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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

आपका सबसे पसंदीदा चरित्र कौनसा है?

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andypndy

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चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -49

हवेली मे कोहराम मचा हुआ था,ठाकुर ज़ालिम सिंह बदहवास इधर उधर टहल रहा था.
क्या हुआ ठाकुर साहेब...क्या हुआ...इतनी जल्दी मे क्यों बुलवा भेजा? डॉ.असलम कमरे मे दाखिल जोते हुए बोला.
ठाकुर :- असलम..असलम मेरे भाई ये देखो कामवती को क्या हो या है? आज सुबह गुसालखाने गई थी वहा से चीखने की आवाज़ आई हम लोग पहुचे तो ये बेहोश पडी थी.
असलम तुरंत कामवती के बगल मे बैठ जाता है उसका हाथ पकड़ नब्ज़ टटोलने लगता है सब कुछ ठीक था सांसे और नब्ज़ दोनों बराबर थी
"सब कुछ ठीक है फिर कामवती को हुआ क्या है?" असलम मन ही मन सोचने लगा.
वही कमरे मे छुपा बैठा नागेंद्र भी चिंतित था उसे समझ नहीं आ रहा था की कामवती बेहोश क्यों हो गई जबकि उसके पास तो जहर ही नहीं बचा है ऊपर से योनि पे चुम्बन करना था और हो गया गुदा छिद्र पे.
मुझे अगला मौका ढूंढना होगा.
डॉ.असलम पानी के कुछ छींटे कामवती के मुँह पे मारता है,
कामवती कस मसाती आंखे खोल देती है,उसकी गुदा छिद्र पे अभी भी दर्द था भले ही नागेंद्र मे जहर नहीं था परन्तु उसके दाँत बराबर चुभे थे.
कामवती दरी सहमी चारो और देखती है.... और चिल्ला पड़ती है सांप....सांप....सांप... काला भयानक सांप...
सभी लोगो को सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है.
ठाकुर दौड़ के कामवती के पास आता है उसे संभालता है.
ठाकुर :- कहाँ है सांप कामवती....सांप ने क्या किया? कही काटा तो नहीं.
कामवती बदहवस बिलखने लगती है "ठाकुर साहेब मै मरना नहीं चाहती...वो वो...वो.... काला भयानक सांप था उसने मुझे काट लिया है.
ये सुन ना था की ठाकुर की गांड ही फट गई उसके हाथ पैर ढीले पड़ने लगे.
ठाकुर :- कहाँ काटा है सांप ने तुम्हे बताओ हमें....बताओ.
कामवती बिलकुल चुप थी....अब कैसे कहे की गांड पे काटा है "भूरी काकी कहाँ है उन्ह्र बुलाओ "
ठाकुर और असलम को समझ ही नहीं आता की कामवती,भूरी काकी को क्यों बुलवाना चाहती है
स्त्री सुलभ संकोच था कामवती मे वो ऐसी बात किसी पुरुष को कैसे बताती,स्त्री को ही बताया जा सकता था.
तभी कमरे मे कालू बिल्लू भी पहुंच जाते है
कालू :- मालिक भूरी काकी कही नहीं है,पूरी हवेली छान मारी आस पास भी देख लिया लोगो से पूछा भी परन्तु भूरी काकी कही नहीं है..
ठाकुर:- गुस्से मे लाल पीला हो रहा था ऐसे कैसे कहाँ चली गई? काकी आजतक बिन बोले कही नहीं गई.
ये हो क्या रहा है हवेली मे....
असलम जो अभी तक चुप बैठा था उसने बारीकी से कामवती का परीक्षण कर लिया था...कही से भी कोई सांप कटे का नमो निशान नहीं था, ना कोई जहर फैलने का निशान.
सांप जहरीला होता तो कामवती अब तक बेहोश ही हो जाती.
फिर भी उसे कुछ शंका थी...
डॉ.असलम :- ठाकुर साहेब शांत हो जाइये आप चिंता ना करे इलाज है मेरे पास.
