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THANKS SO MUCHThankx bhabhi ji komaalrani ji itna lamba or jabardast update Dene k liye....lesbian ki Dhoom thi or upar se photo or gifs लाज़वाब जबरदस्त जिंदाबाद कोमल भाभी।।।
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बारिश के मौसम में ये गीत/गाना..जोरू का गुलाम भाग १९८
घन गर्जन बादर आये
मेरी टीन ननदिया
१७४७६२९
मैं भूल ही गयी थी इनकी कांफ्रेंस काल , साढ़े पांच बजे तीन चार देशों के बीच वाली , घंटे पौन घंटे पहिले इन्हे आफिस पंहुचना होता था , थोड़ी बहुत तैयारी , पेपर्स ,
और साढ़े चार बज रहे थे। थोड़ी देर में तैयार होकर ये आफिस चले गए और मैं और मेरी ननद ,
न मेरी देह की प्यास बुझी थी न उसकी।
और लग रहा था बाहर धरती की,.... जेठ बैशाख की गर्मी में किसी विरहिणी की तरह सूखी, प्यासी धरती,.... अब बादल ला ला कर प्यार उड़ेल रहे थे.
इनके आफिस जाने के समय बारिश लगभग रूक सी गयी थी,... बस पेड़ो की डालों से पत्तियों से रुकी हुयी बूंदे रह रह के टिप टिप गिर रही थीं, अब छत पर, खिड़कियों पर आ रही पानी की आवाजें बंद हो गयी थीं,... लेकिन धीरे धीरे बादल फिर उमड़ने लगे,
आज शाम को जब मैं और गुड्डी बारिश में भीगते मस्ती कर रहे थे, एक मल्हार मैं गुनगुना रही थी और गुड्डी भी मेरा साथ दे रही थी,...
अब बाहर उमड़ते घुमड़ते बादलों को देख के, एक बार फिर मैं गुनगुनाने लगी,... मम्मी ने सिखाया था, मियां की मल्हार का ये गाना,.... और बाद में एक दिन मैंने और गुड्डी ने साथ साथ कोक स्टूडियो पर सुना था, तबसे हम दोनों का फेवरिट हो गया था
घन गरजत बादर आये
उमड़ घुमड़ कर बादर छाये,.... घन गरजत बादर आये
और अब गुड्डी ने भी मेरे साथ ज्वाइन कर लिया, बारिश हम दोनों को अच्छी लगती थी, ...वो गा रही थी
बिजुरी चमके जियरा तरसे, बिजुरी चमके जियरा तरसे,
मेहा बरसे छम छम छम छम
और फिर हम दोनों साथ साथ,... खिड़की के पास खड़े हो के, खिड़की से अंदर आ रही बूंदों से भीगते एक दूसरे से, खिलवाड़ करते साथ साथ, गा रहे थे
घन गरजत बादर आये
और अब गुड्डी सिर्फ, बाहर बादलों को देख कर,...खिड़की के अंदर आती बारिश की बौछार से भीगता उसका चेहरा, गाती
उमड़ घुमड़ घन गरजे बादर, कारे कारे,
अति ही डराए कारी कारी रतियाँ,...
चमक चमकचमके बिजुरिया दमक दमक दमके दामिनिया,
चलत पुरवैया,... उमड़ घुमड़ घन गरजे बादर
और फिर मैं,...
बिजुरी चमके गरजे बरसे,... घनन घन बिजुरी चमके, पपीहा पीहू की तेर सुनावे
कहाँ करूँ कित जाऊं,... मोरा जियरा लरजे,... बिजुरी चमके गरजे बरसे,..
उमड़ घुमड़ कर बादर छाये,.... घन गरजत बादर आये
कौन ननद कमीनी होगी जो भौजाई को चिढ़ाने का ये मौका छोड़ देती,.... बस वो पीछे पड़ गयी,...
अरे भाभी, कहिये तो भैया को फोन लगाऊं, मेरी एकलौती भाभी बेचारी,... उनकी दो टकिया की नौकरी, भाभी का लाखों का सावन बेकार हो रहा है,... लेकिन भाभी अभी तो बादल बरसा था इत्ते कस के अभी तक देखिये यहाँ कीचड़ है,
और वो अपनी हथेली मेरी चिकनी चमेली पर रगड़ने लगी जहाँ भाई भी उसके भैया की मलाई बजबजा रही थी, छलक रही थी।
मैं क्यों छोड़ देती उसे रगड़ने का तो मैं पहले तो खींच के गुड्डी को पलंग पर ले आयी और अपने साथ लिटाती बोली,...
" बात तो तेरी सही है, लेकिन भैया नहीं है भैया की बहिनिया तो है, .... सावन ने जो आग लगाई है अब वही बुझाये,...
एकदम भाभी एनीथिंग फार माई स्वीट भाभी वो मुस्करा के बोली
मेरी प्यास भले ही वो बुझा दे उसकी तो खैर बुझनी भी नहीं थी , मुझे तो उसकी तपन भी बढ़ानी थी और अगन भी , जैसे जब वो कोचिंग में पहुंचे, छनछनाती रहे, जोबन टनाटन, चुनमुनिया में आग लगी रहे,... तभी तो लौंडों का फायदा होगा
लेकिन गले की उसकी प्यास बुझाने से कौन रोक सकता था , ।
स्पार्कलिंग वाइन की एक बॉटल और बची थी , और वो गुड्डी ने खोल दी।
जब ' वो ' नहीं होते थे , तो गुड्डी की शरारतें और बढ़ जाती थीं , वाइन सबसे पहले इस बॉटल से उसी ने चखी , लेकिन
न पेग से न बॉटल से।
बहुत ही बदमाश थी , एकदम शरीर , ...
सीधे मेरी देह से , बूँद बूँद मेरे उभारों पर ,... और वहां से उसके होंठों पर।
न उसने मेरे हाथ बांधे न आँखे , लेकिन मेरी छोटी ननद की हिरण ऐसी आँखों ने जो मुझे बरज दिया था ,
मैं बस पलंग पर ऐसे ही ,...
और जैसे बचा खुचा कई चाट ले , वो मेरे जोबन , मेरे निप्स कस कस के चाट रही थी ,
और उस के बाद वाइन मेरी नाभि में ,... ( जो जो मैंने और उसके भइया ने उसके साथ किया था उसका सूद के साथ बदला ले रही थी )
मैं तो उसकी ' गुलाबो ' को बचा रही थी , वहां १२ घण्टे के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा था ,
उसके साथ ये रिस्ट्रिक्शन तो था नहीं , ... इसलिए मेरी गहरी नाभि से छलकती वाइन चूसते चाटते , सीधे मेरी प्रेम गली पर ,
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बरसात का ये नशा/खुमार शराब से कहीं तेज है...हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी 'शराब' ... पर बरसात ने ...
