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Incest "टोना टोटका..!"

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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अब घर मे घुसते ही राजु ने रुपा को देखा तो...

"अरे..! जीजी... आप कब आये..?" कहते हुवे वो तुरन्त दौङकर रुपा के‌ पास आ गया, मगर उसने जब रुपा को रोया हुवा चेहरा देखा तो...

"क्या हुवा जीजी..? आप रो क्यो रहे हो..? उसने‌ रुपा के चेहर की ओर देखते हुवे पुछा...

"कुछ नही, जा तु जीज्जी को पानी लाकर दे..!" लीला ने ऐसे ही बहाना बनाते हुवे कहा।

राजु जब तक पानी लेकर आया तब तक रुपा भी बिल्कुल चुप हो गयी थी। उसने राजु से पानी का गिलास लेकर पहले तो अपना मुँह को धोया, फिर बचे हुवे पानी को पी लिया...

रुपा अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये..
"क्या हुवा जीज्जी... आप रो क्यो रहे थे..?" एक बार फिर से राजु ने उसके चेहरे की ओर देखते हुवे पुछा जिससे...

"क्.कुछ भी तो नही, बस ऐसे ही, तु बता कहा गया था..?" रुपा ने‌ चेहरे पर हल्की छुठी मुस्कान सी लाते हुवे कहा और खाली गिलास राजु को देकर अपने दुपट्टे से ही चेहरे को पौछने लगी।

"कही नही जीज्जी.. बस खेत गया था...!" राजु ने खाली गिलास को एक ओर रखते हुवे कहा। वो कुछ और कहता तब तक...

"बाकी बाते बाद मे करना, पहले जा तु बनिये से दस रु० के टमाटर ले आ, खाने का समय हो गया है..!" लीला ने अपने ब्लाउज से दस रुपये का नोट निकालकर राजु को देते हुवे कहा।

राजु पैसे लेकर टमाटर लेने दुकान चला गया था जिससे..
"तु चिन्ता मत कर, मै कल फिर से बैद जी के पास जाकर आँऊगी, सब ठीक हो जायेगा..! जा हाथ मुँह धो ले तब तक मै खाना बना देती हुँ..!" ये कहते हुवे लीला रसोई मे घुस गयी तो, रुपा भी अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये वो भी चुपचाप हाथ मुँह धोने के लिये बाथरुम..? बाथरुम तो नही उस समय गाँवो मे इतनी सुविधा नही‌ होती थी, बस अपना अपना जुगाङ होता था।

घर के आँगन मे नाली के पास बङी सी सील (चपटी पत्थर) डालकर रखते थे जिस पर मर्द तो ऐसे खुले मे ही नहा लिया करते थे, और औरते घर के जब सब मर्द काम के लिये निकल जाते थे तब घर को बन्द करके नहा लेती थी, या फिर साङी चद्दर या बोरी आदि की आड करके नहा लेती थी, उसी सील पर वो कपङे आदी धोना और दिन भर पिशाब आदि जाना होता तो वही कर लेती थी।

लीला ने भी घर के आँगन मे ही नाली के पास एक बङी सी सील जमा रखी थी जिसके पास वो पानी के मटके व बाल्टी आदि रखती थी इसलिये नहाना धोना व पिशाब आदी वो वही करती थी। वैसे भी लीला के घर मे मर्द के नाम पर अब बस राजु ही था जो की अधिकतर खेतो मे रहता था इसलिये कोई आड या जगाङ करने की उसे कभी जरुरत ही महसूस नही हुई।

अब रुपा भी हाथ मुँह धोने के लिये एक बाल्टी मे पानी लेकर कोने मे जमी उस सील पर आ गयी, मगर हाथ मुँह धोने से पहले उसने पिशाब करने की सोची और बाल्टी को एक ओर रख वो सीधे शलवार का नाङा खोल मुतने बैठ गयी। उधर राजु भी तब तक दुकान से टमाटर ले आया था इसलिये लीला को टमाटर देने वो सीधा रसोई मे घुस गया...

वो अपनी ही धुन मे था इसलिये घर मे घुसते समय तो उसका ध्यान कोने मे बैठकर मुत रही अपनी जीज्जी की ओर नही गया, मगर रशोई मे एक छोटी सी खिङकी थी जो की ठीक आँगन मे जो सील जमा रखी थी उसके सामने थी इसलिये राजु अब लीला को टमाटर देने रशोई मे पहुँचा तो उसकी नजर खिङकी की ओर चली गयी जहाँ उसे सील पर बैठकर पिशाब करते उसकी जीज्जी अब साफ नजर आई...

