अपडेट -85
आज सुबह कि एक नयी किरण निकली थी.
रंगा बिल्ला का आतंक हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो चूका था, काम्या लड़खड़ाती बहादुर का सहारा लिए बढ़ी जा रही थी.
उसकी छाती गर्व से फूल के दुंगनी हो चली थी.
आखिर उसका इन्तेकाम पूरा हुआ " धन्यवाद बहादुर...... मुझे माफ़ करना मैंने तुम्हे गाली दि,हिजड़ा कहाँ "
काम्या का गला रुंध आया था,उसकी आंखे भीगी हुई थी
"ये....ये.....क्या कह रही है मैडम आप " आज पहली बार बहादुर ने काम्या का ये रूप देखा था.
"तुम ना आते तो उस गुफा मे मेरी नंगी लाश पड़ी होती " काम्या कि आँखों ने आँसू त्याग दिये
उसका बदन बहादुर के जिस्म मे भींचत चला गया.
"मममममममममममम.....मममममम....मैडम " बहादुर इस से आगे कुछ बोल ना सका पहली बार किसी स्त्री का स्पर्श उसे मिला था,उसकी सांसे थम गई, जिस्म ठंडा पड़ने लगा.
काम्या जब अलग हुई,उसकी आँखों मे बेसुमार प्यार था बहादुर के लिए "अब चलोगे भी या ऐसे भी मूर्ति बने रहागे हाहाहाःहाहा " काम्या खिलखिला उठी उसे पता था उसके आलिंगन का क्या असर होता है मर्दो पे.
गांव विष रूप
डॉ.असलम अस्तबल मे घोड़ा लगा के बाहर निकला ही था कि.
"असलम कहाँ थे तुम रात भर " असलम बुरी तरह से चौका वो आवाज़ सुन के.
"ठ...ठ....ठाकुर साहब आप यहाँ " असलम का चेहरा हैरानी और गुस्से से लाल हो चला.
"तो कहाँ होना चाहिए था ठाकुर साहेब को " पीछे से बिल्लू कि आवाज़ ने उसे चौका दिया
बिल्लू के चेहरे पे शक था.
"कल रात पुलिस ने छुड़ा लिया था,लेकिन अभी भी कामवती का कोई पता नहीं लगा है " ज़ालिम सिंह ने कहाँ
"पता लग जायेगा.....मै कल पूरी रात आपको और कामवती को ही खोजता रहा " असलम ने जैसे तैसे खुद को जज्ब कर रखा था..
"मै आता हूँ ठाकुर साहब अभी " असलम तुरंत ही हवेली के अंदर चला गया
"ठाकुर साहेब आपको नहीं लगता डॉ.असलम के हाव भाव पहले जैसे नहीं रहे " बिल्लू ने शक जाहिर किया.
" वो थक गया होगा, इसलिए वो हमारा परम मित्र है, जाओ खाने पानी का पूछ लो उन्हें " ठाकुर ज़ालिम सिंह भी अपने कमरे कि ओर बढ़ चला.
बिल्लू डॉ.असलम के पीछे चल दिया " ये.....ये क्या असलम ठाकुर जलन सिंह के बंद कमरे कि तरफ क्यों जा रहे है "
असलम बेहिचक दरवाजा खोल के अंदर दाखिल हो गया पीछे पीछे बिल्लू ने भी दरवाजे कि ओट ले ली.
"हाहाहाःहाहा.....क्या किस्मत है जलन सिंह तेरी, राह चलते ही नागमणि मिल गई वाह वाह....असलम ने अपने पाजामे से एक पोटली निकाली.
बिल्लू बड़े ही अचराज से असलम कि हरकत देखे जा रहा था, असलम के हाथ मे एक पोटली थी लगता था जैसे किसी सांप कि चमड़ी कि बनी हो.
