कहानी का प्रारंभ बडा ही मस्त और शानदार हैं भाई मजा आ गयाअभी तक आपने जान ही लिया होगा की कहानी किस केन्द्र पर आधारित है तो चलिये अब कहानी की ओर बढते है...
दिन ढलने को था घर के बाहर लीला अपने पशुओ को चारा डाल ही रही थी की तभी उसके दरवाजे के पास एक स्कुटर आकर रुका, स्कुटर पर उसकी बेटी रुपा व दामाद थे। स्कुटर के रुकते ही रुपा तो उतरकर सीधे घर के अन्दर चली गयी, मगर दामाद स्कुटर पर ही बैठे रहा...
जैसा की घर के दामाद की सभी इज्जत करते है लीला ने भी अपने दामाद की पुरी इज्जत करनी चाही। गाँवो मे दामाद के सामने सास अपना सिर ढक कर रखती है, इसलिये लीला ने भी घर के दामाद को देख एक हाथ से पल्लु कर लिया और पशुओ को चारा डालना छोङ..
"अरे.. दामाद जी.., आओ.. आओ....!" कहते हुवे तुरन्त उसकी आव भगत करने लगी, मगर...
"अभी नही..!, दुकान ऐसे ही छोङकर आया हुँ, फिर कभी आऊँगा..!" उसने स्कुटर पर बैठे ही कहा।
"कम से कम चाय पानी तो प्.पि..." लीला अपनी बात पुरी करती, तब तक वो स्कुटर को चालु कर वहाँ से निकल गया...
अपनी बेटी के रोये हुवे चेहरे को देख लीला सब समझ गयी थी, इसलिये बचा हुवा चारा जल्दी से पशुओ को डालकर वो भी घर के अन्दर आ गयी। अन्दर रुपा चारपाई पर बैठकर रो रही थी जो अब अपनी माँ को देखकर खङी हो गयी और उसके गले लगकर और भी जोर से रोने लगी...
लीली ने भी उसे अपने सीने से चिपका लिया और...
"क्या हुवा..?" वैसे तो लीला को सब मालुम था की क्या बात है, मगर फिर भी उसने रुपा के सिर पर हाथ फिराते हुवे पुछा।
"होना क्या है, उस दवा से भी कुछ नही हुवा..!, अब तो तँग आ गयी हुँ मै ताने सुन सुन कर...!
अब मेरा क्या दोष जब बच्चा नही हो रहा तो.!, बुढिया मुझे ही सुनाती रहती अपने बेटे से कुछ नही कहती, उसमे भी तो खराबी हो सकती है..? " रुपा ने रोते रोते ही कहा।
"कोई नही सब ठीक हो जायेगा..!, और रोने से क्या होगा..? तु रो मत सब ठीक हो जायेगा..!" लीला ने उसे सांत्वना देते हुवे कहा।
"रोऊ नही तो क्या करु..?, पहले वो तो कुछ नही कहते थे, अब तो वो भी अपनी माँ की ओर बोलने लगे है, जी तो करता है कुवे मे कुदकर जान दे दुँ...!" रुपा ने सुबकते हुवे कहा।
"नही नही ऐसा नही कहते, मै बात करती हुँ दामाद जी से...!" लीला ने अपनी बेटी के सिर पर हाथ फिराते हुवे कहा।
"उससे क्या बात करना, वो तो खुश ही होगा, उसे दुसरी जो मिल जायेगी..?" बुढिया अपने बेटे को नही देखती, पता नही बापु ने क्या सोचकर उस बुड्ढे को पसन्द किया था..!" रुपा ने थोङा तैस मे आते हुवे कहा।
"ऐसा नही कहते, सब ठीक हो जायेगा, तु चिँता मत कर..!" लीला बोल ही रही थी की तभी राजु आ गया, जिसे देख लीला अब चुप हो गयी तो, वही रुपा भी जल्दी से अपने आँशु पौछकर शाँत हो गयी।
बहुत ही मस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गयाअब घर मे घुसते ही राजु ने रुपा को देखा तो...
"अरे..! जीजी... आप कब आये..?" कहते हुवे वो तुरन्त दौङकर रुपा के पास आ गया, मगर उसने जब रुपा को रोया हुवा चेहरा देखा तो...
"क्या हुवा जीजी..? आप रो क्यो रहे हो..? उसने रुपा के चेहर की ओर देखते हुवे पुछा...
"कुछ नही, जा तु जीज्जी को पानी लाकर दे..!" लीला ने ऐसे ही बहाना बनाते हुवे कहा।
राजु जब तक पानी लेकर आया तब तक रुपा भी बिल्कुल चुप हो गयी थी। उसने राजु से पानी का गिलास लेकर पहले तो अपना मुँह को धोया, फिर बचे हुवे पानी को पी लिया...
रुपा अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये..
