कभी कभी स्वाद बदलने के लिए...अरे ननद को भाभी नहीं सिखाएगी तो कौन सिखाएगी, दूसरे फायदा तो मेरे सोना मोना का ही हो रहा था, मजा तो मेरे बाबू के खूंटे को आ रहा था और एक बात और, मैं भी रीनू की तरह चाहती थी की ये भी गोल छेद के रसिया हो जाएँ, जीजा तो चार दिन की चांदनी होते हैं असली सुख तो पति के ही साथ है।
जीजा देवर नंदोई...