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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

आपका सबसे पसंदीदा चरित्र कौनसा है?

  • कामवती

  • रतिवती

  • रुखसाना

  • भूरी काकी

  • रूपवती

  • इस्पेक्टर काम्या

  • चोर मंगूस

  • ठाकुर ज़ालिम सिंह /जलन सिंह

  • नागेंद्र

  • वीरा

  • रंगा बिल्ला


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Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Bhai Saab kahani bohot hi shandar, rahasyamai or dilchasp hai har update Ka besabri se intzaar rahta hai, or chor mangoos ko mani dubara dilwao bhai or kamwati ko nagendar se milwao. Bichara tadaf raha hai
 

andypndy

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Bhai Saab kahani bohot hi shandar, rahasyamai or dilchasp hai har update Ka besabri se intzaar rahta hai, or chor mangoos ko mani dubara dilwao bhai or kamwati ko nagendar se milwao. Bichara tadaf raha hai
Hahahaha.... मणि तो नागेंद्र की है,जाएगी भी उसी के पास लेकिन मंगूस कभी पीछा नहीं छोड़ेगा नागमणि का..... देखते है किसके पास रहती है नागमणि
 

andypndy

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सॉरी दोस्तों आज स्टेट मे एग्जाम और ड्यूटी की वजह से अपडेट नहीं दे पाया.अब थाकान से आंखे बोझिल है...

अब भूरी पे क्या समात आएगी ये कल ही मालूम पड़ेगा.
बने रहिये
 
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andypndy

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Gajab bhai kya Baat hai. Bhuri ke hath se bhi mani nikal gai wah.
भूरी की तो सामात आने वाली है अब.... मणि भी गई और ना जाने अब क्या क्या जायेगा 😝
 

andypndy

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चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -58

भूतकाल

समय बीतता गया मनुष्यों का प्रभाव बढ़ने लगा,आस पास हर जगह मानव बस्ती बसने लगी.
विष रूप मे ठाकुर जलन सिंह का दब दबा बढ़ने लगा,मै संसार से विरक्त जीवन जी रहा था,कुछ नहीं बचा था इस नीरस जीवन मे.मेरा राजमहल किसी खंडर मे तब्दील हो गया था.
मैंने सभी खजाना हिरे जवाहरत सब गुप्त तहखाने मे रख दिए थे,हवेली मे अब ठाकुर जलन सिंह रहने लगा था.
हवेली मे रौनक आ गई थी लेकिन मेरी जिंदगी मे कोई रौनक नहीं थी मै मणिधारी सांप हूँ मर भी नहीं सकता था.
उस भयानक युद्ध के 100 साल बीत गए थे.
एक दिन अपनी जिंदगी से लाचार निराश मै जंगल की खांक छानते छानते कामगंज पहुंच गया,
पास के ही तालाब मे कुछ स्त्रिया अठखेलिया कर रही थी
मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी.....
कामवती....कामवती अंदर मत जाओ.रुक जाओ
मैंने पलट के देखा तो देखता ही रह गया. एक कन्या पानी मे अंदर उतरती जा रही थी हसती हुई खिलखिलाती पानी से बदन भीगा हुआ.
images-2.jpg

मैंने ऐसा सौंदर्य पहले कभी नहीं देखा था. जैसे कोई स्वर्ग की अप्सरा नदी मे नहा रही हो.

