चैप्टर -1 ठाकुर कि शादी, अपडेट -11
डॉ. असलम और रतीवती कि बांन्छे खिल जाती है, रात कि खुमारी उतरी ही कहाँ थी के असलम के रुकने का इंतेज़ाम हो गया था. बिन बोले ही आँखों आँखों मे ही एक दूसरे के प्रीति जो हवस थी वो साफ झलक रही थी.
इधर उल्लू का चरखा रामनिवास ख़ुश था कि उसे कुछ नहीं करना पड़ेगा आराम से बैठ के शराब पी के मौज करूंगा असलम तैयारी देख लेगा.
रामनिवास :- अरी भाग्यवन ये लो पैसा और डॉ. असलम के साथ मिल के सामान कि लिस्ट बना ले ना देखना कोई कमी ना रह जाये.
मै अभी आता हूँ.... ऐसा कह के वो घर से बाहर निकल जाता है और सीधा शराब कि दुकान पे ही रुकता है.
आज पहली बार रतीवती उसके दारू पिने कि आदत से ख़ुश थी वो अब तो यही चाहती थी कि वो पड़ा रहे दारू के नशे मे असलम है ना सब संभाल लेगें....
वो भी मंद मंद मुस्कुरा के नहाने कमरे मे चली जाती है. असलम बलखाती रतीवती को देखते ही रह जाता है उसे कल रात नंगी अपनी गांड मटकाती रतीवती का नंगा गोरा कामुक बदन याद आ जाता है.
असलम अपना लंड मसलता कमरे मे चला जाता है,
तभी कमरे मे किसी के आने कि आहट होती है असलम चौक के ऊपर देखता है तो कामवती थी क्या सुंदर थी बला कि खूबसूरत.... उसकी माँ का जवानी वाला रूप थी कामवती.
कामवती :- काका नाश्ता कर लीजिये आगे बहुत काम है.
डॉ. असलम :- अरे कामवती तुम मेरी होने वाली भाभी हो इस हिसाब से तो मै तुम्हारा देवर हुआ ना. असलम मजाकिया लहजे मे बोलते है.
कामवती :- काका आप तो मेरे पिता के उम्र के है, आप को मै काका ही बोलूंगी.
और मुस्कुरा देती है.आप भी मुझे कामवती या कम्मो ही बुलाइये अच्छा लगेगा मुझे.
कितनी भोली मासूम मुस्कुराहट थी कामवती कि.
डॉ. असलम :- hahahaha.... ठीक है भाभी ज़ी... म.. मम... मेरेमतलब कामवती.
असलम के मन मे कामवती के लिए रत्तीभार भी कोई गलत भावना नहीं थी, थी ही इतनी मासूम कामवती
मै मस्जिद हो के आता हूँ फिर नाश्ता करता हूँ.
डॉ. असलम अपनी मुसलमानी टोपी पहने मस्जिद कि और निकल जाते है.
जहाँ रास्ते मे असलम मौलवी साहब से टकरा जाते है.
मौलवी :-अरे बरखुरदार देख के जरा, इस गांव मे नये लगते हो कभी देखा नहीं आपको?
डॉ. असलम :- ज़ी मौलवी साहेब मै कल ही ठाकुर साहेब के साथ रामनिवास के घर आया था, तैयारी के लिए 2 दिन रुक गया. सोचा अल्लाह का शुक्रिया अदा कर दू मेरी मुराद पूरी करने के लिए.
और अपने बारे मे बताते है.
मौलवी :- अच्छा अच्छा तो आप ही है डॉ. असलम भई काफ़ी नाम सुना है आपका और ठाकुर ज़ालिम सिंह ज़ी का.
आप आस पास के गांव मे एकलौते डॉक्टर है.
डॉ. असलम :- अरे मौलवी साहेब अब इतनी भी तारीफ के काबिल नहीं है हम. झेम्प जाते है थोड़ा तारीफ सुन के.
मौलवी और डॉ. असलम बात करते करते गांव कि और लौट रहे थे.
