अपडेट -64
दिल्ली रेलवे स्टेशन
अबे जल्दी चल ना बे बहादुर....पीछे क्या मेरी गांड देख रहा है क्या साले.
ट्रैन छुटी ना तो तेरे टट्टे फोड़ दूंगी समझा..
इंस्पेक्टर काम्या ऐसी ही थी दबंग बिंदास बोल बोलने वाली स्त्री थी आम पुलिस की तरह उसकी जबान पे भी हमेशा गाली और अश्लीलता भरी रहती थी.
और वैसे भी इंस्पेक्टर काम्या थी ही हवस से भरी औरत परन्तु उसने कभी भी अपनी हवस को अपने फर्ज़ के आड़े नहीं आने दिया था उल्टा वो अपने जिस्म का फायदा केस सुलझाने मे जरूर उठाती थी.
आज दिल्ली स्टेशन से उसकी ट्रैन थी विष रूप के लिए.
काम्या ने टाइट जीन्स,शार्ट टॉप और आँखों पे काला चश्मा पहना हुआ था जो उन दिनों मे बहुत दुर्लभ दृश्य था हर कोई चाहे मर्द हो या औरत उसकी निगाहेँ उछाल भरते स्तन और बाहर निकल के मटकती गांड पे ही थी.
टॉप छोटा होने की वजह से रह रह के उसकी नाभि दिख जा रही थी जो किसी भी पुरुष का वीर्यपात करवा सकती थी.
क्या बूढ़ा क्या जवान जिसकी नजर पड़ती वो अपना लंड ही संभालता.
तेज़ चलने की वजह से उसकी गांड बुरी तरह थरक रही थी,गांड का एक हिस्सा उठता तो दूसरा गिरता इस उठाव चढ़ाव को पीछे आता हवलदार बहादुर देख रहा था उसकी हालत तो वैसे ही ख़राब थी ऊपर से काम्या की रोबदार आवाज़ से सहम गया था.
बहादुर:- मैडम...मैडम...वो.वो...मै..हाँ सामान भारी है ना इसलिए धीरे चल रहा हूँ.
इस्पेक्टर काम्या :- साले तू किस काम का बहादुर है सच भी नहीं बोल सकता,अब मेरी गांड है ही ऐसी की मर्द भी क्या करे? तू मर्द ही है ना हाहाहाहा....
बहादुर:- जी जी....मैडम हूँ
बहादुर की घिघी बंध गई थी काम्या के ऐसे दबंग और बेशर्म व्यहार से.
बहदुर जल्दी जल्दी चलने लगा, की तभी ट्रैन ने हॉर्न दे दिया और चलने लगी.कूऊऊऊऊऊ.....
काम्या :- करा दिया ना बहादुर के बच्चे लेट अब भाग जल्दी.
बहादुर के दोनों हाथ मे भारी बेग थे जिस वजह से भाग नहीं पा रहा था ट्रैन आगे निकलती जा रही थी की तभी काम्या को ट्रैन की जनरल बोगी दिखती है वो जल्दी से उसी मे चढ़ जाती है
"बहादुर बैग पकड़ा जल्दी "
बहादुर बैग पकड़ा के खुद भी चढ़ जाता है.
ह्म्म्मफ़्फ़्फ़.... साले हरामखोर बहादुर तू किसी काम का नहीं है ट्रैन छूट जाती तो.
बहदुर :- मैडम मै काम का नहीं लेकिन किस्मत का जरूर हूँ देखो ट्रैन छुटी तो नहीं.
काम्या :- साले अपने ऑफिसर से मज़ाक करता है, चल जगह ढूंढते है अभी अगले स्टेशन पे अपनी बोगी मे चलेंगे.
काम्या आगे बढ़ जाती है और बहादुर पीछे बड़बड़ता हुआ चल देता है "देखना आप एक दिन मेरी किस्मत को मान जाओगी ऐसे ही थोड़ी ना पुलिस मे आ गया मै "
ट्रैन खाली पडी थी लगभग सभी लोग बैठे हुए थे.
बहादुर :- भाईसाहब जरा खसक जाइये मै और मैडम भी बैठ जाये.
"क्यों बे साले तेरे बाप की ट्रैन है क्या जो खसक जाऊ.
बहादुर :- भैया पूरी सीट खाली है आप सिर्फ 4 आदमी है बाकि सीट पे हम दो जाने बैठ जायेंगे.
"साले पिद्दी तुझे समझ नहीं आता क्या भाग यहाँ से मजा ख़राब कर दिया,
कालिया एक पैग और बना साले ने दिमाग़ की माँ बहन कर दी.
