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जोरू का गुलाम भाग २३८ पृष्ठ १४५०
वार -१ शेयर मार्केट में मारकाट
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कोमल जी ,
निहारिका का प्यार भरा नमस्कार
कहानी पढ़ते हुए क्या कातिलाना हुस्न दिखा दिया .... और यह साड़ी इसपर तो दिल आ गया कसम से ..... इसको पेहेंन कर .... उनको तडपना उफ़ कितना मजा आएगा ......
औरत के जिस्म का मजा साडी मैं ही आता हैं .... साडी को धीरे धीरे खोल कर .... इसमें मेरी उत्तेजना बढ़ जाती हैं और मेरी नीचे वाली टपकने लगती हैं ....
कोमल जी . आप कमाल ही
आपकी निहारिका
mst reply my msg inbox plsमस्ती साजन संग
और फिर निपल उनके प्यासे होंठों पे।
…………………
जब तक मुंह खोल के वो उसे गपुच करते,
शरारती मैं ,
मैंने उन्हें दूर हटा लिया।
सच में उन्हें तड़पाना मुझे बहुत अच्छा लगता है।
वो पूरी तरह अब मेरे अंदर थे ,
मेरी गुलाबी परी हलके हलके उन्हें भींच रही थी ,रगड़ रही थी ,निचोड़ रही थी।
और कुछ देर में मैंने धक्के की रफ़्तार बढ़ा दी ,
नीचे से वो भी अपने नितम्ब उठा उठा के ,
उनकी कलाइयां अब आजाद थीं और मेरी पतली कमर उनके हाथों में ,
मैं पुश करती थी ,पूरी ताकत से और वो अपने मजबूत हाथों से पुल करते ,
सटासट ,गपागप ,हचक हचक के उनका खूब मोटा खूंटा मेरी सहेली के अदंर बाहर ,
पर कुछ पलों के बाद ,शायद उनको अहसान हो गया था ,मैं रात भर की जगी थकी
और वो ऊपर आ गए थे ,मैं नीचे।
और कुछ देर में ही मैंने सरेडंर कर दिया , जो मजा जितने में है उससे ज्यादा सरेंडर में।
अब मैं सिर्फ मजे ले रही थे और वो , मजे दे रहे थे।
मेरी देह के बारे में मुझसे ज्यादा अब उन्हें मालुम था।
जैसे कोई आटा गुंथे , मेरे दोनों जोबन गूंथे जा रहे थे। दर्द भी हो रहा था और मजा भी आ रहा।
उनका मोटा खूंटा रगड़ रगड़ के , हचक हचक के मेरी चूत फाड़ता हुआ घुस रहा था।
उनके होंठ कभी मेरे गालों को रगड़ते ,चूमते चाट लेते ,कचकचा के काट लेते।
दर्द तो बहुत होता पर प्यार के ये निशान ( इन्हें देख के चिढाने का कोई मौका मेरी सहेलियां नहीं छोड़ती थीं ) ,
मजा भी बहुत था इनमे।
गालों के निशान से कौन इनका मन भरने वाला था ,जब तक दांत के निशान मेरे उरोजों पर न पड़े।
न इन्हें कोई फर्क पड़ रहा था न मुझे की इस समय दिन के दस बज रहे थे ,
और पति पत्नी होने का यही तो फर्क है
जब मिंया बीबी राजी तो क्या करेगा ,
न मुझे जल्दी थी न इन्हें ,
बाहर से सावन की मीठी मीठी हवा अंदर आ रही थी और सावन के झूले के झोंके से हम दोनों धीमे धीमे पेंगे लगा रहे थे।
जब जड़ तक ' वो ' दुष्ट घुसता ,उसका बेस मेरी गुलाबी क्लीट को रगड़ देता ,मैं गिनगिना उठती ,
