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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जीजू साली संग होली ( जारी )

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और अब बजाय उँगलियों के एक बार फिर उस लथपथ बुर पर मेरे होठ वैक्यूम क्लीनर से भी मैं तेज चूस रही थी। फिर मैंने कनखियों से देखा नीरज वहां नहीं थे, पर जीजू एकदम पास में।

और अबकी जो ज्योति झड़ी तो झड़ती रही झड़ती रही , झड़ती रही ।



बोलने की ताकत भी नहीं बची थी, मुश्किल से बोल पायी

“ हार मानती हूँ मैं…”


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विजयी मुस्कान से मैंने पास बैठे जीजू की ओर देखा और उन्होंने रिजल्ट अनाउंस कर दिया

“अब जो पहले झड़ा उसकी गाण्ड मारी जायेगी…”

जीजू का खूंटा भी एकदम तन्नाया।


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लेकिन पीछे से तब तक नीरज जीजू आवाज आई

“और जो बाद में झड़ा, उसकी बुर चोदी जायेगी…”

जब तक मैं समझूूँ, कुछ बोलूं ज्योति हट चुकी थी मेरे ऊपर से और नीरज जीजू का खूंटा मेरे अंदर , एक झटके में “उफ़ … ओह्ह् … नहीं …” मैं जोर से चीखी।



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जवाब में नीरज जीजू ने मुझे आलमोस्ट दुहरा कर दिया। मेरी टाँगे उठीं हुयी , उनके कंधे के ऊपर , और अबकी जो निकालकर उन्होंने पूरी ताकत से पेला,

मेरी चीख पहले से भी दूनी तेजी से निकल गई
“ओह्ह् … उह्ह् … नहीं नहीं लगता है जीजू छोड़ो न उईईई…”

स्साली ज्योती, थकी लथपथ थेथर थी लेकिन , फिर भी बोली

“नीरज जीजू, मेरी सहेली जब नहीं बोलती है , तो इसका मतलब होता है हाँ हाँ और कस कर ठेलो , फाड़ डालो मेरी चूत

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और नीरज ने वही किया।

जब उसके मोटे सुपाड़े का धक्का मेरी बच्चेदानी पे लगा, तो बस, मेरी जान नहीं निकली और सब कुछ हो गया.



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“उईईई… ओह्ह् … " अबकी मेरी चीख जरूर घर के बाहर तक गई होगी, और जब मैंने सांस ली तो सबसे पहले ज्योती को गरियाया,

“ बहुत हंस रही है न स्साली, अभी जब दोनों जीजू तेरी गाण्ड फांड़ेंगे न, तो मैं भी ऐसे मजे ले लेकर हँसूँगी …”




पर ज्योती चुप रहने वाली थोड़े थी, बोली



“अरे यार फटने वाली चीज तो फटेगी ही , लेकिन अभी जरा अपनी बचाओ…”

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लेकिन अब मैं बचने बचाने की नहीं सोच रही थी, दर्द तो बहुत हो रहा था , हर धक्के के साथ बस जान निकल जा रही थी लेकिन मजा भी आ रहा था। नीरज का बहुत ही मोटा था। एकदम दरेरते, रगड़ते, रगड़ते घुसता था और स्साले जीजू में ताकत भी बहुत थी, दोनों जुबना को पकड़कर जब वो पेलते थे, तो जान भी निकल जाती थी, मजा भी आता था।

और तभी मेरी निगाह जीजू पर पड़ी, एकदम मेरे सर के पास, और उनका मोटा फनफनाया भूखा सुपाड़ा मेरे पास , बस मेरे रसीले गुलाबी टीनेजर होंठ अपने आप खुल गए, जीजू समझदार थे न उन्होंने कुछ बोला, न मैंने। सिर्फ उन्होंने मेरे रसीले सेक्सी होंठों के बीच अपना सुपाड़ा, सिर्फ सुपाड़ा डाल दिया , और मैं चूसने चुभलाने लगी।

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मेरे दोनों होंठों के बीच मोटे मोटे , मेरे जीजू का , मेरे ऊपर वाले होंठों के बीच

और नीचे वाले भीगे होंठों के बीच नीरज जीजू।



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कुछ देर के लिए नीरज जीजू ने ठेलना रोक दिया , वैसे भी उनका लण्ड जड़ तक मेरी चूत में धंसा था। और मैं मजे से जीजू के लण्ड को चूसने का मजा ले रही थी, और धीरे धीरे आधे से ज्यादा लण्ड मैंने घोंट लिया।
 
