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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

आपका सबसे पसंदीदा चरित्र कौनसा है?

  • कामवती

  • रतिवती

  • रुखसाना

  • भूरी काकी

  • रूपवती

  • इस्पेक्टर काम्या

  • चोर मंगूस

  • ठाकुर ज़ालिम सिंह /जलन सिंह

  • नागेंद्र

  • वीरा

  • रंगा बिल्ला


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Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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AWESOME SUPERB AND MIND BLOWING UPDATE BHAI
 

andypndy

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चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -62

शाम हो चुकी थी
दरोगा वीर प्रताप की खूबसूरत बीवी कलावती दो हैवानो के बीच बैठी कसमसा रही थी.
रंगा :- अरे यार बिल्ला ये दरोगा तो अभी तक आया ही नहीं? मुझसे तो रहा ही नहीं जा रहा इसकी खूबसूरती देख के
ऐसा बोल रंगा कालावती की जांघो पर साड़ी के ऊपर से ही हाथ फेर देता है.
बिल्ला :- सब्र कर ले भाई सब्र का फल मीठा होता है बिल्ला भी भरपूर निगाह से कलावती के कामुक बदन को घूरता है.
कालावती बेचारी डरी साहमी सी दोनो के बीच मुरझाई सी बैठी थी.कहाँ वो आपने पति के लिए खूब रच के तैयार हुई थी और कहाँ ये दी शैतान आ धमके थे.
कलावती :- आप लोग कौन है?कि दुश्मनी है मुझसे?
ऐसे मत करो वो रंगा का हाथ दूर छटक देती है.
रंगा :- देखो तो छिनाल को कीटंक संस्कारी बन रही है.
बिल्ला :- हम कौन है वो तो तेरा पति है बताएगा? आने दे उसे फिर तेरे संस्कार भी देखते है.
कालावती का बदन किसी अनजाने डर से कांप उठा.
की तभी......
ठक ठक ठक......."लगता है आ गया हमारा शिकार "
बिल्ला :- जा रंडी जा के दरवाजा खोल और कोई भी चालाकी दिखाई तो ये देख...
बिल्ला पीछे से उसकी पीठ पे बन्दुक सटा देता है
"तू मेरे निशाने पे ही रहेगी चुपचाप दरवाजा खोल और दरोगा को अंदर आने दे.
मरती क्या ना करती कालावती चुपचाप अपनी गांड मटकाती दरवाजे की और बढ़ चली.
चरररर...की आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुलता चला गया
सामने दरोगा ही खड़ा था उसके सर पे मुसीबत का पहाड़ रहा फिर भी अपनी खूबसूरत बीवी का चेहरा देखते ही उसकी सारी परेशानी दूर हो जाती है "कितनी सुंदर है मेरी बीवी "
कलावती :- आइये अंदर....किसी मशीन की तरह बोल देती है.
अंदर आने ही आया हूँ मेरी जान, कमाल की सुन्दर लग रही हो क्या बात है?
दरोगा अंदर आ जाता है और पीछे कलावती दरवाजा बंद कर देती है.
दरोगा जैसे ही आगे बढ़ता है उसके होश उड़ जाते है
"तुम...तुम...तुम दोनों यहाँ? दरोगा और कुछ बोल पाने की स्थति ने नहीं था उसको पुलिस की नौकरी से निकाल दिया गया था तो ना उसके साथ हवलदार था ना कोई हथियार
वो पलट के अपनी बीवी की तरफ देखता है कलावती अपना सर झुकाये खड़ी थी.
रंगा :- तेरी छिनाल बीवी हमारे लिए इतनी सज धज के तैयार हुई है बे पॉलिसीये.
दरोगा :- जबान संभाल के बात कर हरामी तेरा गला दबा दूंगा मै.
दरोगा रंगा को मरने आगे बढ़ता है की धड़ाम....बिल्ला का प्रचण्ड घुसा दरोगा के होंठ से खून की धार निकाल देता है...
दरोगा चित जमीन पे फ़ैल जाता है "देखा दरोगा इसी हाथ पे गोली मारी थी ना तूने,देख इस हाथ की ताकत वो अपना हाथ उठता ही है की....नाहीईई....कलावती भाग के नीचे पडे दरोगा पे छा जाती है.
कालावती के नीचे झुकने से उसका पल्लू पूरा हट जाता है और दो बड़े बड़े दूध से भरे गुब्बारे बाहर को छलक पड़ते है.
कलावती के बड़े स्तन उसकी ब्लाउज मे समय ही नहीं पा रहे थे ऊपर से उसके स्तन दरोगा की छाती से लग के सम्पूर्ण रूप से रंगा बिल्ला के सामने उजागर हो रहे थे.
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बिल्ला का हाथ वही रूक जाता है...वो कलावती की सुंदरता मे ही डूब जाता है.
बिल्ला :- बड़ी सुन्दर माल है रे तेरी बीवी दरोगा?
दरोगा :- ज़...ज़....जबान संभाल......के...
कलावती असहज हो जाती है उसके पति के सामने ही कोई उसकी गंदे तरीके से तारीफ कर रहा था. तुरंत आपने पल्लू को संभाल खड़ी हो जाती है किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल धाड़ धाड़ कर रहा था.
रंगा :- याद है दरोगा तूने इसी गाल पे थप्पड़ मारा था, और मैंने कहाँ था मेरे गाल पे पड़ा हर थप्पड़ तेरी बीवी की गांड पे पड़ेगा.
हाहाहाहाहा.....
दरोगा का बदन रंगा की धमकी से सिहर उठता है.
दरोगा :- कमीनो मुझे मारो मुझसे बदला लो मेरी बीवी को जाने दो उसकी कोई गलती नहीं है.
बिल्ला :- जाने देंगे जल्दी क्या है...
सुलेमान...ओह सुलेमान...इधर आ देख तेरे साहेब आये है.
सुलेमान बाहर आ गर्दन झुकाये खड़ा था.
बिल्ला :- क्यों बे पिल्लै आज मालकिन की सेवा नहीं करेगा?
कलावती बिल्ला के मुँह से ऐसी बात सुन चौंक के बिल्ला रंगा की ओर देखने लगती है उसकी आशंका गलत नहीं थी उसका राज उसके पति के सामने खुलने जा रहा था.
आंखे डबडबा आई थी...गर्दन हलके इशारे मे ना मे हिल गई.
रंगा :- क्यों छिनाल आज डर लग रहा है, हमें सुलेमान ने सब बता दिया है
तू बहुत गरम औरत है आज तेरी और दरोगा की गर्मी भरपूर उतरेगी.