ननद -भौजाई
और उस के बाद वाइन मेरी नाभि में ,... ( जो जो मैंने और उसके भइया ने उसके साथ किया था उसका सूद के साथ बदला ले रही थी ) मैं तो उसकी ' गुलाबो ' को बचा रही थी , वहां १२ घण्टे के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा था ,
उसके साथ ये रिस्ट्रिक्शन तो था नहीं , ... इसलिए मेरी गहरी नाभि से छलकती वाइन चूसते चाटते , सीधे मेरी प्रेम गली पर ,
निचले गुलाबी फांकों को चूसते , चाटते अपनी बड़ी बड़ी आँखे उठा के उस सारंग नयनी ने मुझे चिढ़ाया ,
" भाभी , आप कहती थीं न चल मेरे साथ तुझे ये पिलाऊंगी , वो पिलाऊंगी , अब देखिये ,.. कौन "
मुझे चिढ़ाते हुए चैलेन्ज करते हुए बजरिये सुदर्शन फ़ाकिर मेरी ननदिया ने अपनी बात रखी, हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी 'शराब' ... पर बरसात ने ...
लेकिन मैंने उसकी बात बीच में काट दी, मैं भी सोच रही थी हे गुड्डी बहुत हुआ अब चोर सिपहिया, आज हो जाए . हम दोनों समझ रहे थे वो किस 'शराब' की और कहाँ से होने वाली बारिश की बात कर रही थी,
मैंने उसे खींच कर अपने ऊपर ,... और अब मेरी आँखे उस की आँखों में झाँक रही थी ,
मेरे होंठ उस के होंठों के पास ,
" हे पिलाऊंगी तो ना ना तो नहीं करेगी ,... "
वो मुझे छेड़ते उकसाते मेरी आँखों में आँखे डाल कर बोली ,
" नहीं , एकदम नहीं। और अगर करुँगी भी न , तो अब तो आपके कब्जे में हूँ , ... कर लीजियेगा न अपने मन की। "
मैंने उसे पलट दिया और अब मैं ऊपर थी , एक चुम्मी ली मैंने कस के फिर साफ़ साफ़ बोला ,
" चल आज तुझे स्पेशल वाइन पिलाऊंगी , अपनी ,... तेरी भौजाई स्पेशल ,... बस भागना मत। "
" इत्ता कस के आपने पकड़ रखा है , कहाँ भाग पाउंगी , " गुड्डी मेरी टीन ननदिया खिलखिलाते, बोली
फिर मेरे गाल पर कस के चूम के वो किशोरी बोली ,
" अब तो मेरी मीठी भौजी , आप भगाइएगा न तो भी आपकी ये ननद कहीं जानेवाली नहीं , समझ लीजिये। "
लेकिन मैं विषय से भटकने नहीं देने वाली थी उसको ,
" हे मैं पिलाऊंगी तो ,... कहीं बुरा तो नहीं मानेगी ,... "
और अब वो बोली भी , और उसने मेरे मुंह भी बंद कर दिया।
बोली एकदम मेरी स्टाइल में , " अरे आप कैसी भौजाई हो जो,... ननद के बुरा मानने से मान जाएंगी। "
और वाइन के बॉटल से सीधे मेरे मुंह में , घल घल , एक पेग से ज्यादा ,..
और अब वह मुझे पिला रही थी जैसे ये सोच के की यही वाइन तो अभी थोड़ी देर बाद छल छल छल छल, उसकी भाभी के निचले होंठों से उसके होंठों के बीच
लेकिन जब मैंने अपने सैंया को इस लड़की के साथ बाँट लिया था तो वाइन क्या चीज थीं , मेरे मुंह से उसके मुंह में। साथ मे मेरा सैलाइवा मिला हुआ, लेकिन अभी तो आज बहुत कुछ जाना था इस बारिश में उसके मुंह में,... सलाइवा का क्या,...
और अब गुड्डी, वह शोख टीनेजर मेरे ऊपर चढ़ी, अपनी कच्ची अमिया पर से मेरे होंठों से सिर्फ दो इंच की दूरी पर और उस पर वो मेरी ननद स्पार्कलिंग वाइन की बॉटल से बूँद बूँद अपने निप्स पर जहाँ आज सुबह ही मैंने गोल्डन रिंग लगवाई थी, ...
और उस निप्स से छलक कर मेरे होंठो में, धार टूट नहीं रही थी , और वो मेरे ऊपर बैठी तो मैं अपने मुंह से उसके मुंह में भी नहीं, पर जब मुझसे नहीं रहा गया, तो मैंने हाथो से पकड़ कर उस किशोरी को अपनी ओर खींच लिया और वाइन से भीगा उसका निप सीधे मेरे मुंह में, मैं कस के चूस रही थी , दूसरे उभार को अपने हाथ से दबा रही थी
और जब मैंने उसे छोड़ा तो हम ननद भौजाई ने साथ वाइन सीधे बॉटल से,... बॉटल अबकी आधी से ज्यादा मेरे अंदर , मैं बॉटल से बॉटम्स अप कर रही थी,... बचा खुचा सब मेरे अंदर,...
और वो लड़की मछली की तरह मेरे ऊपर से फिसलती सीधे मेरी खुली जांघो के बीच, जहाँ अभी भी उसके भैया की मलाई छलक रही थी, कौन भाभी नहीं चाहेगी की सैंया की मलाई सैंया की छोटी बहिनिया से चुसवा के साफ़ करवावे,... पर मेरी ननद ने अपनी चुम्बन यात्रा रस कूप से दूर मेरी जाँघों से शुरू की, और चुम्बन के छोटे छोटे पग भरते उस अमृत सरोवर की ओर जिसमे डुबकी लगाने के लिए उसके भैया, कुछ भी करने को तैयार रहते थे, लेकिन फिर जीभ लम्बी सी निकाल के सिर्फ जीभ की टिप से चारो ओर जैसे पूजा अर्चन के पहले परिक्रमा कर रही हो, ...
' अरी कमीनी, अबे तेरी भैया की गाढ़ी मस्त मलाई है, आज तेरे निचले मुंह में तो नहीं जा सकती तो मेरे ही निचले मुंह से,... " ख़त्म हो गयी वाइन को बॉटल को पलंग के नीचे रख के मैंने उसे छेड़ा,...
" एकदम भाभी,... जबरदस्त डबल स्वाद मिलेगा, आपका भी मेरे भैया का,... अब तो मैं खीर इसी कटोरी से खाउंगी " खिलखिलाती वो षोडसी बोली।
बस दो दिन की बात और है मैं सोच रही थी मन ही मन मुस्करा रही थी, इस कटोरी से देखो उसे किसकी किसकी मलाई खाने को मिलती है,... परसों या नरसों ,...