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komaalrani

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डबल अटैक -साली एक जीजू दो

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मेरे दोनों होंठों के बीच मोटे मोटे , मेरे जीजू का , मेरे ऊपर वाले होंठों के बीच और नीचे वाले भीगे होंठों के बीच नीरज जीजू।

कुछ देर के लिए नीरज जीजू ने ठेलना रोक दिया , वैसे भी उनका लण्ड जड़ तक मेरी चूत में धंसा था। और मैं मजे से जीजू के लण्ड को चूसने का मजा ले रही थी, और धीरे धीरे आधे से ज्यादा लण्ड मैंने घोंट लिया।


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नीरज जीजू तो रुक गए थे, पर ज्योती छिनार नहीं रुकने वाली थी। पहले तो उसने मेरे ऊपर हमला किया , मेरी क्लिट पर अपनी जीभ की नोक से, और उसके बाद वही जीभ की नोक नीरज जीजू के लंड के बेस पर, सुरसुराती चिढ़ाती ,उकसाती , मेरी भी हालत खराब थी और नीरज जीजू की भी।

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नतीजा वही हुआ जो होना था, मैं भी चूतड़ उठा उठाकर और नीरज भी अब पूरी ताकत से धक्के पर धक्का, हुमच हुमच कर पूरी ताकत से। मैं चुद रही थी चुदा रही थी। और अब जीजू ने धक्के लगाना, मेरे मुूँह में बंद कर दिया था।

पर ज्योती रानी को ये सख्त नागवार गुजरा, और वो अब जीजू के पास। थोड़ी देर जीजू के पीछे बैठकर वो स्साली अपनी किशोर कच्ची अमिया , जीजू के पीठ पर रगड़ती रही , फिर उसके हांथ ने जीजू के लण्ड को पकड़कर हल्के से मेरे मुंह में पुश किया और, कुछ कान में फुसफुसाया।

बस ताबड़तोड़ जीजू ने, धक्के पर धक्के, मेरे मुूँह में, और कुछ देर में जीजू का लण्ड मेरे हलक तक

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और अब दोनों धक्के पूरी ताकत से लग रहे थे, एक का सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी पर चोट करता


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तो दूसरे का मेरे हलक पर, नान स्टाप।


और इस दुहरे हमले का असर , कुछ ही देर में मैं झड़ने लगी, जैसे तूफ़ान में पत्ता कांपे , मेरी देह पर मन पर कोई कंट्रोल मेरा नहीं था , झड़ना रुकता था , फिर दुबारा , जैसे लहर के बाद लहर आये,


पर ज्योती दुष्ट , उसने जब मैं झड़ रही थी अपने अंगूठे से से मेरी क्लिट रगड़नी मसलनी शुरू कर दी, और मैं झड़ती रही , झड़ती रही ।


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न तो नीरज ने न जीजू ने लण्ड बाहर निकाला , दोनों जड़ तक पेले रहे। , हाँ धक्के उन्होंने रोक दिए , पर उन दोनों ने मेरे जोबन बाँट लिए थे और अब हल्के हल्के मसलना रगड़ना शुरू कर दिया।


और नीचे ज्योति तो थी , ही , कमीनी नंबर १ कभी मेरी फैली हुयी , चुद रही चूत की फांको को सहलाने लगती तो कभी झुक के अपनी जीभ से मेरी क्लिट को बस छू लेती।

बस थोड़ी ही देर में मैं, फिर गरम हो गई, और हल्के से मैंने चूतड़ उठाया तो नीरज जीजू के लिए ये सिग्नल बहुत था। अबकी न उन्हें जल्दी थी न मुझे।

हल्के हल्के धक्के, मेरी फैली कच्ची चूत में रगड़ते दरेरते।

मस्ती से मैं गिनगीना रही थी और जवाब में अब हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।उधर जीजू को शायद अहसास हो गया था की उनके मोटे मूसल को चूसते चूसते मेरे गाल दुःख रहे थे। तो उन्होंने अपना लण्ड निकाल और मेरे गालों पर तो कभी मेरी टेनिस बाल्स साइज कच्चे जोबन पर रगड़ने लगे।



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इतना अच्छा लग रहा था बता नहीं सकती।

और जैसे कोई लड़की लालीपाप को ललचाये, जब वो मेरे रसीले होंठों से इंच भर बाहर दूर रखते तो मैं अपनी लपलपाती जीभ निकालकर , उनके सुपाड़े पर मुश्किल से छू भर लेती। और अब ज्योती भी मेरे साथ आ गई थी। हम दोनों मिललार , कभी वो जीजू के सुपाड़े को अपने होंठो के बीच लेकर चूसती चुभलाती तो कभी मैं।


