गाँव काफी कुछ खुला-खुला रहता है तो बहुत कुछ ढंका छुपा भी....“”
" तू भी न , तेरे बाप का तो पता नहीं , वो तो मेरी समधन को भी नहीं पता , लेकिन तू न एकदम अपनी माँ पर गयी है , तुझसे न कोई पार पा सकता है ,न कुछ छिपा सकता है। सही कह रही है तू , तीरथ में तो पंडे पुजारी औरतों के देख तो थोड़ा बहुत ,... " उन्होंने कबूला।
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सास भी खेली खाई घोड़ी लगती हैं