कन्या रस का भी भरपूर लुत्फ लिया...चुसम चुसाई
' अरी कमीनी, अबे तेरी भैया की गाढ़ी मस्त मलाई है, आज तेरे निचले मुंह में तो नहीं जा सकती तो मेरे ही निचले मुंह से,... " ख़त्म हो गयी वाइन को बॉटल को पलंग के नीचे रख के मैंने उसे छेड़ा,...
" एकदम भाभी,... जबरदस्त डबल स्वाद मिलेगा, आपका भी मेरे भैया का,... अब तो मैं खीर इसी कटोरी से खाउंगी " खिलखिलाती वो षोडसी बोली।
बस दो दिन की बात और है मैं सोच रही थी मन ही मन मुस्करा रही थी, इस कटोरी से देखो उसे किसकी किसकी मलाई खाने को मिलती है,... परसों या नरसों ,...
क्या कोई बाज झप्पटा मारेगा, उसकी उँगलियों ने मेरे दोनों भगोष्ठों को फैलाया और सीधे उसकी जीभ अंदर, और करोच करोच कर नदीदी की तरह चारो ओर घूम घूम कर जैसे एक बूँद नहीं छोड़ेगी,... उस तरह मेरे साजन की बहन उनकी मलाई चाट रही थी, और मैं भी अपने चूतड़ उचका उचका के जाँघों के बीच अपनी ननदिया के सर को कस के दबोच के उसे प्यार से अपने साजन की माल मलाई खिला रही थी,
आखिर थोड़ी देर पहले ही तो मेरी इसी ननदिया ने कबूला था की वो मेरे मरद से गाभिन होना चाहती है और ऐसे ख़ुशी के मौके पे कुछ मीठा तो होना चाहिए, और जिस मलाई से वो कुछ दिन बाद गाभिन होगी , नौ महीने बाद बियायेगी, दूध देगी,... उसके भैया की रबड़ी मलाई से बढ़ कर अच्छी मिठाई क्या होगी,
मैं खिला रही थी वो खा रही थी
और उसके बाद मेरी ननद ने चूसना शुरू किया, सच में असली गुरु इसकी गितवा है रोज रोज चुसवा के सीखा के थोड़ा प्यार से थोड़ा जबरदस्ती, स्साली को पक्की चूत चटोरी बना दिया है और कितना मस्त चूसती है,...
वो लड़की,.. क्या मस्त चाटती थी। जैसे मैं अब तक उसे झाड़ने के कगार पर ले जाके छोड़ती थी , वो किशोरी भी अब ,... जीभ से जोर जोर से चाटती थी , मेरी लव लेन में जीभ से अंदर डाल के गोल गोल , अपने होंठों से कस के कस चूसती मेरी देह की किताब उसने अच्छी तरह पढ़ ली थी ,सब रहस्य उस पर खुल गए थे।
गीता पक्की गुरुवानी थी,... मेरी ननद गुड्डी ने अब तीनतरफा हमला कर दिया था,
उस किशोरी की, जिसने कुछ दिन पहले ही तो इंटर पास किया था, पतली लम्बी गोरी गोरी उँगलियाँ नागिन की तरह मेरी जाँघों पर कभी रेँगतीँ, फिसलतीं तो कभी तेजी से बिच्छू की तरह मेरी चुनमुनिया पर डंक मार कर सरक लेतीं। काम का जहर मेरी दोनों जाँघों और उसके बीच से होते हुए पूरी देह पर फ़ैल रहा था, और उस को रोकने का कोई तरीका भी नहीं था,
मेरी ननदिया की लम्बी जीभ किसी नयी उमर की पतुरिया की तरह मेरे रसीले गुलाबी काम द्वार पर थिरक रही थी, कभी दोनों पगलाए बौराये गीले मेरे भगोष्ठों के बस बाहर बाहर छू के निकल जाती तो कभी लपड़ सपड़ चाटती, जैसे कोई चटोरी चाट का पत्ता उठा के चाट रही हो,... और जब सिर्फ जीभ से दोनों प्रेम द्वारों को दो फांक कर, ... रसता बनाती लहराती जीभ अंदर घुसी तो बस दोनों होंठों ने प्रेम द्वार पर सांकल लगा दी, वो कस कस के मेरी चूत अब चूस रही थी, जीभ मेरी बुर के अंदर गोल गोल,...
सच में वो अपने भैया की जगह ले रही थी, जैसे पहली रात से रोज बिना नागा उसके भैया का मूसल मेरी बिल में अंदर बाहर, अंदर बाहर,... उसी तरह उनकी बहन की मेरी ननद की जीभ मोटे लंड की तरह अंदर बाहर, कभी गोल गोल,...
और अब उँगलियाँ चूत के ऊपर एकदम ऊपर फूली क्लिट को कभी छू के छोड़ देतीं कभी अंगूठे से दबा देतीं मैं बस पागल नहीं हुयी, चूतड़ पटक रही थी, मचल रही थी, दोनों हाथों से चादर को पकड़ के किसी तरह अपने को उछलने से रोक रही थी , जैसे ही मेरी ननद की ऊँगली की टिप क्लिट को छूती, मुझे लगता मैं बस अब झडुँगी तब झडुँगी,....
जब मुझसे नहीं रहा गया मैं खुद बोलने लगी, मेरी हालत खराब थी बस लग रहा था, किसी तरह बस किसी तरह ये गुड्डी झाड़ दे,... बाहर बारिश हो रही थी और देह में अगन लगी थी
हे गुड्डी यार तड़पा मत , मेरी अच्छी ननद बस झाड़ दे यार, ओह्ह्ह क्यों तड़पाती है रुक मत चूस कस के झाड़ दे मेरी प्यारी ननद,...
और जब उसकी जीभ की नोक मेरे क्लिट पर छूती मैं काँप उठती , तूफ़ान में पत्ते की तरह सिहर उठती ,
और वो मुझे छोड़ कर अलग हो जाती , खिलखिलाती।
क्यों भौजी, भैया की याद आ रही है चलिए बहिनिया से ही काम चलाइये, ... खिलखिलाते हुए पूछा उस शोख ने
अच्छा ये बताइये पहली रात आपने खुद ही अपनी जाँघे खोल के टाँगे उनके कंधे पर रखी थीं या भैया ने अपनी टाँगे अपने कंधे पर रखी थी,...
मैं क्यों चिढ़ाने का मौका छोड़ देती,
" अरे ननद रानी तोहरे भैया इत्तने होशियार होते तो तोहार नथ न उतार दिए होते,... मुझे उनकी नथ न उतारनी पड़ती "
और ये कह के मैंने अपनी दोनो टाँगे जैसे किसी मर्द के कंधे पर औरत रखती है, ननद के कंधे पर रख दी,...
