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Incest "टोना टोटका..!"

कहानी मे राजु के सम्बन्ध कहा तक रहे..?

  • बस अकेले रुपा तक ही

  • रुपा व लीला दोनो के साथ

  • रुपा लीला व राजु तीनो के एक साथ


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rajputnaboy

New Member
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अगर ऐसे टोने टोटके के आड़ मे किसी अबला का जीवन संवर जाए तो कुछ भी बुरा नही है । लीला देवी ने बिल्कुल सही फैसला लिया । सौ बात की एक बात कि रूपा और राजू सगे भाई बहन नही है और रूपा का वैवाहिक जीवन राजू के साथ अंतरंग संबंध के वगैर ठीक नही हो सकता ।

लेकिन प्रोब्लम यह है कि रूपा की घड़ी एक बात पर ही अटक गई है कि राजू के साथ यह सब करना उचित नही है । एक भाई-बहन के बीच नाजायज सम्बन्ध अनैतिक है जो एक तरह से ठीक भी है । लेकिन असलियत यह है कि उसका राजू के साथ खून का रिश्ता नही है । वह इन्सेस्ट रूपी दीवार का उल्लंघन नही कर रही ।

कहीं न कहीं राजू का रूपा के प्रति माइंड सेट है । उसे रूपा के साथ सेक्सुअल सम्बन्ध स्थापित करने से इंकार नही है ।

लीला देवी को राजू को अपने गुड फेथ मे लेना चाहिए था । शायद यह रूपा और राजू के लिए बेहतर होता ।

वैसे इस टोने टोटके के आड़ मे स्टोरी के नायक और नायिका के बीच स्लो सिडक्सन को बेहतरीन तरीके से पेश किया है आपने ।
Sge bhai behn se kya hota hai,
Bhut log phir bhi chudai krte hai
 
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Umesh 0786

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Today is Wednesday.
Where are you bro.
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Chutphar

Mahesh Kumar
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139
अभी तक आपने पढा की टोटके की चौराहे वाली योजना के विफल हो जाने के बाद लीला ने रुपा को राजु के पहाड़ी वाले लीँगा बाबा पर नँगे होकर दिया जलाकर आने का एक नया टोटका घढ लिया था तो इसके लिये उसने रुपा को मना भी लिया था अब उसके आगे:-


अगले दिन लीला ने सुबह के तीन सवा तीन बजे ही रुपा व राजु को उठा दिया था इसलिये जब तक लीला ने उनके रास्ते के लिये खाना बनाया तब तक रुपा व राजु भी नहा धोकर तैयार हो गये। अब लीला ने वहाँ जाकर जो कुछ जैसे जैसे करना है एक बार फिर से पहले तो रुपा को अलग से कमरे मे ले जाकर समझाया, फिर राजु को भी ये खास हिदायत देकर समझया दिया की वहाँ जाकर उसे रुपा जैसे जैसे जो कुछ करने को कहेगी, वो उसे बीना कुछ पुछे चुपचाप करना है जिसके लिये उसने इस बात का डर दिखाय की वहाँ जाकर उसे रुपा को किसी भी काम के लिये ना ही तो मना करना है और ना ही कुछ उससे पुछना है, नही तो रुपा की मन्नत अधुरी रह जायेगी।

"चलो अब एक दुसरे का हाथ पकङ लो..." ये कहते हुवे लीला ने राजु का हाथ रुपा के हाथ मे पकङा दिया।

"हाँ...! याद रहे अब वहाँ पहुँच ने तक एक दुसरे का साथ नही छोङना है, थक जाओ तो हाथ बदल लेना या एक दुसरे के कन्धे पर हाथ रख लेना, मगर एक दुसरे का साथ छोङकर अलग नही होना है चाहे कुछ भी हो हाथ पकङे रहना है...!"
"वहाँ जाकर बाबा जी वाली भस्म खाने के बाद चाहे तो हाथ छोङ देना, मगर उससे पहले हाथ नही छोङना है..!"
"इसका कोई भरोसा नही, ये तेरा काम है इस बात ख्याल रखना..! तु कहे तो मै दोनो के हाथ बाँध देती हुँ..!" लीला रुपा की ओरे देखते हुवे ये खास हिदायत देते हुवे पुछा जिससे...

"नही बाँधने की जरुरत नही मै कर लुँगी..!" ये कहते हुवे
रुपा ने अब राजु के हाथो की उँगलियों मे फँसाकर उसका हाथ कस के पकङ लिया...

