आम के आम..जोरू का गुलाम भाग १९३
बिजनेस कोचिंग का
16,42,000
और आफिस आफिस ( इनका )
" चलिए इन फिजिकल फैसिलिटीज की बात तो समझ में आगयी , लेकिन वो जो पार्टीज ,.. खासतौर से आउटडोर पार्टीज , बहुत खर्चा आता होगा उसमें। " मैं बोली।
और वो जोर से हंसी।
" यार वो मेरा इनोवशन है , खर्चा तो होता है और कस के होता है।
मान लो एक पार्टिसिपेंट पर औसत भी लगाओ , तो २,००० से कम नहीं , अगर १०० लोग भी पार्टिसिपेट करते हैं तो २,लाख तो यही मान लो , फिर ड्रिंक्स , डी जे , फैसलिटीज सिक्योरिटी , १०-१२ से कम नहीं बैठता , लेकिन वही वो भी ग्रुप इंटरएक्शन या इंटेंस कोचिंग के नाम पर ,.. यहाँ की पार्टी में कुछ हो गया तो हम जिम्मेदार होते हैं पर ये पार्टी पूरी तरह आउटसोर्स होती है।
खर्चा तो तुम समझ ही गयी , कोचिंग के एक्सपेंडिचर में जाता है , फिर बहुत से लोगो को हम सीधे पैसा नहीं ऑफर कर सकते , शहर के इन्फ्लुएंशियल लोग हैं ,... उनके फ़ार्म हाउस , पार्टी वेन्यू ,... इन्फ्लेटेड दाम पर पांच गुना , छह गुना , समझते हम भी हैं , वो भी हैं ,... अब बिना ब्राइब बोले ,...
फिर जो इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी है , वो भी सब , एक तो लोकल मिनिस्टर के वाइफ के नाम पर रजिस्टर्ड हैं , इसलिए पुलिस वुलिस को भी कोई चक्कर नहीं ,.. वो सब मैनेज करते हैं। अब लड़के लड़कियां हैं तो ,.. धमाल तो होगा ही ,... वो कंपनी भी , सब कुछ आउटसोर्स करती हैं , लोकल थानेदार को पैसा खिलाने से लेकर ,.. उसी नाम पर हम उन मंत्री जी जो भी ,... बहुत सी क्लियरेंस लगती हैं बिजनेस करने में , इत्ते फ़ार्म ,.. अब इससे हमारे पैसे का लेन देन का काम आसान होगया , उस एक्सपेंडिचर को बुक्स में दिखा सकते हैं ,... और लेने वाले को भी तकलीफ नहीं।"
मैं मान गयी मिसेज मल्होत्रा को , पर एक बात और बतायी उन्होंने और मैं चौंक गयी। जो बसें स्टूडेंट्स को ट्रांसपोर्ट करती हैं , वो भी एक एजेंसी , लोकल एम् पी की बीबी , ...और वो सिर्फ बसें उसी दिन हायर करतीं हैं , उस कंपनी का और कोई बिजनेस है ही नहीं।
" लेकिन स्टूडेन्ट्स का डिस्ट्रैक्शन ,... वहां तो सिर्फ मस्ती और ,... " मैं अभी भी कन्विंस नहीं थी।
वो जोर से हंसी , " ये भी मेरी स्ट्रेटजी थी ,..यार फर्स्ट टू फ्लोर ए और बी सेक्शन वाले तो जायेंगे नहीं , वो तो सब कुछ भूलकर ,... होली दिवाली में घर नहीं जाते , सी वाले भी थोड़े बहुत बहुत मुश्किल से ,...और इस फ्लोर वाले लड़के तो ,... उनकी अपनी तो वो नाक के नीचे समझते हैं ,.. तो ज्यादातर डी और ई सेक्शन वाले ,.. करीब दो सौ लड़के लड़कियां हैं , ... पैसे वाले , हमारे कैश काऊ ,... वही और वो नहीं सेलेक्ट होंगे तो भी उन्हें फरक नहीं पड़ता। वो कोचिंग सिर्फ स्टेटस सिंबल और मस्ती के लिए करते हैं।
मान गयी मैं मिसेज मल्होत्रा को ,
लेकिन तब तक घर आगया और मेरे मन में मेरी ननद के लिए प्लान बनने लगा।