वो स्साली छिनार ननद जिसकी हफ्ते भर पहले ही यहीं लाकर मैंने भाई से ही पहली बार चुदवाया, झिल्ली फड़वायी, अब इतनी तेज,,... एक नंबरी चोदू मरद की तरह उसने पहले तो दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ी, झुक के एक प्यार भरा चुम्मा लिया, और अपनी चूत को मेरी चूत से पहले बस छुलाया, हलके से, फिर रगड़ना शुरू किया,
इत्ता अच्छा लग रहा था की मैंने भी नीचे से साथ देना शुरू कर दिया, वैसे भी मैं बार बार एकदम झड़ने के किनारे पहुँच चुकी थी, चूत एकदम गीली पनियाई,...
और जैसे मैंने नीचे से धक्के लगाने शुरू किये अपनी टीनेजर ननद की चूत से उठा उठा कर अपनी चूत रगड़नी शुरू की , वो एकदम से अपने भैया के रोल में आ गयी, एक हाथ मेरे जोबन पे कभी कस के रगड़ते मसलते, निपल पुल करते तो दूसरा हाथ पेट को कमर को सहलाते और बीच बीच में क्लिट को छेड़ते,...
मैं बहुत गरमा गयी थी, एक तो बाहर मौसम इतना मस्त हो रहा था, तेज हवा चल रही थी, सावन की झड़ी लगी हुयी थी दूसरे,... ये बस मन कर रहा लंड होता तो ,
लंड अगर ननद के होता तो देवर न हो जाती वो,,... पर मेरे बिन कहे मेरी बात वो समझ गयी जैसे उसके भैया समझ जाते थे,
गच्चाक,
एक झटके में उसकी दो उँगलियाँ मेरी बुर के अंदर वो भी पूरी जड़ तक,... और क्या खेल तमाशे कर रही थी उसकी उँगलियाँ, कभी कैंची की फाल तक फ़ैल कर मेरी बुर इतना फैला देतीं की की लगती फट जायेगी, कभी गोल गोल घूमती अंदर की दीवारों रगड़ती, एक एक नर्व इंडिंग्स सभी को छेड़ती, रगड़ती मैं मजे से काँप रही थी सिसक रही थी , ... कमर पटक रही थी और गुड्डी की मेरी अपनी चूत से मेरी बुर की रगड़ाई भी नयी तेजी पर पहुँच गयी थी
और गुड्डी का एक हाथ जो जोबन के मजे ले रहा था कभी जोबन पर तो कभी मेरी क्लिट पर, कभी वहीँ ऊँगली निपल को पुल करती तो कभी क्लिट को रगड़ देती,...
गुड्डी यार झाड़ दे, बस एक मिनट अब मत रुकना, ओह्ह उह्ह्ह उफ़ बहुत अच्छा लग रहा है ऐसे ही करना, ओह्ह , नहीं प्लीज मेरी ननद रानी , मेरी ननद मत रुक बस मैं,...
मैं एकदम किनारे पर थी और वो रुक गयी, दोनों उँगलियाँ बुर में से निकाली, बुर का पानी चमक रहा था, मुझे दिखा के लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी और चिढ़ाते हुए बोली
वाह क्या मस्त चाशनी है तभी तो मेरे भइया इस जलेबी के दीवाने हैं,... झाड़ दूंगी लेकिन आप वादा करती हैं पूरा नहीं करती,...
मेरे आने के पहले से कह रही है,... बाहर कितना पानी गिर रहा है, रोज आप कहती हैं ,... तुझे पिलाऊंगी, पिलाऊंगी,... मैंने एक बार भी मना नहीं किया लेकिन आप इतनी कंजूस की ननद के लिए ज़रा सा,...
मैं समझ गयी उसका छिनारपन,.... वह क्या पिलाने की बात कर रही थी,
" अच्छा चल आज ही पिला दूंगी पक्का, लेकिन यार एक बार झाड़ दे, ... " मैं बोली और खींच के उसका सर अपनी बुर की ओर,... छुड़ा तो वह नहीं पायी लेकिन थोड़ा फिसल गयी , और साथ में उसने सब तकिये मेरे चूतड़ों के नीचे,
और सुनहली शराब हीं नहीं..पिछवाड़े का मजा
" झाड़ दूंगी लेकिन आप वादा करती हैं पूरा नहीं करती,... मेरे आने के पहले से कह रही है,... बाहर कितना पानी गिर रहा है, रोज आप कहती हैं ,... तुझे पिलाऊंगी, पिलाऊंगी,... मैंने एक बार भी मना नहीं किया लेकिन आप इतनी कंजूस की ननद के लिए ज़रा सा,..."
मैं मान गयी उसका छिनारपन,.... वह क्या पिलाने की बात कर रही थी,
" अच्छा चल आज ही पिला दूंगी पक्का, लेकिन यार एक बार झाड़ दे, ... " मैं बोली और खींच के उसका सर अपनी बुर की ओर,... छुड़ा तो वह नहीं पायी लेकिन थोड़ा फिसल गयी , और साथ में उसने सब तकिये मेरे चूतड़ों के नीचे,
मैं समझ गयी उसकी बदमाशी, उसके होठ अपने आप नहीं फिसले थे, वो उसकी प्लानिंग थी, ... दोनों हाथों से पूरी ताकत से उसने मेरे चौड़े नितम्बों को फैला दिया,... और वो छिद्र जिसका मजा तो सब लेना चाहते हैं लेकिन उसे छूने से होंठ कौन कहे ऊँगली से भी गर्हित समझते हैं,
और ननद की जीभ गोल गोल उस गोलकुंडा के चारों ओर चक्कर काट रही थी, पूरी देह तो मजे से सिहर ही रही थी मेरा गुदा छिद्र भी सिकुड़ खुल रहा था, ... एक कुँवारी टीनेजर के गुलाबी होंठों के स्पर्श की चाह में
और चुम्मी जबरदस्त लिया गुड्डी मेरी प्यारी ननद ने पिछवाड़े के छेद पर, और उस चुम्मे के साथ ही गुड्डी के मुंह ने ढेर सारा थूक भी वहां निकाल दिया,
फिर एक के बाद एक, दर्जन भर किस तो उस लड़की ने वहीँ किये ही होंगे,... मैंने अपनी देह अपना पिछवाड़े का रस्ता सब ढीला कर दिया, उसके होंठों में इतना नशा था, और अब गुड्डी ने जैसे कोई खेला खिलाया लौण्डेबाज हो, अपने दोनों अंगूठों के जोर से मेरी गाँड़ का छेद पूरी ताकत से फैला दिया, जैसे गाँड़ मारने वाले , गाँड़ मारने से पहले फैलाते हैं,.. औरअब एक फिर चुम्मा, जीभ उस कुंए के किनारे किनारे जैसे उसकी गहराई नाप रही हो,...
और फिर और ताकत लगा के,...
पहले वहां देख के फिर मेरी ओर देख के,… जिस तरह से वो मुस्करायी मैं समझ गयी, ये छिनार है समझदार,... दरार की जगह छेद देख कर समझ गयी इसमें मूसल चल चुके हैं, क्या बताती इसको एक नहीं दो दो जबरदस्त मूसल, कम से कम चार पांच बार,...