रास्ते मे खाने पीने की जरुरत के सामान के साथ साथ टोटके वाला सामान भी एक थैले मे भर दिया था जिसे उसने अब राजु को थमा दिया और...

"ठीक है अब जल्दी करो...गाँव मे तुम्हे कोई देखे इस से अच्छा अन्धेरे अन्घेरे ही निकल जाओ..!"

"हाँ..! दोबारा बता रही हुँ वहाँ पहुँच कर बाबा जी वाली भस्म खाने के बाद ही एक दुसरे का हाथ छोङना है उससे पहले नही..!" लीला ने एक बार फिर से ये आखरी हिदायत देते हुवे कहा जिससे रुपा भी हामी भरते हुवे राजु को साथ मे लेकर अब घर से निकल आयी...
 

Chutphar

Mahesh Kumar
398
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गाँव मे‌ उन्हे कोई देख ना ले रुपा को इस बात का बहुत डर था इसलिये गाँव से निकलने‌ तक रुपा ने काफी जल्दी की और जब वो गाँव से निकलकर काफी दुर आ गये तो...

"अब बस कर जान ही लेगा क्या मेरी..?" रुपा ने हाँफते हुवे कहा जिससे...

राजु:- मैने क्या किया..? तुम ही भागे जा रही हो..!

रुपा: अच्छा चल ठीक है थोङी देर यही रुक जाते है.. यहाँ कोई आते जाते नजर नही रहा.. वैसे भी हम गाँव से निकलकर काफी दुर आ गये है..!

रुपा ने चारो ओर देखते हुवे कहा और राजु का हाथ पकङे पकङे एक पेङ‌ की छाँव मे आ गयी। दोनो भाई बहन करीब डेढ दो घण्टे से चल रहे थे और वो भी जल्दी जल्दी जिससे दोनो की साँसे थोङा फुल आई थी उपर से राजु को प्यास भी लगी थी इसलिये राजु ने थैले से पानी की बोतल निकाल ली जिसमे से रुपा ने तो थोङा सा ही पानी पिया, मगर राजु ने एक ही साँस मे पुरी बोतल खाली कर दी जिससे...

रुपा: ये क्या किया..? अब रास्ते मे क्या पियेगा..?

राजु: बहुत प्यास लगी थी जीज्जी...! रास्ते मे कोई कुँवा या हैण्ड पम्प आयेगा तो मै फिर से भर लुँगा..!

राजु ने खाली बोतल को वापस थैले मे रखते हुवे कहा जिससे..

रुपा: अच्छा चल ठीक है,थोङी देर अब यही बैठकर आराम कर ले, फिर चलेँगे.!

ये कहते हुवे वो राजु का हाथ पकङे पकङे वही उस पेङ की छाँव मे बैठ गयी। सुबह सुबह का समय था उस इसलिये दस पन्द्रह मिनट बैठने के बाद रुपा ने राजु को फिर से खङा कर लिया और दोनो भाई बहन फिर से चलने लगे मगर करीब घण्टे भर चलने के बाद ही राजु को रास्ते से हटकर कुछ दुरी पर ही एक हैण्ड पम्प दिखाई दे गया जिससे...

राजु: अरे... जीज्जी वो देखो वहाँ पर हैण्ड पम्प लगा है मै जाकर वहाँ पानी भर लाता हुँ..?

राजु ने रुपा से हाथ छुङाने की कोशिश करते हुवे कहा मगर रुपा ने उसका हाथ पकङे रखा और...

रुपा: क्या कर रहा है मै भी साथ चलती हुँ ना..!

राजु: तुम यही पेङ की छाँव मे भैठो.. मै भर के ले आता हुँ..!

राजु ने अब फिर से हाथ छुङाने की कोशिश करते हुवे कहा जिससे रुपा ने उसका हाथ और भी कस के पकङ लिया और...

"ओय..! ये क्या कर रहा है...? याद नही माँ ने क्या कहा था कुछ भी हो तुम्हे हाथ नही छोङना है चल साथ मे चलते है..! ये कहते हुवे रुपा भी राजु का हाथ पकङे पकङे उसे हैण्ड पम्प पर ले आ आई।

राजु ने खाली बोतल निकाल कर अब रुपा को दे दी और खुद हैण्ड पम्प चलाने लगा जिससे रुपा ने बोतल मे पानी भरकर पहले तो खुद पिया फिर बोतल को राजु को दे दी‌। राजु ने भी अच्छे से पानी पीने के बाद खाली बोतल को फिर से भरकर वापस थैले मे रख लिया, मगर वहाँ से चलने की बजाय वो अब वही खङा हो गया जिससे..

