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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

आपका सबसे पसंदीदा चरित्र कौनसा है?

  • कामवती

  • रतिवती

  • रुखसाना

  • भूरी काकी

  • रूपवती

  • इस्पेक्टर काम्या

  • चोर मंगूस

  • ठाकुर ज़ालिम सिंह /जलन सिंह

  • नागेंद्र

  • वीरा

  • रंगा बिल्ला


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andypndy

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परन्तु ये क्या....मंगूस नागमणि की तरफ नहीं बढ़ रहा था अपितु दूसरी दिशा मे जा रहा था जहा बाहर जाने का रास्ता था.
तो क्या मंगूस ने मौत स्वीकार कर ली थी?
वो भाग जाना चाहता था?
असलम की उत्तेजना क्या अंजाम लाएगी?
बने रहिये कथा जारी है...

Wow, Sir superb exiting,
Waiting, Sir :10: :vhappy1::yourock:
धन्यवाद दोस्त.... नये चरित्र आ रहे है अब कहानी मे.
अपडेट आ गया है
बने रहे....कथा जारी है
 
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andypndy

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चैप्टर :-4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -52

हवेली मे ठाकुर और कालू रामु उस काले नाग को ढूंढ़ रहे थे परन्तु सफलता नहीं मिल रही थी.
लेकिन हवेली के अंदर डॉ.असलम सफलता के कगार पे खड़ा था या यु कहिये की मित्रघात और पाप करने जा रहा था उसकी दिनों दिन बढ़ती हवस आज उस से वो सब करवा लेना चाहती थी जो उसने कभी सोचा ही नहीं था.
तभी कामवती की नंगी गांड पे ठंडी हवा का झोका लगता है
कामवती कसमसा जाती है "असलम काका क्या कर रहे है? दिखा क्या की सांप ने कहाँ काटा है?
असलम होश मे आता हुआ "वो...वो...बबबबब...नहीं कामवती कही कोई नामोनिशान नहीं है सांप दंश का,कहाँ काटा था?
मतलब तुम्हे दर्द कहाँ है?
मासूम कामवती इलाज और सांप दंश के डर से पूरी तरह असलम के कब्जे मे थी वो एक हाथ पीछे ले जा के अपनी गोरी गांड के एक हिस्से को पकड़ के थोड़ा खिंचती है....यहाँ काटा है असलम काका.
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गांड का एक पल्ला खुल गया था उसमे से लाल लाल छेद झाँक रहा था
असलम उस छेद को ऐसे देख रहा था जैसे कोई चोर तिजोरी खुलने पे हिरे जवाहरत को देखता है.
असलम का लंड फन फना उठा,उसने सोचा था सिर्फ देखेगा परन्तु इतने सुंदर हसीन मादक गुदा छिद्र को कोई देखे और छुए ना तो वो कैसा मर्द
ऐसा ही असलम के साथ हुआ पाप पूरी तरह घर कर गया था
"दिख तो रहा है लेकिन साफ से नहीं दिख रहा कामवती?
कामवती असमंजस मे पड़ गई की अब और कैसे दिखाए
असलम :- कामवती ऐसा करो घुटने के बल हो जाओ जिस से तुम्हारी गुदा मुझे अच्छे से दिख सके.
अब कामवती क्या करती उसके सामने डॉक्टर था बात माननी ही थी.
कामवती मजबूरन घुटने के बल उठ जाती है उसकी बड़ी सी गांड उभार के पूरी बाहर आ जाती है, दोनों पाट अलग अलग दिशा मे भागने लगते है.
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सुर्ख लाल छेद नजर आने लगा था उसके निचे सिर्फ एक लकीर थी वही चुत थी कामवती की बाल का एक तिनका भी नहीं बिलकुल साफ चिकनी चुत और गांड.
असलम ने ऐसा अभूतपूर्व नजारा नहीं देखा था हालांकि उसने रतिवती और रुखसाना को चोदा था परन्तु कामवती बिलकुल कुंवारी थी दोनों छेद ऐसे चिपके हुए थे की हवा भी अंदर या बाहर ना आ जा सके.
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असलम मन मे "या अल्लाह क्या कारीगरी है तेरी ऐसी काया के दर्शन मात्र से ही मेरा जीवन सफल हो गया,लेकिन ये क्या ठाकुर साहेब तो सुहागरात मना चुके है फिर कामवती की चुत इतनी चिपकी हुई कैसे है?
तभी उसकी नाक मे एक मादक ताज़ा गंध महसूस होती है इस गंध ने असलम का रोम रोम पुलकित कर दिया था.
शनिफ्फफ्फ्फ़....क्या खुसबू है ये खुसबू कामवती की चुत और गांड से निकल रही थी.
कामवती :- काका क्या देख रहे है,मुझे शर्म आ रही है जल्दी कीजिये
असलम खुद को संभालता है उसके पास वक़्त नहीं था...वो अपना सर कामवती की गांड के पास ले जाता है तो उसे गुदा छिद्र पे तो बिंदु दीखते है...ओह्ह्ह...तो यहाँ काटा है सांप ने?
कामवती :- दिखा काका..अब तो दिख गया ना जल्दी इलाज करो.
असलम का दिमाग़ दौड़ने लगा "यही मौका है असलम"
अब भला कोई मर्द ऐसी गांड को देखे और स्वाद ना ले ऐसा भला हो सकता है
वही असलम के साथ था उसके विचार उसके वादे जो खुद से ही थे की "देखेगा और कुछ नहीं करेगा " सब धाराशयी हो गए.
वो अपना एक हाथ कामवती की गांड पे रख के एक तरफ खिंचता है.
आअह्ह्ह....काका क्या कर रहे है?
असलम :- कामवती सांप ने काटा है तो जहर भी होगा,जहर चूसना पड़ेगा.
कामवती ने गांव मे सुना तो था की सांप काट ले तो जहर चूस के निकाला जाता है परन्तु कही ओर से चूसना और गुदा छिद्र से चूसने मे अंतर है.
"लेकिन काका वहा से कैसे चूस सकते है? गन्दी जगह है वो!
असलम तो अंदर ही अंदर कामवासना मे मरा जा रहा था उसे तो वो कामुक कुंवारा छेद दिख रहा था
मज़बूरी दिखाते हुए "कोई बात नहीं कामवती मै डॉक्टर हूँ मेरा फर्ज़ है लोगो की जान बचाना उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े.
हवस मे डूबा इंसान क्या नहीं करता कल तक भोला भला डॉ,असलम जो औरतों के साये से भी घबराता था आज स्त्री सुख के लिए प्रपंच कर रहा था साफ साफ मित्र घात कर रहा था.
कामवती की आंखे कर्तघ्यता से भर आई थी उसके दिल मे असलम के द्वारा किये जाने वे अहसास ने जगह बना ली.
कामवती आंखे बंद कर अपनी गांड को और ज्यादा उभार देती है.
डॉ.असलम अपने दोनों हाथ कपकपाते हुए कामवती के दोनों पहाड़ो पे रख देता है और उन्हें एक दूसरे के विपरीत दिशा मे खिंच देता है...
आअह्ह्ह....क्या कोमल अहसास था एक दम चिकनी मुलायम चमड़ी उस पे से कामुक कुंवारी मादक गंध.
"अब सब्र नहीं कर सकता " सोच के अपनी नाक गांड के छेद पे रख तेज़ सांस खींचता है.
शनिफ्फफ्फ्फ़...असलम के बदन मे आग लग गई थी उसकी जबान अपने कटोरे से बाहर निकल गुदा छिद्र पे रगड़ खां जाती है...
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आअह्ह्ह....असलम काका गिला लग रहा है गुदगुदी हो रही है.
कामवती जो की ये अहसास पहली बार ले रही थी उसकी घिघी बंध गई थी इस गीलेपन और जीभ के खुर्दरे पन से.
उसे एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती है अब ये आनंद क्या था...इस से अनजान थी कामवती.
तभी असलम अपने काले होंठो को गोल कर के कामवती के लाल गुदा छिद्र पे टिका देता है और जोर से खींचता है जैसे वाकई जहर चूस रहा हो...कामवती आंखे बंद किये कसमसाने लगती है.