की तभी....बचाओ.....बचाओ... स्त्रिओ का शोर सुनाई देने लगा.
कामवती डूब रही है बचाओ कोई...
नागेंद्र ना जाने किस आवेश मे खुद पानी मे छलांग लगा बैठा...
पानी मे गोते लगाती कामवती के करीब पहुंचने ही वाला था की....छापककककक....
एक शख्स और कूद पडा पानी मे अब कामवती दो जोड़ी मजबूत बाहों मे थी,
नागेंद्र और वो शख्स कामवती को बाहर खिंच लाये....
नागेंद्र जैसे ही नजर उठता है घृणा से दाँत पीस लेता है..वीरा तुम?
यहाँ क्या कर रहे हो?
वीरा :- क्यों तेरे बाप का इलाका है क्या.?
नागेंद्र कुछ जवाब देता की....उम्म्म्म...कामवती होश मे आने लगी.
मै...मै...
वीरा :- हे कन्या तुम सलामत हो
कामवती उठ बैठी उसके सामने गोरा सुडोल सा नागेंद्र और हट्टा कट्टा लम्बा,चौड़ी छाती का मालिक वीरा था.
कामवती दोनों को देखती ही रह गई...और दोनों कामवती को एकटक देखते रह गए.
क्या कमल का यौवन था गीले कपड़ो से साफ छलक रहा था,बड़े स्तन सपाट पेट,गोरी रंगत.
कामवती...कामवती...तीनो एक दूसरे मे खोये थे की...दूर से ही कामवती की सहेलिया अति नजर आई,
दोनों ही किसी की नजर मे नहीं आना चाहते थे.
हम चलते है सुंदरी...नाम क्या है तुम्हारा?
कामवती:- कामवती...वो अभी भी खोई हुई थी ना जाने उन दोनों के स्पर्श मे क्या जादू था.
कामवती कामवती....तुम ठीक तो हो ना? सखी ने पूछा.
दूसरी सखी :- वो दो लड़के कौन थे? कहाँ गए?
कामवती :- होश मे अति हुई...प..प...पता नहीं कहाँ से आये कहाँ चले गए

कामवती अपनी सखियों के साथ गांव की और चलती चली गई पीछे वीरा और नागेंद्र उस मस्तानी गदराई चाल को देखते ही रह गए.
शायद दोनों को जीने का उद्देश्य मिल गया था!

वर्तमान मे
रतिवती जंगल मे अकेली रह गई थी.
"ये बिल्लू कहाँ भाग गया वापस अभी तक नहीं आया?कही कोई गड़बड़ तो नहीं"
हज़ारो ख्याल आ रहे थे उसके दिमाग़ मे
धीरे धीरे अंधेरा छाने लगा था, डर से रतिवती को पेशाब का तनाव भी होने लगा था,
"मुझे बिल्लू के पीछे जाना चाहिए कोई अनहोनी ना हुई हो?
गहनो से लदी रतिवती को चोर डाकू का डर भी सताने लगा था.
रतिवती तांगे से उतर जाती है और जिस रास्ते बिल्लू गया था उसी रास्ते पे अपनी साड़ी संभालती चल पड़ती है.
बिल्लू...बिल्लू कहाँ हो तुम?
रतिवती काफ़ी आगे चली आई थी...उसे अब जोर से पेशाब लगा था.
चलना भी मुश्किल हो रहा था
रतिवती अपनी साड़ी उठा के बैठने ही वाली होती है की..उसकी नजर सामने झड़ी मे पड़ती है उस मे से रौशनी फुट रही थी.
"ये क्या है इसमें? रतिवती डरती हुई हाथ आगे बढ़ा उसे उठा लेती है...
images-2.jpg