यहाँ तो गर्मी उतरने का इंतेज़ाम हो गया था
परन्तु विष रूप हवेली मे रतिवती आपने बदन की गर्मी से परेशान हो रही थी.
असलम लंड डालता उस से पहले ही कामवती आ गई थी.
ठाकुर और बिल्लू रामु कालू हवेली आ गए थे.
कामवती सो चुकी थी, रात गहराने लगी थी.
ठाकुर :- समधन जी ये ये ये....अरे हमने तो तुम्हारा नाम ही नहीं पूछा.
ठाकुर के पीछे घूंघट मे खड़ी स्त्री की और मुख़ातिब हुए.
रुखसाना :- जी...वो मेरा नाम चमेली है पास के ही जंगल से लगे गांव मे रहते है.
ठाकुर उसकी मधुर आवाज़ से प्रभावित था.
रुखसाना की नजर रतिवती पे पड़ती है "अरे ये तो रतिवती चाची है "
मुझे सावधान रहना होगा की मेरी शक्ल कोई ना देख ले.
रतिवती :- तुमने ये पल्लू क्यों डाला हुआ है? यहाँ किस से शर्म?
रुखसाना :- वो वो...मालकिन मेरी नयी नयी शादी हुई है और हमारे यहाँ रीवाज के की शादी के एक साल तक पति के अलावा किसी को शक्ल नहीं दिखाते.
ठाकुर :- बड़ा ही अजीब रिवाज़ है. खेर कोई बात नहीं तुम खाना खो लो फिर आराम कर लो मेरे आदमी कल तुम्हे रूप गंज छोड़ देंगे.
रतिवती :- ठाकुर साहेब आप भी थक गए होंगे खाना कहाँ ले,कामवती मेरे कमरे मे ही सो गई है.
ठाकुर :- ठीक है आज आप माँ बेटी बात करे हम अकेले ही सो लेंगे.
रुखसाना को भूरी काकी का कमरा दे दिया गया.
रतिवती कमरे मे तो आ गई परन्तु दिन से ही उसके बदन की आग चैन लेने नहीं दे रही थी.
"असलम ये क्या किया तुमने अधूरा ही छोड़ दिया,अब क्या करू मै कामवती भी यही सो रही है वरना चुत रगड़ ही लेती थोड़ा.
जैसे जैसे रात बढ़ रही थी रतिवती की चुत उतना ही कुलबुला रही थी,एक अजीब सी खुजली उसकी चुत मे चल रही थी रह रह के वो अपनी जांघो को भींच ले रही थी.
"क्या करू मै अब बर्दास्त नहीं हो रहा "
रतिवती बाहर को चल देती है की कम से कम सुनसान जगह देख ऊँगली से ही गर्मी शांत कर लेगी.
जब बदन मे हवस की गर्माहट हो तो इंसान वक़्त जगह नहीं देखता.
दिखती है तो सिर्फ हवस.

