आधा तीहा तो पाठकों को भी स्वीकार नहीं होगा...ekdam aadhe tihe men maja nahi aata
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पर कमेंट सुपर-डुपर से भी ऊपर हैं....Jkg 172
Awesome, super duper gazab sexy
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चौतीस दिन में ३४x४=१३६ आसन ..अरे लगता है आपनसे गुड्डी का जोड़ घटाना मिस हो गया, बताया तो था उसने
" हाईस्कूल में मैथ्स में उसके १०० में १०० नंबर थे , झट से जोड़ दिया उस शोख ने , और वो भी अपने भइया की ओर मुखातिब होकर ,
" भइया ,जब आप आये थे न अबकी , तो बस उसके ठीक दो दिन पहले आंटी जी की टाटा बाई बाई हुयी थी। हफ्ते भर थे आप लोग , और आज मुझे आये दूसरा दिन है , तो सात , दो और दो , कुल ग्यारह दिन पहले ,... ख़तम हुयी थी। मेरी अट्ठाइस दिन की साइकिल है एकदम कैलेण्डर देख कर , ... तो १७ दिन बाद , फिर वो पांच दिन ,.. "
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तो इसका मतलब सत्रह दिन और उसके बाद पांच दिन की छुट्टी यानि २२ दिन और गर्भाधान की सबसे ज्यादा संभावना पांच दिन की छुट्टी ख़त्म होने के दस बारह दिन बाद ही होती है तो वो भी जोड़ लिया यानी ३४ दिन, तो पूरे एक महीने और ३ दिन बाद की साइत है
लेकिन असली चैलेन्ज है तबतक वो कहीं किसी और से न गाभिन हो जाये, तो बस उसे बचा के सीधे उसके भैया से,... तो उसकी भी जुगत लगाई जायेगी , अभी ३४ दिन का टाइम है ३४ दिन में देखिये क्या क्या होता है।
और यही ख़ास बात.. आपकी कहानी को निराला बना देता है...yahi to khaas bat hai
हमारे धन्य भाग...Yes
you both are my loveliest sisters. Love you both
शब्दों का चयन .. लयबद्धता... शैली और भाषा पर पकड़ आपकी लाजवाब है...मैं रतिक्रीड़ा की प्रतिक्षा में
अपने कुंडल व श्यामवर्ण केशों
को खोलकर
उर्वशी की भांति अपने शयनकक्ष की
शैय्या पर अधलेटी हूँ।
मेरे उभरे हुए उन्मुक्त नितंब
तेरे सुमधुर स्पर्श की प्रतिक्षा में
साड़ी की चिलमन से बाहर आने को
लालायित है।
मेरी देह की मांशलता तेरे रस
से सरोबार हो जाना चाहती है
और बस उस स्निग्ध रस की
वैतरणी में मैं डूब जाना ।
यू लग रहा कि तुम अभी आओगे
और मेरी नाभि पर अपने स्वच्छंद
चुम्बनों की वर्षा कर दोगेऔर
तेरा मुख रस और मेरा भगरस अद्वैत होकर रतिक्रीड़ा
के एक प्रेमल युग की सृष्टि करेंगे
हे प्रिय!अब तुम आ जाओ और
उत्तानपाद सम्भोगासन्न जमाकर
मुझे स्पर्श के चर्मोउत्कर्ष की अनन्त
आनन्दमयी यात्रा पर ले जाओ।
मैं इस कामदेव रूपी तकिये पर
गर्दन टिकाकर कामरस की
कल्पना में आकंठ डूबकर
तुम्हारी प्रतिक्षा में हूँ।
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सही कहा.. प्रतिबिंबित चित्र और कविता का समन्वय बेजोड़ है....एकदम सही कहा आपने
आरुषी जी की में फैन ही नहीं मुरीद भी हूँ और ईश्वर से हमेशा यही प्रार्थना करती हूँ की आरुषी जी और उन की कलम को ज्यादा से ज्यादा शक्ति दे।
वो सिद्ध कर चुकी हैं की कविता में क्या शक्ति है , कैसे उनकी चार लाइनें बड़ी से बड़ी पोस्ट को समेट कर बड़ी शिद्दत से अपनी बात रखती है. और अब तो साथ में पिक वो जो शेयर करती हैं वो भी उनकी चयनशक्ति को दाद देने पे मजबूर कर देता है और साथ में देवनागरी में लिपि में लिखने से जुड़ाव और बढ़ जाता है,
मैं आपकी करतल ध्वनि में अपना भी सहयोग करती हूँ।
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हांका के बाद का दांव-पेंच... वो भी आपके शैली में...एकदम मंजू भी होगी और सब से बढ़कर इनकी सास भी होंगी,
वही तो हांका कर के शिकार को इनके सामने लाएंगी, ना नुकुर आखिरी टाइम में कुछ हिचक भड़क न जाए बेटे के नाम पे तो इनकी सास खुद जाएंगी अपने समधियाने , समधिन को लाने और फिर अपने सामने अपने दामाद को अपनी समधिन पर,... ऐसा त्याग और बलिदान समधन के मजे के लिए दुर्लभ है,...
और मंजू ने तो ढेर सारे प्लान बनाये हैं ,... जैसे गीता अभी इनकी बहन कम माल के पीछे पड़ी है एकदम उसी तरह बल्कि उससे १०० गुना ज्यादा किंकी तरीके से गीता की माँ इनकी माँ के पीछे पड़ेगी, ...
हाउस फुल रहेगा,... जिससे कोई बाद में न कहे जंगल में मोर नाचा मतलब अकेले में माँ,...