रुपा को ना तो ये ध्यान रहा था की घर मे राजु है, जो कभी भी आ सकता है, और ना ही ये मालुम चला की वो घर मे कब आ गया। वो बस अपने ही ख्यालो मे‌ खोई गर्दन को नीचे झुकाकर अपनी चुत से पिशाब की धार छोङे जा रही थी। उसने अपने सुट को घुटनो से थोङा नीचे कर रखा था जिससे उसकी चुत तो नजर नही आ रही, मगर उसकी चुत से निकलकर दुर तक जाती मुत की धार साफ नजर आ रही थी, जो की राजु के लिये एक अदभुत नजारा था।

उस समय गाँवो मे शौचालय किसी किसी घर मे ही होते थे इसलिये आधिकतर औरते शौच आदि के लिये खेतो मे ही जाया करती थी। राजु ने लङकियो व औरतो को दुर से तो शौच आदि करते समय काफी बार देखा था मगर इतने करीब से किसी को पिशाब करते देखना उसके लिये एक बेहद ही कामुक नजारा था। रुपा की चुत से निकलती मुत की धार को देख उसकी नजर अब रुपा पर ही जमकर गयी...

लीला भी रसोई मे ही खङी थी उसने अब राजु को इस तरह चुपचाप व गुमसुम सा खङे देखा तो उसकी नजर भी राजु की नजरो का पीछा करते हुवे खिङकी की ओर चली गयी, जहाँ से रुपा पिशाब करती साफ नजर आ रही थी। राजु को भी ये मालुम‌ था की पास मे ही उसकी बुवा खङी है जोकी उसे देख भी सकती है मगर फिर भी कुछ देर तो उससे अपनी जीज्जी की चुत से‌ निकलते उस सुनहैरी झरने को देखने का लालच छोङा नही गया..

वो कुछ देर तो ऐसे ही टकटकी लगाये खिङकी से रुपा को मुतते देखता रहा मगर जल्दी उसे भी ये अहसास हो गया की लीला उसे देख रही है इसलिये तुरन्त उसने खिङकी से नजरे हटाकर अपना चेहरा घुमा‌ना चाहा मगर लीला उसे ही देख रही थी‌ जिससे अपनी चोरी पकङी जाने के डर से वो झेँप सा गया और...

"म्.म्. मै गप्पु के घर जाकर आता हुँ...!" राजु ने नजरे चुराते हुवे कहा और तुरन्त टमाटर की थैली को रशोई मे रखकर बाहर भाग गया.....
Nice story... Keep posting
 

sunoanuj

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Bahut hee shandaar shuruaat hai !
 
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अब घर मे घुसते ही राजु ने रुपा को देखा तो...

"अरे..! जीजी... आप कब आये..?" कहते हुवे वो तुरन्त दौङकर रुपा के‌ पास आ गया, मगर उसने जब रुपा को रोया हुवा चेहरा देखा तो...

"क्या हुवा जीजी..? आप रो क्यो रहे हो..? उसने‌ रुपा के चेहर की ओर देखते हुवे पुछा...

"कुछ नही, जा तु जीज्जी को पानी लाकर दे..!" लीला ने ऐसे ही बहाना बनाते हुवे कहा।

राजु जब तक पानी लेकर आया तब तक रुपा भी बिल्कुल चुप हो गयी थी। उसने राजु से पानी का गिलास लेकर पहले तो अपना मुँह को धोया, फिर बचे हुवे पानी को पी लिया...

रुपा अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये..
"क्या हुवा जीज्जी... आप रो क्यो रहे थे..?" एक बार फिर से राजु ने उसके चेहरे की ओर देखते हुवे पुछा जिससे...

"क्.कुछ भी तो नही, बस ऐसे ही, तु बता कहा गया था..?" रुपा ने‌ चेहरे पर हल्की छुठी मुस्कान सी लाते हुवे कहा और खाली गिलास राजु को देकर अपने दुपट्टे से ही चेहरे को पौछने लगी।

"कही नही जीज्जी.. बस खेत गया था...!" राजु ने खाली गिलास को एक ओर रखते हुवे कहा। वो कुछ और कहता तब तक...

"बाकी बाते बाद मे करना, पहले जा तु बनिये से दस रु० के टमाटर ले आ, खाने का समय हो गया है..!" लीला ने अपने ब्लाउज से दस रुपये का नोट निकालकर राजु को देते हुवे कहा।

राजु पैसे लेकर टमाटर लेने दुकान चला गया था जिससे..
"तु चिन्ता मत कर, मै कल फिर से बैद जी के पास जाकर आँऊगी, सब ठीक हो जायेगा..! जा हाथ मुँह धो ले तब तक मै खाना बना देती हुँ..!" ये कहते हुवे लीला रसोई मे घुस गयी तो, रुपा भी अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये वो भी चुपचाप हाथ मुँह धोने के लिये बाथरुम..? बाथरुम तो नही उस समय गाँवो मे इतनी सुविधा नही‌ होती थी, बस अपना अपना जुगाङ होता था।