हमें उसी सांप को ढूंढना होगा जिसने कामवती को काटा है उसके ही जहर से दवाई बनेगी.
जब तक मै अपनी तरफ से जहर उतरने की कोशिश करता हूँ.....ना जाने असलम को क्या विचार आ रहा था.
कुछ तो अलग था उसके दिमाग़ मे...
कामवती :- ठाकुर साहेब मेरी माँ को बुलावा भेजिए...मै मरते वक़्त उन्हें देखना चाहती हूँ.
कामवती अति डर से पगला गई थी उसे लग रहा था की वो मर रही है.
जबकि असलम को पता था की ऐसा कुछ नहीं है.
ठाकुर :- हरामखोरो अभी तक यही खड़े हो सुना नहीं ठकुराइन क्या बोली....
बिल्लू तू कामगंज जा और ठकुराइन के माँ बाप को लिवा आ.
और कालू रामु मेरे साथ चलो आज सके उस सांप की खेर नहीं....मिल गया तो मौत के घाट उतार दूंगा.
मेरी कामवती को काटता है... ठाकुर आज रोन्द्र रूप मे था कालू रामु चुप चाप उसके पीछे कमरे से बाहर निकल जाते है.
कोने मे बैठा नागेंद्र की भी घिघी बंध गई थी..
"अबे ये तो दाँव ही उल्टा पड़ गया..इन हरामियों के हाथ लग गया तो मार मार के कचूमर बना देंगे, तहखाने ने जाने मे ही भलाई है"
नागेंद्र सबकी नजर बचा के निकल जाता है तहखाने की ओर....
वही तहखाना जहा मंगूस आपने कदम रख चूका था, घोर अंधेरा छाया हुआ था मसाल की रौशनी भी नाकाफी थी..
मंगूस नागमणि को ढूंढने लगा उसके दिमाग़ मे लगातार विचार चल रहे थे. उसे तहखाने के एक कोने मे कुछ हलचल सी महसूस होती है जैसे कोई रौशनी चालू बंद जो रही हो.
वो उस ओर बढ़ जाता है घास फुस का खूब ढेर था उसी के निचे से कभी रौशनी आती तो कभी गायब हो जाती..मंगूस के पास वक़्त नहीं था वो जल्दी जल्दी घाँस हटाने लगा..जैसे ही पूरी घाँस हटी पूरा तहखाना तेज़ रौशनी से जगमगा उठा, निचे एक चमकली सी चीज लकड़ी के पाटे पे रखी थी...
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आआआहहहह....तो ये है वो नायब नागमणि अनमोल बेशकीमती नागमणि.
मंगूस ख़ुशी से उछल पडा उसके जीवन की सबसे नायब चोरी उसके सामने थी,उस नागमणि की चमक ने उसे अंधा बना दिया था आँख से भी और अक्ल से भी, नागमणि की चमक ऐसी थी की सिर्फ नागमणि ही दिख रही थी उसके आस पास क्या है इसका कोई अनुमान नहीं था.
खुशी के मारे मंगूस हाथ आगे बढ़ा देता है....परन्तु जैसे ही वो नागमणि को पकड़ता है उसके गले से एक घुटी चीख निकल जाती है लगता था जैसे उसके प्राण खींचते चले जा रहे हो,शरीर का सारा खून मणि मे समाता चला जा रहा था.
मांगूस की मौत निश्चित थी..यही वो तीलीस्म था जो नागमणि की रक्षा करता था.
तभी उसे एक भयानक झटका लगता है वो मणि से दूर फिंक जाता है,उसका बेजान शरीर कठोर जमीन से टकरा जाता है,
उसमे तो चीखने की ताकत भी नहीं थी, खून का एक कतरा नहीं बचा था, गाल और आंखे अंदर को धंस गई थी, पासलियो की हड्डी बाहर दिखने लगी थी, बदन की चमड़ी धीरे धीरे गल रही थी.
धीरे धीरे उसका शरीर किसी कंकाल मे तब्दील हो रहा था.
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बिलकुल चित्त जमीन पे पडा था महान चोर मंगूस...बिलकुल लाचार अपनी मौत का इंतज़ार करता हुआ, आंखे धीरे धीरे बंद होती चली गई.

