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अपडेट -60
सूरज सर पे आ गया था
विष रूप हवेली मे असलम सुबह से ही बैचैन था जबसे उसने रतिवती को देखा था उसका लंड उठ उठ के गिर रहा था परन्तु अकेले मौका नहीं मिल रहा था उसे.
रतिवती अपनी बेटी कामवती के साथ व्यस्त थी.
असलम पे तो खुमारी छाई हुई थी एक तो कल जो उसने कामवती की गांड चूसी थी उसका ही खुमार नहीं उतरा था और आज सुबह सुबह रतिवती के कामुक बदन के दर्शन कर उसके जी को चैन नहीं मिल रहा था.
काफ़ी इंतज़ार करने के बाद असलम आपने कमरे मे चल देता है और जाते ही पूर्ण नंगा हो जाता है उस से लंड की गर्मी झेली नहीं जा रही थी.
वो तुरंत अपना बड़ा लंड हाथ मे पकड़ हिलाने लगता है उसे कुछ राहत मिलती है...
फच फच फच....करता असलम लंड मसले जा रहा था.
"क्या असलम जी क्यों खुद को तकलीफ देते है " असलम आवाज़ सुन के चौंक गया पीछे मूड के देखा तो कामसुंदरी रतिवती दरवाजे पे अपना पल्लू गिराए खड़ी थी,सुन्दर गोल स्तन पुरे बाहर को छलक रहे थे.
दोनों हाथ सर के पीछे किये आपने स्तन को और ज्यादा बाहर को निकाल लेती है, साक्षात् काम देवी असलम के दरवाजे खड़ी थी.
रतिवती :- असलम जी आपने इतने अहसान किये है हम पे, मेरा फर्ज़ बनता है की इस अहसान को उतार दू..
ऐसा बोल रतिवती आगे बढ़ जाती है और ठीक असलम के सामने घुटने टिका देती है असलम का भयानक लंड बिलकुल रतिवती के होंठो के सामने झटके मार रहा था.
रतिवती की यही अदा जो जान ले लेती थी मर्दो की ऊपर से असलम प्यासा मर्द था.
रतिवती अपनी जीभ निकल पुरे लंड को सुपडे से ले कर टट्टो तक एक बार मे ही चाट के गिला कर देती है.
आआहहहहह.....रतिवती तुम कमाल की औरत हो हमेशा गरम ही रहती हो.
रतिवती :- ऐसा लंड हो तो कौन गरम नहीं होगा डॉ.असलम ऊपर से आपके अहसान है मुझपे आपने मेरी बेटी की जान बचाई है...
असलम बेटी सुनते ही उसके सामने कामवती की मोटी गद्दाराई खूबसूरत गांड आ जाती है,वो एक झटके मे ही अपना पूरा लंड रतिवती के हलक मे डाल देता है,जबकि उसके ख्यालो मे वो अपना लंड कामवती की गांड मे डाल चूका था.
उम्म्म......उम्म्म्म....आअह्ह्ह....असलम जी आराम से भागी थोड़ी जा रही हूँ.
लेकिन असलम पे कोई फर्क नहीं पड़ता वो अब तक धचा धच धचा धच..रतिवती का मुँह चोदे जा रहा था.
हमेशा रतिवती ही असलम पे हावी रहती थी परन्तु कामवती के मादक जिस्म ने उसके अंदर का हैवान जगा दिया था
रतिवती :- आज असलम को हो क्या गया है? कहाँ से सिख गया ये?
खेर जहाँ से सीखा मुझे जल्द ही करना होगा.
कामवती को पेशाब का बहाना कर के आई थी मै...
रतिवती खूब मन लगा के जीतना हो सकता था उतना लंड अंदर ले रही थी आखिर काफ़ी दिनों बाद उसे लंड मिला था.
थूक की धार होंठो से लग लग के नीचे गिर रही थी.
असलम :- आहहहह...रतिवती कितना अच्छा चूसती हो तुम जान ही निकाल लेती हो.
रतिवती बिना बोले चपा चप लंड निगले जा रही थी कमरा पच पच....गऊऊऊऊऊ....उफ्फ्फ्फ़...की आवाज़ से गूंज रहा था.
