अपडेट -86
रूपवती कि हवेली (घुड़पुर ) मे एक मरघाट सा सन्नाटा छाया हुआ था,सब कि निगाहों मे भय साफ दिख रहा था,होंठो पे एक ही सवाल था
"अब क्या होगा?"
इस चुप्पी को तोड़ा रूपवती ने " वीरा तैयारी करो हमें यहाँ से कहीं दूर निकल जाना चाहिए "
"कैसी बात कर रही है ठकुराइन क्या हम कायर है?" वीरा ने आवाज़ मे जरा हिम्मत दिखाई.
"तो क्या हो तुम बहादुर हो....क्या कर लोगे उनका? कैसे म
लड़ोगे,मेरा लालच मेरे भाई को ले डूबा,नहीं चाहिए मुझे सुन्दर काया,कामुक जिस्म मेरा प्यारा भाई मैंने ही उसे नागमणि लाने को कहाँ था.
रूपवती फफ़क़ फफ़क़ के रो बड़ी,उसका मान पछतावे से सुलझ रहा था, एक सुन्दर काया पाने को उसने क्या नहीं किया? अपनी खोई हुई इज़्ज़त पाने कि लालसा मे उसका जान से प्यारा भाई भी मारा गया
"बस बहुत हुआ अब किसी कि जान नहीं जाएगी " रूपवती उठ खड़ी हुई
"ठकुराइन आप चिंता ना करे हमारे पास कल तक का समय है कुछ हाल जरूर निकलेगा " पास खड़ी रुखसाना ने रूपवती को हिम्मत बंधाई.
"क्या हाल निकलेगा सबसे पहले तो तुम्हारी इज़्ज़त को ही तार तार किया जायेगा,क्यूंकि वीरा और सर्पटा के मुताबिक तुम ही घुड़वती हो,तुम्हे ही तो लेने आ रहा है वो सपोला " रूपवती मानने को तैयार नहीं थी.
"हाँ मै जानती हूँ हालांकि मुझे याद नहीं है,लेकीन इतना सब देख सुन के यकीन हो चला है कि मै ही वीरा कि बहन घुड़वती थी,लेकीन आप सझने कि कोशिश करे मुझे अपने गांव कामगंज जाने दीजिये यदि कल दोपहर तक मै वापस ना लौटी तो आप सब यहाँ से कहीं दूर कूच कर जाना " रुखसाना कि आवाज़ मे एक जादू था मजबूत इरादा था.
वीरा :- तुम्हारे गांव मे आखिर रखा क्या है?
रुखसाना :- मेरे अब्बा मतलब ससुर जो कि एक मौलवी है,कूच समय से मै उनके कहने पे कूच चुनिंदा लोगो के वीर्य एकत्रित कर रही थी, ये वाला अंतिम है जो कि ठाकुर ज़ालिम सिंह का है.
रुखसाना ने सारी कहानी कह सुनाई कैसे उसका पति मरा, रंगा बिल्ला के साथ उसके क्या सम्बन्ध रहे सब कुछ.
सभी हैरान थे लेकीन इस एक अंतराल मे सभी के मान मे विश्वास जग उठा था.
वीरा :- ऐसी बात है बहना तो मै भी तुम्हारे साथ चलता हूँ,मै तूफान कि गति से अभी भी दौड़ सकता हूँ.
जल्दी ही वापस आ जायेंगे.
सभी इस बात से संतुष्ट थे क्यूंकि वीरा ही एकलौता ऐसा प्राणी था जिसके पास उसकी शारीरिक ताकत तो थी ही.
वरना तो नागेंद्र बिन नागमणि के विषहीन सांप के अलावा कुछ नहीं था,ना ही रुखसाना घुड़वती बन सकती थी वो सिर्फ आमनारी ही थी.
ठकुराइन रूपवती कि आज्ञा ले रुखसाना और वीरा गांव कामगंज कि ओर दौड़ चले.
थाना विषरूप
मध्य रात्रि
"काफ़ी रात हो चुकी है मैडम घर नहीं जाना " बहदुर कि आवाज़ ने इंस्पेक्टर काम्या को लगभग चौंका दिया.
"वो....वो...वो.....जाना है ना,काम्या हड़बड़ाई सी कुर्सी पे सीधी हुई जैसे किसी गहरी नींद से जागी हो.
