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अपडेट -67
रुखसाना अपना खेल खेल चुकी थी,ठाकुर उसकी हर बात मानने के लिए मजबूर था.
ठाकुर :- जैसा तुम कहो चमेली हमें तुम्हारी सभी शर्त मंजूर है बस अपने इस हुस्न की बारिश हम ले कर दो.
रुखसाना :- जैसा आप कहे ठाकुर साहेब बोल के रुखसाना ने अपना हाथ पीछे ले जा के अपनी चोली की डोरी एक बार मे ही खिंच दी वो भी अब और इंतज़ार नहीं करना चाहती थी.
चोली की डोरी खुलते ही चोली ऐसे गिर पडी जैसे पता नहीं उसके ऊपर क्या बोझ था,पल भर मे ही चमेली की चोली नीचे जमीन चाट रही थी.
और कमरे दो खरबूजे के आकर के होरे दूधिया स्तन चमक पडे थे स्तन की चमक सीधा ठाकुर के बदन पे प्रहार कर रही थी ऐसा हुस्न ऐसी मदकता देख ठाकुर खुद का ना संभाल सका धड़ाम से बिस्तर पे गिर पडा.
आजतक उठने कभी अपनी बीवी चाहे रूपवती हो या कामवती किसी के भी स्तन देखने की जहामात नहीं उठाई थी और ना ही उन दोनों ने कभी अनपे कातिल मादक बदन को खुल के दिखाया था.
परन्तु यहाँ तो रुखसाना अपने जानलेवा बदन को दिखा ही नहीं रही थी अपितु उसका भरपूर इस्तेमाल भी कर रही थी.
ठाकुर की लुल्ली के तो हाल ही मत पूछी जिंदगी मे पहली बार वो इस तरह का तनाव महसूस कर रहा था उसकी लुल्ली मे भयंकर पीड़ा हो रही थी उसे बस चुत चाहिए थी किसी भी कीमत पे.
रुखसाना बड़ी अदा से चलती हुई ठाकुर के नजदीक आने लगती है उसकी बड़ी भरी चूचियाँ हिल हिल के भूकंप पैदा कर रही थी कमर बल कहा रही थी पल पल ठाकुर घायल होता चला जा रहा था.
उसका नाम ज़ालिम था लेकिन इस वक़्त रुखसाना ज़ालिम बानी हुई थी..
रुखसाना पास आ के सीधा धोती के ऊपर से ही ठाकुर के छोटे से लंड को दबोच लेती है टट्टो सहित.
ठाकुर दर्द और उत्तेजना से व्याकुल हो जाता है.
"क्या कर रही हो चमेली,जल्दी से अपनी चुत दो ना "
रुखसाना :- शर्त भूल गए ठाकुर साहेब आओ को कुछ करना या बोलना नहीं है जो भी होगा मै करूंगी,लगातार मसले जा रही थी ठाकुर के लंड को..
ठाकुर फटाफट अपनी धोती खोलने लगता है और तुरंत उसे अलग फेंक देता है उसका छोटा सा लंड फंफना रहा था,इधर उधर झटके मार रहा था.
रुखसाना उस लंड को देख के अफ़सोस करने लगी "हाय रे नाम ठाकुर ज़ालिम सिंह और लंड से नामर्द "
वो अब अपने कोमल हाथ से ठाकुर के लंड को पकड़ लेती है जो कि उसकी पूरी मुट्ठी मे समय गया था.
ठाकुर तो बस पागल हो गया था इतने मे ही वो अपना सर इधर उधर पटकने लगा.
रुखसाना को समझते देर ना लगी की ये हिजड़ा ज्यादा नहीं ठीक सकता इसका कुछ करना होगा वरना कही वीर्य ना फेंक दे अभी ही..
रुखसाना अपने सुलगते होंठ को ठाकुर के लंड पे टिका देती है....
उसके गरम होंठ का स्पर्श पाते ही ठाकुर तिलमिला जाता है.
"ये क्या कर रही हो चमेली हमें तो आज तक ऐसा नहीं किया ना देखा "
रुखसाना मन मे साले तेरा तो करना बनता भी नहीं है.
लेकिन रुखसाना सर ऊपर उठाये अपने हाथ को ठाकुर की छाती ले फेरने लगती है "आप सिर्फ मजे लीजिये ठाकुर साहेब आपकी दासी सब संभाल लेगी.
