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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

Jiashishji

दिल का अच्छा
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कुतिया बनाकर


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लेकिन थोड़ी देर में सब समझ में आ गया। बस नीरज जीजू ने उठाकर, निहुरा के, एकदम कुतिया ऐसी। पता नहीं क्यों सारे मदों को मुझे कुतिया बनाकर ही चोदने में मजा आता है ।

सामू को तो इसके बिना , और वो तो कभीऔर वो तो कभी भी कहीं भी, संदीप भी जब तक एक राउंड निहुरा के नहीं चोद लेता था, ... और अब नीरज ने भी।

लेकन नीरज ने एक काम वो किया की मेरी जान निकल निकल गई। पेलने के बाद, वो ठेलता रहा धकेलता रहा , जब तक लण्ड जड़ तक नहीं घुस गया। मेरी दोनों टाँगे खूब उसने फैलवा रखी थी।




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उधर जीजू ने एक बार फिर अपना लण्ड मुझसे चुसवाना शुरू कर दिया ।

मैं मजे ले लेकर आराम से चूस रही थी, तब तक नीरज जीजू ने अपना काम कर दिया । उन्होंने मेरी दोनों फैली टाँगे एकदम चिपका कर अपनी दोनों टांगो के बीच कैंची सी बनाकर फसा ली, और उसका असर मुझे तब मालूम हुआ जो उन्होंने लण्ड थोड़ा सा ही बाहर निकाल कर फिर पुश किया।

उफ़,... मैं चीख भी नहीं सकती थी,


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मुंह में जीजू का लण्ड धंसा था।

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और उसके बाद और उसके बाद तो वो तूफानी चुदाई दोनों ओर से शुरू हुयी मेरी जान नहीं निकली बस। मैं निहुरि हुयी , पीछे से नीरज जीजू चोद रहे थे, जैसे किसी बछिया पे तगड़ा सांड चढ़ाहो । और आगे से अब मैं जीजू का लण्ड नहीं चूस रही थी, वो हचक हचक कर, हलक तक मेरा मुूँह चोद रहे थे।

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देर तक, और मैं भी सब कुछ भूलकर होली में दो दो जीजू का एक साथ मजा ले रही थी।

वो तो ज्योती की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा


“स्साली, तू तो नम्बरी चुदक्कड़ निकली …”

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और जब मैंने ध्यान दिया तो न तो पीछे से नीरज ही मुझे चोद रहे थे और न ही आगे से जीजू। मैं खुद अपने चूतड़ के धक्के लगा लगाकर पूरा लण्ड घोंट रही थी, निकाल रही थी, आगे भी पीछे भी। मेरे कुछ बोलने का सवाल ही नहीं था, मुंह में जीजू का लण्ड भरा था।

पर दोनों जीजू मेरी ओर से बोल पड़े

“आखिर स्साली किसकी है ?”

और अब उन दोनों ने ताबड़तोड़ धक्के, कुछ देर में मैं झड़ने लगी लेकिन अबकी वो दोनों नहीं रुके, दो बार, तीन बार, चार बार, और सबसे पहले नीरज ने मलाई, फिर आलमोस्ट उसी के साथ जीजू ने,

नीरज ने धमकाया
“एक बूूँद भी बाहर गई तो ज्योती के प हले तेरी गाण्ड मारूंगा …”

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और मैंने चूत निचोड़ निचोड़ कर, वो दोनों झड़ते रहे , मैं भी।
एक की मलाई से मेरी चूत बजबजा रही थी ,


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दुसरे की मुंह में भरी थी ,..


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उसके बाद भी मैं उन दोनों के बीच सैंडविच बनी रही देर तक, और जब मेरी नजर बाहर की ओर गई तो मैं चौंक गई, शाम ढलने को आ गई थी। ज्योति मैंने बोला था, शाम होते होते मैं चली जाउंगी ।

किसी तरह नीरज का सहारा लेकर मैं उठी और बाथरूम जाकर थोड़ा बहुत रंग साफ़ किया , कपड़े पहने लेकिन उसके पहले अपनी दोनों ऊँगली डालकर झुक के, दोनों जीजू की जितनी भी मलाई बुर रानी ने घोंट रखी थी, ऊँगली डाल डालकर, डाल डालकर बाहर निकाला फिर अपनी सूखी रुमाल को दो ऊँगली में अच्छी तरह लपेट के , रुमाल में लपटी ऊँगली अंदर डालकर पोछा।

