चैप्टर :-4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -52
हवेली मे ठाकुर और कालू रामु उस काले नाग को ढूंढ़ रहे थे परन्तु सफलता नहीं मिल रही थी.
लेकिन हवेली के अंदर डॉ.असलम सफलता के कगार पे खड़ा था या यु कहिये की मित्रघात और पाप करने जा रहा था उसकी दिनों दिन बढ़ती हवस आज उस से वो सब करवा लेना चाहती थी जो उसने कभी सोचा ही नहीं था.
तभी कामवती की नंगी गांड पे ठंडी हवा का झोका लगता है
कामवती कसमसा जाती है "असलम काका क्या कर रहे है? दिखा क्या की सांप ने कहाँ काटा है?
असलम होश मे आता हुआ "वो...वो...बबबबब...नहीं कामवती कही कोई नामोनिशान नहीं है सांप दंश का,कहाँ काटा था?
मतलब तुम्हे दर्द कहाँ है?
मासूम कामवती इलाज और सांप दंश के डर से पूरी तरह असलम के कब्जे मे थी वो एक हाथ पीछे ले जा के अपनी गोरी गांड के एक हिस्से को पकड़ के थोड़ा खिंचती है....यहाँ काटा है असलम काका.
गांड का एक पल्ला खुल गया था उसमे से लाल लाल छेद झाँक रहा था
असलम उस छेद को ऐसे देख रहा था जैसे कोई चोर तिजोरी खुलने पे हिरे जवाहरत को देखता है.
असलम का लंड फन फना उठा,उसने सोचा था सिर्फ देखेगा परन्तु इतने सुंदर हसीन मादक गुदा छिद्र को कोई देखे और छुए ना तो वो कैसा मर्द
ऐसा ही असलम के साथ हुआ पाप पूरी तरह घर कर गया था
"दिख तो रहा है लेकिन साफ से नहीं दिख रहा कामवती?
कामवती असमंजस मे पड़ गई की अब और कैसे दिखाए
असलम :- कामवती ऐसा करो घुटने के बल हो जाओ जिस से तुम्हारी गुदा मुझे अच्छे से दिख सके.
अब कामवती क्या करती उसके सामने डॉक्टर था बात माननी ही थी.
कामवती मजबूरन घुटने के बल उठ जाती है उसकी बड़ी सी गांड उभार के पूरी बाहर आ जाती है, दोनों पाट अलग अलग दिशा मे भागने लगते है.
सुर्ख लाल छेद नजर आने लगा था उसके निचे सिर्फ एक लकीर थी वही चुत थी कामवती की बाल का एक तिनका भी नहीं बिलकुल साफ चिकनी चुत और गांड.
असलम ने ऐसा अभूतपूर्व नजारा नहीं देखा था हालांकि उसने रतिवती और रुखसाना को चोदा था परन्तु कामवती बिलकुल कुंवारी थी दोनों छेद ऐसे चिपके हुए थे की हवा भी अंदर या बाहर ना आ जा सके.
असलम मन मे "या अल्लाह क्या कारीगरी है तेरी ऐसी काया के दर्शन मात्र से ही मेरा जीवन सफल हो गया,लेकिन ये क्या ठाकुर साहेब तो सुहागरात मना चुके है फिर कामवती की चुत इतनी चिपकी हुई कैसे है?
तभी उसकी नाक मे एक मादक ताज़ा गंध महसूस होती है इस गंध ने असलम का रोम रोम पुलकित कर दिया था.
शनिफ्फफ्फ्फ़....क्या खुसबू है ये खुसबू कामवती की चुत और गांड से निकल रही थी.
कामवती :- काका क्या देख रहे है,मुझे शर्म आ रही है जल्दी कीजिये
असलम खुद को संभालता है उसके पास वक़्त नहीं था...वो अपना सर कामवती की गांड के पास ले जाता है तो उसे गुदा छिद्र पे तो बिंदु दीखते है...ओह्ह्ह...तो यहाँ काटा है सांप ने?
कामवती :- दिखा काका..अब तो दिख गया ना जल्दी इलाज करो.
असलम का दिमाग़ दौड़ने लगा "यही मौका है असलम"
अब भला कोई मर्द ऐसी गांड को देखे और स्वाद ना ले ऐसा भला हो सकता है
वही असलम के साथ था उसके विचार उसके वादे जो खुद से ही थे की "देखेगा और कुछ नहीं करेगा " सब धाराशयी हो गए.
वो अपना एक हाथ कामवती की गांड पे रख के एक तरफ खिंचता है.
आअह्ह्ह....काका क्या कर रहे है?
असलम :- कामवती सांप ने काटा है तो जहर भी होगा,जहर चूसना पड़ेगा.
कामवती ने गांव मे सुना तो था की सांप काट ले तो जहर चूस के निकाला जाता है परन्तु कही ओर से चूसना और गुदा छिद्र से चूसने मे अंतर है.
"लेकिन काका वहा से कैसे चूस सकते है? गन्दी जगह है वो!
असलम तो अंदर ही अंदर कामवासना मे मरा जा रहा था उसे तो वो कामुक कुंवारा छेद दिख रहा था
मज़बूरी दिखाते हुए "कोई बात नहीं कामवती मै डॉक्टर हूँ मेरा फर्ज़ है लोगो की जान बचाना उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े.