रुखसाना अपनी जबान बाहर निकाल पुरे लंड को चाट लेती है, और मुँह खोल पुरे लंड को एक ही बार मे मुँह मे भर लेती है.
"आआहहहह.....चमेली ये क्या है " ठाकुर तो इतने मे ही चित्कार उठा उसे ऐसा आनन्द ऐसी तड़प कभी ना हुई थी नतीजा तुरंत मिला
ठाकुर के लंड ने मात्र एक चुसाई मे ही वीर्य की बौछार कर दी सारा वीर्य रुखसाना के मुँह मे धकेलने लगा
आअहब्ब.....चमेली हम गए...आअह्ह्ह...उम्ममममम
ठाकुर रुखसाना की उम्मीद से भी पहले झड़ गया था,
रुखसाना का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी क्यकि अंदर वो भी गर्म हो रही थी उसकी चुत भी सुलग रही थी परन्तु ये क्या ठाकुर तो वीर्य निकलते ही खर्राटे की आवाज़ गूंजने लगी....
"साला....हिजड़ा "
रुखसाना के मुँह से भद्दी गाली निकाल पडी उसने अपने मुँह से वीर्य को अपने हाथ पे थूका
और उसे एक शीशी मे डाल लिया और अपनी चोली और दुपट्टा हाथ मे लिए ही बाहर को निकाल गई.
उसका बदन कामअग्नि मे जल रहा था चेहरा गुस्से से लाल था क्या करे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
रुखसाना को ठाकुर का वीर्य तो मिल गया था लेकिन अपने बदन की मदकता हवस का क्या मरे जी इन सन चक्कर मे उफान पे थी
"ठहरो रुखसाना,मै तुम्हे पहचान गया हूँ "
पीछे से गरज़ दार आवाज़ ने रुखसाना के कदम रोक लिए रुखसाना की पीठ पीछे स्वागत पूरी नंगी थी,बड़ी गांड छोटे से लहंगे मे उछाल रहे थे.
आवाज़ सुनते ही रुखसाना का हलक सुख गया भला यहाँ कौन है जो उसका राज जनता था.
रुखसाना पीछे पलट के देखती है तो उसके होश ही उड़ जाते है.....
होश तो दरोगा वीरप्रताप के भी उड़े हुए थे उसकी आँखों के सामने ही रंगा बिल्ला ने उसकी खूबसूरत बीवी के हलक मे अपना गन्दा पेशाब उतार दिया था,पूरी साड़ी एयर ब्लाउज गीले हो चुके थे,पेशाब की अजीब गंध से कमरा महक रहा था.
सुलेमान और दरोगा इस गंध से नाक मुँह सिकोड रहे थे.
परन्तु कालावती को एक अजीब सी खुमारी चढ़ रही थी,उसे ये अजीब कैसेली गंध मादक लग रही थी इतनी बुरी तरह से उसे कभी किसी ने बेइज़्ज़त नहीं किया था.
रंगा :- और पीना है रानी कालावती
रंगा बिल्ला को इस से अच्छा मौका नहीं मिल सकता था दरोगा को बेइज़्ज़त करने का.
कालावती अभी भी मुँह बाये बैठी थी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी, ब्लाउज मे कैद स्तन का आकर बढ़ता मालूम पड़ रहा था उसकी छातिया कभी भी ब्लाउज फाड़ के बाहर आ सकती थी. कालावती का बदन धीरे धीरे गरम होने लगा उसकी आँखों मे हवस साफ दिख रही थी.
अभी सब लोग अचंभित ही थे की बिल्ला अपनी कमर को आगे की तरफ धक्का दे देता है,बिल्ला का लंड सीधा कालावती के खुले मुँह मे प्रवेश कर जाता है.
ग्गुऊऊऊ.....गुगगगगऊऊऊ....की आवाज़ के साथ कालावती का पूरा मुँह भर गया हालांकि लंड अभी पूरी तरह खड़ा भी नहीं था.
"ले साली रांड...और पी.मेरा पानी.....चूस इसे "
परन्तु कालावती सिर्फ आंख ऊपर किये सिर्फ बिल्ला को देखे जा रही थी.