मैं सुबह की गलती दुहरानी नहीं चाहती थी। जब जुगुनू की दो बार की मलाई मेरी बुर में बजबजा रही थी और बुआ ने जैसे ही मेरी बुर में ऊँगली की, उन्हें सब पता चल गया।


और जब मैं एकदम फ्रेश होकर बाहर निकली तो, नीरज बाथरूम में फ्रेश होने गए थे, और जीजू और ज्योती भी कपड़े पहनकर तैयार । जीजू तो दो बार मेरे ही अंदर झड़ चुके थे, उसके पहले ज्योर्त की भी उन्होंने ली थी। और नीरज भी, तो अब उन दोनों को रिचार्ज होने में थोड़ा समय लगने वाला था।

झुक कर मैंने जीजू और ज्योति को किस किया , और जीजू के कान में बोली


“जीजू, ज्योति स्साली की गाण्ड एक बार मेरी ओर से भी मार लीजियेगा …”


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जब मैं बाहर निकली तो शाम अच्छी तरह ढल चुकी थी, आसमान में पूनो का चाूँद सोने की थाली की तरह निकल आया था। दूर से कहीं से फाग की तो कहीं से जोगीड़े की आवाज आ रही थी। मैं तेज डग भरते हुए घर की ओर चल दी। झुटपुटा सा अँधेरा था, और जल्दी के चक्कर में मैंने पगडण्डी का रास्ता पकड़ लिया।
Double thukkai to ho gai .
 
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Jiashishji

दिल का अच्छा
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भरौटी के लौंडे

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नउनिया बहू खिलखिलाती बोली, " सोच लो ननद रानी लौंडन क लंड घोंटोगी की भौजाई लोगन का मुट्ठी गंडिया में,..." कहाईन भौजी ने झुक के मेरे कान में मामला साफ़ किया ,... " और गाँव क मतलब , कुल जवार, अहिराना , भरौटी, चमरौटी , ... "

मेरा भी मन उन सब बातों को सोच के यही कर रहा था की अगर कोई पकड़ के घिसरा के गन्ने के खेत में मुझे ले जाएगा तो मैं खुद ही टाँगे फैला दूंगी।

और जैसे मेरे मन की बात,..






किसी ने मुझे पीछे से दबोच लिया , दो तगड़े मरदाने हाथ सीधे मेरे, उभारों पर, तगड़े और ताकतवर, बना बोले मीजना रगड़ना उसने शुरू कर दिया । वैसे भी मेरे जोबन में टीस सी उठ रही थी और उसके मीजते मसलते ही , और ज्यादा।


मैंने इधर उधर देखा , होली की शाम का झुटपुट अँधेरा , बल्कि रात ही हो गयी थी, ...

एक ओर घनी अमराई और दूसरी ओर गन्ने के खूब ऊँचे ऊँचे खेतों खेतों से और भी गाढ़ा हो गया था । ऊपर से आसमान में न जाने कहाँ से दो चार आवारा बादल आ गए और जो थोड़ी बहुत चांदनी छिटक कर, अमराई से छनकर आ रही थी, वो भी बंद । और मैं जिस पगडण्डी पर चल रही थी वो बस एक पतली सी ऊूँची मेड़ ऐसी थी, जिसके दोनों ओर खूब घने सरपत के जुटे।



पकड़ बहुत तगड़ी थी उसकी, मैं लाख कोशिश करती नहीं छुड़ा सकती थी। और चीखने चिल्लाने का भी कोई फायदा नहीं , आसपास कोई सुनने वाला नहीं था, फिर होली की शाम सब लोग भांग की मस्ती में चूर, अब वो मेरे कच्चे टिकोरे हलके हलके दबा नहीं रहा था , बल्कि कस कसकर रगड़ रहा था , पीस रहा था। तब तक एक आवाज आई, ठीक मेरे बगल से, घने सरपत के बीच से।

“अरे खींचकर ले चल स्साली को गन्ने के खेत में, नहीं तो इसी मेंड़ के नीचे निहुरा के …”



अब इरादे साफ़ हो गए थे दोनों के, एक होता तो भी थोड़ा बहुत , दोनों से कोई सूरत नहीं थी बचने की। लेकिन आवाज मैं पहचान रही थी, जरा जरा सी, सुनी सी लग रही थी। पर जो मेरे जोबन मींजने वाले ने बोला तो मैं पक्का समझ गई, अब क्या होने वाला है

“अरे बोल बारी बारी से या एक साथ?”