यहाँ कसमसाहट जारी थी
और वही हवेली के नीचे तहखाने मे भी कुछ कसमसा रहा था.
कुछ तो था जो उस सुनसान अंधकार से भरे तहखाने मे कुलबुला रहा था.
धड़...धड़...धाड़....धाड़....जैसे कोई दिल धड़क रहा हो.
धीरे धीरे ये आवाज़ बढ़ने लगी थी....इसी आवाज़ मे सररररर....सररररऱ....की आवाज़ भी शामिल हो चली जैसे कोई जोर जोर से सांस ले रहा हो.
आआहहहह....तभी तहखाने की शांति एक हलकी से आह के साथ पूरी तरह भंग हो जाती है.
तेज़ प्रकाश से तहखाना चमकने लगता है,ये प्रकाश मंगूस की खुलती बंद होती उंगलियों के बीच से आ रहा था
मंगूस की उंगलियां हिल रही थी.
उसका दिल वापस बन चूका था, फेफड़े वापस सांस फेंक रहे थे.मंगूस ने एक दम से आंखे खोल दी जैसे कोई सपना देखा हो ऐसे हड़बड़ाया.
वाह्ह्ह.....मै कामयाब रहा,मंगूस कामयाब रहा मेरी आखरी योजना ने बचा लिया मुझे.
मंगूस उठ बैठा..उसका शरीर वापस बनने लगा था उसकी चमड़ी उसके कंकाल पे चढ़ती जा रही थी उसकी ताकत वापस आ रही थी,रगो मे खून दौड़ता महसूस हो रहा था.
नागमणि उसकी मुट्ठी मे बंद उसी सोखी गई सभी चीज वापस लौटा रही थी.
मंगूस उठा खड़ा हुआ"मेरा सोचना सही था नागेंद्र एक सांप है एक सांप ही नागमणि को उठा सकता है अच्छा हुआ की मैंने नीचे आते वक़्त नागेंद्र की केंचूली देख ली थी वही हाथ मे लपेट नागमणि उठा ली मैंने "
मंगूस यु ही शातिर नहीं था कामखा ही कुख्यात नहीं था पक्का चोर था.
खुशी के मारे मंगूस होने दोनों हाथ ऊपर उठाये ठहाका लगा देता है.
हाहाहाहाहाहाहाहा.......कामयाबी....हाहाहाहाहा...
तभी
टननननन न.... कोई भरी चीज मंगूस की खोपड़ी से टकराती है उसकी हसीं थम जाती है और उसकी जगह एक दर्द की लहर उसके चेहरे पे दौड़ जाती है.
नागमणि हाथ से छूट के दूर गिर गई...मंगूस अपना सर पकड़े वापस धरती पे गिरता चला गया.
हाथ मे लिपटी केंचूली किसी शख्स ने उतार ली...और अपने हाथ मे लपेट नागमणि उठाये मंगूस के सामने खड़ा ही गया.
हाहाहाहाहाब........मान गए तुम्हे महान चोर मंगूस जिस तिलिस्म का तोड़ तांत्रिक उलजुलूल के पास भी नहीं था उस तिलिस्म को तुमने तोड़ नागमणि हथिया ली. मौत को भी मात दे गए.
वाह...वाह...लेकिन बदकिस्मती मुझसे ना बच सके.
मंगूस दर्द से करहाता उस साये देखता रहा जो किसी स्त्री का था भू...भू....भू....ईई...तुम और ना बोल सका बेहोशी के गर्त मे खो गया चोर मंगूस.

बने रहिये...कथा जारी है...
 
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Nevil singh

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चैप्टर -3 नागमणि की खोज अपडेट -47

काली पहाड़ी स्थित गुफा मे
तांत्रिक :- नक्शा ढूंढो नागमणि भी मिल जाएगी,और एक बात नागमणि किसी तिलिस्म मे कैद है उसे निकलने की कैशिश की गई तो शरीर के प्राण खींचते चले जायेंगे तिलिस्म मे.
तो मेरी प्यारी कामरूपा नागमणि हासिल करने की जिद छोड़ दो, मेरे पास लौट आओ संसर्ग का आनंद लो तांत्रिक अभी भी कामरूपा की गांड को ललचाई नजरों से देख रहा था.
कामरूपा तांत्रिक की बात सुन आगबबूला हो जाती है,
दूर हट मुझसे नीच आदमी.. मुझे हमेशा जवान रहना है.
धिक्कार है ऐसे तपस्वी पे जिसे अपने अंगों पे जरा भी नियंत्रण नहीं है,मुझे नंगा देख लार टपकाने लगा.... लानत है तुझपे
कामरूपा गुस्से मे भरी तांत्रिक के अहम् पे चोट कर रही थी.
तांत्रिक को ये शब्द किसी नाश्तार की तरह चुभते महसूस होते है उसका सारा जोश सारी कामवासना ठंडी पड़ जाती है.
उसका मन आत्मगीलानी से भर जाता है उसे पछतावा होने लगता है की वो क्यों अपने अंगों अपनी भावना को नियंत्रण नहीं कर सका.
कामरूपा :- मै वो नागमणि हासिल कर ही मानुँगी.
तांत्रिक अपनी दुर्बलता का जिम्मेदार कामरूपा को मानता है उसने ही इतने सालो बाद आ के उसकी कामइच्छा को जाग्रत किया और अब बिना सम्भोग सुख दिए ही जाने को तैयार थी.
तांत्रिक :- ठहर जा दुष्ट औरत आज तूने जिस तरह मुझे काम अग्नि मे जलता छोड़ दिया है उसी प्रकार तू भी जिंदगी भर काम अग्नि मे जलती रहेगी तेरी हवस कभी शांत नहीं होंगी.
जीतना सम्भोग करेगी उतनी ही इच्छा बढ़ती रहेगी ये मेरा श्राप है.
गुस्से से भुंभूनाया तांत्रिक कामरूपा को श्राप दे देता है.
कामरूपा पे उसके बोल का कोई फर्क नहीं पड़ता वो अपनी गांड मटकाती गुफा से बाहर कूच कर जाती है.
"साला उलजुलूल जिसे खुद पे नियंत्रण नहीं उसका श्राप मेरा क्या बिगाड़ेगा "
मुझे जल्द से जल्द हवेली पहुंचना होगा.