हवस मे डूबा इंसान क्या नहीं करता कल तक भोला भला डॉ,असलम जो औरतों के साये से भी घबराता था आज स्त्री सुख के लिए प्रपंच कर रहा था साफ साफ मित्र घात कर रहा था.
कामवती की आंखे कर्तघ्यता से भर आई थी उसके दिल मे असलम के द्वारा किये जाने वे अहसास ने जगह बना ली.
कामवती आंखे बंद कर अपनी गांड को और ज्यादा उभार देती है.
डॉ.असलम अपने दोनों हाथ कपकपाते हुए कामवती के दोनों पहाड़ो पे रख देता है और उन्हें एक दूसरे के विपरीत दिशा मे खिंच देता है...
आअह्ह्ह....क्या कोमल अहसास था एक दम चिकनी मुलायम चमड़ी उस पे से कामुक कुंवारी मादक गंध.
"अब सब्र नहीं कर सकता " सोच के अपनी नाक गांड के छेद पे रख तेज़ सांस खींचता है.
शनिफ्फफ्फ्फ़...असलम के बदन मे आग लग गई थी उसकी जबान अपने कटोरे से बाहर निकल गुदा छिद्र पे रगड़ खां जाती है...
आअह्ह्ह....असलम काका गिला लग रहा है गुदगुदी हो रही है.
कामवती जो की ये अहसास पहली बार ले रही थी उसकी घिघी बंध गई थी इस गीलेपन और जीभ के खुर्दरे पन से.
उसे एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती है अब ये आनंद क्या था...इस से अनजान थी कामवती.
तभी असलम अपने काले होंठो को गोल कर के कामवती के लाल गुदा छिद्र पे टिका देता है और जोर से खींचता है जैसे वाकई जहर चूस रहा हो...कामवती आंखे बंद किये कसमसाने लगती है.
यहाँ कसमसाहट जारी थी
और वही हवेली के नीचे तहखाने मे भी कुछ कसमसा रहा था.
कुछ तो था जो उस सुनसान अंधकार से भरे तहखाने मे कुलबुला रहा था.
धड़...धड़...धाड़....धाड़....जैसे कोई दिल धड़क रहा हो.
धीरे धीरे ये आवाज़ बढ़ने लगी थी....इसी आवाज़ मे सररररर....सररररऱ....की आवाज़ भी शामिल हो चली जैसे कोई जोर जोर से सांस ले रहा हो.
आआहहहह....तभी तहखाने की शांति एक हलकी से आह के साथ पूरी तरह भंग हो जाती है.
तेज़ प्रकाश से तहखाना चमकने लगता है,ये प्रकाश मंगूस की खुलती बंद होती उंगलियों के बीच से आ रहा था
मंगूस की उंगलियां हिल रही थी.
उसका दिल वापस बन चूका था, फेफड़े वापस सांस फेंक रहे थे.मंगूस ने एक दम से आंखे खोल दी जैसे कोई सपना देखा हो ऐसे हड़बड़ाया.
वाह्ह्ह.....मै कामयाब रहा,मंगूस कामयाब रहा मेरी आखरी योजना ने बचा लिया मुझे.
मंगूस उठ बैठा..उसका शरीर वापस बनने लगा था उसकी चमड़ी उसके कंकाल पे चढ़ती जा रही थी उसकी ताकत वापस आ रही थी,रगो मे खून दौड़ता महसूस हो रहा था.
नागमणि उसकी मुट्ठी मे बंद उसी सोखी गई सभी चीज वापस लौटा रही थी.
मंगूस उठा खड़ा हुआ"मेरा सोचना सही था नागेंद्र एक सांप है एक सांप ही नागमणि को उठा सकता है अच्छा हुआ की मैंने नीचे आते वक़्त नागेंद्र की केंचूली देख ली थी वही हाथ मे लपेट नागमणि उठा ली मैंने "
मंगूस यु ही शातिर नहीं था कामखा ही कुख्यात नहीं था पक्का चोर था.
खुशी के मारे मंगूस होने दोनों हाथ ऊपर उठाये ठहाका लगा देता है.
हाहाहाहाहाहाहाहा.......कामयाबी....हाहाहाहाहा...
तभी
टननननन न.... कोई भरी चीज मंगूस की खोपड़ी से टकराती है उसकी हसीं थम जाती है और उसकी जगह एक दर्द की लहर उसके चेहरे पे दौड़ जाती है.
नागमणि हाथ से छूट के दूर गिर गई...मंगूस अपना सर पकड़े वापस धरती पे गिरता चला गया.
हाथ मे लिपटी केंचूली किसी शख्स ने उतार ली...और अपने हाथ मे लपेट नागमणि उठाये मंगूस के सामने खड़ा ही गया.
हाहाहाहाहाब........मान गए तुम्हे महान चोर मंगूस जिस तिलिस्म का तोड़ तांत्रिक उलजुलूल के पास भी नहीं था उस तिलिस्म को तुमने तोड़ नागमणि हथिया ली.
वाह...वाह...लेकिन बदकिस्मती मुझसे ना बच सके.
मंगूस दर्द से करहाता उस साये देखता रहा जो किसी स्त्री का था भू...भू....भू....तुम और ना बोल सका बेहोशी के गर्त मे खो गया चोर मंगूस.
बने रहिये...कथा जारी है...