इसके कारण कई हैं
पहला कारण तो यही है कई लोगों ने इसे पढ़ रखा होगा या पूरा नहीं भी पढ़ा होगा तो कुछ पोस्टें या किसी अन्य फोरम में देख के उन्हें लगता होगा की अरे ये तो पढ़ी है,...
दूसरी बात जब मैंने ये कहानी यहां फिर से पोस्ट करनी शुरू की तो ढेर सारे लोगों ने कहा की नहीं जहाँ से यह अधूरी रह गयी थी , पिछले फोरम के बंद होने के कारण से बस वहीँ से शुरू करूं, पर कुछ लोगों ने साथ भी दिया।
तीसरी बात न सिर्फ इस फोरम में बल्कि कई ग्रुप्स में पी डी ऍफ़ वर्शन इस कहानी का है ,... इसलिए भी,...
और शायद लेकिन उनकी संख्या नगण्य सी ही होगी, जो अक्सर अपने को कहानी के पुरुष कैरेक्टर से आडेंटीफाई करते हैं और नायिका की भूमिका बस सहायक सी होती है, मौके मौके पे आके शोभा बढ़ाने वाली, ... वो भी शायद,
लेकिन मूल कारण पहले तीन ही थे ,
लेकिन मुझे लगा की बीच से कहानी शुरू करने का मतलब नहीं है,... पढ़ने वाले कहाँ से सूत्र पकड़ेंगे और कई तो नए पाठक भी नए फोरम में होंगे, फिर पी डी ऍफ़ में चित्र नहीं होते न पाठक पाठिकाओं से संवाद होता है , इसलिए हिम्मत कर के मैंने कहानी शुरू कर दी,... और आप ऐसे मित्रों का स्नेहिल साथ मिला, शुभाकांक्षा मिली तो कहानी अभी करीब आधे से ज्यादा पूरी हो चुकी है, विघ्न बाधाएं भी पड़ीं,
कोरोना की महामारी के दौरान मेरी भी इच्छा नहीं हो रही थी पोस्ट्स करने की,
फिर कुछ खलजन भी आये जिनकी वंदना गोस्वामी जी ने भी की थी
बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥
पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥1॥
( अब मैं सच्चे भाव से दुष्टों को प्रणाम करता हूँ, जो बिना ही प्रयोजन, अपना हित करने वाले के भी प्रतिकूल आचरण करते हैं। दूसरों के हित की हानि ही जिनकी दृष्टि में लाभ है, जिनको दूसरों के उजड़ने में हर्ष और बसने में विषाद होता है॥)
खल का काम ही खलल डालना है,... तो महीने भर से ऊपर कहानी रुकी रही , अब लेकिन आप सब का साथ, कहानी का पहला हिस्सा समाप्त हो गया , १५० भाग से ज्यादा ,... और पूरी होने तक तो व्यूज निश्चित रूप से १. ५ मिलियन हो जायँगे जो एरोटिक विधा में सर्वोपरि होंगे ,
पर मेरे लेखे व्यूज से ज्यादा महत्वपूर्ण है सुख मित्रों के हृदय में उपजे पढ़ते समय और इस कसौटी पे मेरे ख्याल से यही कहानी किसी से १९ नहीं है।