अभी पौने नौ भी नहीं बजा था। लेकिन मुझे अब याद आया , पूरे बारह घंटे होगये थे मुझे घर से निकले। सुबह इसी टाइम तो गुड्डी को लेकर हम लोग नैंसी के यहाँ गए थे , इनकी बहना का टिट श्रृंगार करवाने। उसके बाद ये रसगुल्लों के पास और मैं डाक्टर गिल के यहाँ अपनी ननद रानी के साथ , वो रसगुल्लों को स्कूल छोड़ के आफिस और मैं डाक्टर गिल के यहां से शॉपिंग , फिर कोचिंग , और वहां से सीधे मिसेज मोइत्रा की कबुतरियो के स्कूल ,
स्साली किसी भी मामले में गुड्डी से कम हॉट नहीं हैं , बस एक बार लाज शरम थोड़ी हट जाय , मिजवाना रगड़वाना शुरू कर दे , बस उसके बाद तो जाँघे फ़ैलाने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। आज रास्ते में जिस तरह उनसे खुल के , ... फिर मिसेज मोइत्रा भी अब एकदम शीशे में उतर रही हैं , ...
और वहां से फिर गुड्डी की कोचिंग और फिर डाक्टर गिल ,...
पहला काम मैंने किया , दो बॉटल वाइन सीधे चिलर में रखी
मैंने बाथ टब में पानी भरा , सोप बबल्स और परफ्यूम डाला और बस बीस मिनट , चुपचाप ,
और एक बार फिर मैं मुस्करा रही थी मिसेज मल्होत्रा की बातें सोच सोच के,... मेरी किटी की फ्रेंड, कित्ते दिनों से दोस्ती, हम दोनों एक दूसरे से कोई बात छुपाते नहीं थे,... और चंद्रमुखी चौटाला वाले वाकये के बाद तो कुछ भी नहीं,... इसलिए एक फोन और गुड्डी का एडमिशन हो गया,...
जो चीजें मैं सोच भी नहीं सकती थी, बाथ टब में लेटे लेटे मिसेज मल्होत्रा के बिजनेस सेन्स के बारे में सोच रही थी, क्या क्या बातें आज पता चलीं
एम् पी की वाइफ की बसें जो महीने में एक दिन चलती थीं,... और वो ट्रांसपोर्ट कम्पनी अच्छा खासा मुनाफा कमाती थी ,
उस एम् एल ए की इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी जहाँ पार्टियां होती थी,... फ़ार्म हाउस के मुनाफ़े, ... मुझे पहले लगता था की फ़ार्म हाउस सब रईसों के शौक होंगे लेकिन
मिसेज मल्होत्रा ने सब बता दिया,... दो सहेलियां हों, रेड वाइन हों और पूरी सीक्रेसी हो तो खुलने में टाइम नहीं लगता और फिर ये सब बातें मिसेज मल्होत्रा सोशल सर्किल में कर भी नहीं सकती थीं,...
मैंने उनसे पूछा की उस एम पी की बीबी के दिमाग में ट्रांसपोर्ट कम्पनी का आइडिया कैसे आया,... मेरी ग्लास में वाइन भरते हुए हुए हँस के वो बोलीं,
" और कौन देता मैंने दिया," फिर पूरी बात खुली।
मिसेज मल्होत्रा को दो बातें पता थीं , वो एम पी बाहर कितना शेर हो घर के अंदर चलती बीबी की थी,... और दूसरे उसको पैसा देना बड़ा मुश्किल था, एक बार किसी ने लिफ़ाफ़ा पकड़ाने की कोशिश की तो उसने पुलिस बुला ली। लेकिन ये बात तो थी की पैसा लेता तो था उसके बिना काम कैसे चलता, तो पहली जरूरत थी उस की बीबी को पकड़ने की , मिस्टर मल्होत्रा को समझ में नहीं आ रहा था। आप बिजनेस करें, बड़ा बिजनेस करें लेकिन एम पी, एम एल ए पर पहुँच न हो,..