सुबह की पहली किरण फुट पड़ी थी.
दूर शहर मे सुलेमान ने रात भर कालावती की गांड चुत जम के पेली थी. ऐसे चोदा था जैसे उसकी चुदाई की आखरी रात हो.
कभी चुत मरता तो कभी गांड रात भर चली चुदाई से कलावती की गांड पूरी खुल गई थी.
ना जाने कितनी बार झड़ी थी इस रात मे, उसकी गांड और चुत सुलेमान के वीर्य से पूरी भरी हुई थी,
सुलेमान अभी भी अपने लंड से चुत को थप्पड़ मार रहा था,कालावती फिर से भलभला के झड़ने लगी उसकी चुत से पानी का फववारा निकाल के उसके कामुक पसीने से तरबतर बदन को भीगाने लगा.
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कालावती के कहे अनुसार सुलेमान उसकी गांड इतनी चौड़ी कर चूका था की दरोगा पूरा उसमे घुस जाता.
पूरी तरह थकी निचूड़ी,निढाल कालावती नींद की आगोश मे सामाती चली गई.

अब पूरी तरह सुबह हो चुकी थी लाल सूरज क्षितिज पे नजर आने लगा.
सर....सर...सर.... उठिये सर क्या हुआ है आपको
पानी लाओ कोई
पुलिस चौकी मे एक हवलदार दरोगा वीरप्रताप को उठाने की कोशिश कर रहा था.
तभी कोई पानी ले आया,हवलदार ने दरोगा के मुँह पे पानी के छींटे मारे
दरोगा अपनी आंखे टीमटीमाने लगा..आअह्ह्ह... रामलखन लगता है कल रात ज्यादा ही पी ली.
आअह्ह्ह....करता दरोगा सर पे हाथ रखे उठने की कोशिश करता है उसका माथा भन्ना रहा था.
रामलखन :- दरोगा साहेब जल्दी उठिये गजब हो गया है.
दरोगा :- क्या गजब हो गया है? जा पहके निम्बू पानी बना ला सर भन्ना रहा है.
रामलखन:- मालिक रंगा फरार हो गया है, अब हम सब की मौत निश्चित है सर.
रामलखान के चेहरे पे दहाशत साफ नजर आ रही थी...
क्या...बक रहे हो रामलखन दरोगा भागता हुआ कमरे से बाहर निकाल जाता है बाहर हवालत खाली था,तले मे चाभी लगी हुई थी.
ये..ये...चाभी यहाँ कैसे आई ये तो मेरी जेब मे रहती है.
तभी कल रात का सारा दृश्य उसकी आँखों के सामने नाच जाता है,उसके होश उड़ते चले जाते है.
हे...भगवान इतनी बड़ी साजिश, दरोगा खुद को थप्पड़ मरने लगता है छत्तताक्क्क...चटाक...सब मेरी गलती है
चटाक....मै हवस मे डूब गया था.
सर...सर....क्या कर रहे है आप होश मे आइये रामलखन दरोगा के हाथ पकड़ लेता है.
और उसे सहारा देता अंदर कुर्सी पे बैठा देता है,दरोगा उसी कुर्सी पे बैठा तबै जहा रुखसाना बैठी थी
दरोगा दुख और पछतावे से अपना सर टेबल पे झुका देता है उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करे तभी उसकी नजर टेबल के निचे रखे गमले पे पड़ती है उसकी मिट्टी गीली थी.
दरोगा मिट्टी को हाथ लगता है और उसे सूंघता है उस मिट्टी से शराब की तेज़ गंध आ रही थी.
"ओह इसका मतलब कल रात उस औरत ने मुझे पूरी तरह मुर्ख बना दिया,उसने शराब पी ही नहीं यहाँ गमले मे गिरा दी और मै बेवकूफ समझता रहा की शिकार फस गया है जबकि मै खुद शिकार हो गया.लानत है मुझपे लानत है."
दरोगा पूरी तरह टूट गया था उसकी आँखों मे पछताप के आंसू थे आंखे नशे और दुख से लाल थी सर फटा जा रहा था.
"रामलखन मुख्यालय मे खबर भिजवा दो की हम नाकामयाब रहे रंगा फरार हो गया है"

उधर चोर मंगूस उड़ता हुआ हवेली पहुंच गया था उसे जलन सिंह का कमरा ढूंढने मे जरा भी वक़्त नहीं लगा उसने वो नक्शा हासिल कर लिया..उसके चेहरे की रौनक बता रही थी की वो मंजिल के करीब है. लेकिन मंजिल पे मौत खड़ी है उसे पता नहीं था,काश वो तांत्रिक की पूरी बात सुन लेता.

मंगूस कामयाब होगा?
या कामरूपा रोक देगी मंगूस को?
तांत्रिक का श्राप सच साबित होगा?
बने रहिये कथा जारी है...
Nice update dost
 

Nevil singh

Well-Known Member
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चैप्टर -2 नागमणि की खोज अपडेट -48