हे भगवान....ये...ये...इतना बड़ा हिरा? कही ये सपना तो नहीं?
भूरी को हाथो से छुटी नागमणि रतिवती के हाथ आ गई थी.
रतिवती खूब लालची औरत थी लालचवस ही उसने अपनी जवान बेटी की शादी बूढ़े ठाकुर से कर दी थी.
लालच और हवस रतिवती मे कूट कूट के भरी थी.
इसी लालच मे बिना सोचे समझें ही रतिवती ने नागमणि को हिरा समझ उठा लिया था...
उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.दिल धाड़ धाड़ कर के बज रहा था.
रतिवती तुरंत साड़ी के पल्लू मे मणि को बाँध लेती है.
"मालिकन आप यहाँ क्या कर रही है"
ब...बबब...बिल्लू वो वो...मै तुम्हे ही ढूंढने आई थी रतिवती एकदम चौक जाती है परन्तु संभाल लेती है.
नागमणि की चमक साड़ी के पल्लू से ढक गई थी.
बिल्लू :- आपको यूँ अकेला नहीं आना चाहिए था जंगल मे.
रतिवती :- मुझे अकेले डर लग रहा था बिल्लू...अब रतिवती के शब्दों मे डर नहीं था ना कोई चिंता था बल्कि खुशी का पुट था
उसे खजाना जो मिल गया था.अनजाने मे बिल्लू के वजह से ही हुआ था.
रतिवती आगे आगे अपनी बड़ी सी गांड मटकाती चल रही थी उसकी गांड खुशी के मारे ज्यादा ही मटक रही थी.
बिल्लू सिर्फ रतिवती की बड़ी सी गांड ही देखे जा रहा था
"बिल्लू तुम किसके पीछे भागे थे?"
Billu:- मालिकन वो मेरा भ्रम था, मुझे लगा हवेली मे काम करने वाली भूरी काकी है?
बिल्लू को अब वो भ्रम ही लग रहा था क्युकी उसके सामने तो एक गद्दाराई कामुक गांड जो थी.
दोनों ही तांगे के पास पहुंच जाते है.
बिल्लू :- आइये मालकिन आपको तांगे पे चढ़ा दू,बिल्लू उसकी कमर और गांड को महसूस करने का मौका नहीं गवाना चाहता था
बिल्लू के ऐसा बोलते ही रतिवती को बिल्लू का सख्त हाथ याद आ जाता है जो तांगे पे चढ़ाते वक़्त महसूस हुआ था.
रतिवती:- बिल्लू....वो...वो मुझे पेशाब लगी है जोर से.
नागमणि मिलने की खुशी मे रतिवती पेशाब करना ही भूल गई थी परन्तु अब सामान्य होने पे उसे पेशाब करने की सूझी.
बिल्लू :- तो कर लीजिये ना मालकिन?
रतिवती :- लेकिन अंधेरा हो चूका है कोई जीव जंतु ना काट ले.
बिल्लू लालटेन जाला चूका था "तो यही कर लीजिये ना "
रतिवती :- हट बेशर्म तुम्हारे सामने कैसे कर लू? रतिवती के चेहरे पे शरारत भरी मुस्कान थी.
या यूँ कहिये रतिवती का स्वभाव ही ऐसा था की मर्दो को लालचती ही रहती थी,उसके बदन मे छोटी सी बात पे ही हवस जोर मार दिया करती थी.
बिल्लू जो उसकी मुस्कान को भाँप चूका था "तो क्या हुआ मालकिन यहाँ देखने वाला है ही कौन? और मुझसे क्या शर्माना मै तो पहले ही देख चूका हूँ "
रतिवती ये सुन झेम्प जाती है लेकिन कुछ बोलती नहीं है.सिर्फ मुस्कुरा देती है.
ये बिल्लू के लिए अमौखिक स्वीकृति थी.
रतिवती :- तुम बहुत शैतान हो बिल्लू, मै यही करती हूँ लेकिन तुम देखना मत.
बिल्लू :- तो फिर लालटेन कैसे दिखाऊंगा?
रतिवती :- हाथ इधर करना और मुँह पीछे
ऐसा बोल रतिवती अपनी साड़ी ऊपर उठाने लगती है जो की जाँघ तक खिंच गई थी.
बिल्लू का लालटेन पकड़ा हाथ कंपने लगा...लालटेन की पिली रौशनी मे चमकती तो मोटी सुडोल गोरी जाँघे उसके सामने थी.
हिलती रौशनी देख रतिवती को बिल्लू की हालत ले तरस आ रहा था,उसे एक अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी बिल्लू को परेशान कर के.
रतिवती :- गर्दन घुमा लो बिल्लू.... रतिवती के बोलने से ऐसा लगा जैसे बताना चाहा रही हो की अब वो क्या करने जा रही है.
इधर बिल्लू ने तो जैसे सुना ही नहीं.
उसकी नजर बस किसी खजाने को तलाश रही थी की कब निकल के बाहर आये.
तभी एक लाल चड्डी रतिवती की जांघो पे प्रकट होती है..
कब रतिवती ने चड्डी नीचे की पता ही ना चला...अब साड़ी उठती चली गई ऐसे उठी जैसे किसी नाटक से पर्दा उठा हो धीरे से..बिलकुल कमर तक.
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दो बड़े बड़े गांड रुपी चट्टान बिल्लू के सामने थी जिसके बीच एक लकीर जो दोनों के अलग होने का सबूत थी.
बिल्लू का हलक ही सुख गया....रतिवती गांड पूरी तरह पीछे किये धड़ाम से बैठ जाती है..
बिल्लू को जिस खजाने का इंतज़ार था वो खुल के बाहर आ चूका था.
आअह्ह्ह....बिल्लू के हलक से सिसकारी फुट पड़ती है जो की रतिवती ने इस सुनसान जंगल मे भली भांति सुनी थी.
रतिवती के चेहरे पे आनद की लकीर दौड़ जाती है,ना जाने उसे क्या आनंद मिल रहा था.
पिस्स्स्स......फुर्ररर.....करती एक मधुर संगीत की लहर गूंज उठती है.
ये मधुर संगीत बिल्लू के रोम रोम को खड़ा कर देता है,लंड तो कबका अपनी औकात मे आ गया था. ऐसा कामुक दृश्य देख लंड फटने पे आमदा था.
रतिवती लगातार तेज़ वेग से अपनी चुत से पानी की बौछार छोड़े जा रही थी...
तभी वो अपनी गर्दन पीछे घुमा देती है...एक अदा और मुस्कुराहट से बिल्लू की और देखती है.
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बिल्लू ने तो ऐसा अदाकारी ऐसा सौंदर्य ऐसी गांड कभी देखि ही नहीं थी...उसके हाथ पैर कापने लगे. उसके लंड ने वीर्य की बौछार छोड़ दी. रतिवती के मादक बदन की गर्मी बिल्लू सहन ना कर पाया.
आआहहहह..... बिल्लू ऐसा चरम पे पंहुचा की उसके हाथ से धड़ाम से लालटेन छूट जाती है,
घुप अंधेरा छा जाता है... थोड़ी देर मे मधुर संगीत बंद हो गया था,
आंखे अँधेरे मे देखने की अभ्यस्त हो गई थी.
बिल्लू :- मालकिन मालकिन...माफ़ कीजियेगा वो लालटेन नहीं संभाल पाया.
रतिवती बिल्लू के नजदीक आ चुकी थी "क्या बिल्लू मै तो तुम्हे मजबूत मर्द समझी थी लेकिन तुम तो..."
बिल्लू:- वो....मालकिन..वो....आप हे ही इतनी सुन्दर की क्या करता.
बिल्लू शर्मिंदा हो गया.
चलिए मालकिन रात होने को आई हमें निकलना चाहिए.
रतिवती का बदन रोमांच और जीत से मचल रहा था.
बिल्लू भी उसके हुस्न का दीवाना हो चूका था,असलम तो था ही विष रूप मे.
ऊपर से नागमणि मिलने की खुशी.
इस वक़्त सबसे खुसनसीब रतिवती ही थी.
लेकिन हवस और लालच अच्छो अच्छो को ले डूबता है.
बने रहिये....कथा जारी है....
 