ये जो चार शख्स बैठे थे वो दिल्ली के मशहूर जबकतरे,लुटेरे थे
कालिया,पीलिया,धनिया और हरिया
भैया प्लीज थोड़ा सरक जाइये ना लम्बा सफर है
एक मीठी सी कोमल आवाज़ चारो के कानो मे पड़ती है,चारो पलट के देखते है तो देखते ही रह जाते है.
सामने जान्नत की हूर आँखों पे चश्मा लगाए ऊँची सैंडल पहले बिलकुल टाइट जीन्स मे खड़ी थी.
जीन्स इतनी टाइट की आगे से उसकी चुत का आकर भी दिखाई दे रहा था,जीन्स और टॉप के बीच सपाट पेट और उसकी नाभि चारो पे कहर ढा रही थी.
गांड के तो क्या कहने.
"भैया प्लीज "
आवाज़ से चारो का ध्यान भंग होता है,
उन चारो ने ऐसी लड़की सपने मे भी नहीं देखि थी.
"शहरी मालूम होती हो"? धनिया बोलता है.
काम्या :- जी भैया गांव जा रहे है ये मेरे पति है वो बहादुर की और इशारा करती है.
चारो बहादुर की और देखते है फिर काम्या की और
"अबे ये क्या चक्कर है इस मरियल चूजे को ये पठाखा कहाँ मिल गया?
हरिया :- पहले क्यों नहीं बताया जी बैठिये आप की ही ट्रैन है.
पीलिया :- आज रात का सफर तो हसीन होने वाला है.
ये बात उन लोगो ने फुफुसाते हुए बोली थी परन्तु काम्या के तेज़ कानो ने ये सब सुन लोया था.
काम्या धीरे से उनके सामने से अपनी गांड को जानबूझ के मटकाती हुई गुजारती है और खिड़की के पास बैठ जाती है.
काम्या उनके इतनी पास से निकली थी की चारो के नाथूने उसकी मादक महक से भर गए थे.
काम्या :- सुक्रिया आपका, आप भी बैठिये ना जी
काम्या ने बहादुर का हाथ पकड़ के बोला
बहदुर हक्का बक्का हो गया था की मैडम को क्या हो गया है जो लड़की बात बात पे गोली चला देती है वो इतनी नरमी से कैसे पेश आ रही है.
हक्के बक्के तो रामु और कालू भी थे जो बिल्लू की बात सुन रहे थे.
कालू :- चल बे साले हम नहीं मानते
रामु :- तुझे रतिवती मालकिन अपनी गांड क्यों दिखाएगी?
बिल्लू कल रात की घटना रामु और कालू को सुना रहा था की कैसे उसने रतिवती का कामुक बदन और उसकी नंगी गांड के दर्शन किये.
तीनो जाम पे जाम छलका रहे थे.
बिल्लू :- सही बोल रहा हूँ सालो वो बिलकुल गरम और हवस से भरी औरत है.
हमें थोड़ी कोशिश करनी चाहिए हो सकता है हाथ लग ही जाये.
रामु :- साले तू मरवाएगा तूने ज्यादा पी ली है तेरी बात पे कैसे यकीन कर ले हम. वो ठाकुर साहेब की समधन है.
अंदर तीनो इसी बहस मे उलझें थे बाहर रतिवती अपनी बदन की आग मे जलती हुई इस कमरे की लाइट जलती देख इधर ही आ गई थी.
परन्तु जैसे ही वो कुछ करती उस से पहले ही उसके कान मे अपने बदन और गांड की तारीफ भरे शब्द पड़ गए.
"अच्छा तो यहाँ मेरी ही बात हो रही है कल रात जब उसने पेशाब करते वक़्त बिल्लू को अपनी बड़ी गांड के दर्शन कराये थे उसे याद करते ही रतिवती की चुत झरना बहा देती है.
उसके दिमाग़ मे कुछ विचार चल रहे थे. वो सिर्फ अपने बदन की सुन रही थी उसे कैसे भी अपनी चुत मे लंड चाहिए था,एक की तमन्ना मे उसे तीन तीन लंड लेने का मौका मिल रहा था.
वो योजना बना चुकी थी.
अंदर "कसम खिला लो किसी की भी "
तभी बाहर से रतिवती अंदर आती है.
"किसकी कसम कहाँ रहे हो बिल्लू?"
तीनो के होश उड़ जाते है
बिल्लू:- वो...वो....मै...मै...मालिकन आप?
