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Bhai ekdum Dhasu story hai. Maza Aagaya. Waiting for next . Dekhte Hai naagmani kise milti hai or kaamvati ki chudai kon karta hai.
थोड़ा व्यस्त हूँ दोस्त अपडेट छोटा मिलेगाBhai ekdum Dhasu story hai. Maza Aagaya. Waiting for next . Dekhte Hai naagmani kise milti hai or kaamvati ki chudai kon karta hai.
Gajab ka update dostचैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट 38
सूरज सर पे चढ़ आया था रुखसाना हाफ़ती थकी मांदी अपने घर पहुंच चुकी थी जहाँ बिल्ला मरणासान अवस्था मे पड़ा था,
रुखसाना :- ये लीजिये बाबा दवाई ले आई मै जल्दी से बिल्ला के जख्मो पे लगा दीजिये
ओर साथ ही असलम का वीर्य भी लाइ हूँ. वो आवेश मे अपनी सलवार खोल देती है और वही जमीन पे पैरो के बल बैठ के पास पडे कटोरे मे अपनी चुत को ढीला छोड़ देती है भल भला के डॉ. असलम का वीर्य चुने लगता है उसकी गोरी चिकनी चुत से, बचा खुचा वीर्य रुखसाना ऊँगली डाल के कटोरे मे निकाल लेती है
... पूरा वीर्य निकलने के बाद वो उठ खड़ी होती है "ये लीजिये बाबा असलम का वीर्य "
अब मेरा काम कर दीजिये
मौलाना :- बेटा अभी तक सिर्फ 6 लोगो का ही वीर्य मिला है 7वा वीर्य किसी जमींदार ठाकुर पुरुष का चाहिए.
तभी मै अपनी शक्ति से वो कमाल कर पाउँगा.
रुखसाना निराशा से अपना सर झुका लेती है मन मे बदबूदाते "कब मिलोगे तुम? रुखसाना कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही है, तुम्हे जिन्दा होना ही होगा " उसकी आँखों मे आँसू थे, नहाने चल पड़ती है.
मौलाना बिल्ला के जख्मो मे दवाई लगा देता है. बिल्ला अभी भी बेहोश ही पड़ा था.
उधर रंगा भी बेसुध अधमरी हालत मे था, दरोगा वीर प्रताप ने अपने जीवन का सारा गुस्सा उस पे ही निकाल दिया था मार मार के अधमरा कर दिया था रंगा को, फिर भी उसके होंठ शरारती अंदाज़ मे मुस्कुरा रहे थे ना जाने क्या विश्वास था उसे.
और रंगा कि मुश्कुराहट ही वीर प्रताप कि चिढ़ बन गई थी.
गांव विष रूप मे
ठाकुर ज़ालिम सिंह अपने तीनो सेवक कालू बिल्लू रामु के साथ नगर भर्मण पे निकला था
वो अपनी जमीन जायदाद का जायजा ले रहा था.
पीछे बिल्लू फुसफुसाते हुए "यार ये ठाकुर कब से हमें घुमाये जा रहा है, नई जवान बीवी आई है उसे जम के चोदना चाहिए उल्टा बुढ़ऊ हम तीनो को अपने पीछे घुमा रहा है ना खुद चोद रहा ना हम भूरी को चोद पा रहे.
तीनो हलकी हसीं हस देते है.
ठाकुर :- क्यों बे हरामखोरो बड़ी हसीं आ रही है हरामियोंकोई काम होता नहीं तुमसे यहाँ तुम्हे हसवा लो.
आज से रात को खेतो कि चौकीदारी करना और कालू तू हवेली मे रहना.
रामु :- मरवा दिया ना साले
बात भले आई गई हो गई परन्तु ठाकुर ने थोड़ी सी फुसफुसाहट सुनी थी " वैसे लड़के सही ही कह रहे है मेरी नई बीवी है मुझे अभी वंश बढ़ाने पे ध्यान देना चाहिए.
ऐसा सोच वो घर कि और चल पड़ता है साँझ हो चली थी.
हवेली मे कामवती बोर हो गई थी, भूरी से थोड़ी बात चीत हुई अब भला एक जवान कुंवारी कन्या भूरी से क्या बात करती.
तभी ठाकुर हवेली पे प्रवेश करते है...
ठाकुर :- हाँ तो ठकुराइन कैसा रहा आज का दिन?
कामवती :- क्या कैसा दिन मै तो अकेली उदास हो गई
कामवती कि मासूमियत देख ठाकुर को हसीं आ जाती है.
