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Incest "टोना टोटका..!"

कहानी मे राजु के सम्बन्ध कहा तक रहे..?

  • बस अकेले रुपा तक ही

  • रुपा व लीला दोनो के साथ

  • रुपा लीला व राजु तीनो के एक साथ


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Chutphar

Mahesh Kumar
402
2,357
139
अभी तक आपने पढा की अपनी माँ के समझाने पर रुपा भी राजु को साथ मे लेकर लिँगा बाबा पर दिया जलाकर टोटके करने निकल आई थी‌ जिससे रास्ते मे एक दुसरे का हाथ पकङे पिशाब किया तो राजु के साथ साथ रुपा भी उत्तेजना महसूस करने लगी थी। अब पहाङी के पास पहुँकर उपर चढने से पहले दोनो ने एक बार फिर से पिशाब करने के लिये रुके तो राजु ने तो पिशाब कर लिया मगर रुपा पिशाब करने‌ के लिये अपनी शलवार का‌ नाङा खोलने लगी तो नाङे की गाँठ उलझ गयी..

अब उसके आगे:-


रुपा ने अब पहले तो खुद ही नाङे को खोलने की कोशिश की मगर रुपा ने खुद से उसे जितना खोलना चाहा नाङे की गाँठ उतना ही कसती चली गयी इसलिये कुछ देर तो वो ऐसे ही खुद से अपने नाङे को खोलने की कोशिश करती रही मगर जब उससे नाङे की गाँठ नही ही.., नही खुली तो वो..

"ऊहूऊऊऊ..!" कहकर जोरो से झुँझला सी उठी जिससे..

"क्.क्या हुवा जीज्जी..!" राजु ने अब पलटकर रुपा की ओर देखते हुवे पुछा। रुपा भी अब क्या करती इसलिये..

"य्.य्.ये् गाँठ उलझ गयी..!" ये कहते हुवे वो भी घुमकर अब राजु की ओर मुँह करके खङी हो गयी। उसने अपने सुट को पेट से उपर उठाकर अपनी ठोडी से दबा रखा था तो दोनो हाथो से अपनी शलवार के नाङे को पकङे हुवे थी जिससे रुपा की साँसो के साथ साथ उसके फुलते पिचकते गोरे चिकने पेट व उसकी गहरी नाभी को देख राजु का लण्ड तुरन्त अब हरकत मे आ गया...

रुपा ने नाङे को खोलने के चक्कर मे नाङे के पास शलवार मे जो कट होता है उसे भी शायद फाङ लिया था या फिर वो था ही इतना चौङा की उपर से देखने पर राजु को शलवार के कट से उसकी गुलाबी पेन्टी तक साफ नजर आ रही थी जिसे देख राजु का लण्ड अब फुलने सा लगा तो साथ ही..

"व्.वो् म्.म्.मै खोल दुँ..!" राजु ने भी अब थोङा हकलाते हुवे से कहा जिससे..

"हु.हुँम्अ्..!" मजबुरी मे अब रुपा भी क्या करती इसलिये शरम हया के मारे वो बस छोटा सा "हुँ..." ही कह सकी, मगर राजु ने उसकी शलवार के नाङे को खोलने के लिये अब जैसे ही नाङे को पकङा उसके हाथ रुपा के नर्म मुलायम चिकने पेट से छु गये जिससे राजु को अपने बदन मे सनसनी सी महसुस हुई, तो वही रुपा को भी अपने पेट पर राजु के खुरदरे हाथ के स्पर्श से गुदगुदी सी हुई जिससे...

"ईईश्श्.. ओ्य्ह्ह्..!" कहते हुवे उसने तुरन्त अपने पेट को अन्दर खीँच सा लिया और...

"य्.ये क्या कर रहा है..? हाथ से खुलता तो मै ना खोल लेती..!" रुपा ने अब फिर से झुँझलाते हुवे कहा।

"तो..फिर..?" राजु ने अब उत्सुकता वश रुपा की ओर देखते हुवा कहा, मगर जैसा वो सोच रहा था उसकी जीज्जी उसे वैसा ही जवाब दे इस इन्तजार मे उसके दिल की धङकन रुक सा गयी...

रुपा को अब शरम तो आ रही थी मगर वो कर भी क्या सकती थी इसलिये..

"व्.व.वो्..... मुँह से खोल अब, और क्या..?" ये कहते हुवे उसने अब एक बार तो राजु की ओर देखा, फिर शरम के मारे दुसरी ओर मुँह कर लिया।

राजु के दिल की धङकन जो अभी तक रुकी हुई सी थी वो अब अपनी जीज्जी से मनचाहा जवाब सुनकर अचानक तेजी से चलना शुरु हो गयी। वो तुरन्त ही अब नीचे जमीन पर अपने घुटने टिकाकर खङा हो गया, मगर जैसे ही उसकी नजर अब अपनी जीज्जी के गोरे चिकने पेट व उसकी गहरी नाभी पर गयी तो वो कुछ देर के लिये साँस रुक सा गयी...