andypndy

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अपडेट -59

भूतकाल

कामवती जब से नदी से लौटी थी तभी से कुछ खोई खोई थी बार बार उसके सामने नागेंद्र का सुन्दर चेहरा और वीरा का बलशाली शरीर आ जा रहा था.
उसकी आँखों से नींद ओझल थी, "कौन थे वो दोनों? कभी इस गांव मे देखा नहीं उन्हें.
कामवती नयी नयी जवान हुई थी उसके अंग मदकता बिखेरने लगे थे क्या बूढ़ा क्या जवान सबकी नजर ही उसके बदन पे टिकी रहती थी,झूम के जवानी आई थी कामवती की.
किशोर अवस्था से ही उसने काई बार आपने माँ बाप को सम्भोग करते देखा था,तब से ही उसकी इच्छाएं अंगड़ाईया लेने लगी थी,बाकि लड़कियों के मुकाबले किशोर अवस्था मे ही उसके स्तन निकल आये थे वो भी बड़े बड़े.
जब भी अपनी सखियों से सम्भोग के किस्से सुनती तो उसकी चुत पानी छोड़ देती, ऐसे ही किस्से सुनते देखते कामवती जवान हुई थी..नाम के मुताबिक वाकई मे काम देवी थी.
बदन ऐसा कैसा हुआ जैसे किसी सांचे मे ढला हो स्तन बड़े और भारी जैसी कोई दूध से लेबरेज़ हो.
गांड बाहर को निकली हुई जब चलती तो भूकंप पैदा कर देती.उस पर पतली इठलाती कमर.
गांव म जवान लड़के तो उसे देखने भर से झड़ जाया करते थे.
कामवती हमेशा हवस से ही भरी रहती थी फिर भी कोई ऐसा ना मिला जो उसके कोमार्य को भंग करता बल्कि यूँ कहे की कभी कामवती ने किसी को आपने लायक समझा ही नहीं.
परन्तु आज वीरा और नागेंद्र दो ऐसे मर्द थे जिन्होंने उसकी नींद उड़ा दी थी.
कामवती की पानी छोड़ती चुत इस बात का सबूत रही की उसे वीरा और नागेंद्र मे दिलचस्पी थी कब वचुत रागढ़ते नींद आ गई पता ही नहीं चला.
वही दूसरी तरफ नागेंद्र और वीरा दोनों ही बेचैन थे कामवती का भीगा जिस्म उन्हें सोने नहीं दे रहा था इतनी लम्बी और नीरस जिंदगी मे पहली बार उनको जीने का कोई मकसद दिखा था.
इसी के लिए जीना है....उस स्त्री को पाना ही है.

