उफ्फ्फ, भैया तेरा कित्ता मोटा है, ओह्ह बहुत दर्द हो रहा है "

लेकिन अब उसका भाई उसके दर्द की चिंता नहीं कर रहा था उसे बस मस्ती की पड़ी थी, अगला धक्का और जोरदार और सुपाड़ा अंदर "

" बस बहना, घबड़ा मत तेरे प्यारे मोटू का सुपाड़ा अंदर चला गया है, अब तो रास्ता वो बना लेगा, बस दो मिनट और बर्दास्त कर ले"

और कचकचा के गुड्डी के मालपुआ वैसे गाल उन्होंने काट लिए, निपल पे पिंच कर लिया, एक हाथ बुलबुल को सहला रहा था

जैसे मछली को तैरना नहीं सिखाना पड़ता वैसे ननदों को छिनरपन नहीं सिखाना पड़ता, और गुड्डी तो छिनार में छिनार, उसने खुद एक टांग फैला के थोड़ी ऊपर दीवाल के सहारे, और भैया उसके इशारा समझने लग गए थे।



रस्ता थोड़ा चौड़ा हुआ और घुड़सवार दौड़ पड़ा, सामने खैबर का दर्रा था, एकदम संकरा, लेकिन उसके पार थी मस्ती की घाटी। सवार ने घोड़े को एड मारी और घुसा दिया दर्रे में,

उयी उयी नहीं ऑगगग उफ्फफ्फ्फ़ गुड्डी चीख रही थी, उसकी चीख कान बेध रही थी, लगा रहा था जैसे कसी भोंथरे चाकू से नन्हे मेमंने को हलाल किया जा रहा हो।

लेकिन यही चीखें तो और ऐड लगाती है घोड़े को, बिना घुड़सवार के कहे घोडा सुन के जोश में आ जाता है, खैबर का दर्रा पार हुआ और धीरे धीरे पूरा अंदर,

वो ठेलते गए, पेलते गए, ढकेलते गए, बहना चीखती रही, जल बिन मीन की तरह तड़पती रही, लेकिन उनकी जबरदस्त पकड़। मछली तड़प सकती थी, फिसल सकती थी, चंगुल से बाहर नहीं निकल सकती थी।

जब मंजिल तक, पूरे एक बित्ते उनकी बहन का यार, उनका मोटू अंदर घुस गया जड़ तक तब वो रुके और कुछ देर बाद गुड्डी की चीखे बंद हुयी, पहले सुबकियों में बदलीं फिर सिसकियों में।



और अब उनकी दो ऊँगली भी गुलाबो के अंदर और वो लंड से कम मजा नहीं दे रही थीं उन्हें एक एक नर्व एंडिंग जी प्वाइंट सब मालूम था

कभी गोल गोल कभी चम्मच की तरह मोड़ के, और दो मिनिट में ही बहिनिया पिघलने लगी, मस्ती बुर में आ रही थी और सिकोड़ वो गाँड़ रही थी,


लेकिन तभी एक चीख की आवाज सुनाई पड़ी, गुड्डी की कोमल भाभी की, उस खिड़की से लिविंग रूम काफी कुछ दिखता था जिसमे गुड्डी की भाभी और उनके दोनों जीजू, और उस चीख के बाद कमल जीजू की हलकी सी आवाज,

और भाभी और उनके जीजू भी हलके से दिखे, मतलब भाभी की भी उनके जीजू खड़े खड़े ले रहे थे .

गुड्डी एकदम सोच के गरमा गयी

लेकिन उससे ज्यादा असर उसके भैया पर पड़ा, वो धक्के उन्होंने अपनी बहिनिया के पिछवाड़े मारने शुरू किये की जैसे आज गुड्डी की गाँड़ का गोदाम बना के ही छोड़ेंगे, हर धक्का जड़ तक, पूरा बांस बाहर तक निकाल के एक धक्के में और ये चौथी बार थी जो आज गुड्डी की उसके भैया ले रहे थे तो गुदा सुरंग में जहाँ कहीं भी छिला था, चमड़ी खुली थी, फटी थी, उसे दरेरते रगड़ते




गुड्डी अब थोड़ा झुक गयी थी, खिड़की पकड़ के

और उसको भी आराम हो गया था और उसके यार और भतार को भी, धक्के और धुआंधार हो गए थे, लेकिन गुड्डी भी अब गुदा द्वार का मजा लेना मरवा मरवा के एक दिन के अंदर सीख गयी थी, कभी सिकोड़ती, कभी फैलाती कभी खुद धक्के मारती तो कभी भाई को उकसाती,

" हाँ भैया ऐसे ही, सच्ची तुझे अपने कोचिंग वालियों की अपनी सहेलियों की भी दिलवाऊंगी, एकदम कच्ची कलियाँ, दर्जा नौ दस वाली, दोनों ओर बिन फटी, अगवाड़े की भी झिल्ली फाड़ना और पिछवाड़े की भी, स्साली चिचियायेंगी बहुत लेकिन मैं रहूंगी न हाथ पैर पकड़ के, और एक बात बताऊँ राज की, लेकिन एकदम अपने तक रखना, "

" बोल न, " कमर पकड़ के सुपाड़ा ऑलमोस्ट बाहर निकाल के उसके भैया बोले,

" स्साला एक बार मादरचोद, तेरा पानी जिस लौंडिया के पिछवाड़े गिरा न, खुद हाथ पैर जोड़ेगी, अपनी छोटी बहनों को सहेलियों को ले आएगी बहुत असर है मेरे प्यारे अच्छे भैया के पानी में " मस्त बहन बोली और खुद पीछे धक्का मारा