तो क्या यही है चोर मंगूस का अंत?😔😪
डॉ.असलम के दिमाग़ मे क्या है?
कथा जारी है....
 
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andypndy

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Nice update bro waiting for your next update....
धन्यवाद दोस्त रोज़ 2-3 अपडेट आते ही है मेरी स्टोरी पे. आपको नॉन स्टॉप कहानी पड़ने को मिले ऐसी ही तमन्ना है.
बने रहे कथा जारी है.....😃
 

andypndy

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चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -50

बिल्लू कामगंज के लिए निकल गया था उसे जल्दी से जल्दी कामगंज पहुंच के रतिवती को ले आना था.
उधर हवेली मे असलम के चेहरे पे मुस्कुराहट थी,बिल्लू रतिवती को लेने गया था वो रतिवती जिसने कामसुःख से असलम का परिचय करवाया था...तभी कामवती की आवाज़ से उसकी तंन्द्रा भंग होती है.
कामवती :- असलम काका क्या सोच रहे है....मै बच तो जाउंगी ना? मुझे अभी मरना नहीं है.
असलम :- हाँ कामवती मै हूँ ना पहले तो शांत हो जाओ बिलकुल,जीतना हड़बड़ाओगी जहर उतना ही चढ़ेगा.
और पूरी बात बताओ मुझे.
कामवती सब्र लेती है शांत हो जाती है.....काका...वो..काका....सांप मे मेरे वहा काटा था.हाथो से इशारा करती है.
असलम :- कहाँ कामवती पैर मे?
कामवती :-नहीं काका पैर पे नहीं...इससससस....अब कैसे बताऊ कामवती थोड़ा झुंझुला जाती है.
असलम :- शर्माओ मत मै डॉक्टर हूँ उसके बाद ठाकुर का दोस्त और तुम्हारा काका.
कामवती :- काका मै सुबह पेशाब करने बैठी थी तो वहा काटा
असलम :- वहा कहाँ योनि पे?
कामवती :- नहीं काका गांड पे इससससस.... बोल के दर्द मे भी शर्मा जाती है उसने पहली बार गांड शब्द कहाँ था.
असलम तो ये सुन के ही बेहोश होने को होता है उसके होश उड़ जाते है...काटो तो खून नहीं.
उसके दिल मे पाप नहीं था ना हिम्मत थी क्युकी वो ठकुराइन थी उसके दोस्त ठाकुर ज़ालिम सिंह की बीवी.
कामवती :- असलम काका कुछ कीजिये मै मर जाउंगी मुझे चक्कर आ रहे है.
असलम एक बार को सोचता है की सच कह दे की कोई जहर है ही नहीं...परन्तु ना जाने क्यों उसके दिल मे पाप जन्म ले रहा था.
रतिवती और रुखसाना की चुत लेने के बाद उसे सम्भोग की लत सी लग गई थी,उसने अपना आधा जीवन बिना सम्भोग के ही निकल दिया था.अब सौंदर्य दर्शन या सम्भोग का कोई भी मौका वो छोड़ना नहीं चाहता था.
असलम खुद को ही समझा रहा था " मुझे सम्भोग थोड़ी ना करना है,बस देखूंगा की कही कोई जख्म तो नहीं है ना ऐसा सोचते ही उसके दिमाग़ मे रुखसाना के साथ हुई चुदाई के दृश्य छा जाते है उसे भी इसी बहाने से चोदा था असलम ने "
कामवती :- किस सोच मे खो गए काका,मै मरी जा रही हूँ और आप पता नहीं कहाँ खोये हुए है.
असलम :- वो...वो....मै...मै कुछ नहीं..मुझे देखना होगा की कहाँ काटा है? जख्म कितना है?
असलम हकलाता हुआ बोल गया उसके सीने मे पाप का बीज उग आया था.
वो मित्रघात करने पे उतारू था.
आखिर कामवती थी ही इतनी सुन्दर सुडोल को कोई कैसे रोकता खुद को.
वैसे भी असलम का मनना था की सिर्फ देख लेने से कुछ नहीं होता वो आगे नहीं बढ़ेगा.
असलम :- कामवती पेट के बल लेट जाओ
कामवती सकूँचा रही थी की कैसे किसी पराये मर्द के सामने वो अपना अनमोल खजाना रख दे.
असलम उसकी दुविधा को समझ गया "शर्माओ मत कामवती इस वक़्त मे सिर्फ डॉक्टर हूँ,जब जान पे बनी हो तो ये सब करना पड़ता है.
कामवती सहमति मे सर हिला देती है और करवट बदल के पेट के बल लेट जाती है.
उभरी हुई गांड लहंगे के ऊपर से ही छटा बिखेर रही थी
असलम मन मे "क्या गद्देदार गांड है अपनी माँ से भी बढकर है ये"
असलम अपने हाँथ से लहंगा पकड़ के उठाने लगता है गोरे चिकने पैर चमक रहे थे,असलम की सांसे तेज़ हो रही थी
जैसे जैसे वो लहंगा उठता आश्चर्य से मुँह खुला रहा जाता कोमल नाजुक त्वचा असलम के काटजोर हाथ पे महसूस हो रही थी, कठोर हाथ का स्पर्श कामवती को भी हो रहा था परन्तु उसे कुछ कुछ गुदगुदी जैसा लग रहा था.
कामवाती का लहंगा गांड की जड़ तक पहुंच गया था बस आखरी पायदान था गोरी चिकनी मोटी जाँघ असलम.के सामने उजागर थी,अब सब्र करना मुश्किल था वो एक दम से कहना कमर तक उठा देता है...
या अल्लाह.....उसका मुँह खुला का खुला रह जाता है.
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एक दम चिकनी बड़ी से बिलकुल गोल कसी हुई गांड उसके सामने थे दोनों पाट आपस मे चिपके हुए थे.
लगता था जैसे असलम की धड़कन ही रुक गई है,वो वही जम गया था आंखे पथरा गई थी उसकी आँखों मे चमकती गांड ने सम्मोहन कर दिया था,प्राण निकलने को थे.