सुबह की किरण आलीशान कमरे मे सोती कामवती पे पड़ रही थी आंखे मीचमीचाती स्वर्ग की अप्सरा अंगड़ाई लेते उठ बैठती है कल की रात भी उसकी बिना सम्भोग के ही निकली ठाकुर फिर से नाकामयाब रहा था,
कमरे मे एक कोने मे सिमटा हुआ नागेंद्र अपनी हुस्न परी को निहार रहा था "कितनी सुन्दर है कामवती आह्हः..."
कामवती बिस्तर से उठ खड़ी होती है और कमरे से बाहर निकाल भूरी काकी को आवाज़ देने लगती है काकी... भूरी काकी...
लेकिन कोई जवाब मिला.
"लगता जी कही बाहर गई है मुझे अकेले ही जाना होगा गुसालखाने "
ऐसा विचार कर कामवती घर के पिछवाड़े चल पड़ती है. नागेंद्र ये मौका कैसे गवा सकता रहा वो भी धीरे से कामवती के पीछे सारसरा जाता है.
गुसालखाने मे पहुंच के कामवती धीरे से अपना लहंगा उठा देती है,गोरी गांड की चमक फ़ैल जाती है जो की नागेंद्र की आँखों को चकाचोघ कर रही थी.
क्या खूबसूरत और मुलायम अंग थे कामवती के कही कोई दाग़ नहीं कही कोई बाल नहीं.
कामवती धीरे से पैरो के बल बैठ जाती है तभी पिस्स्स्स..... सुरररररर....करती एक तेज़ सिटी बज जाती है.
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कामवती की चुत से तेज़ पेशाब की धार फुट पड़ती है.
कामवती सुकून से आंखे बंद कर लेती है आअह्ह्ह.....उसके चेहरे पे सुकून का भाव था.
कामवती की चिकनी पानी छोड़ती चुत नागेंद्र के सामने थी "यही मौका है मुझे कामवती की चुत का चुम्बन लेना होगा "
ऐसा सोच वो कामवती की तरफ बढ़ जाता है परन्तु जैसे ही वो अपना फन उठाता है कामवती भी थोड़ा सा उठ जाती है उसका पेशाब हो चूका था...नतीजा नागेंद्र का फन कामवती की गांड के छेद पे पड़ता है.
कामवती एक तीखे दर्द से मचल जाती है.....और जैसे ही निचे देखती है एक काला भयानक सांप उसके दोनों पैरो के बीच फन फैलाये फुफकार रहा था....आआहहहहह....
बचाओ...बचाओ करती कामवती डर से वही बेहोश हो जाती है.
कामवती की ये चीख हवेली मे हर किसी ने सुनी...एक साथ कई सारे कदमो की आहट गुसालखाने की और आने लगी.
नागेंद्र :- साला दिन ही ख़राब है बोलता वही कही छुप जाता है.
ठाकुर ज़ालिम सिंह चीखता हुआ अंदर प्रवेश करता है
"क्या हुआ...क्या हुआ...कामवती तुम चिखी क्यों परन्तु जैसे ही उसकी नजर कामवती पे पड़ती है उसके होश फकता हो जाते है कामवती निढाल बेजान जमीन पे पडी थी.
अरे हरामखोरो कहाँ मर गए सब के सब....ठाकुर गुस्से से चिल्ला पड़ता है.
तभी रामु कालू बिल्लू तीनो गुसालखाने मे घुसे चले आतेहै....
ठाकुर :- सालो हरामजादो..कहाँ मर गए थे ये देखो तुम्हारी ठकुराइन को क्या हो गया है?
कोई इसे उठाओ कमरे मे ले चलो...कोई डॉ.असलम को भुलाओ.....भूरी कहाँ है उसे बुलाओ.
ठाकुर बदहवस चिल्लाये जा रहा था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
रामु तुरंत बाहर को डॉ.असलम के घर की और दौड़ पड़ता है.
कालू बिल्लू कामवती को हाथ और पैर से पकड़ के उठाने की कोशिश करते है परन्तु कालू पैर की तरफ था जहा कामवती का लहंगा जाँघ तक ऊपर चढ़ा हुआ था...कालू ने इनती चिकनी और गोरी जाँघे कभी नहीं देखि थी वो उस जाँघ को छूने के लिए तरस उठा...जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया
सालो हराम खोरो सोच क्या रहे हो जल्दी उठाओ ठकुराइन को वरना मार मार के भूसा भर दूंगा खाल मे.
कालू को तुरंत होश आया दोनों ने संभाल के कामवती को उठाया और ठाकुर के कमरे मे बिस्तर पे लेटा दिया.
ठाकुर :- डॉ.असलम आये या नहीं....निक्कमो बुलाओ उन्हें
और भूरी काकी कहाँ है ढूंढो उसे.
कालू :- मालिक रामु गया है डॉ.साहेब के पास आता ही होगा. हम भूरी काकी को ढूंढ़ लाते है सुबह से ही नहीं दिखी...
कालू बिल्लू कमरे से बाहर निकल जाते है.
वही चोर मंगूस इन सब बातो से बेखबर नक़्शे मे दिखाए अनुसार तहखाने की ओर बढ़ चलता है,तहखाने का रास्ता हवेली के पीछे स्थित एक खंडर से जाता था,खंडर गंदगी और घाँस फुस से भरा हुआ था,मंगूस पसीने पसीने हो चूका था की तभी उसे जमीन मे बना एक छोटा सा झरोखा दीखता है,वहा की घाँस हटाने लगता है अब झरोखा एक दरवाजे की शक्ल मे प्रकट हो गया था उसपे एक जंग लगा ताला पडा हुआ था जो मंगूस के एक ही प्रहार से शहीद हो गया...
मंगूस दरवाजा खोल देता है अंदर से एक तेज़ बदबूदार सीलन की महक उसके नाथूनो मे घुस जाती है तहखाना बरसो से बंद था,उसकी बदबू नाकाबिले बर्दास्त थी अंदर सम्पूर्ण अंधकार छाया हुआ था,
कोई आम आदमी होता तो उसकी रूह फना हो जाती इस मंजर को देख के परन्तु ये मंगूस था महान कुख्यात चोर मंगूस जिसने एक बार चोरी की ठान ली मतलब चोरी हो कर रहेगी.
मंगूस मुँह पे कपड़ा बाँधे एक लकड़ी पे ढेर सारी घाँस और अपनी कमीज खोल के बाँध लेटा है और उस लकड़ी को मसाल की तरह जाला लेता है.
और गीली लिसलिसी काई से भरी सीढ़ी उतरता जाता है अंदर इतना अंधेरा था की हाथ को हाथ सुझाई ना दे...जैसे कोई पाताल हो.
ना जाने मंगूस कितनी सीढिया उतर चूका था,हद
डर और उन्माद से उसकी धड़कने तेज़ तेज़ चल रही थी की तभी उसका पैर किसी समतल धरातल पे पड़ता है मंगूस तहखाने के तल तक पहुंच गया था.

अब नागमणि दूर नहीं है,लेकिन क्या इस नागमणि की कीमत चोर मंगूस की मौत होंगी?

चैप्टर -3 नागमणि की खोज समाप्त

चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म
आरम्भ


बने रहिये कथा जारी है...
Jakash update mitr
 

Nevil singh

Well-Known Member
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चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -49