उसकी मुस्कराहट का मैंने भी मुस्करा के जवाब दिया जैसे मैं उसकी बात समझ गयी हूँ, " भाभी आपने तो पिछवाड़े का खूब मजा लिया, इत्ते मूसल घोंटे और मेरा पिछवाड़ा अभी भी कोरा है,... "
और मेरी आँखों ने जवाब दे दे दिया, बिना बोले , बहुत जल्द तेरी गाँड़ भी ह्च्चक के मारी जायेगी, घबड़ा मत,...
और अब फिर एक बार उसने ढेर सारे थूक के साथ फैलाये हुए पिछवाड़े में चुम्मा लिया, होंठ वहीँ चिपके रहे पर जीभ ने सेंध लगा ली,... और पूरी ताकत से जीभ वो अंदर पुश कर रही थी,...
मैंने ननद को चिढ़ाया, "कुछ मिला खाने पीने को, स्वाद ले लो,...."
मान गयी मैं ननदिया को,... सच में उसने और जोर लगा के जीभ अंदर तक, फिर जैसे कोई ऊँगली से करोचने लगे, जीभ से ही अंदर की दीवालों पे
मेरी देह गिनगीना गयी, जीभ अंदर घूम रही थी बार बार, वह अब समझ गयी थी की देह के इस खेल में कुछ भी वर्जित, गर्हित नहीं, उन पलों में जो भी मन करे,...
बस उसे रोको मत हो जाने दो, ये बारिश आज सब बांध तोड़ के ही मानेगी
लेकिन साथ में उसने आगे भी हमला बोल दिया, पहले एक हाथ की उँगलियों से दोनों फांको को पकड़ के रगड़ने लगी, ... मैं वैसे ही बड़ी देर से पनिया रही थी,... बार बार झड़ने के करीब पहुँच के,... गुड्डी सच में दुष्ट थी अब उसने पूरी तीन उँगलियाँ एक साथ मेरी बुर में पेल दी,
मेरे पिछवाड़े जीभ उसकी,... अगवाड़े तीन उँगलियाँ अंदर,... मेरी हालत खराब एक बार फिर मैं झड़ने के करीब, लेकिन मैं जान रही थी फिर ये आखिरी मिनट पे अब नहीं
और इस दुष्ट लड़की का एक इलाज था ,
जबरदस्ती।
बस मैंने उसे पलंग पर पटक दिया और चढ़ गयी उसके ऊपर ,
मेरे निचले होंठ उसके गुलाबी प्यारे रसीले होंठों पर ,
थोड़ी देर तक तो मैं उसका सीधे मुंह चोदती रही , फिर वो हार मान गयी
आखिर गुड्डी के मन की इच्छा पूरी हो गई..बारिश,.... छल छल छल छल
और इस दुष्ट लड़की का एक इलाज था , जबरदस्ती। बस मैंने उसे पलंग पर पटक दिया और चढ़ गयी उसके ऊपर , मेरे निचले होंठ उसके गुलाबी प्यारे रसीले होंठों पर ,थोड़ी देर तक तो मैं उसका सीधे मुंह चोदती रही , फिर वो हार मान गयी और मैंने कमान उसके हाथ में दे दी। क्या मस्त चाटती थी ,
और चोदती थी चूत अपनी जीभ से ,... और जब मैं एक बार फिर झड़ने के कगार पर पहुंची तो उसकी जीभ वहां से हट गयी
और उस वर्जित , निन्दित , तथाकथित गर्हित छेद पर, .....बिना मेरे कहे , जोर दिए , उसने मेरे दोनों नितम्ब फैलाये
चित्तौड़ गढ़ के दरवाजे पर चुम्मी लेकर उस छुई मुई ने सांकल खटखटायी,
और फिर लगा दी उस शोख की जीभ ने सेंध पिछवाड़े ,
गोल गोल , आगे पीछे ,... साथ साथ उस के होंठ सक भी कर रहे थे , किस भी ,...
कुछ देर में वही हुआ हो होना था ,.... बाहर बारिश की झड़ी रुक गयी थी ,
बादल भी बस थोड़े बहुत हमारी खिड़कियों से चिपके हमारी शरारतें देख रहे थे ,
प्रत्युषा भी क्षितिज के उस पार शायद हमारी केलि क्रीड़ा के ख़तम होने का इन्तजार कर रही थी।
और मेरी देह बरसने लगी , लेकिन तो भी वो टीनेजर नहीं रुकी। मैं काँप रही थी , सिसक रही थी , बरस रही थी ,....
लेकिन उस शोख ने जैसे तय कर लिया थी की आज मेरी देह का भी सावन भादों है , आज बारिश नहीं रुकेगी , धूप नहीं निकलेगी ,...
और एक बार फिर उसकी जीभ , उँगलियाँ , होंठ एक साथ मेरे भगोष्ठों पर ,... एक बार फिर मैं कगार पर पहुँचने वाली थी की
देह का एक प्रेशर ,... जो सुबह सुबह ,...
" छोड़ न मेरी ननदिया " मैं छुड़ाने की कोशिश करती बोली।
उन्ह उनहू , उस दुष्ट ने ना ना में सर हिलाया और सीधे मेरी जादू की बटन पर हमला बोल दिया , उँगलियों से।
फुसफुसा कर मैं बोली
" छोड़ न यार , आ रही है कस के ,.. "
वो बस मुस्करायी और उसकी नाचती गाती आँखों ने ,... ना ना में सर हिला दिया। और जवाब उसके होंठों ने दिया , एक बार फिर कस के निचले होंठों को दबोच के ,...
आसमान में लालिमा बहुत हल्की सी काली रात का चादर हटा रही थी ,
बस थोड़ी देर में पिघलते सोने सी धूप की छलकती बूँद ,... पिघलता सोना छलक रहा था ,
और मेरी देह से , पिघलते सोने की एक बूँद ,...
चातक की तरह उसने होंठ खोल दिए ,... और अब मैं एकदम पक्की भौजाई की तरह अपनी मांसल , भारी भारी जांघों से ननद के सर को कस के दबोच लिया ,...
एक बूँद
दो बूँद ,...
मैं इत्ते दिन से उसे चिढ़ा रही थी , 'बेड टी' के लिए , ...
और गुड्डी की ऊँगली ने मेरी क्लिट छू दी , भयानक विस्फोट हुआ मेरी देह में ,... झड़ती रही , जैसे क्लाउड बर्स्ट हुआ हो और थोड़ी देर में थेथर होकर पलंग पर गिरी पड़ी थी , गहरी नींद में।
लेकिन मुझे इतना अहसास तो हो रहा था मेरी ननद अभी भी बिजी है , उसके होंठ अभी भी किसी भीगे होंठों को चूसने चाटने में
उस की यह केलि सखी भी दो बार बरस कर के ही हटी
अब गीता और गुड्डी के चुहलबाजी में मजा आया....गीता
लेकिन गुड्डी रानी की रात अभी खतम नहीं हुयी थी, न बाहर हो रही तेज बारिश,... हम दोनों वैसे ही बस एक चादर लपेट के आ गए, बाहर घंटी बजी थी, और बाहर गीता थी, एकदम भीगी भागी,...