काम्या ने एक मदमस्त सी अंगाड़ाई ली दोनों हाथ सर के पीछे जाने से मदमस्त बड़े भारी स्तन उभर के बाहर को निकल आये, जिसका बाहरी भाग ऊपर के खुले बटन से बाहर झाँक रहा था.
बहादुर ये दृश्य देख के सकपका गया,उसके लिए आज का दिन कुछ ऐसा ही था सुबह से जब से उसने काम्या के कोमल बदन का स्पर्श पाया था उसका जिस्म उसके काबू मे नहीं था,पैंट के आगे का हिस्सा उठा उठा सा ही लग रहा था.
काम्या ने अंगाड़ाई लेते हुए बहादुर किनर देखा जी उसे ही एकटक देखे जा रहा था.
काम्या कि नजर बहादुर पे ही टिकी हुई थी,उसका नजरिया बहादुर के लिए बदल गया था,काम्या को पैंट मे बना उभर साफ नजर आया.
अब काम्या जैसे कामुक और हसीन औरत ऐसे मौके भुनाने से कहाँ चुकती है,उसे ना जाने क्या मस्ती सूझी....उसका एक हाथ अपने गले के आगे कि हिस्से पे जा लगा....चट....चटतट.....कितने मच्छर हो गए है चौकी मे.
काम्या कि इस हरकत ने उसकी वर्दी का एक बटन और खोल दिया, दो गोरे गुलाबी बड़े से मोटी हल्की रोशनी मे चमक उठे, लगभग 50% हिस्सा वर्दी से बाहर झाँक रहा था
"गड़ब....गुलुप.....बहादुर ने एक बार थूक निगल लिया, दूसरी बार निगलना चाहा कि मालूम हुआ गला तो सुख गया है, आंखे बाहर को आ गई.
"क्या हुआ बहादुर क्या देख रहा है ऐसे औरत नहीं देखी कभी " काम्या ने जानबूझ के चुटकी लेते हुए कहा.
काम्या कि रौबदार आवाज़ ने बहादुर को झकझोड़ दिया "ककककक.....कुछ...नहीं.....नहीं...मैडम....वो...वो...मै...तो..बस....मै तो "
"हाँ हाँ चल ठीक हबसाब समझती हूँ...आखिर तू भी तो मर्द है ना, चल इधर आ थोड़ा कंधे दबा दें सुबह से दर्द कर रहे है "
बहादुर झेम्प गया उसके पास सफाई देने को कुछ नहीं था,चुपचाप काम्या कि कुर्सी के पीछे चला गया, परन्तु पीछे से नजारा और भी ज्यादा कामुक और हसीन था.
"क्या हुआ दबा ना " काम्या मंद मंद मुस्कुरा रही थी उसे पता था बहादुर कि क्या हालत है.
"ज्ज्ज्ज्बजज....जी मैडम " बहादुर के काँपते हाथ काम्या के कंधे पे जा लगे जो कि अर्धनग्न थे,काम्या ने वर्दी और ढीली कर ली थी.
"इसससस.......काम्या के मुँह से एक हल्की सी आह सी निकली बहादुर के हाथ बिल्कुल किसी लड़की कि तरह नाजुक कोमल और गद्देदार थे.
काम्या ने आजतक जितने भी मर्दो को भोगा था सब हैवान और कठोर ही थे लेकीन ये कोमल स्पर्श उसके वजूद को हिला गया.
काम्या कि आंखे बंद होती चली गई,सर पीछे को कुर्सी के तख़्त पे जा टिका.
पीछे बहादुर ती जैसे जड़ ही हो गया था,काटो तो खून नहीं, पीछे से गर्दन से लगाई 70% स्तन साफ दिख रहे थे, निप्पल के आस पास कि लालिमा साफ देखी जा सकती थी, दोनों स्तन से होती महीन दरार पेट तक का रास्ता दिखा रही थी.
बहादुर कि नजर सिर्फ काम्या के गोरे मखमली स्तन पे टिकी हुई थी, उसके हाथ खुद बा खुद काम्या के कंधे को सहला रहे थे.
ना जाने बहादुर आज इतनी हिम्मत कहाँ से ले आया था,या फिर ये काम्या के बदले हुए स्वभाव का नतीजा था क्यूंकि उसने आज तक बिना गाली दिये बहादुर से बात तक नहीं कि थी.