" अब इस नागमणि के बदले सर्पटा मेरा गुलाम होगा हाहाहाःहाहा.....सारे दुश्मन एक साथ ख़त्म " असलम ठहाके लगा के हॅस पड़ा.
"तड़...तड़....तड़.....वाह डॉ.असलम वाह क्या खूब दोस्ती निभा रहे हो " पीछे से बिल्लू ताली पिटता हुआ आगे को बढ़ा.
असलम तनिक भी विचलित नहीं हुआ " अच्छा हुआ तू खुद आ गया,मुझे पता है तू मेरे पे शक करता है " डॉ.असलम कि आवाज़ मे एक भरिपन आ गया था,आवाज़ भर्रा रही थी.
"पीछे पलटो वरना खोपड़ी तोड़ दूंगा " बिल्लू ने हाथ मे थमा डंडा उठाया ही था कि.
बिल्लू के छक्के छूट गए,हाथ थर थर कंपने लगे, लाठी छूट के जमीन पे जा गिरी..
"ठ...ठ....ठा...ठाकुर ज्ज्ज्ज्बजज....जलन सिंह " बिल्लू लगभग मरी सी आवाज़ मे बोला.
असलम के चेहरा और मोहरा बदल गया था ,बढ़ी बढ़ी मुछे शान से लहरा रही थी.
अपनी अदामकाद तस्वीर के सामने ही खड़ा था असलम उर्फ़ जलन सिंह.
"आआआआप..." बिल्लू ने जैसे मौत देख ली हो.
"मै जानता हूँ तुम क्या सोच रहे हो,मै शुरू से इसी हवेली मे था, कायदे से तो मुझे अपने पोते का शरीर ग्रहण करना चाहिए था लेकिन वो कमजोर नपुंसक निकला उसके बस का नहीं मेरे काम को अंजाम देना"
बिल्लू मन्त्रमुग्ध सुनाता जा रहा था.
" तुम्हारी वफादारी इस हवेली के प्रति है, और अब इस हवेली का असली मालिक यानि कि मै आ चूका हूँ तो ठाकुर ज़ालिम सिंह का क्या काम?
समझ रहा है ना तू बिल्लू?
बिल्लू :- अअअअअ....हाँ....हाँ.....मालिक.
"वैसे भी एक म्यान मे दो तलवार कैसे रह सकती है, अब कामवती तो किसी एक कि ही हुई ना हहहहहहह..हाहाहाहा....एक भयानक सर्द आठठहस गूंज उठा
बिल्लू कि रूह फना होते होते बची.
"चल जा अब आज रात ही ठाकुर कि बली लेंगे हम " बिल्लू वहाँ से निकल गया
लेकिन एक शख्स और था जिसने इनकी बाते सुन ली थी.
"मेरा शक सही निकला,असलम के पास ही है नागमणि, अब नागमणि मुझसे दूर नहीं हो सकती " मंगूस चुपचाप वहाँ से खिसक लिया सभी को रात का इंतज़ार था.
उसके दिमाग़ मे युक्ति गूंज रही थी उसे शयाद रास्ता साफ नजर आने लगा था.
वही दूसरी और एक औरत सांप लपेटी चली जा रही थी. शाम हो चली थी.
"कब तक पहुंचेंगे नागेंद्र हम लोग "
"बस आ ही गया घुड़पुर कामवती "
अंदर रानी रूपवती क महल मे "क्या हुआ वीरा....क्या हुआ? तुम इतने बैचैन क्यों हो रहे हो? क्या बात है.
"हिननननननन......हीनननन......ठा..ठा....ठकुराइन वो आ रही है मुझे अभास हो रहा है उसका.
कौन....कौन....आ रही है वीरा.
रूपवती ने वीरा क बदन को सहला रही थी जो कि अभी अपने घुड़रूप मे ही था,नियति यही थी कि वीरा सिर्फ रात मे ही मानव शरीर धारण कर सकता था.
