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फागुन के दिन चार भाग २२
मस्ती संध्या भाभी संग
तो ये चक्कर था, छुटकी और श्वेता एक और इसकिये मम्मी भी बजाय कुछ बोलने के नयन सुख ही ले रही थीं।
लेकिन छुटकी और श्वेता के इस लेस्बियन दंगल और जिस तरह से डिटेल में संध्या भाभी उस कच्ची कली की चिपकी चिपकी एकदम कसी गुलाबी मुलायम टाइट फुद्दी की फूली फूली भरी भरी फांको की बात कर रही थीं, जंगबहादुर फनफना गए। और उनके बौराने का एक कारण संध्या भाभी के नरम गरम चूतड़ भी थे, जिस तरह से वो अपने चूतड़ मेरे खड़े खूंटे पे रगड़ रही थीं उसी से अंदाजा लग रहा था की कितनी गरमा गयीं, बुर उनकी एकदम पनिया गयी थी। मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के जुबना मीस रहा था और वो सिसकते हुए बोल रहीं थी,
" उस स्साली छुटकी के कच्चे टिकोरे भी ऐसी ही कस कस के मसलना और कुतरना जरूर।
और मेरे सामने सुबह की वीडियो काल में दिख रही छुटकी याद आ रही थी, छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,
एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था
और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,
२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,
साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,
बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,
और संध्या भाभी की बात एकदम सही थी, स्साली गरमा भी रही थी, तैयार भी थी, सुबह जिस तरह मम्मी के वीडियो काल से जाने के बाद छुटकी ने फोन थोड़ा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एकदम पास से दिखाया, झुक के क्लीवेज का दर्शन कराया, लेकिन अभी तो सामने संध्या भाभी थीं, तो बस
------
संध्या भौजी बाथरूम के फर्श पर थीं।
मैंने इधर उधर देखा, ढेर सारे भीगे कपडे, रंगों से लथपथ, उनके भी दूबे भाभी के भी, बस उन्ही को मोड़ तोड़ के, दोनों हाथो से भौजी के चूतड़ को उठा के सीधे उस के नीचे, भौजी के बड़े बड़े रसीले चूतड़ अब कम से कम कम एक बित्ता फर्श से उठा था और उनकी चाशनी से भीगी, रस की रानी साफ़ साफ़ दिख रही थ।
जाँघे भी उन्होंने खुद फैला दी और अपनी लम्बी गोरी टाँगे भी मेरे कंधे पे,
उन्हें भले जल्दी हो मुझे तो एकदम नहीं थी , अबकी खूब रस ले ले के लेना था उन्हें।
और जो उन्होंने सिखाया था, कैसे गुड्डी को खूब गरम करके लेना है, कल चंदा ने भाभी की पाठशाला में जो पढ़ाई हुयी थी, वो सब उनके ऊपर, कस कस के मैंने एक हाथ से अपने मोटे मस्त मूसल को उनकी भीगी गुलाबो के फांको के ऊपर रगड़ना शुरू किया, और दूसरा हाथ कस के उनकी कमर को दबोचे था।
भौजी ने मुझे जोर से घूरा और मैं अपनी गलती समझ गया। झट से बगल में रखी सरसो के तेल की शीशी खोल के एक ढक्क्न तेल पहले हथेली पे फिर उसी हथेली को बार बार अपने खूंटे पे, जैसे कल रात में चंदा भाभी कर रही थीं, और आज थोड़ी देर पहले ही संध्या भौजी ने किया था, और अब संध्या भौजी देख के मुस्करा रहीं थी की ये बुद्धू सीख तो रहा है, भले ही धीरे धीरे। और फिर मैंने खुली शीशी से ही थोड़ा सा तेल अपने मोठे बौराये सुपाड़े पे,