रतिवती को गए काफ़ी वक़्त हो गया था कामवती बैठे बैठे बोर हो रही थी
"माँ को गए काफ़ी टाइम हो चला है, देखती हूँ चल के "
कामवती आपने कमरे से निकल बाहर को आ जाती है, अभी गुसालखाने की और जा ही रही थी की उसे कुछ आहट सुनाई देती है,सिसकने के आवाज़ जैसा था कुछ.
"ये कैसी आवाज़ है "?
कामवती आवाज़ की दिशा मे चल देती है और असलम के कमरे के बाहर ठिठक जाती है.
"ये आवाज़ तो अंदर से आ रही है कही डॉ.असलम को कोई तकलीफ तो नहीं "
कामवती दरवाजा ठेल के अंदर जाने को ही थी की उसकी नजर दरवाजे की दरार से अंदर पड़ती है
वो देखते ही दंग रह जाती है, उसकी माँ रतिवती साड़ी उठाये घोड़ी बानी हुई थी पीछे असलम गांड मे मुँह धसाये मुँह हिला रहा था.
"हे भगवान ये डॉ.असलम क्या कर रहे है?" कही मम्मी को भी तो सांप ने नहीं काट लिया.
बेचारी भोली भली कामवती
वो काफ़ी डर गई थी अंदर जाने को ही थी की.
रतिवती :- असलम अब देर मत करो वक़्त नहीं है जल्दी से मेरी प्यास बुझा दो,फाड़ दो मेरी चुत,चोदो मुझे असलम
कामवती ये शब्द सुन के दंग रह जाती है उसने होने गांव मे लड़को को गली देते सुना था की जैसे लंड चोदो...
"तो...तो...क्या मेरी माँ असलम से चुदवा रही है"
कामवती बदहवास थी वो तो चुदाई से परिचित ही नहीं थी फिर एकदम से उसके सामने ऐसा दृश्य आ गया उसकी सांसे उखाड़ने लगी..
अंदर असलम गांड से मुँह हटा लेता है पूरा मुँह थूक और चुत रस से सना हुआ था.जैसे जी असलम खड़ा होता है कामवती की नजर सीधा असलम के हाहाकारी लंड पे पड़ती है.
उसके मुँह से चीख सी निकल जाती
है.....
आआहहहह..माँ मममम...... मुँह पे हाथ रखे कामवती आपने कमरे की और भागती है.उसके आँखों के सामने असलम का लंड झूल रहा था
"हे भगवान ये सपना है ऐसा नहीं हो सकता ठाकुर साहेब का तो नहीं है "
अंदर कामवती के चिल्लाने की आवाज़ सुन असलम और रतिवती की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है.
असलम :- ये कैसे आवाज़ थी?
रतिवती तुरंत साड़ी नीचे किये बाहर की और दौड़ लगा देती है.
क्या हुआ? क्या हुआ बेटी तुम चिल्लाई क्यों?
कामवती कही खोई हुई थी
रतिवती को डर लगने लगा कही कामवती ने कामक्रीड़ा तो नहीं देख ली?
"नहीं माँ...वो..वो...चूहा देख लिया था भयंकर चूहा"
ना जाने किस कसमकास ने कामवती को सच्चाई बयान करने से रोक लिया था.
रतिवती कामवती को गले लगा लेती है.
कामवती के जहान मे हज़ारो सवाल थे.उसके मन मे कुछ तो पनप रहा था...वो लगातार कुछ सिख रही थी जैसे कुछ याद आ रहा हो.
रतिवती अभी भी प्यासी थी,उसकी चुत रो रही थी लंड पास हो के भी ना मिला.
जंगल मे
ठाकुर और कालू बिल्लू रामु जंगल का चप्पा चप्पा छान रहे थे भूरी कही नहीं थी.
मालिक...मालिक.....ये देखिये रामु को एक लहंगा मिलता है.
जिसे वो खूब पहचानता था की भूरी काकी का है.
मालिक ये देखिये भूरी काकी का लेहंगा.?