"अरे..!, चल अब खङा क्यो हो गया..? अभी तो बहुत दुर जाना है..!" रुपा ने राजु का हाथ खीँचते हुवे कहा जिससे राजु थोङा सा तो चलकर आगे आया मगर फिर...

"व्.व. वो जीजी.. मुझे ना् प्.प्.पि्शा्ब् जाना है..!" राजु ने शरम के मारे अटकते हुवे कहा।

राजु की बात सुनकर रुपा को हँशी भी आई और शरम भी
मगर उसे पहले ही मालुम था की दिन भर इस तरह साथ रहने पर ये स्थिति तो आयेगी ही, राजु क्या उसे खुद भी पिशाब जाने की इच्छा हो रही थी मगर अपने आपको वो रोके हुवे थी, और पिशाब ही क्या..? रात मे राजु के साथ उसे और भी बुरी स्थिती सामना करना था। वैसे भी पिछली रात को दोनो ने एक दुसरे के उपर पिशाब करने के साथ साथ एक दुसरे के नीचे हाथ भी तो लगाया था

इसलिये..

"तो कर ले.. यहाँ खङा क्यो हो गया..?" रुपा ने अपने आप को सम्भालते हुवे कहा।

"वो तुम हाथ छोङोगे तभी तो...!" राजु ने एक बार फिर से हाथ छुङाने की कोशिश करते हुवे कहा मगर रुपा ने उसका हाथ अब और भी कस के पकङ लिया और..

रुपा: नही.. हाथ नही छोङना है..! याद नही माँ ने क्या कहा था...?

राजु: तो फिर आपके सामने कैसे करुँगा..?


रुपा: अच्छा..! कल रात मे भी तो किया था, फिर अब क्या हो जायेगा..!

राजु: न्.न्.ह्.पर व्.वो् जी्.जी्ज्जी्...

शरम के मारे राजु अब मायुस होते हुवे करने लगा जिससे..

रुपा: चल मै तेरे कन्धे पर हाथ रखकर दुसरी तरफ मुँह कर लेती और तु दुसरी ओर मुँह करके कर लेना.. ये तो ठीक है..?

राजु: हाँ..

"तो चल फिर..!" ये कहते हुवे रुपा अब राजु के कन्धे पर हाथ रखकर दुसरी तरफ मुँह करके खङी हो गयी।

इस तरह अपनी जीज्जी के साथ पिशाब करने मे राजु को शरम तो आ रही थी मगर उसे पिशाब भी जोरो की लगी हुई थी इसलिये दुसरी ओर मुँह करके उसने धीरे से पहले तो अपने पजामे के नाङे को खोलकर उसे थोङा सा नीचे खिसकाया फिर अपने लण्ड को बाहर निकालकर मुतना शुरु कर दिया...

राजु ने कोशिश तो बहुत की, की वो धीरे धीरे मुत्ते मगर एक तो वो खङा होकर मुत्त रहा था उपर से उसे जोरो की पिशाब लगी थी जिससे मुत्त की धार के नीचे जमीन पर गीरने से "तङ्.तङ्ङ्..तङ्ङ्..." की सी जोरो की आवाज होने लगी। राजु के मुतने की आवाज रुपा के कानो तक भी पहुँच रही थी जिसे सुनके रुपा को भी बङा ही अजीब लग रहा था तो राजु को शरम सी आ रही थी।

खैर अच्छे से मुतने के बाद राजु ने जल्दी से अपने लण्ड को अन्दर किया और फिर पजामे का नाङ बाँधकर वापस रुपा की ओर मुँह कर लिया। रुपा अभी भी दुसरी ओर मुँह किये खङी थी जिससे...

‌‌‌‌‌‌‌ "व्.व्.वो् ह्.हो्.गया जीज्जी..!" राजु ने शरम के मारे धीरे से कहा। रुपा ने भी अब राजु की ओर मुँह कर लिया और फिर से राजु का हाथ पकङकर चलने लग गयी।

राजु अब कुछ देर तो शाँत रहा मगर फिर उसने रुपा से फिर से बाते करना शुरु कर दिया जिसका जवाब रुपा बस हाँ हुँ मे ही दे रही थी। आगे जाकर क्या कुछ होने वाला है राजु को इसके बारे मे ज्यादा कुछ नही पता था। लीला ने उसे बस इतना ही बताया था की वहाँ जाकर उसे रुपा जो कुछ भी करने के लिये कहेगी उसे वैसे वैसे ही करना है इसलिये वो फिर से सामान्य हो गया था...