"क्या हुवा जीज्जी... आप रो क्यो रहे थे..?" एक बार फिर से राजु ने उसके चेहरे की ओर देखते हुवे पुछा जिससे...
"क्.कुछ भी तो नही, बस ऐसे ही, तु बता कहा गया था..?" रुपा ने चेहरे पर हल्की छुठी मुस्कान सी लाते हुवे कहा और खाली गिलास राजु को देकर अपने दुपट्टे से ही चेहरे को पौछने लगी।
"कही नही जीज्जी.. बस खेत गया था...!" राजु ने खाली गिलास को एक ओर रखते हुवे कहा। वो कुछ और कहता तब तक...
"बाकी बाते बाद मे करना, पहले जा तु बनिये से दस रु० के टमाटर ले आ, खाने का समय हो गया है..!" लीला ने अपने ब्लाउज से दस रुपये का नोट निकालकर राजु को देते हुवे कहा।
राजु पैसे लेकर टमाटर लेने दुकान चला गया था जिससे..
"तु चिन्ता मत कर, मै कल फिर से बैद जी के पास जाकर आँऊगी, सब ठीक हो जायेगा..! जा हाथ मुँह धो ले तब तक मै खाना बना देती हुँ..!" ये कहते हुवे लीला रसोई मे घुस गयी तो, रुपा भी अब थोङा सामान्य हो गयी थी इसलिये वो भी चुपचाप हाथ मुँह धोने के लिये बाथरुम..? बाथरुम तो नही उस समय गाँवो मे इतनी सुविधा नही होती थी, बस अपना अपना जुगाङ होता था।
घर के आँगन मे नाली के पास बङी सी सील (चपटी पत्थर) डालकर रखते थे जिस पर मर्द तो ऐसे खुले मे ही नहा लिया करते थे, और औरते घर के जब सब मर्द काम के लिये निकल जाते थे तब घर को बन्द करके नहा लेती थी, या फिर साङी चद्दर या बोरी आदि की आड करके नहा लेती थी, उसी सील पर वो कपङे आदी धोना और दिन भर पिशाब आदि जाना होता तो वही कर लेती थी।
लीला ने भी घर के आँगन मे ही नाली के पास एक बङी सी सील जमा रखी थी जिसके पास वो पानी के मटके व बाल्टी आदि रखती थी इसलिये नहाना धोना व पिशाब आदी वो वही करती थी। वैसे भी लीला के घर मे मर्द के नाम पर अब बस राजु ही था जो की अधिकतर खेतो मे रहता था इसलिये कोई आड या जगाङ करने की उसे कभी जरुरत ही महसूस नही हुई।
अब रुपा भी हाथ मुँह धोने के लिये एक बाल्टी मे पानी लेकर कोने मे जमी उस सील पर आ गयी, मगर हाथ मुँह धोने से पहले उसने पिशाब करने की सोची और बाल्टी को एक ओर रख वो सीधे शलवार का नाङा खोल मुतने बैठ गयी। उधर राजु भी तब तक दुकान से टमाटर ले आया था इसलिये लीला को टमाटर देने वो सीधा रसोई मे घुस गया...
वो अपनी ही धुन मे था इसलिये घर मे घुसते समय तो उसका ध्यान कोने मे बैठकर मुत रही अपनी जीज्जी की ओर नही गया, मगर रशोई मे एक छोटी सी खिङकी थी जो की ठीक आँगन मे जो सील जमा रखी थी उसके सामने थी इसलिये राजु अब लीला को टमाटर देने रशोई मे पहुँचा तो उसकी नजर खिङकी की ओर चली गयी जहाँ उसे सील पर बैठकर पिशाब करते उसकी जीज्जी अब साफ नजर आई...
रुपा को ना तो ये ध्यान रहा था की घर मे राजु है, जो कभी भी आ सकता है, और ना ही ये मालुम चला की वो घर मे कब आ गया। वो बस अपने ही ख्यालो मे खोई गर्दन को नीचे झुकाकर अपनी चुत से पिशाब की धार छोङे जा रही थी। उसने अपने सुट को घुटनो से थोङा नीचे कर रखा था जिससे उसकी चुत तो नजर नही आ रही, मगर उसकी चुत से निकलकर दुर तक जाती मुत की धार साफ नजर आ रही थी, जो की राजु के लिये एक अदभुत नजारा था।
उस समय गाँवो मे शौचालय किसी किसी घर मे ही होते थे इसलिये आधिकतर औरते शौच आदि के लिये खेतो मे ही जाया करती थी। राजु ने लङकियो व औरतो को दुर से तो शौच आदि करते समय काफी बार देखा था मगर इतने करीब से किसी को पिशाब करते देखना उसके लिये एक बेहद ही कामुक नजारा था। रुपा की चुत से निकलती मुत की धार को देख उसकी नजर अब रुपा पर ही जमकर गयी...