और रास्ता निकाला मिसेज मलहोत्रा ने एक गर्ल्स टैलेंट अवार्ड के लिए उन की पत्नी को चीफ़ गेस्ट बना के। फिर उसी में उन्होंने प्रपोजल रखा की सांसद महोदय की माँ के नाम पे बेस्ट गर्ल परफार्मर के नाम पर अवार्ड,...
मान तो वो तुरंत गयीं,... एम पी महोदय अपनी पत्नी के बाद अगर किसी से डरते थे वो अपनी माँ से जो अब नहीं थीं. लेकिन सवाल आया की अवार्ड का पैसा।
और मिसेज मल्होत्रा ने दांव चल दिया,...
और वहीँ से उस ट्रांसपोर्ट कम्पनी की नीव पड़ी। मिसेज मलहोत्रा के सी ए ने ही सब पेपर वर्क किया। और उन्ही का एक जूनियर ही वो कम्पनी का काम धाम देखता है। उसके बाद मिसेज मल्होत्रा ने कम्पनी की इकोनॉमिक्समुझे समझायी,...
" देखो मान लो, हम लोगो ने ट्रांसपोर्ट के नाम पर १० लाख रूपये पे किया और खर्चा आया २ लाख तो बचे आठ लाख। अब वो पांच लाख उनके पास,... उसमें से एक लाख वो अवार्ड के लिए और चार लाख उनके अपने पास,... उसका आधा कैश में,... और तीन लाख हम लोगों की कैश की जरूरत के लिए, तो बिना कुछ किये उन्हें चार मिल गया। और ये बिजनेस है ब्राइब नहीं तो उनकी ईमानदारी में भी कोई बट्टा नहीं। "
" लेकिन ये चार लाख तो कोई बड़ी रकम नहीं है " मैंने अपना शक जाहिर किया।
" अरे वो तो मैंने जस्ट एक्जाम्पल दिया था और एक सबसे बड़ा फायदा और है, जो बहुत ईमानदार बनता है न उसका ईगो उतना ही बड़ा होता है तो अब दस से ज्यादा अवार्ड, और दो तीन फंक्शन में,... सब लड़कियों के लिए, कुछ दलित, कुछ और इसी तरह के ग्रुप की लड़किया,... बेसिकली चार पांच अवार्ड तो उनकी वाइफ जिसे कहती हैं , कोई उनकी पहचान वाली है,उसकी बेटी,... कोई उनके वोट बैंक मैनेज करता है उसके कास्ट की,...
और सब लोग जानते हैं की एडमिशन कितना मुश्किल है तो लड़कियों की चार सीटें उनके नाम से,... उनके कोटे में और उनकी हाफ फ़ीस,... तुम तो जानती हो एडमिशन कितना मुश्किल है,... बस उनकी नाक ऊँची रहती है। लेकिन सब की सब ये फर्जी अवार्ड वालियां और एडमिशन सब के सब सेक्शन इ में। और फिर वहां तो मास टीचिंग होती है, स्पीकर लगा के और १०- २० % तो वैसे ही चाय समोसे की दूकान पे बैठे रखेंगे आएंगे नहीं और क्लास में मार्जिनल कास्ट तो आलमोस्ट ज़ीरो है, बस उनका फायदा और हमारा भी। "
बड़ी सीरयसली समझाया इन्होने। एक बात फिर भी समझ में नहीं आयी और मैंने पूछ लिया
" लेकिन बसें बाकी दिन, चलिए आपके लिए एक दो दिन तीन दिन बाकी "
वो मुस्करायीं और उन्होंने बसों का असली किस्सा बयान किया,...
गुठलियों के दाम..
क्या तरीका निकाला..
सभी लोग फायदे में....