ठाकुर :- हरामखोर तुझे कैसे पता की ये काकी का लहंगा है.
रामु की घिघी बंध गई थी उसे लगा की फस गया अब, तभी
"मालिक घर मे एक ही तो औरत है उनके हि कपड़े आंगन मे सुखते है तो रंग याद है" बिल्लू बात को संभाल लेता है.
ठाकुर :- अच्छा ढूंढो आस पास.
ठाकुर की दौड़ जारी थी..
परन्तु..भूरी अपनी दौड़ हार रही थी उसकी सांसे फूल रही थी "अब और नहीं अब नहीं....भाग सकती हमफ़्फ़्फ़...हमफ़्फ़्फ़...
धड़ाम.....एक हाथ भूरी के पीठ पे पड़ता है और भूरी लुढ़क जाती है उसकी आंखे थकान और ठोंकर से बोझिल होती चली जाती है.
वही शहर मे आज कालावती खुब रच के तैयार हुई थी बिंदी,चूड़ी,मंगलसूत्र,सिंदूर सब कुछ बिलकुल अप्सरा लग रही थी
ठक ठक ठक.....कलावती की खुशी का ठिकाना नहीं रहता,
लगता है दरोगा साहेब आ गए.
कलावती भागती हुई स्तन उछालती दरवाजा खोलने दौड़ती है...
और धड़कते दिल के साथ दरवाजा खोल देती है आखिर सालो बाद आपने पति को देखने वाली थी.
ढाड़ से दरवाजा खुलता है " आइये दरोगा सा.....सा....कौन हो तुम?
कलावती के होश उड़ जाते है दरवाजे पे दो भयानक किस्म के आदमी खड़े थे,घनी मुछे चौड़ी छाती,कंधे पे राइफल.
हाहाहाहा.....तू तो वाकई सुन्दर है रे क्यों बिल्ला?
हाँ भाई रंगा..
क्या दरोगा खुद को और कलावती को बचा लेगा?
भूरी का क्या होगा?
कामवती अपना पिछला जन्म याद कर पायेगी?
बने रहिये कथा जारी है...
सूरज सर पे आ गया था
विष रूप हवेली मे असलम सुबह से ही बैचैन था जबसे उसने रतिवती को देखा था उसका लंड उठ उठ के गिर रहा था परन्तु अकेले मौका नहीं मिल रहा था उसे.
रतिवती अपनी बेटी कामवती के साथ व्यस्त थी.
असलम पे तो खुमारी छाई हुई थी एक तो कल जो उसने कामवती की गांड चूसी थी उसका ही खुमार नहीं उतरा था और आज सुबह सुबह रतिवती के कामुक बदन के दर्शन कर उसके जी को चैन नहीं मिल रहा था.
काफ़ी इंतज़ार करने के बाद असलम आपने कमरे मे चल देता है और जाते ही पूर्ण नंगा हो जाता है उस से लंड की गर्मी झेली नहीं जा रही थी.
वो तुरंत अपना बड़ा लंड हाथ मे पकड़ हिलाने लगता है उसे कुछ राहत मिलती है...
फच फच फच....करता असलम लंड मसले जा रहा था.
"क्या असलम जी क्यों खुद को तकलीफ देते है " असलम आवाज़ सुन के चौंक गया पीछे मूड के देखा तो कामसुंदरी रतिवती दरवाजे पे अपना पल्लू गिराए खड़ी थी,सुन्दर गोल स्तन पुरे बाहर को छलक रहे थे.
दोनों हाथ सर के पीछे किये आपने स्तन को और ज्यादा बाहर को निकाल लेती है, साक्षात् काम देवी असलम के दरवाजे खड़ी थी.
रतिवती :- असलम जी आपने इतने अहसान किये है हम पे, मेरा फर्ज़ बनता है की इस अहसान को उतार दू..
ऐसा बोल रतिवती आगे बढ़ जाती है और ठीक असलम के सामने घुटने टिका देती है असलम का भयानक लंड बिलकुल रतिवती के होंठो के सामने झटके मार रहा था.
रतिवती की यही अदा जो जान ले लेती थी मर्दो की ऊपर से असलम प्यासा मर्द था.
