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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २३६ - मंगलवार, दिल्ली

अपडेट पोस्टड, पृष्ठ १४३३ फायनेंसियल थ्रिलर का नया मोड़,

कृपया पढ़ें, आंनद लें और कमेंट जरूर करें
 
Last edited:

motaalund

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why do you think so that your poetry is not good?? It was fantastic..pls continue...ignore the negative comments...its part of life...
even for very good stories of Komal and Raji, they too must have got some negative comments for their stories..even though they are writing their stories for the last 2-3 years. Hope you can continue with your fantastic poetries. Thanks.
arushi_dayal Rajizexy komaalrani
Her efforts are majestic and fabulous...
 

motaalund

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अद्भुत संगम कविता और चित्रों का,...

कविता के बारे में आरूषि जी की तारीफ़ करना सूरज को दिया दिखाना है, यह कहना की उनकी कविता अच्छी है उसी तरह की बात है जैसे कोई कहे सूरज में तेज है या चन्द्रमा में शीतलता,... यह तो उनका स्वभाव है, स्वयं सिद्ध,...

चित्र भी उनके, रसिक हृदयों को बेध देते हैं,

लेकिन कविता के अनुसार चित्र,... जो जो भाव जैसे जैसे एक अतृप्त नारी के चेहरे पर बनते बिगड़ते हैं, उसकी सोच, उसका संकोच, उसकी झिझक, उसकी दमित इच्छा, चिंगारी जो लहक लहक कर आग बनने के लिए व्याकुल हो रही हो,... सब उसी तरह से जो शब्दों का साथ दे रहे हैं जैसे कोई कुशल तबलची, किसी नृत्यांगना के पैरों की घुंघरू की संगत कर रहा हो,...

अद्भुत



:applause::applause::applause::applause::applause::applause::claps::claps::claps::claps::claps::claps::claps::claps::claps::claps::claps:
जितना कहानी लिखने में आप सक्षम हैं..
उससे कहीं ज्यादा आप तारीफ करने में तुलनात्मक अभिव्यक्ति में हैं...
 
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motaalund

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अत्य्युत्तम,

चित्र, शब्द दोनों ही एक अतृप्त प्रौढ़ा नायिका के भाव को कितने बढ़िया ढंग से दिखाते हैं,

मन तो भौजाई का कर ही रहा है, जैसे खूब गरम तवे पे दो बूँद पानी के छींटे पड़ने के बाद जो छनछनाहट होती है वही हालत उनकी है,... स्त्री की यौन पिपासा धीरे धीरे भड़कती है, सुलगती आग जैसे दावानल बन जाए,... लेकिन अक्सर पुरुष के लिए वह एक कुतूहल का, बॉक्स टिक करने का खेल होता है,... एक तरफ़ा खेल, जिसमें उसका आर्गेंज्म अंतिम परिणति है ,... पर एक बार अनुभव कर चुकी महिला के लिए तो वह एक नया पाया आनंद है,

और सामने देवर, जो झिझकता है बोलता नहीं है पर उसका तन ही मन की हाल बता देता है,...

और नारी जब करने पर आ जाए, क्या प्लानिंग बनायी है

लेकिन किसी कहानी लिखने वाले के लिए यह कम से कम चार पोस्टों का वर्ण्य विषय होता और जहां आरुषि जी ने दो पार्ट्स में, चंद लाइनों और चित्रों में सब कुछ कह दिया,...

आपको आपकी कलम को सलाम


:bow::bow::bow::bow::bow::bow::bow::bow:
दोनों का तालमेल अनन्य है...
 
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motaalund

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और आ गयी मिलन की रात

वो श्रृंगार और

किस तरीके से बात अपनी इशारे में देवर से कह दी, ... पति घर में नहीं है,... फिर भी चॉकलेट फ्लेवर्ड कंडोम,... देवर भी समझ गया होगा किसके लिए है,... मैं तो उस देवर की मनस्थिति सोच रही हूँ, जो कुंवारा है स्त्री प्रसंग का प्यासा है, भाभी भी रस की खान देख के तम्बू तन जाता है, घर में सिर्फ वो और भाभी,... जो उससे कंडोम मंगा रही है और अपने सिंगार का सामान,...

और ऊपर से ये चित्र उफ़ , चित्त को मोह लेने वाले , सिंगार के सजना के लिए नहीं देवर के लिए सजने के,... और फ्लेवर्ड कंडोम भी, जो बिन कहे सब कुछ कह दे रहा है,...

आप श्रेष्ठ नहीं सर्व श्रेष्ठ हैं

:thumbup::thumbup::thumbup::thumbup::thumbup::thumbup::thumbup:
ये सजना... सजना के लिए नहीं... देवर के लिए है... बहुत खूब...
 