और संध्या भौजी मुझे चिढ़ाते बोलीं,
" अपने बूआ, चाची, मौसी और महतारी के भोंसडे में भी पेलना तो ऐसे ही कडुवा तेल लगा के, सटासट जाएगा, छिनरों के भोंसडे में, "
कभी कभी गाली भी अच्छी लगती है और जब मीठे मीठे रिश्ते वाली हो भौजी या सलहज हो और वो संध्या भौजी ऐसी मीठी भी हो नमकीन भी,
उन्हें देख के मुस्कराते हुए उनकी भरी बहरी पकड़ी ऐसी फूली चुनमुनिया की दोनों फांको को मैंने बहुत प्यार से धीरे धीरे अलग किया, हलकी सी प्यार भरी चपत लगाई, और उस लाल गुलाबी सुरंग में,
टप,टप,टप, टप,
कडुवा तेल की छोटी मोटी बूंदे, लुढ़कती हुयी, सरकती हुयी, भौजी की रसीली बुरिया में जा रही थीं,
कडुवा तेल की झार पूरे बाथरूम में फ़ैल रही थी।
कडुवा तेल भौजी आपन बुर चियारे घोंट रही थीं।
पूरे ढक्क्न भर कडुवा तेल मैंने भौजी की चुनमुनिया को पिलाया,
आखिर सब धक्के तो उसी बेचारी को झेलने थे और तेल घुसने के बाद भी उनकी बुलबुल की चोंच मैं फैलाये रहा। बहुत प्यारी प्यारी लग रही थी। फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के मैंने कस के जकड़ लिया जिससे तेल की एक एक बूँद भौजी की बुरिया की दीवालों में आराम से रिस जाए और फिर हथेली से कुछ देर तक उसे रगड़ता रहा।
भौजी बहुत प्यार से मुझे देख रही थीं।
और हलके से फिर गुरु ज्ञान दिया, ऐसे करोगे तो चाहे गुड्डी की छुटकी बहिनिया हो या गुंजा सब रट चिल्लाते घोंट लेंगी ये गदहा क लौंड़ा ।
" उह्ह्ह, उह्ह्ह, ओह्ह " भौजी सिसक रही थी, देह उनकी कसक मसक रही थी, और कुछ देर बाद में जब उनसे नहीं रह गया तो खुद बोलीं,
" कर ना, करो न प्लीज, ओह्ह्ह उह्ह्ह "
कस कस के सुपाड़ा उनकी गीली बुर के होंठों पे रगड़ते मैंने चिढाया, " का करूँ भौजी "
अब उनसे नहीं रहा गया और अपने बनारसी रूप में आ गयीं,
" स्साले जो अपनी बहन महतारी के साथ करते हो, चाची, मौसी और बूआ के साथ करते हो, पेल साले, पेल पूरा "
और बहन महतारी की गारी सुनने के बाद कौन रुक सकता था तो मैंने पेल दिया, पूरी ताकत से, कमर का जोर लगा के और
गप्पांक
सुपाड़ा अंदर, बुर खूब अच्छी तरह से फैली और अब भौजी की चीख निकल गयी,
यही तो मैं चाहता था लेकिन अब मैं रुक गया।
अब मेरे होंठ भी मैदान में आ गए, कभी भौजी की एक गद्दर चूँची काट लेता तो कभी निपल चूस लेता,
हाथ भी उनकी क्लिट को हलके से छू के दूर हो जाता और फिर मैंने भौजी से पूछा,
" भौजी मजा आरहा है "
" बहुत रज्जा "
कहकर भौजी ने कस के नीचे से अपने चूतड़ उछाले, उनसे रहा नहीं जा रहा था और वो सीधे चौथे गेयर में जाना चाहती थीं लेकिन मैं उनको थोड़ा और तड़पना चाहता था, सब कुछ कबुलवाना चाहता था उन्ही के मुंह से, और मैंने धक्के का जवाब बजाय धक्के के देने के कस के उनके गाल को फिर से, जहाँ पहले काटा था, वहीँ काट लिया और भौजी चीख पड़ीं,