"वो....भी....रहा है साथ मे मेरा सबसे बड़ा दुश्मन " वीरा क चेहरे क भाव बदलने लगे थे.
गुस्सा आँखों मे उतर आया था.
"ककककक.....कौन...आ रहा है वीरा कुछ तो बताओ " रूपवती वीरा का रोन्द्र रूप देख कांप उठी थी.
कि तभी वीरा....हिनहिनाता....हवेली से बाहर कि और भागा...
"वही...रुक जा....रुक जा वही नागेंद्र तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ तक आने कि "
नागेंद्र जो कि कामवती क साथ हवेली कि दहलीज पे पहुंच ही गया था.
"आज तेरी मौत मेरे हाथ लिखी है वीरा समझ इसलिए आया......फुसससस.....फुसससस.....
नागेंद्र ने भी भयानक रूप अख्तयार कर लिया, और कामवती क शरीर को छोड़ वीरा पे झापट पड़ा.
"नहीं........चुप......दोनों...चुप.....रुक.जाओ...." कामवती जोर से चिल्लाई.
रूपवती भी तब तक बाहर आ चुकी थी,सामने का नजारा उसके लिए बिल्कुल नया था क्या ही रहा है कुछ समझ नहीं आ रहा था.
साँप को लड़ता देख इतना तो समझ आ गया था कि ये नागेंद्र ही है.
"तूने ही मारा था ना कामवती को? मेरा प्यार छिना मुझसे " वीरा ने अपनी टांगो का भयानक प्रहार नागेंद्र क फन पे कर दिया
वही नागेंद्र कि कुंडली वीरा के शरीर पे कसती चली गई," मारा तूने और इलज़ाम मुझपे, कामवती को मार तूने मुझे इतने बरसो तक दर दर कि ठोंकर खाने क लिए छोड़ दिया,मेरा सब कुछ छीन लिया "
"रुक जाओ.....रुक जाओ.....
लेकीन रुकने को कोई तैयार ही नहीं था.
"रुक जाओ.....मुझे तुम दोनों मे से किसी ने नहीं मारा था,मै तुम दोनों से ही प्यार करती हूँ "
कामवती एकाएक चिल्ला उठी.....उसकी आंखे नम हो गई,गला रूँघ आया.
जमीन पे बैठी फफ़क़ फफ़क़ क रोने लगी.
एक दम से माहौल मे सन्नाटा छा गया, साय....साय.....करती हवा वहाँ खड़े हर जिस्म को हिला रही थी
नागेंद्र और वीरा मुँह बाये खड़े थे,दोनों कि पकड़ ढीली हो गई थी.
रूपवती अभी भी सब समँझने कि कोशिश कर रही थी.
"कककम्म.....कककक.....क्या?" वीरा और नागेंद्र क मुँह से एक साथ ये शब्द निकल पड़े.
"हाँ....हाँ.....ये सच है वीरा और नागेंद्र मै एक ही समय मे तुम दोनों से समानरूप से प्यार करती हूँ, शनिफ्फफ्फ्फ़....शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....." कामवती आज हज़ारो साल बाद अपने दोनों प्यार को सामने पा क खुद को संभाल नहीं पा रही थी,सांस खिंच खिंच के उसका सुबकना चालू ही था.
"उठो बहन.....अंदर चलो कभी कभी कुछ गलत फहमीया हो जाती है " एक जोड़ी मजबूत हाथो मे कामवती को कंधे से पकड़ के उठा दिया.
कामवती के बदन मे एक तारावट सी दौड़ गई जैसे किसी अपने ने छुवा हो,कितनी ममता थी इस छुवन मे जो वो काफ़ी सालो बाद महसूस कर रही थी.
