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जोरू का गुलाम भाग २४२, 'कीड़े' और 'कीड़े पकड़ने की मशीन, पृष्ठ १४९१
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कमाल की नहीं आपकी हीं मम्मी हैं...नहीं, नहीं कमाल की नहीं,
मेरी मम्मी हैं , सिर्फ मेरी,... मैं उनकी एकलौती बेटी हूँ,
और ये कमाल कहाँ से आगया , आपने तो एक सस्पेंस खड़ा कर दिया , कमाल की माँ का नाम तो जैबुनीसा है,.. पूछना पड़ेगा
मैंने इस दृष्टि से विश्लेष्ण नहीं किया था...संख्या महत्वपूर्ण है लेकिन संख्या के साथ कई और महत्वपूर्ण पक्ष है , और विशेष रूप से इस फोरम के संबंध में ,
इस फोरम में कहानियों को विधा के अनुसार बांटा गया है और जैसे कोई पाठक हिंदी कहानी तक पहुंचा तो वह अपनी पसंद के अनुसार , इन्सेस्ट, इरोटिका , एडल्ट्री या हॉरर में जा सकता है , अपनी अपनी पंसद, गुजराती थाली, पंजाबी थाली, मारवाड़ी थाली, कांटिनेंटल,...
और वह बटन दबा के अपनी मनपसंद विधा में पहुँच जाता है और वहां भी अनेकानेक कहानियां जिन्हे वो पढता है और उसके आधार व्यूज या विज्ञापन की दुंनिया के हिसाब से आईबॉल्स की संख्या बढ़ती है.
अब जैसे कुश्ती या मुक्केबाजी या वेट लिफ्टिंग में तरह तरह कैटगरी होती हैं , बेंटमवेट, हैवी वेट इत्यादि और एक कैटगरी का मुकबला दूसरी कैटगरी से नहीं कर सकते,
तो इस फोरम में जैसे हम हॉरर की विधा लें तो कुछ ही कहानियां है जीके व्यूज ५०, हजार पार कर चुके हैं, और एक दो कहानियां ही जिन्होंने एक लाख व्यूज पार किये हैं तो अगर कोई हॉरर की विधा में लिखता है और उसके व्यूज एक लाख पार कर जाते हैं या उसके आस पास भी मंडरा रहे हैं तो मेरे लेखे वो कहानी बहुत पॉपुलर है,...
पर अगर हम इरोटिका की श्रेणी में जाएँ तो, ऐसी तीन कहानियां जिनके व्यूज एक मिलियन पार कर चुके हैं और उसमें सबसे ज्यादा व्यूज मोहे रंग दे के हैं जो कहानी कब की पूरी हो चुकी है , पर मैं उसे हॉरर की एक लाख व्यूज की कहानियों के समकक्ष ही मानूंगी, ...
तो मेरे लेखे , विधा और लिपि , का भी व्यूज से गहरा संबंध है ,
पर हर उस व्यक्ति की तरह जिसने कलम पकड़ी है , लालच और लालसा तो होती है , गोस्वामी जी ने कहा है ,
निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥
(भावार्थ-रसीली हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती? किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत् में बहुत नहीं हैं॥)
इसलिए में सबसे ज्यादा क्रेडिट आप जैसे रसिक,सुहृदय, मित्रों पाठको को देती हूँ जो इन कहानियों को याद रखते हैं , सराहते हैं और तमाम दोषों के बावजूद , हिम्मत बढ़ाते हैं,...
अरे माँ की तो बर्थ कंट्रोल है....Good jab bhen gabhin ho jayegi uske baad maa ka no aayega. Nice apdate
फिल्म इंडस्ट्री में कुंवारी माँ भी बनी हैं....Bahujan hitaye bahujan sukhaye ka naara sahi diya hai lekin jab gabhi ho jaye gi to kuwari ladki bacha kis ke naam ka Jane gi .
Ans each time you mesmerizes us.....yes and there also are two versions, one shortened and one slightly longer, every time i post it, it remains the same but changes, reminding me of Greek Philosopher, Heraclitus,
" You can't step into the same river, twice. "
अब ये मूसल .. ये खंभा...एकदम सही कहा आपने, आखिर पहले प्यार की, बचपन के माल के साथ होगी और अब तो उनकी भी शरम झिझक कम हो गयी है और ' वो ' भी गीता के पहलौठी के दूध की मालिश करवा करवा के मोटा मूसल हो गया है , लोहे का खम्भा भी,...
आखिर ऑर्गेनिक का जमाना है...एवमस्तु
इसलिए तो पिछवाड़े के लिए कमल जीजू का नाम तय किया है, उसके पहले ननद रानी के पिछवाड़े सींक भी नहीं घुसेगी, ऊँगली तो छोड़ दीजिये, और जो शर्त अगवाड़े के लिए थी वही पिछवाड़े के लिए भी, एकदम सूखी सिर्फ आर्गेनिक, .... थूक,..लार तो कित्ते लौंडे उसकी गली के टपका रहे थे मटकते पिछवाड़े को देख के,
Yes .. this is erotica with theme.Thanks so much, ...yes Phagun ke Din char has almost all emotions and most important of it was tragedy, the first time i saw people posting on my thread, saying, ' aaj aapne rula diya"
It has global dimensions and very detailed descriptions of possible attacks with details of Mumbai, Varanasi and Vadodara , esp. the first two. End was particularly poignant.
But apart from that my short stories like almost forgotten, autumn sonata about a middle aged person, or little red riding hood, a very short story based on famous story with a lez dom play, .... and even one English story which is in this forum,... but Joru ka Gullam and Phagun ke din char both have staggering size.
औरो के मुकाबले ज्यादा पोस्ट हीं होते हैं...Next post today, longer, bigger
सैंया का ख्याल रखना तो सजनी का कर्तव्य है....बेचारी जिस कच्ची कुँवारी कोरी बिल को अपने संदीप भैया को देना चाहती थी वो मेरे सैंया के द्वारा फाड़ी जा रही होगी,... लेकिन क्या करूँ, मेरे सैंया का उस पे बचपन से ही दिल आया था, तो सजनी का काम है साजन के मन की बात पूरी करना,... और मन मेरा भी था की ननदिया को किसी तरह पटा के अपने पास ले आऊं , उसके बाद तो उसके साथ हो होगा
वो सिर्फ मैं तय करूंगीं, या इनकी सास