और खूंटा फिर अंदर, गप्प

बस आगे दोनों ऊँगली बिल में और लंड बहन की गाँड़ में थोड़ी देर में गुड्डी झड़ रही थी, पर उन्होंने ऊँगली बाहर नहीं निकाली और निकाली तो बहन के मुंह में और पीछे के धक्को की स्पीड बढ़ा दी, पांच सात मिनट के बाद जब वो बहन की गाँड़ में झड़े तो गुड्डी भी दुबारा झड़ रही थी।



लेकिन अब उन दोनों के पास बहुत टाइम नहीं था, रीनू की आवाज आयी, हे बहनचोद, भाई चोद, अब आधे घंटे टाइम मुश्किल से बचा है, मेरी बिरयानी तैयार हो गयी है, चलो काम पे लग जाओ।
 
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स्वीट डिश
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" हे रंडी रानी, अभी तुझे स्वीट डिश बनानी है, टेबल सेट करनी है " रीनू ने गुड्डी के चूतड़ों पे प्यार से एक हाथ कस के मारते हुए बोला,

और गुड्डी के पिछवाड़े से एक कतरा भाई की मलाई का निकल पड़ा, वो मीठी निगाह से अपने भाई की ओर देखते, बोली, " मीठी भाभी, चल मैं तो रंडी हूँ, लेकिन वो रंडी का भाई क्या हुआ ?"

" भंडुआ, बहन का दल्ला और क्या " हँसते हुए रीनू बोली,

" हे भंडुए चल जरा अपनी बहन की हेल्प कर, वो पांच छ दसहरी आम निकाल के उनकी लम्बी लम्बी स्लाइस काट ले, " गुड्डी ने अपने भैया को स्वीट डिश बनाने के काम पे लगा दिया और बाकी काम में वो खुद,

" थोड़ा मैरीनेट तो करा दे भैया ज्यादा टैंगी हो जाएगा, भैया मेरे "


गुड्डी ने अपनी चम्पाकली की दोनों फांको को फैला के अपने भाई को लुहकाया और कौन भाई छोड़ देता तो बस एक साथ दो तीन लम्बी लम्बी आम की फांके गुड्डी रानी की चूत में,

" चल फ़ास्ट मैरीनेट करा देता हूँ "

हँसते हुए उसके भाई ने बोला और गुड्डी की सीधे क्लिट चूसने लगा और साथ में उँगलियों से दोनों फांको को रगड़ने लगा, और चासनी निकलने लगी, आम की फांके चूत रस में भीग उठीं।


भाई बहन की ये टीम, भाई के जिम्मे अभी भुना गोश्त बनाना बाकी था। अपनी चूत में आम की फांके घुसाए गुड्डी अपने भैया के के लिए सब मसाले, 2-3, तेज पत्ता, 4 लौंग, लंबी ,¼ इंच दालचीनी छड़ी, 2-3 हरी मिर्च, आधी तोड़ी हुई, हरी मिर्च, 4 मध्यम प्याज, कटा हुआ, प्याज. 1 बड़ा चम्मच नरम धनिया का तना, मोटा कटा हुआ, धनिया के दाने,1 ½ बड़ा चम्मच धनिया पाउडर,1 छोटा चम्मच देगी लाल मिर्च पाउडर, दे, गी लाल मिर्च पाउडर½ छोटा चम्मच हल्दी पाउडर, हल्दी पाउडर, 1 चम्मच अदरक लहसुन का पेस्ट

जिस काम में दस पंद्रह मिनट लगता, भाई बहन ने मिल के ५ मिनट में निबटा दिया और फिर जब तक उसका भाई गोश्त भुनने में लगा था गुड्डी स्वीट डिश के बाकी काम में

चल भैया तुझे स्वीट डिश टेस्ट कराती हूँ, गुड्डी उछल के भाई के बगल में ,

क्या मस्त स्वीट डिश थी, भाई स्पेशल,

गुड्डी ने अपनी कसी चूत में आम की लम्बी फांके, खोंस रखी थी और उसके ऊपर क्रीम, ढेर सारी लथेड़ दी थी। और उसके भाई चूस चाट रहे थे। आम की सारी फांके भाई के मुंह में और क्रीम चेहरे पे



रीनू अपने जीजू की मस्ती देख रही थी और गुड्डी की हेल्प में स्वीट डिश सेट कर रही थी, वाइन के प्याले में क्रीम , मैंगो की लम्बी लम्बी फांके, ग्रेप्स के टुकड़े और सबसे ऊपर गारिंश के लिए एक चेरी।

जब तक गुड्डी और रीनू ने मिल के टेबल सेट की, भुना गोश्त और रोगन जोश भी तैयार था। बैगन की कलौंजी रीनू ने पहले ही तैयार कर दी थी।


लेकिन गुड्डी की हालत खराब थी, वो चल नहीं पा रही थी, कभी दीवाल का सहारा लेती तो कभी टेबल का, सुबह से चार बार उसके पिछवाड़े मोटा बांस जा चका था और किचेन में तो और रगड़ के ली गयी, फिर चार मोटे बैगन भी, एकदम जड़ तक, जोर जोर की चिल्ख उठ रही थी.
और थोड़ी देर में सभी लोग लंच के लिए टेबल पे, टंकी सब की खाली हो गयी थी, दो दो राउंड मलाई निकल गयी थी, दिन अभी बाकी था।

हांडी चिकेन,



भुना गोश्त,


रोगनजोश, बैगन की कलौंजी, बिरयानी


और गुड्डी की पेसल स्वीट डिश

लंच के समय भी मस्ती चलती रही।
 
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