मगर रुपा अभी भी इस उधेङबुन मे थी की जब राजु के पिशाब करने मे ही उसे इतनी शरम आ रही है तो उसके सामने वो कैसे नँगी होगी..? और तो और वो राजु को अपने सामने नँगा होने के लिये किस मुँह से कहेगी..? पिछली रात तो उसकी माँ ने राजु को सब कुछ समझा दिया था मगर वहाँ उसे सब कुछ अकेले ही करना था ये सोच सोचकर वो थोङा घबरा सा रही थी...
 

Vishalji1

I love lick😋women's @ll body part👅(pee+sweat)
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Nice update
 

babakhosho

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बादल गरजे रात भर और बारिश हुई झा** भर
 

only_me

I ÂM LÕSÉR ẞŪT.....
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अभी तक आपने पढा की टोटके की चौराहे वाली योजना के विफल हो जाने के बाद लीला ने रुपा को राजु के पहाड़ी वाले लीँगा बाबा पर नँगे होकर दिया जलाकर आने का एक नया टोटका घढ लिया था तो इसके लिये उसने रुपा को मना भी लिया था अब उसके आगे:-


अगले दिन लीला ने सुबह के तीन सवा तीन बजे ही रुपा व राजु को उठा दिया था इसलिये जब तक लीला ने उनके रास्ते के लिये खाना बनाया तब तक रुपा व राजु भी नहा धोकर तैयार हो गये। अब लीला ने वहाँ जाकर जो कुछ जैसे जैसे करना है एक बार फिर से पहले तो रुपा को अलग से कमरे मे ले जाकर समझाया, फिर राजु को भी ये खास हिदायत देकर समझया दिया की वहाँ जाकर उसे रुपा जैसे जैसे जो कुछ करने को कहेगी, वो उसे बीना कुछ पुछे चुपचाप करना है जिसके लिये उसने इस बात का डर दिखाय की वहाँ जाकर उसे रुपा को किसी भी काम के लिये ना ही तो मना करना है और ना ही कुछ उससे पुछना है, नही तो रुपा की मन्नत अधुरी रह जायेगी।

"चलो अब एक दुसरे का हाथ पकङ लो..." ये कहते हुवे लीला ने राजु का हाथ रुपा के हाथ मे पकङा दिया।

"हाँ...! याद रहे अब वहाँ पहुँच ने तक एक दुसरे का साथ नही छोङना है, थक जाओ तो हाथ बदल लेना या एक दुसरे के कन्धे पर हाथ रख लेना, मगर एक दुसरे का साथ छोङकर अलग नही होना है चाहे कुछ भी हो हाथ पकङे रहना है...!"
"वहाँ जाकर बाबा जी वाली भस्म खाने के बाद चाहे तो हाथ छोङ देना, मगर उससे पहले हाथ नही छोङना है..!"
"इसका कोई भरोसा नही, ये तेरा काम है इस बात ख्याल रखना..! तु कहे तो मै दोनो के हाथ बाँध देती हुँ..!" लीला रुपा की ओरे देखते हुवे ये खास हिदायत देते हुवे पुछा जिससे...

"नही बाँधने की जरुरत नही मै कर लुँगी..!" ये कहते हुवे
रुपा ने अब राजु के हाथो की उँगलियों मे फँसाकर उसका हाथ कस के पकङ लिया...

रास्ते मे खाने पीने की जरुरत के सामान के साथ साथ टोटके वाला सामान भी एक थैले मे भर दिया था जिसे उसने अब राजु को थमा दिया और...

"ठीक है अब जल्दी करो...गाँव मे तुम्हे कोई देखे इस से अच्छा अन्धेरे अन्घेरे ही निकल जाओ..!"

"हाँ..! दोबारा बता रही हुँ वहाँ पहुँच कर बाबा जी वाली भस्म खाने के बाद ही एक दुसरे का हाथ छोङना है उससे पहले नही..!" लीला ने एक बार फिर से ये आखरी हिदायत देते हुवे कहा जिससे रुपा भी हामी भरते हुवे राजु को साथ मे लेकर अब घर से निकल आयी...