आओ हमारे पूर्वजों कि तस्वीरें दिखाता हूँ. कामवती ठाकुर के पीछे चल देती है,
ठाकुर किसी तस्वीर को ओर इशारा करता है "ये देखिये ये मेरे परदादा है ठाकुर जलन सिंह, कहते है इन्होने ही विष रूप से साँपो का खात्मा किया और यहाँ इंसान रहने लगे "
कामवती कि नजर जैसे ही तस्वीर पे पड़ती है उसके मस्तिष्क मे कुछ दृश्य चलने लगते है वो तस्वीर वाला आदमी उसे जाना पहचाना लग रहा था.
कोई स्त्री बिल्कुल नंगन अवस्था मे जोर जोर से चिल्ला रही थी, ठाकुर जलन सिंह हस रहा था हा... हाहाहा.... बहुत शौक है ना चुदाई का तुझे?
कामवती.... ओ कामवती.. कहाँ खो गई, ठाकुर उसका कन्धा पकड़ के हिलाता है.
सारे दृश्य एकाएक गायब हो जाते है.
ठाकुर अपने खानदान कि तस्वीर दिखाता चला जाता है परन्तु कामवती के दिमाग़ मे वही ज़ालिम सिंह कि भयानक हसीं ही दौड़ रही थी.
ऐसा विचार क्यों आया मुझे?
ठाकुर कमरे से बाहर निकलते हुये, अभी तो खाना खिलाओ भूख लगी है ठकुराइन
कामवती अपने विचारों से बाहर आ जाती है.
रात घिर आई थी, आज ठाकुर ने आसलम के द्वारा दी गई दवाई खा ली थी क्युकी वो कामवती को अच्छे से चोदना चाहता था.
भूरी अपने कमरे मे तड़प रही थी उसके पास और कोई चारा भी नहीं था क्युकी बिल्लू रामु को ठाकुर ने खेतो कि रखवाली के लिए छोड़ दिया था.आज उसे ऊँगली से ही काम चलाना पड़ेगा.
बेचारी भूरी....
कामवती दूध का गिलास लिए कमरे मे अति है.
ठाकुर :-कहाँ रह गई थी कामवती ठकुराइन.
यहाँ पास आओ बैठो, कामवती लाजती शर्माती बिस्तर पे बैठ जातीहै
ठाकुर थोड़ा करीब खिसक आता है उसका लंड तो शाम से ही तनतना रहा था.
ठाकुर :- कामवती हमें जल्दी से पुत्र रत्न दे दो,
कामवती सुन के शर्मा जाती है और अपना चेहरा दूसरी और घुमा लेती है.
ठाकुर उसका चेहरा अपनी ओर घूमाता है "कल रात कैसा लगा था कामवती "
कामवती :- कल कब ठाकुर साहेब?
कल रात
कामवती :- अच्छा था
"सिर्फ अच्छा?"
कामवती क्या जानती थी कामकला के बारे मे उसके लिए तो ठाकुर के द्वारा दी गई छुवन ही सम्भोग था.
"बहुत मजा हुआ था ठाकुर साहेब "
इतना सुन ना था कि ठाकुर उसकी चुनरी निकाल देता है उसके स्तन अर्ध नग्न हो जाते है गोरे दूधिया सुडोल स्तन
"तुम कितनी सुन्दर हो कामवती " ठाकुर स्तनो को ही निहारे जा रहा था.
उसका लंड दवाई के असर से फटने पे आतुर था वो तुरंत कामवती को लेता के उसका लहंगा ऊपर कर देता है ओर अपना पजामा सरका के चढ़ पड़ता है कामवती पे.
ना जाने लंड कहाँ गया था, अंदर गया भी था कि नहीं 5-6 धक्को मे तो ठाकुर ऐसे हांफने लगा जैसे उसके प्राण ही निकल जायेंगे.
हुआ भी यही... आअह्ह्ह..... उम्म्म्म..... कामवती मे गया मुझे पुत्र ही चाहिए.
ठाकुर का पतला सा वीर्य बहता हुआ बिस्तर मे कही गायब हो गया था.
ठाकुर के भारी वजन से कामवती कि सांसे चल रही थी जिस वजह से उसके स्तन उठ गिर रहे थे.
कामवती को गहरी सांस लेते देख ठाकुर गर्व से बोलता है " ऐसे सम्भोग कि आदत डाल लो ठकुराइन, तुम्हारा पाला असली मर्द से पड़ा है "
अपनी लुल्ली पे घमंड करता ठाकुर सो जाता है,
कामवती भी लहंगा नीचे किये करवट ले आंखे बंद कर लेती है उसके मन मे कोई विचार नहीं थे.
परन्तु विचार किसी ओर के मन मे जरूर थे जो ये सब खिड़की से छुप के देख रहा था.
"साला ये ठाकुर अपनी लुल्ली पे घमंड कर रहा है, हरामी ऐसी खबसूरत कामुक स्त्री का अपमान है ये तो "
खेर अभी अपनी तलाश मे निकलता हूँ, ठाकुर कि ईट से ईट बजा देनी है.