यही हाल आज ठाकुर ज़ालिम सिंह का भी था उसकी आँखों मे नींद नहीं थी बार बार उसके सामने चमेली का कसा हुआ गोरा कामुक बदन आ जा रहा था.
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आज दिनभर की थकान से चूर ठाकुर शराब की बोत्तल गटक रहा था.
परन्तु शराब का नशा उसकी हवास को नयी ऊर्जा दे रहा था,चमेली का कामुक बदन उसके नशे को दुगना कर दे रहा था.
आज कामवती भी नहीं दी उनका छोटा सा लंड उछल कूद कर रहा था.
पाजामे के ऊपर से ही वो आपने लंड को मसले का रहे थे
की तभी.. ठाक ठक ठक....ठाकुर साहेब
ठाकुर चौंक जाता है की कौन आया इतनी रात?
ठाकुर अपना कुर्ता नीचे किये दरवाजा खोल देते है सामने ही चमेली थी.
आज ठाकुर की किस्मत जोरदार थी जिसको सोच रहे थे वही कामुक बदन सामने था.
चमेली :- ठाकुर साहेब....वो..वो..हमें डर लग रहा है बार बार जंगली कुत्ते सामने आ जा रहे है.
रुखसाना बोलते वक़्त हांफ रही थी उसकी छाती फूल पिचक रही थी पेट और सीने पे पसीने की बुँदे थी.जैसे वाकई डर गई हो.
ठाकुर तो उसके कामुक पसीने से चमकते बदन को घूरता ही रहा जाता है
उसके मन मे चोर पनपने लगता है.
कामवती जैसी सुन्दर बीवी के होते हुए भी उसके मन मे लालच घर करने लगा.
चाहता तो चमेली को रतिवती के कमरे मे भी भेज देता,परन्तु हाय रे हवस
"अंदर आ जाओ चमेली हम है तो कैसा डरना "
रुखसाना अंदर आ जाती है घूँघट के अंदर उसके चेहरे पे कातिल मुस्कान थी.
"योजना का दूसरा पड़ाव भी पार "
धड़ाम...ठाकुर दरवाजा बंद कर देता है उसकी आँखों मे लाल डोरे साफ दिख रहे थे.

रात जवान हो रही थी. हवा मे हवस घुल रही थी.
देखना है की कालावती का क्या होगा?
शायद ही दरोगा जिन्दा बचे?
रतिवती अपनी हवास मिटाने के लिए क्या कदम उठाती है.
बने रहिये.... कथा जारी है...
 