गाँव मे‌ उन्हे कोई देख ना ले रुपा को इस बात का बहुत डर था इसलिये गाँव से निकलने‌ तक रुपा ने काफी जल्दी की और जब वो गाँव से निकलकर काफी दुर आ गये तो...

"अब बस कर जान ही लेगा क्या मेरी..?" रुपा ने हाँफते हुवे कहा जिससे...

राजु:- मैने क्या किया..? तुम ही भागे जा रही हो..!

रुपा: अच्छा चल ठीक है थोङी देर यही रुक जाते है.. यहाँ कोई आते जाते नजर नही रहा.. वैसे भी हम गाँव से निकलकर काफी दुर आ गये है..!

रुपा ने चारो ओर देखते हुवे कहा और राजु का हाथ पकङे पकङे एक पेङ‌ की छाँव मे आ गयी। दोनो भाई बहन करीब डेढ दो घण्टे से चल रहे थे और वो भी जल्दी जल्दी जिससे दोनो की साँसे थोङा फुल आई थी उपर से राजु को प्यास भी लगी थी इसलिये राजु ने थैले से पानी की बोतल निकाल ली जिसमे से रुपा ने तो थोङा सा ही पानी पिया, मगर राजु ने एक ही साँस मे पुरी बोतल खाली कर दी जिससे...

रुपा: ये क्या किया..? अब रास्ते मे क्या पियेगा..?

राजु: बहुत प्यास लगी थी जीज्जी...! रास्ते मे कोई कुँवा या हैण्ड पम्प आयेगा तो मै फिर से भर लुँगा..!

राजु ने खाली बोतल को वापस थैले मे रखते हुवे कहा जिससे..

रुपा: अच्छा चल ठीक है,थोङी देर अब यही बैठकर आराम कर ले, फिर चलेँगे.!

ये कहते हुवे वो राजु का हाथ पकङे पकङे वही उस पेङ की छाँव मे बैठ गयी। सुबह सुबह का समय था उस इसलिये दस पन्द्रह मिनट बैठने के बाद रुपा ने राजु को फिर से खङा कर लिया और दोनो भाई बहन फिर से चलने लगे मगर करीब घण्टे भर चलने के बाद ही राजु को रास्ते से हटकर कुछ दुरी पर ही एक हैण्ड पम्प दिखाई दे गया जिससे...

राजु: अरे... जीज्जी वो देखो वहाँ पर हैण्ड पम्प लगा है मै जाकर वहाँ पानी भर लाता हुँ..?

राजु ने रुपा से हाथ छुङाने की कोशिश करते हुवे कहा मगर रुपा ने उसका हाथ पकङे रखा और...

रुपा: क्या कर रहा है मै भी साथ चलती हुँ ना..!

राजु: तुम यही पेङ की छाँव मे भैठो.. मै भर के ले आता हुँ..!

राजु ने अब फिर से हाथ छुङाने की कोशिश करते हुवे कहा जिससे रुपा ने उसका हाथ और भी कस के पकङ लिया और...

"ओय..! ये क्या कर रहा है...? याद नही माँ ने क्या कहा था कुछ भी हो तुम्हे हाथ नही छोङना है चल साथ मे चलते है..! ये कहते हुवे रुपा भी राजु का हाथ पकङे पकङे उसे हैण्ड पम्प पर ले आ आई।

राजु ने खाली बोतल निकाल कर अब रुपा को दे दी और खुद हैण्ड पम्प चलाने लगा जिससे रुपा ने बोतल मे पानी भरकर पहले तो खुद पिया फिर बोतल को राजु को दे दी‌। राजु ने भी अच्छे से पानी पीने के बाद खाली बोतल को फिर से भरकर वापस थैले मे रख लिया, मगर वहाँ से चलने की बजाय वो अब वही खङा हो गया जिससे..

"अरे..!, चल अब खङा क्यो हो गया..? अभी तो बहुत दुर जाना है..!" रुपा ने राजु का हाथ खीँचते हुवे कहा जिससे राजु थोङा सा तो चलकर आगे आया मगर फिर...