इससे पहले उसने कभी भी किसी लङकी को इतने करीब से नही देखा था इसलिये अपनी जीज्जी के गोरे चिकने पेट व पेट पर उभरे हल्के भुरे रँग रोँवो को देखकर उसका लण्ड झटके से खाने लगा। रुपा भी उसकी ओर ही देख रही थी, वो जान रही थी की राजु की नजर कहा पर है इसलिये अपने सुट को नीचे करके उसने अब अपने नँगे पेट को छुपाना चाहा जिससे...

"क्या है जीज्जी इसे तो पकङो..!" राजु ने अब एक हाथ से उसके सुट को फिर से पेट पर से उठाते हुवे कहा।

रुपा भी अब क्या करती उसने फिर से अपने सुट को एक‌ हाथ से उपर उठाकर पकङ लिया मगर राजु ने अब जैसे ही अपने हाथो की उँगलियों को शलवार मे घुसाकर उसके नाङे को पकङा, अपनी जीज्जी के पेट की नर्म मुलायव व चिकनी त्वचा के अहसास से राजु जहाँ सहम सा गया, तो वही अपने पेट पर राजु के हाथो की उँगलियों के स्पर्श से रुपा को जोरो की गुदगुदी व सिँहरन सी महसूस हुई जिससे...

ईईश्श्.. ओ्य्.ह्ह्...!" कहकर वो तुरन्त थोङा घुम सा गयी।

रुपा के घुम जाने से राजु के हाथ से उसकी शलवार का नाङा छुट गया था इसलिये "क्या हुवा.." ये सोचकर वो अब उत्सुकता वश तुरन्त रुपा के चेहरे की ओर देखने लगा जिससे..

"व्.व्. वो्...गुदगुदी हो रही है..!" रुपा ने अब एक बार तो नीचे बैठे राजू की ओर देखकर हँशते से हुवे कहा, मगर फिर वापस उसकी ओर मुँह करके खङी हो गयी

राजु भी अब दोनो हाथो से उसकी शलवार के नाङे को पकङकर उसकी गाँठ को दाँतो दे खोलने लगा, मगर इस बीच अनायास ही उसकी जीभ एक दो बार रुपा के पेट से भी छु गयी होगी की राजु को उसके पेट की नर्म मुलायम व चिकनी त्वचा का चिकना चिकना सा अहसास हुवा, तो वही अपने नँगे पेट पर राजु की गर्म गर्म जीभ के स्पर्श से रुपा के बदन मे भी झुरझुरी की लहर सी दौङ गयी।

राजु की गर्म गर्म जीभ के अपने पेट पर छुने से रुपा को जोरो की गुदगुदी सी महसूस हुई इसलिये अपने पेट को अन्दर खीँचकर..

"ईईश्श्..ओ्.ओ्.ओ्य्..क्या कर रहा है..?" ये कहते हुवे रुपा ने तुरन्त अपने सुट को छोङकर दोनो हाथो से राजु के सिर को पकङ लिया जिससे..

"क्या है जीज्जी अब खोलने तो दो..!" राजु ने अपने सिर पर से रुपा के हाथ को हटाकर उपर उसके चेहरे की ओर देखते हुवे कहा।

"व्.व्.गुदगुदी होती है..!" रुपा ने भी अब राजु की ओर देखते हुवे कहा।

"तो. अब इसमे मै क्या करु..? खोलना है तो बोलो,..?" राजु ने भी अब थोङा झुँझलाते हुवे से कहा जिससे..

"अच्छा,अच्छा ठीक है..! खोल तो, अब नही हिलुँगी..!" रुपा ने अब हँशते हुवे कहा।

"लो, इसे पकङो पहले..! राजु ने अब एक हाथ से उसके सुट को फिर से पेट पर से उठाकर रुपा को पकङाते हुवे कहा, मगर इस बीच रुपा की नजर अब राजु के पजामे की ओर गयी होगी की उसे देख वो सहम सा गयी,क्योंकि राजु के पजामे मे उसके एकदम तने लण्ड की वजह से तम्बु सा तना अलग ही नजर आ रहा था। राजु के पजामे की ओर देख रुपा भी समझ गयी थी की उसके पजामे मे ये तम्बु सा क्यो तना हुवा है इसलिये उसे अब खुद पर ही जोरो की शरम सी आई...

राजु उसे देखजर उत्तेजित हो रहा है ये जानकर रुपा को उससे अपनी शलवार का नाङा खुलवाने मे अब और भी शरम आने लगी, मगर वो कर भी क्या सकती थी..? इसलिये मजबुरन वो एक हाथ से उसके कन्धे को पकङे तो दुसरे हाथ से अपने सुट को पेट से उपर उठाकर खङी हो गयी, जिससे राजु भी एक बार फिर से दोनो हाथो से उसकी शलवार के नाङे को पकङकर दाँतो से खोलने मे लग गया..

इस बार राजु ने भी अपने हाथो की उँगलियो को उसकी शलवार मे थोङा ज्यादा ही अन्दर तक घुसाकर उसके नाङे को अच्छे से पकङा था जिससे उसकी उँगलियाँ रुपा के पेट के नीचे उसके पेडु के साथ साथ उसकी पेन्टी के किनारो तक को छु गयी थी जिससे रुपा की साँसे अब एक बार के लिये तो थम सी ही गयी, मगर वो राजु से वो अब कुछ कह नही सकी, बस चुपचाप एक हाथ से अपने सुट को तो दुसरे हाथ से राजु के कन्धे को पकङे खङी रही...