जवाब में जिसने गन्ने के खेत में खींचने की बात कही थी, उसने फैसला सुना दिया,

“अरे बारी बारी से जितनी देर लगेगी उतनी देर में तो दो राउंड जाएगा, मॉल बहुत कड़क है ,खूब मजा आएगा , रगड़ रगड़ के पेलने में पहले तुम आगे से मैं पीछे से, फिर अदल बदलकर…”

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और मैं समझ गई, मैं अपने गाूँव में आ गई थी, भरौटी के पिछवाड़े , और ये दोनों वही थे, भरौटी के लौंडे, जो मुझसे ज्योति के घर जाते मिले थे। और जिन्हे मैंने जोबन दिखाकर , झुका कर अपनी गहराई दिखाकर ,... और अब मैं समझ गई,... बचने की कोई सूरत नहीं लग रही थी।



आसमान के चेहरे पर लगता है उसकी किसी भौजाई ने होली में गाढ़ी काली काली ,कालिख पोत दी थी , एक तारा भी नहीं दिख रहा था। चांदनी ने होली में लफंगे देवरों से घबड़ा कर अपना दरवाजा बंद कर दिया था, और अंदर से मोटी मोटी सांकल लगा दी थी।

उस काले घने अँधेरे में हाथी से भी ऊँचे घने गन्ने के खेतों भी और भयानक लग रहे थे,


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डर के मारे मेरा सीना और उछल रहा था , और जिस लौंडे ने पीछे से मेरे कच्चे टिकोरे पकड़ रखे थे अब वो उसे और जोर जोर से दबा रहा था , उसका मोटा खूंटा भी पीछे से अब एकदम खड़ा हो के मेरे चूतड़ के बीच की दरार में रगड़ रहा था, खूब मोटा भी लग रहा था , लम्बा भी और लम्बी रेस का घोडा भी,...

डर भी बहुत लग रहा साँसे लम्बी लम्बी चल रही थी लेकिन एक बार फिर जाँघों के बीच चींटिया कस के काटने लगी थीं , मैं अपने आप अपनी दोनों जाँघे रगड़ रही थी।

वो स्साला इत्ता मस्त चूँची दबा रहा था कोई भी लड़की पिघल जाती।

आज होली खेलते समय ही तो कहाईन भौजी बोली थीं

“जउने दिन भरौटी के के लौंडन के पल्ले पड़बू न… ऊ नाड़ा खोलते नहीं तोड़ देते हैं । न गन्ना न अरहर , जहाँ मन करी उन्ही निहुरा के पेल देंगे…अइसन रगड़ रगड़ के चोदते हैं चार दिन टांग छितराय के चलबू ,... एकबार कउनो के हाथ में आय गयी न तो बिना चोदे छोड़ेंगे नहीं,... लेकिन अस हचक के चोद चोद के बुर फड़िये हैं न तबतक क कुल चुदाई भुलाय जाओगी। "

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और एक नहीं दो भरौटी के लौंडे, एक से तो मैं बच भी जाती पर दो , और आसपास सिर्फ अँधेरे में डूबे ऊँचे ऊँचे गन्ने के खेत , न कोई चीख सुनने वाला न सिसकी,.. एक कस के मेरी चूँची मींज रहा था, दूसरा चूतड़ मसल रहा था और मैं अब सिर्फ पिघल रही थी , टाँगे अपने आप फ़ैल रही थीं,...