हवेली मे कोहराम मचा हुआ था,ठाकुर ज़ालिम सिंह बदहवास इधर उधर टहल रहा था.
क्या हुआ ठाकुर साहेब...क्या हुआ...इतनी जल्दी मे क्यों बुलवा भेजा? डॉ.असलम कमरे मे दाखिल जोते हुए बोला.
ठाकुर :- असलम..असलम मेरे भाई ये देखो कामवती को क्या हो या है? आज सुबह गुसालखाने गई थी वहा से चीखने की आवाज़ आई हम लोग पहुचे तो ये बेहोश पडी थी.
असलम तुरंत कामवती के बगल मे बैठ जाता है उसका हाथ पकड़ नब्ज़ टटोलने लगता है सब कुछ ठीक था सांसे और नब्ज़ दोनों बराबर थी
"सब कुछ ठीक है फिर कामवती को हुआ क्या है?" असलम मन ही मन सोचने लगा.
वही कमरे मे छुपा बैठा नागेंद्र भी चिंतित था उसे समझ नहीं आ रहा था की कामवती बेहोश क्यों हो गई जबकि उसके पास तो जहर ही नहीं बचा है ऊपर से योनि पे चुम्बन करना था और हो गया गुदा छिद्र पे.
मुझे अगला मौका ढूंढना होगा.
डॉ.असलम पानी के कुछ छींटे कामवती के मुँह पे मारता है,
कामवती कस मसाती आंखे खोल देती है,उसकी गुदा छिद्र पे अभी भी दर्द था भले ही नागेंद्र मे जहर नहीं था परन्तु उसके दाँत बराबर चुभे थे.
कामवती दरी सहमी चारो और देखती है.... और चिल्ला पड़ती है सांप....सांप....सांप... काला भयानक सांप...
सभी लोगो को सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है.
ठाकुर दौड़ के कामवती के पास आता है उसे संभालता है.
ठाकुर :- कहाँ है सांप कामवती....सांप ने क्या किया? कही काटा तो नहीं.
कामवती बदहवस बिलखने लगती है "ठाकुर साहेब मै मरना नहीं चाहती...वो वो...वो.... काला भयानक सांप था उसने मुझे काट लिया है.
ये सुन ना था की ठाकुर की गांड ही फट गई उसके हाथ पैर ढीले पड़ने लगे.
ठाकुर :- कहाँ काटा है सांप ने तुम्हे बताओ हमें....बताओ.
कामवती बिलकुल चुप थी....अब कैसे कहे की गांड पे काटा है "भूरी काकी कहाँ है उन्ह्र बुलाओ "
ठाकुर और असलम को समझ ही नहीं आता की कामवती,भूरी काकी को क्यों बुलवाना चाहती है
स्त्री सुलभ संकोच था कामवती मे वो ऐसी बात किसी पुरुष को कैसे बताती,स्त्री को ही बताया जा सकता था.
तभी कमरे मे कालू बिल्लू भी पहुंच जाते है
कालू :- मालिक भूरी काकी कही नहीं है,पूरी हवेली छान मारी आस पास भी देख लिया लोगो से पूछा भी परन्तु भूरी काकी कही नहीं है..
ठाकुर:- गुस्से मे लाल पीला हो रहा था ऐसे कैसे कहाँ चली गई? काकी आजतक बिन बोले कही नहीं गई.
ये हो क्या रहा है हवेली मे....
असलम जो अभी तक चुप बैठा था उसने बारीकी से कामवती का परीक्षण कर लिया था...कही से भी कोई सांप कटे का नमो निशान नहीं था, ना कोई जहर फैलने का निशान.
सांप जहरीला होता तो कामवती अब तक बेहोश ही हो जाती.
फिर भी उसे कुछ शंका थी...
डॉ.असलम :- ठाकुर साहेब शांत हो जाइये आप चिंता ना करे इलाज है मेरे पास.
हमें उसी सांप को ढूंढना होगा जिसने कामवती को काटा है उसके ही जहर से दवाई बनेगी.
जब तक मै अपनी तरफ से जहर उतरने की कोशिश करता हूँ.....ना जाने असलम को क्या विचार आ रहा था.
कुछ तो अलग था उसके दिमाग़ मे...
कामवती :- ठाकुर साहेब मेरी माँ को बुलावा भेजिए...मै मरते वक़्त उन्हें देखना चाहती हूँ.
कामवती अति डर से पगला गई थी उसे लग रहा था की वो मर रही है.
जबकि असलम को पता था की ऐसा कुछ नहीं है.
ठाकुर :- हरामखोरो अभी तक यही खड़े हो सुना नहीं ठकुराइन क्या बोली....
बिल्लू तू कामगंज जा और ठकुराइन के माँ बाप को लिवा आ.
और कालू रामु मेरे साथ चलो आज सके उस सांप की खेर नहीं....मिल गया तो मौत के घाट उतार दूंगा.
मेरी कामवती को काटता है... ठाकुर आज रोन्द्र रूप मे था कालू रामु चुप चाप उसके पीछे कमरे से बाहर निकल जाते है.
कोने मे बैठा नागेंद्र की भी घिघी बंध गई थी..
"अबे ये तो दाँव ही उल्टा पड़ गया..इन हरामियों के हाथ लग गया तो मार मार के कचूमर बना देंगे, तहखाने ने जाने मे ही भलाई है"
नागेंद्र सबकी नजर बचा के निकल जाता है तहखाने की ओर....
वही तहखाना जहा मंगूस आपने कदम रख चूका था, घोर अंधेरा छाया हुआ था मसाल की रौशनी भी नाकाफी थी..
मंगूस नागमणि को ढूंढने लगा उसके दिमाग़ मे लगातार विचार चल रहे थे. उसे तहखाने के एक कोने मे कुछ हलचल सी महसूस होती है जैसे कोई रौशनी चालू बंद जो रही हो.
वो उस ओर बढ़ जाता है घास फुस का खूब ढेर था उसी के निचे से कभी रौशनी आती तो कभी गायब हो जाती..मंगूस के पास वक़्त नहीं था वो जल्दी जल्दी घाँस हटाने लगा..जैसे ही पूरी घाँस हटी पूरा तहखाना तेज़ रौशनी से जगमगा उठा, निचे एक चमकली सी चीज लकड़ी के पाटे पे रखी थी...
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आआआहहहह....तो ये है वो नायब नागमणि अनमोल बेशकीमती नागमणि.
मंगूस ख़ुशी से उछल पडा उसके जीवन की सबसे नायब चोरी उसके सामने थी,उस नागमणि की चमक ने उसे अंधा बना दिया था आँख से भी और अक्ल से भी, नागमणि की चमक ऐसी थी की सिर्फ नागमणि ही दिख रही थी उसके आस पास क्या है इसका कोई अनुमान नहीं था.
खुशी के मारे मंगूस हाथ आगे बढ़ा देता है....परन्तु जैसे ही वो नागमणि को पकड़ता है उसके गले से एक घुटी चीख निकल जाती है लगता था जैसे उसके प्राण खींचते चले जा रहे हो,शरीर का सारा खून मणि मे समाता चला जा रहा था.
मांगूस की मौत निश्चित थी..यही वो तीलीस्म था जो नागमणि की रक्षा करता था.
तभी उसे एक भयानक झटका लगता है वो मणि से दूर फिंक जाता है,उसका बेजान शरीर कठोर जमीन से टकरा जाता है,
उसमे तो चीखने की ताकत भी नहीं थी, खून का एक कतरा नहीं बचा था, गाल और आंखे अंदर को धंस गई थी, पासलियो की हड्डी बाहर दिखने लगी थी, बदन की चमड़ी धीरे धीरे गल रही थी.
धीरे धीरे उसका शरीर किसी कंकाल मे तब्दील हो रहा था.
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बिलकुल चित्त जमीन पे पडा था महान चोर मंगूस...बिलकुल लाचार अपनी मौत का इंतज़ार करता हुआ, आंखे धीरे धीरे बंद होती चली गई.

तो क्या यही है चोर मंगूस का अंत?😔😪
डॉ.असलम के दिमाग़ मे क्या है?
कथा जारी है....
Bejode update dost
 