बातचीत करते हुए असलम को मालूम पड़ता है कि उनकी एक विधवा बेटी है जिसकी पति को डाकुओ ने मार डाला था.
असलम ये जान के दुखी होते है...
बात करते करते गांव आ जाता है.
असलम रामनिवास के घर आ जाते है और नाश्ते केिये कामवती को आवाज़ देते है..
कामवती कामवती....लाओ नाश्ता ले आओ भूख लगी है.
इधर मौलवी साहेब भी अपने घर पहुंचते है जहाँ रुखसाना खाना बना रही थी.
अपने बापू को आता देख उनके लिए नाश्ता निकलती है....
मौलवी :- अरी ये नाश्ता छोड़ और मेरी बात सुन, अपने गांव कि कामवती का रिश्ता पक्का हो गया है. अगले मंगलवार को उसकी शादी है. यहाँ पे ठाकुर ज़ालिम सिंह कादोस्त दो दिन के लिए रुझान हुआ है.
डॉ. असलम ज्ञानी पुरुष है हमें इसका भी वीर्य चाहिए होगा काम पूरा करने के लिए.
रुखसाना :- बापू पिछली बार ही तो मै रंगा बिल्ला का ताज़ा वीर्य लाइ थी.
मौलवी :- हाँ बेटा लेकिन जो हमें करना है उसके लिए ताकत के साथ अक्ल भी चाहिए, ताकत तो रंगा बिल्ला और अन्य पुरुषो से मिल जाएगी परन्तु दिमाग़ डॉ. असलम के पास से ही मिलेगा.
पिछला मंगलवार....
रुखसाना रंगा बिल्ला से चुद कर वापस घर आई थी तो उसकी गांड मे दोनों का ढेर सारा वीर्य भरा था, वोअपने बापू के कमरे मे घुसते ही जल्दी से एक कटोरा ढूंढती है और अपनी सलवार तुरंत नीचे खिसका के कटोरे पे बैठ जाती है.
वो अपनी गांड के छेद को थोड़ा ढीला छोड़ती है उतने मे ही पुररर.... पुररर.... फस फस... कर के वीर्य कि धार निकल पड़ती है. कटोरे मे वीर्य जमा होने लगता है.
मौलवी :- वाह बेटी आज तो बहुत सारा वीर्य लाइ है.
रुखसाना :- हाँ बापू आज दोनों का खेल सुबह तक चला. ऐसा कह मुस्कुरा देती है.
वीर्य ख़त्म हो चूका था बचाखुचा वीर्य वो अपनी गांड मे एक ऊँगली डाल के बाहर निकलती है और कटोरे के किनारे पे ऊँगली रगड़ के एक एक बून्द कटोरे मे गिरा देती है
रुखसाना :- लीजिये बापू भर दिया है कटोरा मैंने, अपना सलवार ऊपर कर नाड़ा बांधती हुई बोलती है.
मौलवी तुरंत उस कटोरे को उठा उसमे कुछ मन्त्र पढ़ने लगता है, और कटोरे पे फूंकता है
ऐसा दो तीन बार करता है और कटोरा रुखसाना कि तरफ बड़ा देता है ले बेटी इसे एक सांस मे पूरा पी जा.
इस से तुझे वो ताकत मिलेगी जो तुझे चाहिए....तुझे तेरे मकसद मे सफल होने के लिए ताकत कि जरुरत है.
रुखसाना बिना कुछ कहे कटोरा उठा अपने होंठो से लगा लेती है और गाटागट एक ही सांस मे हलक के नीचे उतार लेती है.
आअह्ह्ह.... मजा आगया बापू मुझे शक्ति ताकत का संचार होता लग रहा है. वैसे भी रुखसाना को वीर्य पसंद था.
वर्तमान मे आज के दिन
मौलवी :- समझी मेरी बच्ची हमें ताकत के साथ अक्ल भी चाहिए जो कि असलम से मिलेगा.
रुखसाना :- ठीक है बापू मै उसका वीर्य भी हासिल कर लुंगी....
ये किस ताकत, किस मकसद कि बात हो रही थी?