"व्.व. वो जीजी.. मुझे ना् प्.प्.पि्शा्ब् जाना है..!" राजु ने शरम के मारे अटकते हुवे कहा।

राजु की बात सुनकर रुपा को हँशी भी आई और शरम भी
मगर उसे पहले ही मालुम था की दिन भर इस तरह साथ रहने पर ये स्थिति तो आयेगी ही, राजु क्या उसे खुद भी पिशाब जाने की इच्छा हो रही थी मगर अपने आपको वो रोके हुवे थी, और पिशाब ही क्या..? रात मे राजु के साथ उसे और भी बुरी स्थिती सामना करना था। वैसे भी पिछली रात को दोनो ने एक दुसरे के उपर पिशाब करने के साथ साथ एक दुसरे के नीचे हाथ भी तो लगाया था

इसलिये..

"तो कर ले.. यहाँ खङा क्यो हो गया..?" रुपा ने अपने आप को सम्भालते हुवे कहा।

"वो तुम हाथ छोङोगे तभी तो...!" राजु ने एक बार फिर से हाथ छुङाने की कोशिश करते हुवे कहा मगर रुपा ने उसका हाथ अब और भी कस के पकङ लिया और..

रुपा: नही.. हाथ नही छोङना है..! याद नही माँ ने क्या कहा था...?

राजु: तो फिर आपके सामने कैसे करुँगा..?


रुपा: अच्छा..! कल रात मे भी तो किया था, फिर अब क्या हो जायेगा..!

राजु: न्.न्.ह्.पर व्.वो् जी्.जी्ज्जी्...

शरम के मारे राजु अब मायुस होते हुवे करने लगा जिससे..

रुपा: चल मै तेरे कन्धे पर हाथ रखकर दुसरी तरफ मुँह कर लेती और तु दुसरी ओर मुँह करके कर लेना.. ये तो ठीक है..?

राजु: हाँ..

"तो चल फिर..!" ये कहते हुवे रुपा अब राजु के कन्धे पर हाथ रखकर दुसरी तरफ मुँह करके खङी हो गयी।

इस तरह अपनी जीज्जी के साथ पिशाब करने मे राजु को शरम तो आ रही थी मगर उसे पिशाब भी जोरो की लगी हुई थी इसलिये दुसरी ओर मुँह करके उसने धीरे से पहले तो अपने पजामे के नाङे को खोलकर उसे थोङा सा नीचे खिसकाया फिर अपने लण्ड को बाहर निकालकर मुतना शुरु कर दिया...

राजु ने कोशिश तो बहुत की, की वो धीरे धीरे मुत्ते मगर एक तो वो खङा होकर मुत्त रहा था उपर से उसे जोरो की पिशाब लगी थी जिससे मुत्त की धार के नीचे जमीन पर गीरने से "तङ्.तङ्ङ्..तङ्ङ्..." की सी जोरो की आवाज होने लगी। राजु के मुतने की आवाज रुपा के कानो तक भी पहुँच रही थी जिसे सुनके रुपा को भी बङा ही अजीब लग रहा था तो राजु को शरम सी आ रही थी।

खैर अच्छे से मुतने के बाद राजु ने जल्दी से अपने लण्ड को अन्दर किया और फिर पजामे का नाङ बाँधकर वापस रुपा की ओर मुँह कर लिया। रुपा अभी भी दुसरी ओर मुँह किये खङी थी जिससे...

‌‌‌‌‌‌‌ "व्.व्.वो् ह्.हो्.गया जीज्जी..!" राजु ने शरम के मारे धीरे से कहा। रुपा ने भी अब राजु की ओर मुँह कर लिया और फिर से राजु का हाथ पकङकर चलने लग गयी।

राजु अब कुछ देर तो शाँत रहा मगर फिर उसने रुपा से फिर से बाते करना शुरु कर दिया जिसका जवाब रुपा बस हाँ हुँ मे ही दे रही थी। आगे जाकर क्या कुछ होने वाला है राजु को इसके बारे मे ज्यादा कुछ नही पता था। लीला ने उसे बस इतना ही बताया था की वहाँ जाकर उसे रुपा जो कुछ भी करने के लिये कहेगी उसे वैसे वैसे ही करना है इसलिये वो फिर से सामान्य हो गया था...

मगर रुपा अभी भी इस उधेङबुन मे थी की जब राजु के पिशाब करने मे ही उसे इतनी शरम आ रही है तो उसके सामने वो कैसे नँगी होगी..? और तो और वो राजु को अपने सामने नँगा होने के लिये किस मुँह से कहेगी..? पिछली रात तो उसकी माँ ने राजु को सब कुछ समझा दिया था मगर वहाँ उसे सब कुछ अकेले ही करना था ये सोच सोचकर वो थोङा घबरा सा रही थी...

Nice update Bhai 💯
 
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