मस्ती संध्या भाभी संग
तो ये चक्कर था, छुटकी और श्वेता एक और इसकिये मम्मी भी बजाय कुछ बोलने के नयन सुख ही ले रही थीं।
लेकिन छुटकी और श्वेता के इस लेस्बियन दंगल और जिस तरह से डिटेल में संध्या भाभी उस कच्ची कली की चिपकी चिपकी एकदम कसी गुलाबी मुलायम टाइट फुद्दी की फूली फूली भरी भरी फांको की बात कर रही थीं, जंगबहादुर फनफना गए। और उनके बौराने का एक कारण संध्या भाभी के नरम गरम चूतड़ भी थे, जिस तरह से वो अपने चूतड़ मेरे खड़े खूंटे पे रगड़ रही थीं उसी से अंदाजा लग रहा था की कितनी गरमा गयीं, बुर उनकी एकदम पनिया गयी थी। मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के जुबना मीस रहा था और वो सिसकते हुए बोल रहीं थी,
" उस स्साली छुटकी के कच्चे टिकोरे भी ऐसी ही कस कस के मसलना और कुतरना जरूर।
और मेरे सामने सुबह की वीडियो काल में दिख रही छुटकी याद आ रही थी, छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,
एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था
और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,
२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,
साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,
बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,
और संध्या भाभी की बात एकदम सही थी, स्साली गरमा भी रही थी, तैयार भी थी, सुबह जिस तरह मम्मी के वीडियो काल से जाने के बाद छुटकी ने फोन थोड़ा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एकदम पास से दिखाया, झुक के क्लीवेज का दर्शन कराया, लेकिन अभी तो सामने संध्या भाभी थीं, तो बस
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संध्या भौजी बाथरूम के फर्श पर थीं।
मैंने इधर उधर देखा, ढेर सारे भीगे कपडे, रंगों से लथपथ, उनके भी दूबे भाभी के भी, बस उन्ही को मोड़ तोड़ के, दोनों हाथो से भौजी के चूतड़ को उठा के सीधे उस के नीचे, भौजी के बड़े बड़े रसीले चूतड़ अब कम से कम कम एक बित्ता फर्श से उठा था और उनकी चाशनी से भीगी, रस की रानी साफ़ साफ़ दिख रही थ।
जाँघे भी उन्होंने खुद फैला दी और अपनी लम्बी गोरी टाँगे भी मेरे कंधे पे,
उन्हें भले जल्दी हो मुझे तो एकदम नहीं थी , अबकी खूब रस ले ले के लेना था उन्हें।
और जो उन्होंने सिखाया था, कैसे गुड्डी को खूब गरम करके लेना है, कल चंदा ने भाभी की पाठशाला में जो पढ़ाई हुयी थी, वो सब उनके ऊपर, कस कस के मैंने एक हाथ से अपने मोटे मस्त मूसल को उनकी भीगी गुलाबो के फांको के ऊपर रगड़ना शुरू किया, और दूसरा हाथ कस के उनकी कमर को दबोचे था।
भौजी ने मुझे जोर से घूरा और मैं अपनी गलती समझ गया। झट से बगल में रखी सरसो के तेल की शीशी खोल के एक ढक्क्न तेल पहले हथेली पे फिर उसी हथेली को बार बार अपने खूंटे पे, जैसे कल रात में चंदा भाभी कर रही थीं, और आज थोड़ी देर पहले ही संध्या भौजी ने किया था, और अब संध्या भौजी देख के मुस्करा रहीं थी की ये बुद्धू सीख तो रहा है, भले ही धीरे धीरे। और फिर मैंने खुली शीशी से ही थोड़ा सा तेल अपने मोठे बौराये सुपाड़े पे,
