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चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -49
हवेली मे कोहराम मचा हुआ था,ठाकुर ज़ालिम सिंह बदहवास इधर उधर टहल रहा था.
क्या हुआ ठाकुर साहेब...क्या हुआ...इतनी जल्दी मे क्यों बुलवा भेजा? डॉ.असलम कमरे मे दाखिल जोते हुए बोला.
ठाकुर :- असलम..असलम मेरे भाई ये देखो कामवती को क्या हो या है? आज सुबह गुसालखाने गई थी वहा से चीखने की आवाज़ आई हम लोग पहुचे तो ये बेहोश पडी थी.
असलम तुरंत कामवती के बगल मे बैठ जाता है उसका हाथ पकड़ नब्ज़ टटोलने लगता है सब कुछ ठीक था सांसे और नब्ज़ दोनों बराबर थी
"सब कुछ ठीक है फिर कामवती को हुआ क्या है?" असलम मन ही मन सोचने लगा.
वही कमरे मे छुपा बैठा नागेंद्र भी चिंतित था उसे समझ नहीं आ रहा था की कामवती बेहोश क्यों हो गई जबकि उसके पास तो जहर ही नहीं बचा है ऊपर से योनि पे चुम्बन करना था और हो गया गुदा छिद्र पे.
मुझे अगला मौका ढूंढना होगा.
डॉ.असलम पानी के कुछ छींटे कामवती के मुँह पे मारता है,
कामवती कस मसाती आंखे खोल देती है,उसकी गुदा छिद्र पे अभी भी दर्द था भले ही नागेंद्र मे जहर नहीं था परन्तु उसके दाँत बराबर चुभे थे.
कामवती दरी सहमी चारो और देखती है.... और चिल्ला पड़ती है सांप....सांप....सांप... काला भयानक सांप...
सभी लोगो को सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है.
ठाकुर दौड़ के कामवती के पास आता है उसे संभालता है.
ठाकुर :- कहाँ है सांप कामवती....सांप ने क्या किया? कही काटा तो नहीं.
कामवती बदहवस बिलखने लगती है "ठाकुर साहेब मै मरना नहीं चाहती...वो वो...वो.... काला भयानक सांप था उसने मुझे काट लिया है.
ये सुन ना था की ठाकुर की गांड ही फट गई उसके हाथ पैर ढीले पड़ने लगे.
ठाकुर :- कहाँ काटा है सांप ने तुम्हे बताओ हमें....बताओ.
कामवती बिलकुल चुप थी....अब कैसे कहे की गांड पे काटा है "भूरी काकी कहाँ है उन्ह्र बुलाओ "
ठाकुर और असलम को समझ ही नहीं आता की कामवती,भूरी काकी को क्यों बुलवाना चाहती है
स्त्री सुलभ संकोच था कामवती मे वो ऐसी बात किसी पुरुष को कैसे बताती,स्त्री को ही बताया जा सकता था.
तभी कमरे मे कालू बिल्लू भी पहुंच जाते है
कालू :- मालिक भूरी काकी कही नहीं है,पूरी हवेली छान मारी आस पास भी देख लिया लोगो से पूछा भी परन्तु भूरी काकी कही नहीं है..
ठाकुर:- गुस्से मे लाल पीला हो रहा था ऐसे कैसे कहाँ चली गई? काकी आजतक बिन बोले कही नहीं गई.
ये हो क्या रहा है हवेली मे....
असलम जो अभी तक चुप बैठा था उसने बारीकी से कामवती का परीक्षण कर लिया था...कही से भी कोई सांप कटे का नमो निशान नहीं था, ना कोई जहर फैलने का निशान.
सांप जहरीला होता तो कामवती अब तक बेहोश ही हो जाती.
फिर भी उसे कुछ शंका थी...
डॉ.असलम :- ठाकुर साहेब शांत हो जाइये आप चिंता ना करे इलाज है मेरे पास.
हमें उसी सांप को ढूंढना होगा जिसने कामवती को काटा है उसके ही जहर से दवाई बनेगी.
जब तक मै अपनी तरफ से जहर उतरने की कोशिश करता हूँ.....ना जाने असलम को क्या विचार आ रहा था.
