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बिना कुछ कहे उनके होंठ वहां पहुंच गए थे और छोटे छोटे चुम्बन सीधे मेरी गांड के चारो ओर ,
' चाट ,जोर जोर से चाट। "
मैं ने बोला
और बिना रुके उनके हाथ जो अब प्यार से मेरे चूतड़ सहला रहे थे ,
उन्होंने अब ताकत लगा के उन्हें फैला दिया और जीभ सीधे गांड के मुहाने पे।
और नीचे से ऊपर , नीचे से ऊपर ,बार बार ,
मैं गिनगीना रही थी, काँप रही थी , मस्त हो रही थी ,
फिर मेरे बिना कहे उन्होंने वो किया ,जो मैं इन्तजार कर रही थी ,चाह रही थी ,
उनके जीभ की टिप , पहले गांड के छेद को चाटती रही खोदती रही , फिर अंदर।
" ओह्ह हाँ , हान्न्न्न्न्न्न ,और , और, प्लीज ऐसे ही बहुत अच्छा लग रहा है , और अंदर घुसेड़ो न ,प्लीज ,… "
मेरे मुंह से सिसकियाँ निकल रही थीं।
और अब जो मुझे अच्छा लगता था , बस उन्हें भी वही अच्छा लगता था , जोर से उन्होंने दोनों हाथों से मेरे गांड को पूरी ताकत से फैलाया और , पूरी ताकत से जीभऔर अंदर ,
" ओह्ह हाँ , साल्ले , मादरचोद , चाट चाट ऐसे ही चाट , चल अगर मुझे खुश कर दिया न तो
तेरी माँ की भी गांड भी ऐसे हीचटवाउंगी तुझसे , उसके चूतड़ तो जगत मसहूर है एकदम बड़े बड़े ,
चाट साल्ले मादरचोद , और अंदर , हाँ ,…हाँ , …
गांडभी मरवाउंगी तेरी माँ की ,
पहले चटवाउंगी अपने सामने , ओह्ह बहुत अच्छा , प्लीज और थोड़ा सा ,
और थोड़ा सा , हाँहांआआअ , ओह्ह ओह्ह्ह्ह्ह मादर , बहन के भंडुए ,ओह्ह अहह "
गूई,लिसलिसी सी , लिथड़ी चिपकी जीभ की टिप अब वहां पहुँच गयी थी ,
और मेरी पूरी देह में गिनगिनी हो रही थी ,
जोर से दोनों हाथों से मैंने पलंग को पकड़ रखा था ,मस्ती से मेरी आँखे बंद हो रही , यही तो मैं चाहती थी ,
कुछ भी गर्हित ,वर्जित न हो हम दोनों के बीच में , नो होल्ड्स बार्ड ,
और मैंने भी अपनी मस्त गांड के छेद को जोर से पीछे धक्का दे उनके मुंह पे एकदम चिपका दिया।
उन्होंने भी दुगने जोश से ,
वो गुई गुई सी लिसलिसी सी , और वो भी , जैसे कोई चम्मच से करोच रहा हो ,
गांड के अंदर की दीवारों पे उनकी जीभ रगड़ रगड़ के , गोल गोल
जैसे जैसे मेरी गालियां बढ़ रही थी वैसी ही उनकी गांड के अंदर की चटाई ,
"मादरचोद , जल्द ही जिस भोंसडे से निकला है न तू रंडी का पूत , उस भोंसडे में भी तुझे घुसवाऊँगी , और उस की गांड में , घबड़ा मत मुन्ना तुझे मेरी सारी ससुरालवालियाँ मिलेंगी , चोदना , कस कस के , बोल चोदेगा न मेरी सास को ,... "
माँ की गाली का तो एकदम जादू सा असर हुआ
दोनों हाथ से पूरी ताकत से मेरे तरबूजे की तरह बड़े बड़े चूतड़ों को उन्होंने फैलाया और एक बार फिर पूरी ताकत से अपनी जीभ अंदर , दोनों होंठ मेरी गाँड़ के छेद से चिपके , और जीभ अंदर करोचती , वो गिजगिजी सी फीलिंग मेरे अंदर हो रही था , लसलसी ,... पर उनके मेरी गाँड़ के अंदर चाटने में कोई कमी नहीं हो रही थी
" मादरचोद,मेरी सास के यार , ओह्ह चाट साले चाट तेरी बहना की भी गांड मरवाउंगी तुझसे , अपने सामने , बहुत कसीहोगी उस छिनार की हचक हचक के मारना उस की गांड , चाट मादरचोद। "
मैं उन्हें चोद रही थी , चुदवा रही थी , दोनों धुआंधार चुदाई का मजा ले रहे थे।
अब वो चुदाई का असली पाठ सीख चुके थे , पहले मुझे झाड़ने का , कम से कम तीन बार मैं झड़ूं फिर उनका नंबर
और लंड के अलावा भी लौंडिया को मजा देने की बहुत सी चीजें हैं ,
होंठ ,अंगुलियां , उन सबका इस्तेमाल।
तीन बार तो नहीं लेकिन मैं दो बार झड़ी ,
और साथ में गालियों की वर्षा , जैसे घोड़े की रफ़्तार बढ़ानी हो तो ऐड लगाते हैं न ,
बस वही हालत उनकी माँ बहन की गालियों की होती थी ,
अगर कहीं वो ज्यादा जोर से धक्के मारते तो मैं तुरंत अपनी सास को बीच में ले आती , न न
" स्साले तेरी माँ की फुद्दी मारुं , ... तेरी गधा घोडा चोदी माँ का भोंसड़ा नहीं है , माना गदहे घोड़े कुत्ते से चुदवा के तुझे , गदहे के लंड वाले को पैदा किया ,... "
बस उनके धक्के दस गुना तेज हो जाते , लगता था आज मेरी चूत के चीथड़े उड़ जाएंगे ,...