कालू :- मरवा दिया साले ने आज
रामु दारू छुपाने की कोशिश कर रहा था
रतिवती :- बिल्लू मेरे लिए ये हवेली नयी है मुझे पेशाब लगा था बाहर आई तो कही गुसलखाना दिखा नहीं
ऐसा बोल रतिवती अंदर आ जाती है.
रामु और कालू के होश अभी भी उड़े हुए थे परन्तु बिल्लू चालक था वो कुछ कुछ समझ रहा था.
बिल्लू :- जी...जी...मालिकन मै दिखाता हूँ
परन्तु रतिवती बाहर जाने के बदले अंदर लगे बिस्तर पे बैठ जाती है "तुम लोग ये नीचे क्या छुपा रहे हो?
ऐसा बोल वो बिस्तर के नीचे हाथ डाल देती है उसकी पकड़ मे दारू की बोत्तल आ जाती है.
रतिवती :- अच्छा तो ऐसे करते ही तुम हवेली की सुरक्षा?
तीनों की सांसे फूलने लगती है उनके कुछ समझ नहीं आ रहा था तीनो बुरी तरह डर गए थे.
रतिवती :- यदि ठाकुर साहेब को ये बात मालूम पडी तो जानते हो क्या होगा?
कालू और रामु दोनों रतिवती के पैरो पे गिर पड़ते है.
मालकिन...मालकिन ठाकुर साहेब से कुछ ना कहना वो हमें जिन्दा गाड़ देंगे.आप जो बोले हम करेंगे जो सजा देनी है दे दो.
रतिवती के चेहरे पे विजयी मुस्कान तैर रही थी.
रतिवती :- अच्छा जो सजा दू मंजूर है?
तीनो एक सुर मे गर्दन हिला देते है "हाँ मालकिन "
अच्छा तो बैठो सामने पहले,पैर छोडो मेरे
तीनो डरते डरते बैठ जाते है.
रतिवती को मर्दो को अपनी ऊँगली पे नचाने मे खूब मजा आता था,और आज वो इन तीनो के डर को भली भांति भुना रही थी.
रतिवती शारब की बोत्तल से तीन ग्लास मे शराब डालती है.
तीनो आश्चर्य से उसे ही देख रहे थे की क्या करना चाहती है.
बिल्लू :- मालकिन क्या आप हमें दारू पिलायेंगी?
रतिवती :- हाँ बिल्लू लेकिन ऐसी दारू जो तुम लोगो ने आज तक ना पी हो,उसकी आवाज़ मे एक नशा था एक मदहोशी थी.
तीनो के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था ना जाने क्या था रतिवती के दिमाग़ मे.
रतिवती तीन ग्लास आधे शराब से भर चुकी थी,तीनो अभी हक्के बक्के ही थी की
रतिवती अपनी साड़ी हलकी सी उठा के तीनो गिलास के ऊपर टांग फैला के बैठ जाती है.
तीनो ऐसे चौके जैसे भूत देख लिया हो उनकी समझ से सब कुछ परे था.
रतिवती अपनी टांगे थोड़ी फैला देती है तभी सुररर......ससससररर....करती सिटी बजने लगती है
थोड़ी देर मे सिटी की आवाज़ बंद होती है और रतिवती तीनो गिलास के ऊपर से उठ जाती है.
गिलास पूरा भरा हुआ था गिलास के ऊपर झाग तैर रहा था.
उसके चेहरे पे सुकून था.
उसने अपना पूरा पेशाब तीनो ग्लास मे भर दिया था.
रतिवती :- लो ये शराब पी के देखो सब भूल जाओगे.
अभी तक जहाँ तीनो डर रहे थे वही अब तीनो के चेहरे पे हवस और नशा साफ दिख रहा था सजा मे मजा दिखने लगा था.
तीनो ही फटाक से गिलास उठाते है और एक ही घूंट मे गट गटा जाते है गरम ताज़ा पेशाब मे मिली दारू हलक से नीचे उतरती चली जाती है.
आअह्ह्ह.....मालकिन मजा आ गया बिल्लू के मुँह से झाग अभी भी बाहर आ रहा था.
कालू :- मालकिन पूरा बदन गरम हो गया.
रामु :- मालकिन और मिलेगी ये शराब
रतिवती सिर्फ मुस्कुरा देती है!और चाहिए तो तुम्हे निकालनी पड़ेगी,अब भला बिना मेहनत के क्या मिलता है.?
तीनो जमुरे समझ चुके थे की क्या करना है.
बने रहिये....कथा जारी है..