"सुबुक.....सुबुक......आ...अअअअअ....आप तो ठकुराइन है ना रूपवती ठकुराइन " कामवती खड़ी हो चली
"हाँ मै ही वो अभागी हूँ जो अपने रूप और बदन को ले कर हमेशा तिरस्कार का पात्र बनी रही,आओ छोटी बहन अंदर चलो "
दोनों हवेली कि दहलीज पार कर चुके थे,पीछे किसी उल्लू कि तरह नागेंद्र और वीरा उन दो नयी नयी बहनो को देखते रह गए..औरत को समझना उनके बस कि बात नहीं थी.
कल तक रूपवती कामवती से नफरत करती थी लेकीन आज उसके सामने आते ही मन का सारा मेल धूल गया.
रात हो चली थी....बाहर साय साय करती ठंडी हवा अपने प्रचंड रूप मे हवेली कि दीवारों को हिला रही थी.
वीरा सूरज ढलते ही अपने इंसानी रूप मे आ चूका था, जब तक दोनों अंदर पहुंचते उनके सामने दो लड़किया किसी बिछड़ी हुई बहनो कि तरह गले लग रही थी.
"मुझे माफ़ करना कामवती नागेंद्र कि नागमणि मैंने ही अपने स्वार्थ के लिए अपने भाई कुंवर विचित्रसिंह को भेजा था,मुझे नहीं पता था इसका अंजाम क्या होगा?" रूपवती हाथ जोड़े खड़ी थी.
"ऐसा ना कहे दीदी आप मन से सुन्दर है आप कि जगह मै भी होती तो यहीं करती " कामवती एक बार फिर रूपवती से गले जा लगी.
"लेकीन नागमणि कहाँ है चोर मांगूस आया क्यों नहीं अभी तक?" नागेंद्र कि आवाज़ से दोनों दरवाजे कि और पलटे
"यहीं तो चिंता का विषय है मेरा भाई कभी नाकामयाब नहीं होता " रूपवती कि चिंता जायज थी
मांगूस कभी नाकामयाब नहीं हुआ.
परन्तु आज मौका अलग था दस्तूर अलग था....
गांव विषरूप मे ठाकुर कि हवेली मे
असलम उर्फ़ ठाकुर जलन सिंह अपने भयानक रूप मे विधमान था.
हवन कुंड के सामने ठाकुर ज़ालिम सिंह रस्सीयो से लिपटा हुआ जान कि भीख मांग रहा था " असलम...असलम....होश मे आओ क्या हो गया है तुम्हे? तुम मेरर बचपन के दोस्त हो जिगरी हो "
"चुप हरामी तेरे जैसे कमजोर लोग ना तो दोस्त होने लायक है ना पोता होने के,मुझे शर्म आती है कि मेरा खून इस तरह ख़राब हो गया नपुंसक निकला तू " असलम एक बार फिर दहाड़ा.
"तेरी बाली ही मुझे मेरा सम्पूर्ण रूप प्रदान करेगी बेटे, वैसे भू कामवती के जिस्म पे सिर्फ मेरा हक़ है सिर्फ मेरा हाहाहाहाहाबा......एक भयानक अट्ठाहास हवेली मे गूंज उठा.
ये हसीं इस कदर सर्द और भयानक थी कि अँधेरे मे निकलती एक परछाई के पैर तक लड़खड़ा गए.
एक आवाज़ ने वहाँ मौजूद सभी का ध्यान भंग किया
असलम :- कौन है वहाँ.....? पकड़ो उसे बिल्लू कालू रामु
तीनो ही अपने मालिक का आदेश पा कर उस भागती परछाई पर टूट पड़े.
"मालिक लगता है कोई चोर है.....?" बिल्लू ने उस आदमी को सामने प्रस्तुत किया.
असलम :- कौन हो तुम.....और ये....ये.....ये हाथ मे क्या है
असलन को उस शख्स के हाथ मे कुछ चमकता सा दिखाई दिया.
