गलती उनकी भी नहीं है जो एक पुरुष और कई स्त्रियों वाली कहानी की मांग करते हैं , ९५ % से ऊपर कहानियां इसी तरह की होती हैं,...
पहला मुद्दा है एट्टीट्यूड का,... वीरभोग्या वसुंधरा टाइप,... मर्द है तो उसका हक़ है और हर लड़की, तो सिर्फ कहने की देर है टांग फैला देगी,... रिश्ता कोई हो, जान पहचान न भी हो , कोई सिडक्शन भी न हो,... तो भी
और में उस एट्टीट्यूड के खिलाफ हूँ इसलिए वो मेरी कहानी में चाह कर भी नहीं आ सकता,... मैं मानती हूँ देह की मांग लड़की की भी होती है,... लेकिन हीरो के कितनी भी स्त्रियों से संबंध हो पर उसकी पत्नी या हीरोइन के किसी और से संबंघ नहीं होने चाहिए, मेरा मानना है की संबध का यह अधिकार दोनों का है लेकिन कुछ भी पीठ पीछे छुप छुप के, नहीं होना चाहिए, वहीँ से अविश्वास उपजता है , और वही एडल्ट्री है,...
इस कहानी में कोमल के पति का संबध, ( कोमल के उकसाने पर ही, उसकी स्वीकृति से उसके सामने ही ) आधी दर्जन लड़की/स्त्री से तो हुआ ही,... सास,... गीता, मंजू, ममेरी बहन गुड्डी उसकी सहेली दिया, ( बी जे ही सही ), जेठानी,... और अब मिसेज मोइत्रा और उनकी दो बेटियां,...
हीरोइन के संबध का एक प्रसंग है, जीजा साली का,... लेकिन कितने पाठकों ने क्या क्या नहीं कहा.
दूसरी बात है मेरी कहानी स्त्री प्रधान है, स्त्री के पर्स्पेक्टिव से लिखी जाती है इसलिए वह पक्ष प्रबल हो जाता है।
मेरी दो चार कहानियों में नैरेटर पुरुष है जैसे फागुन का दिन चार, लेकिन उसमें भी रीत, गुड्डी और रंजी का चरित्र प्रमुख हो गया,
तीसरी बात कथ्य विषयों में जोर मे स्ट्रांग प्वाइंट है,... लोक गीत, रीत रिवाज, ननद भौजाई के मजाक, सास बहु और देवरानी जेठानी के रिश्ते,...उन सब में स्त्रियाँ ही प्रधान होती हैं