और संध्या भौजी मुझे चिढ़ाते बोलीं,
" अपने बूआ, चाची, मौसी और महतारी के भोंसडे में भी पेलना तो ऐसे ही कडुवा तेल लगा के, सटासट जाएगा, छिनरों के भोंसडे में, "
कभी कभी गाली भी अच्छी लगती है और जब मीठे मीठे रिश्ते वाली हो भौजी या सलहज हो और वो संध्या भौजी ऐसी मीठी भी हो नमकीन भी,
उन्हें देख के मुस्कराते हुए उनकी भरी बहरी पकड़ी ऐसी फूली चुनमुनिया की दोनों फांको को मैंने बहुत प्यार से धीरे धीरे अलग किया, हलकी सी प्यार भरी चपत लगाई, और उस लाल गुलाबी सुरंग में,
टप,टप,टप, टप,
कडुवा तेल की छोटी मोटी बूंदे, लुढ़कती हुयी, सरकती हुयी, भौजी की रसीली बुरिया में जा रही थीं,
कडुवा तेल की झार पूरे बाथरूम में फ़ैल रही थी।
कडुवा तेल भौजी आपन बुर चियारे घोंट रही थीं।
पूरे ढक्क्न भर कडुवा तेल मैंने भौजी की चुनमुनिया को पिलाया,
आखिर सब धक्के तो उसी बेचारी को झेलने थे और तेल घुसने के बाद भी उनकी बुलबुल की चोंच मैं फैलाये रहा। बहुत प्यारी प्यारी लग रही थी। फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के मैंने कस के जकड़ लिया जिससे तेल की एक एक बूँद भौजी की बुरिया की दीवालों में आराम से रिस जाए और फिर हथेली से कुछ देर तक उसे रगड़ता रहा।
भौजी बहुत प्यार से मुझे देख रही थीं।
और हलके से फिर गुरु ज्ञान दिया, ऐसे करोगे तो चाहे गुड्डी की छुटकी बहिनिया हो या गुंजा सब रट चिल्लाते घोंट लेंगी ये गदहा क लौंड़ा ।
" उह्ह्ह, उह्ह्ह, ओह्ह " भौजी सिसक रही थी, देह उनकी कसक मसक रही थी, और कुछ देर बाद में जब उनसे नहीं रह गया तो खुद बोलीं,
" कर ना, करो न प्लीज, ओह्ह्ह उह्ह्ह "
कस कस के सुपाड़ा उनकी गीली बुर के होंठों पे रगड़ते मैंने चिढाया, " का करूँ भौजी "
अब उनसे नहीं रहा गया और अपने बनारसी रूप में आ गयीं,
" स्साले जो अपनी बहन महतारी के साथ करते हो, चाची, मौसी और बूआ के साथ करते हो, पेल साले, पेल पूरा "
और बहन महतारी की गारी सुनने के बाद कौन रुक सकता था तो मैंने पेल दिया, पूरी ताकत से, कमर का जोर लगा के और
गप्पांक
सुपाड़ा अंदर, बुर खूब अच्छी तरह से फैली और अब भौजी की चीख निकल गयी,
यही तो मैं चाहता था लेकिन अब मैं रुक गया।
अब मेरे होंठ भी मैदान में आ गए, कभी भौजी की एक गद्दर चूँची काट लेता तो कभी निपल चूस लेता,
हाथ भी उनकी क्लिट को हलके से छू के दूर हो जाता और फिर मैंने भौजी से पूछा,
" भौजी मजा आरहा है "
" बहुत रज्जा "
कहकर भौजी ने कस के नीचे से अपने चूतड़ उछाले, उनसे रहा नहीं जा रहा था और वो सीधे चौथे गेयर में जाना चाहती थीं लेकिन मैं उनको थोड़ा और तड़पना चाहता था, सब कुछ कबुलवाना चाहता था उन्ही के मुंह से, और मैंने धक्के का जवाब बजाय धक्के के देने के कस के उनके गाल को फिर से, जहाँ पहले काटा था, वहीँ काट लिया और भौजी चीख पड़ीं,