वर्तमान
सुबह हो चली थी.
बिल्लू और रतिवती विष रूप पहुंच गए थे.
माँ...माँ....कामवती भागती हुई रतिवती के गले लग गई.
"मेरी बच्ची कैसी है "? रतिवती ने उसे गले से लगा लिया.
असलम ने कामवती की जान बचा ली थी ये सुन रतिवती असलम की अहसान मंद हो गई.
और ये अहसान कैसे उतरना है वो अच्छे से जानती थी.
मेल मिलाप चलता रहा..
माँ बेटी दुनिया भर के बातो मे लगे रहे.
इधर ठाकुर भूरी काकी के लिए चिंतित था.
बिल्लू :- मालिक कल रात मैंने भूरी काकी को देखा था?
ठाकुर :- कहाँ देखा था? रो साथ क्यों नहीं लाया?
बिल्लू ने सारा किस्सा कह सुनाया.
ठाकुर :- हरामखोर कल दारू तो नहीं पी थी ना तूने?
भूरी काकी जंगल मे क्या करेगी?
बिल्लू :- मालिक सच कह रहा हूँ वो औरत भूरी काकी ही थी.
ठाकुर :- ऐसा है तो चलो... असलम आप घर पे ही रहे
मै जंगल हो के आता हूँ.
बिल्लू कालू रामु और ठाकुर चारो घोड़ा गाड़ी पे सवार हो के जंगल की तरफ चल दिए.
पीछे हवेली मे सिर्फ रतिवती,कामवती और डॉ.असलम ही बचे थे.

धुप तेज़ पढ़ रही थी....
आअह्ह्ह.....ये धुप किसी को बेचैन कर रही थी, उम्म्म्म.....भूरी सर पे हाथ लगाए बैठने की कोशिश करने लगी.
की तभी उसके कानो मे कुछ आवाज़ सुनाई पड़ती है.
सुम्भा सुम्भा...भुजंग...मम्बा..
भूरी ने सर उठा के देखा तो डर के मारे उसकी सांसे रुक गई...उसे ध्यान आया वो सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट मे है.
उसकी साड़ी एक काले कलूटे जंगली आदमी के हाथो मे है जिसे वो सूंघ रहा था...
भूरी को कल रात की घटना याद आई उसे नागमणि का ध्यान आता है जो की उसके हाथ मे नहीं थी.
भागते वक़्त उसकी साड़ी खुल गई थी और जब गिरी तो उसके हाथ से मणि छूट गई थी.
हे भगवान ये क्या हुआ?
तभी उस जंगली की नजर भूरी पे पड़ जाती है.
सरदार....मादा मादा....सिंबाला.
भूरी उसकी आवाज़ सुनते ही चीख पड़ती है हे भगवान....ये तो नरभक्षी काबिले मुर्दाबाड़ा के लोग है.
भूरी पूरी ताकत लगा के भाग खड़ी होती है.
उसकी मौत उसके पीछे पड़ी रही....
पांच आदमी उसकी पीछे भाग रहे थे उनका सरदार वही हाथ मे साड़ी लिए उसे सूंघ रहा था.
ओहहज....मादा..भुजंग खुसा.
अपनी भाषा मे वो भूरी की मादक खुसबू को सूंघ आनंदित अवस्था मे बोल रहा था.