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उधर नीरज ने भी अपने खूंटे को बाहर निकाल लिया था, मुझे कुछ समझ में नहीं आया।



लेकिन थोड़ी देर में सब समझ में आ गया। बस नीरज जीजू ने उठाकर, निहुरा के, एकदम कुतिया ऐसी। पता नहीं क्यों सारे मदों को मुझे कुतिया बनाकर ही चोदने में मजा आता है ।
 
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komaalrani

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कुतिया बनाकर


sixteen-doggy-4.jpg


लेकिन थोड़ी देर में सब समझ में आ गया। बस नीरज जीजू ने उठाकर, निहुरा के, एकदम कुतिया ऐसी। पता नहीं क्यों सारे मदों को मुझे कुतिया बनाकर ही चोदने में मजा आता है ।

सामू को तो इसके बिना , और वो तो कभीऔर वो तो कभी भी कहीं भी, संदीप भी जब तक एक राउंड निहुरा के नहीं चोद लेता था, ... और अब नीरज ने भी।

लेकन नीरज ने एक काम वो किया की मेरी जान निकल निकल गई। पेलने के बाद, वो ठेलता रहा धकेलता रहा , जब तक लण्ड जड़ तक नहीं घुस गया। मेरी दोनों टाँगे खूब उसने फैलवा रखी थी।




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उधर जीजू ने एक बार फिर अपना लण्ड मुझसे चुसवाना शुरू कर दिया ।

मैं मजे ले लेकर आराम से चूस रही थी, तब तक नीरज जीजू ने अपना काम कर दिया । उन्होंने मेरी दोनों फैली टाँगे एकदम चिपका कर अपनी दोनों टांगो के बीच कैंची सी बनाकर फसा ली, और उसका असर मुझे तब मालूम हुआ जो उन्होंने लण्ड थोड़ा सा ही बाहर निकाल कर फिर पुश किया।

उफ़,... मैं चीख भी नहीं सकती थी,


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मुंह में जीजू का लण्ड धंसा था।

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और उसके बाद और उसके बाद तो वो तूफानी चुदाई दोनों ओर से शुरू हुयी मेरी जान नहीं निकली बस। मैं निहुरि हुयी , पीछे से नीरज जीजू चोद रहे थे, जैसे किसी बछिया पे तगड़ा सांड चढ़ाहो । और आगे से अब मैं जीजू का लण्ड नहीं चूस रही थी, वो हचक हचक कर, हलक तक मेरा मुूँह चोद रहे थे।

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देर तक, और मैं भी सब कुछ भूलकर होली में दो दो जीजू का एक साथ मजा ले रही थी।

वो तो ज्योती की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा


“स्साली, तू तो नम्बरी चुदक्कड़ निकली …”

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और जब मैंने ध्यान दिया तो न तो पीछे से नीरज ही मुझे चोद रहे थे और न ही आगे से जीजू। मैं खुद अपने चूतड़ के धक्के लगा लगाकर पूरा लण्ड घोंट रही थी, निकाल रही थी, आगे भी पीछे भी। मेरे कुछ बोलने का सवाल ही नहीं था, मुंह में जीजू का लण्ड भरा था।

पर दोनों जीजू मेरी ओर से बोल पड़े

“आखिर स्साली किसकी है ?”

और अब उन दोनों ने ताबड़तोड़ धक्के, कुछ देर में मैं झड़ने लगी लेकिन अबकी वो दोनों नहीं रुके, दो बार, तीन बार, चार बार, और सबसे पहले नीरज ने मलाई, फिर आलमोस्ट उसी के साथ जीजू ने,

नीरज ने धमकाया
“एक बूूँद भी बाहर गई तो ज्योती के प हले तेरी गाण्ड मारूंगा …”

fucking-cum-tumblr-oprs0p-KWB91sih2smo3-400.gif



और मैंने चूत निचोड़ निचोड़ कर, वो दोनों झड़ते रहे , मैं भी।
एक की मलाई से मेरी चूत बजबजा रही थी ,


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दुसरे की मुंह में भरी थी ,
..