रतिवती अपनी जीभ निकल पुरे लंड को सुपडे से ले कर टट्टो तक एक बार मे ही चाट के गिला कर देती है.
आआहहहहह.....रतिवती तुम कमाल की औरत हो हमेशा गरम ही रहती हो.
रतिवती :- ऐसा लंड हो तो कौन गरम नहीं होगा डॉ.असलम ऊपर से आपके अहसान है मुझपे आपने मेरी बेटी की जान बचाई है...
असलम बेटी सुनते ही उसके सामने कामवती की मोटी गद्दाराई खूबसूरत गांड आ जाती है,वो एक झटके मे ही अपना पूरा लंड रतिवती के हलक मे डाल देता है,जबकि उसके ख्यालो मे वो अपना लंड कामवती की गांड मे डाल चूका था.
उम्म्म......उम्म्म्म....आअह्ह्ह....असलम जी आराम से भागी थोड़ी जा रही हूँ.
लेकिन असलम पे कोई फर्क नहीं पड़ता वो अब तक धचा धच धचा धच..रतिवती का मुँह चोदे जा रहा था.
हमेशा रतिवती ही असलम पे हावी रहती थी परन्तु कामवती के मादक जिस्म ने उसके अंदर का हैवान जगा दिया था
रतिवती :- आज असलम को हो क्या गया है? कहाँ से सिख गया ये?
खेर जहाँ से सीखा मुझे जल्द ही करना होगा.
कामवती को पेशाब का बहाना कर के आई थी मै...
रतिवती खूब मन लगा के जीतना हो सकता था उतना लंड अंदर ले रही थी आखिर काफ़ी दिनों बाद उसे लंड मिला था.
थूक की धार होंठो से लग लग के नीचे गिर रही थी.
असलम :- आहहहह...रतिवती कितना अच्छा चूसती हो तुम जान ही निकाल लेती हो.
रतिवती बिना बोले चपा चप लंड निगले जा रही थी कमरा पच पच....गऊऊऊऊऊ....उफ्फ्फ्फ़...की आवाज़ से गूंज रहा था.
रतिवती को गए काफ़ी वक़्त हो गया था कामवती बैठे बैठे बोर हो रही थी
"माँ को गए काफ़ी टाइम हो चला है, देखती हूँ चल के "
कामवती आपने कमरे से निकल बाहर को आ जाती है, अभी गुसालखाने की और जा ही रही थी की उसे कुछ आहट सुनाई देती है,सिसकने के आवाज़ जैसा था कुछ.
"ये कैसी आवाज़ है "?
कामवती आवाज़ की दिशा मे चल देती है और असलम के कमरे के बाहर ठिठक जाती है.
"ये आवाज़ तो अंदर से आ रही है कही डॉ.असलम को कोई तकलीफ तो नहीं "
कामवती दरवाजा ठेल के अंदर जाने को ही थी की उसकी नजर दरवाजे की दरार से अंदर पड़ती है
वो देखते ही दंग रह जाती है, उसकी माँ रतिवती साड़ी उठाये घोड़ी बानी हुई थी पीछे असलम गांड मे मुँह धसाये मुँह हिला रहा था.
"हे भगवान ये डॉ.असलम क्या कर रहे है?" कही मम्मी को भी तो सांप ने नहीं काट लिया.
बेचारी भोली भली कामवती
वो काफ़ी डर गई थी अंदर जाने को ही थी की.
रतिवती :- असलम अब देर मत करो वक़्त नहीं है जल्दी से मेरी प्यास बुझा दो,फाड़ दो मेरी चुत,चोदो मुझे असलम
कामवती ये शब्द सुन के दंग रह जाती है उसने होने गांव मे लड़को को गली देते सुना था की जैसे लंड चोदो...
"तो...तो...क्या मेरी माँ असलम से चुदवा रही है"
कामवती बदहवास थी वो तो चुदाई से परिचित ही नहीं थी फिर एकदम से उसके सामने ऐसा दृश्य आ गया उसकी सांसे उखाड़ने लगी..
