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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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1०० वां भाग

छुटकी -होली दीदी की ससुराल में का १०० वां भाग पोस्टेड, पृष्ठ १०३५


भाग १०० - ननद की बिदायी

कृपया पढ़ें और अपने कमेंट जरूर दें
 
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komaalrani

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Guddi ke joban to bhai ke haath ka hi intejaar kar rahe hai.
jald hi khatam hoga intezaar, aaayi hi hai vo JOBANA LOOTAVANE thanks so much aap ke rasile aur ekdam satik comments ke liye
 
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komaalrani

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Bhaiya kinare aur bhabhi suru ho gai . Mast
ekdm main us ham dono ke maje ke liey le aayi hun
 
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komaalrani

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komaalrani

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Kaas wo bhaiya Mai hotA
Thanks so much update bahoot jldi aayega bas aap isi thar himmat bahdate rhaiye
 
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komaalrani

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अप्रतिम... अति-सुंदर....
Beauty lies in the eyes of the beholder,

Shakespeare in Love’s Labor Lost:

“Beauty is bought by judgement of the eye,


Not utter'd by base sale of chapmen's tongues”

Benjamin Franklin in Poor Richard's Almanack,

“Beauty, like supreme dominion
Is but supported by opinion”


so credit goes to your eyes, your mind and aesthetic sense otherwise these words penned in Mohe Rang de long back, remained unappreciated, not even acknowledged,....

This post was printed on 7th March, 2021,...and it triggers a discussion on 'convergence', convergence of technologies starting from fire and wheel to AI and Big Data,... in that post and some dystopian apprehensions
 
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komaalrani

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ऐसा लगता है कि आपके लिखे को बार-बार पढ़ते रहें.....
ऐसा शमां बना देती हैं.....
अब मैं क्या कहूं, आप मुझे निशब्द कर देते हैं,
 
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raniaayush

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एकदम,


और इस का प्रयोग इस कहानी में हो चुका है, एक बड़ी क्रिटिकल जगह पर जहाँ से कहानी में बाज़ी पलटी,

बाज़ी मेरे हाथ में आगयी और इनकी मायकेवालियों को पता चल गया कि,

मेरा साजन सिर्फ मेरा है और वो बहुत बदल चुका है,

थोड़े से पन्ने पलटिये, पेज १२५, पूरा पढ़ डालिये, पसंद आये तो लाइक भी करिये।

उसी में पोस्ट १२४२ और उसके पहले १२४२,

चलिए लिंक भी दे देती हूँ और कुछ हिस्से फिर से दुहरा देती हूँ , लेकिन पेज १२५ पढ़िएगा जरूर,...



" हम तीनो,मैं, गुड्डी और मेरी जेठानी कान पारे सुन रहे थे ,इन्तजार कर रहे थे।


और उनके बोल फूटे , झटपट जैसे जल्दी से अपनी बात ख़तम करने के चक्कर में हों।

" गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न। "

जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा हो सबको ,सब लोग एकदम पत्त्थर।

गुड्डी के तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था

मेरी जेठानी भी एकदम ,

मैंने बात सम्हालने की कोशिश की ,

" अरे गुड्डी चूत मतलब , ये तेरी दोनों जांघो के बीच वाली चीज , नीचे वाले मखमली कोरे होंठ नहीं मांग रहे है ,

बल्कि ऊपर के होंठ के बीच में फंसी सिंदूरी रसीली फांक मांग रहे हैं। अरे आम को चूत ही तो कहते हैं संस्कृत में। रसाल ,मधुर और होता भी तो है वैसे ही चिकना , रसीला। चाटने चूसने में दोनों ही मजा है , हैं न यही बात। "

उन्होंने सर हिला के हामी भरी , जेठानी मेरी एक नम्बरी क्यों मौक़ा छोड़तीं ,बोली ,

" अरे मान लो गुड्डी से नीचे वाला होंठ मांग ही लिया तो क्या बुरा किया , अरे दे देगी ये समझा क्या है अपनी ननद को। घिस थोड़ी जायेगी "

माहौल एक बार फिर हलका हो गया था। मैंने भी मजा लेते हुए कहा ,

" अरे घिस नहीं जायेगी , फट जाएगी इनके मूसल से "

हँसते हुए मैं बोली।



" तो क्या हुआ ,अरे कोई न कोई तो फाड़ेगा ही ,अपने प्यारे प्यारे भैय्या से ही फड़वा लेगी। "