राजु भी अब दोनो हाथो से उसके नाङे को पकङे दाँतो से खोलने मे लगा रहा जिससे बार बार उसके गर्म गर्म होठ रुपा के नँगे पेट को छुने लगे तो उसके हाथो की उँगलियाँ भी कभी उसके नँगे पेट तो कभी पेट के नीचे पेडु तक को छुने लगी। राजु के पजामे मे बने तम्बु को देखने के बाद रुपा के दिल मे पहले ही हलचल सी हो रही थी जिससे वो अजीब सा महसूस कर रही थी, उपर से अब अपने नँगे पेट व चुत के इतने करीब राजु के होठो व उँगलियो की छुवन से उसके बदन मे भी अजीब ही तरँगे सी उठना शुरु हो गयी...

अपने नँगे पेट पर राजु के होठो व उँगलियों के स्पर्श से रुपा जो गुदगुदी सी महसूस कर रही थी वो अब एक रोमाँच से मे बदल गयी थी। तब तक राजु के थुक व मुँह की लार से रुपा की शलवार का नाङा भी गीला हो गया था। अब अपने नँगे पेट पर राजु के थुक व मुँह की लार से सने गीले नाङे के स्पर्श रुपा को और भी जोरो की सिँहरन सी होने लगी जिससे अपने आप ही उसकी साँसे तेजी से चलना शुरु हो गयी। तेजी से चलती साँसो की वजह रुपा का पेट भी अब जल्दी जल्दी फुलने, व पिचकने लगा तो राजु के होठ और भी ज्यादा उसके पेट को छुने लगे जिससे अनायास ही रुपा का जो हाथ राजु के कन्धे को पकङे था वो अपने आप ही राजु के सिर पर आ गया..

राजु को नही मालुम था की उसकी जीज्जी पर क्या बीत रही है। अपनी जीज्जी के गोरे चिकने पेट को देखकर व उसे छुकर वो अपने बदन मे उत्तेजना तो जरुर महसूस कर रहा था मगर वो बस उसके नाङे को ही खोलने कोशिश कर रहा था। अब रुपा की शलवार का नाङा शायद कुछ तो पहले से ही कमजोर रहा होगा और कुछ जो राजु इतनी देर से उसे खोलने की कोशिश मे जुटा था उसकी वजह से वो उसके दाँतो से कट फट गया होगा की गाँठ के पास से उसका नाङा ही टुट गया..

रुपा अभी भी एकदम जङ हुवे खङी थी इसलिये जब तक उसे अपनी शलवार का नाङा टुटने का अहसास हुवा तब तक उसकी शलवार ढीली होकर सीधे उसके कदमो मे जा गीरी.. उसने अपने सुट को पहले ही पेट तक‌ उठा रखा था इसलिये शलवार के नीचे गीरते ही रुपा की एकदम गोरी चिकनी माँसल लम्बी लम्बी जाँघे और जाँघो के बीच एकदम कसी हुई हल्के गुलाबी से रँग की पेन्टी मे रुपा की चुत का त्रिकोणी उभार अब राजु के सामने था जिसे देख राजु वो पलके झपकना तक भुल गया...

"ओ्.ओ्.ओय.. बेशर्म .. !" रुपा अब जोर से कहते हुवे तुरन्त अपनी शलवार को उठाने लगी मगर जल्दबाजी मे शलवार को उठाने के लिये वो जैसे ही नीचे झुकी उसका सिर राजु के सिर से टकरा गया जिससे रुपा का सन्तुलन बिगङा गया और पीछे की ओर गीरने को हो गयी।

अब अपने आप को गीरने से बचाने के लिये रुपा ने राजु के सिर को पकङ लिया तो वही राजु ने भी अपनी जीज्जी को पकङने के लिये उसकी‌ जाँघो को बाँहो मे भर लिया जिससे कुछ तो रुपा ने अपना सन्तुलन बनाने के लिये राजु के सिर को पकङकर उसे अपनी ओर खीँचा और कुछ राजु ने उसकी जाँघो‌ को बाँहो मे भरकर उसे अपनी ओर खीँचा जिससे राजु का सिर अब रुपा की जाँघो बीच घुस सा गया और उसकी चुत की बेहद तीखी तेज व मादक गन्ध राजु के नथुनो मे भरती चली गयी..

एक तो राजु के मुँह से अपना नाङा खुलवाने के खुलवाते रुपा की चुत मे नमी सी आई हुई थी, उपर वो रासते मे पहले भी दो तीन बार राजु के लण्ड को देखकर उत्तेजित हो चुकी थी जिससे उसकी चुत मे‌ पानी तो भर आया था मगर वो उसकी चुत के होठो पर ही आकर सुख गया था, जिसने उसकी चुत की गन्ध को और भी तीखा बना दिया था। वैसे भी रुपा की अभी अभी हाल ही मे महावारी खत्म हुई थी, और महावारी के बाद चुत से निकलने वाली गन्ध वैसे ही और ज्यादा मादक हो जाती है.. इसलिये रुपा की चुत की गन्ध उसकी‌ पेन्टी के उपर से ही राजु के नथुनो मे भरती चली गयी थी...