ये है सरदार भुजंग
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नरभक्षी काबिले मुर्दाबाड़ा का सरदार
इस काबिले मे कोई औरत नहीं है सिर्फ मर्द है,क्यूंकि इस काबिले के लोग औरतों का मांस खाना ही पसंद करते है.
पहले जी भर के स्त्री को चोदते इतना चोदते की चोद चोद के ही मार देते उसके बाद उस स्त्री का मांस को चाव से खाते.
इस काबिले के खास बात ही यही थी की सबके लंड हद से ज्यादा लम्बे मोटे और काले होते है, जिनमे से अजीब सी मादक गंध निकलती थी जो किसी स्त्री के नाक मे पड़ गई तो तो उसका बदन चुदने को मचल उठता था, वो स्त्री चुदे बिना जा नहीं सकती थी,उसे सिर्फ लंड ही दिखता था,और जो स्त्री एक बार चुद गई वो जिन्दा नहीं बचती थी..
जब तक स्त्री सख्तीलित ना होती ये उसे मारना पाप समझते थे, जहाँ स्त्री सख्तीलित हुई समझो वहा उसकी मौत आई...तड़पती मौत...
और आज इसी तड़पती मौत से बच के भूरी भाग रही थी जीतना हो सकता था उतना तेज़ भाग रही थी.
आअह्ह्ह....हम्म्म्म. हममममम....बचाओ बचाओ.
अब भला मौत से कौन बच पाया है.

मौत से बचने के लिए तो शहर मे सुलेमान भी भाग रहा था.
"रुक जा साले आज तेरी मौत आई है "
लेकिन सुलेमान भागे जा रहा था भागे जा रहा था...
की तभी धड़ाम...एक घुसा उसके मुँह पे पड़ता है.
शाबाश बिल्ला....साला हाथ ही नहीं आ रहा था.
बिल्ला :- हाथ कैसे नहीं आता रंगा ये चूहा, आखिर यही तो दरोगा और उसके परिवार की जानकारी देगा. हाहाहाहाहा....
रंगा चाकू निकल सुलेमान की छाती पे बैठ गया..
सुलेमान :-मम्मममममम...मै...मै ..कुछ नहीं जनता मै तो मालकिन के कहने पे सब्जी लेने आया था.
रंगा :- अभी हमने पूछा ही कहाँ है?
बिल्ला ने पैर उठा के सुलेमान के टांगो के बीच दे मारा... साले जो पूछा जाये सब कुछ बता वरना हिजड़ा बना दूंगा.
सुलेमान दर्द से कराह उठा उसकी घिघी बंध गई थी,डर साफ उसके चेहरे आवाज झलक रहा था.
सुलेमान :.-.मै...मै....बताता हूँ बताता हूँ.
रंगा :- तो बता दरोगा घर कब आएगा? उसकी औरत कैसे है? दिखती कैसी है?
सुलेमान तोते की तरह सब बताता चला गया. ये भी बता दिया की दरोगा शाम तक आ जायेगा.
बिल्ला :- हाहाहाहाहा...... साला हमें तो उम्मीद ही नहीं थी इस बात की ये दरोगा का नौकर उसकी बीवी को पेलता होगा.
रंगा :- बड़ी आग लगती है दरोगा की बीवी मे?
बिल्ला :- आज रात दरोगा के सामने ही उसकी बीवी की आग को ठंडा करेंगे.
हाहाहाबाबा.....भयानक हसीं गूंज उठती है.
रंगा :- चल बे चूजे ये थेला पकड़ और घर निकल
और अपनी रांड मालकिन या दरोगा को कुछ बोला तो जान से जायेगा.
समझा..... तैयारी कर रात को हमारे स्वागत की.

तो अब क्या होगा भूरी उर्फ़ कामरूपा का?
क्या उलजुलूल कोई मदद करेगा?
तैयार रहे रंगा बिल्ला के स्वागत के लिए.
बने रहिये.....कथा जारी है
 
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