कुछ तो अलग था उसके दिमाग़ मे...
कामवती :- ठाकुर साहेब मेरी माँ को बुलावा भेजिए...मै मरते वक़्त उन्हें देखना चाहती हूँ.
कामवती अति डर से पगला गई थी उसे लग रहा था की वो मर रही है.
जबकि असलम को पता था की ऐसा कुछ नहीं है.
ठाकुर :- हरामखोरो अभी तक यही खड़े हो सुना नहीं ठकुराइन क्या बोली....
बिल्लू तू कामगंज जा और ठकुराइन के माँ बाप को लिवा आ.
और कालू रामु मेरे साथ चलो आज सके उस सांप की खेर नहीं....मिल गया तो मौत के घाट उतार दूंगा.
मेरी कामवती को काटता है... ठाकुर आज रोन्द्र रूप मे था कालू रामु चुप चाप उसके पीछे कमरे से बाहर निकल जाते है.
कोने मे बैठा नागेंद्र की भी घिघी बंध गई थी..
"अबे ये तो दाँव ही उल्टा पड़ गया..इन हरामियों के हाथ लग गया तो मार मार के कचूमर बना देंगे, तहखाने ने जाने मे ही भलाई है"
नागेंद्र सबकी नजर बचा के निकल जाता है तहखाने की ओर....
वही तहखाना जहा मंगूस आपने कदम रख चूका था, घोर अंधेरा छाया हुआ था मसाल की रौशनी भी नाकाफी थी..
मंगूस नागमणि को ढूंढने लगा उसके दिमाग़ मे लगातार विचार चल रहे थे. उसे तहखाने के एक कोने मे कुछ हलचल सी महसूस होती है जैसे कोई रौशनी चालू बंद जो रही हो.
वो उस ओर बढ़ जाता है घास फुस का खूब ढेर था उसी के निचे से कभी रौशनी आती तो कभी गायब हो जाती..मंगूस के पास वक़्त नहीं था वो जल्दी जल्दी घाँस हटाने लगा..जैसे ही पूरी घाँस हटी पूरा तहखाना तेज़ रौशनी से जगमगा उठा, निचे एक चमकली सी चीज लकड़ी के पाटे पे रखी थी...
आआआहहहह....तो ये है वो नायब नागमणि अनमोल बेशकीमती नागमणि.
मंगूस ख़ुशी से उछल पडा उसके जीवन की सबसे नायब चोरी उसके सामने थी,उस नागमणि की चमक ने उसे अंधा बना दिया था आँख से भी और अक्ल से भी, नागमणि की चमक ऐसी थी की सिर्फ नागमणि ही दिख रही थी उसके आस पास क्या है इसका कोई अनुमान नहीं था.
खुशी के मारे मंगूस हाथ आगे बढ़ा देता है....परन्तु जैसे ही वो नागमणि को पकड़ता है उसके गले से एक घुटी चीख निकल जाती है लगता था जैसे उसके प्राण खींचते चले जा रहे हो,शरीर का सारा खून मणि मे समाता चला जा रहा था.
मांगूस की मौत निश्चित थी..यही वो तीलीस्म था जो नागमणि की रक्षा करता था.
तभी उसे एक भयानक झटका लगता है वो मणि से दूर फिंक जाता है,उसका बेजान शरीर कठोर जमीन से टकरा जाता है,
उसमे तो चीखने की ताकत भी नहीं थी, खून का एक कतरा नहीं बचा था, गाल और आंखे अंदर को धंस गई थी, पासलियो की हड्डी बाहर दिखने लगी थी, बदन की चमड़ी धीरे धीरे गल रही थी.
धीरे धीरे उसका शरीर किसी कंकाल मे तब्दील हो रहा था.
बिलकुल चित्त जमीन पे पडा था महान चोर मंगूस...बिलकुल लाचार अपनी मौत का इंतज़ार करता हुआ, आंखे धीरे धीरे बंद होती चली गई.
तो क्या यही है चोर मंगूस का अंत?
डॉ.असलम के दिमाग़ मे क्या है?
कथा जारी है....