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andypndy

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andypndy

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अपडेट -63
कामरूपा की हवस

काबिला मुर्दाबाड़ा
भूरी काकी को होश आ रहा था...उसका सर अभी भी चकरा रहा था,सर पे हाथ रखे वो धीरे धीरे आंखे खोलती है.
उम्मम्मम.....उसकी आंखे चारो और जलती मसाल से चकमका रही थी वो किसी ऊँचे आसान पे बैठी थी.
20-25 काले लम्बे चौड़े राक्षस जैसे दिखने वाले आदमी अर्धनग्न अवस्था मे उसके सामने बैठे हो..
भुजंगा....भुजंगा...सब एक साथ चिल्लाने लगते है जैसे की इसी के उठने का इंतज़ार हो रहा था.भूरी सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे बैठी थी उसे अपने कंधे पे कुछ भारी भारी सा अहसास होता है जैसे किसो ने कोई भारी सामान रख दिया हो.
भूरी हिम्मत कर अपने कंधे पे रखी वस्तु को महसूस करने की कोशिश करती है.
उसके हाथ मे कुछ लम्बा सा था,पीलपीला सा,भूरी हाथ और आगे बढ़ाती है तो वो चीज उसे कुछ लम्बी होती महसूस होती है जो की उसके हाथ मे नहीं समा रहा था.
जिज्ञासावस भूरी अपनी गर्दन घुमाती है और देखते ही चीख पड़ती है..
आआआहहहहह..........हे माआआआआआ....
पूरा काबिला ठहकों से गूंज उठता है, भूरी जोर से आंखे भींच लेती है.
सरदार भुजंग :- आंखे खोलो स्त्री ये डरने की चीज नहीं है.
भूरी डरती हुई आंखे खोलती है वो सरदार भुजंग के पैरो के बीच बैठी थी और भुजंग का महाकाय काला लम्बा मोटा लंड भूरी के कंधे पे झूल रहा था.
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भूरी ने अपने 1000 वर्ष के जीवनकाल मे ऐसा भयानक लंड नहीं देखा था.उसकी आँखों मे डर साफ देखा जा सकता था.
भूरी मे उठने की हिम्मत नहीं थी उसे डर भी लग रहा था परन्तु भुजंग का लिंग उसे संसार की सबसे खूबसूरत चीज मालूम पड़ रहा था,उसके लंड से एक अजीब भीनी भीनी गंध आ रही थी,
इस गंध मे कुछ खास था,ये गंध उसे संमोहीत कर रही थी.
"नहीं नहीं....ये मुझे क्या हो रहा है मैंने सुना है इस काबिले के बारे मे ये लोग बिना मुझे सख्तलित किये मेरा भोजन नहीं कर सकते,परन्तु इनके लिंग से निकलती महक कुछ अलग अहसास करा रही है"
भूरी गहरी सोच मे थी की एक भारी आवाज़ से उसका ध्यान भंग होता है

भुजंग :- क्या नाम है रे तेरा?
भूरी:-भ....भ....भू....कामरूपा
भुजंग :- नाम भी तेरे बदन जैसा ही कामुक है तुझे चोद के खाने का मजा ही आ जायेगा
तेरे गद्दाराये बदन से पूरा काबिला मौज करेगा.
सेनापति मरखप
मरखप :- जी सरदार
भुजंग :- ले जा इसे डाल कैद खाने मे,कल पुरे विधि विधान से इसकी बोटी बोटी नोची जाएगी.
भूरी बुरी तरह बोखला गई थी उसे बचने की कोई सूरत नहीं दिख रही थी, जवान होने के लालच ने उसे आज मौत के कगार पे खड़ा कर दिया था.
आज पहले जितनी शक्तिशाली होती तो ऐसी नौबत नहीं आती.
आअह्ह्हम....भूरी के मुँह से चीख निकाल गई मरखप ने उसके बाल पकड़ उठा लिया था और लगभग घसीटता हुआ ले चला.
कल का दिन भूरी काकी उर्फ़ कामरूपा का आखिरी दिन साबित होने वाला था,उसके जैसी कामुक हवस से भरी औरत आखिर कब तक खुद को झड़ने से रोक सकती थी.
एक बार चुत ने पानी छोड़ा नहीं की इधर बोटी बोटी कटी समझो...
भूरी की आँखों मे आँसू थे,मौत साफ दिख रही थी..

भूरी खुद को कैसे बचा पायेगी?
वक़्त ही बताएगा
बने रहिये...कथा जारी है..
 