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motaalund

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ईमानदारी से बताऊँ कोमल जी...मैं आपकी टिप्पणियों का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। आपके द्वारा लिखा गया एक-एक शब्द दिल को सुकून देता है और लिखना जारी रखने और अच्छी सामग्री लिखने की प्रेरणा देता है। इसे लिखने में हमने जो भी प्रयास किए उसके लिए हमें न तो वजीफा मिल रहा है और न ही भुगतान, लेकिन सम्मानित पाठकों की ओर से सराहना के शब्द बहुत आराम और खुशी देते हैं। आपकी समीक्षा के लिए फिर से धन्यवाद. बहुत जल्द मैं अगला अपडेट पोस्ट करूंगी.
सही कहा.. सराहना के दो शब्द हीं आत्मिक संतुष्टि देते हैं....
और आगे लिखने को उत्साह...
 
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motaalund

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Part 4
In this update i am trying to post update through pictures…please let me know which is better

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quake emojis
उफ्फ... सचमुच.. हम सबका दिल मचल गया...
 
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komaalrani

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धन्यवाद राजी दीदी लेकिन मेरे सम्मानित पाठकों से मिली कुछ प्रतिक्रियाओं को देखते हुए मुझे लगता है कि मेरी प्रस्तुति मेरे पाठकों को पसंद नहीं आई है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरी हूं। मैं इस बेकार कविता के लिए हार्दिक खेद व्यक्त करती हूं और आश्वासन देती हूं कि मैं इस पर कोई और अपडेट पोस्ट नहीं करूंगी।
मुशायरों और कवि सम्मेलनों में भले ही बीच बीच में वाह वाह कही जाए और तालियां बजायी जाएँ,

लेकिन शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति में, रसिकजन, आलाप या मुरकी और किसी अच्छी तान के बाद तारीफ़ नहीं करते,... मूर्तिवत सिर्फ सुनते हैं,... और प्रस्तुति के समाप्त होने के बाद स्टैंडिंग ओवेशन से कलाकार की अभ्यर्थना करते हैं,


आपकी पोस्ट्स मुझे उसी प्रस्तुति की भाँती लगती है, इसलिए मैंने मेरी पोस्ट पर भी कुछ पाठकों के कमेंट्स का जवाब इसलिए नहीं दिया की कही वह धारा टूट न जाए, और यही स्थिति हम सब पाठकों की रही होगी,

आपकी पोस्ट और पसंद न आये ये एक विरोधाभास् है

और इसलिए मैंने हर पोस्ट पर अलग अलग , लेकिन तीन पोस्टों के बाद अपनी मन की बात कही...

यह कभी आप सपने में भी नहीं सोचियेगा, और कोई गलती से भ्रम हो गया हो तो एक बार अपनी प्रोफ़ाइल देखियेगा

४४५ मेसेज , १७२८ लाइक्स,

यानी हर पोस्ट पर कम से कम ३. लाइक्स, इतना प्यार दुलार किसे मिला होगा,... और आप इसकी हकदार भी हैं,...कृपया पोस्टों को जारी रखिये,... हम सब बहुत ध्यान लगा के आपकी हर पोस्ट का इस थ्रेड पर इन्तजार करेंगे,
 

komaalrani

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Last Update is on page 923

Part 201,

please do read, enjoy, like and post your comments
 

komaalrani

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why do you think so that your poetry is not good?? It was fantastic..pls continue...ignore the negative comments...its part of life...
even for very good stories of Komal and Raji, they too must have got some negative comments for their stories..even though they are writing their stories for the last 2-3 years. Hope you can continue with your fantastic poetries. Thanks.
arushi_dayal Rajizexy komaalrani
Thanks,

I have received more than my share of brickbats rather than bouquets. you are absolutely correct. But I will wish that nobody dare say a word to Arushi ji. and if anybody says anything on my threads, crossing all the limits, i only remember Goswami Ji' line


बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥
पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥1॥


भावार्थ:-अब मैं सच्चे भाव से दुष्टों को प्रणाम करता हूँ, जो बिना ही प्रयोजन, अपना हित करने वाले के भी प्रतिकूल आचरण करते हैं। दूसरों के हित की हानि ही जिनकी दृष्टि में लाभ है, जिनको दूसरों के उजड़ने में हर्ष और बसने में विषाद होता है॥1॥

पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥
बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा॥4॥

भावार्थ:-जैसे ओले खेती का नाश करके आप भी गल जाते हैं, वैसे ही वे दूसरों का काम बिगाड़ने के लिए अपना शरीर तक छोड़ देते हैं। मैं दुष्टों को (हजार मुख वाले) शेषजी के समान समझकर प्रणाम करता हूँ, जो पराए दोषों का हजार मुखों से बड़े रोष के साथ वर्णन करते हैं
 
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