घर के आँगन मे नाली के पास बङी सी सील (चपटी पत्थर) डालकर रखते थे जिस पर मर्द तो ऐसे खुले मे ही नहा लिया करते थे, और औरते घर के जब सब मर्द काम के लिये निकल जाते थे तब घर को बन्द करके नहा लेती थी, या फिर साङी चद्दर या बोरी आदि की आड करके नहा लेती थी, उसी सील पर वो कपङे आदी धोना और दिन भर पिशाब आदि जाना होता तो वही कर लेती थी।

लीला ने भी घर के आँगन मे ही नाली के पास एक बङी सी सील जमा रखी थी जिसके पास वो पानी के मटके व बाल्टी आदि रखती थी इसलिये नहाना धोना व पिशाब आदी वो वही करती थी। वैसे भी लीला के घर मे मर्द के नाम पर अब बस राजु ही था जो की अधिकतर खेतो मे रहता था इसलिये कोई आड या जगाङ करने की उसे कभी जरुरत ही महसूस नही हुई।

अब रुपा भी हाथ मुँह धोने के लिये एक बाल्टी मे पानी लेकर कोने मे जमी उस सील पर आ गयी, मगर हाथ मुँह धोने से पहले उसने पिशाब करने की सोची और बाल्टी को एक ओर रख वो सीधे शलवार का नाङा खोल मुतने बैठ गयी। उधर राजु भी तब तक दुकान से टमाटर ले आया था इसलिये लीला को टमाटर देने वो सीधा रसोई मे घुस गया...

वो अपनी ही धुन मे था इसलिये घर मे घुसते समय तो उसका ध्यान कोने मे बैठकर मुत रही अपनी जीज्जी की ओर नही गया, मगर रशोई मे एक छोटी सी खिङकी थी जो की ठीक आँगन मे जो सील जमा रखी थी उसके सामने थी इसलिये राजु अब लीला को टमाटर देने रशोई मे पहुँचा तो उसकी नजर खिङकी की ओर चली गयी जहाँ उसे सील पर बैठकर पिशाब करते उसकी जीज्जी अब साफ नजर आई...

रुपा को ना तो ये ध्यान रहा था की घर मे राजु है, जो कभी भी आ सकता है, और ना ही ये मालुम चला की वो घर मे कब आ गया। वो बस अपने ही ख्यालो मे‌ खोई गर्दन को नीचे झुकाकर अपनी चुत से पिशाब की धार छोङे जा रही थी। उसने अपने सुट को घुटनो से थोङा नीचे कर रखा था जिससे उसकी चुत तो नजर नही आ रही, मगर उसकी चुत से निकलकर दुर तक जाती मुत की धार साफ नजर आ रही थी, जो की राजु के लिये एक अदभुत नजारा था।

उस समय गाँवो मे शौचालय किसी किसी घर मे ही होते थे इसलिये आधिकतर औरते शौच आदि के लिये खेतो मे ही जाया करती थी। राजु ने लङकियो व औरतो को दुर से तो शौच आदि करते समय काफी बार देखा था मगर इतने करीब से किसी को पिशाब करते देखना उसके लिये एक बेहद ही कामुक नजारा था। रुपा की चुत से निकलती मुत की धार को देख उसकी नजर अब रुपा पर ही जमकर गयी...

लीला भी रसोई मे ही खङी थी उसने अब राजु को इस तरह चुपचाप व गुमसुम सा खङे देखा तो उसकी नजर भी राजु की नजरो का पीछा करते हुवे खिङकी की ओर चली गयी, जहाँ से रुपा पिशाब करती साफ नजर आ रही थी। राजु को भी ये मालुम‌ था की पास मे ही उसकी बुवा खङी है जोकी उसे देख भी सकती है मगर फिर भी कुछ देर तो उससे अपनी जीज्जी की चुत से‌ निकलते उस सुनहैरी झरने को देखने का लालच छोङा नही गया..

वो कुछ देर तो ऐसे ही टकटकी लगाये खिङकी से रुपा को मुतते देखता रहा मगर जल्दी उसे भी ये अहसास हो गया की लीला उसे देख रही है इसलिये तुरन्त उसने खिङकी से नजरे हटाकर अपना चेहरा घुमा‌ना चाहा मगर लीला उसे ही देख रही थी‌ जिससे अपनी चोरी पकङी जाने के डर से वो झेँप सा गया और...

"म्.म्. मै गप्पु के घर जाकर आता हुँ...!" राजु ने नजरे चुराते हुवे कहा और तुरन्त टमाटर की थैली को रशोई मे रखकर बाहर भाग गया.....
Nice update
 

Iron Man

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Chutphar

Mahesh Kumar
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