जेठानी जी ने भी अपनी छुटकी ननद को और रगड़ा।

" और क्या ,फिर ये तो कहती ही हैं , मेरे भय्या कुछ भी ,कुछ भी मांगे मैं मना नहीं करुँगी , लेकिन अभी तो जो वो मांग रहे है वो तो दे दो न बिचारे को "

और चारा भी क्या था बिचारी के पास।

अपने रस से भीगे होंठों के बीच दबे खूब चूसी हुयी फांक को गुड्डी ने निकाल के जैसे ही उनकी ओर बढ़ाया ,

उनका एक हाथ वैसे भी गुड्डी के कंधे पर ही था , बस एकदम सटे चिपके बैठे थे वो ,बस दूसरे हाथ ने झपट कर उस गुड्डी की खायी ,चूसी,चुभलाई आम की फांक को सीधे वो उन होंठों के बीच।

और अब वो उस फांक को वैसे ही चूस रहे ,चाट रहे थे, चख रहे थे जैसे थोड़ी देर पहले उनके बाएं बैठी वो एलवल वाली मजे से चूस रही थी।



....
आपके शब्द भंडार की कल्पना भी नहीं कि जा सकती....एक दम लबालब भर हुवा है....
मुझे अचानक ही इस शब्द के दर्शन हो गए।
आपका आभार।
 

komaalrani

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मोहे रंग दे ने 1. २ मिलियन व्यूज पार कर लिया है जो ' इरोटिका ' कैटगरी में सबसे अधिक है ,


पहली बार उस कैटगरी में किसी थ्रेड ने 1. २ मिलियन व्यूज की संख्या पार की है और यह मेरे मित्रों के स्नेह का परिणाम है ,

आप सब को धन्यवाद,...

यह कहानी एकदम अलग है सेंसुअस, नव दम्पति की छेड़ छाड़ से भरी, रोमांस, शरारतों, और चुहुल के साथ लोकगीत,
 

komaalrani

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मोहे रंग दे ,
मोहे रंग दे ,

रंग की यह कहानी साजन के रंग में सजनी के रंगने की है ,

सजनी के रंग में साजन के रंगने की है ,
मन और तन दोनों रंगने की है ,

नेह के रंग की , देह के रंग की ,... एक ऐसी कहानी जो सिर्फ इस देस में हो सकती है ,



वो रंग जो चढ़ता है सिर्फ उतरता नहीं

जो पद्माकर ने कहा था


एरी! मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सोँ,

कढिगो अबीर पै अहीर को कढै नहीँ ।

वो रंग जो कभी उतरता नहीं

जो खुसरो ने कहा ,




आज रंग है री मां रंग है री , मेरे महबूब के घर आज रंग है री

मोरे ख्वाजा के घर रंग है री ,



अबकी बहार चुनर मोरी रंग दे ,... रखिये लाज हमारी
आज रंग है री मां रंग है री , मेरे महबूब के घर आज रंग है री


.....

खुसरो रैन सुहाग की जागी पी के संग ,

तन मोरा मन प्रीतम का , दोनों एक ही रंग ,...

कैसे चढ़ा प्रीतम का रंग प्यारी के ऊपर ,


कैसे छाया , मन भाया प्यारी का रंग प्रीतम को ,...



एक थोड़ी सी अलग कहानी ,..

मोहे रंग बसंती रंग दे ख्वाजा जी ,... मोहे अपने ही रंग में रंग ले ,...


जो तू मांगे रंग की रंगाई , जो तू मांगे रंग की रंगाई ,...

मोरा जोबन गिरवी रख ले ,...




...............




तो अगर जिस ने ' मोहे रंग दे' नहीं पढ़ी है, या आद्योपांत नहीं पढ़ी,... बीच बीच में से पढ़ी है, या आधी पढ़ के छोड़ दी है


अगर आप को इस फोरम में ' कहानी' की तलाश है, ...

अगर आप को इंस्टैंट फ़ूड की जगह धीमी आंच में पके खाने का ज़ायका अच्छा लगता है,...

तो

जाड़े की गुनगुनी, भाभी की चिकोटियां की तरह नरम गरम धूप में,... लम्बी रातों में

इसे ट्राई करें,... लिंक मैंने दे ही दिया है,...
 
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