मिस्टर दीर्घलिंगम-मिस्टर चौधरी
सब से पहले क्लास ली गयी मिस्टर चौधरी की, डायरेकटर फायनेंस और उन के बारे में कोलाबा पुलिस थाने में उलटे लटके, बेताल सदृश एक शख्श ने तारीफ़ में बहुत कुछ कहा था, बस वहीँ से बात शुरू हुयी।
जैसे आत्मा शरीर बदलती है उसी तरह देह वस्त्रों का साथ छोड़ता है और बस इसी दर्शन के तहत, उस शख्श का चीरहरण, कुछ पुलिस वालों ( और पुलिसवालियों ) ने कोलाबा थाने में किया और जमीनी सच्चाई जानने के लिए उसे गुरुत्वाकर्षण के बिरुद्ध लटकाया। जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नो पर उसके मत जानने के लिए दरोगा जी अभी नहीं आये थे, वह सामने लियोपोल्ड में कुछ पेट पूजा कर रहे थे, और तब तक दो छोटी दरोगा, उस उलटे लटके जीव के नीचे, धूनी रमा कर उसमे कौन से मिर्चे डाले जाएँ, इस पर बहस कर रही थीं, एक का कहना था कश्मीरी लाल मिर्च और दूसरे का कहना था नहीं वो सिर्फ देखने में लाल होती है, असली मजा तो गुंटूर की मिर्ची में है, और आधा किलो काफी होगी।
कुछ देर में ही वो उलटा लटका व्यक्ति, बिना इस उत्तर दक्षिण विवाद के सुलझे, सत्यवादी हरिच्छ्न्द को मात करने लगा, क्या बागों मे बुलबुल बोलती होगी या पेड़ों पे कोयल, उसको चुप करना मुश्किल था। और कुछ देर में एक मजिस्ट्रेट पद पर आसीन व्यक्ति के सामने उसने कलमबंद बयान भी दिया और ऑडियो वीडियो रिकार्ड भी बना।
आप यह कहेंगे की उस उलटे लटके व्यक्ति का पात्र परिचय तो कराया ही नहीं, तो आप उससे मिल चुके हैं।
जी वो दीर्घलिंगम जी के सारथी हैं और जैसा उन्होंने खुद कबूला की दीर्घलिंगम जी की सब बातचीत वो रिकार्ड करते थे और यही नहीं मिसेज दीर्घलिंगम और मिस दीर्घलिंगम की गाड़ियों में भी बग लगाने में उन्ही का हाथ था। लेकिन यह सब उन्होंने डायरेकटर साहेब, चौधरी साहेब के कहने पर किया और जो बात चौधरी जी ने उनसे कही थी उसको अपने मोबाइल पर गुपचुप उन्होंने रिकार्ड किया था। वह रिकार्डिंग कहाँ देनी होती थी, ये भी ड्रायवर साहेब ने बताया और इस सेवा के लिए उन्हें क्या धन मिलता था ये भी बताया।
और जब चौधरी जी को बुलाया गया, उस छोटे से मीटिंग रूम में तो पहली बात वाहन पर दो कुर्सियां थीं और एक पर मिस्टर खन्ना थे और दूसरे पे कोई नए सज्जन आरूढ़ थे, मिस्टर चौधरी के लिए कोई कुर्सी नहीं थी, और सामने एक स्क्रीन थी, जैसे मीटिंग्स में पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के लिए रहती थी, उस कमरे में हमेशा से, लेकिन वो आन थी, और एक बटन उस अज्ञात ने दबा दिया,
कोलाबा थाने से लाइव फीड आ रही थी और मिस्टर चौधरी को एक मिनट लगा उलटे लटके आदमी को पहचानने में, लेकिन तभी वो वीडियो फीड पोज़ कर दी गयी और एक रिकार्डिंग सुनाई देने लगी, जिसमे मिस्टर चौधरी अपनी आवाज तो अच्छी तरह पहचान सकते थे, और उलटे लटके उस आदमी को उन्होंने मिस्टर दीर्घलिंगम की कार की रिकार्डिंग के लिए बोला था। वो कुछ फोटोशॉप टाइप जवाब देते, ये आवाज मेरी नहीं है, स्क्रीन पे कुछ और पिक्स आयी, जिसमे उस चालाक चालक को वो एक लिफाफा दे रहे थे, कुछ में बग्स और कैमरे और मिस दीर्घलिंगम और मिसेज दीर्घलिंगम के बगिंग के लिए आवश्यक उपकरण,
और मिस्टर चौधरी चुप हो गए, क्योंकि स्क्रीन पर एक बहुत ही यंग लड़की की पिक आ गयी, नौवीं दसवीं में पढ़ने वाली जैसे होती हैं, हाँ थोड़ी ज्यादा ही बड़ी लग रही थी, कुछ जगहों पर, स्कूल की यूनिफार्म में, फिर उसी लड़की की फोटो उनकी बेटी के साथ,
और फ्लैशबैक में एक एक करके सब बातें खुलती चलती गयीं। बोलने के लिए वो अज्ञात आदमी ही कभी कभी बोलता, कभी कुछ डॉक्युमेंट्स और पिक्स दिखाता, लेकिन एकदम ठंडी आवाज में,
और बात शुरू हुयी उनकी लड़की से, रीमा से। नहीं नहीं, मिस्टर चौधरी का वैसा कुछ नहीं था जो एक ख़ास संवर्ग की कहानी में दिखाया जाता है और ये कहानी उस कैटगरी की है भी नहीं सो नो फाल्स हॉप्स। पर रीमा सुन्दर, सेक्सी हॉट और एक्स्ट्रोवर्ट और अपने क्लास की लड़कियों की तरह ही,
और चौधरी ने उसके मोबाइल में, कमरे में ( नहीं बाथरूम में नहीं ) कई बग्स, कैमरे लगवा रखे थे, बस निगाह रखने के लिए। उस कालेज की कुछ लड़के लड़कियां एक बार ड्रग के चक्कर में पकडे गए थे, बस निगाह रखने के लिए। लेकिन दो बातें थीं, रात में कई बार वो देखते और दूसरी अधेड़ उम्र के सक्सेसफुल मर्दों की तरह, उन्हें नीली पीली फिल्मो की आदत थी, खास तौर से बेयरली अडल्ट, जस्ट टीन टाइप्स और उनकी फैंटेसी भी कच्ची कली कचनार वाली ही थी, अभी भी वो टेनिस खेलते थे, स्विम करते थे और हफ्ते में एक दो दिन जिम भी जाते थे तो महिलायें भी उन्हें देख के उह आह करती थी और पत्नी उनकी साल में छह सात महीने नहीं रहती थीं और रहती भी थी तो बैडरूम अलग था
तो जो लड़की स्क्रीन पे प्रगट हुयी थी छाया कौर,हॉट नहीं सुपर हॉट। जब पहली बार मिस्टर चोधरी ने देखा उसे,
गोरी चिट्ठी, लम्बी, और सबसे खतरनाक थे उसके दोनों उभार, टाइट टेनिस टॉप को फाड़ते, एकदम गोल, टेनिस बाल की तरह, कड़े कड़े स्पंजी, जैसे दो जस्ट बड़े हुए कबूतर उछल कर घोंसले से उड़ने के लिए बेताब हों और उनकी चोंचे दिख रही हों, हाथ में रैकेट पकडे और छोटे शार्ट में गोरी गोरी जाँघे, एकदम खुल के दिख रही थीं,