संख्या महत्वपूर्ण है लेकिन संख्या के साथ कई और महत्वपूर्ण पक्ष है , और विशेष रूप से इस फोरम के संबंध में ,
इस फोरम में कहानियों को विधा के अनुसार बांटा गया है और जैसे कोई पाठक हिंदी कहानी तक पहुंचा तो वह अपनी पसंद के अनुसार , इन्सेस्ट, इरोटिका , एडल्ट्री या हॉरर में जा सकता है , अपनी अपनी पंसद, गुजराती थाली, पंजाबी थाली, मारवाड़ी थाली, कांटिनेंटल,...
और वह बटन दबा के अपनी मनपसंद विधा में पहुँच जाता है और वहां भी अनेकानेक कहानियां जिन्हे वो पढता है और उसके आधार व्यूज या विज्ञापन की दुंनिया के हिसाब से आईबॉल्स की संख्या बढ़ती है.
अब जैसे कुश्ती या मुक्केबाजी या वेट लिफ्टिंग में तरह तरह कैटगरी होती हैं , बेंटमवेट, हैवी वेट इत्यादि और एक कैटगरी का मुकबला दूसरी कैटगरी से नहीं कर सकते,
तो इस फोरम में जैसे हम हॉरर की विधा लें तो कुछ ही कहानियां है जीके व्यूज ५०, हजार पार कर चुके हैं, और एक दो कहानियां ही जिन्होंने एक लाख व्यूज पार किये हैं तो अगर कोई हॉरर की विधा में लिखता है और उसके व्यूज एक लाख पार कर जाते हैं या उसके आस पास भी मंडरा रहे हैं तो मेरे लेखे वो कहानी बहुत पॉपुलर है,...
पर अगर हम इरोटिका की श्रेणी में जाएँ तो, ऐसी तीन कहानियां जिनके व्यूज एक मिलियन पार कर चुके हैं और उसमें सबसे ज्यादा व्यूज मोहे रंग दे के हैं जो कहानी कब की पूरी हो चुकी है , पर मैं उसे हॉरर की एक लाख व्यूज की कहानियों के समकक्ष ही मानूंगी, ...
तो मेरे लेखे , विधा और लिपि , का भी व्यूज से गहरा संबंध है ,
पर हर उस व्यक्ति की तरह जिसने कलम पकड़ी है , लालच और लालसा तो होती है , गोस्वामी जी ने कहा है ,
निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥
(भावार्थ-रसीली हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती? किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत् में बहुत नहीं हैं॥)
इसलिए में सबसे ज्यादा क्रेडिट आप जैसे रसिक,सुहृदय, मित्रों पाठको को देती हूँ जो इन कहानियों को याद रखते हैं , सराहते हैं और तमाम दोषों के बावजूद , हिम्मत बढ़ाते हैं,...