अब जैसा हाल राजु का था वैसा रुपा भी महसूस कर रही क्योंकि वो पहले ही अपने नँगे पेट पर राजु के हाथो व होठो‌ की छुवन से उत्तेजना सी‌ महसूस कर रही थी, उपर से अब अपनी चुत पर राजु की गर्म‌ गर्म साँसो को महसूस करके एक बार तो वो भी सहम सा ही गयी जिससे कुछ देर तो उसे समझ ही नही आया की वो अब क्या करे..? राजु भी अपनी जीज्जी की पेन्टी से निकल रही उस गन्ध से मानो जैसे मदहोश सा ही हो गया था इसलिये रुपा के उसे हटाने पर भी कुछ देर तो वो ऐसे ही अपना मुँह उसकी जाँघो बीच घुसाये उसे पकङे रहा... और जब तक रुपा ने उसे अपनी जाँघो पर से हटाकर अपनी शलवार पहना तब तक‌ उसकी‌ चुत की गन्ध राजु के नाक से होकर उसके दिमाग तक चढती चली गयी...
 
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Chutphar

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वैसे तो रुपा की शलवार का नाङा टुट गया था मगर फिर भी अब अपनी‌ शलवार को पहनने के बाद वो अब थोङा सहज हो गयी थी इसलिये...

"बेशरम‌..! ये क्या किया..?, मुझे पुरी नँगी ही कर दिया..!
और फिर छोङ भी तो नही रहा बेशर्म..! मुझे पकङकर ही बैठ गया...!" रुपा ने एक हाथ से अब अपनी शलवार को पकङे पकङे ही राजु को डाटते हुवे कहा, मगर उसके चेहरे पर शरम हया मुस्कान सी तैर रही थी जिससे राजु के चेहरे पर भी अब हँशी सी तैर गयी..

अपनी जीज्जी को इस तरह नँगी हो जाने से एक बार तो राजु भी डर सा गया था की कही वो उसे अब मारेगी तो नही मगर उसने अब रुपा को हँशते हुवे देखा तो वो भी अब सहज हो गया और...

"व्.व्.व्.वो् ना् आ्..जी्ज्जी आपके यहाँ से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी...!" राजु ने अब मासुमियत से हल्का सा मुस्कुराकर अपनी गर्दन से ही नीचे रुपा की‌ पेन्टी की ओर इशारा करते हुवे कहा जिससे रुपा का दिल अब "धक्क.." सा करके रह गया। उसकी आँखे गोल‌ होकर एकदम‌ बङी सी हो गयी तो वही..

ओ्य्...बेशर्म‌अ्अ्.......!" कहकर वो एक बार तो चिल्ला सी उठी, मगर साथ ही उसके चेहरे पर शरम हया की हँशी सी तैर गयी, क्योंकि राजु सीधा सीधा ही उसकी पेन्टी से आ रही उसकी चुत की गन्ध के लिये कह रहा था इसलिये..

"तु ना मार खायेगा अब मुझसे..! बेशर्म..! चल अब उधर मुँह करके खङा हो, पहले मुझे पिशाब करने दे, फिर बताती हुँ तुझे..!" रुपा ने अब उसे डाटते हुवे सा कहा
मगर उसके चेहरे पर शरम हया की हँशी सी तैर रही थी जिससे राजु ये इतना बुरा नही लगा।

राजु भी अब चुपचाप उठकर खङा हो गया था जिससे रुपा को ध्यान आया की उसने राजु के हाथ को छोङ दिया है इसलिये उसने तुरन्त ही आगे बढकर उसके हाथ को पकङ लिया, मगर अब राजु के हाथ को पकङा तो अनायास ही उसकी नजर नीचे उसके पजामे की ओर भी चली गयी, जहाँ उसका लण्ड उसके पजामे मे एकदम तना खङा था तो उसने पानी सा छोङ छोङकर उसके पजामे के आगे वाले भाग तक को पुरा गीला कर रखा था। राजु को शायद इसका होश नही था, मगर रुपा ये अच्छे से जान रही थी की ये क्या है और क्यो हुवा है इसलिये उसे अब जोरो की शरम सी महसुस हुई...

राजु उसकी चुत की गन्ध को भी खुशबू बता रहा था, क्योंकि उसे नही मालुम था की उसकी‌ जीज्जी की जाँघो‌ के बीच से जो गन्ध आ रही थी वो किसकी गन्ध थी। इससे पहले उसने कभी भी इस तरह की गन्ध को सुँघा नही था इसलिये उसे नही मालुम था की उसकी जीज्जी की पेन्टी से जो गन्ध फुट रही थी वो किसकी गन्ध थी मगर रुपा ये अच्छे से जान रही थी, इसलिये वो अब सोचने लगी की "राजु का मुँह उसकी पेन्टी पर लगने से उसका ये हाल है तो वहाँ जाकर टोटके के समय जब वो उसके मुँह से अपनी नँगी चुत को छुवायेगी तब क्या होगा..? " अब ये बात दिमाग मे आते ही रुपा के पुरे बदन मे झुरझरी की लहर सी उठी जिससे उसकी गर्दन एकदम थरथरा उठी, तो ना चाहते हुवे भी उसकी चुत ने उसकी पेन्टी मे चुतरश की बुन्दो को छलका दिया, मगर तभी..