उसे अभी भी थोड़ी शर्म थी.
तभी रंगा अपने दोनों हाथो से कालावती के ब्लाउज के ऊपर से ही उसके निप्पल पकड़ के जोरदार तरीके से उमेड देता है.
कालावती का मुँह और ज्यादा खुल जाता है बिल्ला अपने लंड को और अंदर धकेल देता है उसके टट्टे कालावती के गुलाबी होंठो को छू रहे थे.
अब सांस लेना मुश्किल था कालावती की नाक मे झांट के बाल जा फसे ना चाहते हुए भी कालावती ने अपना सर पीछे किया लंड थोड़ा सा बाहर ही आया था की बिल्ला ने वापस धक्का मार दिया
कालावती ने फिर सर पीछे किया बिल्ला ने फिर से धक्का मार दिया.
नीचे रंगा लगातार गीले ब्लाउज ऊपर से ही निप्पल से खेल रहा था परिणाम निपल कड़क और नुकले हो गए जिनकी नुमाइश ब्लाउज के ऊपर से ही हो रही थी.
रंगा :- देख दरोगा तेरी रंडी बीवी को कैसे चूस रही है,तेरा चूसा है क्या कभी?
दरोगा को याद ही नहीं आ रहा था की कभी कालावती ने उसका लंड चूसा हो,"नहीं कभी नहीं " ना चाहते हुए भी दरोगा के मुँह से निकल गया.
हाहाहाःहाहा.....बिल्ला हस पडा साला नामर्द
मर्द के लंड हो तब ना बीवी चूसेगी...दरोगा शर्मिंदगी से मुँह झुका लेता है.
उसे आज खुद पे कालावती पे गुस्सा आ रहा था उसे अपनी ईमानदारी और फर्ज़ का क्या सिला मिला?
इधर कालावती के मुँह से थूक रिसने लगा,बिल्ला के टट्टे थूक से लिस्लिसा गए, कालावती की हवस अपना काम कर रही थी इना मोटा और बड़ा लंड उसे पहली बार मिला था मन लगा के चूसे जा रही थी जैसे तो कोई रस निकल रहा ही उसमे से.
खुल के बाहर आ चुकी थी कालावती शर्म का क्या फायदा परन्तु दिखा ऐसे रही थी जैसे मज़बूरी मे कर रही हो.
दृश्य ऐसा कामुक था की कमरे मे सबके लंड खड़े हो गए थे,बिल्ला का लुंड लगातार फच फच फच....गुगुगु.....गुगुम....की आवाज़ के साथ अंदर जाता और ढेर सारा थूक ले के बाहर आता थूक होंठो से टपकता सीधा स्तन रुपी घाटी मे लुप्त ही जा रहा था.
रंगा भी अब नजदीक आ गया था,और अपने लंड को पकडे कालावती के गाल पे मार देता है.इस मार से कालावती सिहर उठती है उसकी चुत रस छोड़ ही देती है.
ना जाने किस आग मे जल रही थी कालावती की खुद ही अपने हाथ आगे कर रंगा का लंड पकड़ लेती है और बिल्ला के लंड को बाहर निकाल रंगा के लंड को एक ही बार मे मुँह मे घुसा लेती है,उसके गुलाबी होंठ रंगा के काले मैले गंदे लंड को सहला रहे थे.
दरोगा और सुलेमान इस रंडीपना को देख हैरान रह गए सुलेमान तो अपने कुंड को पाजामे के ऊपर से ही रगड़ने लगा ,वही दरोगा का भी बुरा हाल था उसे कालावती के रंडीपने से नफरत हो रही थी उसके इस कृत्य पे घिन्न आ रही थी परन्तु उसका लंड ये सब नहीं जनता था उसका लंड भी खड़ा हो कालावती के खेल को सलामी देने लगा.
दरोगा हैरान था की उसे क्या हो रहा है...
की तभी कालावती ने वो कर दिखाया जो एक रंडी भी ना करती,कालावती ने दोनों के लंड को हाथ से पकड़ एक साथ मुँह मे भर लिया,लंड मोटा था मुँह छोटा परन्तु जीतना हो सकता था कालावती उतना बड़ा मुँह खोले दोनों के लंड को एक साथ चूस रही थी..
अब दरोगा की नजर मे कालावती सिर्फ रंडी थी सिर्फ एक रंडी....