अंदर असलम गांड से मुँह हटा लेता है पूरा मुँह थूक और चुत रस से सना हुआ था.जैसे जी असलम खड़ा होता है कामवती की नजर सीधा असलम के हाहाकारी लंड पे पड़ती है.
उसके मुँह से चीख सी निकल जाती
है.....
आआहहहह..माँ मममम...... मुँह पे हाथ रखे कामवती आपने कमरे की और भागती है.उसके आँखों के सामने असलम का लंड झूल रहा था
"हे भगवान ये सपना है ऐसा नहीं हो सकता ठाकुर साहेब का तो नहीं है "
अंदर कामवती के चिल्लाने की आवाज़ सुन असलम और रतिवती की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है.
असलम :- ये कैसे आवाज़ थी?
रतिवती तुरंत साड़ी नीचे किये बाहर की और दौड़ लगा देती है.
क्या हुआ? क्या हुआ बेटी तुम चिल्लाई क्यों?
कामवती कही खोई हुई थी
रतिवती को डर लगने लगा कही कामवती ने कामक्रीड़ा तो नहीं देख ली?
"नहीं माँ...वो..वो...चूहा देख लिया था भयंकर चूहा"
ना जाने किस कसमकास ने कामवती को सच्चाई बयान करने से रोक लिया था.
रतिवती कामवती को गले लगा लेती है.
कामवती के जहान मे हज़ारो सवाल थे.उसके मन मे कुछ तो पनप रहा था...वो लगातार कुछ सिख रही थी जैसे कुछ याद आ रहा हो.
रतिवती अभी भी प्यासी थी,उसकी चुत रो रही थी लंड पास हो के भी ना मिला.
जंगल मे
ठाकुर और कालू बिल्लू रामु जंगल का चप्पा चप्पा छान रहे थे भूरी कही नहीं थी.
मालिक...मालिक.....ये देखिये रामु को एक लहंगा मिलता है.
जिसे वो खूब पहचानता था की भूरी काकी का है.
मालिक ये देखिये भूरी काकी का लेहंगा.?
ठाकुर :- हरामखोर तुझे कैसे पता की ये काकी का लहंगा है.
रामु की घिघी बंध गई थी उसे लगा की फस गया अब, तभी
"मालिक घर मे एक ही तो औरत है उनके हि कपड़े आंगन मे सुखते है तो रंग याद है" बिल्लू बात को संभाल लेता है.
ठाकुर :- अच्छा ढूंढो आस पास.
ठाकुर की दौड़ जारी थी..
परन्तु..भूरी अपनी दौड़ हार रही थी उसकी सांसे फूल रही थी "अब और नहीं अब नहीं....भाग सकती हमफ़्फ़्फ़...हमफ़्फ़्फ़...
धड़ाम.....एक हाथ भूरी के पीठ पे पड़ता है और भूरी लुढ़क जाती है उसकी आंखे थकान और ठोंकर से बोझिल होती चली जाती है.
वही शहर मे आज कालावती खुब रच के तैयार हुई थी बिंदी,चूड़ी,मंगलसूत्र,सिंदूर सब कुछ बिलकुल अप्सरा लग रही थी
ठक ठक ठक.....कलावती की खुशी का ठिकाना नहीं रहता,
लगता है दरोगा साहेब आ गए.
कलावती भागती हुई स्तन उछालती दरवाजा खोलने दौड़ती है...
और धड़कते दिल के साथ दरवाजा खोल देती है आखिर सालो बाद आपने पति को देखने वाली थी.
ढाड़ से दरवाजा खुलता है " आइये दरोगा सा.....सा....कौन हो तुम?
कलावती के होश उड़ जाते है दरवाजे पे दो भयानक किस्म के आदमी खड़े थे,घनी मुछे चौड़ी छाती,कंधे पे राइफल.
हाहाहाहा.....तू तो वाकई सुन्दर है रे क्यों बिल्ला?
हाँ भाई रंगा..
क्या दरोगा खुद को और कलावती को बचा लेगा?
भूरी का क्या होगा?
कामवती अपना पिछला जन्म याद कर पायेगी?
बने रहिये कथा जारी है...
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