"नही, सच मे जीज्जी...! बहुत अच्छी खुशबु थी..!" राजु अब फिर से बोल पङा जिससे..

"ओ्य् बेशर्म.. सही मे तु ना अब पीट जायेगा मुझसे..! चल अब तु मुँह उधर कर पहले मुझे पिशाब करने दे..!" ये कहते हुवे रुपा ने अब एक बार तो शरम हया से मुस्कुराकर राजु की ओर देखा फिर उसका हाथ अपने कन्धे पर रखवाकर वो दुसरी ओर मुँह करके खङी हो गयी। अब राजु जब तक कुछ समझ पाता तब तक वो
शलवार के साथ साथ अपनी पेन्टी को भी घुटनो तक खिसकाकर सीधे मुतने बैठ गयी। राजु अभी भी रुपा की ओर ही मुँह किये खङा था जिससे रुपा उसे एक बार फिर से अपनी जीज्जी के पिछवाङे की पुरी झलक सी तो‌ मिली मगर तब तक वो नीचे बैठ गयी जिससे रुपा के सुट ने उसके कुल्हो को ढक लिया तो वही नीचे बैठ जाने से उसकी जाँघे भी छुप सा गयी।

अब नीचे बैठकर रुपा ने गर्दन घुमाकर पीछे राजु की ओर देखा तो उसे अपनी ओर ही घुरते पाया जिससे अब दोनो‌ की नजरे मिली तो राजु जहाँ झेँप सा गया तो वही रुपा उसकी ओर देख मुस्कुरा सा उठी जिससे दोनो के चेहरे पर ही शरम हया की मुस्कान सी तैर गयी...

राजु को अपनी ओर देखते पाकर भी रुपा ने उसे अब कुछ कहा नही, क्योंकि राजु के उसे पिशाब करते देखने से रुपा भी एक अजीब ही रोमाँच सा महसूस कर रही थी इसलिये उसने बस एक बार तो हल्का सा मुस्कुराकर उसकी ओर देखा फिर..
"बेशर्म..!" हल्का सा बुदबुदाते हुवे वो गर्दन वापस घुमाकर अब नीचे की ओर देखने लगी..

गर्दन झुकाकर नीचे जमीन की ओर देखते देखते उसने अब अपनी चुत की मांसपेशियों से जोर लगाया तो मूत की धार के साथ साथ एक बार अब फिर से उसकी चुत से "श्श्शशु्र्र.र्र.र्र.र्र..." की सी सीटी की सी आवाज फुट पङी जिससे राजु अब सुन्न सा होता चला गया। उसका लण्ड पहले ही तना खङा अब पिशाब की धार के साथ अपनी जीज्जी की चुत से निकल रही इस मादक आवाज को सुनकर उसका लण्ड झटके से ही खाने लगा...

रुपा को भी शायद कुछ ज्यादा ही जोर की पिशाब लगी हुई थी, क्योंकि वो अब काफी देर तक ऐसे ही बैठे बैठे मूत्तती रही जिससे उसकी चुत से निकलकर पिशाब की धारे भी दूर तक बह निकली.. राजु की नजर भी अब अपनी जीज्जी की चुत से निकलकर नीचे जमीन पर बहकर चारो ओर फैलती पिशाब की छोटी छोटी धारो पर ही जमकर रह गयी थी मगर पिशाब करने के बाद रुपा अब खङी हुई तो एक बार फिर उसे अपनी जीज्जी की गोरी चिकनी जाँघो से लेकर उसके भरे भरे माँसल कुल्हो की भी झलक सी तो दिखी तो वो होश से मे आया..

पिशाब करने के बाद रुपा अब वापस राजु की ओर पलटी तो उसकी नजर अब सीधे नीचे राजु के पजामे की ओर गयी, जहाँ पजामे मे उसका लण्ड अब झटके से ही खा रहा था। रुपा ये अच्छे से जान रही थी की राजु ने उसे अब पिशाब करते पुरा देखा है इसलिये उसका लण्ड अब खङा होगा मगर फिर भी वो उसके लण्ड की ओर देखे बिना रह नही सकी, राजु ने भी अपनी जीज्जी को अपने पजामे की ओर देखते पाया तो उसे भी अब ये होश सा आया की उसका लण्ड उसके पजामे मे उभार बनाये हुवे है..

दिन अभी ढला नही था। अभी भी काफी उजाला था जिससे राजु के पजामे मे झटके से खाते उसके लण्ड का उभार साफ नजर आ रहा था, तो उत्तेजना के मारे उसका सुर्ख हुवा राजु का चेहरा अलग ही मालुम‌ पङ रहा था जिससे दोनो की नजरे अब एक बार तो आपस मे मिली, फिर दोनो के चहरे पर ही शरम हया की मुसकान सी तैर गयी। शरम के मारे राजु अब अपने पजामे मे बने उभार को छुपाने की कोशिश करने लगा तो वही रुपा भी दुसरी ओर देखने लगी...
 