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उसके बाद भी मैं उन दोनों के बीच सैंडविच बनी रही देर तक, और जब मेरी नजर बाहर की ओर गई तो मैं चौंक गई, शाम ढलने को आ गई थी। ज्योति मैंने बोला था, शाम होते होते मैं चली जाउंगी ।

किसी तरह नीरज का सहारा लेकर मैं उठी और बाथरूम जाकर थोड़ा बहुत रंग साफ़ किया , कपड़े पहने लेकिन उसके पहले अपनी दोनों ऊँगली डालकर झुक के, दोनों जीजू की जितनी भी मलाई बुर रानी ने घोंट रखी थी, ऊँगली डाल डालकर, डाल डालकर बाहर निकाला फिर अपनी सूखी रुमाल को दो ऊँगली में अच्छी तरह लपेट के , रुमाल में लपटी ऊँगली अंदर डालकर पोछा।

मैं सुबह की गलती दुहरानी नहीं चाहती थी। जब जुगुनू की दो बार की मलाई मेरी बुर में बजबजा रही थी और बुआ ने जैसे ही मेरी बुर में ऊँगली की, उन्हें सब पता चल गया।


और जब मैं एकदम फ्रेश होकर बाहर निकली तो, नीरज बाथरूम में फ्रेश होने गए थे, और जीजू और ज्योती भी कपड़े पहनकर तैयार । जीजू तो दो बार मेरे ही अंदर झड़ चुके थे, उसके पहले ज्योर्त की भी उन्होंने ली थी। और नीरज भी, तो अब उन दोनों को रिचार्ज होने में थोड़ा समय लगने वाला था।

झुक कर मैंने जीजू और ज्योति को किस किया , और जीजू के कान में बोली


“जीजू, ज्योति स्साली की गाण्ड एक बार मेरी ओर से भी मार लीजियेगा …”


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जब मैं बाहर निकली तो शाम अच्छी तरह ढल चुकी थी, आसमान में पूनो का चाूँद सोने की थाली की तरह निकल आया था। दूर से कहीं से फाग की तो कहीं से जोगीड़े की आवाज आ रही थी। मैं तेज डग भरते हुए घर की ओर चल दी। झुटपुटा सा अँधेरा था, और जल्दी के चक्कर में मैंने पगडण्डी का रास्ता पकड़ लिया।
 
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Black horse

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धक्के पर धक्का ,


जीजू की पिचकारी , साली की होली



और रंगों के साथ गालियां भी नहीं रुक रही थीं थी मेरी, आखिरकार साली थी तो गाली, और वो भी सिर्फ जीजू की माँ को

“मादरचोद, भोंसड़ी के, अपनी माँ के खसम , तेरी माँ को चमरौटी , भरौटी के सारे लौंडों से चुदवाउ , तनी धीरे धक्का मारो न…”




और बजाय धक्के धीरे करने के, अगला धक्का एकदम तूफानी सीधे बच्चेदानी पर साथ में उनकी उँगलियाँ मेरे क्लिट पे, और अब उनसे नहीं रहा गया, तो वो भी मेरी चूची मसलते बोल पड़े

“स्साली, अरे अपनी माूँ की याद आ रही तो मेरी माँ का नाम ले रही है । अरे बहुत मन कर रहा है तुझे अपनी माँ चुदवाने का तो उस छिनार रंडी को भी चोद दूंगा । अरे सास को तो चोदना बनता है , जिस भोसड़े से दूध वालों से चोदवाकर दूध जैसी गोरी गोरी बिटिया पैदा की, उस भोंसड़े में तो…”


जीजू की गाली का असर, क्लिट पर उनकी ऊँगली का असर, जुबना पर उनके होंठो का असर, बच्चेदानी पर लगे मूसल के धक्के का असर, मेरी देह कांपने लगी, मेरी चूत अपने आप सिकुड़ फ़ैल रही थी। और मैंने झड़ना शुरू कर दिया ।

तूफान में पत्ते की तरह मेरी देह काँप रही थी, सुबह से कितनी बार किनारे पर जा जा जाकर रुक गयी थी,... लेकिन अब पूरी देह मन मष्तिस्क सब मथा जा रहा था, इत्ता अच्छा लग रहा था, कभी मन करता जीजू रुक जाएँ बस एक पल के लिए तो कभी मन करता नहीं ऐसे ही रगड़ रगड़ के चोदते रहें,... लेकिन जीजू ने छोड़ा नहीं




हाँ पल भर के लिए उनके धक्के रुक गए थे, पर लण्ड जड़ तक, सीधे मेरी बच्चेदानी तक ठूंसा हुआ , और लण्ड का बेस वो हलके हलके मेरी क्लिट पर रगड़ रहे थे । वो मेरा झड़ना बंद होने का इन्तजार कर रहे थे और उसके बाद तो वो तूफानी चुदाई शुरू हुयी की, हर धक्के पर मेरी चूल चूल हिल रही थी, नंबरी चोदू थे जीजू।