प्राण तो निचे तहखाने मे मंगूस के भी निकल रहे थे,शरीर गल रहा था आंखे बंद थी...सिर्फ दिमाग़ जिन्दा था मंगूस लगातार सोच रहा था हार मानने को अभी भी तैयार नहीं था.
"मै मर नहीं सकता,बिना चोरी के कैसे मर जाऊ दुनिया थूकेगी मुझ पे,
आखिर ये तीलीस्म कैसा था? वो नागेंद्र भी तो अपनी मणि छूता होगा उसको तो कुछ नहीं होता आखिर क्यों?
मरते मरते भी मंगूस चोरी का ही सोच रहा था सच्चा चोर था मंगूस आखिरकार.
समझ गया इस तिलिस्म का तोड़ जब मरना ही है बिना लड़े नहीं मरूंगा एक आखिरी कोशिश करनी होंगी मुझे..मुझे उठना होगा.....उठना ही होगा
चोर मंगूस अपनी सारी इच्छाशक्ति जूटा के उठ खड़ा होता है.
ये भयानक मंजर कोई देख लेता तो प्राण त्याग देता.
उसके बदन से मांस टूट टूट के गिर रहा था,शरीर की हड्डिया दिख रही थी...वो हिम्मत जूटा के अपने कदम बढ़ा देता है.
उसका विक्रत सड़ा गला शरीर नागमणि के प्रकाश मे नहा रहा था.
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परन्तु ये क्या....मंगूस नागमणि की तरफ नहीं बढ़ रहा था अपितु दूसरी दिशा मे जा रहा था जहा बाहर जाने का रास्ता था.
तो क्या मंगूस ने मौत स्वीकार कर ली थी?
वो भाग जाना चाहता था?
असलम की उत्तेजना क्या अंजाम लाएगी?
बने रहिये कथा जारी है...
 