गीता ने पहले दिन से ही गुड्डी से ननद भाभी का रिश्ता बना लिया था, गीता इनकी मुंहबोली बहन थी, इसलिए वो बन गयी थी ननद और गुड्डी जिस काम के लिए आयी थी, ... उस लिए गीता ने उसे भौजी मान ली और जबरदस्त चिढ़ाने , गरियाने का रिश्ता था दोनों का,...
" अरे एक दम गीली हो गयी हो, का हुआ,... " गुड्डी ने चिढ़ाया।
गीता सच में अच्छी तरह से गीली हो गयी थी साडी एकदम भीगी देह से चिपकी,
अँधेरा अभी भी था, सुबह होने में थोड़ी देर थी, फिर घने काले बादल,.. हम लोगो के घर के बाहर की स्ट्रीट लाइट के ज्यादातर बल्ब लड़कों के टारगेट प्रैक्टिस के शिकार हो गए थे फिर काले काले बादल और बारिश इतनी तेज थी की जैसे कोई दीवाल पानी की, ... हमारे घर के बाहर, और गेट के बीच, चार पांच पेड़,... अमलताश,आम, महुआ, नीम, और सड़क की ओर हेज भी बहुत ऊँची थी,..
" अरे तोहरे लिए गीली हुयी हैं,... "
गीता कौन कम थी उसने पलट के जवाब दिया, पर आज गुड्डी खूब मूड में थी, वाइन और जिन का असर, फिर पहले अपने भैया के साथ, रात भर फिर मेरे साथ,... और पहली बार जिंदगी में उसने सुनहला शरबत पिया था,...
गुड्डी ने एक झटके गीता की साड़ी खींच दी,...
" अरे उतार दो गीली साड़ी जुकाम हो जाएगा,... " खिलखिलाते हुए गुड्डी ने बोला और साड़ी गीता की खींच के बरामदे में टंगे झूले पर फेंक दी /
मैं भी गुड्डी को उकसा रही थी, वो जितना आगे बढ़ती गीता उसका दस गुना जवाब देती,... मैंने हलके से गुड्डी से कहा,
तोहरी ननदिया क ब्लाउज भी तो गीला है,...
पीछे एक धागे से बंधी चोली सी गीता ने पहन रखा था. आज गुड्डी ने ही पहल की, गीता को गले लगाने की, और एक झटके में चोली खोल दी,... पर गीता ने जैसे ही होंठों पर होंठ रखे गुड्डी के, उसे कुछ तो अंदाज हो गया की,.... बाकी मेरी बात ने पूरी कर दी,...
" हे गीता आज बारिश में तो बारिश हो जानी चाहिए, बारिश में भी कोई पियासा रह जाए तो बुरी बात है,... "
गीता तो कबसे गुड्डी को ' पिलाने ' के चक्कर में थी अपनी सुनहली शराब, उसका बस चलता तो पहले दिन ही,... लेकिन मैंने ही समझा रखा था बस दो चार दिन इन्तजार कर लो, ... फिर तो खिलाना पिलाना तेरी मर्जी,.... बस अभी कहीं भड़क न जाए,...
और आज तो मैं खुद ही उसके भइया को जाने के बाद,... तो बस मैंने गीता को इशारा कर दिया,... बरसती बारिश में गुड्डी रानी पियासी रह जाएँ बड़ी नाइंसाफी होती,... और अब तो उसके साथ खुला खेल होना था, ताला भी लग गया था , उसके भैया ने कित्ती बार अपनी सीधी साधी बहिनिया पे चढ़ाई कर दी थी, कोचिंग के लौंडे भी चढ़ने को तैयार तो गीता ही क्यों,... और मुझसे ज्यादा वो इनके पीछे पड़ी थी गुड्डी को न सिर्फ लाने के लिए बल्कि गाभिन कर के उस के पहलौठी के दूध के लिए भी,...
गीता ने उस चादर को खींच के फेंक दिया जिसे मैंने और गुड्डी ने ओढ़ रखा था,... और हम और गुड्डी दोनों एकदम,... पर गुड्डी आज बहुत गर्मायी थी उसने गीता के पेटीकोट का नाड़ा भी खोल दिया और सरर वो भी भीगे बारिश की पानी में गीले लॉन में,... लेकिन वो मिट्टी में लिथड़ाये,... उसके पहले मैंने गीता का पेटीकोट उठा के जहाँ साडी ब्लाउज फेंका था वहीँ,..
और मैंने उन दोनों से बोला, ... ठीक मैं चलती हूँ तुम दोनों आपस में निपटो,...
लेकिन गुड्डी ने मेरा हाथ पकड़ के खींच लिया, " अरे भाभी कहाँ भाग रही हैं,... किससे घबड़ा रही हैं "
और गुड्डी के हाथ खींचने से भीगते बारिश में गीली मिटटी में मैं बड़ी जोर से फिसली, ... लेकिन गुड्डी और गीता दोनों ने पकड़ने की कोशिश की और धड़ाम दोनों मेरे ऊपर,... हम तीनो कीचड़ में,... जहाँ घने पेड़ थे, आम महुआ और अमलताश वहां नीचे घास नहीं थी और मिटटी बारिश के पानी से गीली होके कीचड़ हो गयी थी,...
गुड्डी ऐसी सेक्सी टीन ननद के साथ मड रेसलिंग का मौका कौन भाभी छोड़ देती और फिर गीता का साथ, अब मैंने और गीता ने मिल के पहले तो कीचड़ में गुड्डी रानी को खूब रगड़ा, दोनों हाथ गीता के हाथ लगे और और खूबसूरत लम्बी टाँगे मेरे हिस्से में आये,...
मस्त छोटे छोटे चूतड़ जिन्हे देख देख के अब कोचिंग के सारे लौंडो का फनफनाता था, मेरे घर में कीचड़ में रगड़ा जा रहा था, कुछ कीचड़ उठा के मैंने ननद के खुले जोबन पर रख दिया,... पानी लगातार बरस रहा था,... और वहीँ कीचड़ में उसे पीठ के बल लिटा के दोनों टांगों को फैला के मैं बैठ गयी,
भीग तो हम तीनो ही गए थे कीचड़ में लथपथ भी,.. तो अब बचने को कोई सोच भी नहीं रहा था,... गीता सीधे जांघ फैला के गुड्डी के मुंह के ऊपर बैठ गयी और कस के दोनों हाथ पकड़ के बोली,
" चल अब चाट, भैया क लंड का मजा तो बहुत ली हो, अब हमार बुर चाटो,... चाट चाट के झाड़ना भी है, खूब कस कस के चूस भी चाट भी "
गुड्डी अब चूत चाटना चूसना सब सीख गयी थी। और सिखाने वाली भी तो यही थी, गीता, चाहे लड़की हो या लड़का गीता को देह के भूगोल का एक एक कोना अच्छी तरह मालूम था. और वैसी गुरुआनी हो तो, और उसके आने के पहले ही गीता ने वादा किया था की वो दस पंदह दिन में गुड्डी रानी को सिखा पढ़ा के अपने से भी दस हाथ आगे करेगी, चाहे मर्दों को मजा देना हो या लड़कियों को,...