Nevil singh

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बिल्लू कामगंज के लिए निकल गया था उसे जल्दी से जल्दी कामगंज पहुंच के रतिवती को ले आना था.
उधर हवेली मे असलम के चेहरे पे मुस्कुराहट थी,बिल्लू रतिवती को लेने गया था वो रतिवती जिसने कामसुःख से असलम का परिचय करवाया था...तभी कामवती की आवाज़ से उसकी तंन्द्रा भंग होती है.
कामवती :- असलम काका क्या सोच रहे है....मै बच तो जाउंगी ना? मुझे अभी मरना नहीं है.
असलम :- हाँ कामवती मै हूँ ना पहले तो शांत हो जाओ बिलकुल,जीतना हड़बड़ाओगी जहर उतना ही चढ़ेगा.
और पूरी बात बताओ मुझे.
कामवती सब्र लेती है शांत हो जाती है.....काका...वो..काका....सांप मे मेरे वहा काटा था.हाथो से इशारा करती है.
असलम :- कहाँ कामवती पैर मे?
कामवती :-नहीं काका पैर पे नहीं...इससससस....अब कैसे बताऊ कामवती थोड़ा झुंझुला जाती है.
असलम :- शर्माओ मत मै डॉक्टर हूँ उसके बाद ठाकुर का दोस्त और तुम्हारा काका.
कामवती :- काका मै सुबह पेशाब करने बैठी थी तो वहा काटा
असलम :- वहा कहाँ योनि पे?
कामवती :- नहीं काका गांड पे इससससस.... बोल के दर्द मे भी शर्मा जाती है उसने पहली बार गांड शब्द कहाँ था.
असलम तो ये सुन के ही बेहोश होने को होता है उसके होश उड़ जाते है...काटो तो खून नहीं.
उसके दिल मे पाप नहीं था ना हिम्मत थी क्युकी वो ठकुराइन थी उसके दोस्त ठाकुर ज़ालिम सिंह की बीवी.
कामवती :- असलम काका कुछ कीजिये मै मर जाउंगी मुझे चक्कर आ रहे है.
असलम एक बार को सोचता है की सच कह दे की कोई जहर है ही नहीं...परन्तु ना जाने क्यों उसके दिल मे पाप जन्म ले रहा था.
रतिवती और रुखसाना की चुत लेने के बाद उसे सम्भोग की लत सी लग गई थी,उसने अपना आधा जीवन बिना सम्भोग के ही निकल दिया था.अब सौंदर्य दर्शन या सम्भोग का कोई भी मौका वो छोड़ना नहीं चाहता था.
असलम खुद को ही समझा रहा था " मुझे सम्भोग थोड़ी ना करना है,बस देखूंगा की कही कोई जख्म तो नहीं है ना ऐसा सोचते ही उसके दिमाग़ मे रुखसाना के साथ हुई चुदाई के दृश्य छा जाते है उसे भी इसी बहाने से चोदा था असलम ने "
कामवती :- किस सोच मे खो गए काका,मै मरी जा रही हूँ और आप पता नहीं कहाँ खोये हुए है.
असलम :- वो...वो....मै...मै कुछ नहीं..मुझे देखना होगा की कहाँ काटा है? जख्म कितना है?
असलम हकलाता हुआ बोल गया उसके सीने मे पाप का बीज उग आया था.
वो मित्रघात करने पे उतारू था.
आखिर कामवती थी ही इतनी सुन्दर सुडोल को कोई कैसे रोकता खुद को.
वैसे भी असलम का मनना था की सिर्फ देख लेने से कुछ नहीं होता वो आगे नहीं बढ़ेगा.
असलम :- कामवती पेट के बल लेट जाओ
कामवती सकूँचा रही थी की कैसे किसी पराये मर्द के सामने वो अपना अनमोल खजाना रख दे.
असलम उसकी दुविधा को समझ गया "शर्माओ मत कामवती इस वक़्त मे सिर्फ डॉक्टर हूँ,जब जान पे बनी हो तो ये सब करना पड़ता है.
कामवती सहमति मे सर हिला देती है और करवट बदल के पेट के बल लेट जाती है.
उभरी हुई गांड लहंगे के ऊपर से ही छटा बिखेर रही थी
असलम मन मे "क्या गद्देदार गांड है अपनी माँ से भी बढकर है ये"
असलम अपने हाँथ से लहंगा पकड़ के उठाने लगता है गोरे चिकने पैर चमक रहे थे,असलम की सांसे तेज़ हो रही थी
जैसे जैसे वो लहंगा उठता आश्चर्य से मुँह खुला रहा जाता कोमल नाजुक त्वचा असलम के काटजोर हाथ पे महसूस हो रही थी, कठोर हाथ का स्पर्श कामवती को भी हो रहा था परन्तु उसे कुछ कुछ गुदगुदी जैसा लग रहा था.
कामवाती का लहंगा गांड की जड़ तक पहुंच गया था बस आखरी पायदान था गोरी चिकनी मोटी जाँघ असलम.के सामने उजागर थी,अब सब्र करना मुश्किल था वो एक दम से कहना कमर तक उठा देता है...
या अल्लाह.....उसका मुँह खुला का खुला रह जाता है.
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एक दम चिकनी बड़ी से बिलकुल गोल कसी हुई गांड उसके सामने थे दोनों पाट आपस मे चिपके हुए थे.
लगता था जैसे असलम की धड़कन ही रुक गई है,वो वही जम गया था आंखे पथरा गई थी उसकी आँखों मे चमकती गांड ने सम्मोहन कर दिया था,प्राण निकलने को थे.

प्राण तो निचे तहखाने मे मंगूस के भी निकल रहे थे,शरीर गल रहा था आंखे बंद थी...सिर्फ दिमाग़ जिन्दा था मंगूस लगातार सोच रहा था हार मानने को अभी भी तैयार नहीं था.
"मै मर नहीं सकता,बिना चोरी के कैसे मर जाऊ दुनिया थूकेगी मुझ पे,
आखिर ये तीलीस्म कैसा था? वो नागेंद्र भी तो अपनी मणि छूता होगा उसको तो कुछ नहीं होता आखिर क्यों?
मरते मरते भी मंगूस चोरी का ही सोच रहा था सच्चा चोर था मंगूस आखिरकार.
समझ गया इस तिलिस्म का तोड़ जब मरना ही है बिना लड़े नहीं मरूंगा एक आखिरी कोशिश करनी होंगी मुझे..मुझे उठना होगा.....उठना ही होगा
चोर मंगूस अपनी सारी इच्छाशक्ति जूटा के उठ खड़ा होता है.
ये भयानक मंजर कोई देख लेता तो प्राण त्याग देता.
उसके बदन से मांस टूट टूट के गिर रहा था,शरीर की हड्डिया दिख रही थी...वो हिम्मत जूटा के अपने कदम बढ़ा देता है.
उसका विक्रत सड़ा गला शरीर नागमणि के प्रकाश मे नहा रहा था.
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परन्तु ये क्या....मंगूस नागमणि की तरफ नहीं बढ़ रहा था अपितु दूसरी दिशा मे जा रहा था जहा बाहर जाने का रास्ता था.
तो क्या मंगूस ने मौत स्वीकार कर ली थी?
वो भाग जाना चाहता था?
असलम की उत्तेजना क्या अंजाम लाएगी?
बने रहिये कथा जारी है...
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Nevil singh

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इन सब घटना कर्म से दूर दिल्ली मे.
पुलिस मुख्यालय
वेलडन इंस्पेक्टर काम्या तुमने सफलता पूर्वक रामगढ मे फैले डाकुओ के आतंक को ख़त्म के दिया, मै तुम्हारे काम की आगे भी सिफारिश करूंगा.
तुम चाहो तो अब कुछ वक़्त के लिए छुट्टी ले सकती हो तुम्हे भी आराम की आवशयकता है.
इंस्पेक्टर काम्या :- धन्यवाद कमिश्नर साहेब ये तो आपका बड्डपन है और चोर डाकुओ का खात्मा करना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है.