जोर से उन्हें भींच लेती,अपने कड़े कड़े उभार उनके सीने पे मस्सल देती।
और बदले में आलमोस्ट बाहर तक निकाल के जड़ तक एक बार वो फिर पेल देते ,
मेरे तीखे नाख़ून उनकी पीठ पर उनके शोल्डर ब्लेड्स को खरोंच खरोंच कर कहते ' और और "
और , और उन्होंने मेरी लंबी टांगो को उठा के अपने कंधो पर रख लिया ,एक हाथ उनका मेरे गोल गदराये नितम्ब पर और दूसरा कटीली कमरिया पर ,
फिर तो एकदम वो अपने असली रूप में ,
धक्के पर धक्का ,हर धक्का तूफानी धक्का ,सीधे मेरी बच्चेदानी पर ,
कभी मैं चीख उठती तो कभी सिहर उठती ,कभी दर्द से कभी मजे से,
उन के दोनों हाथ मेरे गदराये जोबन पे , और हर धक्का पहले से दूनी ताकत से ,
यही तो मैं चाहती थी।
और अब मैं कभी नीचे से चूतड़ उठा उठा के तो कभी लन्ड अपनी बुर में निचोड़ के , साथ दे रही थी।
और तभी कुछ खड खड़ की आवाज हुयी ,लेकिन बिना हटे उन्होंने जोर से मुझे दबोच लिया और पूरे घुसे खूंटे को जोर जोर अदंर गोल गोल घुमाने लगे।
कुछ ही देर में फिर आवाज हुयी , किचेन से , लगता है मम्मी जग गयी थीं और किचेन में थी।
मैं कुछ बोल पाती उसके पहले लन्ड उन्होंने ऑलमोस्ट बाहर निकाल लिया और जोर से ,हचक के , सीधे मेरी बच्चेदानी पे ,
मेरी चीख निकल गयी और उन्होंने कचकचा के मेरी गोल गोल चूंची जोर से काट ली ,
उईईईईई आह्ह्ह्ह
हे तुम लोग भी काफी पियोगे , किचेन से मम्मी की आवाज आयी।
चीख किसी तरह रोकती मैं बोली ,
" हाँ मम्मी ,बस थोड़ी देर में हम दोनों बाहर आ रहे हैं। "
और फिर तो धक्का पेल चुदाई ,
न मुझे फर्क पड़ रहा था न इन्हें ,कि मम्मी जग गयी है , हमारे बेड रूम से सटे किचेन में हैं।
पांच मिनट तक रगड़ रगड़ उन्होंने ऐसा चोदा , मैं पहले झड़ी और साथ में फिर ये भी।
किसी तरह मैं पलंग से उठी ,कपडे समेटे ,ठीक किये और इन्हें भी उठाया ,
" चल न मम्मी बाहर काफी बना के वेट कर रही होंगी। "
बहन की बूरिया का बहुत ही खूबसूरत वर्णन है।बहन की बुरिया
और फिर वो वापस आ गए ,गीता की आवाज ,
" भैय्या कैसा लगा बहन का खजाना। "
एकदम संतरे की रस भरी फांके , दोनों गुलाबी मखमली जाँघों के बीच चिपकी दबी।
लग रहा था बस रस अब छलका , तब छलका।
बहुत छोटी सी दरार , दोनों ओर खूब मांसल गद्देदार वो प्रेम केद्वार और चारो और ,काली नहीं
भूरी भूरी छोटी छोटी झांटे केसर क्यारी ऐसे जैसे किसी ने सजाने के लिए लगाई हो ,
जैसे उस प्रेम गली के बाहर वंदनवार हों ,
और अब गीता ने झुक के उनके चेहरे के एकदम पास , वो सिर्फ देख ही नहीं पा रहे थे ,बल्कि सूंघ भी सकते थे , ज़रा सा चेहरा उठा के चख भी सकते थे।
और उन्होंने जैसे ही चेहरा उठाने की कोशिश की , गीता ने प्यार से झिड़क दिया अपने दोनों हाथों से उन्हें वापस उसी जगह ,