और उस पढ़ाई में आज एक नया अध्याय जुड़ने वाला था, सबसे कठिन अध्याय,...
अभी भी कुछ बचा अध्याय गुड्डी सीख रही है...बारिश
और उस पढ़ाई में आज एक नया अध्याय जुड़ने वाला था, सबसे कठिन अध्याय,...
गीता उस अध्याय को पढ़ाने में लगी थी और गुड्डी के ऊपर चढ़ी अपनी चूत चटवा रही थी. रगड़ रगड़ कर गरिया कर,... पर मेरा मन भी ललचा रहा थी, मेरी ननद की लाल बुलबुल को देख कर अभी तो उसमें सिर्फ दो दिन मूसल चला था, मेरे सोना मोना का , लेकिन ननद की चुनमुनिया हो तो मन तो यही करता है, की उसमें रोज बिना नागा मोटे मोटे मूसल दिन रात चलें, लेकिन आज तो मूसल की एंट्री बैन थी, इसलिए मेरे होंठ ही,...
गुड्डी गीता की बुर चाट रही थी और मैं गुड्डी ननदिया की, दोनों टांगो को मैंने खूब आराम से फैलाया थोड़ा उन गोरी गोरी मांसल टीनेज जांघो को चूमा चाटा और फिर दोनों फांको को ( गुड्डी की दोनों फांके खूब मांसल थीं ) फैला के जैसे कोई आम की फांक फैलाये,.. उस के बीच में अपनी जीभ की नोक डाल के आगे पीछे आगे पीछे,...
थोड़ी देर में ही गुड्डी रानी पिघलने लगीं,... फिर मैंने पैंतरा बदला,... गियर चेंज किया सीधे चौथे गियर में अब गुड्डी की दोनों फांके मेरे होंठों के बीच और मैं जम के उन्हें चूस रही थी, पूरी ताकत से,
मेरी उंगलिया कभी गुड्डी की चिकनी जाँघों पर पर थिरकतीं तो कभी फिसल कर उसके छोटे छोटे लौंडा मार्का टाइट कैसे कैसे चूतड़ों पर जिन्होंने उसे जोबन से कम आग नहीं लगा रखी थी,... बस दो तीन दिन की बात और फिर इस तरफ भी जम कर मूसल चलेंगे,
मन तो बहुत कर रहा था स्साली के पिछवाड़े ऊँगली करने का, लेकिन मन मसोस कर रही गयी हाँ उस बंद छेद को सहलाने से नहीं रोक पायी मैं और गुड्डी एकदम काँप गयी, डाक्टर गिल ने बोला था की हम दोनों के ननदिया के निप्स जितने सेंसटिव हैं उतना ही सेंसिटिव पिछवाड़े का छेद भी,... गुड्डी गिनगीना रही थी चूतड़ पटक रही थी और जैसे मैंने उसे चूसने की रफ़्तार बढ़ाई उसने भी गीता की बुर चूसने की रफ़्तार बढ़ा दी, अब साथ साथ मैं
कभी उसकी क्लिट हलके से छू देती थी, पार्शियल हूडोक्टोमी के बाद क्लिट का मुँह ३/४ खुला हुआ था जैसे घूंघट खुलने के बाद दुल्हन का मुखड़ा दिखे उसी तरह से गुलाबी क्लिट बहुत प्यारी सी लग रही थी और क्लिट छूते ही गुड्डी पागल, एकदम झड़ने की कगार पर,... वो कसमसा रही थी
मैं उसे बार बार झाड़ने की कगार पर ले जा जा रही थी लेकिन झाड़ नहीं रही थी, गीता और मेरी आँखों ने तय कर लिया था आज स्साली को तड़पाना है जब तक मुंह खोल के साफ़ साफ़ बोले नहीं, खुद मांगे नहीं, ... और रोज,... फिर मुंह खोल के,...
अभी तो गीता जैसे उसके ऊपर चढ़ी थी ननद रानी का बोलना मुश्किल था, मैंने आँखों ही ही आँखों में इशारा किया, गीता ने बस ज़रा सी कमर उठायी और गुड्डी तड़पती हुयी मुझसे बोली, ...
भाभी प्लीज झाड़ दीजिये न, ओह्ह उफ़ और जोर से उसने चुतड़ उठाया पर ऐन मौके पे अपनी जीभ हटा दी जैसे कमान पे चढ़ा तीर कोई वापस तरकश में डाल ले और उससे बोली,
" गीता को बोल न "
" बोल पीना है, साफ़ साफ़ बोल पीयेगी,... " गीता ने पूछा
अब तक गुड्डी भी समझ गयी थी क्या पीने पिलाने की बात हो रही है, आधे घंटे भी नहीं हुआ होगा जब मैंने पहली बार उसे सुनहली शराब का स्वाद चखाया था,... मन भर के पिलाया था, उसके भैया के जाने के बाद
गुड्डी जानती थी की मेरे और गीता की जुगल बंदी के बीच उसका बचना मुश्किल है, फिर झड़ने के लिए इस समय जो हालत थी वो कुछ भी कर सकती थी। सर हिला के उसने हाँ का इशारा किया पर मैंने कस के चिकोटी उस की जांघ पे काट के कहा, ... ननद रानी गीता ने मुंह से बोलने को कहा है मुंह खोलना पड़ता है,...
गुड्डी मुस्करायी, फिर धीरे से बोली,... सुनहली,...
लेकिन गीता तो साफ़ बोलती थी साफ़ सुनना पसंद करती थी और गुड्डी को आज वो किंक वाला चैप्टर,... बस उसके चेहरे पर गुस्सा, और उँगलियों से कस के गुड्डी के निप पकड़ के वो मरोड़ने लगी,... बोल साफ़ साफ़ गीता गरजी,... जानती तो गुड्डी भी थी गीता क्या सुनना चाहती है पर झिझक शरम, और वही तो हटाना था,...
हलके से गुड्डी के होंठों से मू निकला
की गीता ने कस के नाख़ून से निप्स पिंच कर लिए,... और एक बार नहीं पांच बार बुलवाया जोर जोर से,... जोर से बोल, पूरा बोल,...