ये है इंस्पेक्टर काम्या
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चालक लोमड़ी को तरह शातिर बुद्धिमान,जैसे को तैसा हिसाब रखने वाली
आज तक कोई भी डाकू चोर इसकी गिरफ्त से नहीं बच सका है
साम दाम दंड भेद सारे तरीके आजमाने जानती है.
इसका बदन बिलकुल जानलेवा है छाती हमेशा तानी रहती है जो की अपनी आकर की खुद गवाह है
कमर बिलकुल पतली और गांड ऐसी भयंकर की जो देख ले एक बार मे झड़ जाये.
अच्छे अच्छे चोर डाकू इसके नाम से ही काँपते है.
इसकी सिर्फ एक ही कमजोरी है इसकी हवस,कामवासना इसे अपनी चुत पे जरा भी नियंत्रण नहीं है कभी भी बहने लगती है.
लेकिन अभी तक ये अपनी कमजोरी को ताकत ही बनाती आई है.
ना जाने कितने चोर उच्चकों के साथ सम्भोग किया है,अपने यौवन के जाल मे फसा के मौत के घाट उतार दिया इसकी तो गिनती ही नहीं है.
आज रामगढ से डाकुओ को खत्म कर मुख्यालय लोटी थी
कमिश्नर शाबाशी दे ही रहा था की.....
ठक ठक ठक.....
कमीशनर कौन है? आ जाओ
हवलदार बहादुर रिपोर्टिंग सर!
हवलदार बहादुर नया नया भर्ती हुआ है पुलिस मे नाम बहादुर और अव्वल दर्जे का डरपोक, दिखने मे जोकर जैसा,दुबला पतला सा हलकी पतली मुंछे रखता है,ना जाने कैसे पुलिस मे भर्ती हो गया.
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अभी शादी नहीं की है...औरतों से डर लगता है जनाब को.
कमिश्नर :- क्या हुआ बहादुर?
बहादुर :- जनाब ********* आया है थाना विष रूप से कुख्यात डाकू रंगा वहा की जेल से फरार हो गया है, और सुनने मे आया है की बिल्ला भी जिन्दा देखा गया है, ऊपर से चोर मंगूस अभी भी आज़ाद है.
कमिश्नर एक सतब इतनी सारी बुरी खबर सुन आग बबूला हो गया...
क्या बकते हो बहादुर....इतनी बड़ी नाकामी कालिख पोत दी पुलिस डिपार्टमेंट के मुँह पे.
बहादुर सर झुकाये खड़ा रहा....
कमिश्नर गहरी सोच मे डूबा हुआ था कमरे मे सन्नाटा पसर गया था.
कमिश्नर :- इंस्पेक्टर काम्या आप की छुट्टी ख़ारिज की जाती है,आपका ट्रांसफर विष रूप चौकी पे किया जा रहा है.
रंगा बिल्ला मुझे किसी भी कीमत पे चाहिए जिन्दा या मुर्दा.....
और बहादुर तुम साथ जाओगे मैडम के.
बहादुर की तो घिघी बंध गई....क्या...? मै...मै...मै..... कैसे.
कमिश्नर :- गुस्से मे क्या मै मै...लगा रखा है,नौकरी करनी है या नहीं?
बहादुर जो की ले दे के पुलिस मे लगा था अपनी माँ की सिफारिश पे उसकी माँ किसी दरोगा के यहाँ काम करती थी उसी दरोगा ने बहादुर को पुलिस मे भर्ती करवाया था.
जान ज़्यदा प्यारी थी उसे,परन्तु यदि नौकरी छोड़ता तो उसकी माँ उसकी जान के लेती.
मरता क्या ना करता...
बहादुर :- जी मालिक जाऊंगा
कमिश्नर :- काम्या तुम कल सुबह ही विष रूप के लिए निकल जाओ. तुम्हारे पास 1हफ्ते का वक़्त है ज्वाइन करने का.
काम्या :- जी सर.... सलूट करती हुई कमरे से बाहर निकल जाती है पीछे पीछे बहादुर भी चल देता है.
काम्या का दिल ख़ुश था... क्युकी उसका गांव भी विष रूप के पास वाले शहर मे ही था,
वो जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहती थी उसे अपने माँ बाप से मिलने की खुशी थी.
"माँ पापा से मिल के विष रूप चली जाउंगी "
चल बहादुर.....
बहादुर मुँह लटकाये "जी मैडम "

अभी काम्या को विष रूप पहुंचने मे वक़्त था परन्तु चोर मंगूस के पास बिलकुल वक़्त नहीं था वो पल पल मौत के करीब जा रहा था लड़खड़ा हुआ वो सीढ़ी के पास पहुंच जाता है
"मिल गया आखिर....मंगूस जमीन पे पडा कोई कपड़ानुमा चीज उठा लेटा है
उस चीज को जैसे तैसे हाथ मे लपेट कर नागमणि की और चल देता है
"यही मौका है मंगूस...यही मौका है "
मंगूस ने जबरदस्त इच्छाशक्ति का परिचय दिया था
लेकिन कब तक संभालता अपने जर्ज़र साढ़े गले शरीर को नतीजा उसकी हिम्मत जवाब दे गई भरभरा के जमीन पे गिरता चला गया....
लेकिन ये क्या मंगूस की किस्मत उसके साथ थी वो गिरते गिरते भी नामगमणि के पास तक पहुंच ही गया था बस उसे नागमणि उठा लेनी थी,लेकिन प्राण कहाँ थे उस शरीर मे,खून का एक एक कतरा तो गिर चूका था जमीन पे
नहीं नहीं...मै हार नहीं मानुगा,नहीं मानुगा...धममममम...ना जाने कहाँ से मंगूस ताकत ले आया अपना हाथ उठा के नागमणि के ऊपर रख ही दिया.
आअह्ह्ह....उसके गले से आखिरी चीख निकल गई.साँसो ने उसका साथ छोड़ दिया था
दिल भी गलना शुरू हो गया था
आंखे सदा के लिए बंद हो गई. रहे सहे फेफड़े भी गल गए,आखिर कब तक सहन करता वो इस असहनीय पीड़ा को? आखिर कब तक सांस लेता अपने गलते फेफड़ों से
नागमणि उसकी मुट्ठी मे कैद थी लेकिन अब क्या फायदा महान कुख्यात चोर मंगूस मंजिल पे पहुंच के दम तोड़ चूका था..
Kadak update dost
 

Nevil singh

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चैप्टर :-4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -52