रुखसाना को अलग अलग मर्दो का वीर्य क्यों चाहिए था?
सब वक़्त ही जनता था...
रामनिवास के घर पे असलम कि आवाज़ का कोई उत्तर नहीं आता तो वो रसोई घर कि और चल पड़ता है.
रसोई घर मे भी कोई नहीं था.
डॉ. असलम :- कहाँ गई ये कामवती? वो रतीवती को आवाज़ देने का सोचता है.. रतीवती का ख्याल आते ही उसे क रात कि घटना याद आ जाती है... जो हुआ कैसे हुआ? कुछ नहीं पता.
लेकिन सुबह रतीवती के चेहरे पे कोई शिकायत नहीं थी. लगता है जिस आग मे मै तड़प रहा हूँ रतीवती भी उसी मे तड़प रही है.
असलम का सोचना ठीक ही था.
रतीवती अपनेबाथरूम मे पुरे कपडे उतार पूर्ण रूप से नंगी बैठी कल रात कि घटना याद कर रही थी, फचा फच अपनी चुत मे ऊँगली मार रही थी..... क्या लंड है असलम ज़ी का.
चूसने मे इतना मजा आया था, चुत मे कैसा मजा आएगा. फच फच... ऊँगली लगातार चुत चोदे जा रही थी.... रतीवती गांड उठा उठा के कल्पना मे खोई हुई थी..
इधर असलम रतीवती के कमरे कि और चल पड़ता है, दरवाजे के बाहर आ के आवाज़ देता है लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलता वो दरवाजा खटखटाने का सोच के जैसे ही दरवाजे को हाथ लगाता है वो चरररर.... कि आवाज़ के साथ खुल जाता है.
अंदर बाथरूम मे रतीवती काम उत्तेजना, हवस मे इस कदर खोई थी कि उसे कोई आहट सुनाई नहीं देती.
कमरे से लगे बाथरूम मे दरवाजे कि जगह सिर्फ पर्दा था, वैसे भी दरवाजे कि जरुरत ही क्या थी कमरा रतीवती का था चाहे जैसे रहे कौन देखने वाला है..
असलम को बाथरूम से फच फच.... सिसकारी कि आवाज़ आ रही थी... आअह्ह्ह..... फच फच.... असलम
डॉ. असलम :- ये तो रतीवती को आवाज़ है और ये मेरा नाम क्यों ले रही है? कही कुछ तकलीफ तो नहीं?
अब असलम क्या जाने गरम और कामुक औरत कि आवाज़.
असलम उत्सुकता वंश बाथरूम कि ओर बढ़ चलता है.
तभी कही से हवा का झोका आता है ओर पर्दा हल्का सा नीचे से हट जाता है.
अंदर का नजारा देख असलम के तोते उड़ जाते है, एक झटके मे ही लंड फनफना जाता है, असलम का लंड इतनी तेज़ झटका देता है कि वो गिरतर गिरते बचते है..
अंदर का नजारा ही ऐसा था... काम रस मे भीगी गोरी चिकनी चुत... जिस पे बालो का एक भी कटरा नहीं था...
या.... अल्लाह चुत ऐसी भी होती है.
असलम को दिल का दौरा पड़ जाना तय था जीवन मे वो पहली बार चुत देख रहे थे.
कल रात सिर्फ मुख चोदन हुआ था परन्तु अँधेरे मे कुछ दिखा नहीं था... लेकिन आज असलम ने वो देख लिया था जो शायद उसकी किस्मत मे ही नहीं था.
अंदर रतीवती फचा फच चुत मे ऊँगली मार रही थी.
ऐसा कामुक ऐसा मादक नजारा देख असलम के मुँह से जोरदार चीख रुपी हवस कि चिंगारी निकल जाती है... उनका लंड फटने पे आतुर था.... वो लुंगी उतार फेंकते है
अंदर रतीवती भी मर्दना सिसकारी सुन के चौक जाती है
तभी पर्दा उड़ता है.... ओर दोनों एक दूसरे के सामने पेपर्दा हो जाते है.
कथा जारी है...