और बीच बीच में उन्हें उनकी बहन कम माल की भी याद दिलाती ,
" चलना मायके अबकी , ऐसे ही तेरी बहन को चढ़ाउंगी तेरे लौंड़े पर , ... बोल चोदेगा न अपनी माँ बहन को ,... "
और जब तक वो तीन बार हाँ नहीं कहते , मैं न धक्का मारती न उन्हें मारने देती ,
जब मैं दूसरी बार झड़ी तब वो मेरे साथ.
और क्या मस्त झड़े वो।
बस झड़ते ही रहे , वो जब रुके तो एक बार फिर मेरी चूत चटोरी ने उसे दबोच लिया , निचोड़ लिया ,
फिर तो पूरे सावन की बारिश जैसे एक रात में हो जाय ,
देह उनकी पूरी शिथिल हो गयी थी, आँखे बंद हो गयी थी ,लेकिन लंड उनका , उसका फुव्वारा रुकने का नाम नहीं ले रहा था ,
खूब गाढ़ी थक्केदार मलाई , मुट्ठी भर से तो ज्यादा ही रही होगी।
और मेरी भूखी नदीदी चूत ने न सिर्फ हर बूँद घोंट लिया ,बल्कि निचोड़ के , एक बूँद भी बाहर नहीं जाने दी उसने।
हम लोग बहुत देर तक ऐसे ही पड़े रहे , करवट , एक दूसरे की बाहों में ,बंधे हलके हलके सहलाते और उनका खूंटा मेरे अंदर ही धंसा रहा।
आधे घंटे भी शायद ही गुजरे होंगे और ,इस बार शुरआत उन्होंने ही की ,
मैं सिर्फ लेटे लेटे मुस्कराती रही ,उन्हें उकसाती रही ,मजे लेती रही.
मैं चूतड़ उठा उठा के सिसक रही थी , मस्ती से गांड पटक रही थी ,
प्लीज बस बस , अब और नहीं , बस ,
मैं बेबस थी लेकिन वो , मेरे साजन आज बस नहीं करने वाले थे।
उनका खूंटा भी पागल हो रहा था।
और जब मैं एकदम झड़ने के कगार पे थी , उन्होंने मेरी दोनों लम्बी टाँगे उठा के सीधे अपने कंधो पे , दोनों हाथ मेरे उठे बड़े बड़े चूतड़ पे ,
और पूरी ताकत से पहला धक्का ,
पहले धक्के में उनके मोटे पहाड़ी आलू ऐसे सुपाड़े ने मेरी बच्चे दानी पे ऐसी चोट मारी की मेरा कलेजा काँप गया
और मैं झड़ने लगी ,देर तक झड़ती रही , कांपती रही, जैसे बारिश बंद होने के बाद भी पत्तों से ,अटारी से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं , रस मेरी चूत से टपकता रहा ,टप टप।
पहली बार चुदाई शुरू होने के साथ मैं झड़ी थी।
मेरे साजन यही तो मैं चाहती थी।
धक्के उन्होंने रोक दिए थे , जब तक मैं झड़ रही थी लेकिन लंड का जोर , मेरी बच्चेदानी पे ज़रा भी कम नहीं हुआ था।
और मेरा झड़ना रुका भी नहीं था दरेरते ,रगड़ते ,मेरी कसी ,संकरी चूत की दीवाल से रगड़ते उन्होंने पहले हलके हलके
फिर हचक हचक के चोदना शुरू किया।
थोड़ी देर में उनका तिहरा हमला चालू हो गया था , एक हाथ चूंची दबाता ,कभी निपल मसलता तो दूसरा , क्लिट सहलाता रगड़ता , और होंठ कभी गाल पे तो कभीजुबना पे।
और साथ में लंड उनका तूफान मेल हो रहा था।
धक्के के बाद जिस तरह से लंड का बेस जिस तरह से मेरे क्लिट को रगड़ता मैं सिसकियाँ भरने लगती।
इस बार मैं सिर्फ चुदवा रही थी नीचे लेटे मजा ले रही थी।
और बीच बीच में चूतड़ उठा उठा के उनके धक्कों का जवाब दे रही थी।
और अब जब मैं झड़ी , तो बाहर आसमान में हलकी लाली हो रही थी।
रात कब की जा चुकी थी।
हम दोनों साथ साथ झड़ते रहे। देर तक।
फिर मैं उन्हें अपनी बाहों में बांधे बांधे सो गयी ,