" नहीं नहीं भैया सिर्फ देखो न अपनी बहना का खजाना ,बोल न भैय्या कैसे है। "
और वो ,... उनके होंठ प्यासे होंठ तड़प रहे थे।
बस लार टपका रहे थे ,किसी तरह अपने को रोक पा रहे थे।
"बहुत मस्त कितना रस है , क्या खूश्बु ,"
और जोर से उन्होंने गहरी सांस लेकर उस महक का मजा लेने की कोशिश की।
गीता की लंबी लंबी उंगलिया , उन मांसल भगोष्ठ को रगड़ रही थी मसल रही थी।
वो लम्बी गोरी पतली किशोर उँगलियाँ अपने बीच दबाकर अब कभी हलके तो कभी जोर से चूत की दोनों फांकों को,
रस की एक बूँद छलक आयी।
गीता ने उस खजाने को थोड़ा और उसके चेहरे के पास कर दिया , बस वो जीभ निकाल कर चाट सकते थे।
और और
और गीता ने उन्ही रस से गीली उँगलियों से अपने दोनों गुलाबी निचले होंठों को पूरी ताकत से फैलाया और अब,
अंदर की गुलाबी प्रेम गली , एकदम साफ़ साफ़ दिख रही थी।
गीता ने अपना अंगूठा अब उभरे मस्ताए साफ़ साफ़ दिख रहे कड़े क्लीट पर रखा
और उन्हें दिखा के हलके हलके रगड़ने लगी ,
साथ में वो अब सिसक रही थी ,मस्त हो रही थी ,
ओह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह इहह्ह्ह्ह ओह्ह्ह
रस की ढेर सारी बूंदे उसकी सहेली के बाहर चुहचुहा आयी थीं।
बहुत मुश्किल हो रहा था उनको अपने को रोकना ,
उनकी निगाहें बस गीता की रसीली बुर से चिपकी थीं।
और गीता ने हलके हलके अपनी तर्जनी की टिप ,सिर्फ टिप अंदर घुसेड़ी और जोर की चीख भरी।
कुछ देर तक वो ऊँगली की टिप हलके हलके गोल गोल घुमाती रही और जब ऊँगली बाहर निकली तो उसकी टिप रस से चमक रही थी।
उनके प्यासे दहकते होंठों पर वो ऊँगली आके टिक गयी और सब रस लथेड़ दिया।
उनकी जीभ ने बाहर निकल कर सब कुछ चाट लिया ,
" बहुत मन कर रहा है भैया लो चाट लो "
वो हंस के बोली
और खुद ही झुक के उसने अपनी बुर , उनके होंठों पर रगड़ दी।
और वो कौन होते थे अपनी प्यारी प्यारी बहना को मना करने वाले।
हलके से पहले उनकी जीभ की नोक ने गीता की बुर पर चुहचुहाती रस की बूंदो को चाट लिया , फिर जोर से सपड़ सपड़ , ऊपर से नीचे तक
कुछ ही देर में वो संतरे की रसीली फांके उनके होंठों के बीच थी और वो कस कस के चूस चुभला रहे थे।
गीता की उत्तेजित क्लीट इनके नाक के पास थी लेकिन वो थोड़ा सा सरकी और सीधे होंठ पे ,
फिर क्या ,उनके होंठ ये दावत कैसे छोड़ देते। जोर जोर से कभी जीभ से उसकी भगनासा सहलाते तो कभी चूस लेते।
" हाँ भैया ,हाँ ... मजा आ रहा है न बहन की बुरिया चूसने में ,चूस और चूस। ओह्ह इहह्ह आहहहह उह्ह्ह "
गीता सिसक रही थी ,चूतड़ पटक रही थी।
लेकिन कुछ देर में बोली ,
" भैय्या तू अपनी बहन के बुर का मजा लो तो ज़रा हमहुँ अपने भैय्या के मस्त लन्ड का मजा ले लें , इतना मस्त गन्ना है ,बिना चूसे थोड़ी छोडूंगी। "