असलम :- इधर दें इसे, शायद तू इसके बारे मे जनता है तभी तू सिर्फ इसे ही लेने आया,वरना तो अंदर काफ़ी सोना चांदी था तूने सिर्फ ये चमकती चीज ही क्यों उठाई?
"ये नागमणि है और ये तेरा और सर्पटा कि मौत का सामान है, ये इसके मालिक के पास ही जाएगी, चोर मांगूस कभी असफल नहीं होता " मंगूस के हौसले अभी भी बरकरार थे.
असलम :- ओह तो तू ही है वो कुख्यात चोर मांगूस...तुझे तो बहुत जानकारी लगती है इस नागमणि के बारे मे, छीन तो इस से ये मणि
नागमणि एक बार फिर से असलम के हाथो मे थी.
एक डर....और खौफ साफ साफ मंगूस के चेहरे पे दिख रहा था,आज पहली बार वो असफल महसूस करने लगा था.
"हाहाहाहाहा.....आया बड़ा महान चोर जो कभी विफल नहीं हुआ.
"मालिक क्या करे इसका " बिल्लू ने बीच मे टोकते हुए कहाँ
असलम :- करना क्या है ये खतरा है हमारे लिए इसकी मौत तो निश्चित है लेकीन थोड़े समय बाद.
असलम उर्फ़ ठाकुर जलनसिंह अपने हवन को पूर्ण करने मे लग गया,ठाकुर ज़ालिम और चोर मांगूस अपनी हार पे पछता रहे थे.
कि तभी.....खड़क.....खट.....से ठाकुर ज़ालिम सिंह कि गर्दन पे एक जबरजस्त वार हुआ उसका सर हवन कुंड मे जा गिरा....
ऐसा भयानक अकस्मात नजारा देख मुर्दो के कलेजे काँप जाते यहा तो फिर भी जिन्दा इंसान थे.
मांगूस का दिल पसिज गया,मौत उसकी आँखों के सामने नाचने लगी,उसका भी यहीं अंजाम निश्चित था...
कि तभी एक जलती हुई सी चिंगारी निकाल असलम के शरीर मे समाने लगी.
"आआहहहहहह.....हुर्रर्रर्रर्रर्रर्र......हहहरररर......आअह्ह्ह.....इतने सालो बाद सम्पूर्ण जिस्म प्राप्त हुआ सम्पूर्ण शक्ति महसूस हुई.
अब
वहाँ असलन का कोई नामोनिशान नहीं था,एक लम्बा चौड़ाबड़ी बड़ी मुछ वाला ठाकुर जलन सिंह खड़ा था.
अपने सम्पूर्ण स्वरुप और ताकत के साथ "हाहाहाहाहा......अब कामवती को कोई नहीं छीन सकता मुझसे "
बिल्लू रामु कालू...ज़ालिम सिंह कि लाश को ले जा के नदी किनारे दफना दो साथ ही इस चोर उचक्के को भी ले जाओ साले को जिन्दा दफना देना.
हाहाहाहाहाबा.......
एक भयानक हसीं के बाद सन्नाटा छा गया था.
साय...साय...करती हवा चोर मांगूस के रोम रोम को भेद रही थी,नदी जैसे जैसे पास आती मांगूस को मौत साक्षात् खड़ी नजर आती.
बिल्लू :- क्यों बे महान चोर मंगूस डर लग रहा है मरने से.
मंगूस क्या बोलता उसकी तो घिघी बँधी हुई थी.
कुछ ही देर मे दो क़ब्र खोद दि गई.....और कुछ ही देर मे भर भी दि गई....
"चलो भाइयो अपना काम भी हो गया और ठाकुर जलन सिंह का भी अब चल के हवेली पे शारब पी जाय"
बिल्लू कालू रामु तीनो आगे बढ़ गए थे,पीछे बची थी दो ताज़ा भारी गई क़ब्र.
वही रूपवती कि हवेली मे.