बहादुर का हाथ धीरे धीरे किसी मशीन कि तरह काम्या के जिस्म ले रेंग रहा था, बहादुर आज अपने जीवन का सबसे बेहतरीन नजारा देख रहा था,वो इस नज़ारे मे खोया हुआ था उसका हाथ कब धीरे धीरे नीचे सरकता जा रहा था उसे पता नहीं था.
काम्या जो कि जीवन मे पहली बार इस कदर कोमल स्पर्श का आनंद ले रही थी उसके जिस्म.मे जैसे हज़ारो चीटिया एक साथ चल रही थी,उसका मज़ाक उसपे ही भारी प्रतीत लगने लगा.
"उम्मम्मम्म......हम्म्म्म.....काम्या कि सांसे भारी हो चली, इस का अंजाम ये था कि उसके बड़े भारी स्तन दम लगा के फूलते फिर पिचकते,
पीछे खड़े बहादुर को ऐसा लगता जैसे ये स्तन अभी पूरी वर्दी फाड़ बाहर को आ गिरेंगे कि तभी वापस से हलके से उसी वर्दी मे समा जाते.
इस मनमोहक दृश्य से भला कोई मर्द कैसे ना उत्तेजित होता,बहादुर भी हुआ और ऐसा हुआ कि उसके हाथ उसके नियंत्रण मे नहीं रहे..ना जाने कैसे उसकी उंगलियां इतनी नीचे जा पहुंची कि उस पहाड़ को छू ही लिया जो कि सिर्फ सपना ही था बहादुर जैसो के लिए.
काम्या को स्तन के ऊपरी हिस्से पे बहादुर कि कोमल उंगलियों का अहसास साफ महसूस हो रहा था."इससससस.....उम्म्म......आअह्ह्ह....." काम्या के रोंगटे खड़े हो गए उसकी नाभि मे गुदगुदी सी चल पड़ी,ये गुदगुदी यहीं नहीं रुकी नाभि से होती हुई सीधा दोनों जांघो के बीच जा लगी....
काम्या आंखे बंद किये,जाँघ को बुरी तरह से आपस मे भींच लिया जैसे वहाँ से कुछ निकल ना जाये ना जाने क्या रोक रही थी काम्या.
बहादुर किसी मन्त्रमुग्ध इंसान कि तरह अपने हाथ बढ़ाये जा रहा था,कंधे से होते हुए उसके हाथ काम्या के स्तन को छू के निकल जाते,जैसे उन उभार को टटोल रहा हो,
जैसे ही हाथ लगाता वैसे ही हाथ पीछे खिंच लेता,चौकी का माहौल गरमा गया था.
काम्या का जिस्म जल रहा था,उसका तो मान था कि पकड़ के भींच दें बहादुर उसके स्तन को लेकीन कैसे कहती, ये कोमल नाजुक प्यार भरा स्पर्श उसके जिस्म कि परीक्षा ले रहा था,इतने सब्र इतने कोमलपन कि आदत ही नहीं थी उसे.
"उम्मम्मम.....शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़......शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....काम्या कि सांसे जोर जोर से चलने लगी, जाँघे आपस मे घिसने लगे.
लेकीन बहादुर म हाथ बदस्तूर वही कर रहे थे जैसा करने को कहा गया था.
जैसे ही काम्या कि सांस चढ़ती उसके स्तन कि दरार चौड़ी हो जाती,फिर जैसे ही सांस छोड़ती वो दरार सिकुड़ के पुराने रूप ने आ जाती.
बहादुर का लंड पीछे कुर्सी के तख़्त पे ठोंकर मार रहा था, उसका लावा कभी भी फुर सकता था आखिर कब तक संभालता,काम्या का भी यहीं हाल था उसकी गर्दन इधर उधर चलने लगी थी, जाँघे आपस मे लड़ाई कर रही थी.
कि तभी...."आआआहहहहहहहहह.......बहादुर.......उफ्फ्फ.....एक चीख ने चौकी को हिला दिया"
"हुम्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़म....आआहहहह.......मैडम.....ऊफ्फफ्फ्फ़....आअह्ह्ह...." साथ मे बहादुर कि चीख भी शामिल हो चली.