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andypndy

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अपडेट -64

दिल्ली रेलवे स्टेशन

अबे जल्दी चल ना बे बहादुर....पीछे क्या मेरी गांड देख रहा है क्या साले.
ट्रैन छुटी ना तो तेरे टट्टे फोड़ दूंगी समझा..
इंस्पेक्टर काम्या ऐसी ही थी दबंग बिंदास बोल बोलने वाली स्त्री थी आम पुलिस की तरह उसकी जबान पे भी हमेशा गाली और अश्लीलता भरी रहती थी.
और वैसे भी इंस्पेक्टर काम्या थी ही हवस से भरी औरत परन्तु उसने कभी भी अपनी हवस को अपने फर्ज़ के आड़े नहीं आने दिया था उल्टा वो अपने जिस्म का फायदा केस सुलझाने मे जरूर उठाती थी.
आज दिल्ली स्टेशन से उसकी ट्रैन थी विष रूप के लिए.
काम्या ने टाइट जीन्स,शार्ट टॉप और आँखों पे काला चश्मा पहना हुआ था जो उन दिनों मे बहुत दुर्लभ दृश्य था हर कोई चाहे मर्द हो या औरत उसकी निगाहेँ उछाल भरते स्तन और बाहर निकल के मटकती गांड पे ही थी.
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टॉप छोटा होने की वजह से रह रह के उसकी नाभि दिख जा रही थी जो किसी भी पुरुष का वीर्यपात करवा सकती थी.
क्या बूढ़ा क्या जवान जिसकी नजर पड़ती वो अपना लंड ही संभालता.
तेज़ चलने की वजह से उसकी गांड बुरी तरह थरक रही थी,गांड का एक हिस्सा उठता तो दूसरा गिरता इस उठाव चढ़ाव को पीछे आता हवलदार बहादुर देख रहा था उसकी हालत तो वैसे ही ख़राब थी ऊपर से काम्या की रोबदार आवाज़ से सहम गया था.
बहादुर:- मैडम...मैडम...वो.वो...मै..हाँ सामान भारी है ना इसलिए धीरे चल रहा हूँ.
इस्पेक्टर काम्या :- साले तू किस काम का बहादुर है सच भी नहीं बोल सकता,अब मेरी गांड है ही ऐसी की मर्द भी क्या करे? तू मर्द ही है ना हाहाहाहा....
बहादुर:- जी जी....मैडम हूँ
बहादुर की घिघी बंध गई थी काम्या के ऐसे दबंग और बेशर्म व्यहार से.
बहदुर जल्दी जल्दी चलने लगा, की तभी ट्रैन ने हॉर्न दे दिया और चलने लगी.कूऊऊऊऊऊ.....
काम्या :- करा दिया ना बहादुर के बच्चे लेट अब भाग जल्दी.
बहादुर के दोनों हाथ मे भारी बेग थे जिस वजह से भाग नहीं पा रहा था ट्रैन आगे निकलती जा रही थी की तभी काम्या को ट्रैन की जनरल बोगी दिखती है वो जल्दी से उसी मे चढ़ जाती है
"बहादुर बैग पकड़ा जल्दी "
बहादुर बैग पकड़ा के खुद भी चढ़ जाता है.
ह्म्म्मफ़्फ़्फ़.... साले हरामखोर बहादुर तू किसी काम का नहीं है ट्रैन छूट जाती तो.