"आप चिंता ना करे ठकुराइन रूपवती मंगूस वाकई ने महान चोर है खाली हाथ नहीं लोटेगा" नागेंद्र फुसफुसाया
"मुझे पता है नागेंद्र लेकीन अचानक ही कुछ अनहोनी कि आशंका ने मुझे घेर लिया है " रूपवती व्यथित थी
वीरा :- चिंता ना करे ठकुराइन कल सुबह मै खुद जाऊंगा कुंवर विचित्र सिंह को लेने,लेकीन अभी जो सबसे बड़ा रहस्य है वो जान लेने दो.मै मरा जा रहा हूँ कामवती को नागेंद्र ने भी नहीं मारा तो किसने ये आग लगाई मेरे भाई जैसे दोस्त को खून का प्यासा बना दिया.
वीरा कि आंख मे अँगारे साफ झलक रहे थे, पास ही रुखसाना भी उस बातचीत मे शामिल हो चुकी थी.
कामवती :- वीरा नागेंद्र जैसा कि तुम जानते हो मै तुम दोनों से ही एक साथ प्यार करती थी,मै चाह कर भी किसी एक के लिए अपनी चाहत को कम नहीं कर पा रही थी.
मेरा सामना पहली बार किसी अद्भुत पशु मानवो से हुआ था, मै अचंभित थी जब तुम दोनों कि सच्चाई जानी,उस वक़्त तक तुम दोनों ही एक दूसरे के लाराम शत्रु बन चुके थे इसलिए कभी बता ही नहीं पाई कि तुम दोनों ही मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा हो.
मुझे नागेंद्र का कोमल तरीके से मेरे जिस्म को छूना और वीरा का रुखा कठोरपन दोनों ही पसंद आने लगा था.
नागेंद्र अपने कोमल जीभ से मेरे जिस्म को छूता तो एक बिजली सी दौड़ उठती थी,लेकीन वही बिजली कड़क के गिरने लगती जब वीरा मेरे बदन को निचोड़ के रख देता.
मै दोनों के प्यार कि आदि हो चली थी.
मकान दुविधा मे थी कि किसको हाँ बोलू,तुम दोनों ही मुझे अपनी दुल्हन बनाने पे अड़े थे.
मेरा तन और मान किसी एक को भी छोड़ने को तैयार नहीं था.
मै कोई निर्णय ले पति कि मेरे माँ बाप ने मेरी शादी ठाकुर जलनसिंह के साथ तय कर दि, ये बात सुन के मेरा कलेजा कांप उठा, लेकीन क्या करती मेरे पिता जी ठाकुर जलन सिंह के कर्जो तले दबे थे.
मुझे तुम दोनों को छोड़ ठाकुर जलनसिंह से शादी करनी पड़ी.
लेकीन शादी के बाद भी मैंने कभी मन से ठाकुर के साथ सम्बन्ध नहीं बनाये,इच्छा ही नहीं थी मुझे कभी वो सुख का अहसास हुआ ही नहीं.
ठाकुर जलन सिंह माँ शक मुझपे गहराता चला गया,उसने कुछ आदमी मेरे पीछे लगा दिये.
ये वही दिन था जब मै कामवासना मे लिप्त नागेंद्र और उसके बाद वीरा के साथ सम्भोग लिप्त थी.
ये बात ठाकुर तक जा पहुंची.....उसी रात
ठाकुर :- साली छिनाल बहुत खुजली है तेरी गांड और चुत मे.
मुझे छोड़ के सब से मरवाती फिरती है.
मै पूर्णतया नंगी बेबस ठाकुर और उसके आदमियों के सामने पड़ी हुई थी.
उसके बाद ठाकुर के आदमियों ने जी भर के मेरा बलात्कार किया,उसके बाद मेरे गुप्तागो को नष्ट कर दिया,मै खूब चिल्लाई दया कि भीख मांगी लेकीन उस कमीने का दिल ना पसीजा.