ऐसा सोच मंगूस पूरी हवेली मे घूमता है आज ही मौका था उसके पास हवेली खाली थी.
दूर कही किसी अँधेरी गुफा से किसी के फुसफुसाने कि आवाज़ आ रही थी, जैसे कोई भयानक सांप फूंकार रहा हो.
नहीं कामरूपा नहीं... नागेंद्र को जल्दी ही ढूंढो वो वही कही हवेली मे है,
उसकी नागमणि मुझे किसी भी कीमत पे चाहिए क्युकी वो इस पृथ्वी पे आखरी बचा इच्छाधारी नाग है.
उस नागमणि कि सहायता से मुझे वापस सर्प राज स्थापित करना है.
तुमने मुझे बचा तो लिया था परन्तु मेरी शक्ति चली गई मै मरे के सामान ही हूँ.
कामरूपा :- मै प्रयास कर रही हो नाग सम्राट सर्पटा
सर्पटा :- अब प्रयास नहीं कामरूपा प्रयास नहीं परिणाम चाहिए.
हरामी वीरा कि बहन घुड़वती कि गंध महसूस कि है मैंने.
इस बार उसके भाई के सामने ही उसकी गांड मे लंड डाल के अताड़िया बाहर निकल लूंगा मै. उसके बाद वीरा भी खतम सिर्फ और सिर्फ नाग प्रजाति बचेगी इस पपृथ्वी पे. हाहाहाहाहा......
एक भयानक हसीं गूंज उठती है... एक बार को तो कामरूपा भी काँप जाती है ऐसी जहरीली हसीं से.
कामरूपा वहां से चल देती है....
सुबह कि लाल रौशनी वातावरण मे फ़ैल गई थी एक स्त्री नुमा साया हवेली मे प्रवेश कर गायब हो गया था.
नागेंद्र अपनी नागमणि बचा पायेगा?
बने रहिये... कथा जारी है
Awesome update dostचैप्टर :-3 नागमणि कि खोज अपडेट - 39
रंगा कि रिहाई
आज सुबह सुबह ही दरोगा वीरप्रताप के थाने मे ख़ुशी का माहौल था, होता भी क्यों ना आज सुबह ही हेड ऑफिस से चिठ्ठी आई थी, दरोगा कि वीरता को देखते हुए उसकी तरक्की कर दी गई थी वापस शहर बुलवा लिया गया था.
रंगा बिल्ला का आतंक खत्म कर दिया था वीरप्रताप ने.
दरोगा :- आअह्ह्ह.... अब अपनी बीवी कलावती के साथ इत्मीनान से रहूँगा, उसे अपनी बीवी का गोरा मखमली बदन याद आने लगता है, क्या उभार लिए गांड और स्तन है, बिल्कुल सपाट पेट, गहरी नाभी, कोई देखे तो यकीन ही ना कर पाए कि 40 साल कि शादी सुदा महिला है, एक जवान लड़की कि माँ है, चुत अभी भी चिपकी हुई, उस पर नशीली आंखे लगता है जैसे अभी अभी चुद के आई हो.
बड़ी सिद्दत से आज दरोगा अपनी बीवी कि काया को याद कर रहा था. उसका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था.
मै कभी उसपे ध्यान ही नहीं दे पाया काम और जिम्मेदारी के बोझ मे, जब से मेरी बेटी हुई है तभी से मैंने बस एक्का दुक्का बार ही सम्भोग किया है कलावती से, मै भी कैसा नादान हूँ इतनी खूबसूरत औरत का अपमान किया मैंने.
लेकिन अब नहीं अब इन जिम्मेदारी से मुक्त हो के खूब प्यार करूंगा, खूब रगडूंगा उसे.
दरोगा आज बहुत ख़ुश था उसके मन मे हसीन जीवन जीने के ख्याब उत्पन्न होने लगे थे.
उसका लंड आज बार बार खड़ा हो जा रहा था, इतने सालो से वो बेवजह ही फर्ज़ के नीचे दबा रहा परन्तु आज उसके फर्ज़ का इनाम उसे मिल चूका था इसलिए आज उसका ध्यान सम्भोग कि तरफ झुक गया था. वो जल्दी से शहर जा के कलावती को भोग लेना चाहता था. वो अपनी बीवी को तार भिजवा देता है कि कुछ दिनों मे घर आ जायेगा.
दरोगा :- शराब मँगाओ आज जश्न होगा आखिर रंगा को आज मौत देनी है.
हाहाहाबा.... रंगा कि तरफ देख वीरप्रताप हस देता है.
वही शहर मे दरोगा के घर...शाम हो चली थी
मालकिन... मालकिन... मालकिन कहाँ है आप....