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Mickay-M

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परन्तु ये क्या....मंगूस नागमणि की तरफ नहीं बढ़ रहा था अपितु दूसरी दिशा मे जा रहा था जहा बाहर जाने का रास्ता था.
तो क्या मंगूस ने मौत स्वीकार कर ली थी?
वो भाग जाना चाहता था?
असलम की उत्तेजना क्या अंजाम लाएगी?
बने रहिये कथा जारी है...

Wow, Sir superb exiting,
Waiting, Sir :10: :vhappy1::yourock:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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Aksar saap ke dasne log itna darr jaate hai ki wo ye tak dhyan nahi dete aage kya karna chahiye ya kya karna nahi chahiye.. well yahan kaamvati ke sarir mein jahar to faila lekin uska darr ushe kuch bhi karwa rahi hai...ek tarah jaise khud ko aslam ke saamne thali mein paros kar de di ho... udhar aslam... pehle to kasm - Kas mein tha.. lekin insaan paap panapne mein bhala kitni de lage... kaamvati ka jishm dekh wo bhi ek aur paap karne ke liye faisla kar liya..
udhar Thakur bhi bhaukhlaya hua hai... Waise aisi paristhitiyo mein ye lazmi bhi hai..

Khair udhar mangush..... uske bhi kya kehne... kehte hai laalach buri bala hai...
lalach hi aisi ek cheej hai jiske chalte insaan Haivaan banne mein der nahi karta.... kisi cheej ko paane ki lalcha mein aise kadam utha lete hai jo soch se bhi pare ho....kuch ek lobhi insaan paane ki is chaahat aur lalcha ke chalte kabhi kabhi apno ko hi bali chadha deta hai ya phir khud hi aisi musibat mein daal deta hai, jisse paar pana hi namumkin ho
lalach unhe itna andha kar deta hai ki soch vichar nahi kar pata ki hasil karne laalach mein jaan bhi jaa sakti hai.. ..
Jaise is mangush sath hua hai... maut ke kathghade pe khada hai phir chhori aur laalach ko chhodne ko manjur nahi...

Khair....... ye to duniya ki reet jahaan achhai hoti waha burayi bhi... kabhi kabhi ye burayi achhai par havi hone ki koshish karte jaise is aslam pe havi ho raha hai ..
dekhna ye hai ki aslam ka uttejana aur uske mann ke paap kounsa rang laaye kahani mein.... anjam kya hoga iska..?
aur gaur talab baat ye bhi ki mangush ka ant yahi hai ya marte marte kuch kar gujar jaane wala hai....

Shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi...

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills writer sahab :applause: :applause:
 

andypndy

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चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -51


इन सब घटना कर्म से दूर दिल्ली मे.
पुलिस मुख्यालय
वेलडन इंस्पेक्टर काम्या तुमने सफलता पूर्वक रामगढ मे फैले डाकुओ के आतंक को ख़त्म के दिया, मै तुम्हारे काम की आगे भी सिफारिश करूंगा.
तुम चाहो तो अब कुछ वक़्त के लिए छुट्टी ले सकती हो तुम्हे भी आराम की आवशयकता है.
इंस्पेक्टर काम्या :- धन्यवाद कमिश्नर साहेब ये तो आपका बड्डपन है और चोर डाकुओ का खात्मा करना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है.