बने रहिये कथा जारी है....
रुखसाना अपना खेल खेल चुकी थी,ठाकुर उसकी हर बात मानने के लिए मजबूर था.
ठाकुर :- जैसा तुम कहो चमेली हमें तुम्हारी सभी शर्त मंजूर है बस अपने इस हुस्न की बारिश हम ले कर दो.
रुखसाना :- जैसा आप कहे ठाकुर साहेब बोल के रुखसाना ने अपना हाथ पीछे ले जा के अपनी चोली की डोरी एक बार मे ही खिंच दी वो भी अब और इंतज़ार नहीं करना चाहती थी.
चोली की डोरी खुलते ही चोली ऐसे गिर पडी जैसे पता नहीं उसके ऊपर क्या बोझ था,पल भर मे ही चमेली की चोली नीचे जमीन चाट रही थी.
और कमरे दो खरबूजे के आकर के होरे दूधिया स्तन चमक पडे थे स्तन की चमक सीधा ठाकुर के बदन पे प्रहार कर रही थी ऐसा हुस्न ऐसी मदकता देख ठाकुर खुद का ना संभाल सका धड़ाम से बिस्तर पे गिर पडा.
आजतक उठने कभी अपनी बीवी चाहे रूपवती हो या कामवती किसी के भी स्तन देखने की जहामात नहीं उठाई थी और ना ही उन दोनों ने कभी अनपे कातिल मादक बदन को खुल के दिखाया था.
परन्तु यहाँ तो रुखसाना अपने जानलेवा बदन को दिखा ही नहीं रही थी अपितु उसका भरपूर इस्तेमाल भी कर रही थी.
ठाकुर की लुल्ली के तो हाल ही मत पूछी जिंदगी मे पहली बार वो इस तरह का तनाव महसूस कर रहा था उसकी लुल्ली मे भयंकर पीड़ा हो रही थी उसे बस चुत चाहिए थी किसी भी कीमत पे.
रुखसाना बड़ी अदा से चलती हुई ठाकुर के नजदीक आने लगती है उसकी बड़ी भरी चूचियाँ हिल हिल के भूकंप पैदा कर रही थी कमर बल कहा रही थी पल पल ठाकुर घायल होता चला जा रहा था.
उसका नाम ज़ालिम था लेकिन इस वक़्त रुखसाना ज़ालिम बानी हुई थी..
रुखसाना पास आ के सीधा धोती के ऊपर से ही ठाकुर के छोटे से लंड को दबोच लेती है टट्टो सहित.
ठाकुर दर्द और उत्तेजना से व्याकुल हो जाता है.
"क्या कर रही हो चमेली,जल्दी से अपनी चुत दो ना "
रुखसाना :- शर्त भूल गए ठाकुर साहेब आओ को कुछ करना या बोलना नहीं है जो भी होगा मै करूंगी,लगातार मसले जा रही थी ठाकुर के लंड को..
ठाकुर फटाफट अपनी धोती खोलने लगता है और तुरंत उसे अलग फेंक देता है उसका छोटा सा लंड फंफना रहा था,इधर उधर झटके मार रहा था.
रुखसाना उस लंड को देख के अफ़सोस करने लगी "हाय रे नाम ठाकुर ज़ालिम सिंह और लंड से नामर्द "
वो अब अपने कोमल हाथ से ठाकुर के लंड को पकड़ लेती है जो कि उसकी पूरी मुट्ठी मे समय गया था.
ठाकुर तो बस पागल हो गया था इतने मे ही वो अपना सर इधर उधर पटकने लगा.
रुखसाना को समझते देर ना लगी की ये हिजड़ा ज्यादा नहीं ठीक सकता इसका कुछ करना होगा वरना कही वीर्य ना फेंक दे अभी ही..
रुखसाना अपने सुलगते होंठ को ठाकुर के लंड पे टिका देती है....
उसके गरम होंठ का स्पर्श पाते ही ठाकुर तिलमिला जाता है.
"ये क्या कर रही हो चमेली हमें तो आज तक ऐसा नहीं किया ना देखा "
रुखसाना मन मे साले तेरा तो करना बनता भी नहीं है.