आवाज़ के साथ ही वो शख्स कमरे का दरवाजा खोल देता है, अंदर कामवती नहा के आई थी साड़ी बदल रही थी..
वो चौक के दरवाज़े कि तरफ देखती है अभी ब्लाउज के पुरे बटन लगे नहीं थे, पल्लू नीचे गिरा हुआ था, सुन्दर गोरी काया काली साड़ी से झाँक रही थी.
कलावती :- ये क्या बदतमीज़ी है सुलेमान, मैंने कितनी बार कहाँ है कि दरवाजा बजा के आया करो.
बोल तो रही थी परन्तु उसने ना अपना पल्लू उठाने कि जहामत कि ना ही ब्लाउज के बटन बंद करने कि. उसने बड़ी अदा के साथ अपने हाथ उठा के सर पे रख दिए. आधे से ज्यादा गोरे स्तन ब्लाउज के बाहर टपक पडे.
ये नजारा देख सुलेमान को घिघी बंध गई,
सुलेमान :- मालकिन दरवाजा बजा के ही आऊंगा तो ऐसी अप्सरा कैसे देखने को मिलेगी. जितनी बार देखता हु कुछ नया ही दीखता है मालकिन
ऐसा बोल के मुस्कुरा देता है.
कलावती वापस कांच के तरफ मुड़ के साड़ी का पल्लू बनाने लगती है "वैसे आये क्यों थे तुम "
सुलेमान :- वो मालिकन साहेब का तार आया है वो कुछ दिनों मे आ जायेंगे उनकी तरक्की हो गई है ऐसा बोल सुलेमान उदास हो जाता है.
कलावती :-अरे वाह ये तो खुशी कि बात है, आखिर मेरे पतिदेव वापस लौट रहे है.
सुलेमान :- मुँह लटकाये ज़ी मालकिन
कलावती :- तो तू क्यों मुँह लटकाये हुए है?
सुलेमान :- साहेब आ जायेंगे तो मुझे तो अपनी सेवा से हटा देंगी ना आप.
अब तो साहेब ही सेवा करेंगे.
कलावती :- हट पागल.... कैसी बात करता है दरोगा ज़ी के जाने के बाद तूने ही तो मेरी सेवा कि है इतने बरसो से.
वो तोबेटी दे के चले गये अपने फर्ज़ मे व्यस्त रहे, बेटी भी बाहर पढ़ने को चली गई.
एक तेरा ही तो सहारा है सुलेमान
ये कलावती हमेशा इसकी ही रहेगी...ऐसा बोल कलावती पल्लू गिराए ब्लाउज से झाँकते स्तन को लिए ही आगे बढ़ जाती है और पाजामे के ऊपर से ही सुलेमान का लंड दबा देती है.
"अपनी सुलेमानी तलवार को संभाल के रख आज युद्ध करना है तुझे ज़ी भर के "
ऐसा सुन सुलेमान खिल खिला जाता है.
"चल अब खाना बना ले, मुझे तैयार होना है "
सूरज पूरी तरह डूब चूका था, थाने मे दरोगा और 3 सिपाही जम के शराब पी चूके थे.
दरोगा कुछ कुछ होश मे था उसे तरक्की का नशा चढ़ा था, बीवी से सम्भोग कि चाहत का नशा चढ़ा था उसपर दारू क्या असर करती, हालांकि शराब के शुरूर मे वो और भी गरम हो गया था,लंड पेंट से आज़ाद होना चाहता था टाइट पेंट मे लंड दर्द करने लगा था.
बाक़ी तीनो सिपाही पी के लुढ़के पडे थे.
"कलावती तो दूर है तब तक मुठ ही मार लेता हूँ " दरोगा मुठ मारने के इरादे से उठता है कि...
तभी अचानक.... गिरती पड़ती एक महिला थाने मे प्रवेश करती है
महिला :- मुझे बचा लीजिये दरोगा साहेब मुझे बचा लीजिये
वो लोग मुझे मार देंगे, मेरा बलात्कार कर देंगे, मुझे बचाइये
बोल के दरवाजे पे ही गिर पड़ती है वो लगातार रोये जा रही थी.
दरोगा भागता हुआ महिला के पास पहुँचता है तो पाता है कि उसके कपडे जगह जगह से फटे हुए थे कही कही खरोच आई हुई थी.
महिला :- दरोगा साहेब मै पास के ही गांव कामगंज जा रही थी कि रास्ते मे मुझे अकेला पा के 5 बदमाश मुझे उठा ले गये हुए मेरा बलात्कार करने कि कोशिश कि....
बूअअअअअअअ..... ऐसा बोल महिला दरोगा से लिपट जाती है.