बादल थोड़े सरके, तो हल्की चांदनी में एक कच्चे से छोटे से घर में एक एक कमजोर बहुत हलकी टिमटिमाती रौशनी दिखाई दी, थोड़ा दूर था।
Yahan bhi Doubling
 
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Jiashishji

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Mast jabarjast . Waiting for next apdate
 
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Aap likti rahen comments aate rahenge.
Thanks so much, bas yahi aas liye likhti rhati hun,...kya paat kab kahan se kabhi ek comment aa jaaye,...ummid pe duniya kaaym hai
 
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Yahan bhi Doubling
are HOLI ke din....bhi single se kya hoga, abhi aage aaage dekhiye,,,,..bas aap aate rhaiye duaayen dete rahiye,... bahoot jald is kahani par SAMAPT ka board nahi lagne vaala hai
 
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Mast jabarjast . Waiting for next apdate
jald aayega naya update bhi
 
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Hay aap ne to muh ki baat chin Lee. Love you 💕
kaun jija hoga jo aisi holi saaliyon ke saath nahi chaahega
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
Supreme
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कहाईन भौजी



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बादल थोड़े सरके, तो हल्की चांदनी में एक कच्चे से छोटे से घर में एक एक कमजोर बहुत हलकी टिमटिमाती रौशनी दिखाई दी, थोड़ा दूर था।

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और मदद वहीँ से आई, वही कहाईन भौजी , उन्ही का घर था वो।

उसके समझाने बुझाने पे और ये कहने पे की अरे गाूँव क होली तो रंग पिंचमी तक रहती है ,

' अरे आई जाएगी खुदे ये , अबह न इनके घर में लोग खोज रहे हैं देर हो गयी है । कतौं खोजते खोजते इधर आ गए तो बड़ी मुश्किल होगी। "

और उसपर भी वो लौंडे छोड़ने वाले नहीं थे , जब तक मैं खुद नहीं बोली की रंगपंचमी के के पहले एक दो ही दिन में में खुद ही मैं आउंगी पक्का ,, तब तक वो दोनों नहीं माने। और ऊपर से कहाईन भौजी ने तीन तिरबाचा भरा, समझाया , ...

अरे कहाँ अंधियारे , मैं खुदे ले आउंगी साथ एक दो दिन में और हमारे घर में ही दिन भर पेलना, मन भर पेलना , और जरा भी ना करेगी ये न तो मैं हूँ न ,... "

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तब जा के,

वो कहांईन भौजी हमको कहरौटी, भरौटी की सीमा तक छोड़ने भी आयीं , बस वहां से हम लोगों का पुरवा दिख रहा था, रास्ता भी खुला खुला चौड़ा था और रौशनी भी थी।

लेकिन मेरे मन में एक परेशानी अलग घर कर गई

“क्या सच में घर में सब लोग, ... मौसी ने तो खुद ही साफ़ साफ़ कहा था , माँ के सामने , आराम से आना…”
मैंने भौजी से पूछ ही लिया “का लोग इन्तजार कर रहे हैं ?


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हँसते हुए कहाईन भौजी ने मुझे दबोच लिया और चूमते हुए बोलीं ,

' बहोत जोर से , लेकिन तोहरे घरे नहीं। चंदा भाभी तोहार दस बार पूछ चुकीं , दालान में खड़ी तोहार इन्तजार कर रही थीं। "

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और मुझे याद आया चुन्नू, उनका वो शर्मीला लजीला भाई, मुझसे तीन चार साल ही बड़ा, वो आया होगा , खूब चिढ़ाती रगड़ती थी मैं उसे। भाभी ने बोला भी था। और तेजी से डग भरती मैं चन्दा भाभी के घर

दरवाजा खुला था, मैं सीधे अंदर । भाभी किचेन में थी, मैंने पीछे से दबोच लिया और पूछा “स्साला आया है की मारे डर के…”

भाभी खिलखिलाने लगी और बोलीं “यही बात वो भी पूछ रहा था की कहीं मारे डर के…”

“अरे भाभी डरूंगी मैं और वो भी उस स्साले से…”
Awesome,kamuk nd madak 👌👌👌💯 🔥🔥🔥🔥🔥🔥
:applause: :applause: :applause: aur koi word ab yad nhi a raha,bharoti ke do londo ki itni jabardasti jab seh li hai to chunnu ssale ki to kya bisat hai.adbhut update komu sis.
I Love You GIF by megan motown
dear lovely, knowledgeable Komal sis,u really rock in xforum
 

komaalrani

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छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

अपडेट - पेज ५३ पोस्ट ५२५ पोस्टेड

https://exforum.live/threads/छुटकी-होली-दीदी-की-ससुराल-में.77508/page-53


भाग ( ११ )

सासू , ननदिया ( नैना ) का महाजाल
 
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