Chutphar

Mahesh Kumar
402
2,357
139

दोनो ही एक बार फिर से अब पहले वाली स्थिति मे आ गये थे इसलिये चुपचाप अब पत्थर के पास जहाँ उनका सामान रखा हुवा था वहाँ उस पत्थर पर आकर बैठ गये।
रुपा अभी भी एक हाथ से अपनी शलवार को तो दुसरे हाथ से राजु के हाथ को पकङे हुवे थी इसलिये दोनो के बीच अब कुछ देर तो खामोशी सी छाई रही मगर फिर..

रुपा: अब ऐसे शलवार को पकङे पकङे मै कैसे चल पाऊँगी..?

राजु: पर जीज्जी मै बस खोल ही तो रहा था..!

रसजु ने अब मासुमियत से कहा जिससे..

रुपा: अरे..! तो मैने खोलने को कहाँ था, तोङने को थोङे ना..!

राजु:- पर जीज्जी मै भी तो बस खोल ही रहा था, अब टुट गया तो मै क्या करु..?

रुपा: खोल क्या रहा था गधे..! देख तुने इसे दाँतो से काट ही दिया..!, अब ऐसे शलवार को पकङे पकङे मै उपर पहाङी पर कैसे चढ पाऊँगी..!" रुपा ने अब अपनी शलवार के टुटे हुवे नाङे को उसे दिखाते हुवे कहा जिससे...

राजु: लाओ मुझे दो मै गाँठ लगाकर इसे फिर से जोङ देता हुँ..!

ये कहते हुवे राजु ने अब उसकी शलवार के नाङे को पकङना चाहा तो पूरा नाङा ही सब शलवार से निकलकर हाथ मे आ गया जिससे..

ओ्य्.. गधे अब ये क्या किय. .? रुपा ने उसे अब डाटते हुवे कहा।

क्.कुछ नही... मेरा अब ये हाथ तो छोङो..!" ये कहते राजु ने अब रुपा के हाथ से अपने हाथ को छुङाने की कोशिश की तो वो भी अब उसके हाथ को छोङकर अपना हाथ अब उसके कन्धे पर रखकर बैठ गयी जिससे राजु ने नाङे मे जो गाँठ लगी हुई थी उसे मुँह से खोलकर पहले तो उसे अलग किया, फिर टुटे हुवे नाङे के दोनो‌ सिरो को गाँठ मारकर फिर से जोङ दिया और....

"ये लो, लो हो गया..!" राजु ने अब नाङे को रुपा को दिखाते हुवे कहा जिससे..

"तेरा सिर हो गया..! गधे अब इसे शलवार मे‌ कैसे डालेगा..?" रुपा ने उसे डाटते हुवे कहा तो राजु भी अब

"व्.व्.वो्। ज्.जी्ज्जी्ईई..." करके हकलाने लगा जिससे रुपा को भी अब उसकी बेवकुफी पर हँशी आ गयी और..

"तु अब छोङ और ला मुझे दे इसे..!" रुपा ने अब राजु के हाथ से नाङा लेते हुवे कहा और अपने सिर से बालो की पिन को निकाल लिया...

तब तक राजु बिल्कुल सामान्य हो गया था। उसके लण्ड मे जो उभार आया हुवा था तब तक भी खत्म हो गया था
इसलिये वो भी अब रुपा के थोङा पास खिसक आया और उसे चुपचाप अपनी जीज्जी शलवार मे नाङा डालते हुवे देखने लगा..

रुपा ने भी अब पहले तो नाङे के किनारे को पकङकर उस पिन मे फँसाया, फिर शलवार मे नाङे के लिये जो कट सा होता है उसके एक सिरे मे उस पिन को घुसाकर धीरे धीरे उसे अन्दर खिसकाने लगी जिससे पिन के साथ साथ नाङा भी अब अन्दर घुसने लगा, मगर रुपा ने नाङ को डालने के लिये अपनी शलवार के कट के पास से उपर उठाया हुवा था जिससे अन्दर पहनी उसकी गुलाबी रँग की पेन्टी के किनारा साफ नजर आ रहा था जिस पर राजु की नजर अब फिर से जम सा गयी..

अपनी जीज्जी की पेन्टी से निकलती उस गन्ध को राजु अभी भी भुला नही था।‌ उसकी पेन्टी से आ रही गन्ध अभी भी उसके जहन मे बसी हुई थी इसलिये उसकी पेन्टी को देख वो अब एकदम जङ सा हो गया था। वैसे तो रुपा अपनी शलवसर मे नाङे को डालने मे ही व्यसत थी मगर ऐसे ही उसकी नजर राजु की ओर भी गयी होगी की उसने राजु को अब पेन्टी की ओर देखते हुवे पाया तो उसे जोरो की शरम सी आई और..

"ओय् बेशर्म....! तु सुधरेगा नही ना..? ये कहते हुवे उसने अब तुरन्त अपनी शलवार को नीचे करके अपनी पेन्टी को छुपा लिया जिससे राजु भी अब...

