राजु के पजामे मे अभी भी उभार बना हुवा था जिसे छुपाने के लिये वो अब रुपा से थोङा आगे होकर चल रहा था तो रुपा को भी उससे बात करने मे अब शरम सी महसूस हो रही थी जिससे दोनो मे से किसी ने भी अब काफी देर तक कोई भी बात नही की, मगर रुपा समझदार थी। उसे मालुम था की दोनो के बीच ये स्थिति क्यो बनी है। वो नही चाहती थी की राजु उससे शरमाता रहे। वैसे भी रात मे उसे राजु के साथ नँगे रहकर बहुत सारे काम भी करने थे जो की उसे लीला ने बताये थे इसलिये...
"क्या हुवा रे..! ऐसे क्यो गुमसुम हो गया .?" रुपा ने अब अपना दुसरा हाथ आगे करके राजु के सिर के बालो को सहलाते हुवे पुछा जिससे..
"क्.क्.कुछ्..न्.नही जीज्जी...बस ऐसे ही ..!" राजु ने अब हकलाते हुवे से जवाब दिया मगर तभी रुपा को थोङी दुरी पर एक हैण्ड पम्प सा कुछ दिखाई दे गया जिससे...
"अरे..! वो देख तो, वहाँ वो हैण्ड पम्प सा लग रहा है। हैण्ड पम्प है तो चल पहले पानी भर लेते है..?" रुपा ने चलते चलते ही कहा।
"हाँ.हाँ.. जीज्जी हैण्ड पम्प ही है, चलो प्यास भी लग आई, पानी भी पी लेँगे और बोतल भी भर लेँगे.." राजु अब तुरन्त उछलकर पीछे घुम गया और रुपा की ओर देखते हुवे कहा।
उसके पजामे मे बना उभार थोङा कम तो हो गया था मगर उसका लण्ड अभी भी तना हुवा था जो की बाहर से ही पता चल रहा था। इसे छुपाने के लिये अभी तक वो रुपा से बात तक नही कर रहा था मगर अब हैण्ड पम्प का नाम सुनते ही वो अब ये तक भुल गया था की वो अपने पजामे मे बने उभार को छुपाने के लिये उससे आगे होकर चल रहा था जिससे रुपा की अब हँशी निकल गयी।
राजु के साथ वो भी अब हैण्ड पम्प पर आ गयी। हैण्ड पम्प पर आकर दोनो ने पहले तो पानी पिया फिर थैले मे रखी बोतल को भी भरकर रख लिया। दोनो काफी दुर चलकर आ गये थे इसलिये पानी पीकर दोनो ने अब कुछ देर वही बैठकर आराम किया फिर आगे चल पङे। तब तक राजु के पजामे मे बना उभार भी खत्म हो गया था इसलिये कुछ देर तो वो रुपा से बात करने मे थोङा हिचकीचाता सा रहा मगर रुपा के सामान्य व्यवहार देख वो भी फिर से सामान्य हो गया, मगर इस दौरान रुपा की दो तीन बार राजु के पजामे पर नजर गयी होगी, जहाँ अब कोई उभार तो नही रहा था, मगर निक्कर के आगे का भाग पर गिलापन साफ नजर आ रहा था।
दोनो अब लगातार घण्टे भर तक चलते रहे मगर राजु ने अब ना तो पानी पीने का नाम लिया और ना ही पिशाब जाने का। रुपा व राजु दोनो को ही अब पिशाब लग आई थी, मगर रुपा को पिशाब करते देखने से राजु का पहले जो हाल हुवा था उसकी वजह से वो अब रुपा के साथ पिशाब करने मे हिचकिचा रहा था, तो रुपा भी ये सोच रही थी की जब राजु पिशाब करेगा तभी वो भी पिशाब कर लेगी, तब तक वो चलते चलते लिँगा बाबा की पहाङी तक ही पहुँच गये..
अब राजु ने पिशाब करने के लिये नही कहा तो...