मैं भी रंग और गाली भूलकर जबरदस्त धक्कों का मजा ले रही थी, धक्कों का जवाब दे रही थी। जीजू न मेरी चूची छू रहे थे न क्लिट , सिर्फ धक्के पर धक्का। मैं आँखे बंद करके जीजू की चुदाई का मजा ले रही थी। और अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू ने चुदाई रोकी भी नहीं ।



मुझे लग था जैसे समय रुक गया है , बस मैं हौं और जीजू का मस्त मोटा तगड़ा लण्ड, और मैं चुद रही हूँ चुद रही हूँ । मैं सिसक रही थी तड़प रही थी, मेरी जाँघे फटी जा रही थी, और हल्के ह ल्के मैं भी नीचे से, कभी कभी जीजू के तगड़े धक्कों का जवाब रुक रुक के दे रही थी। पांच मिनट , दस मिनट पता नहीं कब तक , कितनी देर तक जीजू चोदते रहे , मैं चुदती रही, , मेरी आँखे बंद थी।



हाँ अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू भी साथ साथ।

मैं अपनी चूत में उनकी गाढ़ी मलाई म सूस कर ही थी। गिरते हुए बहते हुए , चूत मैंने कसकर भींच लिया था, मैं भी जीजू के लण्ड को निचोड़ रही थी।

बड़ी देर तक म दोनों ऐसे ही एक दूसरे की बाँहों में लथपथ, आँखे मेरी बंद । लग रहा था जीजू एक बार झड़ने के बाद दुबारा फिर मलाई की बार बार फुहार मेरे अंदर छूट रही थी , जीजू की पिचकारी का रंग ख़तम ही नहीं हो रहा था। उसके कुछ थक्के मेरी जाँघों पर भी, बह कर ।




जब जीजू ने अपना निकाला तो बस अभी भी उनकी पिचकारी,... मन कर रहा था , क्या मन कर रहा था ये भी नहीं समझ में आ रहा था।
चल गयी होली पर असली पिचकारी असली जगह पर।
 
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komaalrani

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चल गयी होली पर असली पिचकारी असली जगह पर।
एकदम सही कहा आपने , जीजा साली की होली का असली रंग,...

धन्यवाद आभार
 

pprsprs0

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कुतिया बनाकर


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लेकिन थोड़ी देर में सब समझ में आ गया। बस नीरज जीजू ने उठाकर, निहुरा के, एकदम कुतिया ऐसी। पता नहीं क्यों सारे मदों को मुझे कुतिया बनाकर ही चोदने में मजा आता है ।

सामू को तो इसके बिना , और वो तो कभीऔर वो तो कभी भी कहीं भी, संदीप भी जब तक एक राउंड निहुरा के नहीं चोद लेता था, ... और अब नीरज ने भी।

लेकन नीरज ने एक काम वो किया की मेरी जान निकल निकल गई। पेलने के बाद, वो ठेलता रहा धकेलता रहा , जब तक लण्ड जड़ तक नहीं घुस गया। मेरी दोनों टाँगे खूब उसने फैलवा रखी थी।




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उधर जीजू ने एक बार फिर अपना लण्ड मुझसे चुसवाना शुरू कर दिया ।

मैं मजे ले लेकर आराम से चूस रही थी, तब तक नीरज जीजू ने अपना काम कर दिया । उन्होंने मेरी दोनों फैली टाँगे एकदम चिपका कर अपनी दोनों टांगो के बीच कैंची सी बनाकर फसा ली, और उसका असर मुझे तब मालूम हुआ जो उन्होंने लण्ड थोड़ा सा ही बाहर निकाल कर फिर पुश किया।

उफ़,... मैं चीख भी नहीं सकती थी,


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मुंह में जीजू का लण्ड धंसा था।

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और उसके बाद और उसके बाद तो वो तूफानी चुदाई दोनों ओर से शुरू हुयी मेरी जान नहीं निकली बस। मैं निहुरि हुयी , पीछे से नीरज जीजू चोद रहे थे, जैसे किसी बछिया पे तगड़ा सांड चढ़ाहो । और आगे से अब मैं जीजू का लण्ड नहीं चूस रही थी, वो हचक हचक कर, हलक तक मेरा मुूँह चोद रहे थे।

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देर तक, और मैं भी सब कुछ भूलकर होली में दो दो जीजू का एक साथ मजा ले रही थी।

वो तो ज्योती की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा


“स्साली, तू तो नम्बरी चुदक्कड़ निकली …”

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और जब मैंने ध्यान दिया तो न तो पीछे से नीरज ही मुझे चोद रहे थे और न ही आगे से जीजू। मैं खुद अपने चूतड़ के धक्के लगा लगाकर पूरा लण्ड घोंट रही थी, निकाल रही थी, आगे भी पीछे भी। मेरे कुछ बोलने का सवाल ही नहीं था, मुंह में जीजू का लण्ड भरा था।

पर दोनों जीजू मेरी ओर से बोल पड़े

“आखिर स्साली किसकी है ?”