दरोगा को एक कोमल सा अहसास होता है, महिला का गरम बदन उसे कुछ अजीब सा अहसास करा रहा था.
वैसे भी आज सुबह से वह कामअग्नि मे जल रहा था, ऊपर से शराब का शुरूर उसे बहका रहा था...
लेकिन नहीं नहीं.... मेरा फर्ज़...
दरोगा खुद को संभालता है. वो महिला को उठता है "चलो मेरे साथ बताओ कहाँ है वो लोग अभी अकल ठिकाने लगाता हूँ सबकी "
महिला जो कि डरी हुई थी वो फिर से दरोगा के सीने से लग जाती है इस बार जबरदस्त तरीके से चिपकी थी उसके बड़े स्तन दरोगा कि कठोर छाती से दब के ऊपर गले कि तरफ से निकलने को आतुर थे, उसके एक स्तन कि तरफ से कपड़ा फटा था, दरोगा उसे सांत्वना देने के लिए जैसे ही गर्दन नीचे करता है उसकी नजर महिला के स्तन पे पड़ती है पुरे बदन मे झुरझुरहत दौड़ जाती है.... बिल्कुल दूध कि तरह सफेद स्तन, बड़े बड़े उसके सीने से चिपके थे डर के मारे पसीने से भीगे जिस्म से एक मादक गंध दरोगा को हिला रही थी.
उसका फर्ज़ कामवासना मे जलने को तैयार था.
कौन है ये लड़की?
क्या करेगा दरोगा?
क्या ये रात रंगा कि आखिरी रात है?
बने रहिये कथा जारी है...
Laajwaa update dostचैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट 40
रंगा कि रिहाई
दरोगा उस स्त्री को सँभालने कि कोशिश करता है जो कि लड़खड़ा रही थी, दरोगा उसके एक हाथ को उठा के अपने कंधे पे रखता है ऐसा करने से स्त्री के बड़े स्तन दरोगा के बगल मे धंस जाते है उसकी सांसे बेकाबू होने लगती है वो जैसे ही जोर से सांस खिंचता है वैसे ही एक तेज़ मादक गंध उसके बदन मे समा जाती है.
स्त्री के हाथ ऊपर करने से कांख से निकली मादक पसीने से भीगी गंध थी जो कि अच्छे अच्छे मर्दो का लंड निचोड़ दे.
दरोगा तो सुबह से ही लंड खड़ा कर के बैठा था ऊपर से शराब का नशा उसे कुछ समझने ही नहीं दे रहा था.
वो कंधे से सहारा दिए अपने केबिन कि तरफ चल पड़ता है, बीच गालियारे से गुजरते वक़्त रंगा कि नजर स्त्री पे पड़ती है तो उसकी बांन्छे खिल उठती है.
स्त्री कि नजर भी रंगा से मिलती है दोनों के बीच आँखों ही आँखों मे बात हो गई थी होंठो पे मुस्कराते तैर गई थी.
रंगा :- आ गई मेरी जान रुखसाना
रुखसाना :- हाँ मालिक आज रात आप आज़ाद है.
इशारो मे हुई बात पे दरोगा का कतई ध्यान नहीं था.
वो रुखसाना को लिए अपने कमरे मे पहुंच जाता है और उसे अपने सामने कुर्सी पे बैठा देता है
रुखसाना :- दरोगा साहेब मेरा क्या होगा अब? मेरे गांव मे मालूम पड़ेगा तो क्या इज़्ज़त रह जाएगी.
नहीं नहीं.... मै ऐसा नहीं होने दूंगी मै आत्महत्या ही कर लेती हूँ.
रुखसाना खुद से बड़बड़ा रही थी.
दरोगा :- कैसी बात कर रही है आप? आपके साथ बलात्कार थोड़ी ना हुआ है आप बच गई है डरिये मत मै हूँ ना.
ऐसा बोल के दरोगा रुखसाना के पास आ के खड़ा हो जाता है उसका खड़ा लंड रुखसाना के कंधे पे छू रहा था जिसका भरपूर अहसास रुखसाना को भी था परन्तु वो अनजान बनी हुई थी.
दरोगा :- तुम यही रुक जाओ आज रात, सुबह मै खुद तुम्हे तुम्हारे गांव छोड़ आऊंगा.
अभी रात हो चुकी है मौसम भी बिगड़ता जा रहा है.
रुखसाना डरी सहमी सी हाँ बोल देती है.
रुखसाना आँखों मे नमी लिए खुद के फटे कपड़ो को देखती, जिसमे सेसपाट पेट मे धसी नाभी और गोरे गोरे बड़े स्तन झाँक रहे थे फिर उसकी नजर कभी दरोगा कि तरफ देखती जैसे कहना चाह रही हो कि फटे कपडे मे रात कैसे गुजारू?
