महानता वहानता कुछ नहीं है , असल बात बोलूं,... बुरा मत मानियेगा, असल में मैं लालची हूँ,... अभी आपने जो अच्छी अच्छी बातें लिखीं न बस उसी को पढ़ने के लिए मन ललचाता है, बस इसी लालच में लिखती हूँ , फिर पोस्ट खोल के देखती हूँ , किसने क्या कहा,...
निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं
"रसीली हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती? किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत् में बहुत नहीं हैं"
ये बात महाकवि गोस्वामी जी ने कही है, तो महान तो आप हैं जो दूसरे की कैसी भी रचना को पढ़ के सराहते हैं , हिम्मत बढ़ाते हैं , हौसला अफ़जाई करते है , चाहे लिखने वाली मुझ जैसी कलम घसीट ही क्यों न हों ,
नमन और आभार,...