और अब उन दोनों ने ताबड़तोड़ धक्के, कुछ देर में मैं झड़ने लगी लेकिन अबकी वो दोनों नहीं रुके, दो बार, तीन बार, चार बार, और सबसे पहले नीरज ने मलाई, फिर आलमोस्ट उसी के साथ जीजू ने,

नीरज ने धमकाया
“एक बूूँद भी बाहर गई तो ज्योती के प हले तेरी गाण्ड मारूंगा …”

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और मैंने चूत निचोड़ निचोड़ कर, वो दोनों झड़ते रहे , मैं भी।
एक की मलाई से मेरी चूत बजबजा रही थी ,


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दुसरे की मुंह में भरी थी ,..


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उसके बाद भी मैं उन दोनों के बीच सैंडविच बनी रही देर तक, और जब मेरी नजर बाहर की ओर गई तो मैं चौंक गई, शाम ढलने को आ गई थी। ज्योति मैंने बोला था, शाम होते होते मैं चली जाउंगी ।

किसी तरह नीरज का सहारा लेकर मैं उठी और बाथरूम जाकर थोड़ा बहुत रंग साफ़ किया , कपड़े पहने लेकिन उसके पहले अपनी दोनों ऊँगली डालकर झुक के, दोनों जीजू की जितनी भी मलाई बुर रानी ने घोंट रखी थी, ऊँगली डाल डालकर, डाल डालकर बाहर निकाला फिर अपनी सूखी रुमाल को दो ऊँगली में अच्छी तरह लपेट के , रुमाल में लपटी ऊँगली अंदर डालकर पोछा।

मैं सुबह की गलती दुहरानी नहीं चाहती थी। जब जुगुनू की दो बार की मलाई मेरी बुर में बजबजा रही थी और बुआ ने जैसे ही मेरी बुर में ऊँगली की, उन्हें सब पता चल गया।


और जब मैं एकदम फ्रेश होकर बाहर निकली तो, नीरज बाथरूम में फ्रेश होने गए थे, और जीजू और ज्योती भी कपड़े पहनकर तैयार । जीजू तो दो बार मेरे ही अंदर झड़ चुके थे, उसके पहले ज्योर्त की भी उन्होंने ली थी। और नीरज भी, तो अब उन दोनों को रिचार्ज होने में थोड़ा समय लगने वाला था।

झुक कर मैंने जीजू और ज्योति को किस किया , और जीजू के कान में बोली


“जीजू, ज्योति स्साली की गाण्ड एक बार मेरी ओर से भी मार लीजियेगा …”


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जब मैं बाहर निकली तो शाम अच्छी तरह ढल चुकी थी, आसमान में पूनो का चाूँद सोने की थाली की तरह निकल आया था। दूर से कहीं से फाग की तो कहीं से जोगीड़े की आवाज आ रही थी। मैं तेज डग भरते हुए घर की ओर चल दी। झुटपुटा सा अँधेरा था, और जल्दी के चक्कर में मैंने पगडण्डी का रास्ता पकड़ लिया।
“जीजू, ज्योति स्साली की गाण्ड एक बार मेरी ओर से भी मार लीजियेगा …” dost ho to aisi 🤣🤣🤣🤣🤣
 
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“जीजू, ज्योति स्साली की गाण्ड एक बार मेरी ओर से भी मार लीजियेगा …” dost ho to aisi 🤣🤣🤣🤣🤣
ekdm saheli saheli ka khyaal nahi rakhegi to kaun rakhega, ..kas taur se pichvaade ka
 
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komaalrani

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And will try to post next post today
 
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komaalrani

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I have opened a thread based on national family health survey in lounge please do read and share your views
 
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Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
Supreme
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सहेलियों की कुश्ती


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लेकिन हम दोनों के झगडे में किसी का पिछवाड़ा नहीं बचने वाला था, नीरज जो था, उस चिकने ने थर्ड अम्पायर की तरह फैसला सुना दिया