हवेली मे कोहराम मचा हुआ था,ठाकुर ज़ालिम सिंह बदहवास इधर उधर टहल रहा था.
क्या हुआ ठाकुर साहेब...क्या हुआ...इतनी जल्दी मे क्यों बुलवा भेजा? डॉ.असलम कमरे मे दाखिल जोते हुए बोला.
ठाकुर :- असलम..असलम मेरे भाई ये देखो कामवती को क्या हो या है? आज सुबह गुसालखाने गई थी वहा से चीखने की आवाज़ आई हम लोग पहुचे तो ये बेहोश पडी थी.
असलम तुरंत कामवती के बगल मे बैठ जाता है उसका हाथ पकड़ नब्ज़ टटोलने लगता है सब कुछ ठीक था सांसे और नब्ज़ दोनों बराबर थी
"सब कुछ ठीक है फिर कामवती को हुआ क्या है?" असलम मन ही मन सोचने लगा.
वही कमरे मे छुपा बैठा नागेंद्र भी चिंतित था उसे समझ नहीं आ रहा था की कामवती बेहोश क्यों हो गई जबकि उसके पास तो जहर ही नहीं बचा है ऊपर से योनि पे चुम्बन करना था और हो गया गुदा छिद्र पे.
मुझे अगला मौका ढूंढना होगा.
डॉ.असलम पानी के कुछ छींटे कामवती के मुँह पे मारता है,
कामवती कस मसाती आंखे खोल देती है,उसकी गुदा छिद्र पे अभी भी दर्द था भले ही नागेंद्र मे जहर नहीं था परन्तु उसके दाँत बराबर चुभे थे.
कामवती दरी सहमी चारो और देखती है.... और चिल्ला पड़ती है सांप....सांप....सांप... काला भयानक सांप...
सभी लोगो को सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है.
ठाकुर दौड़ के कामवती के पास आता है उसे संभालता है.
ठाकुर :- कहाँ है सांप कामवती....सांप ने क्या किया? कही काटा तो नहीं.
कामवती बदहवस बिलखने लगती है "ठाकुर साहेब मै मरना नहीं चाहती...वो वो...वो.... काला भयानक सांप था उसने मुझे काट लिया है.
ये सुन ना था की ठाकुर की गांड ही फट गई उसके हाथ पैर ढीले पड़ने लगे.
ठाकुर :- कहाँ काटा है सांप ने तुम्हे बताओ हमें....बताओ.
कामवती बिलकुल चुप थी....अब कैसे कहे की गांड पे काटा है "भूरी काकी कहाँ है उन्ह्र बुलाओ "
ठाकुर और असलम को समझ ही नहीं आता की कामवती,भूरी काकी को क्यों बुलवाना चाहती है
स्त्री सुलभ संकोच था कामवती मे वो ऐसी बात किसी पुरुष को कैसे बताती,स्त्री को ही बताया जा सकता था.
तभी कमरे मे कालू बिल्लू भी पहुंच जाते है
कालू :- मालिक भूरी काकी कही नहीं है,पूरी हवेली छान मारी आस पास भी देख लिया लोगो से पूछा भी परन्तु भूरी काकी कही नहीं है..
ठाकुर:- गुस्से मे लाल पीला हो रहा था ऐसे कैसे कहाँ चली गई? काकी आजतक बिन बोले कही नहीं गई.
ये हो क्या रहा है हवेली मे....
असलम जो अभी तक चुप बैठा था उसने बारीकी से कामवती का परीक्षण कर लिया था...कही से भी कोई सांप कटे का नमो निशान नहीं था, ना कोई जहर फैलने का निशान.
सांप जहरीला होता तो कामवती अब तक बेहोश ही हो जाती.
फिर भी उसे कुछ शंका थी...
डॉ.असलम :- ठाकुर साहेब शांत हो जाइये आप चिंता ना करे इलाज है मेरे पास.
हमें उसी सांप को ढूंढना होगा जिसने कामवती को काटा है उसके ही जहर से दवाई बनेगी.
जब तक मै अपनी तरफ से जहर उतरने की कोशिश करता हूँ.....ना जाने असलम को क्या विचार आ रहा था.