"व्.व्.वो् ज्.जी्ज्जी्.ई्.ई्... " कहकर हकला सा गया और दुसरी ओर देखने लगा।

रुपा ने भी अब एक बार रुकी मगर वो भी फिर से अपनी शलवार नाङा डालने लग गयी, जिससे उसने आगे की ओर से तो ऐसे ही आधे तक शलवार मे नाङे को पहुँचा दिया मगर नाङे को पीछे की ओर से घुमाकर लाने के लिये उसे अपनी शलवार को थोङा नीचे खिसकाना था इसलिये रुपा की नजर अब फिर से राजु की ओर चली गयी, वो अभी भी उसकी ओर ही देख रहा था।

अब ऐसे तो रुपा भी उसमे नाङा डाल नही सकती थी इसलिये...

"बेशरम..!" रुपा ने भी अब एक बार तो शरम हया के मारे राजु की ओर देखकर कहा, मगर फिर वो भी अपनी शलवार को नीचे खिसकाकर उसमे नाङा डालने लग गयी...

रुपा के अपनी शलवार को‌ नीचे खिसका लेने से राजु की नजर भी अब उसकी पेन्टी पर ही जमकर रह गयी। रुपा भी ये जान रही थी की राजु उसकी पेन्टी को देख रहा है जिससे उसे शरम तो आ रही थी मगर साथ ही राजु के उसे ऐसे देखने से एक रोमाँच व उत्तेजना सी भी महसूस हो रही थी। वैसे भी वो जान रही थी की यहाँ नही तो वहाँ उपर पहाङी पर जाकर टोटके के समय उसे राजु को अपना सब कुछ ही दिखा ही देना है इसलिये उसने भी राजु को अब कुछ कहा नही और चुपचाप अपनी शलवार मे नाङा डालती रही, मगर जब तक उसने अपनी शलवार मे नाङा डाला तब तक राजु के लण्ड तनकर फिर से उसके पजामे मे पुरा उभार सा बना लिया...

खैर रुपा के अपनी शलवार मे नाङा डालने तक तो दोनो अब वही बैठे रहे फिर पहाङी पर चढना शुरु कर दिया। राजु को डर था की कही उसकी जीज्जी उसके पजामे मे मे बने उभार को ना देख ले इसलिये वो पहले के जैसे ही उससे थोङा आगे होकर चलने लगा तो साथ ही एकदम गुमसुम सा भी हो गया था। रुपा भी समझ रही थी की वो ऐसा क्यो कर रहा है। राजु क्या खुद रुपा की‌ भी ऐसी ही हालत थी इसलिये उसने भी अब उससे कुछ नही कहा।
 

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दोनो ही एक बार फिर से अब पहले वाली स्थिति मे आ गये थे इसलिये चुपचाप अब पत्थर के पास जहाँ उनका सामान रखा हुवा था वहाँ उस पत्थर पर आकर बैठ गये।
रुपा अभी भी एक हाथ से अपनी शलवार को तो दुसरे हाथ से राजु के हाथ को पकङे हुवे थी इसलिये दोनो के बीच अब कुछ देर तो खामोशी सी छाई रही मगर फिर..

रुपा: अब ऐसे शलवार को पकङे पकङे मै कैसे चल पाऊँगी..?

राजु: पर जीज्जी मै बस खोल ही तो रहा था..!

रसजु ने अब मासुमियत से कहा जिससे..

रुपा: अरे..! तो मैने खोलने को कहाँ था, तोङने को थोङे ना..!

राजु:- पर जीज्जी मै भी तो बस खोल ही रहा था, अब टुट गया तो मै क्या करु..?

रुपा: खोल क्या रहा था गधे..! देख तुने इसे दाँतो से काट ही दिया..!, अब ऐसे शलवार को पकङे पकङे मै उपर पहाङी पर कैसे चढ पाऊँगी..!" रुपा ने अब अपनी शलवार के टुटे हुवे नाङे को उसे दिखाते हुवे कहा जिससे...

राजु: लाओ मुझे दो मै गाँठ लगाकर इसे फिर से जोङ देता हुँ..!

ये कहते हुवे राजु ने अब उसकी शलवार के नाङे को पकङना चाहा तो पूरा नाङा ही सब शलवार से निकलकर हाथ मे आ गया जिससे..

ओ्य्.. गधे अब ये क्या किय. .? रुपा ने उसे अब डाटते हुवे कहा।

क्.कुछ नही... मेरा अब ये हाथ तो छोङो..!" ये कहते राजु ने अब रुपा के हाथ से अपने हाथ को छुङाने की कोशिश की तो वो भी अब उसके हाथ को छोङकर अपना हाथ अब उसके कन्धे पर रखकर बैठ गयी जिससे राजु ने नाङे मे जो गाँठ लगी हुई थी उसे मुँह से खोलकर पहले तो उसे अलग किया, फिर टुटे हुवे नाङे के दोनो‌ सिरो को गाँठ मारकर फिर से जोङ दिया और....


"ये लो, लो हो गया..!" राजु ने अब नाङे को रुपा को दिखाते हुवे कहा जिससे..