“तुम दोनों तो बचपन की सहेली हो बचपन से ही चुम्मा चाटी, चुस्सम चुस्साई, रगड़म रगड़ाई, घिसम घिसाई करती होगी , तो बस आज हम दोनों के सामने, और बस जो पहले झड़ेगी, उसकी गाण्ड पहले मारी जायेगी…”

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और जीजू क्यों चुप रहते , उन्होंने थर्ड अम्पायर के फैसले पर एक्सपर्ट कमेंटेटर की तरह अपना कमेंट भी सुना दिया

“मतलब मारी तो दोनों की गाँड़ जायेगी, हाँ जो झड़ेगी पहले उसकी पहले मारी जायेगी, तो बस…”

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और ये मौका मैं गवाना नहीं चाहती थी,


वो खेल सच में मैंने और ज्योती ने कितनी बार खेला था, जब हम दोनों की झांटे भी नहीं आई थी तब से। पर अभी गुलबिया और वो कहारिन भौजी , जो हमारे कुंए से पानी निकालती थी और गाँव के रिश्ते से भौजाई लगती थी, आज होली में जिसने सबसे ज्यादा मेरी रगड़ाई की थी, गुलबिया से भी ज्यादा इस खेल की उस्ताद थी, उसकी रगड़घिस्स से मैंने जो गुन सीखे थे,..

ज्योती को धक्का देकर मैंने गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई। पर ज्योति तगड़ी भी थी और कबड्डी चैम्म्पयन भी। कुछ देर में वो ऊपर, मैं नीचे और हम दोनों 69 की पोज में। कन्या कुश्ती चालू और आज तो, हमारी कोरी कुँवारी गाँड़ दांव पर लगी थी।

ज्योती हर बार इस खेल में मुझसे बीस पड़ती थी, और ऊपर से, आज वो ऊपर भी थी। सड़प सड़प, सड़प सड़प, शुरू से ही चौथे गियर में, लकिन मैंने गुलबबया की सिखाई पढ़ाई, , पहले सीधे सीधे जीभ की नोक से ज्योती की गुलाबो के किनारे किनारे जैसे लाइन खींच कर जीभ से ही दो संतरे की फांको को, दो फांक किया लेकिन जीभ अंदर नहीं घुसायी बस हलके हलके ।


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ज्योती की देह गिनगिनाने लगी, पर मेरी हालत कम खराब नहीं थी, ज्योती की चूत चुसाई मेरी चूत में आग लगा दी थी। मैंने थोड़ी देर तो डिफेन्स बढ़ाया यहाँ वहां ध्यान अपना इधर उधर लगाने की कोशिश की, पर ज्योती की जीभ मेरी चूत में सेंध लगा चुकी थी।

फिर मुझे ध्यान आया आज सुबह की होली का, एक मेरी दीदी गाँव के रिश्ते से, चार पांच साल मुझसे बड़ी, गौने के बाद पहली बार आई थी, ननद पहली बार ससुराल से अपने मायके आये तो बस, वो भी होली में, सारी गाँव की भौजाइयां पिल पड़ीं । लेकिन मेरी वो दीदी सब पर 20 पड़ रही थी। कोई भी उनको झड़ाने में कामयाब नहीं हो रहा था।



फिर वही कहारिन भौजी , बताया तो था जो हमारे कुंवे पे पानी भरती थी, गाली देने और ऐसे वैसे मजाक में गुलबिया से भी चार हाथ आगे, और गाूँव के रिश्ते में भौजी तो थी ही मेरी। उन्होंने दीदी की ऐसी की तैसी कर दी, पांच मिनट के अंदर ऊँगली होंठ , जीभ दांत सब इस्तेमाल किया एक साथ और बस मैंने भी व्ही ट्रिक ज्योति ऊपर। पहले तो फूंक फूंक कर कर हल्के हल्के, फिर तेजी से, उसकी गुलाबी फांको को के ऊपर , फिर दोनों फांको को फैला के अंदर तक । और ज्योति की हालत खराब हो गई।

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पर ये तो शुरुआत थी, उसके बाद मेरी जीभ फांको के ऊपर, कसकर चूसते हुए मेरी उँगलियों ने ज्योति की बुर फैलाई और अब मेरी जीभ अंदर। लेकिन मैं बजाय जीभ से चोदने के ज्योति की बुर के अंदर वो जादू का बटन ढूंढ़ने लगी जो मुझे गुलबिया ने अच्छी तरह सिखाया था, और मिल गया वो बस,



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जीभ की टिप से कभी उस बटन ( जी प्वाइंट ) को मैं रगड़ाती कभी खोदती, कभी सहलाती, मेरी सहेली हाथ पैर पटक रही थी , चूतड़ उछाल रही थी , मुझे हटाने की कोशिश कर रहे थी पर मेरी जीभ , ज्योति की बुर के अंदर उस जादू की बटन को,.. और साथ में मेरी ऊँगली और अंगूठा उसके क्लिट पे,...