बहदुर :- मैडम मै काम का नहीं लेकिन किस्मत का जरूर हूँ देखो ट्रैन छुटी तो नहीं.
काम्या :- साले अपने ऑफिसर से मज़ाक करता है, चल जगह ढूंढते है अभी अगले स्टेशन पे अपनी बोगी मे चलेंगे.
काम्या आगे बढ़ जाती है और बहादुर पीछे बड़बड़ता हुआ चल देता है "देखना आप एक दिन मेरी किस्मत को मान जाओगी ऐसे ही थोड़ी ना पुलिस मे आ गया मै "
ट्रैन खाली पडी थी लगभग सभी लोग बैठे हुए थे.
बहादुर :- भाईसाहब जरा खसक जाइये मै और मैडम भी बैठ जाये.
"क्यों बे साले तेरे बाप की ट्रैन है क्या जो खसक जाऊ.
बहादुर :- भैया पूरी सीट खाली है आप सिर्फ 4 आदमी है बाकि सीट पे हम दो जाने बैठ जायेंगे.
"साले पिद्दी तुझे समझ नहीं आता क्या भाग यहाँ से मजा ख़राब कर दिया,
कालिया एक पैग और बना साले ने दिमाग़ की माँ बहन कर दी.
ये जो चार शख्स बैठे थे वो दिल्ली के मशहूर जबकतरे,लुटेरे थे
कालिया,पीलिया,धनिया और हरिया
भैया प्लीज थोड़ा सरक जाइये ना लम्बा सफर है
एक मीठी सी कोमल आवाज़ चारो के कानो मे पड़ती है,चारो पलट के देखते है तो देखते ही रह जाते है.
सामने जान्नत की हूर आँखों पे चश्मा लगाए ऊँची सैंडल पहले बिलकुल टाइट जीन्स मे खड़ी थी.
जीन्स इतनी टाइट की आगे से उसकी चुत का आकर भी दिखाई दे रहा था,जीन्स और टॉप के बीच सपाट पेट और उसकी नाभि चारो पे कहर ढा रही थी.
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गांड के तो क्या कहने.
"भैया प्लीज "
आवाज़ से चारो का ध्यान भंग होता है,
उन चारो ने ऐसी लड़की सपने मे भी नहीं देखि थी.
"शहरी मालूम होती हो"? धनिया बोलता है.
काम्या :- जी भैया गांव जा रहे है ये मेरे पति है वो बहादुर की और इशारा करती है.
चारो बहादुर की और देखते है फिर काम्या की और
"अबे ये क्या चक्कर है इस मरियल चूजे को ये पठाखा कहाँ मिल गया?
हरिया :- पहले क्यों नहीं बताया जी बैठिये आप की ही ट्रैन है.
पीलिया :- आज रात का सफर तो हसीन होने वाला है.
ये बात उन लोगो ने फुफुसाते हुए बोली थी परन्तु काम्या के तेज़ कानो ने ये सब सुन लोया था.
काम्या धीरे से उनके सामने से अपनी गांड को जानबूझ के मटकाती हुई गुजारती है और खिड़की के पास बैठ जाती है.
काम्या उनके इतनी पास से निकली थी की चारो के नाथूने उसकी मादक महक से भर गए थे.
काम्या :- सुक्रिया आपका, आप भी बैठिये ना जी
काम्या ने बहादुर का हाथ पकड़ के बोला
बहदुर हक्का बक्का हो गया था की मैडम को क्या हो गया है जो लड़की बात बात पे गोली चला देती है वो इतनी नरमी से कैसे पेश आ रही है.