बारिश जो धीमी हो गयी थी एक बार फिर से तेज हो गयी, लगता था जो बादल रात भर बरसे थे उन्हें सुबह होने के पहले अपनी सब गागर गिरा कर, घर जाने की जल्दी थीं, ... जहाँ अभी बस पत्तीयों से बूंदे टपक रही थीं वही तेज धार, हम तीनो कीचड़ में लथपथ, कीचड़ में लेटे,...
एक बूँद सुनहली, पिघलते सोने की गीता की देह से गुड्डी के मुंह में, दूसरी , तीसरी,... फिर बारिश की बूंदो में घुली मिली,...
गीता बोली, लेकिन अबकी चिढ़ाते छेड़ते, ...
" हे सुन लो, एक बूँद भी इधर उधर गिरी न तो बहुत मारूंगी,... जितनी जोर से भैया मारते हैं उससे भी जोर से ,... और दुलार से एक हल्का तमाचा प्यार भरा गुड्डी के गाल पर,...
मैंने एक बार कस के गुड्डी की बुर चूसनी शुरू कर दी, ... और गीता ने भी अपने निचले होंठ गुड्डी के होंठों से चिपका दिए,... अभी भी गीता की देह से,... गीता साथ साथ गुड्डी के उभार भी मसल रही थी ,
मेरे होंठों का असर कुछ देर में ही गुड्डी फिर से झड़ने के कगार पर, लेकिन अब मैं नहीं रुकी बल्कि ऊँगली की टिप से क्लिट को सहला कर और तेज,... गुड्डी का झड़ना शुरू हुआ, वो उचक रही थी मचल रही थी, और गुड्डी का झड़ना रुकते ही अब गीता का झड़ना शुरू हो गया,... बारिश रुक गयी थी आसमान की भी देह की भी,...
कुछ देर बाद हम तीनों घर के बाहर लॉन में कीचड़ में लथपथ पड़े थे, लेकिन ननदें होती ही छिनार है , गुड्डी तो दर छिनार,... बस बिन बोले इशारो में उसने गीता से पैक्ट कर लिया और गुड्डी मुझे चिढ़ाते बोली,
भाभी मैं झड़ गयी, गीता झड़ गयी बस आप ही बची हैं,...
सावन में होली का नजारा....प्यार की बारिश
लेकिन ननदें होती ही छिनार है , गुड्डी तो दर छिनार,... बस बिन बोले इशारो में उसने गीता से पैक्ट कर लिया और गुड्डी मुझे चिढ़ाते बोली, भाभी मैं झड़ गयी, गीता झड़ गयी बस आप ही बची हैं,...
गीता ने मुझे धर दबोचा,... उसकी देह मेरी देह के ऊपर,... और गुड्डी मेरी जाँघों के बीच,... चूसना चाटना, और गीता ने न सिर्फ इशारा किया बल्कि अपने हाथ से पकड़ के गुड्डी की दो उँगलियाँ मेरी बिल में, और गीता का अंगूठा मेरे क्लिट पे,...
और अब मैं भी काँप रही थी उछल रही थी, ननद वो भी कुँवारी टीनेजर नन्द से चूत चटवाने का मजा ही और है,
कुछ देर में मैं भी झड़ रही थी, गुड्डी ऊँगली भी मस्त कर रही थी, सिर्फ आगे पीछे ही नहीं, गोल गोल और उसे मालूम था की नर्व एंडिंग्स कहाँ पर है तो कभी वहां रगड़ देती तो कभी बस हलके से टैप कर देती और जिस तरह से लरजती निगाहों से बीच बीच में वो टीनेजर मुझे देखती, क्या कहूं बस, उसकी निगाहों में देख के झाड़ देने वाली ताकत थी,... गीता उसे सही सिखा रही थी.
एक बार हम तीनो,.. पंकिल,...
फिर कुछ देर में सहारा लेकर एक दूसरे का उठे,... बारिश तो रुक गयी थी पर बादलों ने अभी भी उषा का रास्ता रोक रखा था , पेड़ों की पत्तियों से बूंदे टपक रही थीं, बस उसी से हम दोनों ने एक दूसरे की देह का कीचड़ साफ किया,
लेकिन गीता का मन अभी भरा नहीं था,
उसने गुड्डी को बाहों में बाँध लिया और खड़े खड़े दोनों एक दूसरे को चूमने लगे, ... गीता के हाथों के दबाव ने गुड्डी को बता दिया, वो सरकती हुयी, गीता के देह की सीढ़ी उतरती,... होठों से जोबन तक,... कुछ देर तक गीता के उरोजों का रस लेने के बाद गहरी नाभि और फिर दोनों जंघाओं के बीच रस कूप,... बस गीता यही तो इन्तजार कर रही थी, उसकी जाँघों की पकड़ किसी लोहार की सँड़सी से कम नहीं थी,... और गीता ने गुड्डी के सर को भी दोनों हाथों से पकड़ कर दबोच लिया, ... गुड्डी के होंठ अपने आप खुल गए
और फिर गीता के निचले होंठों से सुनहली शराब और अबकी गुड्डी खुद ही,... और इस बार पहली बार से भी ज्यादा देर तक, खड़े खड़े,...
दोनों में से किसी को फरक नहीं पड़ रहा था, और यही काम की पराकष्ठा है जब देह का सुख ही सब कुछ तय करे,...
जब गुड्डी उठी तो गीता ने बड़े दुलार से उसके गीले होंठों को चूम के कहा,
" अब थोड़ा सो जाओ, आज काम हम अकेले निपटा देंगे, और कल से रोज मुंह अंधियारे, ... आके सबसे पहले यही काम,
गुड्डी ने ख़ुशी से हामी में सर हिलाया, पर ननद की बात भाभी सीधे से मान ले तो वो भाभी नहीं, मैंने जोड़ा
" अरे एक टाइम से का होगा , दोनों जून "
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मैं और गुड्डी बिस्तर पर जैसे ही एक दूसरे की बाँहों में लेटे, मस्ती और थकान, पल भर में नींद आ गयी।
मेरी नींद खुली तो बस आठ बजने वाला था ।
मेरी पलंग खाली थी , मेरी गौरेया गायब।
सिर्फ हलकी सी सुनहली धूप फर्श पर पसरी हुयी थी , खिड़की खुली और बाहर पेड़ों पर से चिड़ियों की चहचाहट
जैसे ढेर सारी लड़कियां सुबह सुबह अपने , ब्वॉयफ्रेंड्स को ट्वीट कर रही हों ,
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प्यार की बारिश से बढ़कर क्या बारिश होगी
और जब उस बारिश के बाद
हिज्र की पहली धूप खुलेगी
तुझ पर रंग के इस्म खुलेंगे
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बारिश अब से पहले भी कई बार हुई थी
क्या इस बार मेरे रंगरेज़ ने चुनरी कच्ची रंगी थी
या तन का ही कहना सच कि
रंग तो उसके होंठों में था