"तेरा सिर हो गया..! गधे अब इसे शलवार मे‌ कैसे डालेगा..?" रुपा ने उसे डाटते हुवे कहा तो राजु भी अब

"व्.व्.वो्। ज्.जी्ज्जी्ईई..." करके हकलाने लगा जिससे रुपा को भी अब उसकी बेवकुफी पर हँशी आ गयी और..

"तु अब छोङ और ला मुझे दे इसे..!" रुपा ने अब राजु के हाथ से नाङा लेते हुवे कहा और अपने सिर से बालो की पिन को निकाल लिया...

तब तक राजु बिल्कुल सामान्य हो गया था। उसके लण्ड मे जो उभार आया हुवा था तब तक भी खत्म हो गया था
इसलिये वो भी अब रुपा के थोङा पास खिसक आया और उसे चुपचाप अपनी जीज्जी शलवार मे नाङा डालते हुवे देखने लगा..

रुपा ने भी अब पहले तो नाङे के किनारे को पकङकर उस पिन मे फँसाया, फिर शलवार मे नाङे के लिये जो कट सा होता है उसके एक सिरे मे उस पिन को घुसाकर धीरे धीरे उसे अन्दर खिसकाने लगी जिससे पिन के साथ साथ नाङा भी अब अन्दर घुसने लगा, मगर रुपा ने नाङ को डालने के लिये अपनी शलवार के कट के पास से उपर उठाया हुवा था जिससे अन्दर पहनी उसकी गुलाबी रँग की पेन्टी के किनारा साफ नजर आ रहा था जिस पर राजु की नजर अब फिर से जम सा गयी..

अपनी जीज्जी की पेन्टी से निकलती उस गन्ध को राजु अभी भी भुला नही था।‌ उसकी पेन्टी से आ रही गन्ध अभी भी उसके जहन मे बसी हुई थी इसलिये उसकी पेन्टी को देख वो अब एकदम जङ सा हो गया था। वैसे तो रुपा अपनी शलवसर मे नाङे को डालने मे ही व्यसत थी मगर ऐसे ही उसकी नजर राजु की ओर भी गयी होगी की उसने राजु को अब पेन्टी की ओर देखते हुवे पाया तो उसे जोरो की शरम सी आई और..

"ओय् बेशर्म....! तु सुधरेगा नही ना..? ये कहते हुवे उसने अब तुरन्त अपनी शलवार को नीचे करके अपनी पेन्टी को छुपा लिया जिससे राजु भी अब...

"व्.व्.वो् ज्.जी्ज्जी्.ई्.ई्... " कहकर हकला सा गया और दुसरी ओर देखने लगा।

रुपा ने भी अब एक बार रुकी मगर वो भी फिर से अपनी शलवार नाङा डालने लग गयी, जिससे उसने आगे की ओर से तो ऐसे ही आधे तक शलवार मे नाङे को पहुँचा दिया मगर नाङे को पीछे की ओर से घुमाकर लाने के लिये उसे अपनी शलवार को थोङा नीचे खिसकाना था इसलिये रुपा की नजर अब फिर से राजु की ओर चली गयी, वो अभी भी उसकी ओर ही देख रहा था।

अब ऐसे तो रुपा भी उसमे नाङा डाल नही सकती थी इसलिये...

"बेशरम..!" रुपा ने भी अब एक बार तो शरम हया के मारे राजु की ओर देखकर कहा, मगर फिर वो भी अपनी शलवार को नीचे खिसकाकर उसमे नाङा डालने लग गयी...

रुपा के अपनी शलवार को‌ नीचे खिसका लेने से राजु की नजर भी अब उसकी पेन्टी पर ही जमकर रह गयी। रुपा भी ये जान रही थी की राजु उसकी पेन्टी को देख रहा है जिससे उसे शरम तो आ रही थी मगर साथ ही राजु के उसे ऐसे देखने से एक रोमाँच व उत्तेजना सी भी महसूस हो रही थी। वैसे भी वो जान रही थी की यहाँ नही तो वहाँ उपर पहाङी पर जाकर टोटके के समय उसे राजु को अपना सब कुछ ही दिखा ही देना है इसलिये उसने भी राजु को अब कुछ कहा नही और चुपचाप अपनी शलवार मे नाङा डालती रही, मगर जब तक उसने अपनी शलवार मे नाङा डाला तब तक राजु के लण्ड तनकर फिर से उसके पजामे मे पुरा उभार सा बना लिया...


खैर रुपा के अपनी शलवार मे नाङा डालने तक तो दोनो अब वही बैठे रहे फिर पहाङी पर चढना शुरु कर दिया। राजु को डर था की कही उसकी जीज्जी उसके पजामे मे मे बने उभार को ना देख ले इसलिये वो पहले के जैसे ही उससे थोङा आगे होकर चलने लगा तो साथ ही एकदम गुमसुम सा भी हो गया था। रुपा भी समझ रही थी की वो ऐसा क्यो कर रहा है। राजु क्या खुद रुपा की‌ भी ऐसी ही हालत थी इसलिये उसने भी अब उससे कुछ नही कहा।
Nice update bro 👍
 
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babakhosho

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अद्भुत
 
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babakhosho

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आज तो लंड भी बगावत पर उतर आया
 
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