लेकिन रुखसाना सर ऊपर उठाये अपने हाथ को ठाकुर की छाती ले फेरने लगती है "आप सिर्फ मजे लीजिये ठाकुर साहेब आपकी दासी सब संभाल लेगी.
रुखसाना अपनी जबान बाहर निकाल पुरे लंड को चाट लेती है, और मुँह खोल पुरे लंड को एक ही बार मे मुँह मे भर लेती है.
"आआहहहह.....चमेली ये क्या है " ठाकुर तो इतने मे ही चित्कार उठा उसे ऐसा आनन्द ऐसी तड़प कभी ना हुई थी नतीजा तुरंत मिला
ठाकुर के लंड ने मात्र एक चुसाई मे ही वीर्य की बौछार कर दी सारा वीर्य रुखसाना के मुँह मे धकेलने लगा
आअहब्ब.....चमेली हम गए...आअह्ह्ह...उम्ममममम
ठाकुर रुखसाना की उम्मीद से भी पहले झड़ गया था,
रुखसाना का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी क्यकि अंदर वो भी गर्म हो रही थी उसकी चुत भी सुलग रही थी परन्तु ये क्या ठाकुर तो वीर्य निकलते ही खर्राटे की आवाज़ गूंजने लगी....
"साला....हिजड़ा "
रुखसाना के मुँह से भद्दी गाली निकाल पडी उसने अपने मुँह से वीर्य को अपने हाथ पे थूका
उसका बदन कामअग्नि मे जल रहा था चेहरा गुस्से से लाल था क्या करे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
रुखसाना को ठाकुर का वीर्य तो मिल गया था लेकिन अपने बदन की मदकता हवस का क्या मरे जी इन सन चक्कर मे उफान पे थी
"ठहरो रुखसाना,मै तुम्हे पहचान गया हूँ "
पीछे से गरज़ दार आवाज़ ने रुखसाना के कदम रोक लिए रुखसाना की पीठ पीछे स्वागत पूरी नंगी थी,बड़ी गांड छोटे से लहंगे मे उछाल रहे थे.
आवाज़ सुनते ही रुखसाना का हलक सुख गया भला यहाँ कौन है जो उसका राज जनता था.
रुखसाना पीछे पलट के देखती है तो उसके होश ही उड़ जाते है.....
होश तो दरोगा वीरप्रताप के भी उड़े हुए थे उसकी आँखों के सामने ही रंगा बिल्ला ने उसकी खूबसूरत बीवी के हलक मे अपना गन्दा पेशाब उतार दिया था,पूरी साड़ी एयर ब्लाउज गीले हो चुके थे,पेशाब की अजीब गंध से कमरा महक रहा था.
सुलेमान और दरोगा इस गंध से नाक मुँह सिकोड रहे थे.
परन्तु कालावती को एक अजीब सी खुमारी चढ़ रही थी,उसे ये अजीब कैसेली गंध मादक लग रही थी इतनी बुरी तरह से उसे कभी किसी ने बेइज़्ज़त नहीं किया था.
रंगा :- और पीना है रानी कालावती
रंगा बिल्ला को इस से अच्छा मौका नहीं मिल सकता था दरोगा को बेइज़्ज़त करने का.
कालावती अभी भी मुँह बाये बैठी थी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी, ब्लाउज मे कैद स्तन का आकर बढ़ता मालूम पड़ रहा था उसकी छातिया कभी भी ब्लाउज फाड़ के बाहर आ सकती थी. कालावती का बदन धीरे धीरे गरम होने लगा उसकी आँखों मे हवस साफ दिख रही थी.
अभी सब लोग अचंभित ही थे की बिल्ला अपनी कमर को आगे की तरफ धक्का दे देता है,बिल्ला का लंड सीधा कालावती के खुले मुँह मे प्रवेश कर जाता है.
ग्गुऊऊऊ.....गुगगगगऊऊऊ....की आवाज़ के साथ कालावती का पूरा मुँह भर गया हालांकि लंड अभी पूरी तरह खड़ा भी नहीं था.
"ले साली रांड...और पी.मेरा पानी.....चूस इसे "
परन्तु कालावती सिर्फ आंख ऊपर किये सिर्फ बिल्ला को देखे जा रही थी.
उसे अभी भी थोड़ी शर्म थी.