"पहुँच गये...! बस अब उपर चढना रह गया, चल कुछ देर यही रुक कर आराम कर लेते, फिर उपर चलँगे..!" रुपा ने अब राजु की ओर देखते हुवे कहा जिससे....
"हाँ.. हाँ.. जीज्जी बहुत थक भी गये है..! यही बैठ जाते है" राजु ने अब एक पहाङ के बङे से पत्थर की ओर इशारा करते हुवे कहा जो की शायद उपर पहाङी से लुढकर नीचे आया था। रुपा ने सोचा था की रुकने पर शायद राजु खुद ही उसे पिशाब करने के लिये कहेगा मगर राजु ने अब खुद से पिशाब जाने के लिये नही कहा तो...
"चल उधर चल पहले, मुझे पिशाब करना है..!" रुपा ने अब राजु की ओर देखकर शरम हया से मुस्कुराते हुवे कहा जिससे...
"हाँ.. हाँ.. जीज्जी चलो..! मुझे भी करना है..!"ये कहते हुवे राजु भी हाथ के थैले को वही रखकर तुरन्त रुपा के साथ हो लिया जिससे रुपा को एक बार तो उस पर हँशी आई, मगर फिर उसका हाथ पकङे पकङे पत्थर के दुसरी ओर आ गयी।
रुपा भी वैसे ये जान रही थी की शाम को जो कुछ हुवा था उसकी वजह से राजु शरम कर रहा है इसलिये उसने कुछ कहा नही बस हँशकर रह गयी, मगर अभी भी वो राजु को पिशाब करते देखने का लालच किये बिना रह नही सकी थी। वैसे तो वो उसके कन्धे पर हाथ रखकर खङी हो गयी थी, मगर फिर भी चोरी से उसकी नजर राजु के लण्ड पर चली ही गयी जिससे अपने आप ही उसकी चुत मे फिर से पानी सा भर आया था।
खैर राजु के बाद रुपा पिशाब करने लगी तो राजु अब दुसरी ओर मुँह करके खङा हो गया। वो नही चाहता था की पहले के जैसे उसे अपनी जीज्जी के सामने फिर से शर्मीँदा होना पङे इसलिये वो रुपा के कन्धे पर हाथ रखकर दुसरी ओर मुँह करके खङा हो गया था, मगर रुपा
को एक तो जोरो की पिशाब लगी हुई थी उपर से राजु को पिशाब करते देखने के बाद उसे अपनी चुत मे भी जोरो की सुरसुरी सी महसूस हो रही थी इसलिये जल्दबाजी मे वो अब अपनी शलवार का नाङा खोलने लगी तो उसके नाङे की गाँठ ही उलझ गयी।
रुपा ने अब पहले तो खुद ही नाङे को खोलने की कोशिश की मगर रुपा ने खुद से उसे जितना खोलना चाहा नाङे की गाँठ उतना ही कसती चली गयी इसलिये कुछ देर तो वो ऐसे ही खुद से अपने नाङे को खोलने की कोशिश करती रही मगर जब उससे नाङे की गाँठ नही ही.., नही खुली तो वो..
"ऊहूऊऊऊ..!" कहकर जोरो से झुँझला सी उठी जिससे..
"क्.क्या हुवा जीज्जी..!" राजु ने अब पलटकर रुपा की ओर देखते हुवे पुछा। रुपा भी अब क्या करती इसलिये..
"य्.य्.ये् गाँठ उलझ गयी..!" ये कहते हुवे वो भी घुमकर अब राजु की ओर मुँह करके खङी हो गयी। उसने अपने सुट को पेट से उपर उठाकर अपनी ठोडी से दबा रखा था तो दोनो हाथो से अपनी शलवार के नाङे को पकङे हुवे थी जिससे रुपा की साँसो के साथ साथ उसके फुलते पिचकते गोरे चिकने पेट व उसकी गहरी नाभी को देख राजु का लण्ड तुरन्त अब हरकत मे आ गया...