पल भर में ज्योति की बुर एक तार की चासनी छोड़ने लगी,

फिर क्या था गोल गोल, गोल गोल मेरी जीभ उसकी बुर में और हर चक्कर पूरा होने के बाद थोड़ी देर उस जादू के बटन को दबा देती रगड़ देती। और ज्योति सिहर उठती, काँप जाती। जब मैंने जीभ बाहर निकाला उसकी लसलसी बुर से तो मेरी दो उँगलियाँ एक साथ, कुहनी के जोर से पूरे अंदर तक और साथ साथ मेरे होंठों ने ज्योति की फूली फुदकती क्लिट को दबोच लिया और लगी चूसने पूरी ताकत से।

दोनों अम्पायर ध्यान से देख रहे थे, कौन हारने वाली है किसकी गाँड़ मारी जायेगी,...

ज्योति की बुर में मेरी अब तीन तीन उँगलियाँ घुसी थीं और इंजन के पिस्टन की तरह उसे चोद रही थीं और होंठ वैक्यूम क्लीनर की तरह मैं अपनी सहेली की क्लिट पूरी ताकत से चूस रही थी.

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अब ज्योति ने हार कबूल कर ली,

बजाय मुझे झड़ाने के चक्कर में पड़ने के वो सिर्फ मजा ले रही थी। कुछ ही देर में वो झड़ने के कगार पर पहुँच गई, और मैंने अपने दांतो से से हल्के से ज्योति की क्लिट काट ली। बस जैसे ज्वालामुखी फूट पड़ा हो , तूफ़ान आ गया हो ज्योति कांप रही थी, सिसक रही थी , झड़ रही थी।

मैंने कनखियों से देखा , नीरज जीजू मेरे होंठ की शैतानी देख रहे थे, खूंटा उनका पूरा कड़क, ऊपर से मुठिया भी रहे थे।

ये बात मैंने कहारिन भौजी से सीखी थी की झड़ने के बाद तो दूनी ताकत से हमला,



और बस मेरी उँगलियाँ क्या कोई लण्ड चोदेगा, सटासट सटासट ,...


आज होली में मैंने एकदम बगल से देखा था, मम्मी कैसे सटासट पहले चार ऊँगली से अपनी ननद की , मेरी बूआ की बुर चोद रही थीं , फिर पूरी मुट्ठी कलाई के जोर से, और बीच बीच में मुझे देख के मुस्करा भी रही थीं , बस उसी तरह कलाई की पूरी ताकत से, जैसे मर्द कमर के जोर से लौंडिया चोदते हैं ।

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और होंठ अब एक बार फिर कुछ रुक के, क्लिट चूसने में लग गए, ज्योति तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी और अबकी दो मिनट में ही,... , जैसे मैंने अपना अंगूठा उसके क्लिट पर लगाया पहले से भी दूनी तेजी से वो झड़ने लगी। झड़ती रही झड़ती रही।

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और अब बजाय उँगलियों के एक बार फिर उस लथपथ बुर पर मेरे होंठ वैक्यूम क्लीनर से भी तेज चूस रहे थी। फिर मैंने कनखियों से देिा, नीरज वहां नहीं थे , पर जीजू एकदम पास में। और अबकी जो ज्योति झड़ी तो झड़ती रही झड़ती रही , झड़ती रही , एकदम थेथर हो गयी, पर मैंने चूसना नहीं रोका।

बोलने की ताकत भी नहीं बची थी, मुश्किल से बोल पायी “हार मानती हूँ मैं…”

विजयी मुस्कान से मैंने पास बैठे जीजू की ओर देखा और उन्होंने स्कोर अनाउंस कर दिया

“अब जो पहले झड़ा उसकी गाण्ड मारी जायेगी…”

जीजू का खूंटा भी एकदम तन्नाया, फन्नाया, बौराया, मोटा सुपाड़ा एकदम खुला , गाँड़ फाड़ने को एकदम तैयार,



पीछे से तब तक नीरज जीजू की आवाज आई “और जो बाद में झड़ा, उसकी बुर चोदी जायेगी…”
Kya baat hai, masti ki intaha hai, sabhi ladkiyan tumse ye khel seekh gyi hongi,dear lovely Komal sis 👌👌👌
:good: sooo nice
 
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