लीला भी रसोई मे ही खङी थी उसने अब राजु को इस तरह चुपचाप व गुमसुम सा खङे देखा तो उसकी नजर भी राजु की नजरो का पीछा करते हुवे खिङकी की ओर चली गयी, जहाँ से रुपा पिशाब करती साफ नजर आ रही थी। राजु को भी ये मालुम था की पास मे ही उसकी बुवा खङी है जोकी उसे देख भी सकती है मगर फिर भी कुछ देर तो उससे अपनी जीज्जी की चुत से निकलते उस सुनहैरी झरने को देखने का लालच छोङा नही गया..
वो कुछ देर तो ऐसे ही टकटकी लगाये खिङकी से रुपा को मुतते देखता रहा मगर जल्दी उसे भी ये अहसास हो गया की लीला उसे देख रही है इसलिये तुरन्त उसने खिङकी से नजरे हटाकर अपना चेहरा घुमाना चाहा मगर लीला उसे ही देख रही थी जिससे अपनी चोरी पकङी जाने के डर से वो झेँप सा गया और...
"म्.म्. मै गप्पु के घर जाकर आता हुँ...!" राजु ने नजरे चुराते हुवे कहा और तुरन्त टमाटर की थैली को रशोई मे रखकर बाहर भाग गया.....
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गयाजैसा की आपने अभी तक पढा की रुपा बच्चा नही हो पाने के अपनी सास के तानो से तँग आकर अपने मायके मे आई हुई थी जिसे आँगन मे पिशाब करते राजु रशोई की
खिङकी से देख रहा था तो लीला ने उसे पकङ लिया था जिससे घबराकर..
"म्.म्. मै गप्पु के घर जाकर आता हुँ...!" राजु ने नजरे चुराते हुवे कहा और तुरन्त टमाटर की थैली को रशोई मे रखकर बाहर भाग गया..!
अब उसके आगे.....
राजु का रुपा को पिशाब करते देखना, व उसका इस तरह घबराकर बाहर जाना लीला को थोङा अजीब लगा, मगर ये सब काम एक साथ व इतनी जल्दी हुवे की लीला को कुछ समझ ही नही आ सका, इसलिये वो भी ये सोचकर रह गयी की, "हो सकता है ये सब गलती से हुवा होगा..!" और वो चुपचाप खाना बनाने मे लग गयी।
पिशाब करने के बाद रुपा भी हाथ मुँह धोकर रशोई मे ही आ गयी जिससे...
"हाथ मुँह धो लिये तो आ जा तु रोटी खाले..." लीला ने रोटी बेलते कहा।
"नही भुख नही मै बाद मे खा लुँगी..! " ये कहते हुवे रुपा भी लीला के पास वही फर्स पर बैठ गयी और...
"ला..रोटी मै सेक दुँ..?" उसने लीला का हाथ बँटाने के इरादे से पुछा।
"नही रहने दे मै सेक लुँगी, तु रोटी खाले..! और तु चिँता मत कर, मै जा रही ना कल वैध जी के पास, वो कुछ ना कुछ दवा दारू या समाधान जरुर बतायेँगे..?" लीला ने रुपा को तसल्ली देते हुवे कहा, मगर...
"दवा से क्या होगा...? उस बुड्ढे के कुछ बस की बात तो है नही.... वो जो वैद जी से तुमने पहले एक बार दवा लाकर दी थी वो दवा जिस रात उसके दुध मे मिला देती हुँ तो मेरे पास आ जाता है, नही तो उसके बस मे तो ये भी नही की बिना दवा के मेरे पास आ सके...!,
"जब बीज ही सही नही होगा, तो जमीन मे चाहे कितनी भी खाद्द डालते रहो..! अच्छी फसल लेने के लिये खेतो मे अच्छा बीज डाला जाता है, किसान की बेटी हुँ इतना तो मै भी समझती हुँ। उस बुड्ढे के बस की बात तो है नही, अब मै चाहे कितनी भी दवा खाती रहो...?" अपनी माँ से रुपा ने इस तरह की बात पहली बार की थी इसलिये वो ये सब एक ही साँस मे कह गयी।
लीला एक तेज तरार औरत थी। रुपा की बात को वो अच्छे से समझ गयी थी की वो क्या कहना चाह रही है मगर वो अब कुछ कहती तब तक राजु वापस आ गया इसलिये दोनो माँ बेटी चुप हो गये। वो नही चाहती थी की राजु को कुछ पता चले इसलिये लीला चुपचाप रोटी बनाने मे लग गयी तो रुपा एक प्लेट मे सब्जी डालकर रोटी खाने लगी।
रशोई मे जो हुवा था उससे राजु अभी भी लीला से कतरा रहा था इसलिये उसने लीला से तो नजरे नही मिलाई मगर...
"अरे...! जीज्जी.. आप खाना भी खाने लग गयी... चलो मै भी आपके साथ ही खा लेता हुँ..!" ये कहते हुवे वो भी रुपा के साथ ही खाने लग गया...