हवेली मे ठाकुर और कालू रामु उस काले नाग को ढूंढ़ रहे थे परन्तु सफलता नहीं मिल रही थी.
लेकिन हवेली के अंदर डॉ.असलम सफलता के कगार पे खड़ा था या यु कहिये की मित्रघात और पाप करने जा रहा था उसकी दिनों दिन बढ़ती हवस आज उस से वो सब करवा लेना चाहती थी जो उसने कभी सोचा ही नहीं था.
तभी कामवती की नंगी गांड पे ठंडी हवा का झोका लगता है
कामवती कसमसा जाती है "असलम काका क्या कर रहे है? दिखा क्या की सांप ने कहाँ काटा है?
असलम होश मे आता हुआ "वो...वो...बबबबब...नहीं कामवती कही कोई नामोनिशान नहीं है सांप दंश का,कहाँ काटा था?
मतलब तुम्हे दर्द कहाँ है?
मासूम कामवती इलाज और सांप दंश के डर से पूरी तरह असलम के कब्जे मे थी वो एक हाथ पीछे ले जा के अपनी गोरी गांड के एक हिस्से को पकड़ के थोड़ा खिंचती है....यहाँ काटा है असलम काका.
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गांड का एक पल्ला खुल गया था उसमे से लाल लाल छेद झाँक रहा था
असलम उस छेद को ऐसे देख रहा था जैसे कोई चोर तिजोरी खुलने पे हिरे जवाहरत को देखता है.
असलम का लंड फन फना उठा,उसने सोचा था सिर्फ देखेगा परन्तु इतने सुंदर हसीन मादक गुदा छिद्र को कोई देखे और छुए ना तो वो कैसा मर्द
ऐसा ही असलम के साथ हुआ पाप पूरी तरह घर कर गया था
"दिख तो रहा है लेकिन साफ से नहीं दिख रहा कामवती?
कामवती असमंजस मे पड़ गई की अब और कैसे दिखाए
असलम :- कामवती ऐसा करो घुटने के बल हो जाओ जिस से तुम्हारी गुदा मुझे अच्छे से दिख सके.
अब कामवती क्या करती उसके सामने डॉक्टर था बात माननी ही थी.
कामवती मजबूरन घुटने के बल उठ जाती है उसकी बड़ी सी गांड उभार के पूरी बाहर आ जाती है, दोनों पाट अलग अलग दिशा मे भागने लगते है.
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सुर्ख लाल छेद नजर आने लगा था उसके निचे सिर्फ एक लकीर थी वही चुत थी कामवती की बाल का एक तिनका भी नहीं बिलकुल साफ चिकनी चुत और गांड.
असलम ने ऐसा अभूतपूर्व नजारा नहीं देखा था हालांकि उसने रतिवती और रुखसाना को चोदा था परन्तु कामवती बिलकुल कुंवारी थी दोनों छेद ऐसे चिपके हुए थे की हवा भी अंदर या बाहर ना आ जा सके.
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असलम मन मे "या अल्लाह क्या कारीगरी है तेरी ऐसी काया के दर्शन मात्र से ही मेरा जीवन सफल हो गया,लेकिन ये क्या ठाकुर साहेब तो सुहागरात मना चुके है फिर कामवती की चुत इतनी चिपकी हुई कैसे है?
तभी उसकी नाक मे एक मादक ताज़ा गंध महसूस होती है इस गंध ने असलम का रोम रोम पुलकित कर दिया था.
शनिफ्फफ्फ्फ़....क्या खुसबू है ये खुसबू कामवती की चुत और गांड से निकल रही थी.
कामवती :- काका क्या देख रहे है,मुझे शर्म आ रही है जल्दी कीजिये
असलम खुद को संभालता है उसके पास वक़्त नहीं था...वो अपना सर कामवती की गांड के पास ले जाता है तो उसे गुदा छिद्र पे तो बिंदु दीखते है...ओह्ह्ह...तो यहाँ काटा है सांप ने?
कामवती :- दिखा काका..अब तो दिख गया ना जल्दी इलाज करो.
असलम का दिमाग़ दौड़ने लगा "यही मौका है असलम"
अब भला कोई मर्द ऐसी गांड को देखे और स्वाद ना ले ऐसा भला हो सकता है
वही असलम के साथ था उसके विचार उसके वादे जो खुद से ही थे की "देखेगा और कुछ नहीं करेगा " सब धाराशयी हो गए.
वो अपना एक हाथ कामवती की गांड पे रख के एक तरफ खिंचता है.
आअह्ह्ह....काका क्या कर रहे है?
असलम :- कामवती सांप ने काटा है तो जहर भी होगा,जहर चूसना पड़ेगा.
कामवती ने गांव मे सुना तो था की सांप काट ले तो जहर चूस के निकाला जाता है परन्तु कही ओर से चूसना और गुदा छिद्र से चूसने मे अंतर है.
"लेकिन काका वहा से कैसे चूस सकते है? गन्दी जगह है वो!
असलम तो अंदर ही अंदर कामवासना मे मरा जा रहा था उसे तो वो कामुक कुंवारा छेद दिख रहा था
मज़बूरी दिखाते हुए "कोई बात नहीं कामवती मै डॉक्टर हूँ मेरा फर्ज़ है लोगो की जान बचाना उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े.
हवस मे डूबा इंसान क्या नहीं करता कल तक भोला भला डॉ,असलम जो औरतों के साये से भी घबराता था आज स्त्री सुख के लिए प्रपंच कर रहा था साफ साफ मित्र घात कर रहा था.
कामवती की आंखे कर्तघ्यता से भर आई थी उसके दिल मे असलम के द्वारा किये जाने वे अहसास ने जगह बना ली.
कामवती आंखे बंद कर अपनी गांड को और ज्यादा उभार देती है.
डॉ.असलम अपने दोनों हाथ कपकपाते हुए कामवती के दोनों पहाड़ो पे रख देता है और उन्हें एक दूसरे के विपरीत दिशा मे खिंच देता है...
आअह्ह्ह....क्या कोमल अहसास था एक दम चिकनी मुलायम चमड़ी उस पे से कामुक कुंवारी मादक गंध.
"अब सब्र नहीं कर सकता " सोच के अपनी नाक गांड के छेद पे रख तेज़ सांस खींचता है.
शनिफ्फफ्फ्फ़...असलम के बदन मे आग लग गई थी उसकी जबान अपने कटोरे से बाहर निकल गुदा छिद्र पे रगड़ खां जाती है...
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आअह्ह्ह....असलम काका गिला लग रहा है गुदगुदी हो रही है.
कामवती जो की ये अहसास पहली बार ले रही थी उसकी घिघी बंध गई थी इस गीलेपन और जीभ के खुर्दरे पन से.
उसे एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती है अब ये आनंद क्या था...इस से अनजान थी कामवती.
तभी असलम अपने काले होंठो को गोल कर के कामवती के लाल गुदा छिद्र पे टिका देता है और जोर से खींचता है जैसे वाकई जहर चूस रहा हो...कामवती आंखे बंद किये कसमसाने लगती है.

यहाँ कसमसाहट जारी थी
और वही हवेली के नीचे तहखाने मे भी कुछ कसमसा रहा था.
कुछ तो था जो उस सुनसान अंधकार से भरे तहखाने मे कुलबुला रहा था.
धड़...धड़...धाड़....धाड़....जैसे कोई दिल धड़क रहा हो.
धीरे धीरे ये आवाज़ बढ़ने लगी थी....इसी आवाज़ मे सररररर....सररररऱ....की आवाज़ भी शामिल हो चली जैसे कोई जोर जोर से सांस ले रहा हो.
आआहहहह....तभी तहखाने की शांति एक हलकी से आह के साथ पूरी तरह भंग हो जाती है.
तेज़ प्रकाश से तहखाना चमकने लगता है,ये प्रकाश मंगूस की खुलती बंद होती उंगलियों के बीच से आ रहा था
मंगूस की उंगलियां हिल रही थी.
उसका दिल वापस बन चूका था, फेफड़े वापस सांस फेंक रहे थे.मंगूस ने एक दम से आंखे खोल दी जैसे कोई सपना देखा हो ऐसे हड़बड़ाया.
वाह्ह्ह.....मै कामयाब रहा,मंगूस कामयाब रहा मेरी आखरी योजना ने बचा लिया मुझे.
मंगूस उठ बैठा..उसका शरीर वापस बनने लगा था उसकी चमड़ी उसके कंकाल पे चढ़ती जा रही थी उसकी ताकत वापस आ रही थी,रगो मे खून दौड़ता महसूस हो रहा था.
नागमणि उसकी मुट्ठी मे बंद उसी सोखी गई सभी चीज वापस लौटा रही थी.
मंगूस उठा खड़ा हुआ"मेरा सोचना सही था नागेंद्र एक सांप है एक सांप ही नागमणि को उठा सकता है अच्छा हुआ की मैंने नीचे आते वक़्त नागेंद्र की केंचूली देख ली थी वही हाथ मे लपेट नागमणि उठा ली मैंने "
मंगूस यु ही शातिर नहीं था कामखा ही कुख्यात नहीं था पक्का चोर था.
खुशी के मारे मंगूस होने दोनों हाथ ऊपर उठाये ठहाका लगा देता है.
हाहाहाहाहाहाहाहा.......कामयाबी....हाहाहाहाहा...
तभी
टननननन न.... कोई भरी चीज मंगूस की खोपड़ी से टकराती है उसकी हसीं थम जाती है और उसकी जगह एक दर्द की लहर उसके चेहरे पे दौड़ जाती है.
नागमणि हाथ से छूट के दूर गिर गई...मंगूस अपना सर पकड़े वापस धरती पे गिरता चला गया.
हाथ मे लिपटी केंचूली किसी शख्स ने उतार ली...और अपने हाथ मे लपेट नागमणि उठाये मंगूस के सामने खड़ा ही गया.
हाहाहाहाहाब........मान गए तुम्हे महान चोर मंगूस जिस तिलिस्म का तोड़ तांत्रिक उलजुलूल के पास भी नहीं था उस तिलिस्म को तुमने तोड़ नागमणि हथिया ली.
वाह...वाह...लेकिन बदकिस्मती मुझसे ना बच सके.
मंगूस दर्द से करहाता उस साये देखता रहा जो किसी स्त्री का था भू...भू....भू....तुम और ना बोल सका बेहोशी के गर्त मे खो गया चोर मंगूस.

बने रहिये...कथा जारी है...
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