"हम्म.फ़फ़फ़फ़......हम...फ़फ़फ़फ़......." बहादुर पीछे दिवार से जा लगा और काम्या कुर्सी ने निढाल सी पड़ी थी काम्या कि जाँघ के बीच चिपचिपा सा पानी छलछाला आया था,उसकी पैंट बुरी तरह गीली हो चली वही हाल बहादुर का भी था जिस लावे को सुबह से रोकने कि कोशिश मे था वो भरभरा के निकल चला साथ ही जैसे बहादुर के प्राण भी निकाल ले गया हो.
काम्या अभी कुछ कहती समझती सम्भलती कि बाहर से आवाज़ आने लगी.
"मैडम....मैडम....मैडम....गजब हो गया.....गजब हो...गया " बाहर से आती आवाज से काम्या और बहादुर जो कि अपना चरमसुःख अनुभव कर रहे थे तुरंत संभल उठे.
काम्या कि वर्दी के बटन लग गए थे, बहादुर पास ही कुर्सी पे बैठा था.
तभी एक हवलदार पास आया " मैडम गजब हो गया "
"क्या हुआ मदरचोद क्यों मरे जा रहा इतनी रात को " काम्या का चेहरा गुस्से से लाल था होता भी क्यों ना वो आज पहली बार इतनी जल्दी और इस कद्र झड़ी थी कैसे उसकी आत्मा उसकी चुत के रास्ते निकली हो वो अपने इस चरमसुख के आनंद ले ही रही थी कि ये हवलदार आ धमका.
"मैडम..वो...वो....नदी किनारे किसी आदमी कि सर कटी लाश मिली है,जिसे जंगली कुत्ते नोच रहे थे, पास से गुजरते रहागीर ने सुचना दि है " हवलदार एक ही सांस मे सब कह गया.
काम्या का मूड ख़राब हो चूका था "चल साले बता कहाँ है लाश,लोगो को भी बेवक़्त मरना होता है " काम्या कुर्सी से खड़ी हो चली,साथ ही बहादुर भी पीछे पीछे हो लिया.
दोनों कि पैंट गीली ही थी.
काम्या को नदी पहुंचने मे अभी वक़्त था लेकीन वीरा और रुखसाना कामगंज पहुंच चुके थे.
"ठक ठक ठक.......एक दरवाजा जो से पीटा जा रहा था "
"चररर.........अरे भाई कौन है इतनी रात को, अरे रुखसाना बेटा तुम? कहाँ थी इतने दिन? मुझे तो अनिष्ट कि आशंका ने घेर लिया था " मौलवी साहब ने दसरवाजा खोलते ही सामने रुखसाना को पाया आए सवालों कि झड़ी लगा दि
"अब्बू अभी वक़्त नहीं है इतना बताने का बस यूँ समझिये अब जिंदगी मौत का सवाल है, और...ये.....रुखसाना ने वीरा कि तरफ इशारा करते ही कहना ही चाहा कि
"ये तुम्हारा भाई वीरा है, घुड़वाती "
रुखसाना कि आंख फटी कि फटी रह गई ये बात सुनते ही.
"अंदर आओ बेटी ऐसे चौको मत,हमें सब पता है, खुदा ने सभी कि जिंदगी मे कुछ ना कुछ लिखा है,वो कोई काम अधूरा नहीं छोड़ता, भले उसके बन्दे वो काम अधूरा छोड़ दें लेकीन वो उन्हें फिर भेज देता है "
मौलवी साहब के पीछे वीरा और रुखसाना अंदर आ गए लाखो सवाल और हैरानी लिए.
"इसका मतलब आप सब जानते थे फिर....फिर....."
"पहले बता देता बेटी तो तुम इस काम को कैंसर अंजाम देती....लाइ हो वो जो मैंने कहाँ था "
मौलवी साहब ने अपनी हथेली आगे फैला दि
रुखसाना अभी भी अचरज से भरी थी,उसने अपनी पोटली से ज़ालिम सिंह के वीर्य कि बोत्तल उन्हें थमा दि " ये लीजिये"
"खुदा के खेल निराले,किस्मत देखो तुम्हारे भाई ने पहले ही ढूंढ़ निकाला तुम्हे" मौलवी ने उस वीर्य को एक कटोरे मे डाला और कुछ मन्त्र पढ़ कर फुकने लगा
"लो बेटा ये अंतिम है इसे पी लो तुम्हारी सारी जिज्ञासा शांत हो जाएगी " वहाँ क्या ही रहा था समझ के परे था.