दरोगा उसकी नजरों को समझ जाता है.
दरोगा :- ऐसा करो ये फटे कपड़े चेंज कर लो यहाँ थाने मे कपड़े तो नहीं है परन्तु ये मेरी लुंगी है शयाद तुम्हारा काम बन जाये.
रुखसाना निरीह आँखों से दरोगा कि और देखती है और कुर्सी से उठ खड़ी होती है, दरोगा लुंगी हाथ मे लिए खड़ा था अपना हाथ आगे बड़ा देता है.
रुखसाना लुंगी लिए एक परदे के पीछे चली जाती है.
परदे के पीछे जा के एक नजर दरोगा पे डालती है जो अपने खड़े लंड को मसला जा रहा था
रुखसाना :- तीर सही जगह लगा है हेहेहे... एक कातिल हसीं चेहरे पे दौड़ जाती है.
रुखसाना धीरे से अपनी कमीज़ और सलवार निकाल देती है और पदर्दे से बाहर सरका देती है सरसरहत से दरोगा कि नजर परदे पे चली जाती है रुखसाना के फटे मेले कुचले कपड़े वही जमीन चाट रहे थे.
तभी कही से हवा का ठंडा झोंका आता है और पर्दा उड़ता चला जाता है रुखसाना परदे कि और पीठ किये सम्पूर्ण नंगी खड़ी थी.
जो दृश्य दरोगा के सामने प्रस्तुत था वो दृश्य किसी मामूली इंसान कि जान ले सकती थी, काले लम्बे बाल पीठ पे बिखरे थे नीचे पतली सी कमर नीची जाती नजर बड़े से गांड रुपी पहाड़ पे टिक गई थी.
एक दम गोरी चिकनी गांड, बिल्कुल गोल मदमस्त गांडदरोगा वही जमा रह गया था.
तभी रुखसाना को अपनी खुली गांड पे हवा का ठंडा झोंका महसूस होता है वो चौक के पीछे देखती है पर्दा उड़ा हुआ था पीछे दरोगा कुर्सी पे किसी मुर्दे कि तरह पड़ा था
रुखसाना शर्म से औतप्रोत पर्दा वापस खींच देती है, दरोगा जैसे होश मे आता है उसके लिए तो ऐसा था जैसे किसी ने उसके प्राण वापस उसके शरीर मे डाल दिए हो उसकी जान रुखसाना ने बचा ली थी.
कथा जारी है...
सॉरी दोस्तों अतिव्यस्त होने कि वजह से छोटा अपडेट ही दे पा रहा हूँ.
Amazing update dostचैप्टर :-3 नागमणि कि खोज अपडेट -41
रंगा कि रिहाई
वीरप्रताप के थाने से बहुत दूर शहर मे दरोगा कि पत्नी आज खूब सज धज के तैयार हुई थी, उसे अपने पति के वापस लौटने कि खुशी थी आज सुलेमान को विशेष तोहफा देना था क्युकी इतने सालो मे सुलेमान ने दरोगा कि कमी नहीं खलने दी थी कभी कलावती को....खूब मन लगा के सेवा कि थी सुलेमान ने.
आज वक़्त आ गया था कि इस सेवा को वापस चुकाया जाये.
सुलेमान रसोई घर मे रोटी बेल रहा था, उसके मजबूत हाथ पसीने से चमक रहे थे.
सुलेमान दिखने मे लम्बा चौड़ा काला पुरुष था. मजबूत और बड़े लंड का मालिक हमेशा सफ़ेद मुसलमानी टोपी ही पहने रखता. उम्र मात्र 23 साल बांका नौजवान था सुलेमान.
अभी भी एक गन्दी बनियान, लुंगी और सफ़ेद टोपी पहने रोटी बेल रहा था.
कलावती दरवाजे के पास आ के खाँखारती है...
उम्मम्मम..... रोटी बेल रहे हो सुलेमान?
सुलेमान तो कलावती कि काया ही देखता रह जाता है तरासा हुआ जिस्म सिर्फ साड़ी मे लिपटा हुआ था माथे पे लाल बिंदी, मांग मे सिदूर, हाथो मे चुडी, कानो मे बाली, गले मे दरोगा वीरप्रताप के नाम का मंगलसूत्र, बिल्कुल संस्कारी औरत लग रही थी कलावती.
सुलेमान जो कि इसे हज़ारो बार देख चूका था फिर भी उसके जिस्म ने कलावती कि काया देख काम करने से मना कर दिया था उसके हाथ रोटी बेलते बेलते वही रुक गये थे.
कलावती अपनी सारी का पल्लू गिरा देती है, शर्म से सर झुका लेती है उसके मोटे चिकने गोरे दूध छलक पड़ते है.