कुछ तो अलग था उसके दिमाग़ मे...
कामवती :- ठाकुर साहेब मेरी माँ को बुलावा भेजिए...मै मरते वक़्त उन्हें देखना चाहती हूँ.
कामवती अति डर से पगला गई थी उसे लग रहा था की वो मर रही है.
जबकि असलम को पता था की ऐसा कुछ नहीं है.
ठाकुर :- हरामखोरो अभी तक यही खड़े हो सुना नहीं ठकुराइन क्या बोली....
बिल्लू तू कामगंज जा और ठकुराइन के माँ बाप को लिवा आ.
और कालू रामु मेरे साथ चलो आज सके उस सांप की खेर नहीं....मिल गया तो मौत के घाट उतार दूंगा.
मेरी कामवती को काटता है... ठाकुर आज रोन्द्र रूप मे था कालू रामु चुप चाप उसके पीछे कमरे से बाहर निकल जाते है.
कोने मे बैठा नागेंद्र की भी घिघी बंध गई थी..
"अबे ये तो दाँव ही उल्टा पड़ गया..इन हरामियों के हाथ लग गया तो मार मार के कचूमर बना देंगे, तहखाने ने जाने मे ही भलाई है"
नागेंद्र सबकी नजर बचा के निकल जाता है तहखाने की ओर....
वही तहखाना जहा मंगूस आपने कदम रख चूका था, घोर अंधेरा छाया हुआ था मसाल की रौशनी भी नाकाफी थी..
मंगूस नागमणि को ढूंढने लगा उसके दिमाग़ मे लगातार विचार चल रहे थे. उसे तहखाने के एक कोने मे कुछ हलचल सी महसूस होती है जैसे कोई रौशनी चालू बंद जो रही हो.
वो उस ओर बढ़ जाता है घास फुस का खूब ढेर था उसी के निचे से कभी रौशनी आती तो कभी गायब हो जाती..मंगूस के पास वक़्त नहीं था वो जल्दी जल्दी घाँस हटाने लगा..जैसे ही पूरी घाँस हटी पूरा तहखाना तेज़ रौशनी से जगमगा उठा, निचे एक चमकली सी चीज लकड़ी के पाटे पे रखी थी...
आआआहहहह....तो ये है वो नायब नागमणि अनमोल बेशकीमती नागमणि.
मंगूस ख़ुशी से उछल पडा उसके जीवन की सबसे नायब चोरी उसके सामने थी,उस नागमणि की चमक ने उसे अंधा बना दिया था आँख से भी और अक्ल से भी, नागमणि की चमक ऐसी थी की सिर्फ नागमणि ही दिख रही थी उसके आस पास क्या है इसका कोई अनुमान नहीं था.
खुशी के मारे मंगूस हाथ आगे बढ़ा देता है....परन्तु जैसे ही वो नागमणि को पकड़ता है उसके गले से एक घुटी चीख निकल जाती है लगता था जैसे उसके प्राण खींचते चले जा रहे हो,शरीर का सारा खून मणि मे समाता चला जा रहा था.
मांगूस की मौत निश्चित थी..यही वो तीलीस्म था जो नागमणि की रक्षा करता था.
तभी उसे एक भयानक झटका लगता है वो मणि से दूर फिंक जाता है,उसका बेजान शरीर कठोर जमीन से टकरा जाता है,
उसमे तो चीखने की ताकत भी नहीं थी, खून का एक कतरा नहीं बचा था, गाल और आंखे अंदर को धंस गई थी, पासलियो की हड्डी बाहर दिखने लगी थी, बदन की चमड़ी धीरे धीरे गल रही थी.
धीरे धीरे उसका शरीर किसी कंकाल मे तब्दील हो रहा था.
बिलकुल चित्त जमीन पे पडा था महान चोर मंगूस...बिलकुल लाचार अपनी मौत का इंतज़ार करता हुआ, आंखे धीरे धीरे बंद होती चली गई.
तो क्या यही है चोर मंगूस का अंत?
डॉ.असलम के दिमाग़ मे क्या है?
कथा जारी है....
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