लेकीन फिर भी रुखसाना ने वो कटोरा लिया और एक ही सांस मे उस वीर्य को ली गई, वो वीर्य हलक से नीचे उतरा नहीं कि रुखसाना के हाथ से वो कटोरा छूट के जमीन पे जा गिरा
वीरा आश्चर्य से मरा जा रहा था और मौलवी साहब के लब पे मुस्कान तैर रही थी.
एक दूधिया रौशनी से कमरा जगमगा उठा,दोनों कि आंखे चोघिया गई...धीरे धीरे वो प्रकाश छटा तो सामने घुड़वाती खड़ी थी
अपने सम्पूर्ण रंग रूप पूर्ण घुड़रूप मे,वही सुनहरे बाल,सफ़ेद लिबास कोमल हसीन त्वचा.
वीरा हैरान खड़ा देखता रहा,उसकी आंखे उसे धोखा तो नहीं दें रही,लेकीन नहीं उसकी आँखों से आँसू झर झर गिरने लगे, कितने बरसो वो तरसा था इस रखा दृश्य के लिए, अपनी बहन को खोने के बाद वो नरक का जीवन जिया था.
"भाई ऐसे क्या देख रहे हो मै ही हूँ आपकी घुड़वती "
वीरा के कानो मे एक बार फिर वही कोमल खिलखिलाती आवाज़ गूंज उठी.
"मेरी बहना......सुबुक सुबुक....." वीरा दौड़ के घुड़वती के गले जा लगा.
आज सच मायनो मे उसने अपनी बहन को पा लिया था.
"बस मेरे बच्चों ये प्यार बनाये रखना....मेरे इस जीवन का उद्देश्य पूरा हुआ" मौलवी कि आवाज़ ने दोनों भाई बहन का ध्यान भंग किया.
"मौलवी साहेब आप ने मुझे इस जन्म मे एक पिता का प्यार दिया,मेरा जीवन मुझे वापस लौटा दिया,मै कैसे ये अहसान चूका पाऊँगी " घुड़वती मौलवी साहब के पैरो मे जा गिरी.
"अरे मेरी बच्ची पिता का तो जीवन ही अपने बच्चों के कल्याण के लिए होता है और खुदा कि मर्ज़ी भी यहीं थी " मौलवी साहब ने घुड़वती को गले लगा लिया.
एक भावुक माहौल बन गया था, मौलवी पिता ना हो के भी आज पिता से बढ़कर हो गया था.
"अब जाओ मेरे बच्चों दुश्मनो पे विजय पाओ,तुम्हारी ही जीत होंगी "
घुड़वती ':- लेकीन कैसे, नागेंद्र कमजोर है हम अकेले कैसे लड़ेंगे? मंगूस ही उम्मीद था वो ही मारा गया अब यहाँ से भाग जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.
मौलवी :- बहादुर लोग कभी भागा नहीं करते बेटा या तो वो लड़ते है या मरते है.खुदा तुम्हारे साथ है.
जनता हूँ बिना नागेंद्र कि चमत्कारी शक्ति के ये संभव नहीं होगा,लेकीन उस नियति पे विश्वास रखो जो तुम्हे वापस ले आई.
ध्यान रहे जब कोई पाप के खिलाफ लड़ता है तो कुदरत भी उसका साथ देती है,मंगूस जीवट आत्मा है पक्का चोर है मौत को भी चुरा लाएगा. अब तुम लोग चलो सुबह होने वाली है.
मौलवी ने वीरा और घुड़वती को आशीर्वाद दें विदा किया.
वीरा और घुड़वती घोर आश्चर्य ले वहाँ से विदा हो चले.
तो क्या मतलब है मौलवी साहेब के बातो का?
क्या वाकई मंगूस ने मौत भी चुरा ली है?
काम्या को सिर्फ एक ही लाश कि खबर क्यों मिली,कहाँ गई मंगूस कि लाश?
बने रहिये कथा जारी है अपने अंतिम पड़ाव मे.