वो मादक चाल से चलती हुई सुलेमान के पास पहुंच जाती है इतनी पास कि उसकी मादक गंध सीधा सुलेमान कि नाक मे घुस रही थी,
कलावती :- ऐसे क्या देख रहा है सुलेमान मेरे लाल, पहली बार देखे है क्या?
सुलेमान :- ज़ी ज़ी ज़ी.... नहीं मालकिन
आप खूबसूरत लग रही है.
कलावती हस देती है "हट पागल झूठ बोलता है अभी देखती हूँ "
ऐसा बोल वो लुंगी के अंदर हाथ डाल देती है उसके हाथ मे एक गरम लोहे का सख्त 9" का रॉड हाथ लगता है.
कलावती :-तू तो सही बोल रहा है रे.... मेरी खूबसूरती कि गवाही तेरा ये कला लंड दे रहा है.
ऐसा बोल वो सुलेमान के लंड को पकड़ के ऐंठ देती है.
'आअह्ह्हह्म... मालकिन क्या कर रही हो दर्द होता है"
कलावती :- अच्छा बड़ा दर्द होता है भूल गया जब तूने ये मुसल मेरी चुत मे डाला था पूरी चुत फाड़ के रख दी थी बिल्कुल भी दया नहीं दिखाई थी तूने.
सुलेमान झेप जाता है.
कलावती :- शर्माता क्या है मेरी इज़्ज़त लूट के आज शर्माता है बोल क्यों चोदा था तूने मुझे? बोल
लंड को और जोर से नोच लेती है.
वो सुलेमान के अंदर का जानवर जगा रही थी.
सुलेमान :- मेरी रण्डी मालकिन... साली मुझसे सुन ना चाहती है तो सुन...
ऐसा बोल के वो अपनी लुंगी खोल देता हैऔर कलावती को घुटने के बल बैठा के उसके मुँह पे बैठ जाता है.
कलवाती जीभ बाहर निकले कभी सुलेमान कि काली गांड चाट रही थी तो कभी काले बड़े टट्टे.
साली रण्डी तेरा दरोगा पति नामर्द है वो तेरी जैसी चुद्दाकड़ औरत कि प्यास नहीं बुझा पाता.
जब वो चला गया अपना फर्ज़ निभाने तब तू साली बदन कि गर्मी से सुलगने लगी.... ऐसा बोलते हुए सुलेमान अपने टट्टो को बुरी तरह कलावती के होंठो पे रगड़ रहा था, तूने एक दिन मुझे मूतते हुए मेरा बड़ा लंड देख लिया जब से ही तू चुदने को तैयार थी मुझसे, फिर तूने एक दिन बाथरूम मे गिरने के बहाने मुझे अंदर बुला लिया मै भी तेरा नंगा कामुक बदन देख के बहक गया साली.... चूस मेरे टट्टे.
पहली बार तू मुझसे बाथरूम मे ही चुदी थी... उसके बाद ये लंड हमेशा तेरी सेवा मे ही है छिनाल मालकिन.
अपनी कामुक गाथा सुलेमान के मुँह से सुन के कलावती गरमा गई उसने मुँह खोल पूरा का पूरा लंड मुँह मे भर लिया...
और सर आगे पीछे करने लगी.
बहादुर दरोगा कि बीवी यहाँ लंड चाट रही थी..
और यहाँ खुद दरोगा कामवासना मे झुलस रहा था.
अभी अभी जो उसने देखा था उस पे यकीन करना मुश्किल था, दरोगा बरसो से प्यासा था आज तो खुद कुआँ चल के उसके पास आया था.
रुखसाना लुंगी लपेटे बहार आ जाती है उसकी चाल और नजर मे शर्माहाट थी, लुंगी ज्यादा बड़ी नहीं थी स्तन से जाँघ तक के हिस्से को ढकी हुई थी, रुखसाना का ऊपरी हिस्सा और जाँघ से निचला हिस्सा सम्पूर्ण नग्न था.
कमरा मादक पसीने कि गंध से महक उठा था इस महक मे सिर्फ कामवासना थी.
दरोगा उठ खड़ा होता है "तुम यही बैठो मै आया "
दरोगा लगभग भागता हुआ बाहर को आता है वहाँ शराब की आधी भरी बोत्तल पड़ी थी "मुझे जल्दी ही कुछ करना होगा" दरोगा कामवासना मे एकदम चूर था, एक हाथ से लंड पकड़े दूसरे हाथ से बोत्तल थामे दरोगा कमरे कि और चल पड़ता है.
दरोगा :- आप यहाँ सुरक्षित है मोहतरमा, वैसे आपका नाम क्या है?