तभी रंगा अपने दोनों हाथो से कालावती के ब्लाउज के ऊपर से ही उसके निप्पल पकड़ के जोरदार तरीके से उमेड देता है.
कालावती का मुँह और ज्यादा खुल जाता है बिल्ला अपने लंड को और अंदर धकेल देता है उसके टट्टे कालावती के गुलाबी होंठो को छू रहे थे.
अब सांस लेना मुश्किल था कालावती की नाक मे झांट के बाल जा फसे ना चाहते हुए भी कालावती ने अपना सर पीछे किया लंड थोड़ा सा बाहर ही आया था की बिल्ला ने वापस धक्का मार दिया
कालावती ने फिर सर पीछे किया बिल्ला ने फिर से धक्का मार दिया.
नीचे रंगा लगातार गीले ब्लाउज ऊपर से ही निप्पल से खेल रहा था परिणाम निपल कड़क और नुकले हो गए जिनकी नुमाइश ब्लाउज के ऊपर से ही हो रही थी.
रंगा :- देख दरोगा तेरी रंडी बीवी को कैसे चूस रही है,तेरा चूसा है क्या कभी?
दरोगा को याद ही नहीं आ रहा था की कभी कालावती ने उसका लंड चूसा हो,"नहीं कभी नहीं " ना चाहते हुए भी दरोगा के मुँह से निकल गया.
हाहाहाःहाहा.....बिल्ला हस पडा साला नामर्द
मर्द के लंड हो तब ना बीवी चूसेगी...दरोगा शर्मिंदगी से मुँह झुका लेता है.
उसे आज खुद पे कालावती पे गुस्सा आ रहा था उसे अपनी ईमानदारी और फर्ज़ का क्या सिला मिला?
इधर कालावती के मुँह से थूक रिसने लगा,बिल्ला के टट्टे थूक से लिस्लिसा गए, कालावती की हवस अपना काम कर रही थी इना मोटा और बड़ा लंड उसे पहली बार मिला था मन लगा के चूसे जा रही थी जैसे तो कोई रस निकल रहा ही उसमे से.
खुल के बाहर आ चुकी थी कालावती शर्म का क्या फायदा परन्तु दिखा ऐसे रही थी जैसे मज़बूरी मे कर रही हो.
दृश्य ऐसा कामुक था की कमरे मे सबके लंड खड़े हो गए थे,बिल्ला का लुंड लगातार फच फच फच....गुगुगु.....गुगुम....की आवाज़ के साथ अंदर जाता और ढेर सारा थूक ले के बाहर आता थूक होंठो से टपकता सीधा स्तन रुपी घाटी मे लुप्त ही जा रहा था.
रंगा भी अब नजदीक आ गया था,और अपने लंड को पकडे कालावती के गाल पे मार देता है.इस मार से कालावती सिहर उठती है उसकी चुत रस छोड़ ही देती है.
ना जाने किस आग मे जल रही थी कालावती की खुद ही अपने हाथ आगे कर रंगा का लंड पकड़ लेती है और बिल्ला के लंड को बाहर निकाल रंगा के लंड को एक ही बार मे मुँह मे घुसा लेती है,उसके गुलाबी होंठ रंगा के काले मैले गंदे लंड को सहला रहे थे.
दरोगा और सुलेमान इस रंडीपना को देख हैरान रह गए सुलेमान तो अपने कुंड को पाजामे के ऊपर से ही रगड़ने लगा ,वही दरोगा का भी बुरा हाल था उसे कालावती के रंडीपने से नफरत हो रही थी उसके इस कृत्य पे घिन्न आ रही थी परन्तु उसका लंड ये सब नहीं जनता था उसका लंड भी खड़ा हो कालावती के खेल को सलामी देने लगा.
दरोगा हैरान था की उसे क्या हो रहा है...
की तभी कालावती ने वो कर दिखाया जो एक रंडी भी ना करती,कालावती ने दोनों के लंड को हाथ से पकड़ एक साथ मुँह मे भर लिया,लंड मोटा था मुँह छोटा परन्तु जीतना हो सकता था कालावती उतना बड़ा मुँह खोले दोनों के लंड को एक साथ चूस रही थी..
अब दरोगा की नजर मे कालावती सिर्फ रंडी थी सिर्फ एक रंडी....
बने रहिये कथा जारी है....