हक्के बक्के तो रामु और कालू भी थे जो बिल्लू की बात सुन रहे थे.
कालू :- चल बे साले हम नहीं मानते
रामु :- तुझे रतिवती मालकिन अपनी गांड क्यों दिखाएगी?
बिल्लू कल रात की घटना रामु और कालू को सुना रहा था की कैसे उसने रतिवती का कामुक बदन और उसकी नंगी गांड के दर्शन किये.
तीनो जाम पे जाम छलका रहे थे.
बिल्लू :- सही बोल रहा हूँ सालो वो बिलकुल गरम और हवस से भरी औरत है.
हमें थोड़ी कोशिश करनी चाहिए हो सकता है हाथ लग ही जाये.
रामु :- साले तू मरवाएगा तूने ज्यादा पी ली है तेरी बात पे कैसे यकीन कर ले हम. वो ठाकुर साहेब की समधन है.
अंदर तीनो इसी बहस मे उलझें थे बाहर रतिवती अपनी बदन की आग मे जलती हुई इस कमरे की लाइट जलती देख इधर ही आ गई थी.
परन्तु जैसे ही वो कुछ करती उस से पहले ही उसके कान मे अपने बदन और गांड की तारीफ भरे शब्द पड़ गए.
"अच्छा तो यहाँ मेरी ही बात हो रही है कल रात जब उसने पेशाब करते वक़्त बिल्लू को अपनी बड़ी गांड के दर्शन कराये थे उसे याद करते ही रतिवती की चुत झरना बहा देती है.
उसके दिमाग़ मे कुछ विचार चल रहे थे. वो सिर्फ अपने बदन की सुन रही थी उसे कैसे भी अपनी चुत मे लंड चाहिए था,एक की तमन्ना मे उसे तीन तीन लंड लेने का मौका मिल रहा था.
वो योजना बना चुकी थी.
अंदर "कसम खिला लो किसी की भी "
तभी बाहर से रतिवती अंदर आती है.
"किसकी कसम कहाँ रहे हो बिल्लू?"
तीनो के होश उड़ जाते है
बिल्लू:- वो...वो....मै...मै...मालिकन आप?
कालू :- मरवा दिया साले ने आज
रामु दारू छुपाने की कोशिश कर रहा था
रतिवती :- बिल्लू मेरे लिए ये हवेली नयी है मुझे पेशाब लगा था बाहर आई तो कही गुसलखाना दिखा नहीं
ऐसा बोल रतिवती अंदर आ जाती है.
रामु और कालू के होश अभी भी उड़े हुए थे परन्तु बिल्लू चालक था वो कुछ कुछ समझ रहा था.
बिल्लू :- जी...जी...मालिकन मै दिखाता हूँ
परन्तु रतिवती बाहर जाने के बदले अंदर लगे बिस्तर पे बैठ जाती है "तुम लोग ये नीचे क्या छुपा रहे हो?
ऐसा बोल वो बिस्तर के नीचे हाथ डाल देती है उसकी पकड़ मे दारू की बोत्तल आ जाती है.
रतिवती :- अच्छा तो ऐसे करते ही तुम हवेली की सुरक्षा?
तीनों की सांसे फूलने लगती है उनके कुछ समझ नहीं आ रहा था तीनो बुरी तरह डर गए थे.
रतिवती :- यदि ठाकुर साहेब को ये बात मालूम पडी तो जानते हो क्या होगा?
कालू और रामु दोनों रतिवती के पैरो पे गिर पड़ते है.
मालकिन...मालकिन ठाकुर साहेब से कुछ ना कहना वो हमें जिन्दा गाड़ देंगे.आप जो बोले हम करेंगे जो सजा देनी है दे दो.
रतिवती के चेहरे पे विजयी मुस्कान तैर रही थी.
रतिवती :- अच्छा जो सजा दू मंजूर है?
तीनो एक सुर मे गर्दन हिला देते है "हाँ मालकिन "
अच्छा तो बैठो सामने पहले,पैर छोडो मेरे
तीनो डरते डरते बैठ जाते है.
रतिवती को मर्दो को अपनी ऊँगली पे नचाने मे खूब मजा आता था,और आज वो इन तीनो के डर को भली भांति भुना रही थी.
रतिवती शारब की बोत्तल से तीन ग्लास मे शराब डालती है.
तीनो आश्चर्य से उसे ही देख रहे थे की क्या करना चाहती है.
बिल्लू :- मालकिन क्या आप हमें दारू पिलायेंगी?
रतिवती :- हाँ बिल्लू लेकिन ऐसी दारू जो तुम लोगो ने आज तक ना पी हो,उसकी आवाज़ मे एक नशा था एक मदहोशी थी.
तीनो के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था ना जाने क्या था रतिवती के दिमाग़ मे.
रतिवती तीन ग्लास आधे शराब से भर चुकी थी,तीनो अभी हक्के बक्के ही थी की
रतिवती अपनी साड़ी हलकी सी उठा के तीनो गिलास के ऊपर टांग फैला के बैठ जाती है.
तीनो ऐसे चौके जैसे भूत देख लिया हो उनकी समझ से सब कुछ परे था.
रतिवती अपनी टांगे थोड़ी फैला देती है तभी सुररर......ससससररर....करती सिटी बजने लगती है
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थोड़ी देर मे सिटी की आवाज़ बंद होती है और रतिवती तीनो गिलास के ऊपर से उठ जाती है.
गिलास पूरा भरा हुआ था गिलास के ऊपर झाग तैर रहा था.
उसके चेहरे पे सुकून था.
उसने अपना पूरा पेशाब तीनो ग्लास मे भर दिया था.

रतिवती :- लो ये शराब पी के देखो सब भूल जाओगे.
अभी तक जहाँ तीनो डर रहे थे वही अब तीनो के चेहरे पे हवस और नशा साफ दिख रहा था सजा मे मजा दिखने लगा था.
तीनो ही फटाक से गिलास उठाते है और एक ही घूंट मे गट गटा जाते है गरम ताज़ा पेशाब मे मिली दारू हलक से नीचे उतरती चली जाती है.
आअह्ह्ह.....मालकिन मजा आ गया बिल्लू के मुँह से झाग अभी भी बाहर आ रहा था.
कालू :- मालकिन पूरा बदन गरम हो गया.
रामु :- मालकिन और मिलेगी ये शराब
रतिवती सिर्फ मुस्कुरा देती है!और चाहिए तो तुम्हे निकालनी पड़ेगी,अब भला बिना मेहनत के क्या मिलता है.?
तीनो जमुरे समझ चुके थे की क्या करना है.

बने रहिये....कथा जारी है..
 
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