ये है इंस्पेक्टर काम्या
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चालक लोमड़ी को तरह शातिर बुद्धिमान,जैसे को तैसा हिसाब रखने वाली
आज तक कोई भी डाकू चोर इसकी गिरफ्त से नहीं बच सका है
साम दाम दंड भेद सारे तरीके आजमाने जानती है.
इसका बदन बिलकुल जानलेवा है छाती हमेशा तानी रहती है जो की अपनी आकर की खुद गवाह है
कमर बिलकुल पतली और गांड ऐसी भयंकर की जो देख ले एक बार मे झड़ जाये.
अच्छे अच्छे चोर डाकू इसके नाम से ही काँपते है.
इसकी सिर्फ एक ही कमजोरी है इसकी हवस,कामवासना इसे अपनी चुत पे जरा भी नियंत्रण नहीं है कभी भी बहने लगती है.
लेकिन अभी तक ये अपनी कमजोरी को ताकत ही बनाती आई है.
ना जाने कितने चोर उच्चकों के साथ सम्भोग किया है,अपने यौवन के जाल मे फसा के मौत के घाट उतार दिया इसकी तो गिनती ही नहीं है.
आज रामगढ से डाकुओ को खत्म कर मुख्यालय लोटी थी
कमिश्नर शाबाशी दे ही रहा था की.....
ठक ठक ठक.....
कमीशनर कौन है? आ जाओ
हवलदार बहादुर रिपोर्टिंग सर!
हवलदार बहादुर नया नया भर्ती हुआ है पुलिस मे नाम बहादुर और अव्वल दर्जे का डरपोक, दिखने मे जोकर जैसा,दुबला पतला सा हलकी पतली मुंछे रखता है,ना जाने कैसे पुलिस मे भर्ती हो गया.
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अभी शादी नहीं की है...औरतों से डर लगता है जनाब को.
कमिश्नर :- क्या हुआ बहादुर?
बहादुर :- जनाब ********* आया है थाना विष रूप से कुख्यात डाकू रंगा वहा की जेल से फरार हो गया है, और सुनने मे आया है की बिल्ला भी जिन्दा देखा गया है, ऊपर से चोर मंगूस अभी भी आज़ाद है.
कमिश्नर एक सतब इतनी सारी बुरी खबर सुन आग बबूला हो गया...
क्या बकते हो बहादुर....इतनी बड़ी नाकामी कालिख पोत दी पुलिस डिपार्टमेंट के मुँह पे.
बहादुर सर झुकाये खड़ा रहा....
कमिश्नर गहरी सोच मे डूबा हुआ था कमरे मे सन्नाटा पसर गया था.
कमिश्नर :- इंस्पेक्टर काम्या आप की छुट्टी ख़ारिज की जाती है,आपका ट्रांसफर विष रूप चौकी पे किया जा रहा है.
रंगा बिल्ला मुझे किसी भी कीमत पे चाहिए जिन्दा या मुर्दा.....
और बहादुर तुम साथ जाओगे मैडम के.
बहादुर की तो घिघी बंध गई....क्या...? मै...मै...मै..... कैसे.
कमिश्नर :- गुस्से मे क्या मै मै...लगा रखा है,नौकरी करनी है या नहीं?
बहादुर जो की ले दे के पुलिस मे लगा था अपनी माँ की सिफारिश पे उसकी माँ किसी दरोगा के यहाँ काम करती थी उसी दरोगा ने बहादुर को पुलिस मे भर्ती करवाया था.
जान ज़्यदा प्यारी थी उसे,परन्तु यदि नौकरी छोड़ता तो उसकी माँ उसकी जान के लेती.
मरता क्या ना करता...
बहादुर :- जी मालिक जाऊंगा
कमिश्नर :- काम्या तुम कल सुबह ही विष रूप के लिए निकल जाओ. तुम्हारे पास 1हफ्ते का वक़्त है ज्वाइन करने का.
काम्या :- जी सर.... सलूट करती हुई कमरे से बाहर निकल जाती है पीछे पीछे बहादुर भी चल देता है.
काम्या का दिल ख़ुश था... क्युकी उसका गांव भी विष रूप के पास वाले शहर मे ही था,
वो जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहती थी उसे अपने माँ बाप से मिलने की खुशी थी.
"माँ पापा से मिल के विष रूप चली जाउंगी "
चल बहादुर.....
बहादुर मुँह लटकाये "जी मैडम "