"ज़ी रुखसाना "
दरोगा :- आप बुरा ना माने तो एक पैग ले लू मौसम थोड़ा ठंडक लिए हुए है और मुझे रात भर ड्यूटी करनी है जागना भी जरुरी है ऐसा कह रुखसाना कि तरफ मुस्कुरा देता है.
रुखसाना अभी भी खुद को ढकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी जिस वजह से कभी उसके हाथ स्तन पे जाते तो कभी पेट से होते हुए जाँघ को मसलते, ऐसा लगता था जैसे वो खुद अपने शरीर से खेल रही हो.
दरोगा ये दृश्य देख के आनंदित हुए जा रहा था उसे शराब का नशा हो चूका था आँखों मे लाल डोरे तैर रहे थे फिर भी कामवासना मे भरा दरोगा एक पैग बना पूरा एक घूंट मे पी जाता है.
आअह्ह्ह...... अब आई ना गर्मी
रुखसाना :- ज़ी वो मै क्या.... मै... मुझे ठण्ड लग रही है
दरोगा :- मेरे पास तो कपडे नहीं है ओर कोई भी..?
रुखसाना :- ऐसे तो मै ठण्ड से मर ही जाउंगी दरोगा साहेब.
दरोगा :- तो थोड़ी तुम भी पी लो
रुखसाना :- ये कैसी बात कर रहे है दरोगा ज़ी आप? थोड़ी नाराज होती है.
दरोगा :- अरे मोहतरमा मै जबरजस्ती नहीं कर रहा इस से ठण्ड दूर होती है. लीजिये पी लीजिये.शराब से भरा ग्लास रुखसाना कि ओर बड़ा देता है.
रुखसाना हाथ बड़ा देती है ओर ग्लास थाम लेती है.
दरोगा ओर रुखसाना आमने सामने कुर्सी पे बैठे थे, बीच मे टेबल थी.
रुखसाना ग्लास को नाक के पास लाती है परन्तु सूंघते ही दूर हटा लेती है.
छी दरोगा साहेब कैसी अजीब बदबू आ रही है मै नहीं पी पाऊँगी मै ठण्ड मे ही ठीक हूँ.
परन्तु दरोगा मन मे सोच चूका था कि इसे पिलानी ही है, यही सही मौका है इस सुन्दर स्त्री को भोगने का.
शराब ओर शबाब के नशे मे दरोगा अपनी प्रतिज्ञा, फर्ज़ भूल गया था,
वो अपने सामने बैठी मजबूर मगर खूबसूरत औरत को भोगना चाहता था,आज कामवासना फर्ज़ ओर सेवा से आगे निकाल आई थी.
दरोगा :- नाक बंद कर के पी लीजिये एक बार मे कुछ नहीं होगा.
रुखसाना हिम्मत करती है ओर ग्लास मुँह मे लगा पूरी शराब मुँह मे डाल लेती है. अजीब सा मुँह बना के सर नीचे को झुका देती है.
रुखसाना वापस मुँह ऊपर किये, मुँह पोछती है "छी कितनी गन्दी थी ये शराब "
मर ही जाती मै तो.
दरोगा को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अपनी योजना. मे कामयाब हो गया है "एक ओर लो रुखसाना देखना फिर कैसे गर्मी अति है "
रुखसाना का दिमाग़ चकरा रहा था फिर भी उसे गर्मी क अहसास से अच्छा लग रहा था वो अगले पैग के लिए मना नहीं कर पाती, ओर झट से मुँह लगाए एक बार मे गटक के मुँह नीचे झुका लेती है,दारू का कड़वा घुट निगलने मे उसे समस्या हो रही थी.
दो पैग पीने के बाद रुखसाना कि आवाज़ भरराने लगी थी उसका सर घूम रहा था उसके बदन मे पसीने कि बुँदे दौड़ गई थी.
आअह्ह्ह.... दरोगा साहेब क्या हो रहा है मुझे?
दरोगा :- कुटिल मुस्कान के साथ कुछ नहीं रुखसाना गर्मी आ रही है बदन मे देखो कैसे पसीना आ गया है तुम्हे
ऐसा बोल रुखसाना के नंगे कंधे पे हाथ रख देता है.
नशे मे घिरती रुखसाना को ये स्पर्श बड़ा ही मादक लगता है वैसे भी रुखसाना कामवासना से भरी स्त्री थी उसे उत्तेजित होने मे वक़्त नहीं लगता था, हो भी ऐसा ही रहा था.
कहाँ वो दरोगा को फ़साने आई थी.... कहाँ खुद दरोगा कि चाल मे घिरती चली जा रही है...
तो क्या रंगा आज़ाद नहीं हो पायेगा?
रुखसाना तो खुद नशे मे डूबती जा रही है?
दरोगा कि कामवासना उसे बचा पायेगी या ले डूबेगी?
बने रहिये... कथा जारी है