कामवती :- ठाकुर मैंने तुमसे कभी प्यार नहीं किया तुम सिर्फ मेरा जिस्म भोग सकते हो मेरा मन नहीं.
उसके बाद मेरे गुप्तागो मे लकड़ी सरिया डाल के मेरे जिस्म को छलनी कर दिया ठाकुर ने,मै अभी भी तुम दोनों कि प्रतीक्षा मे अंतिम सांस गिन रही थी, मेरी आंखे बंद थी लेकीन धड़कन तुम दोनों का नाम ले रही थी.
लेकीन ठकुर यहाँ भी चालाकी कर क्या मेरे सीने पे घोड़े के खुर के निशान छाप दिये और मेरी जांघो पे सांप के काटने के निशान बना दिये.
उसके बाद जब नागेंद्र वहाँ पंहुचा तो खुर के निशान देख वीरा को कातिल समझ बैठा और वीरा सांप के निशान देख नागेंद्र को.
तुम दोनों ही एक दूसरे के खून के प्यासे हो उठे....
इस गलतफहमी मे तुम दोनों ने ही अपना सब कुछ उजाड़ लिया
परन्तु इस पाप कि सजा जलनसिंह को तांत्रिक उलजुलूल ने दि. और तुम दोनों को वहशीपन के लिए श्राप भुगतना पड़ा और मुझे एक दर्दनाक मौत मिली.
कमरे मे एक भयानक सन्नाटा छा गया,जहाँ वीरा और नागेंद्र अचंभित किसी मूर्ति कि तरह खड़े थे वही रूपवती,कामवती,रुखसाना कि आँखों मे आँसू थे.
किस भयानक मौत से गुजरी थी कामवती,इस भयानकता दर्दभारी मौत का अंदाजा लगा पाना ही मुश्किल था.
कि तभी.....चीव....चीव.......कि आवाज़ ने सभी का ध्यान भंग किया.
एक चील हवेली के आंगन से उड़ती चली गई उसके पंजे में कुछ कागज़नुमा चीज फसी थी जो कि सीधा रूपवती के कदमो मे जा गिरी.
रूपवती ने तुरंत ही वो चिठ्ठी उठा ली.
"सावधान ठकुराइन रूपवती, ठाकुर जलन सिंह वापस आ चुके है और नागमणि उनके ही अधिकार मे है, सर्पटा और जलन सिंह कल अमावस्या कि रात एकजुट हो कर आप लोगो पे हमला करने वाले है, सभी को ले कर किसी सुरक्षित जगह कि ओर पलायन कर जाइये,इसमें ही सभी का भला है.
ठाकुर ज़ालिम सिंह और कुंवर विचित्र सिंह उर्फ़ चोर मांगूस अब इस दुनिया मे नहीं रहे,मृत्यु को प्राप्त हो गए है बेहतर होगा,बाकियो कि जान बचाइये ".
सच का हितेषी.
तांत्रिक उलजुलूल.
चिठ्ठी पढ़ते ही रूपवती के पैर कांप गए वो अपना बोझ ना संभाल सकी,उसके हाथ से चिठ्ठी निकलती हुई कामवती के कदमो तक जा गिरी.
रूपवती किसी मूर्ति कि तरह जड़ हो गई थी,उसका नाकारा पति और जान से प्यारा भाई मौत को प्राप्त हो गए थे.
"अब क्या करेंगे वीरा और नागेंद्र,जिस नागमणि का सहारा था उसको लाने वाला चोर मांगूस तो मारा गया?"कामवती कि जुबान पे बेशकीमती सवाल था.
एक अजीब मरघाट सा सन्नाटा पसर गया था,एक मनहूसियत सी छा गई थी वातावरण मे.
तो क्या वाकuई चोर मंगूस मारा गया?
या फिर से एक बार मौत को मात दें देगा चोर मंगूस?
बने रहिये कथा अपने अंतिम चरण मे है.