अभी काम्या को विष रूप पहुंचने मे वक़्त था परन्तु चोर मंगूस के पास बिलकुल वक़्त नहीं था वो पल पल मौत के करीब जा रहा था लड़खड़ा हुआ वो सीढ़ी के पास पहुंच जाता है
"मिल गया आखिर....मंगूस जमीन पे पडा कोई कपड़ानुमा चीज उठा लेटा है
उस चीज को जैसे तैसे हाथ मे लपेट कर नागमणि की और चल देता है
"यही मौका है मंगूस...यही मौका है "
मंगूस ने जबरदस्त इच्छाशक्ति का परिचय दिया था
लेकिन कब तक संभालता अपने जर्ज़र साढ़े गले शरीर को नतीजा उसकी हिम्मत जवाब दे गई भरभरा के जमीन पे गिरता चला गया....
लेकिन ये क्या मंगूस की किस्मत उसके साथ थी वो गिरते गिरते भी नामगमणि के पास तक पहुंच ही गया था बस उसे नागमणि उठा लेनी थी,लेकिन प्राण कहाँ थे उस शरीर मे,खून का एक एक कतरा तो गिर चूका था जमीन पे
नहीं नहीं...मै हार नहीं मानुगा,नहीं मानुगा...धममममम...ना जाने कहाँ से मंगूस ताकत ले आया अपना हाथ उठा के नागमणि के ऊपर रख ही दिया.
आअह्ह्ह....उसके गले से आखिरी चीख निकल गई.साँसो ने उसका साथ छोड़ दिया था
दिल भी गलना शुरू हो गया था
आंखे सदा के लिए बंद हो गई. रहे सहे फेफड़े भी गल गए,आखिर कब तक सहन करता वो इस असहनीय पीड़ा को? आखिर कब तक सांस लेता अपने गलते फेफड़ों से
नागमणि उसकी मुट्ठी मे कैद थी लेकिन अब क्या फायदा महान कुख्यात चोर मंगूस मंजिल पे पहुंच के दम तोड़ चूका था..
 
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andypndy

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Aksar saap ke dasne log itna darr jaate hai ki wo ye tak dhyan nahi dete aage kya karna chahiye ya kya karna nahi chahiye.. well yahan kaamvati ke sarir mein jahar to faila lekin uska darr ushe kuch bhi karwa rahi hai...ek tarah jaise khud ko aslam ke saamne thali mein paros kar de di ho... udhar aslam... pehle to kasm - Kas mein tha.. lekin insaan paap panapne mein bhala kitni de lage... kaamvati ka jishm dekh wo bhi ek aur paap karne ke liye faisla kar liya..
udhar Thakur bhi bhaukhlaya hua hai... Waise aisi paristhitiyo mein ye lazmi bhi hai..

Khair udhar mangush..... uske bhi kya kehne... kehte hai laalach buri bala hai...
lalach hi aisi ek cheej hai jiske chalte insaan Haivaan banne mein der nahi karta.... kisi cheej ko paane ki lalcha mein aise kadam utha lete hai jo soch se bhi pare ho....kuch ek lobhi insaan paane ki is chaahat aur lalcha ke chalte kabhi kabhi apno ko hi bali chadha deta hai ya phir khud hi aisi musibat mein daal deta hai, jisse paar pana hi namumkin ho
lalach unhe itna andha kar deta hai ki soch vichar nahi kar pata ki hasil karne laalach mein jaan bhi jaa sakti hai.. ..
Jaise is mangush sath hua hai... maut ke kathghade pe khada hai phir chhori aur laalach ko chhodne ko manjur nahi...

Khair....... ye to duniya ki reet jahaan achhai hoti waha burayi bhi... kabhi kabhi ye burayi achhai par havi hone ki koshish karte jaise is aslam pe havi ho raha hai ..
dekhna ye hai ki aslam ka uttejana aur uske mann ke paap kounsa rang laaye kahani mein.... anjam kya hoga iska..?
aur gaur talab baat ye bhi ki mangush ka ant yahi hai ya marte marte kuch kar gujar jaane wala hai....

Shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi...

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills writer sahab :applause: :applause:
धन्यवाद दोस्ती इतने शानदार रिस्पांस के लिए

आप जैसे पाठक ही हौसला बढ़ाते है की ऐसी कहानी लिखी जाये.
एक नयी ऊर्जा मिल जाती है लिखने की.
अपने भी खूब परिभाषित किया मेरी कहानी को.
धन्यवाद फिर से
बने रहिये...कथा जारी है 😃
 
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